Kya Nirash Hua Jaye Class 8 | क्या निराश हुआ जाए |


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 पाठ -7 

 क्या निराश हुआ जाए 

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 ध्वनि प्रस्तुति 

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क्या निराश हुआ जाए  पाठ प्रवेश

Kya Nirash Hua Jaye

हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित ‘क्या निराश हुआ जाए’ एक श्रेष्ठ निबंध है। इस पाठ के द्वारा लेखक देश में उपजी सामाजिक बुराइयों के साथ-साथ अच्छाइयों को भी उजागर करने के लिए प्रतिबद्ध है । वे कहते हैं कि समाचार पत्रों को पढ़कर लगता है सच्चाई और ईमानदारी ख़त्म हो गई है। आज आदमी गुणी कम और दोषी अधिक दिख रहा है। आज लोगो की सच्चाई पर से भरोसा हट गया है। लेखक कहते है कि लोभ, मोह, काम-क्रोध आदि को सर्व शक्तिशाली समझ कर हार नहीं माननी चाहिए बल्कि उनका डट कर सामना करना चाहिए। उनके अनुसार हमें किसी के हाथ की कठ पुतली नहीं बनना चाहिए। कानून और धर्म अलग-अलग हैं, परन्तु कुछ लोग कानून को धर्म से बड़ा मानते हैं। समाज में कुछ लोग ऐसे हैं जो बुराई को रस लेकर बताते हैं। बुराई में रस लेना बुरी बात है। लेखक के अनुसार सच्चाई आज भी दुनिया में है इसके कई उदहारण उन्होंने पाठ में दिए हैं ।



 शब्दार्थ 

Kya Nirash Hua Jaye shabdarth 



  • ठगी- चालबाजी
  • तस्करी- चोरी से माल ले जाने की क्रिया
  • भ्रष्टाचार- अनैतिक आचरण
  • आरोप-प्रत्यारोप-- एक-दूसरे को गलत ठहराना
  • सदेंह- शक
  • दृष्टि- नज़र
  • दोष- बुराई
  • गुणी- अच्छा व्यक्ति
  • संस्कृति- परम्परा
  • अतीत- बीता हुआ समय
  • गह्वर- गड्ढा 
  • महा-समुद्र-- महासागर
  • मनीषियों- ऋषियों 
  • जीविका- रोज़गार
  • निरीह- कमजोर
  • श्रमजीवी- मेहनत करने वाला
  • फरेब- धोखा
  • पर्याय- समानार्थी
  • भीरु- डरपोक
  • बेबस- लाचार
  • आस्था- विश्वास
  • भौतिक- सांसारिक
  • संग्रह- इकट्ठा करना
  • चरम- अंत
  • परम- बहुत ज्यादा 
  • लोभ-मोह--लालच
  • काम-क्रोध--गुस्सा
  • स्वाभाविक- स्वतः,प्राकृतिक 
  • विद्यमान- उपस्थित
  • प्रधान- मुख्य
  • आचरण- व्यवहार
  • उपेक्षा- ध्यान न देना
  • गुमराह- रास्ता भटकना
  • कोटि-कोटि--अनगिनत
  • दरिद्रजनों- गरीब लोग
  • हीन- बुरी/बुरा 
  • उन्नत- ऊँचा
  • धर्मभीरु- अधर्म करने से डरने वाला
  • त्रुटियों- गलतियाँ
  • संकोच- हिचकिचाहट
  • पर्याप्त- उचित
  • प्रमाण- सबूत
  • आध्यात्मिकता- भगवान से सम्बन्ध रखने वाली भावना 


क्या निराश हुआ जाए पाठ का सार

Kya Nirash Hua Jaye saransh


लेखक आज के समय में फैले हुए डकैती ,चोरी, तस्करी और भ्रष्टाचार से बहुत दुखी है। आजकल का समाचार पत्र आदमी को आदमी पर विश्वास करने से रोकता है। लेखक के अनुसार जिस स्वतंत्र भारत का स्वप्न गांधी, तिलक, टैगोर ने देखा था यह भारत अब उनके स्वप्नों का भारत नहीं रहा। आज के समय में ईमानदारी से कमाने वाले भूखे रह रहे हैं और धोखा धड़ी करने वाले राज कर रहे हैं।


लेखक के अनुसार भारतीय हमेशा ही संतोषी प्रवृति के रहे हैं। वे कहते हैं आम आदमी की मौलिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कानून बनाए गए हैं किन्तु आज लोग ईमानदार नहीं रहे। भारत में धर्म को कानून से बढ़कर माना गया है,  शायद इसलिए  आज भी लोगों में ईमानदारी, सच्चाई है। लेखक को यह सोचकर अच्छा लगता है कि अभी भी लोगों में इंसानियत बाकी है उदहारण के लिए वेबस और रेलवे स्टेशन पर हुई घटना की बात बताते हैं।


इन उदाहरणो से लेखक के मन में आशा की किरण जागती है और वे कहते हैं कि अभी निराश नहीं हुआ जा सकता। लेखक ने टैगोर के एक प्रार्थना गीत का उदाहरण देकर कहा है कि जिस प्रकार उन्होंने भगवान से प्रार्थना की थी कि चाहे जितनी विपत्ति आए  वे भगवान में ध्यान लगाए रखें। लेखक को विश्वास है की एक दिन भारत इन्ही गुणों के बल पर वैसा ही भारत बन जायेगा जैसा वह चाहता है। अतः अभी निराश न हुआ जाए ।



 PPT 

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 Q&A 

Kya Nirash Hua Jaye prashnottar
Kya Nirash Hua Jaye question answer


प्रश्न 1: लेखक ने स्वीकार किया है कि लोगों ने उन्हें भी धोखा दिया है फिर भी वह निराश नहीं हैं। आपके विचार से इस बात का क्या कारण हो सकता है?
उत्तर : यहाँ लेखक का आशावादी व्यक्तित्व सामने आता है। जहाँ तक लेखक ने अपने व्यक्तिगत अनुभवों का वर्णन किया है, लेखक ने धोखा भी खाया है। पर उसका मानना है कि अगर वो इन धोखों को याद रखेगा तो उसके लिए विश्वास करना बेहद कष्टकारी होगा और इसके साथ-साथ ये उन लोगों पर अंगुली उठाएगा जो आज भी ईमानदारी व मनुष्यता के सजीव उदाहरण हैं। यहीं लेखक का आशावादी होना उजागर होता है और उन्हीं लोगों का सम्मान करते हुए उनकी उपेक्षा नहीं करना चाहता जिन्होनें कठिन समय में उसकी मदद की है। सही मायने में यह बात एकदम उचित है और यही कारण है कि वो अभी भी निराश नहीं है।


प्रश्न 2: दोषों का पर्दाफ़ाश करना कब बुरा रूप ले सकता है?
उत्तर : लेखक के अनुसार, दोषों का पर्दाफ़ाश करना बुरी बात नहीं होती है। परन्तु, इसमें बुराई तब सम्मिलित हो जाती है जब हम किसी के आचरण के गलत पक्ष को उद्घाटित करके उसमें रस लेते है। लेखक के अनुसार यह ग़लत बात है। हमारा दूसरों के दोषोद्घाटन को अपना कर्त्तव्य मान लेना सही नहीं है। हम यह नहीं समझते कि बुराई समान रूप से हम सबमें विद्यमान है। यह भूलकर हम किसी की बुराई में रस लेना आरम्भ कर देते हैं और अपना मनोरंजन करने लग जाते हैं। परन्तु, हम उसके द्वारा की गई अच्छाई को तो उजागर ही नहीं करते। हम उसकी बुराईयों का उतना रस नहीं लेंगे अगर हम उसके व्यक्तित्व के अच्छे पहलुओं की तरफ़ देखें। उसके द्वारा किये गये अच्छे कार्यों को सराहें तों उसके लिए और समाज के लिए यह उतना ही लाभकारी होगा। परन्तु, बुरा तब होता है जब हम उसकी बुराई में तो रस ले लेते हैं पर अच्छाई को भुला देते हैं।


प्रश्न  3: आजकल के बहुत से समाचार पत्र या समाचार चैनल ‘दोषों का पर्दाफ़ाश’ कर रहे हैं। इस प्रकार समाचारों और कार्यक्रमों की सार्थकता पर तर्क सहित विचार लिखिए।
उत्तर : टीवी चैनल व समाचार पत्रों द्वारा जो ‘दोषों का पर्दाफ़ाश’ किया जा रहा है वो पहले किसी सीमा तक सही हुआ करता था। परन्तु, आज टीवी चैनलों और समाचार पत्रों की भरमार के कारण उनके बीच में जनमें श्रेष्ठ-दिखाने-की-होड़ ने इसे धंधा बना दिया है। इससे लोग दोनों पक्षों की सच्चाई जाने बिना ही अपनी तरफ़ से दोषारोपण आरम्भ कर देते हैं। इस बात को तनिक भी नहीं सोचते कि इससे किसी के जीवन पर बुरा असर पड़ सकता है। समाचार पत्र और चैनल सिर्फ अपनी T.R.P. का ही ध्यान रखते हैं। सच तो जैसे कुछ होता ही नहीं है। जैसे आरूषि हत्याकांड में आरूषि के पिता पर हत्या का आरोप लगाया गया। मीडिया ने भी इस विषय को खूब भुनाया परन्तु अंत में वो निर्दोंष पाये गये। जितनी बड़ी हानि तलवार दंपत्ति को हुई, उसका कोई हिसाब नहीं है पर समाचार पत्रों व टीवी चैनलों के लिए यह T.R.P. बढ़ाने का एक साधन मात्र था, सच्चाई सामने लाने का नहीं। दूसरा उदाहरण एक स्कूल शिक्षिका पर स्कूल की लड़कियों को देह-व्यापार में डालने का आरोप लगाया गया। एक न्यूज़ चैनल द्वारा इसका पर्दाफ़ाश किया गया था परन्तु जब सच सामने आया तो पाया गया कि वो बिल्कुल निर्दोष थी। क्या उस चैनल द्वारा किया गया कार्य उचित था? जो भी हो, इस से चैनलों की सार्थकता पर सवाल ज़रूर उठता है।


प्रश्न  4: निम्नलिखित के संभावित परिणाम क्या-क्या हो सकते हैं? 
आपस में चर्चा कीजिए-
जैसे – ”ईमानदारी को मूर्खता का पर्याय समझा जाने लगा है। ”
परिणाम-भ्रष्टाचार बढ़ेगा।

”सच्चाई केवल भीरु और बेबस लोगों के हिस्से पड़ी है।” ………
”झूठ और फरेब का रोज़गार करने वाले फल-फूल रहे हैं।” …....
”हर आदमी दोषी अधिक दिख रहा है, गुणी कम।” …………....

उत्तर : 

”सच्चाई केवल भीरु और बेबस लोगों के हिस्से पड़ी है। 
– तानाशाही बढ़ेगी

”झूठ और फरेब का रोज़गार करने वाले फल-फूल रहे हैं।” 
– भ्रष्टाचार बढ़ेगा

”हर आदमी दोषी अधिक दिख रहा है, गुणी कम।” 
– अविश्वास बढ़ेगा


प्रश्न  4: लेखक ने लेख का शीर्षक ‘क्या निराश हुआ जाए’ क्यों रखा होगा? क्या आप इससे भी बेहतर शीर्षक सुझा सकते हैं?
उत्तर : लेखक ने इस लेख का शीर्षक ‘क्या निराश हुआ जाए’ उचित रखा है क्योंकि यह उस सत्य को उजागर करता है जो हम अपने आसपास घटते देखते रहते हैं। अगर हम एक-दो बार धोखा खाने पर यही सोचते रहें कि इस संसार में ईमानदार लोगों की कमी हो गयी है तो यह सही नहीं होगा। आज भी ऐसे कई लोग हैं जिन्होंने अपनी ईमानदारी को बरकरार रखा है। लेखक ने इसी आधार पर लेख का शीर्षक ‘क्या निराश हुआ जाए’ रखा है। यही कारण है कि लेखक कहता है “ठगा में भी गया हूँ, धोखा मैनें भी खाया है। परन्तु, ऐसी घटनाएँ भी मिल जाती हैं जब लोगों ने अकारण ही सहायता भी की है, जिससे मैं अपने को ढाँढस देता हूँ।”
यदि लेख का शीर्षक ”उजाले की ओर” होता तो शायद लेखक की बात को और बल मिलता।


प्रश्न 5: यदि ‘क्या निराश हुआ जाए’ के बाद कोई विराम चिह्न लगाने के लिए कहा जाए तो आप दिए गए चिह्नों में से कौन-सा चिह्न लगाएँगे? अपने चुनाव का कारण भी बताइए। -, । . ! ? . ; – , …. ।

उत्तर : यदि किसी विराम चिन्ह का प्रयोग करने हेतु कहा जाए तो मैं शीर्षक के अंत में प्रश्नवाचक (?) चिन्ह लगाना चाहूँगा । मैं यह चिन्ह इसलिए लगाना चाहूँगा क्योंकि मैं उन लोगों से प्रश्न कर सकूँ जो कहते हैं कि अब ईमानदारी और इंसानियत खत्म हो गई है। क्या उनके जीवन में कभी कोई ऐसी घटना नहीं घटी होगी जब किसी ने उनकी सहायता बिना किसी स्वार्थ के की हो? सहायता किसी को मात्र पैसे या वस्तु दे कर नहीं की जा सकती। अपितु सही समय पर सही वस्तु दे कर भी सहायता की जा सकती है। जैसे लेखक ने लिखा कि बस के खराब होने पर उनके बच्चे भूख व प्यास से बिलख़ रहे थे, पर वो कुछ भी नहीं कर पा रहे थे। अगर इस बात पर ध्यान दिया जाए तो क्या लेखक के पास पैसे नहीं थे? उनके पास पैसे अवश्य थे पर उनकी बस ऐसे स्थान पर खराब हो गई थी जहाँ भोजन व पानी नहीं मिल सकता था। यही कारण है कि कंडक्टर द्वारा लाया गया दूध उनके लिए उस समय महत्वपूर्ण था। इसका तात्पर्य यह है कि छोटी-छोटी चीजों की मदद भी सहायता कही जाती है। अतः कंडक्टर द्वारा किया गया कार्य इंसानियत हीं कहलाएगा क्योंकि उसने यह कार्य बिना किसी स्वार्थ के किया।समाज में व्याप्त बुराइयों के बीच रहते हुए भी जीवन जीने के लिए सकारात्मक दृष्टि जरूरी है।

प्रश्न 6 :”आदर्शों की बातें करना तो बहुत आसान है पर उन पर चलना बहुत कठिन है।” क्या आप इस बात से सहमत हैं? तर्क सहित उत्तर दीजिए।

उत्तर : "आदर्शों की बातें करना तो बहुत आसान है पर उन पर चलना बहुत कठिन है।” – मैं इस कथन से सहमत हूँ क्योंकि व्यक्ति जब आदर्शो की राह पर चलता है तब उसे कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। असामाजिक तत्वों का अकेले सामना करना पड़ता है।



 भाषा की बात 

Kya Nirash Hua Jaye bhasha ki baat 
Kya Nirash Hua Jaye vyakaran 



प्रश्न  1: द्वंद्व समास के बारह उदाहरण ढूँढ़कर लिखिए।
उत्तर: दो शब्दों के मिलने से समास बनता है। समास का एक प्रकार है-द्वंद्व समास। इसमें दोनों शब्द प्रधान होते हैं। जब दोनों भाग प्रधान होंगे तो एक-दूसरे में द्वंद्व (स्पर्धा, होड़) की संभावना होती है। कोई किसी से पीछे रहना नहीं चाहता. 
जैस –
  • चरम और परम = चरम-परम, 
  • भीरु और बेबस = भीरू-बेबस। 
  • दिन और रात = दिन-रात।

‘और’ के साथ आए शब्दों के जोड़े को ‘और’ हटाकर (-) योजक चिह्न भी लगाया जाता है। कभी-कभी एक साथ भी लिखा जाता है। 

समास के बारे में विस्तार से पढ़ने के लिए लिंक -




सुख और दुख
सुख-दुख

भूख और प्यास
भूख-प्यास

हँसना और रोना
हँसना-रोना

आते और जाते
आते-जाते

राजा और रानी
राजा-रानी

चाचा और चाची
चाचा-चाची

सच्चा और झूठा
सच्चा-झूठा

पाना और खोना
पाना-खोना

पाप और पुण्य
पाप-पुण्य

स्त्री और पुरूष
स्त्री-पुरूष

राम और सीता
राम-सीता

आना और जाना
आना-जाना


प्रश्न 2: पाठ से तीनों प्रकार की संज्ञाओं के उदाहरण खोजकर लिखिए।
उत्तर :

व्यक्तिवाचक संज्ञा: 
रबींद्रनाथ टैगोर, मदनमोहन मालवीय, तिलक, महात्मा गाँधी आदि।

जातिवाचक संज्ञा:
बस, यात्री, मनुष्य, ड्राइवर, कंडक्टर, हिन्दू, मुस्लिम, आर्य, द्रविड़, पति, पत्नि आदि।

भाववाचक संज्ञा: 
ईमानदारी, सच्चाई, झूठ, चोर, डकैत आदि।



जय हिन्द
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