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पाठ-9 
रुबाइयाँ, गज़ल (फ़िराक गोरखपुरी)



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ध्वनि प्रस्तुति : वार्तालाप शैली 






फ़िराक़ गोरखपुरी
काव्य और शैली 

सारांश

यह पाठ रघुपति सहाय 'फ़िराक़' गोरखपुरी के साहित्यिक योगदान, उनकी विशिष्ट काव्य शैली और उनकी रुबाइयों में परिलक्षित प्रमुख विषयों का संश्लेषण करता है। फ़िराक़ उर्दू शायरी की उस परंपरा को तोड़ने वाले प्रमुख शायरों में से एक हैं, जो मुख्य रूप से रुमानियत, रहस्य और शास्त्रीयता से बंधी हुई थी। उन्होंने अपनी शायरी में लोकजीवन, प्रकृति और सामाजिक दुःख-दर्द को व्यक्तिगत अनुभूति बनाकर प्रस्तुत किया।

उनकी शैली की सबसे बड़ी विशेषता परंपरागत भावबोध और शब्द-भंडार का उपयोग करते हुए उसे नई भाषा और नए विषयों से जोड़ना है। मीर और ग़ालिब की तरह, उन्होंने "कहने की शैली" को साधकर आम आदमी से संवाद स्थापित किया। उनकी रुबाइयों में हिंदी का एक सहज और घरेलू रूप दिखाई देता है, जिसमें वात्सल्य और पारिवारिक संबंधों का मार्मिक चित्रण है। उन्होंने अपनी शायरी में हिंदी, उर्दू और लोकभाषा के शब्दों का अनूठा गठबंधन प्रस्तुत किया, जिसे गाँधी जी 'हिन्दुस्तानी' के रूप में पल्लवित करना चाहते थे। फ़िराक़ का दर्शन भौतिकता में ही दिव्यता को देखता है, और यह उनकी कविता में प्रकृति और मानवीय सौंदर्य के चित्रण में स्पष्ट होता है।





1. फ़िराक़ गोरखपुरी: एक परिचय

फ़िराक़ गोरखपुरी, जिनका मूल नाम रघुपति सहाय था, आधुनिक उर्दू शायरी के एक स्तंभ माने जाते हैं। उनका जीवन और करियर साहित्य के साथ-साथ भारत के स्वतंत्रता आंदोलन से भी गहराई से जुड़ा रहा।

मूल नाम-रघुपति सहाय 'फ़िराक़'
जन्म-28 अगस्त, 1896, गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)
शिक्षा-शुरुआती शिक्षा राम कृष्ण की कहानियों से; बाद में अरबी, फ़ारसी और अंग्रेज़ी में
करियर-1917 में डिप्टी कलेक्टर के पद पर चयनित, किंतु 1918 में स्वराज आंदोलन के लिए त्यागपत्र दे दिया। 1920 में स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सेदारी के कारण डेढ़ वर्ष जेल में रहे। बाद में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अंग्रेज़ी विभाग में अध्यापक के रूप में कार्यरत रहे।
प्रमुख कृतियाँ-
गुले-नग्मा, 
बज़्मे ज़िंदगी: रंगे-शायरी, 
उर्दू गज़लगोई

सम्मान-'गुले-नग्मा' के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार, ज्ञानपीठ पुरस्कार, और सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड
निधन-सन् 1983





2. उर्दू शायरी में फ़िराक़ का योगदान

फ़िराक़ गोरखपुरी ने उर्दू शायरी को परंपरागत सीमाओं से निकालकर एक नया आयाम दिया।

परंपरा से विचलन

* परंपरागत रूप से, उर्दू शायरी का एक बड़ा हिस्सा रुमानियत (प्रेम), रहस्य और शास्त्रीयता के विषयों से बंधा रहा है।
* इस शायरी में लोकजीवन और प्रकृति जैसे विषयों को बहुत कम स्थान मिला था।
* नज़ीर अकबराबादी और अल्ताफ़ हुसैन हाली जैसे शायरों ने इस परंपरा को तोड़ने का प्रयास किया, और फ़िराक़ गोरखपुरी इस कड़ी में एक प्रमुख नाम हैं।

नवीन भाषा और विषय

* फ़िराक़ ने परंपरागत भावबोध और शब्द-भंडार का उपयोग करते हुए उसे नई भाषा और नए विषयों से जोड़ा।
* उनकी शायरी में सामाजिक दुःख-दर्द व्यक्तिगत अनुभूति बनकर ढल गया।
* उन्होंने इंसान के हाथों इंसान पर होने वाले अत्याचार की तल्ख सच्चाई और आने वाले कल के प्रति उम्मीद, दोनों को अपनी शायरी का विषय बनाया।
* इन विषयों को उन्होंने भारतीय संस्कृति और लोकभाषा के प्रतीकों से जोड़कर अपनी शायरी का एक अनूठा महल खड़ा किया।




3. काव्य शैली और दर्शन

फ़िराक़ की शैली और दार्शनिक दृष्टिकोण उनकी शायरी को विशिष्ट बनाते हैं।

संवाद की शैली

* उर्दू शायरी अपने लाक्षणिक प्रयोगों और चुस्त मुहावरेदारी के लिए विख्यात है। इसमें यह माना जाता है कि "शेर लिखे नहीं जाते, कहे जाते हैं," जिसका अर्थ है कि संवाद या कथन की शैली प्रमुख होती है।
* फ़िराक़ ने मीर और ग़ालिब की तरह इस "कहने की शैली" को साधकर अपनी बात आम आदमी या साधारण जन तक पहुँचाई।

भौतिकता में दिव्यता

* उन्होंने प्रकृति, मौसम और भौतिक जगत के सौंदर्य को अपनी शायरी का विषय बनाया।
* उनका दार्शनिक मत था कि दिव्यता और भौतिकता अलग-अलग नहीं हैं। उन्होंने कहा:





4. रुबाइयों का विश्लेषण

पाठ में प्रस्तुत रुबाइयाँ फ़िराक़ की काव्यगत विशेषताओं का सटीक उदाहरण हैं, जहाँ घरेलू जीवन और मानवीय संबंध केंद्र में हैं।

भाषा और भाव

* घरेलू रूप: फ़िराक़ की रुबाइयों में हिंदी का एक "घरेलू रूप" दिखाई देता है। भाषा सहज है और प्रसंग सूरदास के वात्सल्य वर्णन की सादगी की याद दिलाते हैं।
* चाँद का बिंब: माँ द्वारा बच्चे को "चाँद के टुकड़े" के रूप में संबोधित करना या बच्चे का चाँद को खिलौना समझकर उसके लिए ज़िद करना ("बालक तो हई चाँद पै ललचाया है") जैसे बिंब उन बच्चों के जीवन से जुड़े हैं जो प्रकृति के करीब हैं।
* मातृ-स्नेह: रुबाइयों में एक माँ बच्चे को नहलाती है, उसके उलझे बालों में कंघी करती है, उसे घुटनों में लेकर कपड़े पहनाती है, और बच्चा प्यार से उसका मुँह देखता है। यह वात्सल्य का जीवंत चित्रण है।

हिन्दुस्तानी भाषा का प्रयोग

* फ़िराक़ के काव्य में हिंदी, उर्दू और लोकभाषा का अनूठा गठबंधन देखने को मिलता है।
* "लोका देना" (उछालकर प्यार करना), "गेसुओं में कंघी करना", "रूपवती मुखड़े पै इक नर्म दमक", "ज़िदियाया" बालक, और "रस की पुतली" जैसे प्रयोग इस मिश्रित भाषा के विलक्षण उदाहरण हैं।
* यह वही भाषा है जिसे महात्मा गाँधी "हिन्दुस्तानी" के रूप में विकसित करना चाहते थे।

घरेलू जीवन और पर्व-त्योहार के बिंब

* बाल-सुलभ कल्पना: जब बच्चा चाँद के लिए ज़िद करता है, तो माँ उसे दर्पण देकर बहलाती है और कहती है, "देख आईने में चाँद उतर आया है।" यह कल्पना की शक्ति और माँ के वात्सल्य को दर्शाता है।
* दीवाली: दीवाली की शाम में पुते और सजे हुए घर, जगमगाते चीनी के खिलौने, और बच्चे के छोटे से घरौंदे में दीया जलाती माँ का चित्र एक "रूपवती मुखड़े पै इक नर्म दमक" पैदा करता है।
* रक्षाबंधन: सावन की हल्की घटाओं के बीच बहन, जिसे "रस की पुतली" कहा गया है, अपने भाई की कलाई पर "बिजली की तरह चमक रहे लच्छे" वाली राखी बाँधती है।

5. रक्षाबंधन का प्रतीकात्मक चित्रण

फ़िराक़ ने रक्षाबंधन के त्योहार को एक गहरे प्रतीकात्मक अर्थ से जोड़ा है।

* यह एक "मीठा बंधन" है, जिसके कच्चे धागों में बिजली जैसी चमक है।
* शायर भाई और बहन के संबंध की तुलना सावन की झीनी घटा और बिजली के संबंध से करते हैं, जो एक-दूसरे के पूरक हैं और एक-दूसरे को पूर्णता प्रदान करते हैं। यह चित्रण रिश्ते की पवित्रता, गहराई और ऊर्जा को व्यक्त करता है।

भाव सौन्दर्य 

पाठ में फिराक की एक गज़ल भी शामिल है। रूबाइयों की तरह ही फिराक की गजलों में भी हिंदी समाज और उर्दू शायरी की परंपरा भरपूर है। इसका अद्भुत नमूना है यह गज़ल। यह गज़ल कुछ इस तरह बोलती है कि जिसमें दर्द भी है, एक शायर की ठसक भी है और साथ ही है काव्य-शिल्प की वह ऊँचाई जो गज़ल की विशेषता मानी जाती है।


कविता पर आधारित प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1- तारे आँखें झपकावे हैं –का तात्पर्य स्पष्ट कीजिए |

उत्तर:- रात्रि का सन्नाटा भी कुछ कह रहा है।इसलिए तारे पलकें झपका रहे हैं। वियोग की स्थिति में प्रकृति भी संवाद करती प्रतीत होती है |

प्रश्न 2- ‘हम हों या किस्मत हो हमारी’ में किस भाव की अभिव्यक्ति हुई है ?

उत्तर:- जीवन की विडंबना, किस्मत को रोना-मुहावरे के प्रयोग से, सटीक अभिव्यक्ति प्राप्त करती है।कवि जीवन से संतुष्ट नहीं है | भाग्य से शिकायत का भाव इन पंक्तियों में झलकता है |

प्रश्न 3- प्रेम के किस नियम की अभिव्यक्ति कवि ने की है ?

उत्तर :-ईश्वर की प्राप्ति सर्वस्व लुटा देने पर होती है। प्रेम के संसार का भी यही नियम है|कवि के शब्दों में ,” फ़ितरत का कायम है तवाज़ुन आलमे- हुस्नो –इश्क में भी उसको उतना ही पाते हैं खुद को जितना खो ले हैं |”

i. भाव –साम्य:- कबीर -
‘सीस उतारे भुई धरे तब मिलि है करतार।‘
अर्थात -स्वयं को खो कर ही प्रेम प्राप्ति की जा सकती है।

ii. भाव साम्य- कबीर –
जिन ढूँढा तिन पाइयाँ ,गहरे पानी पैठि|
मैं बपुरा बूडन डरा ,रहा किनारे बैठि|

प्रश्न4- शराब की महफिल में शराबी को देर रात क्या बात याद आती है?

उत्तर :- शराब की महफिल में शराबी को देर रात याद आती है कि आसमान में मनुष्य के पापों का लेखा-जोखा होता है। जैसे आधी रात के समय फरिश्ते लोगों के पापों के अध्याय खोलते हैं वैसे ही रात के समय शराब पीते हुए शायर को महबूबा की याद हो आती है मानो महबूबा फरिश्तों की तरह पाप स्थल के आस पास ही है।

प्रश्न5- सदके फ़िराक–––इन पंक्तियों का अर्थ स्पष्ट कीजिए |

उत्तर :- सदके फ़िराक–––इन पंक्तियों में फ़िराक कहते हैं कि उनकी शायरी में मीर की शायरी की उत्कृष्टता ध्वनित हो रही है।

प्रश्न6- पंखुड़ियों की नाज़ुक गिरह खोलना क्या है?

उत्तर :- पँखुड़ियों की नाजुक गिरह खोलना उनका धीरे -धीरे विकसित होना है।

वय:संधि(किशोरी)नायिका के प्रस्फुटित होते सौंदर्य की ओर संकेत है |

प्रश्न 7-‘यों उड़ जाने को रंगो बू गुलशन में पर तौले है’ भाव स्पष्ट कीजिए।

उत्तर :- कलियों की सुवास उड़ने के लिए मानो पर तौल रही हो।अर्थात खुशबू का झोंका रह–रह कर उठता है।

प्रश्न 8- कवि द्वारा वर्णित रात्रि के दृश्य का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।

उत्तर :- रात्रि का सन्नाटा भी कुछ कह रहा है।इसलिए तारे पलकें झपका रहे हैं।लगता है कि प्रकृति का कण-कण कुछ कह रहा है |

प्रश्न 9- कवि अपने वैयक्तिक अनुभव किन पँक्तियों में व्यक्त कर रहा है ?

जीवन की विडंबना,-‘किस्मत को रोना‘ मुहावरे के प्रयोग से, सटीक अभिव्यक्ति प्राप्त करती है।

“हम हों या किस्मत हो हमारी दोनों को इक ही काम मिला

किस्मत हम को रो लेवे हैं हम किस्मत को रो ले हैं|”

प्रश्न10- शायर ने दुनिया के किस दस्तूर का वर्णन किया है?

उत्तर :-शायर ने दुनिया के इस दस्तूर का वर्णन किया है कि लोग दूसरों को बदनाम करते हैं परंतु वे नहीं जानते कि इस तरह वे अपनी दुष्ट प्रकृति को ही उद्घाटित करते हैं।

प्रश्न11- प्रेम की फ़ितरत कवि ने किन शब्दों में अभिव्यक्त की है?

उत्तर :- स्वयं को खो कर ही प्रेम की प्राप्ति की जा सकती है। ईश्वर की प्राप्ति सर्वस्व लुटा देने पर होती है। प्रेम के संसार का भी यही नियम है।

प्रश्न12- फ़िराक गोरखपुरी किस भाषा के कवि हैं?

उत्तर :- उर्दू भाषा ।



अर्थ-ग्रहण-संबंधी प्रश्न

आँगन में लिए चाँद के टुकड़े को खड़ी
हाथों पे झुलाती है उसे गोद-भरी
रह-रह के हवा में जो लोका देती है
गूँज उठती है खिलखिलाते बच्चे की हँसी

प्रश्न1- ‘चाँद के टुकड़े’का प्रयोग किसके लिए हुआ है? और क्यों ?

उत्तर :-बच्चे को चाँद का टुकड़ा कहा गया है जो माँ के लिए बहुत प्यारा होता है।

प्रश्न2- गोद-भरी प्रयोग की विशेषता को स्पष्ट कीजिए |

उत्तर :- गोद-भरी शब्द-प्रयोग माँ के वात्सल्यपूर्ण, आनंदित उत्साह को प्रकट करता है |यह अत्यंत सुंदर दृश्य बिंब है | सूनी गोद के विपरीत गोद का भरना माँ के लिए असीम सौभाग्य का सूचक है |इसी सौभाग्य का सूक्ष्म अहसास माँ को तृप्ति दे रहा है|

प्रश्न3- लोका देना किसे कहते हैं ?

उत्तर :- जब माँ बच्चे को बाहों में लेकर हवा में उछालती है इसे लोका देना कहते हैं|छोटे बच्चों को यह खेल बहुत अच्छा लगता है

प्रश्न4- बच्चा माँ की गोद में कैसी प्रतिक्रिया करता है?

उत्तर :- हवा में उछालने (लोका देने) से बच्चा माँ का वात्सल्य पाकर प्रसन्न होता है और खिलखिला कर हँस पड़ता है।बच्चे की किलकारियाँ माँ के आनंद को दुगना कर देती हैं|


सौंदर्य-बोध-संबंधी प्रश्न 

नहला के छलके-छलके निर्मल जल से
उलझे हुए गेसुओं में कंघी करके
किस प्यार से देखता है बच्चा मुँह को
जब घुटनियों में लेके है पिन्हाती कपड़े

प्रश्न1- प्रस्तुत पंक्तियों के भाव सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए |

उत्तर :- माँ ने अपने बच्चे को निर्मल जल से नहलाया उसके उलझे बालों में कंघी की |माँ के स्पर्श एवं नहाने के आनंद से बच्चा प्रसन्न हो कर बड़े प्रेम से माँ को निहारता है| प्रतिदिन की एक स्वाभाविक क्रिया से कैसे माँ-बच्चे का प्रेम विकसित होता है और प्रगाढ़ होता चला जाता है इस भाव को इस रुबाई में बड़ी सूक्ष्मता के साथ प्रस्तुत किया गया है|

प्रश्न2- काव्यांश में आए बिंबों को स्पष्ट कीजिए |

उत्तर :-“नहला के छलके-छलके निर्मल जल से”- इस प्रयोग द्वारा कवि ने बालक की निर्मलता एवं पवित्रता को जल की निर्मलता के माध्यम से अंकित किया है | छलकना शब्द जल की ताजा बूंदों का बालक के शरीर पर छलछलाने का सुंदर दृश्य बिंब प्रस्तुत करता है |

‘घुटनियों में लेके है पिन्हाती कपड़े’- इस प्रयोग में माँ की बच्चे के प्रति सावधानी ,चंचल बच्चे को चोट पहुँचाए बिना उसे कपड़े पहनाने से माँ के मातृत्व की कुशलता बिंबितहोती है |

“किस प्यार से देखता है बच्चा मुँह को”- पंक्ति में माँ –बच्चे का वात्सल्य बिंबित हुआ है | माँ से प्यार –दुलार ,स्पर्श –सुख, नहलाए जाने के आनंद को अनुभव करते हुए बच्चा माँ को प्यार भरी नजरों से देख कर उस सुख की अभिव्यक्ति कर रहा है |यह सूक्ष्म भाव अत्यंत मनोरम बन पड़ा है |संपूर्ण रुबाई में दृश्य बिंब है|

प्रश्न3- काव्यांश के शब्द-प्रयोग पर टिप्पणी लिखिए |

उत्तर :- गेसु –उर्दू शब्दों का प्रयोग |

घुटनियों ,पिन्हाती – देशज शब्दों के माध्यम से कोमलता की अभिव्यक्ति |

छलके –छलके –शब्द की पुनरावृत्ति से अभी –अभी नहलाए गए बच्चे के गीले शरीर का बिंब |आदि विलक्षण प्रयोग रुबाइयों को विशिष्ट बना देते हैं | हिंदी, उर्दू और लोकभाषा के अनूठे गठबंधन की झलक, जिसे गांधीजी हिंदुस्तानी के रूप में पल्लवित करना चाहते थे, देखने को मिलती है |


अर्थ-ग्रहण-संबंधी प्रश्न 

नौरस गुंचे पंखड़ियों की नाज़ुक गिरहें खोले हैं
या उड़ जाने को रंगो- बू गुलशन में पर तौले हैं |

प्रश्न1- ‘नौरस’ विशेषण द्वारा कवि किस अर्थ की व्यंजना करना चाहता है ?

उत्तर :- नौरस अर्थात नया रस ! गुंचे अर्थात कलियों में नया –नया रस भर आया है |

प्रश्न2- पंखड़ियों की नाज़ुक गिरहें खोलने का क्या अभिप्राय है ?

उत्तर :- रस के भर जाने से कलियाँ विकसित हो रही हैं |धीरे-धीरे उनकी पंखुड़ियाँ अपनी बंद गाँठें खोल रही हैं | कवि के शब्दों में नवरस ही उनकी बंद गाँठें खोल रहा है|

प्रश्न3- ‘रंगो- बू गुलशन में पर तौले हैं’ – का अर्थ स्पष्ट कीजिए|

उत्तर :- रंग और सुगंध दो पक्षी हैं जो कलियों में बंद हैं तथा उड़ जाने के लिए अपने पंख फड़फड़ा रहे हैं |यह स्थिति कलियों के फूल बन जाने से पूर्व की है जो फूल बन जाने की प्रतीक्षा में हैं |’पर तौलना’ एक मुहावरा है जो उड़ान की क्षमता आँकने के लिए प्रयोग किया जाता है |

प्रश्न4- इस शेर का भाव-सौंदर्य व्यक्त कीजिए|

उत्तर :- कलियों की नई-नई पंखुड़ियाँ खिलने लगी हैं उनमें से रस मानो टपकना ही चाहता है | वय:संधि(किशोरी)नायिका के प्रस्फुटित होते सौंदर्य का प्रतीकात्मक चित्रण अत्यंत सुंदर बन पड़ा है |

सौंदर्य-बोध-संबंधी प्रश्न 

हम हों या किस्मत हो हमारी दोनों को इक ही काम मिला
किस्मत हम को रो लेवे हैं हम किस्मत को रो ले हैं|
जो मुझको बदनाम करे हैं काश वे इतना सोच सकें
मेरा पर्दा खोले हैं या अपना पर्दा खोले हैं |



प्रश्न1- इन शेरों की भाषा संबंधी विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए |

उत्तर:-
  • i. मुहावरों का प्रयोग –किस्मत का रोना –निराशा का प्रतीक
  • ii.सरल अभिव्यक्ति, भाषा में प्रवाहमयता है, किस्मत और परदा शब्दों की पुनरावृत्तियाँ मोहक हैं|
  • iii. हिंदी का घरेलू रूप

प्रश्न2- ‘मेरा परदा खोले हैं या अपना परदा खोले हैं ‘- की भाषिक विशेषता लिखिए |

उत्तर :- मुहावरे के प्रयोग द्वारा व्यंजनात्मक अभिव्यक्ति | परदा खोलना – भेद खोलना ,सच्चाई बयान करना|

प्रश्न3- ‘हमहों या किस्मत हो हमारी ‘ –प्रयोग की विशेषता बताइए |

उत्तर :- हम और किस्मत दोनों शब्द एक ही व्यक्ति अर्थात फ़िराक के लिए प्रयुक्त हैं | हम और किस्मत में अभेद है यही विशेषता है |


निम्नलिखित काव्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर नीचे दिए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-


पठित पद्यांश संख्या -1


दीवाली की शाम घर पुते और सजे
चीनी के खिलौने जगमगाते लावे
वो रूपवती मुखड़े पै इक नर्म दमक
बच्चे के घरौंदे में जलाती है दिए
आंगन में ठुनक रहा है जिदयाया है
बालक तो हई चांद पै ललचाया है
दर्पण उसे दे के कह रही है मां
देख आईने में चांद उतर आया है


निम्नलिखित में से सही विकल्पों का चयन कीजिए-

प्रश्न- 1 दीवाली के दिन घर की साज-सज्जा कैसी होती है?

  1. अस्त व्यस्त
  2. साफ सुंदर पुते हुए घर
  3. बच्चों के खिलौने घरों में फैले हुए
  4. अस्वच्छ

प्रश्न-2 दीवाली के दिन माता बच्चों को क्या लाकर देती है?

  1. कपड़े
  2. मिठाई
  3. चीनी मिट्टी के खिलौने
  4. चीनी के खिलौने

प्रश्न- 3 दिए जलाते समय बच्चे के लिए माता के चेहरे पर कैसा भाव आता है?

  1. कोमलता का
  2. शिथिलता का
  3. स्तब्धता का
  4. असमंजसता का

प्रश्न- 4 दीवाली का उत्सव किसका प्रतीक माना जाता है?

  1. दीपक जलाने का
  2. घर की साज-सज्जा का
  3. घर की साफ सफाई का
  4. उपर्युक्त सभी

प्रश्न- 5 बच्चे के घरौंदे में दीपक कौन जलाता है?

  1. रूपवती सखी
  2. मित्र
  3. माता
  4. सहयोगी

उत्तर – 

1-साफ सुंदर पुते हुए घर, 
2- चीनी के खिलौने, 
3- कोमलता का ,
4- उपर्युक्त सभी,
5- माता



पठित पद्यांश संख्या -2

नौरस गुंचे पंखुड़ियों की नाजुक गिरहें खोले हैं
या उड़ जाने को रंगो – बू गुलशन में पर तोले हैं
तारे आंखें झपकावें हैं जर्रा- जर्रा सोए हैं
तुम भी सुनो हो यारो ! शब में सन्नाटे कुछ बोले हैं


निम्नलिखित में से निर्देशानुसार विकल्पों का चयन कीजिए-


प्रश्न- 1 प्रथम दो पंक्तियों में कवि ने किसके सौंदर्य का सुंदर वर्णन किया है?

  1. नायिका का
  2. प्रकृति का
  3. आकाश का
  4. बगीचे का

प्रश्न- 2 वसंत ऋतु के आगमन से नवीन कलियों में किस तरह का परिवर्तन दिखाई पड़ता है?


  1. कलियां नवीन रस से युक्त हैं
  2. कलियां मुरझाई हुई है
  3. कलियां खुशबू विहीन है
  4. कलियां कठोर है

प्रश्न- 3 कलियां पल्लवित होकर किस प्रकार के परिवर्तन से ओतप्रोत हो जाना चाहतीं हैं?


  1. कलियां वातावरण में उड़ना चाहती हैं
  2. मौसम की मार से डर जाती हैं
  3. खुशबू को वातावरण में फैलाना चाहती हैं
  4. अपनी पंखुड़ियों को समेटना चाहती हैं

प्रश्न- 4 रात में किसके बोलने की बात की जा रही है?


  1. तारों के बोलने की
  2. लोगों के बोलने की
  3. सन्नाटा के बोलने की
  4. देवदूतों के बोलने की

प्रश्न- 5 शायर अपनी भावाभिव्यक्ति के माध्यम से किसे संबोधित कर रहा है?


  1. तारों को
  2. सन्नाटा को
  3. मित्रों को
  4. रात को

उत्तर-

1- प्रकृति का, 
2- कलियां नवीन रस से युक्त हैं, 
3- खुशबू को वातावरण में फैलाना चाहती हैं,
4- सन्नाटा के बोलने की ,
5- मित्रों को


लघुत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. बच्चा कब प्रसन्नता का अनुभव महसूस करता है?
उत्तर: जब माँ अपने बच्चे को उछाल-उछाल कर प्यार करती है तो बच्चे की हँसी सबसे ज्यादा गूँजती है। बच्चा खुले वातावरण में बहुत खुशी महसूस करता है। जब वह ऊपर की ओर बार-बार उछलता है तो वह रोमांचित हो उठता है।

प्रश्न-2 कवि ने ‘चाँद का टुकड़ा’ किसे कहा है और क्यों?
उत्तर- कवि ने चाँद का टुकड़ा माँ की गोद में खेल रहे बच्चे को कहा है क्योंकि वह चाँद के समान ही सुंदर है।

प्रश्न-3 कवि तथा किस्मत क्या कार्य करते हैं?
उत्तर- कवि अपनी दयनीय दशा के लिए भाग्य को दोषी ठहराता है तथा किस्मत उसकी अकर्मण्यता को देखकर झल्लाती है। दोनों एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहराते हैं।


प्रश्न-4 निन्दक किन्हें कहते हैं? वे किसे बदनाम करना चाहते हैं?
उत्तर- निंदक वे लोग होते हैं जो अकारण दूसरों की कमियों को बिना सोचे-समझे दूसरों के समक्ष प्रस्तुत कर देते हैं। ऐसे लोग कवि को बदनाम करना चाहते हैं।

प्रश्न-5 बच्चे को लेकर माँ के किन क्रियाकलापों का चित्रण किया गया हैं? उनसे उसके किस भाव की अभिव्यक्ति हो रही है?
उत्तर - बच्चे को लेकर माँ आँगन में खड़ी है। वह हँसाने के लिए बच्चे को हवा में झुला रही है, लोका दे रही है। इन क्रियाओं से प्रेम और वात्सल्य के साथ ही उसकी ममता की अभिव्यक्ति हो रही है।




डिप्टी कलेक्टर, अंग्रेज़ी प्रोफ़ेसर, और क्रांतिकारी
 फ़िराक़ गोरखपुरी के अनसुने सच


परिचय

जब हम उर्दू शायरी का ज़िक्र करते हैं, तो अक्सर हमारे ज़हन में रुमानियत, रहस्य और शास्त्रीयता की एक बंधी-बंधाई तस्वीर उभरती है। लेकिन कुछ शायरों ने इस रिवायत को तोड़ा और शायरी को आम लोगों के जीवन और ज़मीन से जोड़ दिया। उन्हीं में एक शिखर नाम है—फ़िराक़ गोरखपुरी। फ़िराक़ सिर्फ़ एक शायर नहीं थे, बल्कि एक ऐसी शख़्सियत थे जिनका जीवन उनकी शायरी की तरह ही असाधारण और क्रांतिकारी था। उनकी शायरी और ज़िंदगी के पहलू आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने कल थे।

फ़िराक़ गोरखपुरी के बारे में चार चौंकाने वाले सच

वह डिप्टी कलेक्टर जो देश के लिए जेल गया

यह जानकर शायद आपको हैरानी होगी कि शायरी की दुनिया के इस बेताज बादशाह, रघुपति सहाय 'फ़िराक़' का चयन 1917 में डिप्टी कलेक्टर के प्रतिष्ठित पद के लिए हुआ था। लेकिन देश की आज़ादी का जुनून उन पर इस क़दर हावी था कि उन्होंने 1918 में स्वराज आंदोलन के लिए इस बड़े पद से इस्तीफ़ा दे दिया।

यही नहीं, 1920 में स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लेने के कारण उन्हें डेढ़ साल के लिए जेल भी जाना पड़ा। यह महज़ एक जीवनी का तथ्य नहीं, बल्कि उनके चरित्र का वह foundational act है, जो उनकी पूरी शायरी में गूँजता है। उस दौर में जहाँ अंग्रेज़ी हुकूमत का दिया पद सत्ता और आराम का प्रतीक था, फ़िराक़ ने एक क्रांतिकारी की तरह जेल की कोठरी को चुना। यह निर्णय हमें बताता है कि उनके लिए देश का सम्मान एक आरामदायक करियर से कहीं बढ़कर था।

अंग्रेज़ी का प्रोफ़ेसर जिसने 'हिन्दुस्तानी' को जिया

फ़िराक़ गोरखपुरी की ज़िंदगी का एक और दिलचस्प पहलू यह है कि वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अंग्रेजी विभाग के अध्यापक थे। अंग्रेजी साहित्य का विद्वान होने के बावजूद उनकी शायरी की आत्मा विशुद्ध भारतीय थी। उन्होंने अपनी शायरी में हिंदी, उर्दू और लोकभाषा का ऐसा अनूठा गठजोड़ तैयार किया, जिसे गांधी जी 'हिन्दुस्तानी' के रूप में विकसित करना चाहते थे।
उनकी शायरी में लोका देना, गेसुओं में कंघी करना, रूपवती मुखड़ा, रस की पुतली, नर्म दमक और ज़िदयाया बालक जैसे ठेठ घरेलू और लोकभाषा के प्रयोग मिलते हैं। यह उनकी असाधारण क्षमता को दिखाता है, जहाँ एक अंग्रेजी का प्रोफ़ेसर अपनी जड़ों से इतनी गहराई से जुड़ा था कि उसने आम बोलचाल की भाषा को शायरी के शिखर पर पहुँचा दिया।

जिसने भौतिकता में दिव्यता खोजी

फ़िराक़ का दर्शन पारंपरिक रहस्यवादी शायरों से बिल्कुल अलग था। वे मानते थे कि दिव्यता कोई आसमान से उतरी हुई चीज़ नहीं, बल्कि इसी भौतिक जगत में मौजूद है। उन्होंने प्रकृति, मौसम और भौतिक जगत के सौंदर्य को अपनी शायरी का विषय बनाया और साबित किया कि रोज़मर्रा के जीवन में भी ईश्वर को महसूस किया जा सकता है।
इस विषय में उनका दृष्टिकोण उनके इस कथन से स्पष्ट हो जाता है:
दिव्यता भौतिकता से पृथक् वस्तु नहीं है। जिसे हम भौतिक कहते हैं वही दिव्य भी है।

शायरी को घर-आँगन तक लाने वाला शायर

फ़िराक़ ने उर्दू शायरी को पारंपरिक विषयों से निकालकर उसे घर-आँगन से जोड़ दिया। उनकी रुबाइयों में हिंदी का एक घरेलू रूप दिखाई देता है। उन्होंने अपनी शायरी में उन दृश्यों को जगह दी जो हर भारतीय घर का हिस्सा हैं—चाँद के टुकड़े जैसे बच्चे को गोद में लेकर खिलाती माँ और चीनी-मिट्टी के खिलौनों से जगमगाती दिवाली की शाम।

बच्चों के मन के भावों और वात्सल्य का उन्होंने इतना सहज वर्णन किया है कि वह सूरदास की सादगी की याद दिलाता है। उन्होंने एक माँ द्वारा बच्चे को आईने में चाँद का अक्स दिखाकर बहलाने (देख आईने में चाँद उतर आया है) जैसे साधारण पलों को अपनी शायरी में अमर कर दिया। रक्षाबंधन पर उनकी दृष्टि देखिए, जहाँ वह एक धागे को ब्रह्मांड से जोड़ देते हैं: "सावन का जो सम्बंध झीनी घटा से है, घटा का जो सम्बंध बिजली से, वही सम्बंध भाई का बहन से।" इस एक पंक्ति में वे बहन-भाई के रिश्ते को प्रकृति की सबसे पावन और शक्तिशाली छवियों के बराबर खड़ा कर देते हैं।

निष्कर्ष

फ़िराक़ गोरखपुरी की विरासत केवल उनकी शायरी तक सीमित नहीं है। उन्होंने सामाजिक दुख-दर्द और भविष्य की उम्मीदों को भारतीय संस्कृति और लोकभाषा के प्रतीकों से जोड़कर एक नयी काव्यात्मक व्याकरण गढ़ी। उन्होंने शायरी को कुलीन महफ़िलों से निकालकर आम इंसान की अनुभूति बना दिया।
आज के दौर में, जब भाषाएँ अक्सर दीवारों में बँट जाती हैं, फ़िराक़ की सहज 'हिन्दुस्तानी' हमें क्या सिखा सकती है?








जय हिन्द : जय हिंदी 
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