kabir sakhi class 10 course b | कबीर साखी class 10 कोर्स बी

kabir sakhi class 10 course b



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 kabir sakhi class 10 course b 



साखी का सार


‘साखी ‘ दोहा छंद है, जिसका लक्षण है – 13 और 11 मात्रा के विश्राम से 24 मात्रा और अंत में जगण ।’साखी ‘ शब्द ‘ साक्षी ‘ शब्द का ही तद्भव रूप है। साक्षी का अर्थ होता है -प्रत्यक्ष ज्ञान अर्थात जो ज्ञान सबको स्पष्ट दिखाई दे। यह प्रत्यक्ष ज्ञान गुरु द्वारा शिष्य को प्रदान किया जाता है।

कबीर की साखियों में नीति संदेश हैं, यह साखियाँ हमें जहाँ व्यावहारिक ज्ञान देती हैं, वहीं हमें जीवन मूल्यों से भी परिचित करवाती हैं | कबीर की साखियों में ईश्वर प्रेम के महत्त्व को दर्शाया गया हैं।


पहली साखी में बताया गया है कि मीठी वाणी दूसरों को सुख और अपने तन को शीतलता पहुँचाती है।

दूसरी साखी में कबीरदास जी कहते हैं कि ईश्वर को मंदिरों और तीर्थों में ढूँढने की आवश्यकता नहीं है उसे अपने मन में ढूँढना चाहिए, ईश्वर का वास तो मनुष्य के हृदय में ही है।

चौथी साखी में अज्ञान रूपी अहंकार के मिटने पर ईश्वर प्राप्ति के महत्त्व पर प्रकाश डाला है।

पाँचवी साखी में कबीरदास जी संसार को सुखी और स्वयं को दुखी बताते हुए कहते हैं कि प्रभु को पाने की आशा उन्हें संसार के लोगो से अलग करती है। राम (ईश्वर) के वियोग में व्याकुल व्यक्ति जीवित नहीं रह सकता, अगर रहता भी है तो उसकी स्थिति पागलों जैसी हो जाती है।

छठी साखी में कबीरदास जी ने निंदक के महत्त्व को प्रतिपादित किया है । निंदा करने वालों के सामीप्य से मनुष्य के स्वभाव में सकारात्मक परिवर्तन आ जाता हैं।

सातवीं साखी में विद्या के साथ -साथ व्यावहारिकता की आवश्यकता पर बल दिया गया है 

आठवीं साखी में कबीर सांसारिक मोहमया को त्यागने पर बल देते हुए कहते हैं कि यदि ज्ञान प्राप्त करना है तो मोह – माया का त्याग करना पड़ेगा |



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साखियों की व्याख्या

ऐसी बाँणी बोलिये ,मन का आपा खोइ।
अपना तन सीतल करै ,औरन कौ सुख होइ।।

 

शब्दार्थ 

  • बाँणी – बोली
  • आपा – घमंड, अहंकार
  • खोइ – खोना, त्याग करना
  • सीतल – शीतल, ठंडा , अच्छा

  • तन – शरीर
  • औरन – दूसरों को
  • होइ -होना



व्याख्या – इस साखी में कबीर ने मीठी बोली बोलने और दूसरों को दुःख न देने की बात कही है। कबीरदास जी बात करने की कला के महत्त्व को दर्शाते हुए कहते है कि हमें अपने मन का अहंकार त्याग कर ऐसी भाषा का प्रयोग करना चाहिए जिससे हमारे मन को शांति मिले, हमारा अपना तन- मन भी स्वस्थ रहे और दूसरों को भी सुख प्राप्त हो अर्थात दूसरों को भी कोई कष्ट न हो ।



कस्तूरी कुंडली बसै ,मृग ढूँढै बन माँहि।
ऐसैं घटि- घटि राँम है , दुनियाँ देखै नाँहिं।


शब्दार्थ 

  • कस्तूरी – एक सुगंधित पदार्थ
  • कुंडली – नाभि
  • मृग – हिरण
  • वन – जंगल
  • माँहि – भीतर
  • घटि घटि – कण-कण में



व्याख्या – कबीरदास जी ईश्वर की महत्ता स्थापित करने हेतु , कस्तूरी का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए कहते है कि कस्तूरी हिरण की नाभि में स्थित होती है परन्तु वह इस बात से अनजान होता है और उसे खोजने के लिए जंगल-जंगल भटकता रहता है। कुछ ऐसी ही स्थिती मनुष्य की है ईश्वर प्रत्येक मनुष्य के हृदय में निवास करते हैं परन्तु मनुष्य इस बात से अनजान हैं । संसार के कण-कण में ईश्वर विद्यमान है और मनुष्य इस बात से बेखबर ईश्वर को देवालयों और तीर्थों में ढूँढता है। कबीर जी कहते है कि अगर ईश्वर को ढूँढना ही है तो अपने मन मंदिर में ढूँढो।


जब मैं था तब हरि नहीं ,अब हरि हैं मैं नांहि।
सब अँधियारा मिटी गया , जब दीपक देख्या माँहि।।

शब्दार्थ 

  • मैं – अहम् ,अहंकार
  • हरि – परमेश्वर
  • अँधियारा – अज्ञान का अंधकार
  • मिटि गया – मिट गया
  • देख्या – देखना



व्याख्या – इसमें कबीरदास जी कहते हैं कि जब तक मनुष्य के मन में अहंकार हावी रहता है तब तक उसे ईश्वर की प्राप्ति नहीं हो सकती । मन में अहम् या अहंकार के मिट जाने के बाद ही मन में परमेश्वर का वास संभव है। कबीर जी कहते हैं कि जब इस हृदय में ‘मैं ‘ अर्थात मेरा अहंकार था तब इसमें परमेश्वर का वास नहीं था परन्तु अब हृदय में अहंकार नहीं है तो इसमें प्रभु का वास है। अहंकार का त्याग करने पर ही ईश्वर की प्राप्ति व सच्चा ज्ञान प्राप्त होता है ।



सुखिया सब संसार है , खायै अरु सोवै।
दुखिया दास कबीर है , जागै अरु रोवै।।

शब्दार्थ 

  • सुखिया – सुखी
  • खायै – खाता है
  • अरु – और
  • सोवै – सोता है
  • दुखिया – दुःखी
  • रोवै – रोता है




व्याख्या – कबीरदास जी कहते हैं कि पूरा संसार विषय वासनाओं और मस्ती में लगा हुआ है । संसार के लोग स्वयं को सुखी मानते हैं, वे केवल खाते है, सोते हैं और चिंतारहित हैं । कबीरदास जी अज्ञान रूपी अंधकार में सोए हुए मनुष्यों को देखकर दुःखी हैं और रो रहे हैं।

कबीर कहते हैं कि संसार के लोग अज्ञान रूपी अंधकार में डूबे हुए हैं अपनी वास्तविकता से अनजान सोए हुए हैं। ये सब देखकर कबीर दुखी हैं और वे रो रहे हैं। वे प्रभु को पाने की आशा में हमेशा चिंता में जागते रहते हैं। इस साखी में कबीर ने चिंतनशील व्यक्ति के दुख और व्याकुलता का चित्रण किया है।



बिरह भुवंगम तन बसै , मंत्र न लागै कोइ।
राम बियोगी ना जिवै ,जिवै तो बौरा होइ।।

शब्दार्थ 

  • बिरह – वियोग, बिछड़ने का गम
  • भुवंगम -भुजंग, सांप
  • तन – शरीर
  • बसै – बसता है
  • मंत्र – उपाय
  • जिवै – जीता हैं
  • बौरा – पागल
  • होइ – हो जाता है



व्याख्या –कबीर कहते हैं कि विरह रूपी साँप जिस मनुष्य के शरीर में निवास करता है उस पर किसी प्रकार के उपाय या मंत्र का प्रभाव नहीं होता अर्थात् ईश्वर के वियोग में मनुष्य जीवित नहीं रह सकता और अगर रह भी जाता है तो वह पागल हो जाता है। कबीर कहते हैं कि जब मनुष्य के मन में अपनों के बिछड़ने का गम साँप बनकर निवास करने लगता है तो उस पर कोई मन्त्र असर नहीं करता ।

उसी तरह राम अर्थात ईश्वर के वियोग में मनुष्य जीवित नहीं रह सकता और यदि वह जीवित रहता भी है तो उसकी स्थिति पागलों जैसी हो जाती है। यहाँ कवि ने वियोग की तुलना साँप से की है तथा ईश्वर वियोगी की दयनीय स्थिती का चित्रण किया है।



निंदक नेड़ा राखिये , आँगणि कुटी बँधाइ।
बिन साबण पाँणीं बिना , निरमल करै सुभाइ।।

शब्दार्थ 

  • निंदक – बुराई करने वाला
  • नेड़ा – निकट
  • आँगणि – आँगन
  • कुटी – कुटिया
  • साबण – साबुन
  • निरमल – साफ़
  • सुभाइ – स्वभाव




व्याख्या – इसमें कबीरदास जी निंदा करने वाले व्यक्तियों को हमेशा आस – पास रखने की सलाह देते हैं, वह कहते हैं कि हो सके तो उनके लिए अपने पास ही रहने का उचित प्रबंध कर देना चाहिए ताकि आपके स्वभाव में सकारात्मक परिवर्तन आ सके ताकि हम उनके द्वारा बताई गई गलतियों को सुधार सकें और अपना व्यवहार सुदृढ़ बना सके । इससे हमारा स्वभाव बिना साबुन और पानी की मदद के ही निर्मल हो जाएगा ।



पोथी पढ़ि – पढ़ि जग मुवा , पंडित भया न कोइ।
ऐकै अषिर पीव का , पढ़ै सु पंडित होइ।

शब्दार्थ 

  • पोथी – पुस्तक
  • मुवा – मरना
  • भया – बनन
  • अषिर – अक्षर
  • पीव – प्रिय




व्याख्या – कबीरदास जी कहते हैं कि मोटी-मोटी पुस्तक और धार्मिक ग्रंथ पढ़ने से कोई ज्ञानी नहीं बन जाता, इसमें कबीर पुस्तकीय ज्ञान को महत्त्व न देकर ईश्वर – प्रेम को महत्त्व देते हैं। कबीर कहते है कि इस संसार में मोटी – मोटी किताबें पढ़कर कई मनुष्य मर गए परन्तु कोई भी ज्ञानी नहीं बन सका, जो व्यक्ति ईश्वर -प्रेम का एक अक्षर भी पढ़ लेता है तो वह बड़ा ज्ञानी बन जाता है । ईश्वर के सत्य और सत्ता को जान लेने वाला व्यक्ति ही वास्तविक ज्ञानी होता है । पुस्तकीय ज्ञान की अपेक्षा व्यावहारिक ज्ञान ही उत्तम है।


हम घर जाल्या आपणाँ , लिया मुराड़ा हाथि।
अब घर जालौं तास का, जे चलै हमारे साथि।।

शब्दार्थ 

  • जाल्या – जलाया
  • आपणाँ – अपना
  • मुराड़ा – जलती हुई लकड़ी , ज्ञान
  • जालौं – जलाऊँ
  • तास का – उसका
  • जे – जो
  • साथि – साथ



व्याख्या – कबीरदास जी कहते हैं कि पहले हमने अपना घर जलाया अर्थात सांसारिक विषय वासनाओं, मोह – माया का त्याग किया, अब भक्ति प्रेम और भाईचारे का संदेश उसे भी देंगे जो हमारे साथ चलेगा। इसमें कबीर मोह – माया रूपी घर को जला कर अर्थात त्याग कर ज्ञान को प्राप्त करने की बात करते हैं।

कबीर जी कहते हैं कि उन्होंने अपने हाथों से अपना घर जला दिया है अर्थात उन्होंने मोह -माया रूपी घर को जला कर ज्ञान प्राप्त कर लिया है। अब उनके हाथों में जलती हुई मशाल ( लकड़ी ) है यानि ज्ञान है। अब वे उसका घर जलाएँगे जो उनके साथ चलना चाहता है अर्थात उसे भी मोह – माया से मुक्त होना होगा जो ज्ञान प्राप्त करना चाहता है।




1. 

ऐसी बाँणी बोलिये, ... औरन कौ सुख होइ।।
कस्तूरी कुंडलि बसै, ... दुनियाँ देखै नाँहि।।


क. मनुष्य को कैसी वाणी बोलनी चाहिए?
उत्तर: मनुष्य को मीठी वाणी बोलनी चाहिए|

ख. मीठी वाणी बोलने से सुनने वालों पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर: मीठी वाणी बोलने से सुनने वालों को सुख और शान्ति प्राप्त होती है|

ग. मृग कस्तूरी को कहाँ ढूँढता रहता है?
उत्तर: मृग कस्तूरी को जंगल में ढूँढता रहता है|

घ. अज्ञानी व्यक्ति ईश्वर को कहाँ-कहाँ ढूँढता है?
उत्तर: अज्ञानी व्यक्ति ईश्वर को विभिन्न धार्मिक स्थानों में ढूँढता रहता है|



2. 

जब मैं था तब हरि नहीं, ... जब दीपक देख्या माँहि।।
सुखिया सब संसार है, .... जागै अरु रोवै।।


क. मनुष्य को ईश्वर की प्राप्ति कब होती है?
उत्तर: जब मनुष्य के मन से अंहकार का नाश होता है तब ईश्वर की प्राप्ति होती है|

ख. दीपक जलाने से क्या होता है?
उत्तर: दीपक जलाने से आस-पास का अन्धकार मिट जाता है और प्रकाश फ़ैल जाता है|

ग. कबीर के अनुसार दुनिया क्यों सुखी है?
उत्तर: कबीर के अनुसार दुनिया इसलिए सुखी है क्योंकि वो केवल खाने और सोने का काम करती है, उन्हें किसी प्रकार की चिंता नहीं है|

घ. कबीर क्यों दुखी हैं?
उत्तर: कबीर इसलिए दुखी हैं क्योंकि प्रभु को पाने की आशा में हमेशा चिंता में रहते हैं।


3.

बिरह भुवंगम तन बसै, ... जिवै तो बौरा होइ।।
निंदक नेडा राखिये, ... निरमल करै सुभाइ।।


क. किस स्थिति में व्यक्ति पर कोई मन्त्र का असर नहीं होता?
उत्तर: जब किसी मनुष्य के शरीर के अंदर अपने प्रिय से बिछड़ने का साँप बसता है तब उसपर कोई मन्त्र का असर नहीं होता|

ख. ईश्वर वियोगी की हालत कैसी हो जाती है?
उत्तर: ईश्वर वियोगी की दशा पागलों की तरह हो जाती है?

ग. निंदा करने वाले व्यक्ति को कहाँ रखना चाहिए?
उत्तर: निंदा करने वाले व्यक्ति को सदा अपने पास रखना चाहिए|

घ. हम बिन साबुन-पानी के निर्मल कैसे रह सकते हैं?
उत्तर: निंदक को सदा अपने पास रखकर हम बिन साबुन-पानी के निर्मल रह सकते हैं|


4. 

पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुवा, ... पढ़ै सु पंडित होई।।
हम घर जाल्या आपणाँ, ... जे चले हमारे साथि।।


क. कबीर के अनुसार कौन ज्ञानी नहीं बन पाया?
उत्तर: कबीर के अनुसार मोटी-मोटी पुस्तकें पढ़ने वाले व्यक्ति ज्ञानी नहीं बन पाए|

ख. कबीर के अनुसार पंडित कौन है?
उत्तर: कबीर के अनुसार जिसने प्रभु का एक अक्षर भी पढ़ लिया है, वह पंडित है|

ग. कबीर ने ज्ञान कैसे प्राप्त किया है?
उत्तर: कबीर ने मोह-माया रूपी घर को जलाकर ज्ञान प्राप्त किया है|

घ. कबीर के अनुसार ज्ञान प्राप्त करने के लिए क्या करना होगा?
उत्तर: कबीर के अनुसार ज्ञान प्राप्त करने के लिए मोह-माया के बंधनों से आजाद होना होगा|


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1. मीठी वाणी बोलने से क्या होता है?
उत्तर: मीठी वाणी बोलने से सुनने वाले के मन से क्रोध और घृणा की भावना का नाश होता हैं। साथ ही खुद के तन और अपने हृदय को भी शीतलता मिलता है।

2. मृग कस्तूरी को वन में क्यों ढूँढता रहता है?
उत्तर: कस्तूरी हिरण के नाभि में होती है परन्तु इस बात से अनजान हिरन कस्तूरी के सुगंध में मोहित होकर वन में ढूँढता रहता है|

3. ईश्वर कहाँ निवास करता है और मनुष्य उसे कहाँ ढूँढता है?
उत्तर: ईश्वर प्रत्येक मनुष्य के हृदय में निवास करता है परन्तु अज्ञानता के कारण मनुष्य उसे देख नहीं पाता इसलिए मनुष्य ईश्वर को मंदिर-मस्जिद, गुरुद्वारे और तीर्थ स्थलों में जाकर ढूँढता है।

4. हमें निंदक को अपने पास क्यों रखना चाहिए?
उत्तर: हमें निंदक को अपने पास रखना चाहिए क्योंकि वे हमारे बुराइयों को बतायेंगे जिसे सुनकर हम उन बुराइयों को दूर कर पायेंगे| इस तरह हमारा स्वभाव बिना साबुन-पानी के स्वच्छ हो जाएगा|

5. कबीर की साखियों का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर: कबीर की साखियों का मुख्य उद्देश्य जीवन को सही तरीके से जीने की शिक्षा देना है| कबीर ने इन साखियों में अपने प्रत्यक्ष ज्ञान का संकलन किया है जिससे मनुष्य जीवन के आदर्श मूल्यों को सीख सकता है| इनमें कबीर ने आडंबरों पर गहरी चोट की है और जीवन वास्तविक उद्देश्य यानी ईश्वर को जानने पर ध्यान दिया है|

6. कबीर के अनुसार सच्चा ज्ञान क्या है?
उत्तर: कबीर के अनुसार पुस्तकों द्वारा पाया गया ज्ञान व्यर्थ है| सच्चा ज्ञान ईश्वर को जानना है क्योंकि वही एकमात्र सत्य है और कण-कण में व्याप्त है|

7. 'ज्ञान प्राप्ति' का मार्ग कठिन क्यों है?
उत्तर: 'ज्ञान प्राप्ति' का मार्ग कठिन इसलिए है क्योंकि इसपर चलने के लिए हमें मोह-माया के बंधनों से आजाद होना पड़ता है| सुख और इससे जुड़ी सामग्री का त्याग करना पड़ता है|

8. कबीर के अनुसार, इस संसार में कौन दुःखी है, कौन सुखी?
उत्तर: कबीर के अनुसार, इस संसार में सुखी वह है, जो अज्ञानी है। वह इस संसार को सत्य मानकर इसे भोगता है और सुख अनुभव करता है। दूसरी ओर जो प्रभु के रहस्य को जान लेता है। वह विरह के कारण दिन-रात तड़पता है इसलिए वह दुःखी है।

9. कौन सा दीपक दिखाई देने पर कैसा अंधकार मिट गया?
उत्तर: कबीर के अनुसार ज्ञान रूपी दिखाने से अज्ञान रूपी अन्धकार मिट जाता है| जब तक मनुष्य अज्ञान रहता है तब तक उसमें अहंकार और अन्य बुराइयाँ भी होती हैं। लेकिन जैसे ही उसके हृदय में ज्ञान रूपी दीपक जलता है यानी ज्ञान प्राप्त होता है उसका अज्ञान रुपी अंधकार खत्म हो जाता है।

10. कबीर की उद्धत साखियों की भाषा की विशेषता स्पष्ट कीजिए|
उत्तर: कबीर की साखियों की भाषा जन साधारण की भाषा है| नीतिपरक साखियाँ जनमानस का जीने की कला सिखाती हैं| साखियों में अवधि, राजस्थानी, भोजपुरी और पंजाबी भाषा का प्रयोग हुआ है| कबीर की भाषा को सधुक्कड़ी भी कहा जाता है| गहन शिक्षा के कारण ये दोहे आज भी प्रचलित हैं|




 MC


1- मीठी वाणी बोलने से औरों को सुख और अपने तन को शीतलता कैसे प्राप्त होती है?

A) अहंकार रहित मीठे बोल सबके ह्रदय को छूते हैं
B) मिश्री गलती है
C) मिश्री घुलती है
D) मीठे बोल

उत्तर: A

2- साखी शब्द किसका तद्भव रूप है ?

A) साक्षी
B) साखी
C) सखि
D) साक्ष्य

उत्तर: B

3- सखी शब्द किस से बना है ?

A) साक्षी
B) साक्ष्य
C) सखि
D) साखी

उत्तर: A

4- साक्ष्य का क्या अर्थ है ?

A) प्रत्यक्ष ज्ञान
B) साक्ष्य ज्ञान
C) सांसारिक ज्ञान
D) मायावी ज्ञान की

उत्तर: A

5- संत समाज में किस ज्ञान की महत्ता है ?

A) अनुभव ज्ञान की
B) बाहरी ज्ञान की
C) मायावी ज्ञान की
D) सांसारिक ज्ञान

उत्तर: A

6- कबीर की साखियों में किन भाषाओं का स्पष्ट प्रभाव दिखाई देता है ?

A) अवधी
B) राजस्थानी
C) भोजपुरी और पंजाबी
D) सभी

उत्तर: D

7- साखी क्या है ?

A) दोहा छंद
B) पद्य गद्य
C) छंद
D) दोहा

उत्तर: A

8- दोहा छंद के क्या लक्षण हैं ?

A) १३ और ११ के विश्राम से २४ मात्रा
B) १२ और ११ के विश्राम से २४ मात्रा
C) १२ और ११ के विश्राम से २८ मात्रा
D) १३ और ११7के विश्राम से २४ मात्रा

उत्तर: D

9- गुरु शिष्य को तत्त्व ज्ञान की शिक्षा कैसे देता है ?

A) सत्य की साक्षी देता हुआ
B) व्यवहारिक ज्ञान देकर
C) असत्य की साक्षी देता हुआ
D) सत्क्ष देता हुआ

उत्तर: A

10- कबीर का जन्म कब और कहाँ हुआ ?

A) १३९८ में काशी में
B) १३२१ में बोधगया में
C) १३५४ में उत्तराखंड में
D) १३९५ में काशी में

उत्तर: A

11- कबीर के गुरु कौन थे ?

A) स्वामी चरितानन्द
B) रामानंद सागर
C) गुरु रामानंद
D) गुरु मानंद

उत्तर: C

12- अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने क्या सुझाव दिया है ?

A) निंदक को नमस्ते करने को कहा है
B) निंदक से दूर रहने को कहा है
C) निंदक पास रखने को कहा है
D) निंदा पास रखने को कहा है

उत्तर: C

13- मिट्टी शब्द का अर्थ बताएं |

A) मिटना
B) मिटटी
C) मीट
D) मीत

उत्तर: A

14- कबीर के अनुसार सुखी कौन है ?

A) सांसारिक लोग जो सोते और खाते हैं
B) आध्यात्मिक लोग
C) लालची लोग
D) सांसारिक लोग जो खाते हैं

उत्तर: A

15- कबीर के अनुसार दुखी कौन है ?

A) आध्यात्मिक लोग
B) लालची लोग
C) जो ज्ञानी है
D) जो अज्ञानी है

उत्तर: C

16- दीपक दिखाई देने से अँधेरा कैसे मिट जाता है ?

A) कोई भी नहीं
B) बादल दूर होते हैं
C) अहंकार रुपी माया दूर होती है जब ज्ञान रुपी दीपक दिखाई देता है
D) माया दूर होती है जब ज्ञान रुपी दीपक दिखाई देता है

उत्तर: C

17- ईशवर कण कण में व्याप्त है , पर हम उसे देख क्यों नहीं पाते ?

A) मन में छुपे अहंकार के कारण
B) आँखें बंद होने के कारण
C) आँखों पर चश्मा होने के कारण
D) मन के कारण

उत्तर: A

18- कबीर के अनुसार कौन ज्ञानी नहीं बन पाया ?

A) मोती पुस्तके पढ़ने वाला
B) मोटी पुस्तके पढ़ने वाला
C) दूसरों को ज्ञान देने वाला
D) अज्ञानी

उत्तर: B

19- कबीर की साखियों का मुख्य उद्देश्य क्या है ?

A) जीवन जीने के सही ढंग का ज्ञान देना
B) क्षत्रिय ज्ञान
C) शास्त्रीय ज्ञान
D) सही ढंग का ज्ञान

उत्तर: A

20- बिरह भुवंगम तन बसै मन्त्र न लागे कोय | का भाव स्पष्ट कीजिये |

A) जब शरीर में किसी से बिछुरने का दुःख हो तो कोई दवा या मन्त्र काम नहीं करता
B) मन्त्र जपने से सेहत अच्छी होती है
C) जब दुःख हो तो मन्त्र काम करते हैं
D) कोई नहीं

उत्तर: A




जय हिन्द : जय हिंदी 
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