laghu katha ke udaharan | लघु कथा के उदाहरण | सुन्दर लघुकथाएँ

laghu katha ke udaharan | लघु कथा के उदाहरण | सुन्दर लघुकथाएँ


1.

कबूतर की उड़ान


एक छोटा सा कबूतर अपनी मां के साथ रहता था। वह बहुत खुश था क्योंकि उसकी मां हमेशा उसके पास थी और उसे सुरक्षित रखती थी।


एक दिन, कबूतर ने सोचा, "मैं अपनी आज़ादी से उड़ान भरना चाहता हूँ। मेरे पास पंख हैं, फिर मैं क्यों नहीं उड़ सकता?"

कबूतर ने बहुत प्रयास किए पर वह उड़ नहीं पाया। उसने देखा कि उसके पास वैसे भी उड़ान भरने के लिए पर्याप्त जगह नहीं है। यह उसकी स्वतंत्ता को सीमित कर रहा था।

कबूतर ने माँ से कहा, "मां, मुझे आज़ादी चाहिए, मुझे ऊँचा उड़ान भरने का अधिकार होना चाहिए।"

मां ने कहा, "मेरे प्यारेबच्चे , तुम्हें आज़ादी के लिए ऊँचा उड़ने की जगह नहीं है, लेकिन तुम चिंता न करो। आज़ादी कभी बड़े परिवर्तनों में ही नहीं होती है, वह आपके अंदर की अनंत शक्ति में होती है। जब तुम इस दुनिया के लिए उपयोगी हो जाओगे, तब तुम्हारी आज़ादी खुद बढ़ जाएगी।"

उस दिन से, कबूतर ने सीखा कि सच्ची आज़ादी केवल अपने अंदर की सामरिक उड़ान में होती है। वह जीवन को अपनी अपूर्वता के साथ आनंदपूर्वक जीता और अपने उद्देश्यों की ओर आगे बढ़ता रहा।


इस छोटी सी कथा से हमें यह समझ मिलती है कि सच्ची स्वतंत्रता हमारे अंदर की सोच और आत्मविश्वास में होती है। जब हम अपनी क्षमताओं को समझते हैं और सक्रियता से उन्हें उपयोग करते हैं, तब हम सच्ची स्वतंत्रता का आनंद ले सकते हैं।



2.

 एकदम फर्स्टक्लास !

लघुकथा - ज्योति व्यास


एकदम फर्स्टक्लास! 


हेलो डिअर, कैसी हो ?

मैंने अपनी प्रिय सहेली वृंदा से फ़ोन पर नए साल की बधाई देते हुए पूछा ।

एकदम फर्स्टक्लास! उसने तपाक से जवाब दिया ।

सुनकर मन खुश हो गया ।

वर्मा साहब कैसे हैं? मैंने अगला प्रश्न उछाल दिया ।

हाँ , ठीक हैं। अब उनकी हालत स्थिर है। बहुत सुधार तो नहीं लेकिन कहा जा सकता है अभी बहुत ठीक है।

बेटा आया हुआ है न्यू जर्सी से- उसने मुझे हुलस कर बताया । अरे वाह! उसका ब्याह सेट हुआ क्या ? मैंने जानना चाहा । बदले में उसने मुझे कई सारे आये हुए रिश्तों के बारे में बताते हुए कहा , बस एक फाइनल करनी है इन सभी में से। अभी तो उसने वीसा बनवा ने की जिद पकड़ रखी है।

अरे! क्यों बहना ? वर्मा साहब का भी तो !

नहीं ! बेटा कहता है "उनका स्वभाव मुझे बिल्कुल पसंद नहीं । मैं नहीं ले जा सकता उन्हें। "

ओह! फिर तुम क्या करोगी ? मैंने चिंतित होते हुए पूछा । अब मुझे तो उसकी बात भी माननी ही होगी न! मेरा बेटा है वो । बहुत नाज़ों से पाला है मैंने उसे।

लेकिन फिर वर्मा साहब! मेरे मन की बात मैंने अपने मुँह में ही दबा डाली ।

मुझे मालूम है, तुम क्या सोच रही हो । उसने मेरी मनोदशा समझते हुए कहा ।

अरे, तुम चिंता मत करो । बिटिया है न!

सारी समस्याओं का हल मिलेगा । चल रखती हूँ। मैंने कहा ।

बाई! उसने विदा ली और फ़ोन कट गया ।

मैं सोच रही थी , "ओ स्त्री ! तुम किस मिट्टी की बनी हो ।

पति और उसका बिगड़ता स्वास्थ्य! युवा बेटा और उसकी खुशियाँ ! सब सहेजना हैं तुम्हें। फिर भी कहती हो , एकदम फर्स्ट क्लास!

तुम अकेली ही काफी हो घर को स्वर्ग बनाने के लिए।"





3.

 दोस्ती 

लघुकथा - रत्नपाणि


दोस्ती

छः-सात साल का रहा होगा जब एक किराए के कमरे में अपने माता - पिता के साथ रहने गाँव से आया था । नाम था चिन्मय जिसे घर में सब चीनू बुलाते थे। पहली बार शहर आया था अतः शहरी तौर-तरीके नहीं जानता था । आस-पास के बच्चे गाँव का गंवार कहकर उसका मजाक उड़ा ते थे। पहली बार था जब किसी ने उससे अच्छे से बात भी की और अपने साथ खेल में भी शामिल किया । ये थी अंशिका जिसे प्यार से सभी अंशु बुलाते थे। उम्र में चीनू से दो साल बड़ी । जल्दी ही दोनों में गहरी मित्रता हो गई। अंशु चीनू की पढ़ाई में मदद करती और चीनू अपने दादा जी से सुनी वीरों और राजाओं की कहानियाँ अंशु को सुनाता जो अंशु को बहुत अच्छी लगती थी । गर्मियों की छुट्टी में जब वह गाँव गया तो वहाँ से आते समय अंशु के लिए आम और जामुन के साथ जंगली बेर और खट्टी -मीठी इमली भी लाया । अंशु ने पहली बार बेरी और इमली चखी जो उसे बहुत पसंद आई । चीनू अब प्रत्येक छुट्टी में अंशु के लिए कुछ न कुछ जरूर लाता । इसी तरह तीन साल बीत गए।
अंशु का दाखिला महानगर के बहुत बड़े विद्यालय में करा दिया गया और अब उसे छात्रावास में रहना था । जिस दिन चीनू गर्मी की छुट्टियां बिता कर गाँव से लौटा उसी दिन अंशु को जाना था । इस बार चीनू खट्टी मीठी बेरी लिए अंशु से मिलने गया । देख तो मैं तेरे लिए क्या लाया हूँ? कहते हुए चीनू ने दोनों हाथ आगे किये। मीठी बेरी लेते हुए अंशु की आँखों में आँसू आ गए। "अरे दो ही तो अपने लिए रखे थे, मुझे भी
पसंद हैं ना इसलिए। पर कोई बात नहीं तू ये भी ले ले मगर रो मत”, चीनू ने भोलेपन से कहा । अंशु चीनू के गले लग कर रो पड़ी । ऐसी निश्छल मित्रता देख सबकी आँखें नम हो आईं।





4.

मैं हूँ ना


लघुकथा - भगवती सक्सेना गौड़


 मैं हूँ ना 


इंजीनियर बेटे को लेकर अपने छोटे से कस्बे में ही राजीव पत्नी सहित, लड़की देखने आए हैं। लड़का दिल्ली में 'एमएनसी' में कार्यरत है। लड़की ने भी इसी साल इंजीनियरिंग पास की है। सुंदर सी ,प्यारी सी लड़की राइमा को देखकर ही लड़के की नजर उस पर से हटने को तैयार नहीं थी । माँ , पापा भी खुश लग रहे थे। राइमा की मम्मी एक के बाद एक ‘पकवान’ बना कर सबको परोस रहीं थीं । खाने-पीने के बाद लड़के के पापा ने घर देखने की गुजारिश की । छत पर जा कर राइमा के पापा से बोले-

"देखिए मेरा एक ही बेटा है, मैं चाहता हूँ, एक शानदार शादी हो , आपसे मेरी कोई ‘डिमांड’ नही है, पर आप फाइव स्टार होटल मेंं शादी करें।"

"देखिए, भाई साहब ये तो हो ही नही सकता , अभी पिछले सा ल मैं रिटायर हुआ हूँ, सारा पैसा बच्चों की पढ़ाई में लगा चुका हूँ।"

अब नीचे आकर राजीव ने अपने बेटे से कहा , "चलो , बेटा , घर पहुँच कर सोचकर जवाब देंगे।"

"क्यों पापा , मुझे राइमा पसंद है और मैं अब इस शहर में ज्यादा नहीं रुकना चाहता , जल्दी सब तय करिए।"

राइमा के पापा बोले," बेटा , तुम्हारेे पापा की ख्वाहिशें शायद हम पूर्ण नही कर पाएँ इसलिए ये शादी नहीं होगी ।"

आश्चर्यचकित हो कर बेटा ने कहा , "अंकल, आप चिंता न करें , पापा की हर ख्वाहिश पूरी करने के लिए मैं हूँ ना  …"
और शादी तय हो गयी ।



5.

 सहयात्री 


लघुकथा - डॉ . कनकपाणि



सहयात्री

लम्बी दूरी का सफर और यात्रियों से बस खचा खच भरी हुई थी । उस भीड़ के बीच खड़ी सुलभा बड़ी आशा भरी नजरों से सीट पर बैठे सहयात्रियों की ओर देखते हुए सोच रही थी - काश! कोई मेरी समस्या समझकर मेरे बैठने के लिए अपनी सीट खाली कर दे या फिर मुन्नी को अपनी गोद मेंं बिठा ले। तभी एक महिला सहयात्री ने धीरे से उसका दुपट्टा खींचकर कहा - मैम, यदि आप चाहें तो बिटिया को मैं अपनी गोद मेंं बिठा लूँ, दो स्टॉप बाद मुझे बस से उतरना है, फिर आप मेरी सीट पर बैठ जाना ? 

सुलभा एकदम से बोल पड़ी - नहीं , नहीं ! मुन्नी मेरे ही गोद मेंं ठीक है। वह महिला थोड़ा सा मुस्कुराई और सीट खाली करते हुए बोली - आप आराम से बिटिया को लेकर बैठ जाओ, मैं आपकी भावनाएँ समझ सकती हूँ। महीने के ये चार दिन वाकई बड़ी मुश्किल भरे होते हैं। सुलभा आश्चर्य से उसकी ओर देखते हुए हुए बोली - लेकिन आपको कैसे पता कि मैं....? उसने हाथ थामकर उसे सीट पर बिठाते हुए कहा स्त्री हूँ और माँ भी , इसलिए सब पता है। सुलभा की आँखें छलछला गईं, इस स्वार्थ से भरी दुनिया मेंं ऐसी भी स्त्रियां हैं जो किसी अनजान स्त्री का भी दर्द जान लेती हैं और निःस्वार्थ भाव से मदद का हाथ भी बढा देती हैं। उसके पास उस सहयात्री को शुक्रिया कहने के लिए शब्द नहीं थे, बस कृतज्ञता पूर्वक दोनों हाथ जुड़ गए थे। उस महिला सहयात्री का गंतव्य स्थान आ गया था , बस के रुकते ही वह भीड़ को चीरती हुई बस से उतर गई। सुलभा बस की खिड़की से उसे दूर तक जाते हुए देखती रही । सहयात्री स्मृतियों में हमेशा रहेगा.




                                         6. 


 असंभव भी संभव 


दो छोटे लड़के घर से कुछ दूर खेल रहे थे। खेलने में वे इतने मस्त थे कि उन्हें पता ही नहीं चला कि वे भागते-भागते कब एक सुनसान जगह पहुँच गए। उस जगह पर एक पुराना कुआं था और उनमें से एक लड़का गलती से उस कुएं में जा गिरा।

“बचाओ-बचाओ” वो चीखने लगा।

दूसरा लड़का एकदम से डर गया और मदद के लिए चिल्लाने लगा, पर उस सुनसान जगह कहाँ कोई मदद को आने वाला था! फिर लड़के ने देखा कि कुएं के करीब ही एक पुरानी बाल्टी और रस्सी पड़ी हुई है, उसने तेजी दिखाते हुए तुरंत रस्सी का एक सिरा वहां गड़े एक पत्थर से बाँधा और दूसरा सिरा नीचे कुएं में फेंक दिया। कुएं में गिरे लड़के ने रस्सी पकड़ ली, अब वह अपनी पूरी ताकत से उसे बाहर खींचे लगा, अथक प्रयास के बाद वे उसे ऊपर तक खींच लाया और उसकी जान बचा ली।

जब गांव में जाकर उन्होंने यह बात बताई तो किसी ने भी उन पर यकीन नहीं किया। एक आदमी बोला- तुम एक बाल्टी पानी तो निकाल नहीं सकते, इस बच्चे को कैैसे बाहर खींच सकते हो; तुम झूठ बोल रहे हो। तभी एक बुजुर्ग बोला- यह सही कह रहा है क्योंकि वहां पर इसके पास कोई दूसरा रास्ता नहीं था और वहां इसे कोई यह कहने वाला नहीं था कि ‘तुम ऐसा नहीं कर सकते हो’।

शिक्षा

दोस्तों, जिंदगी में अगर सफलता चाहते हो तो उन लोगों की बात मानना छोड़ दो जो यह कहते हैं कि तुम इसे नहीं कर सकते।




7.


 रहस्यमयी पाठशाला 


एक छोटे से गाँव में एक रहस्यमयी पाठशाला थी। यह पाठशाला गाँव के अन्दर घने जंगल की एक छोटी सी जगह पर स्थित थी। कहीं न कहीं, गाँव वालों के बीच यह बात फैल गई थी कि इस पाठशाला में गोपनीय और चमत्कारिक अद्भुत बातें होती हैं।

एक दिन, एक उत्सुक और साहसी लड़के 'चंद्रकांत' ने इस रहस्यमयी पाठशाला के बारे में सुना। उसने अपने मन में निर्णय लिया कि वह इस पाठशाला को खोजेगा और जानेगा कि इसकी वास्तविकता क्या है।

अगले दिन, चंद्रकांत अपनी यात्रा पर निकला। वह लंबे समय तक घने जंगल में चलता रहा और अनेक मुश्किलों का सामना करना पड़ा। अंत में, उसने पाठशाला की एक छोटी सी इमारत को देखा।

चंद्रकांत उत्साहित हो गया और उसने पाठशाला के अंदर प्रवेश किया। वहां पर एक गहरे रंग का रुमाल बाँधे हुए बूढ़े गुरुजी बैठे थे। गुरुजी ने चंद्रकांत का स्वागत किया और कहा, "तू यहां क्या ढूंढ़ रहा है, चंद्रकांत?"

चंद्रकांत ने उत्साहित होकर कहा, "मुझे पता करना है कि इस पाठशाला में क्या अद्भुत चमत्कार होते हैं।"

गुरुजी ने हँसते हुए कहा, "चंद्रकांत, जीवन में रहस्य होना एक खुशनुमा अनुभव हो सकता है। लेकिन इस बात का रहस्य कभी सुलभ नहीं होगा। यह तो समय के साथ ही उजागर होगा।"

चंद्रकांत के आंखों में आश्चर्य था, लेकिन वह समझ गया कि असली रहस्य यह है कि जीवन के अनुभवों को खोजते रहना और उन्हें गहराई से समझना ही हमारी असली पाठशाला है।

चंद्रकांत उठा और घर की ओर लौटने के लिए रवाना हुआ, लेकिन उसके मन में एक अज्ञात चमक उठी थी। अंत में, हम यह कह सकते हैं कि क्या हुआ, यह रहस्य है, जो समय के साथ ही हमारे सामने उजागर होगा।




जय हिन्द : जय हिंदी 
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