lhasa ki or class 9 | Lhasa Ki Aur | ल्हासा की ओर |

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पाठ-2

ल्हासा की ओर

राहुल सांकृत्यायन









ध्वनि प्रस्तुति 





शब्दार्थ


व्यापारिक - व्यापर से सम्बंधित

चौकी - सुरक्षा के लिए बनाया गया ठिकाना

पलटन - सैनिकों का दल

बसेरा - रहने की जगह

आबाद - बसा हुआ

परित्यक्त - त्यागा हुआ , छोड़ा हुआ

निम्न श्रेणी - घटिया किस्म के

अपरिचित - अनजान

कूटकर - महीन चूर्ण बनाकर

राहदारी - यात्रा या रास्ते का कर

भद्र - सभ्य, भला

मनोवृत्ति - सोच

दुरुस्त- ठीक

छंग - शराब जैसा नशा करने वाला पेय

विकट - कठिन

निर्जन-सुनसान, एकांत

डाँड़ा - ऊँची जमीन , पर्वतीय श्रेणी

खून - हत्या

परवाह -चिंता

पड़ाव- ठहरने का स्थान

श्वेत शिखर - सफ़ेद छोटी

सर्वोच्च - सबसे ऊँचा

रास्ते फूटना - दो रास्ते शुरू हो जाना

कंडा -गोबर का बना उपला

कसूर- दोष, गलती

यजमान - ब्राम्हणों से धार्मिक कृत्य करवाने वाला व्यक्ति

सत्तू - भुने अन्न का आटा

थुक्पा - एक विशेष प्रकार का खाद्य पदार्थ

टापू - पानी में जमीं का उभरा भाग

चिरी -फाड़ी हुई

गंडा -मन्त्र फूँककर बनाया गया गाँठ वाला कपड़ा

भरिया- भारवाहक , भार उठाने वाला

ललाट - माथा, मस्तक

बरफ होना - बिलकुल ठंडा होना

बेगार - बिना कुछ दिए काम करवाना

भिक्षु - साधू-सन्यासी

खयाल -लिहाज, परवाह

हस्तलिखित - हाथ से लिखा हुआ

पोथी - ग्रन्थ, पुस्तक




पाठ का सार 



‘ल्हासा की ओर’ नामक पाठ लेखक की ‘प्रथम तिब्बत यात्रा’ से लिया गया है .उन्होंने 1929-30 में नेपाल के रास्ते यह यात्रा की थी उस समय भारतीयों को तिब्बत यात्रा की अनुमति न होने के कारण लेखक ने यह यात्रा भिखारी के छद्म वेश में की थी . इस पाठ में उन्होंने ल्हासा की ओर जाने वाले दुर्गम रास्ते का रोचक वर्णन किया है. इसमें तिब्बती समाज के बारे में अनेक जानकारियाँ मिलती हैं.



लेखक ने अपनी तिब्बत की यात्रा नेपाल- तिब्बत मार्ग से की थी क्योंकि तब फरी - कलिंगपोंग का रास्ता नहीं खुला था . इसी रास्ते से हिंदुस्तानी वस्तुएँ भी जाती थीं . यह व्यापारिक तथा सैनिक रास्ता था. इस पर जगह-जगह फौजी चौकियाँ और किले बने थे जिन में चीनी सेना रहती थी . कुछ किलों में किसानों ने अपना डेरा जमा लिया था . लेखक ऐसे ही एक परित्यक्त ( खाली छोड़ दिए गए ) किले के पास चाय पीने के लिए रुका था.


तिब्बत में यात्रियों के लिए कुछ अच्छी बातें हैं वहीँ कुछ तकलीफ भी हैं. यहाँ जाति-पाँति , छुआछूत ,पर्दा प्रथा जैसी कुप्रथा नहीं हैं . लोग अपने घरों को खुला रखते हैं .यहाँ की महिलाएँ ( बहु या उनकी सास ) यात्रियों को या अपरिचितों को भी चाय बना कर दे देतीं . यदि यात्रियों को कुछ संदेह हो तो वह अपनी चाय खुद भी बना सकते हैं . 
                                              उस परित्यक्त चीनी किले से चाय पी कर जब लेखक चलने लगा तो उसे राहदारी ( किराया ) भी चुकाना पड़ा. थोंगला के आखिरी गाँव में उसे मित्र सुमति की जान पहचान के लोग मिले. इस कारण लेखक को ठहरने की अच्छी जगह मिल गई. 5 साल बाद लेखक जब भद्र (सभ्य )यात्री के वेश में घोड़े पर सवार होकर आया था तब उसे जगह नहीं मिली और उसे एक निर्धन झोपड़ी में रात बितानी पड़ी.

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अब लेखक को सबसे विकट डाँड़ा थोंगला पार करना था .16-17 हजार फीट ऊंचाई पर स्थित यह डाँड़ा सबसे खतरनाक जगह है. इनके आस-पास कोई गाँव नहीं होता है .नदियों के मोड़ और पहाड़ों के कोनों के कारण दूर तक आदमी नहीं दिखते हैं. यहाँ किसी की हत्या हो जाए तो पुलिस या खुफिया विभाग कोई चिंता नहीं करता है . कोई हत्या का गवाह भी यहाँ नहीं मिलता है. यह डाकुओं के लिए अत्यंत सुरक्षित जगह है. डाकू आदमी को पहले मारते हैं और फिर लूट का माल खोजते हैं.



हथियार का कानून न होने के कारण लोग हथियार लेकर घूमते हैं .डाकू यदि जान से न मारे तो उन्हें अपनी जान का खतरा दूसरों से बना रहता है. लेखक और उसके साथी भिखमंगे के भेष में थे . जान का खतरा होते ही वे भीख माँगने लगते थे. पहाड़ पर सामान के साथ चलना कठिन था इसलिए लेखक ने दो घोड़े कर लिए और चलते गए. दोपहर तक वह ढाणी पर पहुंचे जो 17-18 हजार फीट ऊँचा था. यहाँ का वातावरण मनोरम था . दोनों ओर पहाड़ थे .इनमें कुछ पर बर्फ थी तथा कुछ पर न बर्फ थी न हरियाली .सबसे ऊँचे स्थान पर देवस्थान था .जिसे कपड़े तथा झंडियों से सजाया गया था .


लेखक को अब उतराई ( नीचे की ओर ) की ओर चलना था. उसके साथ उसके 1-2 साथी और चल रहे थे पर वे सब बिछड़ गए क्योंकि लेखक का घोड़ा धीरे चलने लगा था . लेखक उन सब से बहुत ही पीछे रह गया . इसी बीच वह रास्ता भटक कर कहीं और चला गया फिर वापस रास्ते पर लौट कर आया .वह 4:00 बजे के करीब लंकोर पहुंचा जहां उसका जानकार सुमति प्रतीक्षा करता मिला . वह बहुत गुस्से में था पर सारी बात जानकर उस का क्रोध शांत हो गया. लंकोर में वह अच्छी जगह रुका .यहाँ उसे खाने को सत्तू ,चाय तथा रात में गरमा गरम थुक्पा मिला.



लेखक और उसके साथी अब तिन्गरी के विशाल मैदान में थे. इसके चारों ओर पहाड़ थे जिससे यह मैदान टापू जैसा दिख रहा था. इसी मैदान में तिन्गरी-समाधि गिरि है . यहाँ भी सुमति के यजमान थे . वे यजमान के यहाँ जाना चाहते थे.लेखक के साथी बोधगया से लाए गंडे समाप्त होने पर किसी भी लाल रंग के कपड़े का गंडा बनाकर बांटना शुरू कर देते थे. लेखक ने उन्हें ऐसा करने से रोका. लेखक को भरिया ( भारवाहक ) न मिल पाने के कारण सामान लेकर स्वयं चलना पड़ रहा था. तिब्बत की कड़ी धूप में 2:00 बजे सूरज की ओर मुंह करके चलने से गर्मी लग रही थी . सुमति अपने एक यजमान से मिलना चाह रहे थे इसीलिए उन्होंने शेकर बिहार की ओर चलने के लिए कहा.



तिब्बत की जमीन जागीरदारों में बंटी है जिनका ज्यादा हिस्सा मठों के पास है . जागीरदार मजदूरों से बेगार में खेती करवाता है .खेती की देखरेख के लिए जो भिक्षु भेजे जाते हैं उनका रवैया राजा से कम नहीं होता है . शेकर की खेती के मुखिया लेखक से मिले . वहाँ एक सुंदर मंदिर था उसमें कुंजुर की हस्तलिखित 103 पोथियाँ रखी थीं . एक-एक पोथी का वजन 15-15 सेर था .सुमति अनुमति लेकर अपने यजमानों के पास चला गया . तिन्गरी गाँव वहाँ से दूर नहीं था . लेखक ने सामान उठाया और भिक्षु नम्से से विदा लेकर चल पड़ा .

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प्रश्न-अभ्यास (पाठ्य-पुस्तक से )


प्रश्न 1- थोङ्‌ला के पहले के आखिरी गाँव पहुँचने पर भिखमंगे के वेश में होने के बावजूद लेखक को ठहरने के लिए उचित स्थान मिला जबकि दूसरी यात्रा के समय भद्र वेश भी उन्हें उचित स्थान नहीं दिला सका। क्यों?

उत्तर- लेखक के मित्र सुमति की यहाँ के लोगों से जान-पहचान होने के कारण भिखमंगों के वेश में रहने के बावजूद भी उन्हें ठहरने के लिए अच्छी जगह मिली।
जबकि दूसरी यात्रा के समय जानकारी न होने के कारण भद्र यात्री के वेश में आने पर भी उन्हें रहने के लिए उचित स्थान नहीं मिला। उन्हें गाँव के एक सबसे गरीब झोंपड़े में ठहरने को स्थान मिला। ऐसा होना बहुत कुछ, लोगों की उस वक्त की मनोवृति पर भी निर्भर करता है क्योंकि शाम के वक्त छङ् पीकर बहुत कम होश-हवास को दुरुस्त रख पाते हैं।

प्रश्न 2-  उस समय के तिब्बत में हथियार का कानून न रहने के कारण यात्रियों को किस प्रकार का भय बना रहता था?

उत्तर-  तिब्बत में हथियार का कानून न रहने के कारण उस समय यात्रियों को डाकुओं से मारे जाने का खतरा था। उन्हें डाकुओं से लुटने का भय बना रहता था. वहाँ के लोग आत्मरक्षा के लिए खुलेआम हथियार लेकर घूमते थे . पुलिस का भी उचित प्रबंध नहीं था . इस कारण यात्रियों में खौफ का माहौल बना रहता था .


प्रश्न 3- लेखक लङ्‌कोर के मार्ग में अपने साथियों से किस कारण पिछड़ गया?

उत्तर - लङ्‌कोर के मार्ग में लेखक का घोड़ा थककर धीमा चलने लगा था इस कारण लेखक अपने साथियों से पीछे छूट गए . लेखक सभी से पीछे छूटकर अकेले रह गए और रास्ता भूल गए . फिर वे गलत रस्ते पर काफ़ी आगे चले गए . उन्हें पुनः सही रास्ते पर वापस आने में बहुत समय लग गया .

प्रश्न 4- लेखक ने शेकर विहार में सुमति को उनके यजमानों के पास जाने से रोका, परंतु दूसरी बार रोकने का प्रयास क्यों नहीं किया?

उत्तर - शेकर विहार में सुमति के बहुत से यजमान रहते थे जिनको वे गंडा बाँटते थे इन गंडों को बाँटने में अधिक समय लगता था इसलिए लेखक ने सुमति को यजमानों के पास जाने से रोका .
लेखक को शेकर विहार के ही एक मंदिर में वहाँ के बुद्धवचन-अनुवाद की 103 हस्तलिखित पोथियाँ मिल गईं थीं भारी-भरकम पोथियों के अध्ययन से ज्ञानार्जन के लिए समय की आवश्यकता थी .लेखक उस समय उनके अध्ययन में रम चुका था ( मग्न हो चुका था ) इसलिए उसने दूसरी बार सुमति को रोकने का प्रयास नहीं किया.

प्रश्न 5 -अपनी यात्रा के दौरान लेखक को किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा?

उत्तर-  यात्रा के दौरान लेखक को निम्नलिखित कठिनाइयों का सामना करना पड़ा –

  • उस समय भारतीयों को तिब्बत यात्रा की अनुमति नहीं थी इसलिए उन्हें भिखमंगे के रुप में यात्रा करना पड़ी.
  • चोरी के डर से भिखमंगों को वहाँ के लोग घर में घुसने नहीं देते थे इसी कारण लेखक को भी ठहरने के स्थान को लेकर कठिनाई का सामना करना पड़ा.
  • डाँड़ा थोङ्‌ला जैसी खतरनाक जगह को पार करना पड़ा.
  • लेखक लङ्कोर का रास्ता तय करते समय रास्ता भटक गए थे .
  • लेखक को ऊँचे -नीचे पहाड़ी रास्तों पर कड़ी धूप में यात्रा करनी पड़ी .
  • घोड़ा सुस्त होने के कारण लेखक अपने साथियों से बिछड़ गया था.
  • समय पर न पहुंचने के कारण लेखक को सुमति के गुस्से का सामना करना पड़ा.
  • वापस आते समय उसे अपना सामान पीठ पर लादकर यात्रा करनी पड़ी.



प्रश्न 6- प्रस्तुत यात्रा-वृत्तांत के आधार पर बताइए कि उस समय का तिब्बती समाज कैसा था?

उत्तर - 

  • उस समय तिब्बती समाज में जाति-पाँति, छुआ-छूत जैसी संकीर्ण मनोवृत्तियाँ नहीं थीं .
  • औरतों के लिए परदा प्रथा का प्रचलन भी नहीं था.
  • अपरिचित व्यक्ति को वे अपने घर में आने दे सकते थे परन्तु चोरी के भय से किसी भिखमंगे को घर में घुसने नहीं देते थे.
  • वहाँ आतिथ्य सत्कार अच्छी तरह से किया जाता था.
  • समाज में मदिरा-पान ( छंग ) का रिवाज था .
  • लोग धार्मिक प्रवृत्ति के साथ-साथ अन्धविश्वासी भी थे .

प्रश्न 7- ‘मैं अब पुस्तकों के भीतर था.’ 
नीचे दिए गए विकल्पों में से कौन सा इस वाक्य का अर्थ बतलाता है –

(क) लेखक पुस्तकें पढ़ने में रम गया।
(ख) लेखक पुस्तकों की शैल्फ़ के भीतर चला गया।
(ग) लेखक के चारों ओर पुस्तकें ही थीं।
(घ) पुस्तक में लेखक का परिचय और चित्र छपा था।

उत्तर -  (क) लेखक पुस्तकें पढ़ने में रम गया। (✓)


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रचना और अभिव्यक्ति 




प्रश्न 1 - सुमति के यजमान और अन्य परिचित लोग लगभग हर गाँव में मिले। इस आधार पर आप सुमति के व्यक्तित्व की किन विशेषताओं का चित्रण कर सकते हैं?

उत्तर -सुमति की चारित्रिक विशेषताएँ –

  • सुमति व्यवहार कुशल व्यक्ति थे.
  • उनका व्यवहार सबसे मित्रतापूर्ण था.
  • वे जहाँ भी जाते थे वहीं अपने हँसमुख स्वभाव और मिलनसार व्यक्तित्व से सबको अपना मित्र बना लेते थे.
  • अलग-अलग जगहों पर घूमना उन्हें ज़्यादा पसंद था.
  • वे एक से अधिक बार तिब्बत आ चुके थे और वहाँ के हर एक गाँव से भली-भाँति परिचित थे.
  • सुमति समय के पाबंद थे . 
  • वे आतिथ्य सत्कार में कुशल थे ( लेखक का इंतजार करते हुए उन्होंने चाय को तीन बार गर्म किया ).
  • उनकी बौद्ध धर्म में गहरी आस्था थी और वे तिब्बत का भौगोलिक ज्ञान रखते थे .


प्रश्न 2- ‘हालाँकि उस वक्त मेरा भेष ऐसा नहीं था कि उन्हें कुछ भी खयाल करना चाहिए था।’ –
उक्त कथन के अनुसार हमारे आचार-व्यवहार के तरीके वेशभूषा के आधार पर तय होते हैं। आपकी समझ से यह उचित है अथवा अनुचित, विचार व्यक्त करें।

उत्त्तर - बहुत हद तक वेश-भूषा हमारे आचार-व्यवहार से सम्बन्धित होती है. पहली बार मिलने वाला व्यक्ति हमारे व्यवहार का आकलन हमारी वेशभूषा से ही करता है. वेश-भूषा मनुष्य के व्यक्तित्व को दर्शाती है। उदाहरण के तौर पर साधु-संत को देखकर उनका सात्विक रूप हमारे सामने उभरता है। उसी प्रकार एक भिखमंगे की वेश-भूषा देखने पर उसकी आर्थिक स्थिति सामने आती है।

मेरे विचार से व्यक्ति के विचार तथा व्यवहार का तरीका उसकी वेशभूषा के आधार पर तय नहीं होना चाहिए .यह आवश्यक नहीं है कि अच्छे कपड़े पहनने वाला बहुत अच्छा इंसान ही हो .अच्छी वेशभूषा में ओछी विचारों वाले लोग भी हो सकते हैं . जिस प्रकार कीचड़ में खिलने से कमल की सुंदरता कम नहीं हो जाती उसी प्रकार उच्च विचार वाला व्यक्ति हमेशा सम्मान का पात्र होता है .



प्रश्न 3- यात्रा-वृत्तांत के आधार पर तिब्बत की भौगोलिक स्थिति का शब्द-चित्र प्रस्तुत करें. वहाँ की स्थिति आपके  राज्य/शहर से किस प्रकार भिन्न है?

उत्तर - 
तिब्बत भारत के उत्तर में स्थित एक पहाड़ी प्रदेश है जो नेपाल का पड़ोसी देश है इसकी सीमा भारत और चीन से लगती है .यहाँ पहाड़ों के मोड़ सुनसान और खतरनाक हैं जहाँ दूर-दूर तक आबादी नहीं होती है . थोङ्‌ला यहाँ का दुर्गम डाँड़ा है. तिन्गरी एक विशाल मैदानी भाग है .
इसकी सीमा हिमालय पर्वत से शुरू होती है। डाँड़े के ऊपर से समुद्र तल की गहराई लगभग 17-18 हज़ार फीट है. पूरब से पश्चिम की ओर हिमालय के हज़ारों श्वेत शिखर दिखते है.जहाँ बरफ़ पड़ती रहती है. कुछ-कुछ पहाड़ों पर न तो बरफ़ की सफ़ेदी होती है , न किसी तरह की हरियाली. उत्तर की तरफ पत्थरों का ढ़ेर देखने को मिलता है .

अपने क्षेत्र की विशेषताएँ लिखकर आप तिब्बत से तुलना कर सकते हैं .अपने क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति ,जलवायु ,वनस्पति  और दूसरे प्राकृतिक स्थलों के आधार पर यह तुलना की जा सकती है,


प्रश्न 4- आपने भी किसी स्थान की यात्रा अवश्य की होगी? यात्रा के दौरान हुए अनुभवों को लिखकर प्रस्तुत करें.

उत्तर - इस प्रश्न का उत्तर अपने अनुभवों के आधार पर दें. यात्रा का वर्णन करते समय आपको उस स्थान की भौगोलिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, धार्मिक व आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए वर्णन करना है. साथ ही आपको होने वाली कठिनाइयों एवं सुविधाओं का जिक्र भी करना है. आप उस क्षेत्र से भावनात्मक रूप से किस तरह से जुड़े और वह क्षेत्र आपको दूसरे क्षेत्रों से कैसे भिन्न लगा ? यह भी आपको बताना है.


प्रश्न 5- यात्रा-वृत्तांत गद्य साहित्य की एक विधा है। आपकी इस पाठ्यपुस्तक में कौन-कौन सी विधाएँ हैं? प्रस्तुत विधा उनसे किन मायनों में अलग है?

उत्तर - 
प्रस्तुत पाठ्यपुस्तक में “महादेवी वर्मा” द्वारा रचित “मेरे बचपन के दिन” संस्मरण है.
संस्मरण भी गद्य साहित्य की एक विधा है. इसमें लेखिका के बचपन की यादों का एक अंश प्रस्तुत किया गया है.
यात्रा वृत्तांत तथा संस्मरण दोनों ही गद्य साहित्य की विधाएँ हैं जो कि एक दूसरे से भिन्न है. यात्रा वृत्तांत किसी एक क्षेत्र की यात्रा के अपने अनुभवों पर आधारित है तथा संस्मरण जीवन के किसी व्यक्ति विशेष या किसी खास स्थान की स्मृति पर आधारित है. संस्मरण का क्षेत्र यात्रा वृत्तांत से अधिक व्यापक है.
पाठ्यपुस्तक में निम्न विधाएँ शामिल हैं -
  • दो बैलों की कथा- कहानी
  • उपभोक्तावाद की संस्कृति- निबंध
  • सांवले सपनों की याद- स्मरण
  • नाना साहब की पुत्री देवी मैना को भस्म कर दिया गया- रिपोर्ताज
  • प्रेमचंद के फटे जूते- निबंध
  • एक तोता और एक मैना- निबंध
प्रस्तुत विधा अन्य विधाओं से अलग है. इसमें लेखक ने यात्रा की समस्त वस्तुओं ,व्यक्तियों तथा घटनाओं का वर्णन किया है. इससे तिब्बत का भौगोलिक परिदृश्य हमारी आँखों के सामने सजीव हो उठता है वहाँ के भौगोलिक दृश्यों के अलावा सामाजिक रीति-रिवाजों ,सांस्कृतिक मूल्यों तथा वेशभूषा, रहन-सहन एवं भाषा आदि की जानकारी मिलती है. इस तरह यह अन्य विधाओं से अलग है.


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भाषा -अध्ययन 



प्रश्न -1 किसी भी बात को अनेक प्रकार से कहा जा सकता है, जैसे –

  • सुबह होने से पहले हम गाँव में थे
  • पौ फटने वाली थी कि हम गाँव में थे
  • तारों की छाँव रहते-रहते हम गाँव पहुँच गए
नीचे दिए गए वाक्य को अलग-अलग तरीके से लिखिए –

जान नहीं पड़ता था कि घोड़ा आगे जा रहा है या पीछे.

उत्तर - 

  • अनुमान लगाना मुश्किल था कि घोड़ा आगे था या पीछे .
  • समझ में नहीं आ रहा था कि घोड़ा मेरे आगे है या पीछे.
  • यह संदेह का विषय था  कि घोड़ा कहाँ  जा रहा है ?


प्रश्न -2  ऐसे शब्द जो किसी ‘अंचल’ यानी क्षेत्र विशेष में प्रयुक्त होते हैं ,उन्हें आंचलिक शब्द कहा जाता है, प्रस्तुत पाठ में से आंचलिक शब्द ढूँढ़कर लिखिए।

उत्तर -  आंचलिक शब्द –
  • कुची-कुची (दया-दया)
  • थुक्पा
  • छंग 
  • खोटी 
  • राहदारी 
  • कंडे 
  • भीटा 
  • भरिया 
  • गंडा 
  • डाँड़ा

प्रश्न 3-  पाठ में कागज़, अक्षर, मैदान के आगे क्रमश: मोटे, अच्छे और विशाल शब्दों का प्रयोग हुआ है. इन शब्दों से उनकी विशेषता उभर कर आती है. पाठ में से कुछ ऐसे ही और शब्द छाँटिए जो किसी की विशेषता बता रहे हों.

उत्तर - 

  • खुफ़िया विभाग
  • अच्छी तरह
  • श्वेत शिखर
  • मुख्य  मार्ग 
  • व्यापारिक कार्य 
  • फौजी चौकियां 
  • परित्यक्त किला 
  • भद्र व्यक्ति 
  • आखिरी गाँव 
  • निर्जन पहाड़ 


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Mere Sang ki Aurte class 9 | मेरे संग की औरतें |




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