ghar ki yaad Class 11
आरोह कक्षा-11घर की यादभवानी प्रसाद मिश्र
ghar ki yaad Class 11
“घर की याद” कविता के कवि भवानी प्रसाद मिश्र जी हैं। कवि ने सन 1942 के “भारत छोड़ो आंदोलन” में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। जिस कारण उन्हें तीन वर्ष के लिए जेल की यातना झेलनी पड़ी। कवि ने यह कविता अपनी उसी जेल यात्रा के दौरान लिखी।
अपने जेल प्रवास के दौरान सावन के महीने में एक रात रिमझिम बारिश को देखकर कवि को अपने घर , अपने माता-पिता व अपने परिजनों की बहुत याद आती है । जिससे कवि का मन दुखी हो जाता हैं।
लेकिन वो सावन को अपना संदेशवाहक बनाकर अपने माता-पिता को अपनी सकुशल व मस्त होने का झूठा संदेश भेजने की कोशिश करते हैं ताकि उनके माता-पिता अपने प्रिय बेटे को याद कर दुखी ना हों । वो नहीं चाहते हैं कि उनके माता-पिता उनके अकेलेपन व उनके मन की पीड़ा के बारे में जानें । भावों से भरा हुआ यह चित्रण अद्भुत है जिसे सरल भाषा में उकेरा गया है | मिश्र जी की लेखनी आम शब्दों से खास प्रस्तुति करने में माहिर है ?
Ghar Ki Yaad Class 11 Explanation
Ghar Ki Yaad Class 11 bhavarth
1
आज पानी गिर रहा है ,बहुत पानी गिर रहा है ,रात भर गिरता रहा है ,प्राण मन घिरता रहा है ,बहुत पानी गिर रहा है ,घर नज़र में तिर रहा है ,घर कि मुझसे दूर है जो ,घर खुशी का पूर है जो ,
भावार्थ
उपरोक्त पंक्तियों में कवि अपने घर से दूर जेल की एक कालकोठरी में बंद है। सावन के महीने में खूब बारिश हो रही है जिसे देखकर कवि को अपने घर , परिजनों व उनके साथ बिताए सुखद क्षणों की याद आ रही है।
कवि कहते हैं कि आज बरसात हो रही है। और बहुत पानी गिर रहा हैं अर्थात बहुत बारिश हो रही हैं और यह बारिश रात से हो रही हैं। और ऐसे मौसम में मेरे मन व प्राण , दोनों ही अपने घर की यादों से घिर गये हैं।
बारिश के इस पानी को देखकर कवि को अपने परिजनों की याद हो आती है। और वो कहते हैं कि मुझे अपनी आंखों के सामने अपना वह घर दिखाई दे रहा हैं जो खुशियों का भंडार था । जहाँ सभी लोग प्रेमपूर्वक रहते थे लेकिन आज मैं अपने उसी घर से दूर हूँ।
अर्थात कवि के घर में खुशियों भरा माहौल था जहाँ सभी लोग मिलजुल कर हंसी – खुशी रहते थे। कैद में होने के कारण कवि इस समय अपने घर से दूर हैं। मगर घर की सुखद स्मृतियां कवि को बेचैन कर रही हैं।
काव्य सौंदर्य
भाषा सीधी व सरल है।
“घर नज़र में तिर है” में अनुप्रास अलंकार है।
“पानी गिर रहा है” में यमक अलंकार है।
2
घर कि घर में चार भाई ,मायके में बहिन आई ,बहिन आई बाप के घर ,हाय रे परिताप के घर !घर कि घर में सब जुड़े है ,सब कि इतने कब जुड़े हैं ,चार भाई चार बहिन ,भुजा भाई प्यार बहिन ,
भावार्थ
उपरोक्त पंक्तियों में कवि अपने भाई-बहनों व उनके आपसी संबंधों के बारे में वर्णन कर रहे हैं।कवि कहते हैं कि उनके घर में चार भाई व चार बहनें हैं और सभी भाई- बहनें के बीच अथाह प्रेम है। बहिनें शादीशुदा हैं। और आज वो अपने पिता के घर अर्थात अपने मायके आयी होंगी।
(यहाँ पर कवि अंदाजा लगा रहे हैं कि उनकी बहन मायके आयी होगी। इसका कारण यह हो सकता है कि सावन के महीने में रक्षाबंधन का त्यौहार आता है और इस दिन विवाहित बहनें अपने भाई को राखी बांधने अपने मायके आती हैं।)
लेकिन मायके आकर जब उन्हें मेरे बारे में पता चला होगा तो उन्हें अत्यधिक दुःख पहुंचा होगा। मेरे जेल में होने की वजह से घर के सभी लोग दुखी होंगे और मेरा खुशियों से भरा वह घर अब “परिताप का घर (कष्टों का घर)” बन गया होगा।
कवि आगे कहते हैं कि संकट की इस घड़ी में सब एक दूसरे का सहारा बने हुए होंगे। ऐसा प्रेम व भाईचारा बहुत कम ही देखने को मिलता हैं। मेरे चार भाई व चार बहनें हैं और सभी में आपस में बहुत गहरा प्रेम संबंध हैं। मेरे चारों भाई भुजाओं के समान एक दूसरे को सहयोग करने वाले अत्यंत बलिष्ठ व कर्मशील हैं जबकि मेरी बहनें प्रेम का प्रतीक हैं। यानि वो हम पर अपना अथाह स्नेह व ममता लुटाती रहती हैं।
अर्थात जिस प्रकार इंसान की भुजाएं उसे हर काम करने में सहयोग करती हैं ठीक उसी प्रकार उनके भाई भी उनके सुख दुःख में उनको सहयोग करते हैं।
काव्य सौंदर्य
कविता की भाषा सरल व सहज है।
“भुजा भाई” में अनुप्रास अलंकार है।
“भुजा भाई प्यार बहिन” में उपमा अलंकार है।
3
और माँ बिन – पढ़ी मेरी ,दुःख में वह गढ़ी मेरी ,माँ कि जिसकी गोद में सिर ,रख लिया तो दुख नहीं फिर ,माँ कि जिसकी स्नेह – धारा ,का यहाँ तक भी पसारा ,उसे लिखना नहीं आता ,जो कि उसका पत्र पाता।
भावार्थ
उपरोक्त पंक्तियों में कवि अपनी माँ के बारे में बात करते हुए कहते हैं कि मेरी मां अनपढ़ हैं और मेरे जेल में होने की वजह से वह इस वक्त बहुत दुखी होगी। फिर कवि को अपनी मां की ममता भी याद आने लगती है।
वो कहते हैं कि अगर मैं अपनी माँ की गोद में सिर भी रख लूँ , तो भी मेरी सारी परेशानियों स्वत: ही समाप्त हो जाती हैं। और मेरी मां की स्नेह की धारा अर्थात उनकी ममता व प्रेम मुझे इस जेल की कालकोठरी में भी महसूस हो रही हैं। कवि कहते हैं कि मेरी मां को लिखना नहीं आता। इसीलिए उन्होंने मुझे कोई पत्र नहीं भेजा।
काव्य सौंदर्य
“स्नेह – धारा” में रूपक अलंकार है।
4
पिताजी जिनको बुढ़ापा ,एक क्षण भी नहीं व्यापा ,जो अभी भी दौड़ जाएँ ,जो अभी भी खिलखिलाएँ ,मौत के आगे न हिचकें ,शेर के आगे न बिचकें ,बोल में बादल गरजता ,काम में झंझा लरजता ,
भावार्थ
उपरोक्त पंक्तियों में कवि अपने पिता की शाररिक विशेषताओं के बारे में बात करते हुए कहते हैं कि भले ही उनके पिता की उम्र हो गई हो मगर अभी भी उनके पिता पर बुढ़ापे का कोई असर नहीं दिखाई देता है । अभी भी वो किसी नौजवान की तरह दौड़ सकते हैं , खिलखिला कर हंस सकते हैं।
उन्हें मौत से भय नहीं लगता है और अगर उनके सामने शेर भी आ जाय तो वो उसके सामने बिना डरे खड़े रह सकते है। यानि वो बहुत ही निर्भीक व साहसी व्यक्ति हैं। उनकी वाणी में बादलों की सी गर्जना है और वो इस उम्र में भी इतनी तेजी से काम करते हैं कि आंधी तूफान भी उनको देख शरमा जाय। यानी वो बहुत फुर्तीले (तेजी) हैं।
कवि के पिता बहुत ही कर्मठ व ऊर्जावान व्यक्ति हैं जिनमें आज भी नवयुवकों के जैसा जोश व उत्साह भरा है।
काव्य सौंदर्य
कविता में वीर रस का अच्छा प्रयोग हुआ है।
“अभी भी” में अनुप्रास अलंकार है।
“बादल गरजता” में उपमा अलंकार है।
“झंझा लरजता” में उपमा अलंकार है।
5
आज गीता पाठ करके ,दंड दो सौ साठ करके ,खूब मुगदर हिला लेकर ,मूठ उनकी मिला लेकर,जब कि नीचे आए होंगे ,नैन जल से छाए होंगे ,हाय, पानी गिर रहा है ,घर नज़र में तिर रहा है ,
भावार्थ
उपरोक्त पंक्तियों में कवि अपने पिता की दिनचर्या के बारे में बात करते हुए कहते हैं कि हर रोज की तरह आज भी उन्होंने गीता पाठ किया होगा और दो सौ साठ दंड किये होंगे। और फिर मुद्गर को पकड़कर खूब हिला – हिलाकर व्यायाम किया होगा।
और अंत में मुद्गरों की मूठों (हत्थों) को मिलकर एक जगह रखकर , जब वो घर के ऊपरी हिस्से से नीचे आए होंगे तो , घर में अपने लाडले पुत्र को ना पाकर दुख से उनकी आंखों में आंसू भर आये होंगे।
यानि उनके पिता ने अपनी रोज की दिनचर्या , व्यायाम व पूजापाठ आदि निपटाने के बाद जब घर में अन्य बच्चों के साथ कवि को नहीं देखा होगा तो वो भाव विभोर होकर रोने लगे होंगे। कवि आगे कहते हैं कि अभी भी वर्षा हो रही हैं और बरसते हुए पानी को देखकर मुझे घर की याद आ रही है।
6
चार भाई चार बहिनें,भुजा भाई प्यार बहिनें ,खेलते या खड़े होंगे ,नज़र उनकी पड़े होंगे।पिताजी जिनको बुढ़ापा ,एक क्षण भी नहीं व्यापा ,रो पड़े होंगे बराबर ,पाँचवे का नाम लेकर ,
भावार्थ
उपरोक्त पंक्तियों में कवि अपने पिता के बारे में बात करते हुए कहते हैं कि उनके चारों भाई और चारों बहनों , जो अभी घर पर होंगे और शायद इस वक्त वो या तो खेल रहे होंगे या यूं ही खड़े होंगे।
कवि आगे कहते हैं कि हालाँकि मेरे पिताजी अभी भी पूर्ण रूप से स्वस्थ हैं। बुढ़ापे का उन पर अभी कोई असर दिखाई नहीं देता हैं। मगर जब खेलते हुए मेरे भाई – बहिनों पर उनकी नजर पड़ी होगी । तो वो अपने पाँचवें बेटे यानी कवि को उनके बीच न पाकर दुखी हुए होंगे और उनका नाम लेकर रो पड़े होंगे।
काव्य सौंदर्य
भाषा सहज व सरल हैं।
“भुजा भाई” में अनुप्रास अलंकार है।
“भुजा भाई” में उपमा अलंकार है।
काव्य में वात्सल्य रस देखने को मिलता हैं।
7
पाँचवाँ हूँ मैं अभागा ,जिसे सोने पर सुहागा,पिता जी कहते रहे है ,प्यार में बहते रहे हैं ,आज उनके स्वर्ण बेटे ,लगे होंगे उन्हें हेटे ,क्योंकि मैं उन पर सुहागाबँधा बैठा हूँ अभागा ,
भावार्थ
उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि मैं अपने माता पिता के पांचवा पुत्र हूँ । वैसे तो मेरे पिताजी अपने सभी बेटों को प्रेम करते थे पर मुझे अपने अन्य बेटों की तुलना में श्रेष्ठ मानते थे। इसीलिए वो मुझे बहुत अधिक प्रेम करते थे। अर्थात अगर वो अपने चारों बेटों को सोने के समान मानते थे तो मुझे सुहागा (यानि उन सब में भी सबसे बेहतर) के समान मानते थे।
कवि कहते हैं कि मैं आज उनसे दूर इस जेल में कैद हूँ। इसीलिए आज उनके पिता को अपने स्वर्ण बेटे यानी अन्य चारों बेटे भी अच्छे नहीं लग रहे होंगे। क्योंकि उनका सबसे प्यारा बेटा यानि कवि आज उनकी आँखों के सामने नही है।
कवि यहाँ पर अपने आप को भाग्यहीन बता रहे हैं क्योंकि वो जेल में हैं। जिस कारण उनके माता पिता को कष्ट पहुंच रहा है।
काव्य सौंदर्य
“स्वर्ण बेटे” में रूपक अलंकार है।
“बँधा बैठा” में अनुप्रास अलंकार है।
“सोने पर सुहागा यानि किसी व्यक्ति या वस्तु का बहुत अच्छा होना” लोकोक्ति का प्रयोग किया गया है।
8
और माँ ने कहा होगा ,दुःख कितना बहा होगा ,आँख में किसलिए पानी ,वहाँ अच्छा है भवानी ,वह तुम्हारा मन समझकर ,और अपनापन समझकर ,गया है सो ठीक ही है ,यह तुम्हारी लीक ही है ,
भावार्थ
उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि मां अपने मन के दुःख को छिपा कर पिताजी को समझाते हुए कह रही होंगी कि क्यों दुखी हो रहे हो , क्यों आंसू बहा रहे हो। हमारा बेटा भवानी वहां अच्छे से होगा यानि सकुशल होगा।
माँ पिताजी को समझाते हुए आगे कहती होंगी कि वह आपके मन की बात को समझकर और आपके बताये मार्ग पर ही तो चल रहा हैं। वह देशसेवा करते हुए ही तो जेल गया हैं। यह तुम्हारी ही परंपरा हैं जिसका उसने पालन किया है। इसीलिए उसने जो किया वो ठीक हैं।
यानि देशभक्ति को रास्ता पिता ने अपने पुत्र को दिखाया। और बेटा आज उसी राह पर चल पड़ा हैं। आज देश हित ही उसके लिए सर्वोपरि है। माता को अपने पुत्र की देशभक्ति पर नाज है।
काव्य सौंदर्य
कविता में वात्सल्य रस की प्रधानता है।
संवाद शैली का शानदार प्रयोग हुआ है।
“लीक पर चलना” मुहावरे का प्रयोग है।
9
पाँव जो पीछे हटाता ,कोख को मेरी लजाता ,इस तरह होओ न कच्चे ,रो पड़ेंगे और बच्चे ,पिताजी ने कहा होगा ,हाय , कितना सहा होगा ,कहाँ , मैं रोता कहाँ हूँ ,धीर मैं खोता , कहाँ हूँ ,
भावार्थ
उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि मां पिताजी को समझाते हुए कह रही होंगी कि उनके बेटा ने देश हित को सर्वोपरि मानकर अपने कर्तव्य का पालन किया हैं। अगर वह ऐसा नही करता और देश सेवा से पीछे हट जाता तो आज मेरी कोख लज्जित होती। मुझे शर्मिंदगी का सामना करना पड़ता। लेकिन वह अपने देश की आजादी के खातिर जेल गया जिस पर मुझे गर्व है।
कवि आगे कहते हैं कि माँ पिताजी को समझाते हुए कह रही होंगी कि आप अपने मन को इतना कच्चा मत करो। अपने मन व भावनाओं पर काबू रखो। अपने आपको मजबूत करो नहीं तो घर के अन्य बच्चे भी आपको रोता देख रो पड़ेंगे।
और फिर पिताजी ने अपने आप को संभालते हुए कहा होगा कि अरे नही , मैं कहां रोता हूं और कहाँ मैं अपना धैर्य धीरज खोता हूं । यानि ना तो मैं रो रहा हूँ और ना ही परेशान हूँ।
काव्य सौंदर्य
भाषा सहज व सरल हैं।
“पाँव पीछे हटाना” , “कोख लजाना” , “कच्चा होना” आदि मुहावरों का प्रयोग किया है।
10
हे सजीले हरे सावन ,हे कि मेरे पुण्य पावन ,तुम बरस लो वे न बरसें ,पाँचवे को वे न तरसें ,मैं मज़े में हूँ सही है ,घर नहीं हूँ बस यही है ,किन्तु यह बस बड़ा बस है ,इसी बस से सब विरस है ,
भावार्थ
उपरोक्त पंक्तियों में कवि सावन को संबोधित करते हुए कहा है कि हे !! सुंदर , आकर्षक व सबको खुशियां प्रदान करने वाले सावन , तुम्हें जितना बरसना हैं तुम बरस लो लेकिन मेरे पिताजी की आंखों को मत बरसने देना। और इस बात का भी ध्यान रखना कि वो अपने पाँचवे पुत्र को याद कर दुखी न हों ।
कवि सावन से कहते हैं कि तुम जाकर मेरा यह संदेश मेरे पिता को देना कि मैं यहां पर बहुत मजे में हूँ और बहुत खुश भी हूं। बस इतना ही है कि मैं घर पर नहीं हूं। यानि मुझे यहां पर किसी प्रकार का कोई कष्ट नही है।
लेकिन इसके बाद कवि स्वयं से कहते हैं कि मैंने उन्हें कह तो दिया कि मैं घर पर नहीं हूं। बस यही एक दुख है परंतु अपने माता – पिता व घर से दूर होकर जीना कितना कठिन है । यह केवल मैं ही जानता हूँ। अपनों से दूर होने के दुख ने मेरे जीवन के सारे सुखों को छीन कर उसे नीरस बना दिया है।
काव्य सौंदर्य
भाषा सहज , सरल है। कविता तुकांत है।
कविता में संबोधन शैली का प्रयोग हुआ है।
“पुण्य पावन” , “बस बड़ा बस” में अनुप्रास अलंकार है।
सावन का मानवीकरण किया है।
“बस बड़ा बस” में यमक अलंकार है। “बस” शब्द दो अलग अलग अर्थों में प्रयोग हुआ है।
घर नहीं हूँ बस यही है ” में “बस” शब्द का अर्थ हैं “केवल “। केवल मैं आपके साथ घर पर नहीं हूँ।
“किन्तु यह बस बड़ा बस है” में पहले “बस” शब्द का अर्थ “केवल” ही हैं । केवल मैं आपके साथ घर पर नहीं हूँ। यह कहना भले ही आसान हो मगर घर से दूर रहना कोई मामूली बात नहीं है । दूसरे “बस” शब्द का अर्थ है “विवशता” । यह मेरी विवशता है यानि घर से दूर रहना उनकी विवशता हैं इच्छा नही।
“इसी बस से सब विरस है” में “बस” शब्द का अर्थ हैं कि घर से दूर रहने की विवशता ने मेरे जीवन की सारी खुशियां छीन ली है।और उसे रसहीन (बिरस) बना दिया है।
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किन्तु उनसे यह न कहना ,
उन्हें देते धीर रहना ,
उन्हें कहना लिख रहा हूँ ,
उन्हें कहना पढ़ रहा हूँ ,
काम करता हूँ कि कहना ,
नाम करता हूँ कि कहना ,
चाहते है लोग , कहना,
मत करो कुछ शोक कहना ,
भावार्थ
उपरोक्त पंक्तियों में कवि अपनी भावनाओं पर संयम रखते हुए कहते हैं कि हे !! सावन तुम उनसे यह सब मत कहना कि मैं दुखी हूं , अकेला हूँ। तुम उन्हें धैर्य बंधाते रहना और कहना कि मैं यहां लिखता हूं , पढ़ता हूं , खूब काम करता हूं और देश सेवा करके अपना नाम रोशन कर रहा हूं।
कवि आगे वह कहते कि मेरे माता पिता से कहना कि जेल के सभी लोग मुझे चाहते हैं। और मुझे यहां कोई कष्ट भी नही है। इसीलिए वो दुखी ना हो।
काव्य सौंदर्य
“काम करता” , “कि कहना” में अनुप्रास अलंकार है।
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और कहना मस्त हूँ मैं ,कातने में व्यस्त हूँ मैं ,वज़न सत्तर सेर मेरा ,और भोजन ढेर मेरा ,कूदता हूँ , खेलता हूँ ,दुख डट कर ठेलता हूँ ,और कहना मस्त हूँ मैं,यों न कहना अस्त हूँ मैं ,
भावार्थ
उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि सावन तुम मेरे माता पिता से जाकर कहना कि मैं यहाँ पर मस्त हूं और सूत कातने में व्यस्त हूं। मैं यहां खूब खाता-पीता हूं। इसीलिए मेरा मेरा वजन 70 सेर ( 63 किलो) हो गया है।
कवि कहते हैं कि मैं यहां पर खूब खेलता – कूदता हूँ। हर विपरीत परिस्थति का सामना आराम से करता हूं और मस्त रहता हूं। यानि मैं पूर्ण रूप से स्वस्थ हूँ।
कवि सावन से कहते हैं कि उनको यह बिलकुल भी नही बताना कि मैं यहां पर दुखी हूँ , निराश हूं , उदास हूँ नही तो वो दुखी हो जायेंगे।
काव्य सौंदर्य
“डटकर ठेलना” , “अस्त होना” मुहावरों का प्रयोग किया गया है।
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हाय रे , ऐसा न कहना ,
है कि जो वैसा न कहना ,
कह न देना जागता हूँ ,
आदमी से भागता हूँ ,
कह न देना मौन हूँ मैं ,
ख़ुद न समझूँ कौन हूँ मैं ,
देखना कुछ बक न देना ,
उन्हें कोई शक न देना ,
भावार्थ
उपरोक्त पंक्तियों में कवि सावन से कहते हैं कि मेरी मन स्थिति व मेरे दुखों के बारे में तुम मेरे माता – पिता को गलती से भी मत बताना।
तुम उनको यह मत बताना कि मैं रात भर जागता हूँ यानि मैं रात को सो नहीं पाता। आदमियों को देखकर घबरा जाता हूं। मैं मौन रहने लगा हूँ यानि अब मुझे किसी से बात करना अच्छा नहीं लगता है। और मुझे खुद नहीं पता कि मैं कौन हूं।
हे !! मेरे सजीले सावन , तुम मेरे पिताजी के आगे कुछ भी ऐसा उल्टा – सीधा मत बोल देना जिससे उनको शक हो जाय कि कही उनका बेटा किसी दुख या तकलीफ में तो नही हैं।
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हे सजीले हरे सावन ,
हे कि मेरे पुण्य पावन ,
तुम बरस लो वे न बरसे ,
पाँचवें को वे न तरसें ।
भावार्थ
और अंत में कवि सावन को संबोधित करते हुए कहा है कि हे !! सुंदर , आकर्षक व खुशियां प्रदान करने वाले सावन तुम्हें जितना बरसना हैं , तुम बरसो लेकिन अपने पाँचवे पुत्र को याद कर मेरे माता – पिता की आंखों को मत बरसने देना।
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कविता के साथ
प्रश्न 1: पानी के रात भर गिरने और प्राण-मन के धिरने में परस्पर क्या संबंध है?
उत्तर : ‘घर की याद’ का आरंभ इसी पंक्ति से होता है कि ‘आज पानी गिर रहा है। इसी बात को कवि कई बार अलग-अलग ढंग से कहता है-‘बहुत पानी गिर रहा है’, ‘रात भर गिरता रहा है। भाव यह है कि सावन की झड़ी के साथ-साथ ‘घर की यादों’ से कवि का मन भर आया है। प्राणों से प्यारे अपने घर को, एक-एक परिजन को, माता-पिता को याद करके उसकी आँखों से भी पानी गिर रहा है। वह कहता है कि ‘घर नज़र में तैर रहा है। बादलों से वर्षा हो रही है और यादों से घिरे मन का बोझ कवि की आँखों से बरस रहा है।
प्रश्न 2: मायके आई बहन के लिए कवि ने घर को ‘परिताप का घर’ क्यों कहा है?
उत्तर : कवि ने बहन के लिए घर को परिताप का घर कहा है। बहन मायके में अपने परिवार वालों से मिलने के लिए खुशी से आती है। वह भाई-बहनों के साथ बिताए हुए क्षणों को याद करती है। घर पहुँचकर जब उसे पता चलता है कि उसका एक भाई जेल में है तो वह बहुत दुखी होती है। इस कारण कवि ने घर को परिताप का घर कहा है।
प्रश्न 3: पिता के व्यक्तित्व की किन विशेषताओं को उकेरा गया है?
उत्तर : कवि अपने पिता की निम्नलिखित विशेषताएँ बताता है –
- उनके पिता को वृद्धावस्था कभी कमजोर नहीं कर पाई।
- वे फुर्तीले हैं कि आज भी दौड़ लगा सकते हैं।
- खिलखिलाकर हँस सकते हैं।
- वे इतने उत्साही हैं कि मौत के सामने भी हिचकिचा नहीं सकते।
- उनमें इतना साहस है कि वे शेर के सामने भी भयभीत नहीं होंगे। उनकी आवाज़ मानो बादलों की गर्जना है।
- हर काम को तूफ़ान की रफ्तार से करने की उनमें अद्भुत क्षमता है।
- वे गीता का पाठ करते हैं और आज भी 260 (दो सौ साठ) तक दंड पेलते हैं, मुगदर (व्यायाम करने का मजबूत भारी लकड़ी का यंत्र) घुमाते हैं।
- आँखों में जल भर दिया है। वे भावुक भी हैं।.
प्रश्न 4: निम्नलिखित पंक्तियों में ‘बड्स’ शब्द के प्रयोग की विशेषता बताइए-
मैं मजे में हूँ सही हैघर नहीं हूँ बस यही हैकिंतु यह बस बड़ा बस है।इसी बस से सब विरस हैं।
उत्तर : कवि ने बस शब्द का लाक्षणिक प्रयोग किया है। पहली बार के प्रयोग का अर्थ है कि वह केवल घर पर ही नहीं है। दूसरे प्रयोग का अर्थ है कि वह घर से दूर रहने के लिए विवश है। तीसरा प्रयोग उसकी लाचारी व विवशता को दर्शता है। चौथे बस से कवि के मन की व्यथा प्रकट होती है जिसके कारण उसके सारे सुख छिन गए हैं।
प्रश्न 5: कविता की अंतिम 12 पंक्तियों को पढ़कर कल्पना कीजिए कि कवि अपनी किस स्थिति व मन:स्थिति को अपने परिजनों से छिपाना चाहता है?
उत्तर : इन पंक्तियों में कवि स्वाधीनता आंदोलन का वह सेनानी है जो जेल की यातना झेलकर भी यातनाओं की जानकारी अपने परिवार के लोगों को इसलिए नहीं देना चाहता है, क्योंकि इससे वे दुखी होंगे। कवि कहता है कि हे सावन ! उन्हें मत बताना कि मैं अस्त हूँ। यहाँ जैसा दुखदायी माहौल है उसकी जानकारी मेरे घरवालों को मत देना। उन्हें यह मत बताना । कि मैं ठीक से सो भी नहीं पाता और मनुष्य से भागता हूँ। कहीं उन्हें यह मत बताना कि जेल की यातनाओं से मैं मौन हो गया हूँ, कुछ नहीं बोलता। मैं स्वयं यह नहीं समझ पा रहा कि मैं कौन हूँ? अर्थात् देश-प्रेम अपराध की सजा? कहीं ऐसा न हो कि मेरे माता-पिता को शक हो जाए कि मैं दुखी हूँ और वे मेरे लिए रोने लगें हे सावन! तुम बरस लो जितना बरसना है, पर मेरे माता-पिता को रोना न पड़े। अपने पाँचवें पुत्र के लिए वे न तरसे अर्थात् वे हर हाल में खुश रहें। कवि उन्हें ऐसा कोई संदेश नहीं देना चाहता जो दुख का कारण बने।
कविता के आसपास
प्रश्न 1: ऐसी पाँच रचनाओं का संकलन कीजिए जिसमें प्रकृति के उपादानों की कल्पना संदेशवाहक के रूप में. की गई है।
उत्तर –
विद्यार्थी स्वयं करें।
प्रश्न 2: घर से अलग होकर आप घर को किस तरह से याद करते हैं? लिखें।
उत्तर : विद्यार्थी अपने अनुभव लिखें।
अन्य हल प्रश्न
प्रश्न 1: ‘घर की याद’ कविता का प्रतिपाद्य लिखिए।
उत्तर : इस कविता में घर के मर्म का उद्घघाटन है। कवि को जेल-प्रवास के दौरान घर से विस्थापन की पीड़ा सालती है। कवि के स्मृति-संसार में उसके परिजन एक-एक कर शामिल होते चले जाते हैं। घर की अवधारणा की सार्थक और मार्मिक याद कविता की केंद्रीय संवेदना है। सावन के बादलों को देखकर कवि को घर की याद आती है। वह घर के सभी सदस्यों को याद करता है। उसे अपने भाइयों व बहनों की याद आती है। उसकी बहन भी मायके आई होगी। कवि को अपनी अनपढ़, पुत्र के दुख से व्याकुल, परंतु स्नेहमयी माँ की याद आती है। वह सावन को दूत बनाकर अपने माता-पिता के पास अपनी कुशलक्षेम पहुँचाने का प्रयास करता है ताकि कवि के प्रति उनकी चिंता कम हो सके।
प्रश्न 2: पिता कवि को ‘सोने पर सुहागा’ क्यों कहते हैं?
उत्तर : पिता कवि से बहुत स्नेह करते थे। पिता की इच्छा से ही कवि ने स्वयं को देश-सेवा के लिए अर्पित किया था। जिसकी वजह से वह आज जेल में था। उसने परिवार का नाम रोशन किया। इन कारणों से पिता ने कवि को सोने पर सुहागा कहा।
प्रश्न 3: उम्र बड़ी होने पर भी पिता को बुढ़ापा क्यों नहीं छू पाया था?
उत्तर: कवि के पिता की आयु अधिक थी, परंतु वे सरल स्वभाव के थे। निरंतर व्यायाम करते थे और दौड़ लगाते थे। वे खूब काम करते थे तथा निर्भय रहते थे। इस कारण उन्हें बुढ़ापा छू नहीं पाया था।
प्रश्न 4: ‘देखना कुछ बक न देना’ के स्थान पर ‘देखना कुछ कह न देना’ के प्रयोग से काव्य-सौंदर्य में क्या अंतर आ जाता?
उत्तर : कवि यदि ‘बक’ शब्द के स्थान पर ‘कह’ शब्द रख देता तो कथन का विशिष्ट अर्थ समाप्त हो जाता। ‘बकना’ शब्द खीझ को प्रकट करता है। ‘कहना’ सामान्य शब्द है। अत: ‘बक’ शब्द अधिक सटीक है।
जय हिन्द : जय हिंदी
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