कबीर दास की साखियाँ एवं सबद (पद) | Kabir Das ki Sakhi in Hindi Class 9 क्षितिज भाग 1 कक्षा 9 पाठ 9 (NCERT Solution for class 9 kshitij bhag 1 chapter 9) कबीर दास की साखियाँ एवं सबद (पद) काव्य खंड (Kabir Das ki Sakhi and Sabad) के पठन व लेखन से सम्बंधित समस्त अध्ययन सामग्री का संग्रहण एवं प्रस्तुतिकरण -
Kabir sakhiyan class 9
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पाठ परिचय
इस पाठ में कबीर के द्वारा रचित 7 साखियों का संकलन है .इसमें निम्नलिखित भावों का उल्लेख हुआ है -
इसके अलावा पाठ में कवि के दो सबद (पदों) का संकलन है . जिसमें पहले सबद में बाह्य आडम्बरों का विरोध तथा अपने भीतर ही ईश्वर की व्याप्ति का संकेत है. दूसरे सबद में ज्ञान की आंधी रूपक के सहारे ज्ञान के महत्व का वर्णन किया गया है .कवि का मानना है कि ज्ञान की सहायता से मनुष्य अपनी सभी दुर्बलताओं पर विजय प्राप्त कर सकता है .
kabir ki sakhiyan class 9 explanation
kabir ki sakhiyan class 9 bhavarth
मानसरोवर सुभर जल, हंसा केलि कराहिं
मुकताफल मुकता चुगैं, अब उड़ि अनत न जाहिं
kabir ki sakhiyan class 9 word meaning
शब्दार्थ :
- मानसरोवर- मनरूपी सरोवर अर्थात् हृदय
- हंस-हंस पक्षी, जीव का प्रतीक
भावार्थ :
प्रतीक
- मानसरोवर-मनुष्य का मन
- जल-प्रभु भक्ति
- हंस -जीवात्मा
- मोती -मुक्ति
मानसरोवर स्वच्छ जल से पूरी तरह भरा हुआ है. उसमें हंस क्रीड़ा करते हुए मोतियों को चुग रहे हैं. वे इस आनंददायक स्थान को छोड़कर कहीं और जाना नहीं चाहते हैं.
कवि कहना चाहते हैं कि जीवात्मा प्रभु की भक्ति में लीन होकर मन में (परम आनंद) सुख लूट रहे हैं. वे स्वच्छंद होकर मुक्ति का आनंद उठा रहे हैं. वे इस सुख (मुक्ति) को छोड़कर अन्यत्र कहीं नहीं जाना चाहते हैं .
विशेष :
हंसा केलि कराहिं-अनुप्रास अलंकार
मुकताफल मुकता चुगैं-यमक अलंकार
प्रेमी ढूँढ़त मैं फिरौं, प्रेमी मिले न कोइ
प्रेमी कौं प्रेमी मिलै, सब विष अमृत होइ
kabir ki sakhiyan class 9 word meaning
शब्दार्थ :
भावार्थ :
प्रतीक
- मैं - अहंकार (स्वयं को सर्वश्रष्ठ समझना )
- प्रेमी - प्रभु का भक्त
- विष - मन की बुराइयाँ
- अमृत- मन की अच्छाइयाँ
कवि कहता है कि 'मैं' ईश्वर से प्रेम करने वाले अर्थात् प्रभु के भक्त को ढूँढ़ता फिर रहा था पर अहंकार के कारण मुझे कोई भक्त न मिला. जब दो सच्चे प्रभु-भक्त मिलते हैं तो मन की सारी विष रूपी बुराइयाँ समाप्त हो जाती हैं तथा मन में अमृत रूपी अच्छाइयाँ आ जाती हैं.
कबीरदास जी कहते हैं कि जब मैं अपने अहंकार में भरा हुआ ईश्वर भक्त बनकर ईश्वर भक्तों को ढूंढ रहा था तो मुझे कोई नहीं मिला लेकिन जब मैंने अपने अहंकार को त्याग दिया और सच्चा ईश्वर भक्त बना तो मुझे सच्चा ईश्वर भक्त मिला और मेरे मन की बुराइयां बदल कर अच्छाइयां बन गईं . मेरा मन प्रभु भक्ति के आनंद में डूब गया.
विशेष :
प्रेमी ढूँढ़त मैं फिरौं - श्लेष अलंकार
- प्रेमी-प्रेम करने वाला
- प्रेमी - प्रभु का भक्त
ईश्वर के प्रति सच्ची प्रेम से जीवन आनंद दायक हो जाता है
हस्ती चढ़िए ज्ञान कौ, सहज दुलीचा डारि
स्वान रूप संसार है, भूँकन दे झख मारि
kabir ki sakhiyan class 9 word meaning
शब्दार्थ :
- सहज- स्वाभाविक रूप से , प्राकृतिक समाधि
भावार्थ :
प्रतीक
- हाथी -ज्ञान
- दुलीचा - सहजता
- कुत्ता- संसार (बिना मतलब के हस्तक्षेप करने वाले लोग)
- भौंकना - निंदा करना
कवि ज्ञान प्राप्ति में लगे साधकों को संबोधित करते हुए कहता है कि तुम ज्ञान रूपी हाथी पर सहज समाधि रूपी आसन (कालीन) बिछाकर अपने मार्ग पर निश्चिंत होकर चलते रहो. यह संसार कुत्ते के समान है जो हाथी को आगे चलता हुआ देखकर पीछे से बिना किसी उद्येश्य के भौंकता रहता है अर्थात् साधक को ज्ञान प्राप्ति में लीन देखकर दुनियावाले अनेक तरह की उल्टी-सीधी बातें करते हैं परंतु उसे लोगों द्वारा की जाने वाली निंदा की परवाह नहीं करनी चाहिए.
विशेष :
साखी में प्रयुक्त तत्सम शब्द - हस्ती,ज्ञान,स्वान
सधुक्कड़ी भाषा का प्रयोग है
अंतिम पंक्ति में सीख दी गई है कि लोगों की परवाह किए बिना अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिए कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ते रहना चाहिए.
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पखापखी के कारनै, सब जग रहा भुलान
निरपख होइ के हरि भजै, सोई संत सुजान
kabir ki sakhiyan class 9 word meaning
शब्दार्थ :
- सुजान-चतुर, ज्ञानी, सज्जन
भावार्थ :
लोग अपने संप्रदाय का पक्ष लेकर अपने आपको दूसरों से बेहतर मानते हैं. वे अपने धर्म का समर्थन तथा दूसरे की निंदा करते हैं. इसी पक्ष-विपक्ष के चक्कर में पड़कर वे अपना वास्तविक उद्देश्य भूल जाते हैं. जो व्यक्ति धर्म -संप्रदाय के चक्कर में पड़े बिना ईश्वर की भक्ति करते हैं वही सच्चे ज्ञानी हैं.
भेदभाव के कारण सारा संसार ईश्वर की भक्ति को भूल गया है जो व्यक्ति बिना किसी भेदभाव के ईश्वर का भजन कर रहा है वही सज्जन व्यक्ति है. ईश्वर 'एक' है लेकिन मनुष्य ने उसे 'अनेक' बना दिया है यही भेदभाव उसे ईश्वर से दूर किए हुए है और जो व्यक्ति इस मर्म को जानता है वह ईश्वर प्राप्ति में सफल होता है.
विशेष :
सोई संत सुजान-अनुप्रास अलंकार
ईश्वर के प्रति सच्ची आराधना मत-मतांतर से भिन्न होती है
'माटीवाली' पाठ की अध्ययन सामग्री पढ़ने के लिए क्लिक करें
हिंदू मूआ राम कहि, मुसलमान खुदाइ
कहै कबीर सो जीवता, जो दुहुँ के निकटि न जाइ
kabir ki sakhiyan class 9 word meaning
शब्दार्थ :
भावार्थ :
हिंदू राम का जाप करते हुए तथा मुसलमान खुदा की बंदगी करते हुए मर मिटे . निराकार ईश्वर की उपासना की सीख देते हुए कबीर कहते हैं कि वास्तव में राम और खुदा तो एक ही हैं. जो राम और खुदा के चक्कर में न पड़कर प्रभु की भक्ति करता है वही सच्चे रूप में जीवित है और सच्चा ज्ञान प्राप्त करता है .
जो मनुष्य राम और रहीम दोनों से अलग होकर मानवता को अपनाता है वही सच्चा ईश्वर भक्त कहलाता है.
विशेष :
कहै कबीर सो जीवता-अनुप्रास अलंकार
कबीर मानवता को सबसे बड़ा धर्म मानते हैं .
सर्वधर्म समभाव का संदेश दृष्टिगोचर है
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काबा फिरि कासी भया, रामहिं भया रहीम
मोट चून मैदा भया, बैठि कबीरा जीम
kabir ki sakhiyan class 9 word meaning
शब्दार्थ :
- काबा-मुसलमानों का पवित्र तीर्थ स्थान
- कासी-हिंदुओं का पवित्र तीर्थ स्थल
भावार्थ :
प्रतीक
- मोट चून(मोटा आटा) -धार्मिक संकीर्णता और धर्मांधता
- मैदा - सद्भावना ,सद्बुद्धि
कबीरदास जी कहते हैं कि मैं जब राम-रहीम, हिंदू-मुसलमान के भेद से ऊपर उठ गया तो मेरे लिए काशी तथा काबा में कोई अंतर नहीं रह गया. मन के मैल के कारण जिस मोटे आटे को अखाद्य समझ रहा था, अब वही बारीक मैदा हो गया, जिसे मैं आराम से खा रहा हूँ अर्थात् मन से सांप्रदायिकता तथा भेदभाव की दुर्भावना समाप्त हो गई है .
जैसे ही मन से अपने धर्म को श्रेष्ठ समझने की भावना गई वैसे ही सभी ईश्वर और तीर्थ स्थल एकसमान हो गए. अब हर जगह ईश्वर प्राप्ति की सुलभता के कारण मैं प्रेम पूर्वक जीवन यापन करते हुए ईश्वर प्राप्ति में तल्लीन हूँ .
विशेष :
'बैठि कबीरा जीम' में दृश्य बिम्ब उपस्थित है
सर्वधर्म समभाव का संदेश दृष्टिगोचर है
ऊँचे कुल का जनमिया, जे करनी ऊँच न होइ
सुबरन कलस सुरा भरा, साधू निंदा सोइ
kabir ki sakhiyan class 9 word meaning
शब्दार्थ :
भावार्थ :
प्रतीक
- सुबरन कलस - अच्छा कुल ,पवित्र
- सुरा - बुरे कर्म , निंदनीय
कर्मों के महत्त्व को बताते हुए कबीरदास जी कहते हैं कि ऊँचे कुल में जन्म लेने मात्र से कोई व्यक्ति बड़ा नहीं बन जाता है. इसके लिए अच्छे कर्म करने पड़ते हैं. इसी का उदाहरण देते हुए कबीर कहते हैं कि सोने के पात्र में शराब भरी हो तो भी सज्जन उसकी निंदा ही करते हैं.
शराब निंदनीय पदार्थ है और सोने का पात्र पवित्र समझा जाता है लेकिन सोने के पात्र में यदि शराब भरी हो तो सोने का पात्र भी निंदनीय या अपवित्र माना जाता है. जिस व्यक्ति के कर्म अच्छे नहीं होते हैं वह ऊँचे कुल में जन्म लेकर भी उसका नाश कर डालता है केवल ऊँचे कुल में जन्म लेने से व्यक्ति महान नहीं बन जाता है.
विशेष :
सुबरन कलस सुरा भरा, साधू निंदा सोइ - अनुप्रास अलंकार
कर्म की प्रधानता पर बल दिया गया है
'सवैये ' पाठ की अध्ययन सामग्री पढ़ने के लिए क्लिक करें
Q&A
प्रश्न 1 : संकलित साखियों और पदों के आधार पर कबीर के धार्मिक और सांप्रदायिक सद्भाव संबंधी विचारों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर: प्रस्तुत दोहों में कबीरदास जी ने धार्मिक एकता तथा साम्प्रदायिक सद्भावना के विचार को व्यक्त किया है। उन्होंने हिंदु-मुस्लिम एकता का समर्थन किया तथा धार्मिक कुप्रथाओं जैसे – मूर्तिपूजा का विरोध किया है। ईश्वर मंदिर, मस्जिद तथा गुरुद्वारे में नहीं होते हैं बल्कि मनुष्य की आत्मा में व्याप्त हैं। कबीरदास जी का उद्देश्य समाज में एकता स्थापित कर कुप्रथाओं को नष्ट करना था। इसी संदर्भ में कबीरदास जी कहते हैं –
“जाति-पाति पूछै नही कोए।
हरि को भजै सो हरि का होए।”
प्रश्न 2 : ‘मानसरोवर’ से कवि का क्या आशय है?
उत्तर: ‘मानसरोवर’ से कवि का आशय है - 'मन रूपी पवित्र सरोवर' ( हृदय रुपी तालाब) जो हमारे मन में स्थित है. स्वच्छ जल रूपी पवित्र विचार इसी सरोवर में भरे रहते हैं . हंस रूपी जीवात्मा इसी सरोवर में मुक्ति हेतु मोतियों को चुग रही है वह कहीं और जाना नहीं चाहती.
प्रश्न 3 : कवि ने सच्चे प्रेमी की क्या कसौटी बताई है?
उत्तर: सच्चे प्रेम से कवि का तात्पर्य भक्त की ईश्वर के प्रति सच्ची भक्ति से है. एक भक्त की कसौटी उसकी भक्ति है अर्थात् ईश्वर की प्राप्ति ही भक्त की सफलता है .
एक सच्चा प्रेमी वही होता है जो अपने प्रेम से ईश्वर को प्राप्त करने का प्रयास करता है. उसे ईश्वर के अलावा किसी और सांसारिक सुख को पाने की इच्छा नहीं रह जाती है. वह लोभ, मोह, माया सब कुछ भुला देता है.
प्रश्न 4 : तीसरे दोहे में कवि ने किस प्रकार के ज्ञान को महत्व दिया है?
उत्तर: कवि ने यहाँ सहज ज्ञान को महत्व दिया है। वह ज्ञान जो सहजता से सुलभ हो हमें उसी ज्ञान की साधना करनी चाहिए. ज्ञान पाना बहुत कठिन होता है क्योंकि अक्सर लोग स्वाभाविक ज्ञान को पहचान नहीं पाते हैं.
प्रश्न 5 : इस संसार में सच्चा संत कौन कहलाता है?
उत्तर: जो भक्त निष्पक्ष भाव से ईश्वर की आराधना करता है, संसार में वही सच्चा संत कहलाता है.
मोह-माया, अपने-पराए , लोभ की भावना से दूर रहता है, सांसारिक दिखावे की भक्ति से दूर रहकर भी प्रभु की सच्ची भक्ति करता रहता है. सुख-दुख, लाभ-हानि, ऊँच-नीच, अच्छा-बुरा आदि को समान रूप से अपनाता है. पक्षपात से दूर रहता है. वह भेदभाव के बिना प्रभु भक्ति में तल्लीन रहता है.
प्रश्न 6 : अंतिम दो दोहों के माध्यम से कबीर ने किस तरह की संकीर्णताओं की ओर संकेत किया है?
उत्तर: अंतिम दो दोहों के माध्यम से कबीरदास जी ने समाज में व्याप्त धार्मिक संकीर्णताओं, समाज की जाति-पांति की असमानता की ओर संकेत किया है .
मुसलमान काबा को पाक स्थान मानते हैं और हिंदू काशी को एक पवित्र स्थल मानते हैंऔर वहाँ अपने आराध्य का वास मानते हुए राम-रहीम में अंतर करते हैं जबकि यह मनुष्य का किया गया विभाजन है.
कोई व्यक्ति ऊँचे कुल में जन्म लेने से ही महान नहीं बन जाता है. अच्छे कर्म ही उसे महान बनाते हैं. व्यक्ति की धारणा यह है कि ऊँची जाति या कुल में पैदा होने से ही वह महान बन जाता है. वास्तव में व्यक्ति के ख़राब कर्म ऊँचे कुल को भी नष्ट कर डालते हैं .
प्रश्न 7 : किसी भी व्यक्ति की पहचान उसके कुल से होती है या उसके कर्मों से? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर: व्यक्ति के व्यक्तित्व का निर्धारण उसकी जाति या धर्म से न होकर उसके कर्मों के आधार पर होता है. कबीर ने स्वर्ण कलश और सुरा (शराब) के माध्यम से अपनी बात स्पष्ट की है.
- सुबरन कलस - अच्छा कुल ,पवित्र
- सुरा - बुरे कर्म , निंदनीय
जिस प्रकार सोने के कलश में शराब भर देने से शराब (शराब) का महत्व बढ़ नहीं जाता तथा उसकी प्रकृति नहीं बदलती. उसी प्रकार श्रेष्ठ कुल में जन्म लेने मात्र से किसी भी व्यक्ति का गुण निर्धारित नहीं किया जा सकता. मनुष्य के गुणों की पहचान उनके कर्म से होती है. अपने कर्म के माध्यम से ही हम समाज मे प्रतिष्ठित होते हैं. कुल तथा जाति द्वारा प्राप्त प्रतिष्ठा अस्थाई होती है.
प्रश्न 8 : काव्य सौंदर्य स्पष्ट कीजिए –
हस्ती चढ़िए ज्ञान कौ, सहज दुलीचा डारि
स्वान रूप संसार है, भूँकन दे झख मारि
उत्तर:प्रस्तुत दोहे में कबीरदास जी ने ज्ञान को हाथी की उपमा तथा लोगों की प्रतिक्रिया को स्वान (कुत्ते) का भौंकना कहा है।
काव्य सौदंर्य –
- यहाँ रुपक अलंकार का प्रयोग किया गया है.
- दोहा छंद का प्रयोग किया गया है.
- यहाँ सधुक्कड़ी भाषा का प्रयोग किया गया है.
- इसमें ‘हस्ती’, ‘स्वान’, ‘ज्ञान’ आदि तत्सम शब्दावली प्रयुक्त है .
- यहाँ शास्त्रीय ज्ञान का विरोध किया गया है तथा सहज ज्ञान को महत्व दिया गया है.
व्याख्या - सबद
मोकों कहाँ ढूँढ़े बंदे,
मैं तो तेरे पास में |
ना मैं देवल ना मैं मसजिद,
ना काबे कैलास में |
ना तो कौने क्रिया-कर्म में,
नहीं योग बैराग में |
खोजी होय तो तुरतै मिलिहौं,
पल भर की तलास में |
कहैं कबीर सुनो भई साधो,
सब स्वाँसों की स्वाँस में ||
व्याख्या - उक्त पंक्तियाँ कवि कबीर के 'सबद' से उद्धृत हैं | कवि इन पंक्तियों के माध्यम से यह कहना चाहते हैं कि हम ईश्वर की तलाश में भटकते रहते हैं | कभी मंदिर में, कभी मस्जिद में, कभी काबा में, तो कभी कैलाश में उसे ढूँढ़ते रहते हैं | जबकि कवि के अनुसार, ईश्वर तो हमारी साँसों में विद्यमान् है | यदि सच्ची आस्था से उसे ढूँढ़ोगे तो पल भर की तलाश में ईश्वर को पा सकते हो | क्योंकि ईश्वर कण-कण में व्याप्त है |
संतौं भाई आई ग्याँन की आँधी रे |
भ्रम की टाटी सबै उड़ाँनी,
माया रहै न बाँधी ||
हिति चित्त की द्वै थूँनी गिराँनी,
मोह बलिण्डा तूटा |
त्रिस्नाँ छाँनि परि घर ऊपरि,
कुबधि का भाँडाँ फूटा ||
जोग जुगति करि संतौं बाँधी,
निरचू चुवै न पाँणी |
कूड़ कपट काया का निकस्या,
हरि की गति जब जाँणी ||
आँधी पीछै जो जल बूठा ,
प्रेम हरि जन भींनाँ |
कहै कबीर भाँन के प्रगटे,
उदित भया तम खीनाँ ||
व्याख्या - उक्त पंक्तियाँ कवि कबीर के 'सबद' से उद्धृत हैं | कवि इन पंक्तियों के माध्यम से यह कहना चाहते हैं कि ज्ञान बिल्कुल आँधी की तरह है | जिस प्रकार तेज आँधी के चलने से कच्चे छप्पर के घरों को अत्यधिक नुकसान पहुँचता है, जिस बाँस और मोटी लकड़ी पर छप्पर टिका होता है, वह भी टूट जाता है | तब उस छप्पर की दुर्बलता का भेद खुल जाता है | ठीक उसी प्रकार, घर यदि मजबूत और पक्का हो तो उसे कोई भी आंधी प्रभावित नहीं कर सकती है | जब व्यक्ति ज्ञान प्राप्ति कर लेता है, तब उसके मन के सारे भ्रम मिट जाते हैं | ज्ञान की शक्ति के आगे मोह-माया का बंधन क्षणभंगुर हो जाता है | व्यक्ति स्वार्थ रहित जीवन जीने लगता है | जैसे आंधी के बाद वर्षा से सारे सामान धुल जाते हैं, वैसे ही ज्ञान प्राप्ति के बाद मन निर्मल हो जाता है | मनुष्य ईश्वर भक्ति में लीन हो जाता है |
प्रश्न 1 :मनुष्य ईश्वर को कहाँ-कहाँ ढूँढ़ता फिरता है?
उत्तर: मनुष्य ईश्वर को देवालय (मंदिर), मस्जिद, काबा तथा कैलाश में ढूँढता फिरता है. मनुष्य ईश्वर को योग, वैराग्य तथा अनेक प्रकार की धार्मिक क्रियाओं में भी खोजता फिरता है.
प्रश्न 2 : कबीर ने ईश्वर-प्राप्ति के लिए किन प्रचलित विश्वासों का खंडन किया है?
उत्तर: कबीर ने समाज द्वारा ईश्वर-प्राप्ति के लिए किए गए प्रयत्नों का खंडन किया है। वे इस प्रकार हैं –
- कबीरदास जी के अनुसार ईश्वर की प्राप्ति मंदिर या मस्जिद में जाकर नहीं होती.
- ईश्वर प्राप्ति के लिए कठिन साधना की आवश्यकता नहीं है.
- कबीर ने मूर्ति-पूजा जैसे बाह्य-आडम्बर का खंडन किया है। कबीर ईश्वर को निराकार ब्रह्म मानते थे.
- कबीर ने ईश्वर की प्राप्ति के लिए योग-वैराग (सन्यास) जीवन का विरोध किया है.
प्रश्न 3 : कबीर ने ईश्वर को ‘सब स्वाँसों की स्वाँस में’ क्यों कहा है?
उत्तर: ‘सब स्वाँसों की स्वाँस में’ से कवि का तात्पर्य यह है कि ईश्वर कण-कण में व्याप्त हैं, सभी मनुष्यों के अंदर हैं। जब तक मनुष्य की साँस (जीवन) है तब तक ईश्वर उनकी आत्मा में हैं।
प्रश्न 4 : कबीर ने ज्ञान के आगमन की तुलना सामान्य हवा से न कर आँधी से क्यों की?
उत्तर: कबीर ने ज्ञान के आगमन की तुलना सामान्य हवा से न कर आँधी से की है क्योंकि सामान्य हवा में स्थिति परिवर्तन की क्षमता नहीं होती है। परन्तु हवा तीव्र गति से आँधी के रुप में जब चलती है तो स्थिति बदल जाती है। आँधी में वो क्षमता होती है कि वो सब कुछ उड़ा सके। ज्ञान में भी प्रबल शाक्ति होती है जिससे वह मनुष्य के अंदर व्याप्त अज्ञानता के अंधकार को दूर कर देती है।
प्रश्न 5 : ज्ञान की आँधी का भक्त के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर: ज्ञान की प्राप्ति से भक्त के अंदर ईश्वर के प्रति सच्ची भक्ति का उदय होता है तथा ज्ञान के प्रकाश से जीवन अज्ञानता रुपी अंधकार से मुक्त होकर प्रकाशमय हो जाता है, मनुष्य मोह-माया से मुक्त हो जाता है।
प्रश्न 6 : भाव स्पष्ट कीजिए –
(क) हिति चिन की द्वै थूँनी गिराँनी, मोह बलिंडा तूटा।
(ख) आँधी पीछै जो जल बूठा, प्रेम हरि जन भींनाँ।
उत्तर:
(क) ज्ञान की आँधी ने स्वार्थ तथा मोह दोनों स्तम्भों को गिरा कर समाप्त कर दिया तथा मोह रुपी छत को उड़ाकर चित्त को निर्मल कर दिया।
(ख) ज्ञान की आँधी के पश्चात् जो जल बरसा उस जल से मन हरि अर्थात् ईश्वर की भक्ति में भीग गया।
प्रश्न 7 : निम्नलिखित शब्दों के तत्सम रूप लिखिए –
पखापखी, अनत, जोग, जुगति, बैराग, निरपख
उत्तर:
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5 Comments
बहुत ही अच्छा कार्य सर
ReplyDeleteधन्यवाद महाशय
Deleteबहुत अच्छे उत्तर
ReplyDeleteधन्यवाद नेहा
DeletePlease send extra questions with answers
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