laghu katha lekhan class 9 | laghu katha lekhan format | लघु कथा लेखन कक्षा 10
laghu katha lekhan class 10
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लघुकथा शब्द का निर्माण लघु और कथा से मिलकर हुआ है. लघुकथा गद्य की एक ऐसी विधा है जो आकार में "लघु" है और उसमे "कथा" तत्व विद्यमान है.
अर्थात लघुता ही इसकी मुख्य पहचान है।
- जिस प्रकार उपन्यास खुली आँखों से देखी गई घटनाओं का, परिस्थितियों का संग्रह होता है.
- उसी प्रकार कहानी दूरबीनी दृष्टि से देखी गयी किसी घटना या कई घटनाओं का वर्णन होती है.
- इसके विपरीत लघुकथा के लिए माइक्रोस्कोपिक दृष्टि की आवश्यकता पड़ती है. इस क्रम में किसी घटना या किसी परिस्थिति के एक विशेष और महीन से विलक्षण पल को शिल्प तथा कथ्य के लेंसों से कई गुना बड़ा कर के उभार दिया जाता है।
लघुकथा लेखन कक्षा 10 उदाहरण
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लघुकथा का उदाहरण
एक आदमी रेगिस्तान से गुजरते वक़्त बुदबुदा रहा था, “कितनी बेकार जगह है ये, बिलकुल भी हरियाली नहीं है…और हो भी कैसे सकती है ? यहाँ तो पानी का नामो-निशान भी नहीं है.”तपती रेत में वो जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा था उसका गुस्सा भी बढ़ता जा रहा था. अंत में वो आसमान की तरफ देख झल्लाते हुए बोला-
क्या भगवान आप यहाँ पानी क्यों नहीं देते? अगर यहाँ पानी होता तो कोई भी यहाँ पेड़-पौधे उगा सकता था, और तब ये जगह भी कितनी खूबसूरत बन जाती!
ऐसा बोल कर वह आसमान की तरफ ही देखता रहा…मानो वो भगवान के उत्तर की प्रतीक्षा कर रहा हो! तभी एक चमत्कार होता है, नज़र झुकाते ही उसे सामने एक कुआँ नज़र आता है |
वह उस इलाके में बरसों से आ-जा रहा था पर आज तक उसे वहाँ कोई कुआँ नहीं दिखा था… वह आश्चर्य में पड़ गया और दौड़ कर कुएँ के पास गया… कुआँ लबा-लब पानी से भरा था.
उसने एक बार फिर आसमान की तरफ देखा और पानी के लिए धन्यवाद करने के बदले बोला, “पानी तो ठीक है लेकिन इसे निकालने के लिए कोई उपाय भी तो होना चाहिए.”उसका ऐसा कहना था कि उसे कुएँ के बगल में पड़ी रस्सी और बाल्टी दिख गयी.एक बार फिर उसे अपनी आँखों पर यकीन नहीं हुआ!
वह कुछ घबराहट के साथ आसमान की ओर देख कर बोला, “लेकिन मैं ये पानी ढोकर (लादकर) कैसे ले जाऊँगा ? तभी उसे महसूस होता है कि कोई उसे पीछे से छू रहा है, पलट कर देखा तो एक ऊँट उसके पीछे खड़ा था!
अब वह आदमी एकदम घबड़ा जाता है, उसे लगता है कि कहीं वो रेगिस्तान में हरियाली लाने के काम में न फँस जाए और इस बार वो आसमान की तरफ देखे बिना तेज क़दमों से आगे बढ़ने लगता है.अभी उसने दो-चार कदम ही बढ़ाया था कि उड़ता हुआ काग़ज का एक टुकड़ा उससे आकर चिपक जाता है.
उस टुकड़े पर लिखा होता है – मैंने तुम्हे पानी दिया, बाल्टी और रस्सी दी…पानी ढोने का साधन भी दिया, अब तुम्हारे पास वो हर एक चीज है जो तुम्हे रेगिस्तान को हरा-भरा बनाने के लिए चाहिए; अब सब कुछ तुम्हारे हाथ में है!
आदमी एक क्षण के लिए ठहरा… पर अगले ही पल वह आगे बढ़ गया और बढ़ता गया ..... और रेगिस्तान कभी भी हरा-भरा नहीं बन पाया.
शीर्षक
सब कुछ तुम्हारे हाथ में है!
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लघुकथा लेखन कक्षा 9 उदाहरण
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लघु कथा लेखन example
दूसरे ने कहा:- नहीं, मैंने तो नहीं पहचाना।
पहला यात्री बोला:- महोदय, मैं एक नामी ठग हूँ, परन्तु आप तो महाठग हैं। आप मेरे भी गुरू निकले ।
दूसरा यात्री बोला:- कैसे ?
पहला यात्री- कुछ पाने की आशा में, मैंने निरंतर सात दिन तक आपकी तलाशी ली, मुझे कुछ भी नहीं मिला । इतनी बड़ी यात्रा पर निकले हैं तो क्या आपके पास कुछ भी नहीं है ? बिल्कुल खाली हाथ हैं ।
दूसरा यात्री:- मेरे पास एक बहुमूल्य हीरा है और थोड़ी-सी रजत मुद्राएँ भी हैं ।
पहला यात्री बोला:- तो फिर इतने प्रयत्न के बावजूद वह मुझे मिले क्यों नहीं ?
दूसरा यात्री- मैं जब भी बाहर जाता, वह हीरा और मुद्राएं तुम्हारी पोटली में रख देता था और तुम सात दिन तक मेरी झोली टटोलते रहे। अपनी पोटली सँभालने की जरूरत ही नहीं समझी । तो फिर तुम्हें कुछ मिलता कहाँ से ?
शीर्षक
"अपनी गठरी ही टटोलें।"
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किसी बहुत बड़े घटनाक्रम में से किसी विशेष क्षण को चुनकर उसे हाईलाइट करने का नाम ही लघुकथा है।
इसे और आसानी से समझने के लिए शादी के एल्बम का उदाहरण लेना समीचीन होगा।
शादी के एल्बम में उपन्यास की तरह ही कई अध्याय होते है; तिलक का, मेहँदी का, हल्दी का, शगुन, बरात का, फेरे-विदाई एवं रिसेप्शन आदि का. ये सभी अध्याय स्वयं में अलग-अलग कहानियों की तरह स्वतंत्र इकाइयाँ होते हैं लेकिन इसी एल्बम के किसी अध्याय में कई लघुकथाएँ विद्यमान हो सकती हैं.
कई क्षण ऐसे हो सकते हैं जो लघुकथा की मूल भावना के अनुसार होते हैं.
उदहारण के तौर पर खाना खाते हुए किसी व्यक्ति का हास्यास्पद चेहरा,
किसी धीर-गंभीर समझे जाने वाले व्यक्ति के ठुमके,
किसी नन्हे बच्चे की सुन्दर पोशाक,
किसी की निश्छल हँसी,
किसी की उदास भाव-भंगिमा या विदाई के समय दूल्हा पक्ष के किसी व्यक्ति के आँसू.
यही वे क्षण हैं जो लघुकथा हैं.
लघुकथा उड़ती हुई तितली के परों के रंग देख-गिन लेने की कला का नाम है. स्थूल में सूक्ष्म ढूँढ लेने की कला ही लघुकथा है. भीड़ के शोर-शराबे में भी किसी नन्हें बच्चे की खनखनाती हुई हँसी को साफ़ साफ़ सुन लेना लघुकथा है. भूसे के ढेर में से सुई ढूँढ लेने की कला का नाम लघुकथा है।
लघुकथा विसंगतियों की कोख से उत्पन्न होती है. हर घटना या हर समाचार लघुकथा का रूप धारण नही कर सकता. किसी विशेष परिस्थिति या घटना को जब लेखक अपनी रचनाशीलता और कल्पना का पुट देकर कलमबंद करता है तब एक लघुकथा का खाका तैयार होता है।
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लघुकथा एक बेहद नाज़ुक सी विधा है. एक भी अतिरिक्त वाक्य या शब्द इसकी सुंदरता पर कुठाराघात कर सकता है .उसी तरह ही किसी एक किन्तु अत्यंत महत्वपूर्ण शब्द की कमी इसे विकलांग भी बना सकती है. अत: लघुकथा में केवल वही कहा जाता है, जितने की आवश्यक होती है।
दरअसल लघुकथा किसी बहुत बड़े परिदृश्य में से एक विशेष क्षण को चुरा लेने का नाम है. लघुकथा को अक्सर एक आसान विधा मान लेने की गलती कर ली जाती है, जबकि वास्तविकता बिलकुल इसके विपरीत है.
लघुकथा लिखना गद्य साहित्य की किसी भी विधा में लिखने से थोड़ा मुश्किल ही होता है क्योंकि रचनाकार के पास बहुत ज़्यादा शब्द खर्च करने की स्वतंत्रता बिलकुल नहीं होती. शब्द कम होते हैं, लेकिन बात भी पूरी कहनी होती है और सन्देश भी शीशे की तरह साफ़ देना होता है इसलिए एक लघुकथाकार को बेहद सावधान और सजग रहना पड़ता है।
लघुकथाकार अपने आस-पास घटित चीज़ों को एक माइक्रोस्कोपिक दृष्टि से देखता है. और ऐसी चीज़ उभार कर सामने ले आता है जिसे सामान्य आँखों से देखना असंभव होता है
दुर्भाग्य से आजकल लघुकथा के नाम पर समाचार, किस्सा-गोई यहाँ तक कि चुटकुले भी परोसे जा रहे हैं।
उदहारण के लिए
किसी व्यक्ति का केले के छिलके पर फिसलकर गिर जाने को, सड़क के किनारे सर्दी के कारण किसी की हुई मौत को या किसी ढाबे पर काम करने वाले बाल श्रमिक की दुर्दशा को घटना या समाचार तो कहा जा सकता है, किन्तु लघुकथा हरगिज़ नही. कथा-तत्व ही ऐसी घटनाओं को लघुकथा में परिवर्तित कर सकता है।
"जब हम कहानी की बात करते हैं तो दादी-नानी द्वारा सुनाई जाने वाली लोककथाओं का स्मरण हो आता है. लोककथा में सरल भाषा में एक कथा-तत्व रहता है जो बच्चे और बूढ़े, दोनों को बराबर बांधे रखने की क्षमता रखता है। यही कथातत्व कहानी में भी अपेक्षित है. कहानी में यदि कथा-तत्व नहीं है तो वह संस्मरण, रिपोर्ताज, निबन्ध कुछ भी हो सकता है, एक अच्छी कहानी नहीं हो सकती. कथा-तत्व कहानी का मूल है."
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लघुकथा लेखन
लघु कथा लेखन कक्षा 10
लघुकथा लेखन प्रक्रिया
लघुकथा लेखन प्रक्रिया को भवन-निर्माण शिल्प की तरह देखा जा सकता है . भवन-निर्माण में सबसे पहले किसी भूमि खंड का चुनाव किया जाता है,उसी तरह लघुकथा में भी सबसे पहले कथानक (प्लॉट) चुना जाता है. फिर उस भूमि खंड की नींवों को भरा जाता है. लघुकथा में इस नींव भरने का अर्थ है उस कथानक को अगले कदम के लिए चुस्त-दुरुस्त करना. नींव भरने के पश्चात उस भूमि खंड पर भवन का निर्माण किया जाता है. यह भवन-निर्माण लघुकथा में रचना की रूपरेखा अर्थात शैली कहलाता है. जिस प्रकार भवन का ढाँचा तैयार होने के बाद उसकी साज-सज्जा होती है, बिल्कुल उसी तरह से ही लघुकथा में काट-छील करके उसको सुंदर बनाया जाता है. समृद्ध भाषा एवं उत्कृष्ट संप्रेषण लघुकथा में इसी रूपसज्जा का हिस्सा माना जाता है. भवन पूरी तरह बन जाने के बाद अंतिम कार्य होता है, उसका नामकरण. नये घर को सुंदर और सार्थक नाम देने हेतु हम लोग ज्योतिषियों तक की सलाह लेते हैं. बिल्कुल यही महत्व लघुकथा के शीर्षक का भी है. शीर्षक, दुर्भाग्य से लेखन व्यवहार में लघुकथा का सबसे उपेक्षित पक्ष हुआ करता है. दस में से नौ शीर्षक बेहद चलताऊ और साधारण पाये जाते हैं जबकि लघुकथा मे शीर्षक इतना महत्वपूर्ण और अभिन्न अंग हुआ करता है कि बहुत बार शीर्षक ही लघुकथा की सार्थकता को अपार ऊंचाइयाँ प्रदान कर देता है. अत: शीर्षक ऐसा हो जो लघुकथा में निहित संदेश का प्रतिनिधित्व करता हो, या फिर लघुकथा ही अपने शीर्षक को पूर्णतय: सार्थक करती हो।
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लघुकथा लेखन प्रक्रिया के महत्वपूर्ण अंग
1. कथानक
जिस प्रकार भवन निर्माण हेतु सबसे पहले भू-खंड (प्लाट) का चुनाव होता है
बिलकुल वैसे ही लघुकथा लिखने के लिए कथानक या प्लाट का चयन किया जाता है।
लघुकथा लेखन में यह सब से महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जो रचनाकार के अनुभव, उसकी समझ और विश्लेषणात्मक दृष्टि पर निर्भर करती है।
संक्षेप में कहें तो सबसे पहले लघुकथाकार को यह निर्णय लेना होता है कि वास्तव में उसको "क्या कहना है।" इसका तात्पर्य है - कथानक (प्लाट) का चुनाव।
2. उद्देश्य
जैसे पहली प्रक्रिया है "क्या कहना है",
वहीँ दूसरी महत्वपूर्ण प्रक्रिया है "क्यों कहना है",
अर्थात लघुकथा कहने का उद्देश्य वास्तव में क्या है।
यह भी भवन निर्माण कला की प्रक्रिया के एक हिस्से की ही तरह है जिसमे निर्माण करने वाला भवन बनाने का उद्देश्य तय करता है।
अक्सर लघुकथा के अंत से ही उसके उद्देश्य का पता चल जाता है।
3. भाषा
अगला पड़ाव है, जो कहना है वह "कैसे कहना है", इस बात का सम्बन्ध लघुकथा की भाषा से है।
भाषा जितनी सरल और अक्लिष्ट होगी शब्दों का चुनाव जितना सटीक होगा, रचना उतनी ही प्रभावशाली बनेगी ।
भारी भरकम शब्दों एवं अस्वाभाविक बिम्बों का उपयोग रचना को उबाऊ बना सकता है।
भाषा का प्रयोग यदि पात्रानुकूल या परिस्थतिनुकूल हो तो रचना जानदार हो जाती है।
जबकि चलताऊ, खिचड़ी एवं कमज़ोर शब्दावली रचना को कुरूप बना देती है।
एक लघुकथाकार किसी भाषा-वैज्ञानिक से कम नहीं होता।
अत: उससे यह अपेक्षा की जाती है कि उसका भाषा पर पूर्ण नियंत्रण हो।
जहाँ बेहद क्लिष्ट शब्दावली रचना को बोझिल बनाती है, वहीं आम बाज़ारू भाषा रचना में हल्कापन लाती है।
भाषा में सादगी, स्पष्टता एवं सुभाषता किसी की लघुकथा में चार चाँद लगाने में सक्षम होती हैं।
4. शिल्प
लघुकथा लेखन में अगला सबसे अहम कदम है इसका शिल्प।
शिल्प चुनाव भी बिलकुल भवन निर्माण के दौरान शिल्प निर्धारण करने जैसा ही है
जिससे भवन का चेहरा-मोहरा निश्चित होता है।
शिल्प की कोई निजी प्रामाणिक परिभाषा नहीं होती है।
एक स्वतंत्र इकाई होते हुए भी वास्तव में यह बहुत सी अन्य इकाइयों पर निर्भर होती है।
अगर भवन निर्माण के हवाले से देखा जाये तो मीनाक्षी मंदिर का अपना शिल्प है, रंगनाथ मंदिर का अपना, तो संसद भवन का अपना।
इसलिए शिल्प इस बात पर निर्भर करता है कि उसे किस चीज़ के लिए उपयोग किया जा रहा है।
5. शैली
लघुकथा लेखन का एक और अति महत्वपूर्ण पहलू है इसकी शैली।
उत्कृष्ट शब्द-संयोजन एवं उत्तम भाव-सम्प्रेषण लघुकथा शैली की जान है।
मेरा मानना है कि बहुत बार सशक्त शैली कमज़ोर कथानक और ढीले शिल्प को भी ढक लिया करती है।
शैली भी लघुकथा के चेहरे-मोहरे पर ही निर्भर होती है, जिसका चुनाव बहुत सावधानी से किया जाना चाहिए।
मुख्य तौर पर लघुकथा वर्णनात्मक, वार्तालाप शैली अथवा मिश्रित शैली (जिसमे कथन के इलावा पात्रों के मध्य संवाद / वार्तालाप भी होता है) में लिखी जाती है।
यदि कथानक की आवश्यकता हो तो मोनोलॉग शैली (स्वयं से बात) में भी लघुकथा कही जा सकती है।
इसमें अक्सर लेखक के पक्षपाती हो जाने की सम्भावना होती है।
6. शीर्षक
वास्तव में शीर्षक को लघुकथा का ही हिस्सा माना जाता है।
शीर्षक का चुनाव यदि पूरी गंभीरता से किया जाये तो अक्सर शीर्षक ही पूरी कहानी बयान कर पाने में सफल हो जाता है
या फिर लघुकथा ही अपने शीर्षक को सार्थक कर दिया करती है।
जिस प्रकार किसी भवन का नामकरण बहुत सोच समझकर किया जाता है, लघुकथा का शीर्षक भी उसी प्रकार चुनना चाहिए।
सुन्दर और सारगर्भित शीर्षक भी लघुकथा की सुंदरता में चार चाँद लगा देता है।
7. अंत
लघुकथा का अंत करना एक हुनर है. लघुकथा का अंत उसके स्तर और प्रतिष्ठा स्थापित करने में एक बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. अधिकतर सफल लघुकथाएँ अपने कलात्मक अंत के कारण ही पाठकों को प्रभावित करने में सफल रहती हैं. विद्वानों के अनुसार लघुकथा का अंत ऐसा हो जैसे लगे कि-
- अचानक किसी ततैया ने डंक मार दिया हो,
- जैसे किसी फुलझड़ी ने आँखों को चकाचौंध कर दिया हो,
- जैसे किसी ने एकदम सुन्न और सन्न कर दिया हो ! एक ऐसा धमाका जिसने बैठे बिठाए को हिला कर रख दिया हो,
- जो इतने प्रश्न-चिन्ह छोड़ जाए की पाठक एक से अधिक उत्तर ढूँढने पर मजबूर हो जाए.
- जो विचारोत्तेजक हो, जो पाठक के विचारों को आंदोलित कर दे.
- जो किसी भी सूझवान व्यक्ति को मुट्ठियाँ भींचने पर विवश कर दे।
8. कहा-अनकहा
लघुकथा में जो कहा जाता है वह तो महत्वपूर्ण होता ही है,
किन्तु उससे भी महत्वपूर्ण वह होता है जो "नहीं कहा जाता".
लघुकथाकारों के लिए इस "जो नहीं कहा जाता" को समझना बहुत आवश्यक है।
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लघुकथा के प्रकार
मुख्यत: लघुकथा की तीन प्रचलित शैलियाँ हैं।
- विवरणात्मक (बिना किसी संवाद के लिखी गई लघुकथा)
- संवादात्मक (केवल संवादों में लिखी गई लघुकथा)
- मिश्रित (विवरण एवं संवाद युक्त लघुकथा)
लघुकथाकारों के लिए स्मरण रखने योग्य महत्वपूर्ण बातें :
1. केवल छोटे आकार की वजह से ही हरेक रचना लघुकथा नही होती।
आकार में लघु और कथा-तत्व से सुसज्जित रचना को ही लघुकथा कहा जाता है।
2. कहानी के संक्षिप्तिकरण का नाम लघुकथा नही है।
यह एक स्वतंत्र विधा है और इसका अपना विशिष्ट शिल्प-विधान है।
3. अनावश्यक विवरण एवं विस्तार से हर हाल में बचा जाना चाहिए।
4. पात्रों की संख्या पर नियंत्रण रखना चाहिए,
पाँच पंक्तियों की लघुकथा में यदि 6 पात्र डाल दिए गये तो पाठक उनके नामों मे ही उलझा रहेगा ।
5. शीर्षक का चुनाव सोच समझ कर करें।
या तो शीर्षक ही कहानी को परिभाषित करता हो या कहानी शीर्षक को।
मजबूरी, लाचारी, दहेज़, सोच, धोखा, अत्याचार, चोर, लुटेरे आदि चलताऊ शीर्षक रचना को बदरंग और बदरूप कर देते हैं।
शीर्षक को लघुकथा का प्रवेश द्वार माना गया है। एक कमज़ोर शीर्षक पाठक को रचना से दूर कर सकता है।
6. रचना में भाषण देने से गुरेज़ करें। जो कहना हो वह पात्रों या परिस्थितियों के माध्यम के कहना चाहिए।
जब रचनाकार स्वयं पात्र की भूमिका में आ जाता है तो उसके पक्षपाती हो जाने के अवसर बहुत ज़्यादा बढ़ जाते हैं।
7. लघुकथा को "बोध कथा" या "बच्चों के मुख से" "हितोपदेश" अथवा "प्रेरक प्रसंग" बनने या बनाने से गुरेज़ करना चाहिए।
8. एक लघुकथाकार के लिए लघुकथा, किस्सा-गोई, नारे एवं समाचार में अंतर को समझना बेहद आवश्यक है।
9. लघुकथा को प्रभावशाली बनाने के अतिरिक्त उसे दीर्घजीवी बनाने का भी प्रयत्न किया जाना चाहिए।
ताज़ा समाचार या घटना का अक्षरश: विवरण/चित्रण रचना की आयु पर कुठाराघात सिद्ध होता है।
10. लघुकथाकार को चाहिए कि वह व्यंग्य को कटाक्ष का रूप देने का प्रयास करे,
ताकि लघुकथा हास्यास्पद या चुटकुला बनने से बची रहे।
11. विषय में नवीनता लाने का प्रयास करना चाहिए।
चलताऊ विषयों से बचना चाहिए।
मसलन "कथनी-करनी में अंतर" बेहद पुराना और घिसा-पिटा एवं उबाऊ विषय हो चुका है और दुर्भाग्यवश अभी भी नए लघुकथाकारों का मनपसंद विषय है।
12. लघुकथा चूँकि एक विशेष क्षण को उजागर करने वाली एकांगी रचना होती है, अत: रचना में विभिन्न काल-खंडों अथवा अध्यायों के लिए कोई स्थान नही है।
लघुकथा में एक से अधिक घटनाओं का समावेश इस विधा के कोमल कलेवर के विपरीत है।
13. हालाकि यह सच है कि लघुकथा के अंत में कुछ न कुछ पाठक के विवेक पर छोड़ दिया जाता है,
किंतु स्मरण रखना चाहिए कि स्पष्टता लघुकथा की जान मानी जाती है।
अत: लघुकथा को पहेली बनने से भी बचाया जाना चाहिए।
14. लघुकथा में मनमर्ज़ी का अंत थोपने से बचना चाहिए।
क्योंकि लघुकथाकार जब निर्णायक की भूमिका में आ जाता है,
तब लघुकथा के बेजान और बेमानी होने के अवसर बहुत ज़्यादा बढ़ जाते हैं।
15. लघुकथा का अंत प्रभावशाली और विचारोत्तेजक होना चाहिए।
यह बात याद रखनी चाहिए कि एक सशक्त अंत लघुकथा की कई कमियों को ढक दिया करता है।
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लघु कथा लेखन example
एक गरीब किसान अपनी बेटी के साथ झोपड़ी में रहता था। उसके पास खेती करने के लिए थोड़ी सी जमीन थी। फसल बेचकर थोड़े रुपए ही मिलते थे। उन से वे दो समय का खाना भी नहीं खा पाते थे। एक दिन वह राजा के पास अपनी समस्या लेकर गया। राजा बहुत दयालु था। उसने किसान को खेती करने के लिए अपनी जमीन में से थोड़ी सी जमीन दे दी। राजा ने कहा 'यह जमीन तो हमारी ही रहेगी परन्तु इस पर उगने वाली फसल तुम्हारी होगी। किसान बहुत खुश हुआ और राजा को धन्यवाद देकर अपने गाँव लौट आया।
एक दिन वह खेत की जुताई कर रहा था। तभी उसका हल एक कठोर चीज से जा टकराया। उसने खोदकर देखा तो उसे सोने की एक ओखली मिली। किसान बहुत ईमानदार था। उसने अपनी बेटी से कहा कि हमें यह ओखली राजा को लौटा देनी चाहिए लेकिन किसान की बेटी बोली कि नहीं, पिताजी आप ऐसा न करें। आपको केवल ओखली ही मिली है, अगर राजा ने आपसे इसकी सोने की मूसली भी माँगी तो आप क्या करेंगे? इसीलिए आप इस ओखली को अपने ही पास रख लिजिए परन्तु किसान को अपनी बेटी की यह बात अच्छी नहीं लगी।
वह राजा के पास ओखली लेकर जा पहुँचा। दरबार में वैसा ही हुआ, जैसा कि उसकी बेटी ने कहा था। राजा ने सोचा कि किसान ने लालच में आकर मूसल अपने पास रख ली है। बेचारा किसान, राजा को सोने की मूसल कहाँ से लाकर देता।
नतीजा यह हुआ कि किसान को जेल में डाल दिया गया। भोले किसान को ऐसी गलती की सजा मिली थी जो उस ने की ही नहीं थी। लेटे-लेटे वह दिन रात रोता रहता और यही कहता था कि काश मैंने अपनी बेटी की बात मान ली होती।
एक दिन राजा ने उसे यह कहते हुए सुन लिया। फिर उन्होंने किसान से पूछा कि आखिर वह ऐसा क्यों कह रहा है। किसान ने राजा को पूरी बात बताई। यह सुनकर राजा को अपनी गलती का अहसास हुआ और किसान को फौरन छोड़ दिया गया।
उसकी बेटी को राजा ने अपने दरबार में बुलाया। उससे बातें करने के बाद राजा को पता चल गया कि वह बहुत ही बुद्धिमान है। राजा ने उस को राज्य के खजाने का मंत्री बना दिया, उन्हें रहने के लिए घर और सारी सुख-सुविधाएँ भी दीं। इसके बाद से किसान और उसकी बेटी हमेशा सुख से रहे। अंत में जीत सच्चाई की ही हुई।
शीर्षक
'किसान की समझदार बेटी'
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