shabd shakti kise kahate hain
शब्द शक्ति
shabd shakti ki paribhasha
भारतीय काव्य-शास्त्र के प्रकांड विद्वान् मम्मट ने अपनी पुस्तक ‘काव्यप्रकाश’ में तीन प्रकार के शब्द और तीन प्रकार के अर्थ का निर्देश किया है। उन्होंने वाच्य, लक्ष्य और व्यंग्य तीन प्रकार के अर्थ माने हैं।
शब्द के उपर्युक्त विभाजन को हम इस प्रकार समझ सकते हैं –
वाचक शब्द
वाच्य अर्थी
वक्ता द्वारा बोले गये वाक्य का सीधा अर्थ ग्रहण करना।
जैसे-‘मैं बुन्देलखंडी हूँ।’
इसमें वक्ता के इस वाक्य का सीधा (वाच्य) अर्थ होगा कि वह बुंदेलखंड का रहने वाला है।
लक्षक शब्द
लक्ष्य अर्थ
जहाँ वक्ता द्वारा बोले गये शब्द का लक्षणों के आधार पर अर्थ ग्रहण किया जाए।
जैसे-मैं बुन्देलखंडी हूँ ।
इस वाक्य में यदि बुन्देलखंडी को बुन्देलखंड की संस्कृति का द्योतक माना जाय, तो यह लक्षण शब्द होगा और बुन्देलखंडी संस्कृति इसका लक्ष्यार्थ होगा।
व्यंजक शब्द
व्यंग्य अर्थ
जहाँ वक्ता का भाव लक्षणों द्वारा भी अभिव्यक्त नहीं हो पाता और अन्य अर्थ की कल्पना करनी होती है, वहाँ शब्द व्यंजक होता है।
जैसे-(सावधान !) मैं बुन्देलखंडी हूँ।’
बुन्देलखंडी’ शब्द का अभिप्रेत अर्थ लक्षणों से प्राप्त नहीं होता है, किन्तु इससे बुन्देलखंड के वीरों की वीरता व्यंजित होती है । अत : यह शब्द व्यंजक है और इसका व्यंग्य अर्थ है- ‘वीरता’।
shabd shakti ke prakar
शब्द शक्ति के प्रकार
शब्द के उपर्युक्त विभाजन के आधार पर शब्द की क्रमशः तीन शक्तियाँ मानी गई हैं। ये निम्नलिखित हैं –
- अभिधा शक्ति
- लक्षणा शक्ति
- व्यंजना शक्ति
कुछ विद्वान चौथी शक्ति ' तात्पर्य ' को मानते हैं |
अतः शब्द शक्ति मूलतः चार प्रकार की होती है |
अभिधा-शक्ति
वाच्यार्थ (मुख्यार्थ) का बोध कराने वाली शक्ति को अभिधा शक्ति कहा जाता है। अभिधा को संबंध शब्द का एक ही अर्थ ग्रहण करने से है।
उदाहरणार्थ – किसी ने कहा- पानी दो|
इस वाक्य का अर्थ अभिधा के माध्यम से कवल इतना ही होगा कि पानी पीने के लिए। माँगा गया है। वस्तुत: अभिधा में जो बोला जाता है और सुनकर प्रथम बार में ही जो अर्थ ग्रहण किया जाता है, वही अर्थ-ग्रहण की प्रक्रिया इसके अंतर्गत आती है।
अन्य उदाहरण –
shabd shakti ke udaharan bataiye
‘किसान फसल काट रहा है।‘ इस वाक्य में अभिधा शब्द-शक्ति के माध्यम से यही प्रकट होता है कि फसल किसान द्वारा काटी जा रही है।
‘बिल्ली भाग रही है। इस वाक्य में केवल बिल्ली का भागना ही प्रकट होता है। अत: वाच्यार्थ का ही ग्रहण होने से अभिधा शब्द शक्ति प्रकट होती है।
‘जयपुर राजस्थान की राजधानी है।’ यहाँ भी वाच्यार्थ का सीधे ही अर्थ ग्रहण हो रहा है। अत: अभिधा शब्द शक्ति है।
लक्षणा-शक्ति
जब शब्द के वाच्यार्थ (मुख्यार्थ) का अतिक्रमण कर किसी दूसरे अर्थ को ग्रहण किया जाता है, तब उसे लक्ष्यार्थ कहते हैं। लक्ष्यार्थ का बोध कराने वाली शक्ति को लक्षणा-शक्ति कहा जाता है। जबे वक्ता अपने वाक्य में मुख्यार्थ से हटकर कुछ अन्य अर्थ भरने की कोशिश करता है, तब लक्षणों के आधार पर अर्थ-ग्रहण किया जाता है।
लक्षणा के भेद – काव्यशास्त्र के आचार्यों ने लक्षण के दो प्रमुख भेद माने हैं –
- रूढ़ा लक्षणा
- प्रयोजनवती लक्षणा
रूढ़ा लक्षणा
जब किसी काव्य-रूढ़ि (परम्परा) को आधार बनाकर लक्षणा-शक्ति का प्रयोग किया जाता है, तो वहाँ रूढ़ा लक्षणा मानी जाती है ।
जैसे- भारत जाग उठा’
इस वाक्य में ‘भारत’ से वक्ता का तात्पर्य ‘भारत देश’ न होकर भारतवासी हैं। ‘भारत’ शब्द का भारतवासी अंर्थ में प्रयोग कविगण तथा लेखक करते आ रहे हैं। इसी रूढ़ि को आधार बनाकर भारतवासियों के सचेत और जागरूक होने की बात कही गई है। इसी प्रकार अन्य उदाहरण हैं –
shabd shakti ke udaharan bataiye
- इंग्लैण्ड की चार विकेट से पराजय।
- भरत हंस रवि वंश तडागा।
- वहाँ लाठियाँ चल रही हैं।
- बड़े हरिश्चन्द्र बनते हो।
- कश्मीर रक्त में डूबा हुआ है।
यहाँ ‘इंग्लैण्ड’ शब्द से इंग्लैण्ड के क्रिकेट खिलाड़ी, ‘हंस’ से गुण-दोष का ज्ञाता, लाठियाँ’ से लाठी चलाते व्यक्ति, ‘हरिश्चन्द्र’ से सत्य बोलने वाला तथा ‘कश्मीर’ से कश्मीर निवासियों का तात्पर्य रूढ़ि पर आधारित है । अतः उपर्युक्त वाक्यों में रूढ़ा लक्षणा-शक्ति का प्रयोग है।
प्रयोजनवती लक्षणा
जहाँ विशेष प्रयोजन से प्रेरित होकर शब्द का प्रयोग लक्ष्यार्थ में किया जाता है, तो वहाँ प्रयोजनवती लक्षणा मानी जाती है।
जैसे-‘तुम तो निरे गधे हो।’
इस वाक्य में ‘गधा’ शब्द का ‘मूर्ख’ के अर्थ में प्रयोग विशेष प्रयोजन से हुआ है। अत: यहाँ प्रयोजनवती लक्षणा है। इसी प्रकार अन्य उदाहरण हैं –
shabd shakti ke udaharan bataiye
- आओ मेरे शेर।
- उसका मन पत्थर का बना है।
- हम तो गंगावासी हैं।
- यह ताजमहल कब तक पूरा होगा?
- यह यमुना-पुत्रों का नगर है।
इन वाक्यों में प्रयुक्त काले छपे शब्दों का प्रयोग विशेष प्रयोजन से हुआ है। यहाँ ‘शेर’ अर्थात् ‘शेर’ जैसे गुणों वाला, निर्भीक और बलशाली, ‘पत्थर’ अर्थात् पत्थर जैसे कठोर हृदय वाला, ‘गंगावासी’ अर्थात् गंगा जैसी पवित्रता से युक्त, ‘ताजमहल’ अर्थात् ताजमहल जैसा भव्य भवन और ‘यमुना-पुत्र’ अर्थात् यमुना पर आधारित आजीविका वाला होगा।
व्यंजना-शक्ति
वाच्यार्थ (मुख्यार्थ) लक्ष्यार्थ (लक्ष्य) और संकेतित अर्थ के पश्चात् जब किसी विलक्षण अर्थ की प्रतीति होती है, उसे व्यंग्यार्थ (व्यंजनार्थ, ध्वन्यार्थ) कहते हैं। जिस शब्द शक्ति से व्यंग्यार्थ का बोध होता है, उसे व्यंजना शक्ति कहते हैं।
जब यह कहा जाये, ‘क्यों क्या समय हुआ है ?
‘तो वक्ता का तात्पर्य न तो घड़ी का समय पूछना है और न समय का आभास देना है, अपितु उसका तात्पर्य है यह कोई समय है आने का ? यह अर्थ न मुख्यार्थ ग्रहण करने से प्राप्त होगा, न लक्ष्यार्थ से। यही व्यंग्यार्थ है।
व्यंजना के भेद – व्यंजना शक्ति के दो भेद होते हैं-
- शाब्दी व्यंजना
- आर्थी व्यंजना।
शाब्दी व्यंजना
जहाँ व्यंग्यार्थ किसी विशेष शब्द के प्रयोग पर आश्रित रहता है, वहाँ शाब्दी व्यंजना होती है। इसका प्रयोग अनेकार्थवाची शब्दों के प्रयोग में होता है।
आर्थी व्यंजना
जहाँ व्यंग्यार्थ अर्थ पर ही आश्रित रहता है, वहाँ आर्थी व्यंजना होती है ।
उदाहरण
shabd shakti ke udaharan bataiye
कुम्हार बोला, “बेटी, बादल हो रहे हैं”।
उक्त वाक्य में भिन्न-भिन्न व्यंग्यार्थ निकल रहे हैं,
जैसे-
- बर्तन अन्दर ले लो।
- मिट्टी गीली हो जायेगी।
- हमें बाहर नहीं जाना चाहिए।
उसने कहा, ”संध्या हो गई।”
इसके कई व्यंग्यार्थ हैं,
जैसे-
- गायों के आने का समय हो गया है।
- बत्ती जलाने का समय है।
- हमें मन्दिर चलना है। आदि।
दस बज गए हैं।
इस वाक्य के व्यंग्यार्थ हैं –
- विद्यालय की घंटी बजने वाली है।
- बस आने का समय हो गया है ।
- पिताजी कार्यालय जाने वाले हैं। आदि।
अभिधा तथा लक्षणा से प्राप्त अर्थ में अन्तर
अभिधा शक्ति से शब्द का मुख्य या सामान्यतया प्रचलित अर्थ व्यक्त होता है। अभिधा से व्यक्त अर्थ को यथावत् ग्रहण किया जाता है । पॐ या श्रोता को अपनी कल्पना या अनुमान को प्रयोग नहीं करना पड़ता। अभिधेयार्थ अपने आप में स्पष्ट और पूर्ण होता है, जबकि लक्षणा से प्राप्त होने वाले अर्थ को मुख्यार्थ से हटकर लक्षणों के आधार पर निश्चित किया जाता है। पाठक या श्रोता को प्रसंगानुसार अपनी कल्पना और तर्क-शक्ति के उपयोग से अभीष्ट अर्थ तक पहुँचना होता है । इस प्रकार शब्द के मुख्य अर्थ से हटकर, लक्षणों के आश्रय से प्राप्त होने वाला भिन्न या नवीन अर्थ लक्षणा-शक्ति से ही व्यक्त होता है। जैसे –
(क) ढल रही है रात, आता है सवेरा।
(ख) जीवन में ‘रात’ विदा होती, शीघ्र ‘सवेरा’ आयेगा।
यहाँ प्रथम वाक्य में ‘रात’ तथा ‘सवेरा’ शब्दों का प्रयोग अपने सामान्य या मुख्य अर्थ में हुआ है, जबकि द्वितीय वाक्य में ‘रात’ का अर्थ ‘कष्ट’ या ‘अज्ञान’ लेना होगा और ‘सवेरा’ का अर्थ ‘सुख के दिन या ज्ञानोदय’ ग्रहण किया जायेगा। अत: प्रथम वाक्य में अभिधा-शक्ति का प्रयोग हुआ है और द्वितीय वाक्य में लक्षणा-शक्ति का।
लक्षणा तथा व्यंजना शक्ति में अन्तर
मुख्य या प्रचलित अर्थ से हटकर जब अर्थ ग्रहण करना पड़ता है तो वहाँ लक्षणा शब्द-शक्ति कार्य करती है । जब ‘मुख्यार्थ और लक्ष्यार्थ’ दोनों ही वक्ता के इच्छित अर्थ को प्रकट नहीं कर पाते, तो वहाँ प्रसंग के आधार पर अन्य अर्थ की कल्पना या अनुमान करना पड़ता है । इस प्रकार प्राप्त होने वाला अर्थ व्यंग्यार्थ होता है । यहाँ शब्द की व्यंजना शक्ति कार्य करती है। यथा –
‘तने की अटरिया पै चढ़ि आई घाम’।
इस पंक्ति का साधारण अर्थ होगा कि शरीर की अट्टालिका. पर धूप चढ़ रही है । लेकिन लक्ष्य के अनुसार इसका अर्थ होगा कि ‘अब वृद्धावस्था आ गई है।’ जब वक्ता इस कथन द्वारा यह भाव व्यक्त कराना चाहेगा कि ‘अब सांसारिक मोह त्याग दो, भजन करने का समय आ गया है, तो यह व्यंग्यार्थ होगा और व्यंजना-शक्ति के द्वारा ही व्यक्त होगा।
अभिधा तथा व्यंजना शक्ति में अंतर
‘अभिधा’ शब्द की वह शक्ति मानी गई है, जिसके द्वारा शब्द का सामान्य प्रचलित अर्थ प्रकट होता है। जैसे- रमेश पुस्तक पढ़ रहा है। यहाँ प्रत्येक शब्द का मुख्य अर्थ ही प्रकट होता है। जैसे- मुर्गा बोल रहा है। इसका व्यंग्यार्थ यह है कि सवेरा हो गया, अब जागे जाओ। अर्थात् इसमें सामान्य अर्थ ग्रहण करने पर भाव प्रकट नहीं होता है।
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प्रश्न 1.निम्नलिखित वाक्यों में व्यंजना शब्द शक्ति का प्रयोग किस वाक्य में हुआ है –
(क) वह तो निरी गाय है।
(ख) राजस्थान भारत का एक राज्य है।
(ग) गिरधारी शेर है
(घ) “अँधेरा हो गया है”, सेठ ने नौकर से कहा।
उत्तर: (घ) “अँधेरा हो गया”, सेठ ने नौकर से कहा।
(भाव है-कार्य समाप्त करो।)
प्रश्न 2.यहाँ लक्षणा-शक्ति का प्रयोग किसे वाक्य में हुआ है –
(क) मैं पूर्णतः स्वस्थ हूँ।
(ख) उस अबोध को मत मारो।
(ग) रमा ने कहा, ‘मालिक घर पर नहीं हैं।
(घ) रोटी के लिए दुनिया क्या नहीं करती। (रोटी-पेट भरना।)
उत्तर:(घ) रोटी के लिए दुनिया क्या नहीं करती।
(रोटी-पेट भरना।)
प्रश्न 3.राम ने मोहन से कहा, ”तुम्हारे चेहरे से शठता झलक रही है।” मोहन ने तत्काल उत्तर दिया, “ओह! तो मेरा चेहरा दर्पण है”? इस वार्तालाप में किस शब्द-शक्ति का प्रयोग हुआ है –
(क) अभिधा।
(ख) लक्षणा
(ग) व्यंजना
(घ) व्यंजना प्रधान अभिधा।
उत्तर:(ग) व्यंजना।
(इस कथन में व्यंग्यार्थ है कि उसे शठ बताने वाला ही शठ है ।)
प्रश्न 4. इस बुढ़िया को न सताओ, यह तो निरी गाय है।” इस वाक्य में किस शब्द-शक्ति का चमत्कार है –
(क) अभिधा
(ख) लक्षणा
(ग) व्यंजना
(घ) व्यंजना प्रधान अभिधा
उत्तर:(ख) लक्षणा।
(यहाँ गाय का अर्थ सीधे स्वभाव से है ।)
प्रश्न 5.व्यंजना-शक्ति का प्रयोग किस वाक्य में हुआ है –
(क) मोहन धनुर्विद्या में प्रवीण है।
(ख) राजस्थान वीरभूमि है।
(ग) लाल पगड़ी के आते ही सब भाग गये।
(घ) बातें करती गृहिणी ने कहा, ‘सन्ध्या हो गयी।”
उत्तर:(घ) बातें करती गृहिणी ने कहा, ‘सन्ध्या हो गयी।”
(यहाँ ‘सन्ध्या हो गयी’ में बातें बन्द करने एवं गृहकार्य में लगने का व्यंग्यार्थ प्रकट हो रहा है।)
प्रश्न 6.किस वाक्य में ‘पर्वत’ शब्द अभिधेयार्थ प्रकट कर रहा है –
(क) पर्वत पर चढ़ना सरल कार्य नहीं है।
(ख) पर्वत जाग रहे हैं।
(ग) खोदा पहाड़ निकली चुहिया।
(घ) ‘देहरिया पर्वत भई, आँगन भयौ विदेस।
उत्तर:(क) पर्वत पर चढ़ना सरल कार्य नहीं है।
प्रश्न 7.अभिधा शब्द-शक्ति का प्रयोग किस वाक्य में हुआ है –
(क) आओ सूरदास जी।
(ख) मैं तो आपकी गाय हूँ।
(ग) वह आस्तीन का साँप है।
(घ) विद्यार्थी पढ़ रहे हैं।
उत्तर:(घ) विद्यार्थी पढ़ रहे हैं।
अन्य प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.रूढ़ा लक्षणा तथा प्रयोजनवती लक्षणा शब्द-शक्ति में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:जहाँ लक्षणा शब्द-शक्ति का प्रयोग किसी रूढ़ि या परम्परा पर आधारित होता है, वहाँ रूढ़ा लक्षणा कही जाती है तथा जब किसी विशेष प्रयोजन से लक्षणा शब्द-शक्ति का प्रयोग होता है, तो वहाँ ‘प्रयोजनवती लक्षणा’ होती है। यथा –
इंग्लैण्ड दो विकेट से हारा। (रूढ़ा लक्षणा)
तू तो निरा गधा है। (प्रयोजनवती लक्षणा)
प्रश्न 2.व्यंजना शब्द-शक्ति की परिभाषा लिखकर उसका एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:शब्द की जो शक्ति मुख्यार्थ तथा लाक्षणिक अर्थ से भिन्न किसी अन्य अर्थ को व्यक्त करती है, उसे व्यंजना शब्द-शक्ति कहा जाता है। यथा –
‘पता है, सात बज गये।’
यहाँ ‘सात बज गए’ का इष्ट अर्थ ‘बहुत विलम्ब हो गया है। व्यंजना शब्द-शक्ति से ही यह अर्थ व्यक्त हो सकता है, अभिधी या लक्षणा से नहीं।
प्रश्न 3.निम्नलिखित शब्द-शक्ति को प्रकट करने वाली एक पंक्ति उसके सामने लिखिए –
व्यंजनी
लक्षणी
उत्तर:
व्यंजना – सूर्य सिर पर आ गया।
लक्षणा – कुत्ते तो भौंकते ही रहते हैं।
प्रश्न 4.प्रयोजनवती लक्षण शब्द-शक्ति की परिभाषा उदाहरण सहित लिखिए।
उत्तर:जब किसी शब्द का मुख्यार्थ न लेकर प्रयोजन से उसका लक्ष्यार्थ लिया जाता है, उसे प्रयोजनवती लक्षणा कहा जाता है।
उदाहरण –
अशोक गधा है।
श्यामू सिंह है।
प्रश्न 5.आर्थी-व्यंजना शब्द-शक्ति की परिभाषा सोदाहरण लिखिए।
उत्तर:जहाँ व्यंग्यार्थ किसी अर्थ-विशेष पर आधारित होता है, वहाँ आर्थी-व्यंजना शब्द-शक्ति होती है।
उदाहरण – ‘साहेब ! पाँच बज गए हैं।’
प्रश्न 6.लक्षणा शब्द शक्ति की सोदाहरण परिभाषा लिखिए।
उत्तर:लक्ष्यार्थ का बोध कराने वाली शक्ति को लक्षणा-शक्ति कहा जाता है। जब वक्ता अपने वाक्य में मुख्यार्थ से हटकर कुछ अन्य अर्थ भरने की कोशिश करता है, तब लक्षणों के आधार पर अर्थ-ग्रहण किया जाता है। उदाहरण- लाल पगड़ी आ रही है।
प्रश्न 7.लक्षणा और व्यंजनी शब्द-शक्ति के अंतर को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:लक्षणा शब्द-शक्ति में लक्ष्यार्थ ग्रहण किया जाता है, जबकि व्यंजना शब्द-शक्ति में मुख्यार्थ और लक्ष्यार्थ से भी परे अर्थ ग्रहण किया जाता है।
प्रश्न 8.“तिल भर ने आगे बढ़ रहे हाँ वीर हो निश्चय बड़े।” प्रस्तुत वाक्य में निहित शब्द-शक्ति का नाम लिखते हुए उक्त शब्द-शक्ति की परिभाषा लिखिए।
उत्तर: यहाँ ‘व्यंजना शब्द शक्ति’ है।
परिभाषा – बुद्धि के जिस व्यापार से संदर्भ, व्यक्ति व स्थिति के अनुसार शब्द के कल्पना आधारित अर्थ निकले तथा जो अभिधेय अर्थ और लक्ष्यार्थ से परे हो, व्यंजना शब्द शक्ति है।
प्रश्न 9.अभिधा एवं लक्षणा का अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:अभिधा
- इसमें प्रचलित अर्थ प्रकट होता है।
- मूल अर्थ वही रहता है।
- वाच्यार्थ पर आधारित उक्ति होती हैं।
लक्षणा
- इसमें लाक्षणिक अर्थ प्रकट होता है।
- मूल अर्थ बाधित होता हैं।
- लक्ष्यार्थ पर आधारित उक्ति होती हैं।
प्रश्न 10.प्रस्तुत वाक्य में निहित शब्द-शक्ति का नाम लिखते हुए उसकी परिभाषा लिखिए। ‘जीवन में अनेक पर्वत पार करने पड़ते हैं।’
उत्तर: ‘लक्षणा’ शब्द-शक्ति है । लक्ष्यार्थ का बोध कराने वाली शक्ति को लक्षणा शब्द शक्ति कहा जाता है।
अन्य प्रश्न
प्रश्न 1.(i) ‘राम सदा चौकन्ना रहता है।’
(ii) ‘सीताहरण की बात जनि, कहियो पितु सन जाइ।
जो मैं राम तो कुल सहित, कहहि दसानन आइ।।
उक्त उदाहरणों में प्रयुक्त शब्द-शक्तियों का नामोल्लेख कर उनका पारस्परिक अन्तर बताइए।
उत्तर: प्रथम उदाहरण में ‘लक्षणा शब्द-शक्ति’ तथा द्वितीय उदाहरण में ‘व्यंजना शब्द-शक्ति’ का प्रयोग हुआ है।
अंतर – लक्षणा शब्द-शक्ति से व्यक्त अर्थ मुख्यार्थ से हटकर हुआ करता है। उपर्युक्त उदाहरण में चौकन्ना का मुख्यार्थ ‘चार कानों वाला’ न होकर ‘सतर्क’ लिया जायेगा।
व्यंजना शब्द-शक्ति में मुख्यार्थ तथा लक्ष्यार्थ से भिन्न अन्यार्थ (एक नये ही अर्थ) की अभिव्यक्ति हुआ करती है। उपर्युक्त उदाहरण का भाव है, यदि मैं वास्तव में राम हूँ तो रावण का कुल सहित वध करूंगा और मेरे हाथों सद्गति पाकर रावण स्वर्ग जायेगा। वहाँ वह पिता दशरथ से स्वयं सीताहरण की बात का निवेदन करेगा।’ यह अर्थ न मुख्यार्थ है और न लक्ष्यार्थ, यह अन्यार्थ या व्यंग्यार्थ है।
प्रश्न 2.लक्ष्यार्थ और व्यंग्यर्थि का अंतर उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:जहाँ किसी शब्द का अर्थ उसके मुख्य या प्रचलित अर्थ से भिन्न ग्रहण किया जाता है और वह अर्थ तर्क या अनुमान पर आश्रित होता है, वहाँ उसे लक्ष्यार्थ कहते हैं। यह अर्थ सामान्य अर्थ के लक्षणों पर ही आधारित होता है । जैसे-‘फूल हँसे कलियाँ मुसकाईं ।’ यहाँ हँसने और मुस्काने का सामान्य प्रचलित अर्थ लेने पर अभीष्ट अर्थ सिद्ध नहीं हो सकता। यहाँ तर्क द्वारा और फूलों के खिलने तथा व्यक्ति के हँसने में समता के आधार पर हँसे’ शब्द का अर्थ ‘ खिले’ लिया जायेगा, यह लक्ष्यार्थ कहा जायेगा।
जहाँ अभीष्ट अर्थ न तो मुख्यार्थ से प्राप्त हो और न ही लक्ष्यार्थ से, बल्कि एक तीसरे अर्थ की कल्पना करनी पड़े, तो उसे व्यंग्यार्थ कहा जाता है। यह शब्द की व्यंजना शक्ति से प्रकट होता है। जैसे कि कोई मजदूर मालिक से कहे- ‘अब तो पाँच बज गये साहब ! मजदूर की अभीष्ट अर्थ है कि अब काम बन्द करने का समय हो गया है। यह अर्थ अभिधार्थ और लक्ष्यार्थ से भिन्न है। यह व्यंग्यार्थ है। जो व्यंजना शब्द-शक्ति से व्यक्त होता है।
प्रश्न 3.निम्नलिखित वाक्यों में किस-किस शब्द-शक्ति का प्रयोग हुआ है ?
(क) प्रेम सदा अन्धा होता है।
(ख) उफ ! आज तो पत्ता भी नहीं हिल रहा है।
(ग) प्रात:कालीन-भ्रमण स्वास्थ्य के लिए उपयोगी है।
उत्तर:
(क) इस वाक्य में व्यंजना शब्द-शक्ति का प्रयोग हुआ है।
(ख) इस वाक्य में लक्षणा शब्द-शक्ति का प्रयोग हुआ है।
(ग) इस वाक्य में अभिधा शब्द-शक्ति का प्रयोग हुआ है।
प्रश्न 4.निम्नलिखित वाक्यों में किस-किस शब्द-शक्ति का प्रयोग हुआ है ?
(क) देश की नाव मझधार में है।
(ख) माता ने छोटे पुत्र से कहा, ‘अँधेरा हो गया है।’
(ग) मैं हँसी नहीं कर रहा हूँ, मुझे बड़े जोर की भूख लगी है।
उत्तर:
(क) इस वाक्य में लक्षणा शब्द-शक्ति का प्रयोग हुआ है।
(ख) इस वाक्य में व्यंजना शब्द-शक्ति का प्रयोग हुआ है।
(ग) इस वाक्य में अभिधा शब्द-शक्ति का प्रयोग हुआ है।
प्रश्न 5.अभिधा और लक्षणा शब्द-शक्ति का अंतर उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:अभिधा शब्द-शक्ति से शब्द का सामान्य प्रचलित अर्थ व्यक्त हुआ करता है। जैसे-‘पर्वत को पार करना कठिन होता है।’ यहाँ प्रत्येक शब्द अपने सामान्य प्रचलित अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। यदि यह कहा जाय- ‘जीवन में मनुष्य को अनेक पर्वत पार करने पड़ते हैं। तो यहाँ ‘पर्वत’ शब्द का वही अर्थ नहीं होगा जो प्रथम वाक्य में है। यहाँ ‘पर्वत’ का अर्थ ‘बाधा’ या ‘कठिनाई’ लेना होगा। यह अर्थ मुख्यार्थ से हटकर प्राप्त होता है। यही लक्ष्यार्थ है। अत: लक्षणा शब्द-शक्ति से शब्द का मुख्य अर्थ प्रकट नहीं होता है, अपितु लक्षणों से आरोपित अर्थ प्रकट होता है।
प्रश्न 6.उदाहरण देते हुए अभिधा और व्यंजना शक्तियों का अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:‘अभिधा’ शब्द की वह शक्ति मानी गयी है, जिसके द्वारा शब्द का सामान्य प्रचलित अर्थ प्रकट होता है। जैसे-‘हिन्दी में अनुवाद करना सरल है।’ यहाँ हर शब्द का प्रचलित या मुख्य अर्थ ग्रहण करके वक्ता की बात समझी जा सकती है।
‘व्यंजना’ शब्द की वह शक्ति है, जिसके द्वारा मुख्यार्थ और लक्ष्यार्थ से भी परे शब्द का अर्थ ग्रहण किया जाता है। अभीष्ट अर्थ की सिद्धि जब अभिधा और लक्षणा शक्तियों से नहीं होती तो वहाँ व्यंजना शक्ति द्वारा अर्थ प्रकट होता है। यथा-‘मुर्गा बोल रहा है।’ इस वाक्य का यथावत् सामान्य अर्थ ग्रहण करने पर वक्ता का भाव नहीं ग्रहण किया जा सकता। लक्षणों के आधार भी इच्छित अर्थ की प्राप्ति नहीं हो सकती। वक्ता का आशय है कि ‘सवेरा हो गया है, अब जाग जाओ।’ यह तीसरी शब्द-शक्ति व्यंजना से ही सिद्ध हो सकती है।
जय हिन्द : जय हिंदी
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