rajasthan ki rajat bunde class 11 mcq | | राजस्थान की रजत बूँदें mcq

rajasthan ki rajat bunde class 11 mcq | | राजस्थान की रजत बूँदें mcq

rajasthan ki rajat bunde class 11 mcq

 MCQ 


 1. 'राजस्थान की रजत बूँदें' नामक पाठ के लेखक हैं-

A. कुमार गंधर्व
B. बेबी हालदार
C. अनुपम मिश्र
D. हजारी प्रसाद द्विवेदी

उत्तर: C. अनुपम मिश्र

2. कुंई की कितनी गहरी खुदाई हो चुकी थी?

A. बीस-तीस हाथ
B. तीस-पैंतीस हाथ
C. पच्चीस-तीस हाथ
D. पंद्रह-बीस हाथ

उत्तर: B. तीस-पैंतीस हाथ

3. 'कुंई' शब्द से तात्पर्य है-

A. खुला स्थान
B. गहरा स्थान
C. छोटा-सा कुआँ
D. गहरा कुआँ

उत्तर: C. छोटा-सा कुआँ

4. कुंई की खुदाई किससे की जाती है?

A. फावड़े से
B. हत्थी से
C. दरांती से
D. बसौली से

उत्तर: D. बसौली से

5. चेलवांजी अपने सिर पर किस प्रकार का टोप पहनते हैं?

A. काँसे का
B. पीतल का
C. किसी अन्य धातु का
D. उपरोक्त में से कोई एक

उत्तर: D. उपरोक्त में से कोई एक

6. 'चेलवांजी' का शाब्दिक अर्थ है-

A. चेजारो
B. जेचारो 
C. चिजोरा
D. चेलांजी 

उत्तर: A. चेजारो

7. कुंई की गरमी कम करने के लिए ऊपर जमीन पर खड़े लोग मुट्ठी भर-भरकर नीचे क्या फेंकते हैं?

A. रेत
B. पानी
C. टोप
D. रस्सी

उत्तर: A. रेत

8. बड़े कुँओं में पानी कितनी गहराई पर निकलता है?

A. डेढ़ सौ-दो सौ हाथ
B. दो सौ-तीन सौ हाथ
C. सौ-दो सौ हाथ
D. तीन सौ-चार सौ हाथ

उत्तर: A. डेढ़ सौ-दो सौ हाथ

9. बड़े कुँओं के पानी का स्वाद कैसा होता है?

A. मीठा
B. नमकीन
C. कडुवा
D. खारा

उत्तर: D. खारा

10.जहाँ लगाव है, वहाँ ......... भी होता है |

A. बिखराव
B. अलगाव
C. अवसान
D. कुछ भी नहीं

उत्तर: B. अलगाव

11. मरुभूमि के विकसित किए गए समाज ने वहाँ उपलब्ध पानी को कितने रूपों में बाँटा है?

A. चार
B. पाँच
C. सात
D. तीन

उत्तर: D. तीन

12. उपलब्ध पानी के तीन रूप हैं-

A. पालर पानी
B. पाताल पानी
C. रेजाणी पानी
D. उपरोक्त सभी

उत्तर: D. उपरोक्त सभी

13. 'वर्षा की मात्रा' नापने के लिए किस शब्द का प्रयोग होता है?

A. पट्टी
B. इंच
C. सेंटीमीटर
D. रेजा

उत्तर: D. रेजा

14. पाँच हाथ के व्यास की कुंई में रस्से की एक ही कुंडली का केवल एक घेरा बनाने के लिए लगभग कितना लंबा रस्सा चाहिए?

A. पंद्रह हाथ
B. बीस हाथ
C. पाँच हाथ
D. दस हाथ

उत्तर: A. पंद्रह हाथ

15. कुंई के पानी को साफ रखने के लिए उसे किस के ढक्कन से ढका जाता है?

A. लोहा के 
B. पत्थर के 
C. मिट्टी के 
D. लकड़ी के 

उत्तर: D. लकड़ी

16. गहरी कुंई से पानी खींचने की सुविधा के लिए उसके ऊपर लगी चकरी को क्या कहते हैं?

A. गरेड़ी
B. चरखी
C. फरेड़ी
D. उपरोक्त सभी

उत्तर: D. उपरोक्त सभी

17. जैसलमेर जिले के एक गाँव खड़ेरों की ढाणी को लोग किस नाम से जानते थे?

A. तीन-बीसी
B. पाँच बीसी
C. छह-बीसी
D. दस-बीसी

उत्तर: C. छह-बीसी


18- कुईं का व्यास छोटा क्यों रखा जाता है ?
– ताकि कम मात्रा का पानी ज्यादा फैले नहीं , 
ऊपर आसानी से निकला जा सके  , 
भाप बनकर उड़े नहीं ।

19-कुंई का पानी कैसा होता है?
– मीठा व पीने योग्य( रेजाणीपानी )

20- राजस्थान के किन इलाकों में कुंईयाँ बनाई जाती हैं ?
– जहां रेत के नीचे खड़िया पत्थर की पट्टी मिलती है।

21- जहाँ ईट की चिनाई से कुंई की मिट्टी नहीं रुकती हैं , वहाँ कुंई को किससे बांधा जाता है?
– खींप की रस्सी से

22- कुछ जगहों में , कुंई के भीतर की चिनाई किन पेड़ की लकड़ियों से की जाती हैं ?
– अरणी , बण बाबल , कुंबट या आक की लकड़ी से

23- 'आच प्रथा' क्या हैं ?
– कुंई खोदने वालों को वर्षभर सम्मानित करने की एक प्रथा

24- कुंई से पानी कैसे निकाला जाता है?
– छोटी बाल्टी या चड़स के माध्यम से

25- चड़स किससे बनाये जाते हैं?
– मोटे कपड़े या चमड़े से

26- चड़स के मुँह पर क्या बंधा होता है?
– लोहे का वजनी कड़ा

27- कुंई जिस क्षेत्र में बनाई जाती हैं वह जमीन किसकी होती है? 
– गांव समाज की सार्वजनिक जमीन होती है

28- कुंई पर किसका अंकुश लगा रहता है?
– ग्राम समाज का

29-खड़िया पत्थर की पट्टी राजस्थान के किन इलाकों में अधिक मिलती है ?
– चुरू , बीकानेर , जैसलमेर और बाड़मेर

30- “खंडेरों की ढाणी” में कितनी कुंईयाँ थीं ?
– एक सौ बीस (120)



 सारांश 
पाठ का सार
राजस्थान की रजत बूँदें

यह पाठ 'राजस्थान की रजत बूँदें' अनुपम मिश्र द्वारा लिखा गया है इसमें राजस्थान के मरुस्थल में पाई जाने वाली 'कुंई' के बारे में बताया गया है जिसका उपयोग पानी संग्रहण के लिए किया जाता है ।इसमें चेलवांजी कुईं का निर्माण कर रहे है जो तीस -पैंतीस गहरी खोदने पर कुई  का घेरा संकरा हो जाता है।कुईं की खुदाई और चिनाई करने वाले को चेलवांजी यानी चेजारो के नाम से जाना जाता है। कुईं के अन्दर काम कर रहे चेलवांजी पसीने से तरबतर हो रहे हैं। तक़रीबन तीस -पैंतीस गहरी खुदाई हो चुकी है। तापमान भीतर  बढ़ता  ही जा रहा है। तामपान को घटाने के लिए ऊपर से रेत डाली जाती है, जिस वजह से ठंडी हवा नीचे की ओर और गर्म हवा ऊपर की ओर चली जाए। कुईं का व्यास गहरा है जिसकी खुदाई का काम बसौली से किया जा रहा है। खुदाई से जो मलबा निकलता है उसे बाल्टी में इकठ्ठा कर के ऊपर भेजा जाता है।  

कुएँ की तरह कुंई का निर्माण किया जाता है। कुई कोई साधारण ढाँचा नहीं है।कुएँ और कुंई में बस व्यास का अंतर होता है। कुएँ का निर्माण भूजल को पाने के लिए किया जाता है जबकि कुईं का निर्माण वर्षा का पानी इकट्ठा करने के लिए करते है। राजस्थान के अलग – अलग की इलाकों में एक विशेष कारण से कुईंयों की गहराई कुछ कम ज़्यादा होती है। मरुस्थल में रेत का विस्तार अथाह है। यहाँ पर कहीं-कहीं रेत की सतह के पचास-साठ हाथ नीचे खड़िया पत्थर पट्टी मिलती है। कुएँ का पानी खारा  होने के कारण पी नहीं सकते। इसी कारण कुईंयाँ बनाने की आवश्यकता होती है। यह पानी अमृत के समान मीठा होता है। पहला रूप है पालरपानी  – इसका मतलब है बरसात के रूप में मिलने वाला पानी, बारिश का वो जल जो बहकर नदी , तालाबों आदि में एकत्रित होता है। दूसरा रूप है  पातालपानी – बारिश का पानी ज़मीन मे धसकर भूजल बन जाता है ,वह हमें कुओं,ट्यूबवेल द्वारा प्राप्त होता है । और तीसरा रूप है रेजाणी पानी– वह बारिश का पानी जो रेत के नीचे जाता तो है, लेकिन खड़िया मिट्टी के कारण  भूजल में नही मिल पाता  व नमी के रूप में समा जाता है।

वर्षा की मात्रा नापने के लिए इंच या सेंटीमीटर का उपयोग नही बल्कि रेजा शब्द का प्रयोग किया जाता है।रेजाणपाणी खड़िया पट्टी के कारण पातालपानी से अलग बनता है। इस पट्टी के न होने कारण से रेजानिपाणी और पतालपानी खारा हो जाता है। रेजाणपाणी को समेटने के लिए कुईं का निर्माण होता है। कुंई निर्माण के बाद उत्सव महोत्सव मनाया जाता है, चेजारो को राजस्थान में विशेष दर्जा प्राप्त था। चेजारो की विदाई के समय उन्हें अलग – अलग तरह की भेंट दी जाती थी । कुईं के बाद भी उनका रिश्ता बना रहता था , तीज , त्योहारों और विवाह जैसे मांगलिक कार्यो में भी भेंट दी जाती थी। फसल आने पर खलिहान का एक हिस्सा उनके लिए रखा जाता था।  लेकिन आज के समय में उन्हें वो सम्मान नहीं दिया जाता है उनसे बस एक मजदूर की तरह काम लेते हैं।अब कुई में पानी नाम मात्र का ही रहता है। दिन-रात मिलाकर बस तीन-चार घड़े ही भर पाते है। कुंई वहाँ हर घर में है लेकिन ग्राम पंचायत का नियंत्रण बना है। नए कुईं के निर्माण की अनुमति कम ही मिलती है क्योंकि नयी कुईं के  निर्माण से भूमि की नमी का बंटवारा हो जाता है। चुरू, बीकानेर, जैसलमेर और बाड़मेर में खड़िया पत्थर की पट्टी पाई जाती है इसलिए यहाँ हर घर में कुईं पायी जाती है।  



जय हिन्द : जय हिंदी 
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