अभिव्यक्ति और माध्यम
पत्रकारीय लेखन के विभिन्न रूप और लेखन प्रक्रिया
पत्रकारीय लेखन
patrakariye lekhan
समाचार माध्यमों में काम करने वाले पत्रकार अपने पाठकों तथा श्रोताओं तक सूचनाएँ पहुँचाने के लिए लेखन के विभिन्न रूपों का इस्तेमाल करते हैं, इसे ही पत्रकारीय लेखन कहते हैं। पत्रकारिता या पत्रकारीय लेखन के अंतर्गत सम्पादकीय, समाचार, आलेख, रिपोर्ट, फ़ीचर, स्तंभ तथा कार्टून आदि आते हैं।
पत्रकारीय लेखन का प्रमुख उद्देश्य
patrakariye lekhan kya hai
सूचना देना, शिक्षित करना तथा मनोरंजन करना आदि । इसके कई प्रकार हैं यथा- खोजपरक पत्रकारिता, वॉचडॉग पत्रकारिता और एडवोकेसी पत्रकारिता आदि। पत्रकारीय लेखन का संबंध समसामयिक विषयों, विचारों व घटनाओं से है। पत्रकार को लिखते समय यह ध्यान रखना चाहिए वह सामान्य जनता के लिए लिख रहा है, इसलिए उसकी भाषा सरल व रोचक होनी चाहिए। वाक्य छोटे व सहज हों। कठिन भाषा का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए | भाषा को प्रभावी बनाने के लिए अनावश्यक विशेषणों, अप्रचलित शब्दावली और दोहराव का प्रयोग नहीं होना चहिए।
पत्रकार के प्रकार
patrakar ke prakar
पत्रकार तीन प्रकार के होते हैं ।
1. पूर्ण कालिक पत्रकार : किसी समाचार पत्र या संगठन के नियमित वेतनभोगी कर्मचारी।
2. अंशकालिक पत्रकार (स्ट्रिंगर): निश्चित मानदेय पर कार्य करने वाले पत्रकार।
3. फ़्रीलांसर या स्वतंत्र पत्रकार : ये किसी संस्था से जुड़े नहीं होते। जब ये लिखते है तो इनका लेख कोई भी छाप सकता है और बदले में एक निश्चित राशि इन्हें भेज दी जाती है ।
समाचार लेखन
samachar lekhan in hindi class 12
समाचार उलटा पिरामिड शैली में लिखे जाते हैं, यह समाचार लेखन की सबसे उपयोगी और लोकप्रिय शैली है। इस शैली का विकास अमेरिका में गृहयुद्ध के दौरान हुआ। इसमें महत्त्वपूर्ण घटना का वर्णन पहले प्रस्तुत किया जाता है, उसके बाद महत्त्व की दृष्टि से घटते क्रम में घटनाओं को प्रस्तुत कर समाचार का अंत किया जाता है। समाचार में इंट्रो, बॉडी और समापन के क्रम में घटनाएँ प्रस्तुत की जाती हैं।
समाचार के छह ककार
samachar lekhan ke 6 kakar
समाचार लिखते समय मुख्य रूप से छह प्रश्नों- क्या, कौन, कहाँ, कब, क्यों और कैसे का उत्तर देने की कोशिश की जाती है। इन्हें समाचार के छह ककार कहा जाता है। प्रथम चार प्रश्नों के उत्तर इंट्रो में तथा अन्य दो के उत्तर समापन से पूर्व बॉडी वाले भाग में दिए जाते हैं ।
इंट्रो वाले प्रश्न -क्या, कौन, कहाँ, कब
एंडिंग से पहले वाले प्रश्न -क्यों और कैसे
फ़ीचर
ficher lekhan
फ़ीचर एक सुव्यवस्थित, सृजनात्मक और आत्मनिष्ठ लेखन है।
फ़ीचर लेखन का उद्देश्य: फ़ीचर का उद्देश्य मुख्य रूप से पाठकों को सूचना देना, शिक्षित करना तथा उनका मनोरंजन करना होता है।
फ़ीचर और समाचार में अंतर: समाचार में रिपोर्टर को अपने विचारों को अभिव्यक्त करने की स्वतंत्रता नहीं होती, जबकि फ़ीचर में लेखक को अपनी राय, दृष्टिकोण और भावनाओं को जाहिर करने का अवसर होता है। समाचार उल्टा पिरामिड शैली में लिखे जाते हैं, जबकि फ़ीचर लेखन की कोई सुनिश्चित शैली नहीं होती । फ़ीचर में समाचारों की तरह शब्दों की सीमा नहीं होती। आमतौर पर फ़ीचर, समाचार रिपोर्ट से बड़े होते हैं। पत्र-पत्रिकाओं में प्राय: 250 से 2000 शब्दों तक के फ़ीचर छपते हैं।
देखें -
विशेष रिपोर्ट: सामान्य समाचारों से अलग वे विशेष समाचार जो गहरी छान-बीन, विश्लेषण और व्याख्या के आधार पर प्रकाशित किये जाते हैं, विशेष रिपोर्ट कहलाते हैं ।
विशेष रिपोर्ट के प्रकार:
(1) खोजी रिपोर्ट : इसमें अनुपलब्ध तथ्यों को गहरी छान-बीन करके सार्वजनिक किया जाता है।
(2) इन्डेप्थ रिपोर्ट: सार्वजनिक रूप से प्राप्त तथ्यों की गहरी छान-बीन कर उसके महत्त्वपूर्ण पक्षों को पाठकों के
सामने लाया जाता है ।
(3) विश्लेषणात्मक रिपोर्ट : इसमें किसी घटना या समस्या का विवरण सूक्ष्मता के साथ विस्तार से दिया जाता है।
रिपोर्ट अधिक विस्तृत होने पर कई दिनों तक किस्तों में प्रकाशित की जाती है ।
(4) विवरणात्मक रिपोर्ट : इसमें किसी घटना या समस्या को विस्तार एवं बारीकी के साथ प्रस्तुत किया जाता है।
विचारपरक लेखन : समाचार-पत्रों में समाचार एवं फ़ीचर के अतिरिक्त संपादकीय, लेख, पत्र, टिप्पणी, वरिष्ठ पत्रकारों व विशेषज्ञों के स्तम्भ छपते हैं। ये सभी विचारपरक लेखन के अन्तर्गत आते हैं।
संपादकीय : संपादक द्वारा किसी प्रमुख घटना या समस्या पर लिखे गए विचारात्मक लेख को, जिसे संबंधित समाचार-पत्र की राय भी कहा जाता है, संपादकीय कहते हैं । संपादकीय किसी एक व्यक्ति का विचार या राय न होकर समग्र पत्र-समूह की राय होता है, इसलिए संपादकीय में संपादक अथवा लेखक का नाम नहीं लिखा जाता।
स्तंभ लेखन: एक प्रकार का विचारात्मक लेखन है। कुछ महत्त्वपूर्ण लेखक अपने खास वैचारिक रुझान एवं लेखन शैली के लिए जाने जाते हैं। ऐसे लेखकों की लोकप्रियता को देखकर समाचर-पत्र उन्हें अपने पत्र में नियमित स्तम्भ-लेखन की जिम्मेदारी प्रदान करते हैं। इस प्रकार किसी समाचार-पत्र में किसी ऐसे लेखक द्वारा किया गया विशिष्ट एवं नियमित लेखन जो अपनी विशिष्ट शैली एवं वैचारिक रूझान के कारण समाज में ख्याति प्राप्त हो, स्तंभ लेखन कहा जाता है ।
संपादक के नाम पत्र : समाचार पत्रों में संपादकीय पृष्ठ पर तथा पत्रिकाओं की शुरुआत में संपादक के नाम आए पत्र प्रकाशित किए जाते हैं । यह प्रत्येक समाचार-पत्र का नियमित स्तंभ होता है । इसके माध्यम से समाचार-पत्र अपने पाठकों को जनसमस्याओं तथा मुद्दों पर अपने विचार एवं राय व्यक्त करने का अवसर प्रदान करता है ।
साक्षात्कार/इंटरव्यू: किसी पत्रकार के द्वारा अपने समाचार-पत्र में प्रकाशित करने के लिए, किसी व्यक्ति विशेष से उसके विषय में अथवा किसी विषय या मुद्दे पर किया गया प्रश्नोत्तरात्मक संवाद साक्षात्कार कहलाता है ।
पत्रकारिता लेखन का संबंध समसामयिक और वास्तविक घटनाओं तथा मुद्दों से है। यह अनिवार्य रूप से तात्कालिक और पाठक की रुचियों और जरूरतों को ध्यान में रखकर किया जाता है।
सृजनात्मक लेखन में कल्पना को भी स्थान दिया जाता है। इस लेखन में लेखक पर बंधन नहीं होता, उसे काफी छूट होती है। पत्रकारिता लेखन के विकास में जिज्ञासा का मूल भाव सक्रिय होता है। अच्छे लेखन की भाषा सीधी सरल एवं प्रभावी होती है।
अच्छे लेखन के लिए ध्यान देने योग्य बात – गूढ से गूढ़ विषय की प्रस्तुति सरल सहज और रोचक हो। विषय तथ्यों द्वारा पुष्ट हो। लेख उद्देश्य पूर्ण हो।
विभिन्न माध्यमों के लिए लेखन
लेखन अभिव्यक्ति का एक माध्यम है , जिस प्रकार व्यक्ति बोलकर अपनी भावनाओं तथा विचारों को दूसरों तक पहुंचाता है। उसी प्रकार लेखन अपने विचार विनिमय का एक माध्यम है। आज लेखन का विभिन्न क्षेत्रों में प्रयोग किया जा रहा है जैसे – पत्र-पत्रिका , सिनेमा , रेडियो , समाचार , साहित्य आदि के लिए।
जनसंचार के विभिन्न माध्यम
jansanchar ke madhyam
जनमानस द्वारा प्रयोग में लाए जाने वाले जनसंचार के अनेक माध्यम है जैसे – मुद्रित (प्रिंट) , रेडियो , टेलिविजन एवं इंटरनेट।
मुद्रित अर्थात समाचार पत्र – पत्रिकाएं पढ़ने के लिए , रेडियो सुनने के लिए , टीवी देखने और सुनने के लिए तथा इंटरनेट पढ़ने , सुनने और देखने के लिए प्रयुक्त होते हैं।
अखबार पढ़ने के लिए , रेडियो सुनने के लिए और टीवी देखने के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण है।
किंतु इंटरनेट पर पढ़ने , देखने और सुनने तीनों की आवश्यकताओं की पूर्ति होती है।
जनसंचार के मुद्रित (प्रिंट) माध्यम -
जन संचार के आधुनिक माध्यमों में मुद्रित (प्रिंट) सबसे ज्यादा पुराना माध्यम है।
जिसके अंतर्गत समाचार पत्र पत्रिकाएं आती है।
मुद्रण का प्रारंभ चीन में हुआ , तत्पश्चात जर्मनी के गुटेनबर्ग में छापाखाना की खोज की।
भारत में सन 1556 में गोवा में पहला छापाखाना खुला।
इसका प्रयोग मिशनरियों ने धर्म प्रचार की पुस्तकें छापने के लिए किया था।
आज मुद्रण कंप्यूटर की सहायता से होता है।
जनसंचार मुद्रित (प्रिंट) माध्यमों की खूबियाँ
मुद्रित माध्यमों की खूबियां देखें तो हम पाएंगे कि सभी की अपनी कमियां है और विशेषताएं भी है।
लिखे हुए शब्द स्थाई होते हैं।
इन लिखे हुए शब्दों को हम एक बार ही नहीं अनेकों बार पढ़ सकते हैं।
अपनी रुचि और समझ के अनुसार उस स्तर के शब्दों से परिचित हो सकते हैं।
उसका अध्ययन चिंतन मनन किया जा सकता है।
जटिल शब्द आने पर शब्दकोश का प्रयोग भी किया जा सकता है।
इसके अतिरिक्त भी खबर को अपनी रूचि के अनुसार पहले तथा बाद में पढ़ा जा सकता है।
चाहे तो किसी भी सामग्री को लंबे समय तक सुरक्षित रखा भी जा सकता है।
जनसंचार मुद्रित (प्रिंट) माध्यमों की कमियाँ
मुद्रित माध्यम की खामियां भी है जैसे अशिक्षित लोगों के लिए अनुपयोगी।
टेलीविजन तथा रेडियो की भांति मुद्रित माध्यम तुरंत घटी घटना की जानकारी नहीं दे पाता।
समाचार पत्र निश्चित अवधि अर्थात 24 घंटे में एक बार , सप्ताहिक सप्ताह में एक बार तथा मासिक में माह में एक बार प्रकाशित किया जाता है।
किसी भी खबर या रिपोर्ट के प्रकाशन के लिए एक डेड लाइन (समय सीमा) होती है।
स्पेस (स्थान) सीमा भी होती है, जबकि रेडियो , टेलीविजन , इंटरनेट माध्यम पर ऐसा प्रतिबंध नहीं होता।
महत्व एवं जगह की उपलब्धता के अनुसार किसी भी खबर को स्थान दिया जाता है।
मुद्रित माध्यम में अशुद्धि होने पर सुधार हेतु अगले अंक की प्रतीक्षा करनी पड़ती है।
अन्य माध्यमों में तत्काल सुधार किया जा सकता है।
जनसंचार मुद्रित (प्रिंट) माध्यमों की भाषा शैली
मुद्रित माध्यम में लेखन के लिए भाषा , व्याकरण , शैली , वर्तनी , समय सीमा , आवंटित स्थान , अशुद्धि शोधन एवं तारतम्यता पर विशेष ध्यान देना जरूरी है।
लेखन तथा भाषा शैली पाठक वर्ग को ध्यान में रखकर किया जाता है।
रेडियो श्रव्य माध्यम
- रेडियो जनसंचार का श्रव्य माध्यम है.
- जिसके ध्वनि, शब्द और स्वर ही प्रमुख हैं.
- रेडियो मूलतः एक रेखीय (लीनियर) माध्यम है.
- रेडियो समाचार की संरचना समाचार पत्रों तथा टीवी की तरह उल्टा पिरामिड शैली पर आधारित होती है. जिसमें अखबार की तरह पीछे लौटकर सुनने की सुविधा नहीं होती.
- लगभग 90 फ़ीसदी समाचार या स्टोरीज इस शैली में लिखी जाती है।
समाचार-लेखन की "उलटा पिरामिड-शैली"
उलटा पिरामिड शैली में समाचार के सबसे महत्वपूर्ण तथ्य को सबसे पहले लिखा जाता है और उसके बाद घटते हुए महत्त्वक्रम में अन्य तथ्यों या सूचनाओं को लिखा या बताया जाता है। इस शैली में किसी घटना/विचार/समस्या का ब्यौरा कालानुक्रम की बजाय सबसे महत्वपूर्ण तथ्य या सूचना से शुरू होता है। तात्पर्य यह है कि इस शैली में कहानी की तरह क्लाइमेक्स अंत में नहीं, बल्कि खबर के बिलकुल शुरू में आ जाता है। उलटा पिरामिड शैली में कोई निष्कर्ष नहीं होता ।
इस शैली में समाचार को तीन भागों में बाँट दिया जाता है-
इंट्रो- समाचार के इंट्रो या लीड को हिंदी में ‘मुखड़ा’ भी कहते हैं। इसमें खबर के मूल तत्व को शुरू की दो- तीन पंक्तियों में बताया जाता है। यह खबर का सबसे अहम हिस्सा होता है।
बॉडी- इस भाग में समाचार के विस्तृत ब्यौरे को घटते हुए महत्त्वक्रम में लिखा जाता है।
समापन- इस शैली में अलग से समापन जैसी कोई चीज नहीं होती। इसमें प्रासंगिक तथ्य और सूचनाएँ दी जा सकती हैं। अगर जरुरी हो तो समय और जगह की कमी को देखते हुए आखिरी कुछ लाइनों या पैराग्राफ को काटकर हटाया भी जा सकता है|
समाचार लेखन की बुनियादी बातें
- साफ-सुथरी टाइप की हुई कॉपी, ट्रिपल स्पेस में टाइप करते हुए दोनों और हाशिए छोड़ें।
- एक पंक्ति में 12-13 शब्दों से अधिक ना हो।
- पंक्ति के अंत में विभाजित शब्द का प्रयोग ना करें
- समाचार कॉपी में जटिल एवं संक्षिप्त आकार का प्रयोग ना करें
- लंबे अंको को तथा दिनांक को शब्दों में लिखें
- निम्नलिखित , क्रमांक , अधोहस्ताक्षरी , किन्तु , लेकिन , उपर्युक्त , पूर्वक जैसे शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए
- वर्तनी पर विशेष ध्यान दें
- समाचार लेखन की भाषा को प्रभावी बनाने के लिए आम बोलचाल की भाषा का ही प्रयोग करें।
टेलीविज़न
- टेलीविजन जनसंचार का दृश्य-श्रव्य माध्यम है.
- यह रेडियो की भांति एक रेखीय माध्यम है.
- टेलीविजन में शब्दों व ध्वनियों की अपेक्षा दृश्यों का महत्व अधिक होता है.
- इसमें दृश्य शब्दों के अनुरूप उनके सहयोगी के रुप में चलते हैं.
- इसमें कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक खबर बताने की शैली का प्रयोग किया जाता है.अतः टेलीविजन में समाचार लेखन की प्रमुख शर्त दृश्य के साथ लेखन है।
टेलीविज़न खबरों के प्रमुख चरण
प्रिंट अथवा रेडियो की भांति टेलीविज़न चैनल समाचार देने का मूल आधार सूचना देना है । टेलीविज़न में यह सूचनाएँ इन चरणों से होकर गुजराती हैं ।
1. फ्लैश बैक(ब्रेकिंग न्यूज़)
2. ड्राई एंकर
3. फोन इन
4. एंकर विजुअल
5. एंकर बाइट
6. लाइव
7. एंकर पैकेज
टेलीविजन खबरों की विशेषताएँ
- देखने और सुनने की सुविधा
- जीवंत घटनाओं का प्रसारण
- प्रभावशाली खबर से परिचित होना
- समाचारों का लगातार प्रसारण देख पाना।
टेलीविजन खबरों की कमियाँ
- भाषा शैली के स्तर पर अत्यंत सावधानी
- बाइट का ध्यान रखना आवश्यक है
- कार्यक्रम का सीधा प्रसारण कभी-कभी सामाजिक उत्तेजना को जन्म दे सकता है और परिपक्व बुद्धि पर सीधा प्रभाव डालता है.
रेडियो और टेलीविज़न समाचार की भाषा
- भाषा के स्तर व गरिमा को बनाए रखते हुए सरल भाषा का प्रयोग करें।
- सभी वर्ग तथा स्तर के लोग समझ सके इसका ध्यान रखना चाहिए
- छोटे वाक्य तथा सरल और कर्णप्रिय हो
- वाक्यों में तारतम्यता हो
- जटिल शब्दों सामाजिक शब्दों एवं मुहावरों के अनावश्यक प्रयोग से बचें
- जटिल और उच्चारण में कठिन शब्द संक्षिप्त अंक आदि नहीं लिखने चाहिए जिन्हें पढ़ने में जबान लड़खड़ा जाए
इंटरनेट
विश्व में डिवाइसों को लिंक करने के लिए इंटरनेट, इंटरकनेक्टेड कम्प्यूटर नेटवर्क की वैश्विक प्रणाली है। इंटरनेट पत्रकारिता को ऑनलाइन पत्रकारिता, साइबर पत्रकारिता या वेब पत्रकारिता जैसे विभिन्न नामों से जाना जाता है। नई पीढ़ी के लिए अब यह एक आदत-सी बन गई है। आज लोग इंटरनेट के अभ्यस्त हैं उन्हें चौबीसो घंटे इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध है, उन्हें अब कागज पर छपे हुए अखबार उतने ताजे और मनभावन नहीं लगते। उन्हें हर समय खुद को अपडेट करने की लत लग गई है और आज के इस कोरोना काल में यह ना केवल सूचना प्राप्त करने बल्कि शिक्षा का भी सबसे सशक्त माध्यम बन गया है।
इंटरनेट सिर्फ़ एक टूल यानी औजार है, जिसे आप सूचना, मनोरंजन, ज्ञान और व्यक्तिगत तथा सार्वजनिक संवादों के आदान-प्रदान के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। लेकिन इंटरनेट जहाँ सूचनाओं के आदान-प्रदान का बेहतरीन औजार है, वहीं वह अश्लीलता, दुष्प्रचार और गंदगी फैलाने का भी जरिया है। इंटरनेट पर पत्रकारिता के भी दो रूप हैं।
पहला तो इंटरनेट का एक माध्यम या औजार के तौर पर इस्तेमाल, यानी खबरों के संप्रेषण के लिए इंटरनेट का उपयोग। दूसरा, रिपोर्टर अपनी खबर को एक जगह से दूसरी जगह तक ईमेल के जरिये भेजने और समाचारों के संकलन, खबरों के सत्यापन तथा पुष्टिकरण में भी इसका इस्तेमाल करता है।
इंटरनेट पर समाचार पत्र का प्रकाशन अथवा खबर का आदान-प्रदान ही वास्तव में इंटरनेट पत्रकारिता है।
इंटरनेट पर यदि हम किसी भी रूप में समाचारों लेखों चर्चा – परिचर्चा , बहसों , फीचर , झलकियों के माध्यम से अपने समय की धड़कनों को अनुभव कर दर्ज करने का कार्य करते हैं तो वही इंटरनेट पत्रकारिता है। इसी पत्रकारिता को वेब पत्रकारिता भी कहा जाता है।
इस समय विश्व स्तर पर इंटरनेट पत्रकारिता का तीसरा दौर चल रहा है , जबकि भारत में दूसरा दौर माना जाता है। भारत के लिए प्रथम दौर 1993 से प्रारंभ माना जाता है और दूसरा दौर 2003 से माना जाता है। भारत में सच्चे अर्थों में यदि कोई भी पत्रकारिता कर रहा है तो वह rediff.com , इंडिया इन्फोलाइन, तथा सीफी जैसी कुछ सीटें हैं।
रेडिफ को भारत की पहली साइट कहा जा सकता है।
वेबसाइट पर विशुद्ध पत्रकारिता करने का श्रेय तहलका डॉट कॉम को जाता है।
हिंदी में नेट पत्रकारिता वेबदुनिया के साथ प्रारंभ हुई।
इंदौर के नई दुनिया समूह से प्रारंभ हुआ यह पोर्टल हिंदी का संपूर्ण पोर्टल है। जागरण , अमर उजाला , नई दुनिया , हिंदुस्तान , भास्कर , राजस्थान पत्रिका , नवभारत टाइम्स , प्रभात खबर एवं राष्ट्रीय सहारा के वेब संस्करण प्रारंभ हुए।
प्रभासाक्षी नाम से प्रारंभ हुआ अखबार प्रिंट रूप में ना होकर केवल इंटरनेट पर उपलब्ध है।
आज पत्रकारिता के अनुसार श्रेष्ठ साइट बी.बी.सी. है. हिंदी वेब जगत में आज अनेक साहित्यिक पत्रिकाएं चल रही है। कुल मिलाकर हिंदी की वेब पत्रकारिता अभी अपने शैशव काल में ही है। सबसे बड़ी समस्या हिंदी के फॉन्ट की है अभी हमारे पास हिंदी की कोई कीबोर्ड नहीं है। जब तक हिंदी के कीबोर्ड का मानकीकरण नहीं हो जाता तब तक इस समस्या को दूर नहीं किया जा सकता।
नवीन शब्द परिचय (अभिव्यक्ति और माध्यम )
1. अपडेटिंग- वेबसाइटों पर उपलब्ध सामग्री को समय-समय पर संशोधित और परिवर्धित किया जाता है। इसे ही अपडेटिंग कहते है।
2. ऑडियंस -जनसंचार माध्यमों के साथ जुड़ा एक विशेष शब्द। यह जनसंचार माध्यमों के दर्शकों, श्रोताओं और पालकों के लिए सामूहिक रूप से इस्तेमाल होने वाला शब्द है ।
3. ऑप -एड- समाचारपत्रों में संपादकीय पृष्ठ के सामने प्रकाशित होने वाला यह पत्र जिसमें विश्लेषण ,फीचर ,स्तम्भ ,साक्षात्कार और विचारपूर्ण टिप्पणियाँ प्रकाशित की जाती है।
4. डेडलाइन- समाचार माध्यमों में किसी समाचार को प्रकाशित या प्रसारित होने के लिए पहुँचने की आखिरी समय-सीमा को डेडलाइन कहते है।
5. डेस्क- समाचार माध्यमों में डेस्क का आशय संपादन से होता है। समाचार माध्यमों में मोटे तौर पर संपादकीय कक्ष डेस्क और रिपोर्टिंग में बँटा होता है। डेस्क पर समाचारों को संपादित किया जाता उसे छपने योग्य बनाया जाता है।
6. न्यूजपेग- न्यूजपेग का अर्थ है किसी मुद्दे पर लिखे जा रहे लेख पर फीचर में उस ताजा घटना का उल्लेख जिसके कारण वह मुद्दा चर्चा में आ गया है।
7. पीत पत्रकारिता (येलो जर्नलिज्म) - इस शब्द का सबसे पहले इस्तेमाल उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध में अमेरिका में कुछ प्रमुख समाचारपत्रों के बीच पाठकों को आकर्षित करने के लिए छिड़े संघर्ष के लिए किया गया था। उस समय के प्रमुख समाचारपत्रों ने पाठकों को लुभाने के लिए झूठी अफवाहो, व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोपणे, प्रेम संबंधों.भंडाफोड़ और फिल्मी गपशप को समाचार की तरह प्रकाशित किया। उसमें सनसनी फैलाने का तत्व अहम था ।
8. पेज थ्री पत्रकारिता - पेज थ्री पत्रकारिता का तात्पर्य ऐसी पत्रकारिता से है जिसमें फैशन, अमीरों की पार्टियों महफिलो ,और जाने-माने लोगों (सेलीब्रिटी) के निजी जीवन के बारे में बताया जाता है।
9. फ्रीक्वेसी मॉड्यूलेशन (एफ.एम.)- रेडियो प्रसारण को एक विशेष तकनीक जिसमे फ्रीक्वेसी को मॉड्यूलेट किया जाता है। रेडियो का प्रसारण दो तकनीकों के परिये होता है जिसमें एक तकनीक एमप्लीच्यूड मॉड्युलेशन (ए.एम.) है और दूसरा फ्रीक्वेंसी मॉड्यूलेशन (एफ.एम.)। एफ.एम. तकनीक अपेक्षाकृत नयी है और इसकी प्रसारण की गुणवत्ता बहुत अच्छी मानी जाती है।
10. फ्रीलांस पत्रकार- फ्रोलास पत्रकार से आशय ऐसे स्वतंत्र पत्रकार से है जो किसी विशेष समाचारपत्र या पत्रिका में जुड़ा नहीं होता या उसका कर्मचारी नहीं होता। वह अपनी इच्छा से किसी समाचारपत्र को लेख या फ़ीचर प्रकाशन के लिए देता है जिसके प्रकाशन पर उसे पारिश्रमिक मिलता है।
11. बीट- समाचारपत्र या अन्य समाचार माध्यमों द्वारा अपने संवाददाता को किसी क्षेत्र या विषय यानी बीट की दैनिक रिपोर्टिंग की जिम्मेदारी। यह एक तरह के रिपोर्टर का कार्यक्षेत्र निश्चित करना है। जैसे कोई संवाददाता शिक्षा बीट कवर या इंफोटेनमेंट कहते हैं।
12 .न्यूज एजेंसी – समाचारों स्रोत होते है जैसे पी.टी.आई.- प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया , यू. एन. आई.- यूनाइटेड न्यूज इन्फॉर्मैशन ,ए. एन. आई. – एशियन न्यूज एजेंसी
13. शोर(नॉइज़)-संचार प्रकिया में आने वाली बाधाओं को शोर (नॉइज़) कहते हैं।
अभ्यास के लिए बहुविकल्पीय प्रश्न
जय हिन्द : जय हिंदी
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