fechar lekhan in hindi
फ़ीचर लेखन
प्रश्न :- निम्न में से किसी एक विषय पर फ़ीचर लेखन कीजिए-
'गुम होती चहचहाहट'
अथवा
'आतंकवाद के प्रभाव'
उत्तर:-
गुम होती चहचहाहट
आकाश को छूती इमारतें, लकालक चमकती कारें, फिसलती-सी सड़कें, बड़े-बड़े मॉल, उन मॉलों में उमड़ती भीड़....किन्तु सभी चुप-चुप हैरान-परेशान से . जाने कौन है, जो उन्हें कहता है- बोलो नहीं, हँसो नहीं . चलो तो पैरों की आवाज़ न आये, चाय की चुस्कियाँ भी लो तो ख़ामोशी पीकर . ठहाके लगाना, गप्पे मारना निषिद्ध है . कैसे भीड़ में भी अकेला होता जा रहा है आदमी . रोशनी में भी अँधेरा होता जा रहा है आदमी .
नगरीय सभ्यता में शिशु का जन्म भी मौन भाव से होता है . न कोई थाली बजती है, न बधाई . अस्पताल की लिफ्टों पर उतरते-चढ़ते सहम जाता है आदमी . हर जगह चुप्पी . थोड़ी- सी आवाज़ करता है तो नवजात शिशु ही करता है, वह भी रोने की आवाज़ . धीरे-धीरे मनुष्य ऐसे दमघोंटू वातावरण में जीता है कि उसे हँसना-मुस्कराना भुलवा-सा दिया जाता है . वह इधर-उधर की ज़रा गप्पें मार ले तो माता-पिता को लगने लगता है कि यह बिगड़ने लगा है . बेकार में समय बर्बाद कर रहा है . उसके चारों ओर धमाचौकड़ी मची रहती है- भागदौड़ लगी रहती है, जहाँ शोर तो होता है किन्तु ख़ुशी और उत्साह से भरी चहचहाहट नहीं होती . त्योहार हो या रिश्तेदारों का आना-जाना, दोनों उत्साह के अवसर होते हैं, किन्तु कैरियर के चक्कर में बच्चों को इन सबसे बेरहमी से मरहूम कर दिया जाता है . परिणामस्वरूप बच्चा चुप्पी खींच जाता है और धीरे-धीरे यह उसका स्वभाव बन जाता है . इसलिए पूरा जीवन ही गुमसुम और वीरान बन जाता है . अगर आज ये चहचहाहटें कहीं बची हैं तो फुटपाथों पर, झुग्गियों में, पक्षियों में और इन सबसे बचते हैं हम . ठीक ही कहा है कवि राधेश्याम शुक्ल जी ने-
लोग संगमरमर हुए, हृदय हुए इस्पात .बर्फ़ हुई संवेदना, ख़त्म हुई सब बात .
आतंकवाद के प्रभाव
इस युग में अतिवाद की काली छाया इतनी छा गयी है कि चारों ओर असंतोष की स्थिति पैदा हो रही है . असंतोष की यह अभिव्यक्ति अनेक माध्यमों से होती है . आतंकवाद आज राजनीतिक स्वार्थपूर्ति के लिए एक अमोघ अस्त्र बन गया है . अपनी बात मनवाने के लिए आतंक उत्पन्न करने की पद्धति एक सामान्य नियम बन चुकी है . आज यदि शक्तिशाली देश कमज़ोर देशों के प्रति उपेक्षा का व्यवहार करता है, तो उसके प्रतिकार के लिए आतंकवाद का सहारा लिया जा रहा है . उपेक्षित वर्ग भी अपना अस्तित्व प्रमाणित करने के लिए आतंकवाद का सहारा लेता है .
स्वार्थबद्ध संकुचित दृष्टि ही आतंकवाद की जननी है . कुराजनीति, क्षेत्रवाद, धर्मांधता, भौगोलिक एवं ऐतिहासिक कारण, सांस्कृतिक टकराव, भाषाई मतभेद, आर्थिक विषमता, प्रशासनिक मशीनरी की निष्क्रियता और नैतिक ह्रास अंततः आतंकवाद के पोषण एवं प्रसार में सहायक बनते हैं . भारत को जिस प्रकार के आतंकवाद से जूझना पड़ रहा है, वह भयानक और चिंतनीय है . यह चिंता इसलिए है क्योंकि उसके मूल में अलगाववादी और विघटनकारी ताकतें काम कर रही हैं, जो देशी भी हैं और विदेशी भी . स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही देश के विभिन्न भागों में विदेशी शह पाकर आतंकवादी सक्रिय हो उठे थे . इसका दुष्परिणाम यह है कि आज कश्मीर का बहुत बड़ा भाग पकिस्तान के अवैध कब्ज़े में है . आज ज़न्नत की झील का स्वच्छ जल आतंकवाद की कालिमा से गंदा होने को विवश है .
जय हिन्द : जय हिंदी
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