jhansi ki rani class 6 | पाठ 10 झाँसी की रानी

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 ध्वनि प्रस्तुति 

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jhansi ki rani shabd arth

झाँसी की रानी पाठ के शब्दार्थ



  • राजवंशों ने = राजा-महाराजाओं ने। 
  • भृकुटी = भौंहें (क्रोध में भर उठे थे)। 
  • गुमी हुई = खोई हुई। 
  • फिरंगी = अंग्रेजों ने। 
  • सन्तान = पुत्र-पुत्री। 
  • गाथाएँ = कहानियाँ । 
  • कृपाण = तलवार। 
  • वैभव = सम्पन्नता। 
  • विरुदावलि – प्रशंसा के गीत। 
  • भवानी = पार्वती जी। 
  • उदित = उदय। 
  • मुदित = प्रसन्न। 
  • उजियाली = चमक,खुशियाँ । 
  • कालगति = मृत्यु की गति । 
  • काली घटा = दु:ख के बादल। 
  • कर हाथ। 
  • विधि=विधाता। 
  • शोक= दुःख। 
  • हर्षाया = प्रसन्न हुआ। 
  • दुर्ग = किला। 
  • लावारिस = जिसका कोई उत्तराधिकारी न हो। 
  • वारिस = उत्तराधिकारी। 
  • वीरानी = परायी। 
  • घात = निशाना लगाना। 
  • विसात – ताकत। 
  • बज-निपात = बिजली टूटना। 
  • गाथा = कथा, कहानी। 
  • द्वन्द्व = दो व्यक्तियों का परस्पर युद्ध। 
  • असमान = बराबर नहीं। 
  • अजब = अनोखा। 
  • निरंतर = लगातार । 
  • तत्काल = तुरन्त, जल्दी ही। 
  • सिधार = मरकर। 
  • रजधानी = राजधानी। 
  • विजय = जीत। 
  • सम्मुख = सामने। 
  • मुँह की खाना = पराजित होना। 
  • सैन्य = सेना। 
  • विषम = भयानक। 
  • सवार = घुड़सवार सैनिक । 
  • वीरगति = युद्ध में बहादुरी से लड़ते हुए मृत्यु को प्राप्त हो जाना। 
  • सिधार = स्वर्ग सिधार गई। 
  • दिव्य = अलौकिक, दैवीय। 
  • तेज = प्रकाश (आत्मा का प्रकाश परमात्मा के प्रकाश से मिल गया)। 
  • मनुज = मनुष्य। 
  • अवतारी = अवतार लेने वाली देवी। 
  • स्वतन्त्रता नारी= स्वतन्त्रता की देवी। 
  • पथ-रास्ता। 
  • सीख = शिक्षा।




झाँसी की रानी कविता की व्याख्या 

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सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।


झाँसी की रानी  कविता की व्याख्या : 
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प्रसंग-यहाँ पर कवयित्री ने झाँसी की रानी की वीरता का उल्लेख किया है। जब रानी झाँसी के सिंहासन पर बैठी तो उन्होंने अंग्रेजों से अपने देश को आजाद कराने के लिए उनसे युद्ध किया।

प्रथम पद में कवयित्री ने झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के साहस और बलिदान का वर्णन करते हुए कहा है कि किस तरह उन्होंने गुलाम भारत को आज़ाद करवाने के लिए हर भारतीय के मन में चिंगारी लगा दी थी। रानी लक्ष्मी बाई के साहस से हर भारतवासी जोश से भर उठा और सबके मन में अंग्रेजों को दूर भगाने की भावना पैदा होने लगी। 1857 में उन्होंने जो तलवार उठाई थी यानी अंग्रेजों के खिलाफ जंग छेड़ी थी, उससे सभी ने अपनी आज़ादी की कीमत पहचानी थी।

व्याख्या-जब लक्ष्मीबाई झाँसी की रानी बनी तो उन्होंने भारतीय जनता में आजादी का मन्त्र फूंक दिया। अंग्रेजों के द्वारा गुलाम बनाये गये राजाओं ने भी अंग्रेजों से युद्ध करने का संकल्प लिया। क्रोध में उनकी भौहें तन उठी और देश में उथल-पुथल मच गई। भारत जो आजादी की आशा ही छोड़ चुका था उसमें एक नई आशा जागी। अब सबको लग रहा था कि अपनी आजादी जो उन्होंने खो दी थी वह अत्यन्त कीमती थी। अब सबने भारत से अंग्रेजों को खदेड़ने का निश्चय कर लिया। इस प्रकार सन् 1857 में फिर से अतीत के गौरव की वह तलवार युद्ध में चमक उठी। इस कहानी को बुन्देलखण्ड के हरबोले (गवैये) गाते हैं कि झाँसी की रानी ने अंग्रेजों के साथ पुरुषों की भांति जमकर युद्ध किया था।




कानपुर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,
नाना के संग पढ़ती थी वह, नाना के संग खेली थी,
बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।
वीर शिवाजी की गाथायें उसको याद ज़बानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।


झाँसी की रानी कविता का भावार्थ : 
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प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों में लक्ष्मीबाई के साहस और वीरता का वर्णन किया गया है।

झाँसी की रानी कविता के इस पद में कवयित्री  ने कहा है कि कानपुर के नाना साहब ने बचपन में ही रानी लक्ष्मीबाई की अद्भुत प्रतिभा से प्रभावित होकर, उन्हें अपनी मुंह-बोली बहन बना लिया था। नाना साहब उन्हें युद्ध विद्या की शिक्षा भी दिया करते थे। लक्ष्मीबाई बचपन से ही बाकी लड़कियों से अलग थीं। उन्हें गुड्डे-गुड़ियों के बजाय तलवार, कृपाण, तीर और बरछी चलाना अच्छा लगता था।

व्याख्या-लक्ष्मीबाई कानपुर के नाना साहब की मुंहबोली बहिन थीं। उन्होंने बचपन में उनका नाम छबीली रखा था। लक्ष्मीबाई अपने पिता की इकलौती सन्तान थीं। वह बचपन में नाना के साथ पढ़ती थीं और उन्हें के साथ खेलती थीं। बचपन में उनके प्रिय खेल थे बरछी, बाल, तलवार और कटारों से खेलना। यही उनके खिलौने थे और यही उन्हें अपनी सहेलियों की तरह प्रिय थे। लक्ष्मीबाई बचपन से साहसी थीं। वीर शिवाजी की वीरता की कहानियाँ उन्हें बचपन से ही याद थीं। यह कहानी बुन्देलखण्ड के हरबोले बड़े जोर-शोर से गाते हैं कि लक्ष्मीबाई मदों की तरह अंग्रेजों से खूब लड़ी थीं।



लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,
नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना, ये थे उसके प्रिय खिलवार।
महाराष्ट्र-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।



झाँसी की रानी  कविता की व्याख्या :  
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झांसी की रानी कविता के इस पद में कवयित्री ने बताया है कि लक्ष्मीबाई व्यूह-रचना, तलवारबाज़ी, लड़ाई का अभ्यास तथा दुर्ग तोड़ना इन सब खेलों में माहिर थीं। मराठाओं की कुलदेवी भवानी उनकी भी पूजनीय थीं। वे वीर होने के साथ-साथ धार्मिक भी थीं।



हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,
ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में,
राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में,
सुभट बुंदेलों की विरुदावलि सी वह आयी झांसी में,
चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव से मिली भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।


झाँसी की रानी  कविता की व्याख्या : 
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प्रसंग-इन पंक्तियों में लक्ष्मीबाई के विवाह का वर्णन किया गया है।

झाँसी की रानी कविता के इस पद में कवयित्री ने लक्ष्मीबाई के झांसी के राजा श्री गंगाधर राव के साथ विवाह का उल्लेख किया है। उनकी जोड़ी को शिव-पार्वती और अर्जुन-चित्रा की उपमा दी गई है। उनके आने से झांसी में ख़ुशियाँ और सौभाग्य आ गया था। 

व्याख्या-लक्ष्मीबाई वीरता की साकार मूर्ति थी। उनकी सगाई झाँसी के राजा के साथ हो गई और वे विवाह करके झाँसी की रानी बन गई। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वीरता का विवाह सम्पन्नता के साथ हुआ हो। राजभवन में बधाइयाँ बर्जी, खूब खुशियाँ मनाई गई। भाट लोग उनकी प्रशंसा के गीत गाते थे। उन्होंने झाँसी के राजा को उसी प्रकार प्राप्त किया था जैसे चित्रा ने अर्जुन को और पार्वती ने शंकर जी को प्राप्त किया था। यह कहानी बुन्देलखण्ड के हरबोले गाते हैं। झाँसी की रानी पुरुषों के समान बड़ी वीरता से लड़ी थी।




उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियाली छाई,
किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,
तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाई,
रानी विधवा हुई, हाय! विधि को भी नहीं दया आई।
निसंतान मरे राजाजी रानी शोक-समानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।



झाँसी की रानी  कविता की व्याख्या : 
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प्रसंग-इन पंक्तियों में लक्ष्मीबाई के जीवन में आये दुःखों का वर्णन किया गया है।

इस पद में लक्ष्मीबाई के जीवन के कठिन समय का वर्णन किया गया है, जिसमें उनके पति की असमय मृत्यु के बाद रानी अत्यंत दुखी थीं। उनके कोई संतान भी नहीं थी। वे झांसी को संभालने के लिए बिल्कुल अकेली रह गई थीं।

व्याख्या-रानी जब विवाह करके झाँसी आई तो ऐसा लग रहा था मानो सौभाग्य उदय हो गया है। महल में प्रसन्नता का वातावरण था किन्तु काल की गति को कोई नहीं जान सकता। वहाँ दु:ख के बादल कब छा गए किसी को कुछ भी पता न चला। विधाता को भी रानी के तीर चलाने वाले हाथों में चूड़ियाँ नहीं सुहाई। राजा की असमय मृत्यु से रानी विधवा हो गई। उनके कोई सन्तान भी नहीं थी। अब रानी के शोक का ठिकाना नहीं था। ऐसा बुन्देलखण्ड हरबोले गाते हैं। झाँसी की रानी ने अंग्रेजों से पुरुषों की भाँति वीरता से युद्ध किया।  


बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हरषाया,
राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया,
फ़ौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया,
लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया।
अश्रुपूर्णा रानी ने देखा झाँसी हुई बिरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।



झाँसी की रानी  कविता की व्याख्या : 
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झाँसी की रानी कविता के इस पद में यह बताया गया है कि झांसी के राजा की असमय मृत्यु के बाद उस समय के अंग्रेज़ अधिकारी डलहौजी को झांसी को हड़पने का अच्छा अवसर मिल गया था। उसने अपनी सेना को अनाथ हो चुकी झांसी पर कब्ज़ा जमाने के लिए भेज दिया था।

प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों में अंग्रेजों द्वारा झाँसी हड़प लेने का वर्णन किया गया है।

व्याख्या-जब राजा की मृत्यु हो गई तो अंग्रेज गवर्नर डलहौजी बड़ा प्रसन्न हुआ। उसने सोचा कि अब झाँसी का राज्य हड़पने का अच्छा मौका है। उसने अपनी फौजें झाँसी की ओर भेज दर्दी और किले पर अपना झण्डा फहरा दिया। वह लावारिस झाँसी का वारिस (मालिक) बन बैठा। रानी को इससे बड़ी भारी पीड़ा हुई। आँखों में आँसू भर कर उसने देखा कि झाँसी परायी हुई जा रही है। बुन्देलखण्ड के हरबोले गाते हैं कि झाँसी वाली रानी ने मर्दो की भाँति अंग्रेजों से वीरतापूर्वक युद्ध किया।



अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट शासकों की माया,
व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया,
डलहौज़ी ने पैर पसारे, अब तो पलट गई काया,
राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया।
रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।



झाँसी की रानी  कविता की व्याख्या : 
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झाँसी की रानी कविता के इस पद में कवयित्री बता रही हैं कि अंग्रेज़ लोग भारत में व्यापारी बनकर आए थे और फिर धीरे-धीरे उन्होने यहाँ के सभी बड़े-बड़े राजा-महाराजाओं और रानियों से दया और सहायता की भीख मांगकर, उनका ही राज्य हड़प लिया था। परंतु लक्ष्मीबाई अन्य राजा-रानियों से विपरीत थीं और उन्होंने विषम परिस्थितियों में भी एक महारानी की तरह झांसी को संभाला।



छिनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों-बात,
कैद पेशवा था बिठुर में, हुआ नागपुर का भी घात,
उदैपुर, तंजौर, सतारा, करनाटक की कौन बिसात?
जबकि सिंध, पंजाब, ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात।
बंगाले, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।



झाँसी की रानी  कविता की व्याख्या : 
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प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों में अंग्रेजों द्वारा भारत में अपने शासन को किस तरह स्थापित किया गया। इसका वर्णन किया गया है।

इस पद में उन सभी राज्यों की चर्चा की गई है, जिन्हें अंग्रेज़ों द्वारा हड़प लिया गया था, जो कि निम्न हैं – दिल्ली, लखनऊ, बिठुर, नागपुर, उदयपुर, तंजौर, सतारा, कर्नाटक, सिंध प्रांत, पंजाब, बंगाल और मद्रास। अर्थात् ऐसा कोई क्षेत्र नहीं बचा था, जहां बेईमान अंग्रेज़ों ने अपना अधिकार नहीं जमाया हो।


व्याख्या-अंग्रेजों ने दिल्ली, लखनऊ को बड़ी आसानी से अपने कब्जे में कर लिया, उन्होंने पेशवा को बिठूर में कैद कर लिया। नागपुर, उदयपुर, तंजौर, सतारा, कर्नाटक आदि का तो कहना ही क्या उन्होंने सिंध, पंजाब, ब्रह्मपुत्र, बंगाल, मद्रास आदि नगरों समेत पूरे भारत को अपने अधीन कर लिया। बुन्देलखण्ड के हरबोले इसी कहानी को गाते हैं कि झाँसी वाली रानी ने मर्दो की तरह साहस से अंग्रेजों से खूब डटकर युद्ध किया था। 



रानी रोयीं रनिवासों में, बेगम ग़म से थीं बेज़ार,
उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार,
सरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबार,
‘नागपुर के ज़ेवर ले लो’ ‘लखनऊ के लो नौलख हार’।
यों परदे की इज़्ज़त परदेशी के हाथ बिकानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।



झाँसी की रानी  कविता की व्याख्या : 
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इस पद में क्रूर अंग्रेज़ों की निर्लज्जता का वर्णन है कि कैसे वे लोग सभी राजाओं तथा नवाबों की हत्या के बाद, वहां के राज्य तो हड़पते ही थे, साथ ही साथ वे उनकी रानियों और बेगमों की इज़्ज़त से भी खिलवाड़ करते थे। चाहे वह लखनऊ की बेगम हों, या कलकत्ता और नागपुर की रानियां। उनके कपड़े और ज़ेवर तक छीन कर नीलाम कर दिए जाते थे और अब उनका अगला कदम झांसी की ओर था।



कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,
वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान,
नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान,
बहिन छबीली ने रण-चण्डी का कर दिया प्रकट आहवान।
हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।



झाँसी की रानी  कविता की व्याख्या : 
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इस पद में बताया गया है कि चाहे वो गरीब हो या अमीर, सभी के मन में अंग्रेज़ों के लिए विद्रोह की चिंगारी धधक रही थी। सभी सैनिक नाना साहब, पेशवा जी के नेतृत्व में युद्ध करने को तैयार थे। साथ में उनकी मुंहबोली बहन लक्ष्मीबाई ने भी हार ना मानकर, उनके साथ अंग्रेज़ों से लड़ने का निर्णय कर लिया था।


 
महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,
यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी,
झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी,
मेरठ, कानपूर, पटना ने भारी धूम मचाई थी,
जबलपुर, कोल्हापुर में भी कुछ हलचल उकसानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।



झाँसी की रानी  कविता की व्याख्या : 
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झाँसी की रानी कविता के इस पद में यह बताया गया है कि विद्रोह की चिंगारी देश के हर राज्य से सुलग रही थी, चाहे वो झांसी हो या लखनऊ। दिल्ली, मेरठ, कानपुर तथा पटना राज्यों के राजाओं ने भी इसमें अपना पूरा साथ दिया। साथ ही साथ जबलपुर और कोल्हापुर जैसे बड़े शासकों ने भी सन 1857 की क्रांति में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था।



इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम,
नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम,
अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम,
भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम।
लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।



झाँसी की रानी  कविता की व्याख्या : 
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इस पद में हमारे स्वतंत्रता संग्राम में लड़ने और शहीद होने वाले कई बड़े वीरों का उल्लेख किया गया है। नाना धुंधूपंत, तांतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम, अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुंवर सिंह, तथा सैनिक अभिराम आदि ऐसे ही वीर और साहसी क्रांतिकारी थे, जिन्होंने युद्ध में दुश्मनों से जमकर संघर्ष किया था।



इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में,
जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में,
लेफ्टिनेंट वॉकर आ पहुँचा, आगे बढ़ा जवानों में,
रानी ने तलवार खींच ली, हुआ द्वन्द्ध असमानों में।
ज़ख्मी होकर वॉकर भागा, उसे अजब हैरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।



झाँसी की रानी  कविता की व्याख्या : 
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प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों में रानी लक्ष्मीबाई के युद्ध कौशल का सजीव वर्णन किया गया है।

यहाँ इन सभी वीरों के अलावा वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की वीरता का परिचय है। झांसी में हुए युद्ध में जब लेफ्टिनेंट वॉकर अंग्रेज़ों की तरफ से युद्ध करने आए, तो उनसे लड़ने के लिए अकेली झांसी की रानी ही काफी थीं। उन्होंने दोनों हाथों में तलवारें लेकर रण-चंडी की तरह वॉकर पर प्रहार किया। इस प्रहार से वो बुरी तरह ज़ख़्मी हो गया तथा रानी के शौर्य बल से वह भी अचंभित रह गया।

व्याख्या-रानी लक्ष्मीबाई की वीरता और उनके अद्भुत युद्ध कौशल की कहानियाँ झाँसी के मैदानों में बिखरी पड़ी हैं। युद्ध के दौरान वे पुरुष रूप धारण कर कहर बरपाती थी। अंग्रेजों से छिड़े भीषण युद्ध में अंग्रेजों की सेना का लेफ्टिनेंट वॉकर रानी से युद्ध करने के लिए आगे आया। रानी ने अपनी चमचमाती तलवार खींच ली और इसके साथ ही दो बिना बराबरी के योद्धाओं (एक पुरुष व एक महिला) में युद्ध प्रारम्भ हो गया किन्तु रानी लक्ष्मीबाई के रण-कौशल के आगे उसकी एक न चली और वह शीघ्र ही घायल होकर मैदान से भाग गया। उसे एक महिला के यूँ वीरता-प्रदर्शन पर काफी आश्चर्य था। बुन्देलखण्ड के हरबोले इसी कहानी को गाते हैं कि झाँसी वाली रानी ने मदों की तरह साहस से अंग्रेजों से खूब डटकर युद्ध किया था।



रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,
घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार,
यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार।
अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी रजधानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।



झाँसी की रानी  कविता की व्याख्या : 
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प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री ने रानी लक्ष्मीबाई के अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष की अमर गाथा का सुन्दर वर्णन किया है।

झाँसी की रानी कविता के इस पद में रानी की वीरता का अद्भुत वर्णन है। कवयित्री ने बताया है कि वे सौ मील घोड़े पर बैठकर अंग्रेज़ों को खदेड़ती हुईं यमुना तट तक ले आईं और अंग्रेज़ वहां रानी से पराजित हुए। परंतु यहाँ पर उनके घोड़े ने वीरगति प्राप्त कर ली अर्थात वो मर गया। उसके बाद उन्होंने ग्वालियर पर भी अपना अधिकार जमाया, जहां के राजा सिंधिया ने अंग्रेज़ों डर से उनसे मित्रता कर ली थी और अपनी राजधानी को छोड़कर वहां से चले गए थे।

व्याख्या-झाँसी पर जब अंग्रेजों ने अपना शासन स्थापित कर लिया तो रानी लक्ष्मीबाई ने उनके विरुद्ध युद्ध का बिगुल बजा दिया। इसी क्रम में वह अपनी एक छोटी-सी टुकड़ी के साथ लगभग सौ मील का लम्बा सफर तय करके कालपी आ पहुँची। इतनी लम्बी दूरी और वह भी लगातार, अत्यधिक थकान के कारण रानी का प्रिय घोड़ा बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ा और अगले ही पल उसकी मृत्यु हो चुकी थी। घोड़े की मृत्यु से रानी को झटका लगा किन्तु उसने हिम्मत नहीं हारी। इस बीच अंग्रेजों को रानी के कालपी पहुँचने की सूचना मिल चुकी थी।



विजय मिली, पर अंग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी,
अबके जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुहँ की खाई थी,
काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी,
युद्ध क्षेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी।
पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय! घिरी अब रानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।



झाँसी की रानी  कविता की व्याख्या : 
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प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों में रानी और उसकी सहेलियों द्वारा अंग्रेजों के दाँत खट्टे करने व रानी के दुश्मनों के मध्य घिर जाने का वर्णन किया गया है।

यहाँ बताया गया है कि अब जनरल स्मिथ ने सेना की कमान संभाल ली थी। रानी लक्ष्मीबाई का साथ देने के लिए उनकी दो सहेलियाँ काना और मंदरा युद्ध मैदान में उतर गई थीं। इन तीनों ने अपनी वीरता और साहस के दम पर कई अंग्रेज़ सैनिकों की लाशें बिछा दी थी। परंतु तभी पीछे से जनरल ह्यूरोज ने आकर रानी को घेर लिया था और यहीं रानी उसके शिकंजे में फँस गई थीं।


व्याख्या-रानी लक्ष्मीबाई से मिली करारी हार से बौखलाकर अंग्रेजों ने अब बहुत बड़ी सेना लड़ने के लिए भेजी। इस बार अंग्रेजी सेना का प्रमुख जनरल स्मिथ था, किन्तु उसकी एक न चली और रानी लक्ष्मीबाई और उनकी दो सहेलियों काना और मुन्दरा ने युद्ध के मैदान में अंग्रेजी सेना पर कहर बरपाते हुए जनरल स्मिथ को पराजित कर दिया। पर देखते ही देखते एक नये दल-बल के साथ पीछे से यूरोज लड़ने के लिए युद्ध-मैदान पर आ पहुँचा। रानी और उसकी छोटी-सी सेना अब बुरी तरह घिर चुकी थी। बुन्देलखण्ड के हरबोले इसी कहानी को गाते हैं कि झाँसी वाली रानी ने मदों की तरह साहस से अंग्रेजों से खूब डटकर युद्ध किया।


 
तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार,
किन्तु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार,
घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये सवार,
रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार।
घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर गति पानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।



झाँसी की रानी  कविता की व्याख्या : 
jhansi ki rani class 6 vyakhya


प्रसंग-झाँसी पर जब अंग्रेजों ने आक्रमण किया तो रानी | लक्ष्मीबाई ने उनका बड़ी बहादुरी से मुकाबला किया। रानी का घोड़ा कालपी में आकर मर गया तब उन्होंने नया घोड़ा लिया और अंग्रेजों की सेना में मार-काट मचा दी।

झाँसी की रानी कविता के इस पद में बताया गया है कि रानी जैसे-तैसे बचते हुए दुश्मनों के बीच से निकल कर बाहर आ ही गई थीं, लेकिन अचानक उनके सामने एक चौड़ा नाला आ गया। उनका घोड़ा नया होने के कारण उसे पार नहीं कर पाया और वहीं अड गया। बस यहीं शत्रुओं ने मौका देखकर अकेली रानी पर कई वार पर वार किए और झांसी की रानी ने यहीं अपनी अंतिम सांस तक लड़ते हुए वीर-गति प्राप्त की।

व्याख्या-रानी शत्रुओं से घिरी हुई थी किन्तु वह बड़ी वीरता से उन्हें मारकर अपने लिये रास्ता निकाल लेती थी किन्तु, एक नाले के पास घोड़े के अड़ जाने से शत्रुओं ने उसे फिर से घेरने का मौका पा लिया। युद्ध में रानी बुरी तरह घायल हो गई। इस प्रकार वह बहादुर सिंहनी लड़ते-लड़ते वीरगति को प्राप्त हो गई। बुन्देले हरबोले आज भी उसकी गौरव गाथा गाकर बताते हैं कि रानी लक्ष्मीबाई ने बड़ी बहादुरी से युद्ध किया था।




रानी गई सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,
मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,
अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,
हमको जीवित करने आयी बन स्वतंत्रता-नारी थी,
दिखा गई पथ, सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।



झाँसी की रानी  कविता की व्याख्या : 
jhansi ki rani class 6 vyakhya

प्रसंग-इन पंक्तियों में कवयित्री ने झाँसी की रानी की वीरता का वर्णन बड़ी भावपूर्ण शैली में किया है।

यहाँ रानी की दिव्यता का वर्णन है कि रानी अब परलोक सिधार चुकी थीं, परन्तु उनके चेहरे पर सूरज के जैसी चमक छाई हुई थी। उनकी उम्र केवल तेईस साल थी, इतनी छोटी-सी उम्र में वह एक अवतारी-नारी की तरह आकर हम सभी देशवासियों को जीवन का सही मार्ग दिखा गई थीं। क्रांति की चिंगारी का बीज सही मायनों में उन्होंने ही देशवासियों के मन में बोया था।


व्याख्या-झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई स्वर्ग सिधार गई। अब उसकी अलौकिक सवारी स्वर्ग का विमान था। उसकी आत्मा का तेज परमात्मा के तेज से मिल गया। रानी ने मोक्ष प्राप्त किया। वह इसकी सच्ची अधिकारिणी भी थीं। तेईस साल की उम्र में उसकी वीरता को देखकर ऐसा लगता था कि वह कोई मनुष्य नहीं थी बल्कि अवतार लेकर कोई देवी आई थी। वह स्वतन्त्रता की देवी हमें एक नया जीवन देने आई थीं। वह हमें स्वतन्त्रता का रास्ता दिखा गई और अपने देश को स्वतन्त्र कराने का पाठ पढ़ा गई। बुन्देलखण्ड के हरबोले इस कहानी को गाते हैं कि वह मर्दो जैसे युद्ध करने वाली रानी जो बड़ी वीरता से लड़ी थी, झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ही थी।




जाओ रानी याद रखेंगे ये कृतज्ञ भारतवासी,
यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनासी,
होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,
हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी।
तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमिट निशानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।



झाँसी की रानी  कविता की व्याख्या : 
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यहाँ कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान कहती हैं कि रानी का यह बलिदान सभी देशवासी हमेशा याद रखेंगे। चाहे दुश्मन अपनी वीरता का परचम लहरा रहा हो या फिर वो अपनी तोप के गोलों से झांसी को ही मिटा दे, लेकिन झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई हमारे मन में हमेशा बसी रहेंगी। चाहे उनका कोई स्मारक ना बने, लेकिन वो वीरता और साहस का एक उदाहरण बनकर हमारे इतिहास में हमेशा-हमेशा के लिए अमर रहेंगी।


 Q&A 


jhansi ki rani class 6 QUESTION ANSWER
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प्रश्न -1 'किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई' .

(क) इस पंक्ति में किस घटना की ओर संकेत है?
उत्तर : इस पंक्ति में कवयित्री ने झाँसी के राजा गंगाधर राव की आकस्मिक मृत्यु के कारण रानी के विधवा होने की ओर संकेत किया है।


(ख) काली घटा घिरने की बात क्यों कही गई है?
उत्तर : इस पंक्ति में लेखिका ने रानी के सुख पर दुःख की छाया को दर्शाया है। राजा गंगाधर राव की आकस्मिक मृत्यु से उनके जीवन में दुःखों का पहाड़ टूट गया था। एक तो उनके सुहाग को काल ने अपना ग्रास बना लिया दूसरा राजा के मरते ही झाँसी लावारिस हो गई। निसंतान राजा की मृत्यु ने अंग्रेज़ों को झाँसी पर कब्ज़ा करने का सुअवसर दे दिया। जिससे रानी पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा।

प्रश्न -2  कविता की दूसरी पंक्ति में भारत को ‘बूढ़ा’ कहकर और उसमें ‘नई जवानी’ आने की बात कहकर सुभद्रा कुमारी चौहान क्या बताना चाहती हैं?

उत्तर : लेखिका के अनुसार उस समय भारत गुलामी की बेड़ियों में जकड़ा हुआ था। उसकी दशा शिथिल और जर्जर हो चुकी थी। अंग्रेज़ धीरे-धीरे पूरे भारत को अपना गुलाम बनाने पर लगे हुए थे। परन्तु उस गुलामी को स्वीकार न करने वाली और आज़ादी का बिगुल बजाने वाली झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेज़ों के विरूद्ध अपनी तलवार खींच ली। उनकी इसी वीरता ने सब के मन में एक नया उत्साह भर दिया था कि एक स्त्री अंग्रेज़ों का सामना करने के लिए तैयार है तो फिर क्यों ना हम स्वयं इस गुलामी के विरूद्ध आवाज़ उठाए। तब इस गुलामी की बेड़ियों में जकड़े हुए भारत (बूढ़े भारत) में रानी लक्ष्मी ने नया उत्साह और वीरता फूँक दी; (नई जवानी दी) जिसने सन्‌ अठारह सौ सत्तावन में अंग्रेज़ों के छक्के छुड़ा दिए।

प्रश्न -3 झाँसी की रानी के जीवन की कहानी अपने शब्दों में लिखो और यह भी बताओ कि उनका बचपन तुम्हारे बचपन से कैसे अलग था?

उत्तर : झाँसी की रानी के बचपन का नाम छबीली था उनका बचपन शस्त्र चलाने, घुड़सवारी सीखने, युद्ध कला सीखने में बीता। उन्होनें यह शिक्षा नाना के साथ प्राप्त की, जब वह कुछ बड़ी हुई तो उनका विवाह झाँसी के राजा गंगाधर राव से हो गया। परन्तु जल्द ही राजा की आकस्मिक मृत्यु ने रानी को विधवा बना दिया। राजा के संतानहीन होने का लाभ उठाकर उनकी मृत्यु के पश्चात्‌ अंग्रेज़ों ने झाँसी पर अधिकार जमाने का प्रयास किया। परन्तु रानी ने इसका विरोध किया और अंग्रेज़ों के विरूद्ध अपनी तलवार खींच ली। और इसी स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेज़ों के साथ लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुई और भारतीय इतिहास में वीरांगना कहलाई। रानी का बचपन, हमारे बचपन से कई मायने में अलग था। उन्होनें गुड्डे गुड़ियों से न खेलकर तीर, तलवार, भाला, बरछी चलाना सीखा जिससे आगे चलकर रानी का गौरवपूर्ण इतिहास बना।

प्रश्न -4 वीर महिला की इस कहानी में कौन-कौन से पुरुषों के नाम आए हैं? इतिहास की कुछ अन्य वीर स्त्रियों की कहानियाँ खोजो।

उत्तर : रानी की इस कहानी में निम्नलिखित वीर पुरूषों के नाम हैं :- नाना धुंधूपंत, अहमदशाह मौलवी, ताँत्या टोपे, अजीमुल्ला, ठाकुर कुँवरसिंह आदि।

इतिहास में कुछ वीर स्त्रियाँ हैं:- कित्तूर की रानी चेनम्मा, श्रीमति इंदिरा गाँधी, सरोजनी नायडू, रानी दुर्गावती, अहिल्याबाई, अवन्ती बाई होलकर आदि ।


प्रश्न -5 झाँसी की रानी के जीवन से हम क्या प्रेरणा ले सकते हैं?

उत्तर : झाँसी की रानी के जीवन से हमें यही प्रेरणा मिलती है कि आज़ादी स्वयं में एक मूल्यवान वस्तु है। इसको बनाए रखने के लिए हमें कोई भी कीमत चुकानी पड़े हमें पीछे नहीं हटना चाहिए। रानी लक्ष्मीबाई चाहती तो अंग्रेज़ों की बात मानकर आराम से अपना जीवन यापन कर सकती थीं परन्तु उन्होंने इसके विरूद्ध जाकर उनसे युद्ध लड़ा और सबको चेताया कि स्वयं के स्वार्थ को छोड़कर हमें देश के, राष्ट्र के हित में सोचना चाहिए। फिर चाहे स्वयं को इसके लिए न्योछावर ही क्यों न करना पड़े।

प्रश्न -6 अंग्रेज़ों के कुचक्र के विरुद्ध रानी ने अपनी वीरता का परिचय किस प्रकार दिया?

उत्तर : अंग्रेज़ों ने यह नीति बना रखी थी कि जिस भी राज्य का राजा संतानहीन हो या कमज़ोर हो उस पर ब्रिटिश सरकार अपना अधिकार कर लेगी। परन्तु रानी ने इसका विरोध किया और उनके आधीन रहना स्वीकार न कर उनसे लड़ना स्वीकार किया। अपनी अंतिम साँस तक भी वो अंग्रेज़ों के आगे झुकी नहीं और वीरता से लड़ती हुई वीरगति को प्राप्त हुईं।

प्रश्न -7 रानी के विधवा होने पर डलहौज़ी क्यों प्रसन्न हुआ? उसने क्या किया?

उत्तर : डलहौज़ी जानता था कि राजा गंगाधर राव निसंतान थे। अंग्रेज़ों ने वैसे ही एक नीति बनाई थी कि जिस राजा कि संतान नहीं होगी उसको अंग्रेज़ी राज्य में मिला लिया जाएगा। संतानहीन झाँसी के राजा की मृत्यु का समाचार पाकर तो डलहौज़ी के लिए सोने पे सुहागा वाली बात थी। उसे लगा एक निसंतान राजा की विधवा क्या कर पाएगी। उसने तुरन्त ही झाँसी पर कब्ज़ा करने का मन बना लिया और झाँसी पहुँच गया।

प्रश्न -8 निम्नलिखित पंक्तियों का भाव स्पष्ट करो-

(क) गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी।
उत्तर : इस पंक्ति के द्वारा उस समय के भारत की अवस्था को वर्णित किया गया है। जब अंग्रेज़ों ने अपनी कूटनीतियों के दम पर भारत को अपना गुलाम बना लिया था। कोई भी उनका विरोध करने का साहस न करता और चुपचाप गुलामी की बेड़ियों में जकड़े हुए बैठे रहते। परन्तु रानी लक्ष्मीबाई के विरोध ने सारे भारत को झकझोर दिया। तब भारत की निंद्रा जागी कि जब एक स्त्री लक्ष्मीबाई इनका विरोध कर सकती है तो हम क्यों नहीं, हम क्यों इस गुलामी में जिए हमें भी अपनी स्वतंत्रता प्यारी है और पूरे भारत में स्वतंत्रता की लहर दौड़ पड़ी।

(ख) लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया।
उत्तर : अंग्रेज़ों ने भारत के राज्यों पर कब्ज़ा करने के लिए एक नीति बनाई कि जो राजा संतानहीन होगा उस राज्य को ब्रिटिश राज्य में मिला लिया जाएगा। झाँसी के राजा की मृत्यु्‌, अंग्रेज़ों के लिए सोने पे सुहागा वाली बात थी। वो बिना वक्त गवाएँ रानी लक्ष्मीबाई के पास झाँसी पहुँच गए कि अब इस राज्य को चलाने के लिए कोई उत्तराधिकारी नहीं है तो अब ये ब्रिटिश सरकार के अधीन कर लिया जायेगा। वे स्वंय इस राज्य का कार्यभार सँभालेंगे।






रानी लक्ष्मीबाई की जीवनी 

Rani lakshmibai ki jivani


लक्ष्मीबाई का जन्म वाराणसी में 19 नवम्बर 1828 को हुआ था। उनका बचपन का नाम मणिकर्णिका था लेकिन प्यार से उन्हें मनु कहा जाता था। उनकी माँ का नाम भागीरथीबाई और पिता का नाम मोरोपंत तांबे था। मोरोपंत एक मराठी थे और मराठा बाजीराव की सेवा में थे। माता भागीरथीबाई एक सुसंस्कृत, बुद्धिमान और धर्मनिष्ठ स्वभाव की थी तब उनकी माँ की मृत्यु हो गयी। क्योंकि घर में मनु की देखभाल के लिये कोई नहीं था इसलिए पिता मनु को अपने साथ पेशवा बाजीराव द्वितीय के दरबार में ले जाने लगे। जहाँ चंचल और सुन्दर मनु को सब लोग उसे प्यार से "छबीली" कहकर बुलाने लगे। मनु ने बचपन में शास्त्रों की शिक्षा के साथ शस्त्र की शिक्षा भी ली।

सन् 1842 में उनका विवाह झाँसी के मराठा शासित राजा गंगाधर राव नेवालकर के साथ हुआ और वे झाँसी की रानी बनीं। विवाह के बाद उनका नाम लक्ष्मीबाई रखा गया। सन् 1851 में रानी लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया। परन्तु चार महीने की उम्र में ही उसकी मृत्यु हो गयी। सन् 1853 में राजा गंगाधर राव का स्वास्थ्य बहुत अधिक बिगड़ जाने पर उन्हें दत्तक पुत्र लेने की सलाह दी गयी। पुत्र गोद लेने के बाद 21 नवम्बर 1853 को राजा गंगाधर राव की मृत्यु हो गयी। दत्तक पुत्र का नाम दामोदर राव रखा गया।


ब्रितानी राज ने अपनी राज्य हड़प नीति के तहत बालक दामोदर राव के ख़िलाफ़ अदालत में मुक़दमा दायर कर दिया। हालांकि मुक़दमे में बहुत बहस हुई, परन्तु इसे ख़ारिज कर दिया गया। ब्रितानी अधिकारियों ने राज्य का ख़ज़ाना ज़ब्त कर लिया और उनके पति के कर्ज़ को रानी के सालाना ख़र्च में से काटने का फ़रमान जारी कर दिया। इसके परिणाम स्वरूप रानी को झाँसी का क़िला छोड़कर झाँसी के रानीमहल में जाना पड़ा। पर रानी लक्ष्मीबाई ने हिम्मत नहीं हारी और उन्होनें हर हाल में झाँसी राज्य की रक्षा करने का निश्चय किया।



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जय हिन्द : जय हिंदी 
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