kavya lakshan kya hai
काव्य लक्षण
‘किसी वस्तु अथवा विषय के असाधारण अर्थात विशेष धर्म का कथन करना उसका लक्षण कहलाता है।’अलग -अलग आचार्यों के द्वारा काव्य लक्षण को परिभाषित किया गया।
संस्कृत में काव्य लक्षण आचार्यों ने मुख्यतः तीन, आधारों पर किया है जो निम्न है-
- शब्द और अर्थ के आधार पर
- शब्द के आधार पर और
- रस और ध्वनि के आधार पर।
शब्दार्थ के आधार पर
आचार्य - भामह
काव्य लक्षण- शब्दार्थौ सहितौ काव्यम् |
आचार्य - रुद्रट
आचार्य - रुद्रट
काव्य लक्षण- काव्य शब्दोऽयंगुणालंकार संस्कृतयो: शब्दार्थयो: वर्तते।
आचार्य - कुन्तक
आचार्य - कुन्तक
काव्य लक्षण- शब्दार्थौ सहितौ वक्र कवि व्यापार शालिनी।
बन्धे व्यवस्थितौ काव्यं तद्विदाह्राद कारिणी।।
आचार्य -मम्मट
बन्धे व्यवस्थितौ काव्यं तद्विदाह्राद कारिणी।।
आचार्य -मम्मट
काव्य लक्षण- तददौषौ शब्दार्थौ सगुणावलंकृति पुनः क्वापि।
आचार्य -वाग्भट्ट
आचार्य -वाग्भट्ट
काव्य लक्षण- साधु शब्दार्थ सन्दर्भ गुणालंकार भूषितम्।
स्फुटरीतिरसोपेतं काव्यं कुर्वीत कीर्तये।।
आचार्य -आनन्दवर्धन
स्फुटरीतिरसोपेतं काव्यं कुर्वीत कीर्तये।।
आचार्य -आनन्दवर्धन
काव्य लक्षण- सह्रदयह्रदयाह्लादिशब्दार्थमयत्वमेव काव्य लक्षणम्।
आचार्य -राजशेखर
आचार्य -राजशेखर
काव्य लक्षण- गुणवदलंकृतञ्च वाक्यमेव काव्यम्।
आचार्य -विद्याधर
आचार्य -विद्याधर
काव्य लक्षण- शब्दार्थौ वपुरस्य शब्दार्थवपुस्तावत् काव्यम।
क्षेमेन्द्र काव्यंविशिष्टशब्दार्थ साहित्यसदलंकृति।
क्षेमेन्द्र काव्यंविशिष्टशब्दार्थ साहित्यसदलंकृति।
शब्द के आधार पर
आचार्य - दण्डी
लक्षण-शरीरं तावदिष्टार्थ व्यवच्छिना पदावली।
आचार्य -जयदेव
लक्षण-निर्दोषा लक्षणवती सरीतिर्गुण भूषणा।
सालंकार रसानेक वृत्तिर्वाक्काव्य नामवाक्।।
आचार्य -जगन्नाथ
लक्षण-रमणीयार्थ प्रतिपादक: शब्दः काव्यम्।
रस और ध्वनि के आधार पर
आचार्य-विश्वनाथ
लक्षण-वाक्यं रसात्मकं काव्यम्।
आचार्य-भोजराज
लक्षण-निर्दोषं गुणवत्काव्यमलंकारैरलंकृतम्।
रसान्वितं कवि: कुर्वन् कीर्ति प्रीतिंच विन्दति।।
मध्यकालीन हिन्दी कवियों ने निम्नलिखित काव्य लक्षण लिखें हैं-
केशवदास
जदपि सुजाति सुलच्छनी सुबरन सरस सुवृत्त।
भूषण बिनु न बिराजई, कविता बनिता मित्त।।
श्रीपति
भूषण बिनु न बिराजई, कविता बनिता मित्त।।
श्रीपति
यदपि दोष बिनु गुन सहित, अलंकार सो लीन।
कविता बनिता छवि नहीं, रस बिन तदपि प्रवीण।।
चिन्तामणि
कविता बनिता छवि नहीं, रस बिन तदपि प्रवीण।।
चिन्तामणि
सगुण अलंकारन सहित, दोष रहित जो होइ।
शब्द अर्थ वारौ कवित, बिबुध कहत सब कोई।।
कुलपति मिश्र
शब्द अर्थ वारौ कवित, बिबुध कहत सब कोई।।
कुलपति मिश्र
दोष रहित अरु गुन सहित, कछुक अल्प अलंकार।
सबद अरथ सो कवित है, ताको करो विचार।।
सूरति मिश्र
सबद अरथ सो कवित है, ताको करो विचार।।
सूरति मिश्र
बरनन मनरंजन जहाँ, रीति अलौकिक होइ।
निपुन कर्म कवि जो जु तिहिं, काव्य कहत सब कोई।।
कवि देव
निपुन कर्म कवि जो जु तिहिं, काव्य कहत सब कोई।।
कवि देव
सब्द जीव तिहि अरथ मन, रसमय सुजस सरीर।
चलत वहै जुग छन्द गति, अलंकार गम्भीर।।
सोमनाथ
चलत वहै जुग छन्द गति, अलंकार गम्भीर।।
सोमनाथ
सगुन पदारथ दोष बिनु, पिंगल मत अविरुद्ध।
भूषण जुत कवि कर्म जो, सो कवित्त कहि सुद्ध।।
भिखारीदास
भूषण जुत कवि कर्म जो, सो कवित्त कहि सुद्ध।।
भिखारीदास
रस कविता को अंग, भूषण हैं भूषण सकल।
गुन सरूप औ रंग, दूशन करै करुपता।।
गुन सरूप औ रंग, दूशन करै करुपता।।
आधुनिक युग के हिन्दी आचार्यों व कवियों ने निम्नलिखित काव्य लक्षण लिखे हैं-
महावीर प्रसाद द्विवेदी
पाश्चात्य विद्वानों ने निम्नलिखित काव्य लक्षण लिखे हैं-
''अन्तःकरण की वृत्तियों के चित्र का नाम कविता है।''
रामचन्द्र शुक्ल
''जिस प्रकार आत्मा की मुक्तावस्था ज्ञानदशा कहलाती है उसी प्रकार हृदय की यह मुक्तावस्था रसदशा कहलाती है। ह्रदय की मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द-विधान करती आई है, उसे कविता कहते है। इस साधना को हम भावयोग कहते हैं और कर्मयोग और ज्ञानयोग के समकक्ष मानते है।''
रामचन्द्र शुक्ल
''कविता ही मनुष्य के हृदय को स्वार्थ-सम्बन्धों के के संकुचित मण्डल से ऊपर उठाकर लोक-सामान्य भाव-भूमि पर ले जाती है, जहाँ जगत् की नाना गतियों के मार्मिक स्वरूप का साक्षात्कार और शुद्ध अनुभूतियों का संचार होता है।''
नन्द दुलारे वाजपेयी
''काव्य तो प्रकृत मानव अनुभूतियों का नैसर्गिक कल्पना के सहारे, ऐसा सौन्दर्यमय चित्रण है जो मनुष्य-मात्र में स्वभावतः अनुरूप भावोच्छवास और सौन्दर्य-संवेदन उत्पन्न करता है। इसी सौन्दर्य-संवेदन को भारतीय पारिभाषिक शब्दावली में 'रस' कहते हैं।
जयशंकर प्रसाद
''काव्य आत्मा की संकल्पात्मक अनुभूति है जिसका सम्बन्ध विश्लेषण विकल्प या विज्ञान से नहीं है। वह एक श्रेयमयी प्रेय रचनात्मक ज्ञानधारा है। आत्मा की मननशक्ति की वह असाधारण अवस्था जो श्रेय सत्य के उसके मूलचारुत्व में सहसा ग्रहण कर लेती है, काव्य में संकल्पनात्मक मूल अनुभूति कही जा सकती है।”
महादेवी वर्मा
कविता कवि-विशेष की भावनाओं का चित्रण है और वह चित्रण इतना ठीक है कि उससे वैसी ही भावनाओं किसी दूसरे के ह्रदय में आविर्भूत होती है।
सुमित्रानन्दन पन्त
''कविता हमारे परिपूर्ण क्षणों की वाणी है।'
डॉ० नगेन्द्र
''रसात्मक शब्दार्थ ही काव्य है और उसकी छन्दोमयी विशिष्ट विद्या आधुनिक अर्थ में कविता है।'
पाश्चात्य विद्वानों ने निम्नलिखित काव्य लक्षण लिखे हैं-
- ''Poetry is articulate music -Dryden
- ''Poetry is the best words in their best order -Coleridge
- ''Poetry is a rhythmic creation of beauty.'' -Adger Allen Poe
- ''Poetry is the spontaneous overflow of powerful feelings, it takes its origin from emotion recollected in tranquillity.'' -Wordsworth
- ''Poetry is, at bottom, a criticism of life.'' -Arnold
- Poetry is the record of the best and happiest moments of the happiest and best mind.'' -Shelley
- ''Our sweetest songs are those that tell of saddest thought.'' -Shelley
- ''Poetry is the utterance of a passion for truth, beauty and power, embodying and illustrating its conception by imagination and fancy and modulating its language on the principle of variety in unity.'' -Leigh Hunt
ड्राइडन
कविता रागात्मक और छन्दोबद्ध भाषा के माध्यम से प्रकृति का अनुकरण है।
स्पष्ट संगीत कविता है।
वर्ड्सवर्थ
कविता हमारे प्रबल भावों का सहज उच्छलन है।
जान्सन
छन्दमयी वाणी कविता है।
मैथ्यू आरनोल्ड
सत्य तथा काव्य सौंदर्य के सिद्धान्तों द्वारा निर्धारित उपबंधों के अधीन जीवन की समीक्षा का नाम काव्य है।
जान मिल्टन
सरल, प्रत्यक्ष तथा रागात्मक अभिव्यक्ति काव्य है।
वर्डसवर्थ
शान्ति के क्षणों में स्मरण किये हुए प्रबल मनोवेगों का सहज उच्छलन कविता है।
पी.बी. शैली
कविता सुखद और उत्कृष्ट मस्तिष्क द्वारा सुखद और उत्कृष्ट क्षणों का संग्रह है।
हमारे सबसे मधुर गीत वही हैं जो हमारे सर्वाधिक विषादपूर्ण विचारों की अभिव्यक्ति है।
एडगरे एलन
काव्य सौन्दर्य की लयपूर्ण सृष्टि है।
मैथ्यू आर्नल्ड
कविता मूल रूप से जीवन की आलोचना है।
कालरिज
सर्वाेत्तम् व्यवस्था में सर्वोत्तम शब्द ही कविता है।
हडसन
कविता कल्पना और संवेग के द्वारा जीवन की व्याख्या है।
जय हिन्द : जय हिंदी
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