समास-विग्रह
सामासिक शब्दों के बीच के संबंधों को स्पष्ट करना समास-विग्रह कहलाता है।विग्रह के पश्चात सामासिक शब्दों का लोप हो जाताहै जैसे-राज+पुत्र-राजा का पुत्र। पूर्वपद और उत्तरपद
समास में दो पद (शब्द) होते हैं। पहले पद को पूर्वपद और दूसरे पद को उत्तरपद कहते हैं।
जैसे- गंगाजल।
गंगा + जल,
जिसमें गंगा पूर्व पद है,
और जल उत्तर पद।
समास के भेद
समास के छः भेद हैं:
अव्ययीभाव समास
जिस समास का पूर्व पद प्रधान हो, और वह अव्यय हो उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। जैसे - यथामति (मति के अनुसार), आमरण (मृत्यु तक) इनमें 'यथा' और 'आ' अव्यय हैं। जहाँ एक ही शब्द की बार-बार आवृत्ति हो, अव्ययीभाव समास होता है जैसे - दिनोंदिन, रातोंरात, घर-घर, हाथों-हाथ आदि
कुछ अन्य उदाहरण -
आजीवन - जीवन-भर
यथासामर्थ्य - सामर्थ्य के अनुसार
यथाशक्ति - शक्ति के अनुसार
यथाविधि - विधि के अनुसार
यथाक्रम - क्रम के अनुसार
भरपेट - पेट भरकर
हररोज़ - रोज़-रोज़
हाथोंहाथ - हाथ ही हाथ में
रातोंरात - रात ही रात में
प्रतिदिन - प्रत्येक दिन
बेशक - शक के बिना
निडर - डर के बिना
निस्संदेह - संदेह के बिना
प्रतिवर्ष - हर वर्ष
आमरण - मरण तक
खूबसूरत - अच्छी सूरत वाली/वाला
अव्ययीभाव समास की पहचान - इसमें समस्त पद अव्यय बन जाता है अर्थात समास लगाने के बाद उसका रूप कभी नहीं बदलता है। इसके साथ विभक्ति चिह्न भी नहीं लगता।
जैसे - ऊपर के समस्त शब्द है।
अव्ययीभाव समास जिस समास का पहला पद(पूर्व पद) प्रधान हो और वह अव्यय हो उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं।
उदाहरण
निडर = डर के बिना (इसमें नि अव्यय है)
अव्ययीभाव समास में तीन प्रकार के पद आते हैं:-
1. उपसर्गों से बने पद (जिनमे उपसर्ग विशेषण न हो):- आ, निर्, प्रति, निस्, भर, खुश, बे, ला, यथा उपसर्गों से बने पद अव्ययीभाव समास होते है।
उदाहरण: आजीवन (आ+जीवन) = जीवन पर्यन्त निर्दोष (निर्+दोष) = दोष रहित प्रतिदिन (प्रति+दिन) = प्रत्येक दिन बेघर (बे+घर) = बिना घर के लावारिस (ला+वारिस) = बिना वारिस के यथाशक्ति (यथा+शक्ति) = शक्ति के अनुसार
2. यदि एक ही शब्द दो बार आये :-
उदाहरण: घर-घर = घर के बाद घर नगर-नगर = नगर के बाद नगर रोज-रोज = हर रोज
3. एक जैसे दो शब्दों के मध्य बिना संधि नियम के कोई मात्रा या व्यंजन आये:-
उदाहरण: हाथोंहाथ = हाथ ही हाथ में दिनोदिन = दिन ही दिन में बागोबाग = बाग ही बाग में
तत्पुरुष समास
'तत्पुरुष समास - जिस समास का उत्तरपद प्रधान हो और पूर्वपद गौण हो उसे तत्पुरुष समास कहते हैं। जैसे - तुलसीदासकृत = तुलसीदास द्वारा कृत (रचित)
शराहत = शर से आहत
राजकुमार = राजा का कुमार
विग्रह में जो कारक प्रकट हो उसी कारक वाला वह समास होता है।
तत्पुरुष समास के प्रकार
नञ तत्पुरुष समास
जिस समास में पहला पद निषेधात्मक हो उसे नञ तत्पुरुष समास कहते हैं। जैसे -
अनंत - न अंत
असभ्य - न सभ्य
विभक्तियों के नाम के अनुसार तत्पुरुष समास के छह भेद हैं-
- कर्म तत्पुरुष (द्वितीया कारक चिन्ह) (गिरहकट - गिरह को काटने वाला)
(कारक चिन्ह: "को" )
उदाहरण: सिद्धिप्राप्त = सिद्धि को प्राप्त
नगरगत = नगर को गत
- करण तत्पुरुष (मनचाहा - मन से चाहा)
(कारक चिन्ह: "से, के द्वारा")
उदाहरण: हस्तलिखित = हाथों से लिखित
तुलसीरचित = तुलसी के द्वारा रचित
- संप्रदान तत्पुरुष (रसोईघर - रसोई के लिए घर)
(कारक चिन्ह "के लिए")
उदाहरण: रसोईघर = रसाई के लिए घर
जेबखर्च = जेब के लिए खर्च
- अपादान तत्पुरुष (देशनिकाला - देश से निकाला)
(कारक चिन्ह "से" [अलग होने का भाव])
उदाहरण: पथभ्रष्ट = पथ से भ्रष्ट
- संबंध तत्पुरुष (गंगाजल - गंगा का जल)
(कारक चिन्ह "का, के, की")
उदाहरण: राजपुत्र = राजा का पुत्र
घुड़दौड़ = घोड़ों की दौड़
- अधिकरण तत्पुरुष (नगरवास - नगर में वास)
(कारक चिन्ह "में, पर" )
उदाहरण: आपबीती = आप पर बीती
विश्व प्रसिद्ध = विश्व में प्रसिद्ध
कर्मधारय समास
जिस समास का उत्तरपद प्रधान हो और पूर्वपद व उत्तरपद में विशेषण-विशेष्य अथवा उपमान-उपमेय का संबंध हो वह कर्मधारय समास कहलाता है।
जैसे
भवसागर(भव [संसार] रूपी सागर)
घनश्याम(घन [बादल] के समान श्याम [काला])
समस्त पद समास-विग्रह
चंद्रमुख चंद्र जैसा मुख
कमलनयन कमल के समान नयन
देहलता देह रूपी लता
दहीबड़ा दही में डूबा बड़ा
नीलकमल नीला कमल
पीतांबर पीला अंबर (वस्त्र)
सज्जन सत् (अच्छा) जन
नरसिंह नरों में सिंह के समान
द्विगु समास
जिस समास का पूर्वपद संख्यावाचक विशेषण हो उसे द्विगु समास कहते हैं। इससे समूह अथवा समाहार का बोध होता है। जैसे -
समस्त पद समास-विग्रह
नवग्रह नौ ग्रहों का समूह
दोपहर दो पहरों का समाहार
त्रिलोक तीन लोकों का समाहार
चौमासा चार मासों का समूह
नवरात्र नौ रात्रियों का समूह
शताब्दी सौ अब्दो (वर्षों) का समूह
अठन्नी आठ आनों का समूह
त्रयम्बकेश्वर तीन लोकों का ईश्वर
द्वंद्व समास
जिस समास के दोनों पद प्रधान होते हैं तथा विग्रह करने पर ‘और’, अथवा, ‘या’, एवं योजक चिन्ह लगते हैं , वह द्वंद्व समास कहलाता है।
जैसे- माता-पिता ,भाई-बहन, राजा-रानी, दु:ख-सुख, दिन-रात, राजा-प्रजा
द्वन्द्व समास जिस समास के दोनों पद प्रधान होते हैं तथा विग्रह करने पर "और" अथवा "या" का प्रयोग होता है तो उसे द्वन्द्व समास कहते है।
"और" का प्रयोग समान प्रकृति के पदों के मध्य तथा "या" का प्रयोग असमान (विपरीत) प्रकृति के पदों के मध्य किया जाता है।
उदाहरण:
माता-पिता = माता और पिता (समान प्रकृति)
गाय-भैंस = गाय और भैंस (समान प्रकृति)
धर्माधर्म = धर्म या अधर्म (विपरीत प्रकृति)
सुरासुर = सुर या असुर (विपरीत प्रकृति)
बहुब्रीहि समास
जिस समास के दोनों पद अप्रधान हों और समस्तपद के अर्थ के अतिरिक्त कोई सांकेतिक अर्थ प्रधान हो उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं। जैसे -
समस्त पद समास-विग्रह
दशानन दश है आनन (मुख) जिसके अर्थात् रावण
नीलकंठ नीला है कंठ जिसका अर्थात् शिव
सुलोचना सुंदर है लोचन जिसके अर्थात् मेघनाद की पत्नी
पीतांबर पीला है अम्बर (वस्त्र) जिसका अर्थात् श्रीकृष्ण
लंबोदर लंबा है उदर (पेट) जिसका अर्थात् गणेशजी
दुरात्मा बुरी आत्मा वाला ( दुष्ट)
श्वेतांबर श्वेत है जिसके अंबर (वस्त्र) अर्थात् सरस्वती जी
बहुव्रीहि समास जिस समास के दोनों पद अप्रधान हों और समस्तपद के अर्थ के अतिरिक्त कोई सांकेतिक (वस्तु, व्यक्ति या पदार्थ) का बोध हो तो उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं।
उदाहरण:
दशानन = दस है आनन जिसके (रावण)
चन्द्रशेखर = चन्द्र है शिखर पर जिसके (शिव)
चतुरानन: = चार है आनन जिसके (ब्रह्मा)
कर्मधारय और बहुव्रीहि समास में अंतर
कर्मधारय में समस्त-पद का एक पद दूसरे का विशेषण होता है। इसमें शब्दार्थ प्रधान होता है। जैसे - नीलकंठ = नीला कंठ। बहुव्रीहि में समस्त पद के दोनों पदों में विशेषण-विशेष्य का संबंध नहीं होता अपितु वह समस्त पद ही किसी अन्य संज्ञादि का विशेषण होता है। इसके साथ ही शब्दार्थ गौण होता है और कोई भिन्नार्थ ही प्रधान हो जाता है। जैसे - नील+कंठ = नीला है कंठ जिसका शिव .
संधि और समास में अंतर
संधि वर्णों में होती है। इसमें विभक्ति या शब्द का लोप नहीं होता है। जैसे - देव + आलय = देवालय।
समास दो पदों में होता है। समास होने पर विभक्ति या शब्दों का लोप भी हो जाता है। जैसे - माता और पिता = माता-पिता।
Samas Ke Udaharan
उदाहरण
अव्ययीभाव समास के उदाहरण
(Avyayibhav Samas Ke Udaharan)
- रातों रात = रात ही रात में
- यथासाध्य = जितना साधा जा सके
- धडाधड = धड-धड की आवाज के साथ
- यथास्थान = स्थान के अनुसार
- अभूतपूर्व = जो पहले नहीं हुआ
- निर्विवाद = बिना विवाद के
- निर्विकार = बिना विकार के
- यथासामर्थ्य = सामर्थ्य के अनुसार
- हाथोंहाथ = हाथ ही हाथ में
कर्म तत्पुरुष समास के उदाहरण
(karm tatpurush samas ke udaharan)
- ग्रामगत = ग्राम को गया हुआ
- माखनचोर =माखन को चुराने वाला
- मुंहतोड़ = मुंह को तोड़ने वाला
- स्वर्गप्राप्त = स्वर्ग को प्राप्त
- गिरहकट = गिरह को काटने वाला
- कुंभकार = कुंभ को बनाने वाला
- कठफोड़वा = कांठ को फोड़ने वाला
- शत्रुघ्न = शत्रु को मारने वाला
- गिरिधर = गिरी को धारण करने वाला
करण तत्पुरुष समास के उदाहरण
(karan tatpurush samas ke udaharan):
- शोकग्रस्त = शोक से ग्रस्त
- ज्वरग्रस्त = ज्वर से ग्रस्त
- आँखोंदेखी = आँखों से देखी
- तुलसीकृत = तुलसी द्वारा रचित
- पर्णकुटीर = पर्ण से बनी कुटीर
- रक्तरंजित = रक्त से रंजित
- रोगग्रस्त = रोग से ग्रस्त
सम्प्रदान तत्पुरुष समास के उदाहरण
(sampradan tatpurush ke udaharan)
- विद्यालय = विद्या के लिए आलय
- विश्रामगृह = विश्राम के लिए गृह
- गुरुदक्षिणा = गुरु के लिए दक्षिणा
- प्रयोगशाला = प्रयोग के लिए शाला
- देशभक्ति = देश के लिए भक्ति
- स्नानघर = स्नान के लिए घर
- सत्यागृह = सत्य के लिए आग्रह
- यज्ञशाला = यज्ञ के लिए शाला
- डाकगाड़ी = डाक के लिए गाड़ी
- युद्धभूमि = युद्ध के लिए भूमि
- धर्मशाला = धर्म के लिए शाला
- पुस्तकालय = पुस्तक के लिए आलय
- राहखर्च = राह के लिए खर्च
- परीक्षा भवन = परीक्षा के लिए भवन
अपादान तत्पुरुष समास के उदाहरण
(apadan tatpurush samas ke udaharan):
- कामचोर = काम से जी चुराने वाला
- देशनिकाला = देश से निकाला
सम्बन्ध तत्पुरुष समास के उदाहरण
(sambandh tatpurush samas ke udaharan)
- राजकुमारी = राज की कुमारी
- मूर्तिपूजा = मूर्ति की पूजा
- कार्यकर्ता = कार्य का करता
- गृहस्वामी = गृह का स्वामी
अधिकरण तत्पुरुष समास के उदाहरण
(adhikaran tatpurush samas ke udaharan)
- ईश्वरभक्ति = ईश्वर में भक्ति
- आत्मविश्वास = आत्मा पर विश्वास
- दानवीर = दान देने में वीर
- आचारनिपुण = आचार में निपुण
- आनन्दमग्न = आनन्द में मग्न
- क्षणभंगुर = क्षण में भंगुर
- पुरुषोत्तम = पुरुषों में उत्तम
- गृहप्रवेश = गृह में प्रवेश
- युधिष्ठिर = युद्ध में स्थिर
कर्मधारय समास के उदाहरण
(Karmdharay Samas Ke Udaharan in Hindi)
- चन्द्रमुख = चन्द्र जैसा मुख
- पीताम्बर = पीत है जो अम्बर
- महात्मा = महान है जो आत्मा
- प्राणप्रिय = प्राणों से प्रिय
- श्यामसुंदर = श्याम जो सुंदर है
- महापुरुष = महान है जो पुरुष
- नरसिंह = नर में सिंह के समान
- परमानन्द = परम है जो आनंद
द्विगु समास के उदाहरण
(Dvigu Samas Ke Udaharan in Hindi)
- दोपहर = दो पहरों का समाहार
- त्रिवेणी = तीन वेणियों का समूह
- पंचतन्त्र = पांच तंत्रों का समूह
- त्रिलोक = तीन लोकों का समाहार
- शताब्दी = सौ अब्दों का समूह
- पंसेरी = पांच सेरों का समूह
- सतसई = सात सौ पदों का समूह
- त्रिभुज = तीन भुजाओं का समाहार
- चौमासा = चार मासों का समूह
- नवरात्र = नौ रात्रियों का समूह
- सप्तऋषि = सात ऋषियों का समूह
- त्रिकोण = तीन कोणों का समाहार
- सप्ताह = सात दिनों का समूह
द्वंद्व समास उदाहरण
(dwandva samas ka udharan)
- राधा-कृष्ण = राधा और कृष्ण
- राजा-प्रजा = राजा और प्रजा
0 Comments