kavitavali class 12 aroh | तुलसीदास-कवितावली

kavitavali class 12 aroh | तुलसीदास-कवितावली

गोस्वामी तुलसीदास 

पाठ-8 कवितावली (उत्तर काण्ड से )
लक्ष्मण – मूर्च्छा और राम का विलाप




कविता -कवित्त और सवैया
तुलसीदास

भाव सौन्दर्य


इस शीर्षक के अंतर्गत दो कवित्त और एक सवैया संकलित हैं। ‘कवितावली’ से अवतरित इन कवित्तों में कवि तुलसी का विविध विषमताओं से ग्रस्त कलिकाल तुलसी का युगीन यथार्थ है, जिसमें वे कृपालु प्रभु राम व रामराज्य का स्वप्न रचते हैं। युग और उसमें अपने जीवन का न सिर्फ उन्हें गहरा बोध है, बल्कि उसकी अभिव्यक्ति में भी वे अपने समकालीन कवियों से आगे हैं। यहाँ पाठ में प्रस्तुत ‘कवितावली’ के छंद इसके प्रमाण हैं | पहले छन्द "किसवी किसान” में उन्होंने दिखलाया है कि संसार के अच्छे-बुरे समस्त लीला-प्रपंचों का आधार ‘पेट की आग’ का गहन यथार्थ है; जिसका समाधान वे राम की भक्ति में देखते हैं। दरिद्रजन की व्यथा दूर करने के लिए राम रूपी घनश्याम का आह्वान किया गया है। पेट की आग बुझाने के लिए राम रूपी वर्षा का जल अनिवार्य है।इसके लिए अनैतिक कार्य करने की आवश्यकता नहीं है।‘

इस प्रकार, उनकी राम भक्ति पेट की आग बुझाने वाली यानी जीवन के यथार्थ संकटों का समाधान करने वाली है; न कि केवल आध्यात्मिक मुक्ति देने वाली| गरीबी की पीड़ा रावण के समान दुखदायी हो गई है।


काव्य सौन्दर्य 

  • कवितावली मानस में बज्र भाषा का प्रयोग ।
  • अनुप्रास अलंकार का सुंदर प्रयोग ।
  • रूपक अलंकार का प्रयोग(राम-घनश्याम ,दारिद दसानन ...)
  • व्यतिरेक अलंकार का प्रयोग (आगि बडवागीते बड़ी है आग पेटकी ...)
  • मध्ययुगीन चेतना का दिग्दर्शन ।
  • सवैया,दोहा छंद और चौपाई का प्रयोग ।



कविता पर आधारित प्रश्नोत्तर


प्रश्न1:- पेट की भूख शांत करने के लिए लोग क्या क्या करते हैं?
उत्तर :- पेट की आग बुझाने के लिए लोग अनैतिक कार्य करते हैं।


प्रश्न2:- तुलसीदास की दृष्टि में सांसारिक दुखों से निवृत्ति का सर्वोत्तम उपाय क्या है?
उत्तर :- पेट की आग बुझाने के लिए राम कृपा रूपी वर्षा का जल अनिवार्य है।इसके लिए अनैतिक कार्य करने की आवश्यकता नहीं है।

प्रश्न3:- तुलसी के युग की समस्याओं का चित्रण कीजिए।
उत्तर :- तुलसी के युग में प्राकृतिक और प्रशासनिक वैषम्य के चलते उत्पन्न पीडा दरिद्रजन के लिए रावण के समान दुखदायी हो गई है।

प्रश्न4:- तुलसीदास की भक्ति का कौन सा स्वरूप प्रस्तुत कवित्तों में अभिव्यक्त हुआ है?
उत्तर :- तुलसीदास की भक्ति का दास्य भाव स्वरूप प्रस्तुत कवित्तों में अभिव्यक्त हुआ है।



लक्ष्मण – मूर्च्छा और राम का विलाप

भाव सौन्दर्य

रावण पुत्र मेघनाद द्वारा शक्ति बाण से मूर्छित हुए लक्ष्मण को देखकर राम व्याकुल हो जाते हैं। सुषेण वैद्य ने संजीवनी बूटी लाने के लिए हनुमान को हिमालय पर्वत पर भेजा। आधी रात व्यतीत होने पर जब हनुमान नहीं आए, तब राम ने अपने छोटे भाई लक्ष्मण को उठाकर हृदय से लगा लिया और साधारण मनुष्य की भाँति विलाप करने लगे। राम बोले हे भाई तुम मुझे कभी दुखी नहीं देख सकते | तुमने मेरे लिए माता-पिता को भी छोड़ दिया और मेरे साथ वन में सर्दी,गर्मी और विभिन्न प्रकार की विपरीत परिस्थितियों को भी सहा | जैसे पंख बिना पक्षी,मणि बिना सर्प और सूँड बिना श्रेष्ठ हाथी अत्यंत दीन हो जाते हैं, हे भाई! यदि मैं जीवित रहता हूँ तो मेरी दशा भी वैसी ही हो जाएगी।मैं अपनी पत्नी के लिए अपने प्रिय भाई को खोकर कौन सा मुँह लेकर अयोध्या जाऊँगा। इस बदनामी को भले ही सह लेता कि राम कायर है और अपनी पत्नी को खो बैठा। स्त्री की हानि विशेष क्षति नहीं है,परन्तु भाई को खोना अपूर्णीय क्षति है। ‘रामचरितमानस’ के ‘लंका कांड’ से गृहित लक्ष्मण को शक्ति बाण लगने का प्रसंग कवि की मार्मिक स्थलों की पहचान का एक श्रेष्ठ नमूना है। भाई के शोक में विगलित राम का विलाप धीरे धीरे प्रलाप में बादल जाता है | जिसमें लक्ष्मण के प्रति राम के अंतर में छिपे प्रेम के कई कोण सहसा अनावृत हो जाते हैं। यह प्रसंग ईश्वर राम में मानव सुलभ गुणों का समन्वय कर देता है | हनुमान का संजीवनी लेकर आ जाना करुण रस में वीर रस का उदय हो जाने के समान है | विनय पत्रिका एक अन्य महत्त्वपूर्ण तुलसीदासकृत काव्य है।


काव्य सौन्दर्य 

  • रामचरित मानस में अवधी बोली का प्रयोग ।
  • अनुप्रास अलंकार का सुंदर प्रयोग ।
  • मध्ययुगीन चेतना का दिग्दर्शन ।
  • दोहा छंद और चौपाई का प्रयोग ।



कविता पर आधारित प्रश्नोत्तर 


प्रश्न 1: -‘तव प्रताप उर राखि प्रभु में किसके प्रताप का उल्लेख किया गया है?’और क्यों ?
उत्तर :- इन पँक्तियों में भरत के प्रताप का उल्लेख किया गया है। हनुमानजी उनके प्रताप का स्मरण करते हुए अयोध्या के ऊपर से उड़ते हुए संजीवनी ले कर लंका की ओर चले जा रहे हैं।


प्रश्न 2:- राम विलाप में लक्ष्मण की कौन सी विशेषताएँ उद्घटित हुई हैं ?
उत्तर :- लक्ष्मण का भ्रातृप्रेम, त्यागमय जीवन इन पँक्तियों के माध्यम से उदघाटित हुआ है।


प्रश्न 3:- बोले वचन मनुज अनुसारी से कवि का क्या तात्पर्य है?
उत्तर :- भगवान राम एक साधारण मनुष्य की तरह विलाप कर रहे हैं किसी अवतारी मनुष्य की तरह नहीं। भ्रातृ प्रेम का चित्रण किया गया है।तुलसीदास की मानवीय भावों पर सशक्त पकड़ है।दैवीय व्यक्तित्व का लीला रूप ईश्वर राम को मानवीय भावों से समन्वित कर देता है।


प्रश्न 4:- भाई के प्रति राम के प्रेम की प्रगाढ़ता उनके किन विचारों से व्यक्त हुई है?
उत्तर :- जथा पंख बिन खग अति दीना।
मनि बिनु फनि करिबर कर हीना।
अस मम जिवन बंधु बिनु तोही।
जो जड़ दैव जिआवै मोही।


प्रश्न 5:- ‘बहुविधि सोचत सोचविमोचन’ का विरोधाभास स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :- दीनजन को शोक से मुक्त करने वाले भगवान राम स्वयं बहुत प्रकार से सोच में पड़कर दुखी हो रहे हैं।


प्रश्न 6:- हनुमान का आगमन करुणा में वीर रस का आना किस प्रकार कहा जा सकता है?
उत्तर :- रुदन करते वानर समाज में हनुमान उत्साह का संचार करने वाले वीर रस के रूप में आ गए। करुणा की नदी हनुमान द्वारा संजीवनी ले आने पर मंगलमयी हो उठती है।


लक्ष्मण – मूर्च्छा और राम का विलाप
अर्थ-ग्रहण-संबंधी प्रश्न


उहाँ राम लछिमनहिं निहारी। 
बोले बचन मनुज अनुसारी॥

अर्ध राति गइ कपि नहिं आयउ। 
राम उठाइ अनुज उर लायउ॥

सकहु न दुखित देखि मोहि काऊ। 
बंधु सदा तव मृदुल सुभाऊ॥

मम हित लागि तजेहु पितु माता। 
सहेहु बिपिन हिम आतप बाता॥

सो अनुराग कहाँ अब भाई। 
उठहु न सुनि मम बच बिकलाई॥

जौं जनतेउँ बन बंधु बिछोहू। 
पिता बचन मनतेउँ नहिं ओहू॥

सुत बित नारि भवन परिवारा। 
होहिं जाहिं जग बारहिं बारा॥

अस बिचारि जियँ जागहु ताता। 
मिलइ न जगत सहोदर भ्राता॥

जथा पंख बिनु खग अति दीना। 
मनि बिनु फनि करिबर कर हीना॥

अस मम जिवन बंधु बिनु तोही। 
जौं जड़ दैव जिआवै मोही॥

जैहउँ अवध कवन मुहु लाई। 
नारि हेतु प्रिय भाइ गँवाई॥

बरु अपजस सहतेउँ जग माहीं। 
नारि हानि बिसेष छति नाहीं॥

अब अपलोकु सोकु सुत तोरा। 
सहिहि निठुर कठोर उर मोरा॥

निज जननी के एक कुमारा। 
तात तासु तुम्ह प्रान अधारा॥

सौंपेसि मोहि तुम्हहि गहि पानी। 
सब बिधि सुखद परम हित जानी॥

उतरु काह दैहउँ तेहि जाई। 
उठि किन मोहि सिखावहु भाई॥


प्रश्न1:-‘बोले बचन मनुज अनुसारी’- का तात्पर्य क्या है ?
उत्तर :- भाई के शोक में विगलित राम का विलाप धीरे –धीरे प्रलाप में बदल जाता है ,जिसमें लक्ष्मण के प्रति राम के अंतर में छिपे प्रेम के कई कोण सहसा अनावृत हो जाते हैं। यह प्रसंग ईश्वर राम में मानव सुलभ गुणों का समन्वय कर देता है| वे मनुष्य की भांति विचलित हो कर ऐसे वचन कहते हैं जो मानवीय प्रकृति को ही शोभा देते हैं |

प्रश्न2:- राम ने लक्ष्मण के किन गुणों का वर्णन किया है?
उत्तर :-राम ने लक्ष्मण के इन गुणों का वर्णन किया है-

  • लक्ष्मण राम से बहुत स्नेह करते हैं |
  • उन्होंने भाई के लिए अपने माता –पिता का भी त्याग कर दिया |
  • वे वन में वर्षा ,हिम, धूप आदि कष्टों को सहन कर रहे हैं |
  • उनका स्वभाव बहुत मृदुल है |वे भाई के दुःख को नहीं देख सकते |

प्रश्न3:- राम के अनुसार कौन सी वस्तुओं की हानि बड़ी हानि नहीं है और क्यों ?
उत्तर :-राम के अनुसार धन ,पुत्र एवं नारी की हानि बड़ी हानि नहीं है क्योंकि ये सब खो जाने पर पुन: प्राप्त किये जा सकते हैं पर एक बार सगे भाई के खो जाने पर उसे पुन: प्राप्त नहीं किया जा सकता |

प्रश्न4:- पंख के बिना पक्षी और सूंड के बिना हाथी की क्या दशा होती है काव्य प्रसंग में इनका उल्लेख क्यों किया गया है ?

उत्तर :- राम विलाप करते हुए अपनी भावी स्थिति का वर्णन कर रहे हैं कि जैसे पंख के बिना पक्षी और सूंड के बिना हाथी पीड़ित हो जाता है ,उनका अस्तित्व नगण्य हो जाता है वैसा ही असहनीय कष्ट राम को लक्ष्मण के न होने से होगा |



कवितावली (उत्तर काण्ड से )
सौंदर्य-बोध-संबंधी प्रश्न

“किसबी, किसान-कुल ,बनिक, भिखारी ,भाट,
चाकर ,चपल नट ,चोर, चार ,चेटकी|
पेटको पढ्त,गुन गढ़त, चढ़त गिरि,
अटत गहन –गन अहन अखेट्की|
ऊंचे –नीचे करम ,धरम –अधरम करि,
पेट ही को पचत, बचत बेटा –बेटकी |
‘तुलसी’ बुझाई एक राम घनस्याम ही तें ,
आगि बड़वागितें बड़ी है आगि पेटकी|”


प्रश्न1:- कवितावली किस भाषा में लिखी गई है?
उत्तर :- ब्रज भाषा

प्रश्न2:- कवितावली में प्रयुक्त छंद एवं रस को स्पष्ट कीजिए |
उत्तर :- इस पद में 31-31 वर्णों का चार चरणों वाला समवर्णिक कवित्त छंद है जिसमें 16 एवं 15 वर्णों पर विराम होता है।

प्रश्न3:- कवित्त में प्रयुक्त अलंकारों को छांट कर लिखिए-

i. अनुप्रास अंलकार–

किसबी, किसान-कुल ,बनिक, भिखारी ,भाट,
चाकर ,चपल नट ,चोर, चार ,चेटकी|

ii. रूपक अलंकार– राम– घनश्याम

iii. अतिशयोक्ति अलंकार– आगि बड़वागितें बड़ि है आग पेट की।


कवितावली (उत्तर काण्ड से )

निम्नलिखित काव्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर नीचे दिए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

किसबी, किसान-कुल, बनिक, भिखारी,भाट,
चाकर, चपल नट, चोर, चार, चेटकी।
पेटको पढ़त, गुन गुढ़त, चढ़त गिरी,
अटत गहन-गन अहन अखेटकी।।

ऊँचे-नीचे करम, धरम-अधरम करि,
पेट ही की पचत, बेचत बेटा-बेटकी।।
‘तुलसी ‘ बुझाई एक राम घनस्याम ही तें,
आग बड़वागितें बड़ी हैं आग पेटकी।।

प्रश्न : 1 कवितावली की भाषा है –

(अ) अवधी
(ब) ब्रजभाषा
(स) राजस्थानी
(द) उड़िया

उत्तर:  ब्रजभाषा

प्रश्न : 2 तुलसीदास किस काल के कवि थे –

(अ) भक्तिकाल
(ब) रीतिकाल
(स) आधुनिक काल
(द)आदिकाल

उत्तर: (अ) भक्तिकाल

प्रश्न : 3 बनिक शब्द का अर्थ है –

(अ) व्यापारी
(ब) किसान
(स) चोर
(द) हाथी

उत्तर: (अ) व्यापारी

प्रश्न : 4 घनश्याम किसे कहा गया है

(अ) श्री राम
(ब) कृष्ण
(स) तुलसीदास
(द) रहीम

उत्तर: (अ) श्री राम

प्रश्न : 5 गिरी शब्द का पर्याय क्या है

(अ) पहाड़
(ब) पौधे
(स) वन
(द) नदी

उत्तर: (अ) पहाड़


पठित पद्यांश 2 

खेती न किसान को, भिखारी को न भीख, बलि,
बनिक को बनिज, न चाकर को चाकरी
जीविका बिहीन लोग सीद्यमान सोच बस,
कहैं एक एकन सों ‘ कहाँ जाई, का करी ?’

बेदहूँ पुरान कही, लोकहूँ बिलोकिअत,
साँकरे स सबैं पै, राम ! रावरें कृपा करी।
दारिद-दसानन दबाई दुनी, दीनबंधु !
दुरित-दहन देखि तुलसी हहा करी।

प्रश्न : 1 बलि शब्द का अर्थ है –

(अ) जीवन
(ब) दान
(स) भोजन
(द) बलिदान

उत्तर: (ब) दान

प्रश्न : 2 प्रस्तुत पद में किस स्थिति का चित्रण है

(अ) अन्याय का
(ब) विलासिता का
(स) समाज की बेरोजगारी एवं अकाल
(द) भक्ति का

उत्तर: (स) समाज की बेरोजगारी एवं अकाल

प्रश्न : 3 प्रस्तुत पद में किस अलंकार की छटा है

(अ) अनुप्रास अलंकार
(ब) यमक अलंकार
(स) रूपक अलंकार
(द) उपमा अलंकार

उत्तर: (अ) अनुप्रास अलंकार

प्रश्न: 4 सांकरे शब्द का अर्थ है

(अ) संकरा
(ब) संकट के समय
(स) दुबला
(द) जीवन

उत्तर: (ब) संकट के समय

प्रश्न :5 दारिद दसानन में कौन सा अलंकार है –

(अ) रूपक अलंकार
(ब) उपमा अलंकार
(स) अनुप्रास अलंकार
(द) यमक अलंकार

उत्तर: (अ) रूपक अलंकार


लघुत्तरीय प्रश्न

प्रश्न :  कवितावली में उद्दृत छंदों के आधार पर स्पष्ट करें कि तुलसीदास को अपने युग की आर्थिक विषमता की अच्छी समझ है।

उत्तर:- कवितावली में उद्दृत छंदों से यह ज्ञात होता है कि तुलसीदास को अपने युग की आर्थिक विषमता की अच्छी समझ है। उन्होंने समकालीन समाज का यथार्थपरक चित्रण किया है। उन्होंने देखा कि उनके समय में बेरोजगारी की समस्या से मजदूर, किसान, नौकर, भिखारी आदि सभी परेशान थे। गरीबी के कारण लोग अपनी संतानों तक को बेच रहे थे। सभी ओर भूखमरी और विवशता थी।


प्रश्न :  पेट भरने के लिए लोग क्या क्या अनैतिक कार्य करते हैं ?

उत्तर:- पेट भरने के लिए लोग धर्म-अधर्म व ऊंचे-नीचे सभी प्रकार के कार्य करते है | विवशता के कारण वे अपनी संतानों को भी बेच देते हैं ।

3. कवि के अनुसार, पेट की आग कौन बुझा सकता है? यह आग कैसे है?

उत्तर:- कवि के अनुसार, पेट की आग को रामरूपी घनश्याम ही बुझा सकते हैं। यह आग समुद्र की आग से भी भयंकर है।

4. तुलसीदास ने दरिद्रता की तुलना किससे की है तथा क्यों?

उत्तर:- तुलसीदास ने दरिद्रता की तुलना रावण से की है। दरिद्रतारूपी रावण ने पूरी दुनिया को दबोच लिया है तथा इसके कारण पाप बढ़ गया है

5. उन कर्मों का उल्लेख कीजिए जिन्हें लोग पेट की आग बुझाने के लिए करते हैं?

उत्तर:- कुछ लोग पेट की आग बुझाने के लिए पढ़ते हैं तो कुछ अनेक तरह की कलाएँ सीखते हैं। कोई पर्वत पर चढ़ता है तो कोई घने जंगल में शिकार के पीछे भागता है। इस तरह वे अनेक छोटे-बड़े काम करते हैं।


लक्ष्मण मूर्च्छा और राम का विलाप 

निम्नलिखित काव्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर नीचे दिए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-


सुत बित नारि भवन परिवारा। 
होहिं जाहिं जग बारह बारा।।

अस बिचारि जिय जागहु ताता। 
मिलइ न जगत सहोदर भ्राता।।

जथा पंख बिनु खग अति दीना। 
मनि बिनु फनि करिबर कर हीना।।

अस मम जिवन बंधु बिनु तोही। 
जों जड़ दैव जिआर्वे मोही।।

जैहउँ अवध कवन मुहुँ लाई। 
नारि हेतु प्रिय भाड़ गवाई।।

बरु अपजस सहतेउँ जग माहीं। 
नारि हानि बुसेष छति नहीं।।


प्रश्न 1. प्रस्तुत पद्यांश में कौन सी भाषा का प्रयोग हुआ है?

(1) अवधी
(2) बज्र
(3) बुन्देली
(4) मेवाती

उत्तर :- अवधी

प्रश्न 2. सुत बित नारि भवन परिवारा। होहिं जाहिं जग बारह बारा।। पंक्ति में बित शब्द का अर्थ है?

(1) धन
(2) गाय
(3) पुत्र
(4) पत्नी

उत्तर :- धन

प्रश्न 3. प्रस्तुत पद्यांश के रचियता है -

(1) तुलसीदास
(2) सूरदास
(3) मीरा बाई
(4) हरिदास

उत्तर :- तुलसीदस

प्रश्न 4. साँप का जीवन किसके बिना दीनहीन है?

(1) मुँह
(2) मणि
(3) दांत
(4) पैर

उत्तर :- मणि

प्रश्न 5. लक्षमण के मुर्च्छित होने पर कौन विलाप करने लगा ?

(1) राम
(2) सीता
(3) हनुमान जी
(4) सुग्रीव

उत्तर :- राम


कथा कही सब तेहिं अभिमानी। 
कही प्रकार सीता हरि आनी।।

तात कपिन्ह सब निसिचर मारे। 
महा महा जोधा संघारे महा।।

दुर्मुख सुररुपु मनुज अहारी। 
भट अतिकाय अकंपन भारी।।

अपर महोदर आदिक बीरा। 
परे समर महि सब रनधीरा।।


दोहा

सुनि दसकंधर बचन तब,
कुंभकरन बिलखान।।

जगदबा हरि अनि अब,
सठ चाहत कल्यान।।


प्रश्न 1. प्रस्तुत पद्यांश में रावण की सेना के कौन-कौनसे वीर मारे गए?

(1) देवशत्रु
(2) नरान्तक
(3) महोदर
(4) उपरोक्त सभी

उत्तर - उपरोक्त सभी

प्रश्न 2. सीता का अपहरण किसने किया?

(1) देवशत्रू
(2) रावण
(3) मेघनाथ
(4) विभीषण

उत्तर - रावण

प्रश्न 3. रावण के सभी महान योद्धाओ को किसने मारा?

(1) हनुमान जी
(2) राम
(3) लक्षमण
(4) कुम्भकरण

उत्तर - हनुमान जी

प्रश्न 4. सुनि दसकंधर बचन तब]कुंभकरन बिलखान।। पंक्ति में दसकंधर शब्द किसके लिए प्रयुक्त हुआ है ?

(1) रावण
(2) मेघनाथ
(3) कुम्भकरण
(4) सुपर्णखा

उत्तर :- रावण

प्रश्न 5. प्रस्तुत पद्यांश में जगदम्बा शब्द किसके लिए प्रयुक्त हुआ है?

(1) लक्ष्मी
(2) सीता
(3) मंदोदरी
(4) सुपर्णखा

उत्तर - सीता

लघुत्तरीय प्रश्न

(1) हनुमान जी ने भरत से क्या कहा ?
उत्तर हनुमान जी भरत से कहा कि हे नाथ! मैं आपके प्रताप को मन में धारणकर तुरंत जाऊंगा |

(2) राम को लक्ष्मण के बिना अपना जीवन कैसा लगता है?
उत्तर - राम को लक्ष्मण के बिना अपना जीवन उतना ही हीन लगता है, जितना पंख के बिना पक्षी, मणि के साँप तथा सुंड के बिना हाथी का जीवन हीन होता है |

(3) लक्ष्मण के ठीक होने का समाचार सुनकर रावन कहा गया तथा क्या किया ?
उत्तर - रावण कुम्भकरण के पास गया तथा कुम्भकरण को अनेक तरीको से नींद से जगाया |

(4) रावण की बातों पर कुम्भकरण ने क्या प्रतिक्रिया जताई ?
उत्तर - रावण की बात सुनकर कुम्भकरण बिलखने लगा | उसने कहा, कि हे मुर्ख, जगत –जननी का हरण करके तू कल्याण की बात सोचता है? अब तेरा भला नही हो सकता |

(5) शोकग्रस्त माहौल में हनुमान जी के अवतरण को करुणरस के बीच वीररस का आविर्भाव क्यों कहा गया है?
उत्तर :- हनुमानजी लक्ष्मण के इलाज के लिए संजीवनी बूटी लाने हिमायल पर्वत गए थे| उन्हें आने एसा देर हो रही थी| इधर राम बहुत व्याकुल हो रहे थे | उनके विलाप से वानर सेना में शोक की लहर थी| इसी बीच हनुमान जी संजीवनी बूटी लेकर आ गए| वैद्य ने तुरंत संजीवनी बूटी से दवा तैयार करके लक्ष्मण को पिलाई तथा लक्ष्मण ठीक हो गया| लक्षमण के उठने से राम का शोक समाप्त हो गया | लक्ष्मण स्वयं उत्साहित वीर थे | उनके आ जाने से सेना को खोया मनोबल वापिस आ गया | इस तरह हनुमान जी द्वारा पर्वत उठा कर लाने से शोक ग्रस्त माहौल में वीररस का आविर्भाव हो गया |


 गोस्वामी  तुलसीदास 


भक्ति काल की सगुण काव्य धारा में राम भक्ति शाखा के सर्वोपरि कवि गोस्वामी तुलसीदास में भक्ति से कविता बनाने की प्रक्रिया की सहज परिणति है  परंतु उनकी भक्ति इस हद तक लोक उन्मुख है कि वे लोकमंगल की साधना के कवि के रूप में प्रतिष्ठित हैं यह बात ना सिर्फ उनकी काव्य संवेदना की दृष्टि से वरन काव्य भाषा के घटकों की दृष्टि से भी सत्य है |


इसका सबसे प्रकट प्रमाण तो यही है कि शास्त्रीय भाषा में सृजन क्षमता होने के बावजूद उन्होंने लोक भाषा को साहित्य रचना के माध्यम के रूप में चुना और गुना और बुना | जिस प्रकार उनमें भक्त और रचनाकार का द्वंद्व है उसी प्रकार शास्त्र व लोक का द्वंद्व है जिसमें संवेदना की दृष्टि से लोक की ओर  वे झुके हैं तो शिल्पगत मर्यादा की दृष्टि से शास्त्र की ओर | शास्त्रीयता को लोकग्राह्य और लोकगृहीत  को शास्त्रीय बनाने की उभयमुखी प्रक्रिया उनके यहां चलती है | यह तत्व उन्हें  विद्वानों तथा जनसामान्य में समान रूप से लोकप्रिय बनाता है | 

उनकी एक अनन्य विशेषता है कि वह दार्शनिक और अलौकिक स्तर के नाना द्वंद्वों के चित्र और उनके समन्वय के कवि हैं | द्वंद्व चित्रण जहां सभी विचारधारा के लोगों को तुलसी काव्य में अपनी-अपनी उपस्थिति का संतोष देता है वहीं समन्वय उनकी ऊपरी विभिन्नता में निहित एक ही मानवीय सूत्र को उपलब्ध कराके  संसार में एकता व शांति का मार्ग प्रशस्त करता है |


तुलसीदास की लोक व शास्त्र दोनों में गहरी पैठ है तथा जीवन व जगत की व्यापक अनुभूति और मार्मिक प्रसंगों की उन्हें अचूक समझ है यह विशेषता उन्हें महाकवि बनाती है और इसी से प्रकृति व जीवन के विविध भावपूर्ण चित्रों से उनका रचना संसार समृद्ध है | विशेषकर 'रामचरितमानस' | इसी से यह हिंदी का अद्वितीय महाकाव्य बनकर उभरा है इसकी विश्व प्रसिद्ध लोकप्रियता के पीछे सीता राम कथा से अधिक लोक संवेदना और समाज की नैतिक बनावट की समझ है | उनके सीताराम ईश्वर की अपेक्षा तुलसी के देश काल के आदेशों के अनुरूप मानवीय धरातल पर पुनः सृष्ट चरित्र हैं | 


गोस्वामी जी ग्रामीण व कृषक संस्कृति तथा रक्त संबंध की मर्यादा पर आदर्शीकृत गृहस्थ जीवन के चितेरे कवि हैं | तुलसीदास इस अर्थ में हिंदी के जातीय कवि हैं कि वे अपने  समय में हिंदी-क्षेत्र में प्रचलित सारे भावात्मक व काव्यभाषायी  तत्वों का प्रतिनिधित्व करते हैं |  इस संदर्भ में भाव, विचार, काव्य रूप, छंद और काव्य भाषा की जो बहुल समृद्धि उनमें दिखती है-वह अद्वितीय है | तत्कालीन हिंदी-क्षेत्र की दोनों काव्य भाषाओं-अवधि व ब्रजभाषा तथा दोनों संस्कृति कथाओं- सीताराम व राधा कृष्ण की कथाओं को साधिकारी अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बनाते हैं | उपमा अलंकार के क्षेत्र में जो प्रयोग-वैशिष्ट्य कालिदास की पहचान है वही पहचान सांगरूपक के क्षेत्र में तुलसीदास की है|



पाठ के बारे में 

विविध विषमताओं से ग्रस्त कलिकाल तुलसी का युगीन यथार्थ है जिसमें भी कृपालु प्रभु राम व रामराज्य का स्वप्न रचते हैं | युग और उसमें अपने जीवन का न सिर्फ उन्हें गहरा बोध है, बल्कि उसकी अभिव्यक्ति में भी वे अपने समकालीन कवियों से आगे हैं | यहाँ पाठ में प्रस्तुत 'कवितावली' के दो कवित्त और एक सवैया इसके प्रमाण स्वरूप हैं | 

पहले छंद में उन्होंने दिखलाया है कि संसार के अच्छे- बुरे समस्त लीला-प्रपंचों का आधार 'पेट की आग' का दारुण व गहन यथार्थ है ;इसका समाधान वे राम रूपी घनश्याम के कृपा-जल में देखते हैं |इस प्रकार उनकी राम-भक्ति पेट की आग बुझाने वाली यानी जीवन के कष्टों का समाधान करने वाली है ;साथ ही जीवन-बाह्य आध्यात्मिक मुक्ति देने वाली भी |


दूसरे छंद में प्रकृति और शासन की विषमता से उपजी बेकारी और गरीबी की पीड़ा का यथार्थ परख चित्रण करते हुए उसे दशानन से उपमित करते हैं | 

तीसरे छंद में भक्ति की गहनता और सघनता में उपजे भक्त-हृदय के आत्मविश्वास का सजीव चित्रण है, जिससे समाज में व्याप्त जात-पाँत और धर्म के विवेधक दुराग्रहों के  तिरस्कार का साहस पैदा होता है| इस प्रकार भक्ति की रचनात्मक भूमिका का संकेत यहाँ है, जो आज के भेदभावमूलक सामाजिक- राजनीतिक माहौल में अधिक प्रासंगिक है | 

रामचरितमानस के लंका कांड से गृहीत लक्ष्मण के शक्ति बाण लगने का प्रसंग कवि की मार्मिक स्थलों की पहचान का एक श्रेष्ठ नमूना है| भाई के शोक में विगलित राम का विलाप धीरे-धीरे प्रलाप में बदल जाता है, यह प्रसंग ईश्वरीय राम का पूरी तरह से मानवीकरण कर देता है जिससे पाठक का काव्य-मर्म से सीधे जुड़ाव हो जाता है और वह भक्त तुलसी के भीतर से कवि तुलसी के उभर आने और पूरे प्रसंग पर उसके छा जाने की अनुभूति करता है | इस घने शोक परिवेश में हनुमान का संजीवनी लेकर आ जाना कवि को करुण रस के बीच वीर रस के उदय के रूप में दिखता है | यह उपमा अद्भुत है और काव्यगत करुण-प्रसंग को जीवन के मंगल-विकास की ओर ले जाती है |



जय हिन्द : जय हिंदी 
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