apathit padyansh in hindi
अपठित पद्यांश / काव्यांश
निम्नलिखित पंक्तियों को पढ़कर निचे दिए गए प्रश्नों के सही उत्तर दीजिए -
अरुण यह मधुमय देश हमारा।जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज कोमिलता एक सहारा।
सरस तामरस गर्भ विभा परनाच रही तरु शिखा मनोहर।
छिटका जीवन हरियाली परमंगल कुंकुम सारा।
लघु सुरधनु से पंख पसारेशीतल मलय समीर सहारे।
उड़ते खग जिस ओर मुँह कियेसमझ नीड़ निज प्यारा।
बरसाती आँखों के बादलबनते जहाँ भरे करुणा जल।
लहरें टकराती अनंत कीपाकर जहाँ किनारा।
हेम-कुंभ ले उषा सवेरेभरती ढुलकाती सुख मेरे ।
मदिर ऊँघते रहते जबजगकर रजनी भर तारा।
(क) प्रस्तुत काव्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) इस काव्यांश में भारत देश की क्या विशेषताएँ बताई गई हैं?
(ग) “हेम-कुंभ’ में प्रयुक्त अलंकार का नाम व लक्षण लिखिए।
(घ) “छिटका जीवन हरियाली पर मंगल कुंकुम सारा’-का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
(क) काव्यांश का उचित शीर्षक – ‘मधुमय देश हमारा।’
(ख) भारत सब के प्रति मधुर व्यवहार करने वालों का देश है। यहाँ अपरिचित विदेशियों को भी सहारा मिलता है। भारत की प्रकृति अत्यन्त मनोहर है। मनुष्य ही नहीं पक्षी भी इस देश को अपना निवास मानकर प्यार करते। हैं। भारत में बादल करुणा का जल बरसाते हैं। यहाँ का प्रभातकालीन सौन्दर्य अनुपम होता है।
(ग) “हेम-कुंभ’ में रूपकातिशयोक्ति अलंकार है। लक्षण-जहाँ कवि किसी दृश्य अथवा वस्तु का वर्णन करने में केवल उपमानों का आश्रय लेता है, वहाँ ‘रूपकातिशयोक्ति अलंकार होता है। इस पंक्ति में ‘हेम कुंभ’ प्रात:काल के सुनहरे सूर्य के लिए प्रयुक्त हुआ है।
(घ) प्रात:कालीन सूर्य की धूप हरे-भरे मैदानों पर पड़ रही है। प्रात:काल का सूर्योदय नवजीवन, आशा, उल्लास
और सफलता का सूचक है। ऐसा लगता है कि उषा ने सूर्य-किरणों की रोली जीवन-जगत पर छिड़ककर मंगलकारी काम किया है।
और सफलता का सूचक है। ऐसा लगता है कि उषा ने सूर्य-किरणों की रोली जीवन-जगत पर छिड़ककर मंगलकारी काम किया है।
----------------------------
निम्नलिखित अपठित काव्य को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों का उत्तर दीजिए-
ईश्वर के बारे में
अनगिनती लोगों ने
अनगिन तरीकों से बखाना है।
उसको अपने ढंग से
अपने-अपने रंग में अनुमाना है।
मैंने जो कुछ बुजुर्गों से गुना है,
देखा-पढ़ा या सुना है,
उससे इतना ही जाना है,
ईश्वर के बारे में
बस इतना माना है
कि तुम भी ईश्वर हो
ये भी ईश्वर हैं,
मैं भी ईश्वर हूँ।
यानी
हम सब के सब ईश्वर हैं।
तो ऐसे रहें।
जैसे भाई-भाई रहते हैं,
प्यार से।
एक-दूसरे को
दलें नहीं, छलें नहीं,
क्योंकि
तुम, ये और मैं,
यानी
हम सब के सब ही तो
ईश्वर हैं।
(क) प्रस्तुत काव्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) ईश्वर के सम्बन्ध में अनेक लोगों के क्या विचार हैं?
(ग) कवि के ईश्वर सम्बन्धी विचार क्या हैं?
(घ) प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने क्या संदेश दिया है।
-----------------------------
निम्नलिखित अपठित काव्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों का उत्तर दीजिए-
सबसे विराट जनतंत्र जगत का आ पहुँचा,
देवता कहीं सड़कों पर मिट्टी तोड़ रहे,
तैंतीस कोटि हित सिंहासन तैयार करो,
देवता मिलेंगे खेतों में, खलिहानों में।
अभिषेक आज राजा का नहीं, प्रजा का है,
फावड़े और हल राजदण्ड बनने को हैं,
तैंतीस कोटि जनता के सिर पर मुकुट धरो।
धूसरता सोने से श्रृंगार सजाती है;
आरती लिए तू किसे ढूँढ़ता है मूरख
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
मंदिरों, राजप्रासादों में, तहखानों में ?
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
(क) प्रस्तुत काव्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) “तैंतीस कोटि-हित” से क्या तात्पर्य है?
(ग) देवता के यहाँ पर मिलने की क्या सम्भावना व्यक्त की गई है?
(घ) कवि सिंहासन किसके लिए व क्यों खाली कराना चाहता है?
उत्तर:
(क) काव्यांश का उचित शीर्षक-‘जनतंत्र की महत्ता’।
(ख) तैंतीस कोटि से आशय भारतीय जनता है। भारत के ये करोड़ों-करोड़ लोग ही भारतीय जनतंत्र के सच्चे शासक हैं। कवि उनको सत्ता का अधिकार सौंपने का संदेश दे रहा है।
(ग) देवता मंदिरों में और राजमहलों में नहीं रहते। जनतंत्र के देवता किसान-मजदूर होते हैं। वे खेतों में और कारखानों में ही मिलते हैं। उनको वहीं पर देखा जा सकता है।
(घ) कवि सिंहासन देश की जनता के लिए खाली कराना चाहता है। भारत में जनतंत्र की स्थापना होने के पश्चात वहाँ राजा-महाराजाओं का अधिकार सत्ता से समाप्त हो चुका है। देश की असली शासक देश की जनता है।
-----------------------------
निम्नलिखित अपठित काव्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों का उत्तर दीजिए-
यह सच है तो अब लौट चलो तुम घर को।
चौंके सब सुनकर अटल कैकेयी-स्वर को।
सब ने रानी की ओर अचानक देखा,
वैधव्य-तृषारावृता तथापि विधु-लेखा।।
बैठी थी अचल तथापि असंख्य तरंगा,
वह सिंही अब थी हहा। गौमुखी गंगा
हाँ जनकर भी मैंने न भरत को जाना,
सब सुन लें तुमने स्वयं अभी यह माना।
यह सच है तो फिर लौट चलो घर भैया,
अपराधिन मैं हूँ तात; तुम्हारी मैया।
दुर्बलता का ही चिह्न विशेष शपथ है,
पर अबला जन के लिए कौन-सा पथ है?
(क) प्रस्तुत काव्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) सभा में सभी किसको स्वर सुनकर चौंक गए?
(ग) सभा में रानी कैकेयी कैसी दिखाई दे रही थी?
(घ) रानी कैकेयी ने राम से क्या कहा?
उत्तर:
(क) काव्यांश का उचित शीर्षक-‘रानी कैकेयी का पश्चात्ताप ।
(ख) राम के कथन के उत्तर में रानी कैकेयी ने जब कुछ कहा तो उसका स्वर सुनकर सभा में उपस्थित सभी लोग चौंक पड़े।
(ग) सभा में रानी कैकेयी विधवा होने के कारण तेजहीन दिखाई दे रही थी, वह उसी प्रकार तेजविहीन दिखाई दे रही थी जिस प्रकार पाला पड़ने पर चन्द्रमा की चाँदनी फीकी पड़ जाती है।
(घ) रानी कैकेयी ने राम से कहा- मैं जन्म देकर भी भरत को जान न सकी। अतः मुझसे तुम्हारे अधिकार के हनन का पाप हो गया। तुम मान चुके हो कि दोष भरत की नहीं है। अतः अब तुम अयोध्या लौट चलो।
जय हिन्द : जय हिंदी
----------------------------
0 Comments