Swar in Hindi | स्वर संरचना |

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 स्वर ध्वनि 



जिन ध्वनियों के उच्चारण में मुखविवर में कहीं भी वायु का कोई अवरोध न हो, उसे स्वर कहते हैं।’
जो स्वतः उच्चरित हो वह स्वर है अर्थात् जिसका उच्चारण किसी अन्य ध्वनियों की सहायता के बिना हो, वह स्वर है।

(महाभाष्य - पतंजलि)
स्वतो राजन्ते इति स्वराः 


स्वर मात्रा के प्रतीक हैं , वे ह्रस्व होते हैं अथवा दीर्घ। संस्कृत में मात्रा के आधार पर स्वरों के तीन प्रकार ह्रस्व, दीर्घ और प्लुत माने गए हैं। किसी स्वर के उच्चारण में लगने वाला समय, मात्रा कहलाती है। पाणिनि ने स्वर की तीन मात्राएँ मानी हैं - 

  • ह्रस्व
  • दीर्घ
  • प्लुत



एक मात्रो भवेद् ह्रस्वो द्विमात्रो दीर्घ उच्यते। 
त्रिमात्रस्तु प्लुतो सेयो व्यंजन चार्धमात्रकम् ।

ह्रस्व स्वर

जिन स्वरों के उच्चारण में एक मात्रा का समय लगता है, उसे ह्रस्व स्वर कहते हैं.
जैसे - अ, इ, उ

दीर्घ स्वर

जिन स्वरों के उच्चारण में दो मात्राओं का समय लगता है, उसे दीर्घ स्वर कहते हैं.इसे द्विमात्रिक भी कहा गया है।
जैसे- आ, ई,ऊ, ए,ओ,औ। 

प्लुत स्वर

जिन स्वरों के उच्चारण में दो से अधिक मात्रा का समय लगता है, उसे प्लुत कहते हैं। इसे त्रिमात्रिक भी कहा गया है। किसी भी दूर खड़े व्यक्ति को पुकारने पर प्लुत स्वर का उच्चारण होता है। 
जैसे - अशो३क, रा३म आदि। 


स्वर के भेद

  • मूल स्वर     -अ ,इ ,उ 
  • दीर्घ स्वर    -आ ,ई,ऊ  
  • संयुक्त स्वर- ए,ऐ,ओ,औ 



 स्वरों का वर्गीकरण 


हिंदी में स्वर ध्वनियों का वर्गीकरण मुख्य रूप से तीन आधारों पर किया गया है-

  • जिह्वा की ऊँचाई
  • जिह्वा की स्थिति
  • होठों की आकृति


जिह्वा की ऊँचाई


जिह्वा की ऊँचाई के आधार पर स्वरों को चार वर्गों में विभक्त किया गया है-

  • संवृत
  • अर्ध संवृत
  • अर्ध विवृत
  • विवृत


संवृत

जिन स्वरों के उच्चारण में जिह्वा का जितना अधिक भाग ऊपर उठता है, उससे वायु उतना ही संकुचित होकर बिना किसी रूकावट के बाहर निकलती है, इससे उच्चरित होनेवाले स्वर संवृत कहलाते हैं। 
संवृत स्वर-इ, ई, उ, ऊ

अर्धसंवृत

जिन स्वरों के उच्चारण में जिह्वा का भाग कम ऊपर उठता है और वायु मुखविवर में कम संकुचित होती है। इससे उच्चरित स्वर अर्ध संवृत कहलाते हैं।
अर्ध संवृत स्वर- और  

अर्धविवृत

जिन स्वरों के उच्चारण में जिह्वा अर्धसंवृत से कम ऊपर उठती हैे और मुखविवर में वायु मार्ग खुला रहता है । इससे उच्चरित स्वर अर्ध विवृत स्वर कहे जाते हैं। 
अर्धविवृत स्वर-अ, ऐ और

विवृत

जिन स्वरों के उच्चारण में जिह्वा मध्य में स्थित होती है और मुखविवर पूरा खुला रहता है , ऐसे उच्चरित स्वर को विवृत कहते हैं।
विवृत स्वर-‘आ’


जिह्वा की स्थिति

किसी स्वर के उच्चारण में जिह्वा की स्थिति के आधार पर स्वरों के तीन भेद किए जाते हैं -

  • अग्रस्वर
  • मध्य स्वर
  • पश्चस्वर


अग्रस्वर

जिन स्वरों के उच्चारण में  जिह्वा का अग्रभाग सक्रिय होता है, ऐसे उच्चरित स्वर को अग्रस्वर कहते हैं।
अग्रस्वर-इ, ई, ए, ऐ, 

मध्य स्वर

जिन स्वरों के उच्चारण में जिह्वा का मध्य भाग सक्रिय होता है, ऐसे उच्चरित स्वर को मध्य स्वर कहते हैं।
मध्य स्वर- ‘अ’

पश्चस्वर

जिन स्वरों के उच्चारण में जिह्वा का पश्च भाग सक्रिय होता है, ऐसे उच्चरित स्वर को पश्च स्वर कहते हैं। पश्च स्वर-ऊ,उ,ओ,औ, एवं


होंठो की आकृति

किसी स्वर के उच्चारण में होठों की आकृति के आधार पर स्वरों को दो वर्गों में रख सकते हैं -

  • गोलीय
  • अगोलीय


गोलीय

जिन स्वरों के उच्चारण में होंठ की स्थिति कुछ गोलाकार होती है, ऐसे उच्चरित स्वर को गोलीय कहते हैं। (अंग्रेजी से आए हुए व् स्वर के लिए ऑ का उच्चारण होता है जैसे - डॉक्टर, नॉर्मल आदि।)
गोलीय स्वर-ऊ, उ, ओ, औ, ऑ 


अगोलीय

जिन स्वरों के उच्चारण में होंठ की स्थिति गोलाकार नहीं होती है, ऐसे उच्चरित स्वर को अगोलीय कहते हैं।  
अगोलीय स्वर-अ, आ, इ, ई, ए और


HINDI KI SWAR SANRACHNA
Swar in Hindi | स्वर संरचना |





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जय हिन्द 
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