jujh class 12 पाठ-2 जूझ (डॉ. आनंद यादव)
ध्वनि प्रस्तुति
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jujh kahani ka saransh
जूझ कहानी का सार
जूझ कहानी के लेखक ने इस कहानी के माध्यम से अपने उस संघर्ष को व्यक्त करने का प्रयास किया जिसमे वह पढ़ने तो चाहता है परन्तु अपने पिता के दबाव के कारण पढ़ नहीं पा रहा था | इस परिस्थिति में जहाँ 90% बच्चे हार मान जाते है परन्तु लेखक ने हार नही मानी और अपनी सूझ-बूझ से पढ़ाई जारी रखी | उसने विद्यालय जाने के लिए पिता की जो शर्तें मानी थीं उनका पालन किया। वह विद्यालय जाने से पहले बस्ता लेकर खेतों में पानी देता। वह ढोर चराने भी जाता। मराठी अध्यापक सौंदलगेकर का उसके जीवन पर बहुत प्रभाव पड़ा क्योंकि वे कविता के अच्छे रसिक व मर्मज्ञ थे। वे कक्षा में बच्चों को सस्वर कविता-पाठ कराते थे तथा लय, छंद गति, आरोह-अवरोह आदि का ज्ञान कराते थे। उनसे प्रभावित होकर लेखक कुछ तुकबंदी करने लगा। उसे यह ज्ञात हो गया कि वह भी अपने आस-पास के दृश्यों पर कविता बना सकते हैं। धीरे-धीरे उनमें कविता रचने का आत्मविश्वास बढ़ने लगा। उसके जीवन को प्रगति देने का सबसे ज्यादा योगदान उसका स्वयं का रहा परन्तु अन्य लोगों ने मुख्य भूमिका निभाई जैसे –
- दत्ता जी राव जिन्होंने उसके पिता को समझाया कि लेखक को पढ़ने भेजे |
- लेखक की माता जिन्होंने अपने पति से डरते हुए भी युक्ति के द्वारा उसके पढ़ने के लिए रास्ता बनाया |
- उसके अध्यापक सौंदलगेकर जिन्होंने उसे कविता और साहित्य का ज्ञान करवाया |
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जूझ पाठ के शब्दार्थ
- गड्ढे में धकेलना – पतन की ओर ले जाना।
- कोल्हू – गन्ने का रस निकालने वाला यंत्र।
- भाव नीचे उतरना – सस्ता होना, मंदी आना।
- कंडे –पशुओं के गोबर से बने उपले।
- बालिस्टर – बैरिस्टर, वकील।
- खिल्ली उड़ाना – मजाक बनाना।
- गमछा – पतले कपड़े का तौलिया।
- काछ – धोती का छोर जिसे जाँघों के बीच से पीछे ले जाकर खोंसते हैं।
- चोंच मार-मारकर घायल करना – बार-बार पीड़ा देना।
- मैलखाऊ – जिसमें मैल दिखाई न दे।
- पसीना छूटना – भयभीत होना।
- एकाग्रता – ध्यान की अवस्था।
- संस्मरण – पुरानी बातों की याद।
- यति-गति – कविता में रुकने व आगे बढ़ने के नियम।
- आरोह-अवरोह – स्वर को भावानुसार कम या ज्यादा करना।
- तुकबदी – छदबद्ध सामान्य कविता।
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जूझ पाठ पर आधारित प्रश्न
पाठ पर आधारित प्रश्नों के उत्तर
प्रश्न -1 जूझ’ शीर्षक के औचित्य पर विचार करते हुए यह स्पष्ट करें कि क्या यह शीर्षक कथा नायक की किसी केंद्रीय चारित्रिक विशेषता को उजागर करता है?
उत्तर-1: जूझ का अर्थ है – संघर्ष। यह कथानायक के जीवन भर के संघर्ष को दर्शाती है। बचपन से अभावों में पला बालक, विपरीत परिस्थितियों पर विजय प्राप्त कर सका। लगन,लक्ष्य प्राप्ति की इच्छा और मानसिक दृढ़ता से किसी भी परिस्थिति से जूझा जा सकता है।
कथानायक की चारित्रिक विशेषताएँ-
दृढ़ इच्छाशक्ति -- एक ओर पढ़ने के लिए पिता को दत्ता जी के माध्यम से मनाना तो दूसरी ओर पढने के साथ कविता रचने का भी साहस पा लेना कथानायक की दृढ़ इच्छाशक्ति को दर्शाता है।
पढ़ने की लगन- पुन पाठशाला जाने पर सहपाठियों के द्वारा परेशान किए जाने के बावजूद कक्षा के सबसे अच्छे छात्र बसंत पाटिल से प्रेरणा लेना उसकी पढ़ने की लगन को उजागर करता है।
प्रश्न-2 स्वयं कविता रच लेने का आत्मविश्वास लेखक के मन में कैसे पैदा हुआ?
उत्तर 2: स्वयं कविता रच लेने का आत्मविश्वास लेखक के मन में इस तरह पैदा हुआ कि उसे पढ़ाने वाले मराठी साहित्य के अध्यापक सौंदलगेकर जी कविता के ज्ञाता, रसिक व मर्मज्ञ थे।
वे कक्षा में गाकर कविता-पाठ करते थे तथा लय, छंद गति, आरोह-अवरोह आदि का ज्ञान कराते थे। कविता में आये भावों का अभिनय के द्वारा प्रस्तुतिकरण भी करते थे। उनसे प्रेरित होकर लेखक पहले तो कुछ तुकबंदी करने लगा। पर बाद में उसे प्रेरणा हुई कि वह अपने आस-पास के दृश्यों को देखकर, उन पर कविता बना सकता है। इस तरह धीरे-धीरे उनमें कविता रचने का आत्मविश्वास बढ़ने लगा। उसने एक कविता लिखकर उसे अपनी तरह से गाया और भाव भी प्रस्तुत किया। मास्टर जी उससे बहुत प्रभावित हुए और पूरे स्कूल के सामने उससे वह कविता प्रस्तुत करायी। इससे लेखक यानी आनंदा का हौसला बढ़ा। वह और गंभीरता से कविता रचने के काम में जुट गया।
प्रश्न-3 श्री सौंदलगेकर के अध्यापन की उन विशेषताओं को रेखांकित करें जिन्होंने कविताओं के प्रति लेखक के मन में रूचि जगाई।
उत्तर 3: श्री सौंदलगेकर के अध्यापन की विशेषताओं इस प्रकार हैं, जिन्हों , जिन्होंने कविताओं के प्रति लेखक के मन में रूचि जगाई-
- मास्टर सौंदलगेकर कुशल अध्यापक, मराठी साहित्य के ज्ञाता व कवि थे।
- वे सुरीले ढंग से स्वयं की व दूसरों की कविताएँ गाते थे।
- पुरानी-नयी मराठी कविताओं के साथ-साथ उन्हें अनेक अंग्रेजी कविताएँ भी कंठस्थ थीं।
- पहले वे कविता को गाकर सुनाते थे। फिर बैठे-बैठे अभिनय के साथ कविता का भाव ग्रहण कराते थे।
- आनन्दा को कविता लिखने के प्रारम्भिक काल में उन्होंने उसका मार्गदर्शन किया। कविता में सुधार किया। उसका आत्मविश्वास बढ़ाया। इससे वह धीरे-धीरे कविताएँ लिखने में कुशल होकर प्रतिष्ठित कवि बन गया।
प्रश्न-4 कविता के प्रति लगाव से पहले और उसके बाद अकेलेपन के प्रति लेखक की धारणा में क्या बदलाव आया?
उत्तर 4: कविता के प्रति लगाव से पहले लेखक ढोर ले जाते समय, खेत में पानी डालते और अन्य काम करते समय अकेलापन बुरा लगता था। कविता के प्रति लगाव हो जाने के बाद वह खेतों में पानी देते समय, भैंस चराते समय कविताओं में खोया रहता और चाहता कि वह अकेला ही रहे। अकेलेपन से उसे ऊब न होती। अब उसे अकेलापन अच्छा लगने लगा था। वह अकेले में कविता गाता, अभिनय व नृत्य करता था।
प्रश्न-5 आपके खयाल से पढ़ाई-लिखाई के संबंध में लेखक और दत्ता जी राव का रवैया सही था या लेखक के पिता का? तर्क सहित उत्तर दें।
उत्तर 5: मेरे खयाल से पढ़ाई-लिखाई के संबंध में लेखक और दत्ता जी राव का रवैया ही सही था। लेखक के पिता तो शिक्षा के विरोधी थे। इस संबंध में मैं ये तर्क देना चाहता हूं-लेखक का मत है कि जीवन भर खेतों में काम करके कुछ भी हाथ आने वाला नहीं है। अगर मैं पढ़-लिख गया, तो कहीं मेरी नौकरी लग जाएगी या कोई व्यापार ही करके अपने जीवन को सफल बनाया जा सकता है। दत्ता जी को जब पता चलता है लेखक के पिता उसे पढ़ने से मना करते हैं, तो राव पिता जी को बुलाकर खूब डाँटते हैं। उनकी आवारगी पर फटकार भी लगाते हैं।फीस के पैसों के लिये अपने यहां आनंदा को कुछ काम करने का प्रस्ताव भी देते हैं।
प्रश्न-6 दत्ता जी राव से पिता पर दबाव डलवाने के लिए लेखक और उसकी माँ को एक झूठ का सहारा लेना पड़ा। यदि झूठ का सहारा न लेना पड़ता तो आगे का घटनाक्रम क्या होता? अनुमान लगाएँ।
उत्तर 6: दत्ता जी राव से पिता पर दबाव डलवाने के लिए लेखक और उसकी माँ को झूठ का सहारा लेना पड़ा। कभी-कभी अच्छे काम के लिये झूठ का भी सहारा लेना पड़ता है। अगर वे झूठ का सहारा न लेते और सच बता देते कि उन्होंने दत्ता जी राव से पिता को बुलाकर लेखक को स्कूल भेजने के लिए कहा है, तो लेखक के पिता दत्ता राव के घर कभी न जाते।संभव है कि वे माँ-बेटे की पिटाई भी कर देते। लेखक को खेती में ही झोंके रखते और लेखक का जीवन बरबाद हो जाता।
बोध पर आधारित कुछ प्रश्न-उत्तर
प्रश्न 1: पाँचवीं कक्षा में दुबारा पढ़ने आए लखक की किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा?’ ‘जूझ’ कहानी के आधार पर लिखिए।
उत्तर – जो लड़के चौथी पास करके कक्षा में आए थे, लेखक उनमें से गली के दो लड़कों के सिवाय और किसी को जानता तक नहीं था। जिन लड़कों को वह कम अक्ल और अपने से छोटा समझता था, उन्हीं के साथ अब उसे बैठना पड़ रहा था। वह अपनी कक्षा में पुराना विद्यार्थी होकर भी अजनबी बनकर रह गया। पुराने सहपाठी तो उसे सब तरह से जानते-समझते थे, मगर नए लड़कों ने तो उसकी धोती, उसका गमछा, उसका थैला आदि सब चीजों का मजाक उड़ाना आरंभ कर दिया। उसके मन में यह दुख भी था कि इतनी कोशिश करके पढ़ने का अवसर मिला तो उसके आत्मविश्वास में भी कमी आ गई।
प्रश्न 2: ‘जूझ’ कहानी में पिता को मनाने के लिए माँ और दत्ता जी राव की सहायता से एक चाल चली गई हैं। क्या ऐसा कहना ठीक है?
उत्तर – ‘जूझ’ कहानी में पिता को मनाने के लिए माँ और दत्ता जी राव की सहायता से एक चाल चली गई है। यह कहना बिलकुल ठीक है। लेखक के पिता उसे पढ़ाना नहीं चाहते थे। वे खुद मौज-मस्ती करने के लिए बच्चे को खेती के काम में लगाना चाहते थे। पढ़ने की बात करने पर वे जंगली सुअर की तरह गुर्राते थे। उन पर दत्ता जी राव का दबाव ही काम कर सकता था। अत: लेखक की माँ व दत्ता जी राव ने मिलकर उन्हें मानसिक तौर पर घेरा तथा आगे पढ़ने की स्वीकृति ली। यदि यह उपाय नहीं किया जाता तो लेखक कभी शिक्षित नहीं हो पाता।
प्रश्न 3: ‘जूझ’ कहानी में चित्रित ग्रामीण जीवन का सांक्षप्त वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर – ‘जूझ’ कहानी में ग्रामीण जीवन का यथार्थपरक चित्रण किया गया है। गाँव में किसान, जमींदार आदि कई वर्ग हैं। लेखक स्वयं कृषिकार्य करता है। उसके पिता बाजार में गुड़ के ऊँचे भाव पाने के लिए गन्ने की पेराई जल्दी करा देते हैं। गाँव में पूरा परिवार कृषि-कार्य में लगा रहता है, चाहे बच्चे हों, महिलाएँ हों या वृद्ध। कुछ बड़े जमींदार भी होते हैं जिनका गाँव पर काफी प्रभाव होता है। गाँव में कृषक बच्चों की पढ़ाई-लिखाई पर कम ध्यान देते हैं। ग्रामीण स्कूलों में बच्चों के पास कपड़े भी पर्याप्त नहीं होते। बच्चों को घर व पाठशाला का काम करना पड़ता था।
प्रश्न 4: ‘लेखक की माँ उसके पिता की आदतों से वाकिफ थी।”-लेखक की माँ न लेखक का साथ किस प्रकार दिया?
उत्तर – लेखक की माँ अपने पति के स्वभाव से अच्छी तरह वाकिफ़ थी। वह जानती थी कि वह अपने लड़के को पढ़ाना नहीं चाहता। पढ़ाई की बात से ही वह बरहेला सुअर की तरह गुर्राता है। इसके बावजूद वह लेखक का साथ देती है और दत्ता जी राव के पास जाकर अपने पति के बारे में सारी बातें बताती है। अंत में, वह देसाई को अपने आने की बात पति को न बताने के लिए भी कहती है।
प्रश्न 5: मंत्री नामक अध्यापक पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर – मंत्री नामक अध्यापक गणित पढ़ाते थे। वे प्राय: छड़ी का उपयोग नहीं करते थे। काम न करने वाले बच्चों की गरदन हाथ से पकड़कर उनकी पीठ पर घूसा लगाते थे। इस प्रकार से बच्चों के मन में दहशत थी। शरारती बच्चे भी शांत रहने लगे थे। ये पढ़ने वाले बच्चों को प्रोत्साहन देते थे। अगर किसी का सवाल गलत हो जाता तो वे उसे समझाते थे। एकाध लड़कों द्वारा मूर्खता करने पर उन्हें वहीं ठोंक देते थे। उनके डर से सभी बच्चे घर से पढ़ाई करके आने लगे।
प्रश्न 6: वसंत पाटिल कौन है? लेखक ने उससे दोस्ती क्यों व कैसे की?
उत्तर – वसंत पाटिल दुबला-पतला, परंतु होशियार लड़का था। वह स्वभाव से शांत था तथा हर समय पढ़ने में लगा रहता था। वह घर से पूरी तैयारी करके आता था तथा उसके सभी सवाल ठीक होते थे। वह दूसरों के सवालों की जाँच करता था। उसे कक्षा का मॉनीटर बना दिया गया था। लेखक भी उसकी देखा-देखी मेहनत करने लगा। उसने बस्ता व्यवस्थित किया, किताबों पर अखबारी कागज का कवर चढ़ाया तथा हर समय पढ़ने लगा। उसके सवाल भी ठीक निकलने लगे। वह भी वसंत पाटील की तरह लड़कों के सवाल जाँचने लगा। इस तरह दोनों दोस्त बन गए तथा एक-दूसरे की सहायता से कक्षा के अनेक काम करने लगे।
प्रश्न 7: लेखक का पाठशाला में विश्वास कैसे बढ़ा? ‘जूझ’ कहानी के आधार पर बताइए।
उत्तर – जब लेखक को वसंत पाटिल के साथ दूसरे लड़कों के सवाल जाँचने का काम मिला, तब उसकी वसंत से दोस्ती हो गई। अब ये दोनों एक-दूसरे की सहायता से कक्षा के अनेक काम निपटाने लगे। सभी अध्यापक लेखक को ‘आनंदा’ कहकर बुलाने लगे। यह संबोधन भी उसके लिए बड़ा महत्वपूर्ण था। मानो पाठशाला में आने के कारण ही उसे स्वयं का नाम सुनने को मिला। ‘आनंदा’ की कोई पहचान बनी। एक तो वसंत की दोस्ती, दूसरा अध्यापकों का व्यवहार-इस कारण लेखक का अपनी पाठशाला में विश्वास बढ़ने लगा।
प्रश्न 8: सौंदलगेकर कौन थे? उनमें क्या विशेषता थी।
उत्तर – न०वा० सौंदलगेकर लेखक के गाँव के स्कूल में मराठी पढ़ाने वाले अध्यापक थे।वे स्वयं एक कवि थे | वे कविता बहुत अच्छे ढंग से पढ़ाते थे। पढ़ाते समय वे स्वयं रम जाते थे। उनके पास सुरीला गला, छंद की बढ़िया चाल और रसिकता थी। उन्हें पुरानी व नयी मराठी कविताओं के साथ-साथ अंग्रेजी कविताएँ भी कंठस्थ थीं। उन्हें छदों की लय, गति, ताल इत्यादि अच्छी तरह आते थे। वे स्वयं भी कविता रचते थे तथा उन्हें सुनाते थे।
प्रश्न 9: ‘दत्ता जी राव की सहायता के बिना ‘जूझ’ कहानी का ‘मैं’ पात्र वह सब नहीं पा सकता था जो उसे मिला।”-टिप्पणी कीजिए।
उत्तर – यह बात बिलकुल सही है कि दत्ता जी राव की सहायता के बिना लेखक पढ़ नहीं सकता था। यदि दत्ता जी राव लेखक के पिता को नहीं समझाते तो लेखक को कभी स्कूल नसीब न होता। वह अर्धशिक्षित ही रह जाता तथा गीत, कविता, उपन्यास न लिख पाता। उच्च शिक्षा के अभाव में उसे अपने खेतों में मजदूर की तरह आजीवन काम करना पड़ता। अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु उसे जमींदार के खेतों में काम भी करना पड़ता। वस्तुत: उसका जीवन ही अंधकारमय हो जाता।
प्रश्न 10: ‘जूझ’ के लेखक के मन में यह विश्वास कब और कैसे जन्मा कि वह भी कविता की रचना कर सकता है?
अथवा
‘जूझ’ कहानी के लेखक में कविता-रचना के प्रति रुचि कैसे उत्पन्न हुई?
अथवा
‘जूझ’ के लखक के कवि बनने की कहानी का वर्णन कीजिए।
उत्तर – लेखक मराठी पढ़ाने वाले अध्यापक न.वा सौंदगलेकर की कला व कविता सुनाने की शैली से बहुत प्रभावित हुआ। उसे महसूस हुआ कि कविता लिखने वाले भी हमारे जैसे मनुष्य ही होते हैं। कवियों के बारे में सुनकर तथा कविता सुनाने की कला-ध्वनि, गति, चाल आदि सीखने के बाद उसे लगा कि वह अपने आस-पास, अपने गाँव, अपने खेतों से जुड़े कई दृश्यों पर कविता बना सकता है। वह भैंस चराते-चराते फसलों या जंगली फूलों पर तुकबंदी करने लगा। वह हर समय कागज व पेंसिल रखने लगा। वह अपनी कविता अध्यापक को दिखाता। इस प्रकार उसके मन में कविता-रचना के प्रति रुचि उत्पन्न हुई।
प्रश्न 11: दादा ने मन मारकर अपने बच्चे को पाठशाला भेजने की बात मान तो ली, पर खेती-बाड़ी के बारे में उससे क्या-क्या वचन लिए? ‘जूझ’ कहानी के आधार पर उत्तर दीजिए।
अथवा
बालक आनद यादव के पिता ने किन शतों पर उसे विद्यालय जाने दिया?
उत्तर – दादा ने मन मारकर अपने बच्चे को स्कूल भेजने की बात मान तो ली, पर खेती-बाड़ी के बारे में उन्होंने निम्नलिखित वचन लिए-
- पाठशाला जाने से पहले ग्यारह बजे तक खेत में काम करना होगा तथा पानी लगाना होगा।
- सबेरे खेत पर जाते समय ही बस्ता लेकर जाना होगा।
- छुट्टी होने के बाद घर में बस्ता रखकर सीधे खेत पर आकर घंटा भर ढोर चराना होगा।
- अगर किसी दिन खेत में ज्यादा काम होगा तो उसे पाठशाला नहीं जाना होगा।
प्रश्न 12: ‘जूझ’ कहानी की कौन-सी बात आपको सवाधिक प्रेरक लगती हैं?
उत्तर – ‘जूझ’ कहानी में हमें ‘आनंदा’ का जुझारूपन सर्वाधिक प्रेरक लगता है। वह पढ़ना चाहता है, परंतु पिता बाधक है। पिता को किसी तरह दबाव डलवाकर मनाया जाता है तो आर्थिक समस्या व काम का बोझ बाधा उत्पन्न करता है। पाठशाला का अजनबी परिवेश भी उसे परेशान करता है। लेखक इन सभी विपरीत परिस्थितियों पर जुझारूपन से नियंत्रण पाता है और स्वयं को होशियार बच्चों की पंक्ति में खड़ा पाता है।
प्रश्न 13: कविता के प्रति रुचि जगाने में शिक्षक की भूमिका पर ‘जूझ’ कहानी के आधार पर प्रकाश डालिए।
उत्तर – ‘जूझ’ कहानी में लेखक के मन में कविताएँ रचने का प्रेरणा-स्रोत उसका शिक्षक सौंदलगेकर रहे हैं। वस्तुत: शिक्षक का दायित्व बड़ा होता है। कविता रस, लय, छद के आधार पर पढ़ाई व गाई जाती है। यदि शिक्षक का गला सुरीला है तथा उसे छद, अलंकार, लय व ताल आदि का ज्ञान होता है तो बच्चों में कविता सुनने व रचने की इच्छा जाग्रत होती है। यदि कोई बच्चा तुकबंदी करके कविता बनाता है तो शिक्षक उसे प्रोत्साहित कर सकता है। उसे कविता के संबंध में तकनीकी जानकारी दे सकता है तथा उसकी कमियों को दूर करने का सुझाव दे सकता है। अत: कविता के प्रति रुचि जगाने में शिक्षक की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।
प्रश्न 14: ‘जूझ कहानी के शीर्षक की सार्थकता पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर – ‘जूझ‘ कहानी का शीर्षक पूर्णत : उपयुक्त है। इसमें एक किशोर के देखे और भोगे हुए गँवई जीवन के खुरदरे यथार्थ और उसके रंगारंग परिवेश क्री अत्यंत विश्वसनीय गाथा है। इसमें निम्नमध्यवर्गीय ग्रामीण समाज और लडते–जूझते किसान–मज़दूरों के संघर्ष की भी अनूठी झाँस्फी है। कहानी का नायक हर कदम पर संघर्ष करता हैं। वह बचपन में स्कूल में दाखिले के लिए संघर्ष करता है, फिर कक्षा में बच्चों को शरारतों से संघर्ष करता है तथा स्कूल में स्वय को स्थापित करने के लिए मेहनत करता है। साथ ही वह घर तथा खेत के सभी जायं करता है। इन लिब कार्यो को अपनी जुझारूपन की प्रवृन्ति रने वह कर पाता है। कविता लिखने में भी वह संघर्ष करता है। अत: यह शीर्षक लेखक के जुझारूपन को व्यक्त करता है।
पाठ पर आधारित कुछ प्रश्न-उत्तर
प्रश्न 1: किस घटना से पता चलता है कि लेखक की माँ उसके मन की पीड़ा को समझ रही थी? ‘जूझ‘ कहानी के आधार पर बताइए |
उत्तर – लेखक पढ़ना चाहता था और उसके पिता उसे पढाने के बजाय उससे खेत का काम, पशु चराने का काम कराना चाहते थे। पिता ने अपनी इच्छा क्रो ध्यान में रखकर ही लेखक की पकाई छुड़वा दी श्री। इसी बात रने लेखक बहुत ही परेशान रहता था। उसका मन दिन–रात अपनी पढाई जारी रखने की योजनाएँ बनाता रहता था इसी योजना के अनुसार लेखक ने अपनी माँ रने दस्ता जी राव सरकार के घर चलकर उनकी मदद रने अपने पिता को राजी करने की बात कही। भी ने लेखक का साथ देने की बात को तुरत आकार कर लिया अपने बटे की पढाई के बारे में वह दस्ताश्लेजी राब से जाकर बात भी करती है और पति रने इस बात को छिपाने का आग्रह भी करती है। इससे स्पष्ट होता है कि वह लेखक के मन की पीड़। को समझती थी।
प्रश्न 2: ‘जूझ‘ कहानी के आधार पर दस्ता जी राव की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
अथवा
दस्ता जी राव ने लेखक की पढाई काँ समस्या का समाधान किस प्रकार किया?
उत्तर – ‘जूझ‘ कहानी में दस्ता जी राव देसाई की भूमिका महत्त्वपूर्ण है। वे गाँव के जमीदार है तथा नेकदिल व उदार हैं। बच्चों व महिलाओँ पर उनका विशेष स्नेह है। वे हरेक की सहायता करते हैं। लेखक व उसकी माँ ने उम्हें अपनी पीड़। बताई तो वे पिघल गए तथा निर्णय लिया कि वे लेखक के दादा की खरी–खनैटी सुनाकर सीधे रास्ते पर लाएँगे। वे साम…दाम–दंड–भेद किसी भी तरीके से अपनी बात मनवाना चाहते के उन्होंने दादा के आने पर हाल–चाल पूल तथा बच्चे की पढाई के सबंध में बात खुलने पर उसे खूब फटकार लगाई। उनकी डाँट से दादा की विधि, बैध गई तथा उसने आनंद की पढाई के लिए सहमति दे दी।
प्रश्न 3: कहानीकार के शिक्षित होने के सघर्ष में दत्ता जी राव देसाई के योगदान को ‘जूझ' कहानी के आधार पर स्पष्ट किजिए।
उत्तर – दत्ता जी राव देसाई गाँव के सम्मानित जमींदार हैं। ने नेकदिल, उदार व रोबीले हैं। कभी लेखक के पिता उन्हों के खेतों में काम करते थे। लेखक के दादा राव साहब का सम्मान करते के लेखक ने अपनी भी के साथ राव देसाई को अपनी पकाई तथा पिता के रवैये के बारे में बताया। राव साहब ने उनकी बात सुनी तथा दादा को भेजने को कहा। जैसे ही दादा घर आए, लेखक की भी ने उम्हें राव साहब के पास जाने का संदेश दिया। वहाँ पर राव साहब ने उसे खुब डाँटा। इस बीच दादा ने लेखक पर आवारागर्दी के आरोप लगाए जिनका उसने हिम्मत रने जवाब दिया राव साहब ने दादा को बच्चे को स्कूल भेजने के लिए कहा, साथ ही यह चेतावनी भी दी कि अगर वह उसे नहीं पढाएगा तो वे स्वय उसको पढ़ने का खर्चा देगे। इस पवार लेखक की पकाई में दस्ता का बहुत योगदान है।
प्रश्न 4: ‘जूझ‘ कहानी के माध्यम से लेखक ने क्या सीख दी है?
उत्तर : हमारा लेखक प्रतिमा…संपन्न था, मगर छोर चराने और खेत में यानी देने तथा उपले बनाने में अपनी सारी शक्ति लगा रहा था। पढने की इच्छा भीतर–हीं–भीतर कुलबुलाती रहती थी। सभी उसे छोरे कहकर बुलाते। वह पशुओ जैसा जीवन जी रहा था जब पड़ने का अवसर मिला तो उसने कविता–पाठ करने में सबको पीछे छोड़ दिया । गणित के सवाल हल करने मैं भी उसने पा कक्षा को पीछे छोड़ दिया। सभी अध्यापक उसे ‘आनंदा‘ कहकर पुकारते थे, उरने मानो अपनी स्वय को पहचान मिल गई । उसे लगा उसके मख निकल आए हैं। वह बहुत ही खुश रहने लगा। मनुष्य के चौवन में शिक्षा का बहुत महत्त्व है। शिक्षा के अभाव में मनुष्य पशु के समान हनैता है। इस कहानी के माध्यमसे लेखक ने यहीं सीख दी है।
प्रश्न 5: ‘जूझ‘ आत्मकथात्मक उपन्यास के मुख्य पात्र के स्वभाव की तीन विशेषताओं का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर : ‘जूझ‘ कहानी का मुख्य पात्र है आनंदा‘ है। उसके स्वभाव की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
पढ़ने को इच्छा-वह पिछले डेढ वर्ष से स्कूल नहीं जा रहा था क्योकि पिता ने आगे पढाने से मना कर दिया था। इसके बावजूद उसके मन में पढ़ने की बहुत इच्छा थी। वह अपने मन की बात भी नहीं कहता है तथा इस काम में दत्ता जी राव देसाई को मदद लेता है।
परिश्रमी-आनंदा बेहद परिश्रमी है। वह सुबह खेत पर जाता, वहाँ हैं स्कूल जाता और घर लौटकर फिर छोर चराने जाता है। वह सारा दिन काम करता है।
लगनशील-आनंदा हर कार्य को तन्मयता से करता है। वह छह माह के बाद स्कूल जाता है तथा मेहनत के बल पर शीघ्र ही कक्षा के होशियार बच्चे में गिना जाता है। अपनी लगन के करण ही वह कविता भी लिखने लगता हैं।
प्रश्न 6: ‘जूझ‘ में गँवई जीवन के यथार्थ से जूझने का जीवंत चित्रण हैं।“-ड़स कथन पर तकेसम्मत टिप्पणी र्काजिए।
उत्तर : ‘जूझ‘ कहानी में गोई के जीवन का यथार्थ वर्णन है। पाँव के बच्चे जीवन में अनेक संघर्ष करते हैं। इस कहानी का पात्र ‘आनंदा‘ भी अपनी पकाई जारी रखने के लिए संघर्ष करता है। उसका पिता खेत के काम को पढाई रने जादा महत्त्व देता है और वह आनंदा को स्कूल में पढने नहीं भेजता। आख्या के मन में पढ़ने को ललक श्री। वह पढ़–लिखकर नौकरी पना चाहता था म परंतु पिता के डर से वह कुछ नहीं कह पाता। वह माँ को अपनी पोड़। बताता है। माँ उसकी सलाह पर गॉव के जमींदार दत्ता जी राव सरकार रने बात करती है। दस्ता जी ने आनंद के पिता को बुलाकर डॉटा तथा बच्चे क्रो पढाने के लिए कहा। पिता ने अनेक कठोर शर्तों के साथ पढाई करने की इजाजत है दी। इस तरह आनंद को सुबह से शाम तक स्कूल व खेत में काम करना पढा। वह हर कदम पर यथार्थ से जूझता रहा। अंतत: उसने सफलता प्राप्त का ली।
प्रश्न 7: ‘जूझ‘ कहानी में आपको किस पात्र ने सबसे अधिक प्रभावित किया और क्यों? उसकी चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
‘जूझ‘ पाठ के आधार पर राव साहब का चरित्र-चित्रण कीजिए ।
उत्तर : ‘जूझ‘ कहानी में मुझे सबसे अधिक दस्ता जी राव देसाई ने प्रभावित किया उनके चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-
व्यक्तित्व – राव निब गाँव के सम्मानित जमींदार हैं। वे उदार, नेकदिल व रोबीले हैँ। बच्चे व महिलाओं के साथ सदूव्यवहार करते हैं।
समझदार – राव साहब बेहद समझदार हैं। वे हर बात को ध्यान से सुनते है तथा फिर उसका समाधान करते हैं। लेखहुँ व उसकी भी को समस्या को सुनकर ही वे ‘दादा‘ को बुलाकर उसे बेटे को पकाने की बात समझाते ।
व्यवहारिक – राव साहब व्यवहारिक हैं। वे लियम–दाम–क–मेद की नीति जानते हैं। लेखक की पढाई के बारे में खोजना के तहत उसके पिता को बुलाकर आम बातें करते हैँ। लेखक के बीच में आने पर वे उसकी पढाई के बारे में पूछते हैं। फिर सारी कहानी सुनकर उसके पिता को डाँटते भी है तथा समझाते भी जा इस तरह वे लेखक की पढाई के लिए उसे तैयार करते हैं।
तर्कशील – राव साहब बेहद तर्कशील हैं। उसके तर्कों के सामने लेखक का पिता निरुत्तर हो जाता है।
प्रश्न 8: पाठशाला पहुँचकर लेखक को किन–किन परेशानियों का सामना करना पड़ा ?
उत्तर: राव साहब के दबाव के कारण लेखक को दुबारा पढ़ने की इजाज़त मिली वह पाठशालं। पहुंचा, परंतु वहाँ उसकी गली के दो लड़को के अलावा सब अपरिचित थे। लेखक जिन्हें अपने से तुच्छ समझता था, अब उन्हीं के साथ बैठने के लिए विवश था। उसके कपडे भी कक्षा के अनुरूप नहीं थे। उसे अपने अध्यापक का भी नहीं पता था। वह लटूठं के बने थैले में पुरानी किताबे व कापियों भरकर लाया था। यह बालुगड्री की लाल माटी के रंग में मटमैली हुई धोती और गमछा पहनकर आया था तथा अकेला या शरारती लड़के ने उसका मजाक उडाया तथा उसका गमछा छीनकर अपने सिर पर लपेटकर मास्टर की नकल करने लगा। उसने गमछा टेबल पर रख दिया । मास्टर ने गमछा देखकर पूछा कि यह किसका है? लेखक ने उसे उठाया मास्टर ने उसके बारे में पूछताछ कौ। बीच की छुटूटी में शरारती लड़के ने लेखक की छोती की काछ दी बार निकालने की कोशिश की, परंतु वह दीवार को तरफ मीठ करके छुटूटी होने तक बैठा रहा। घर जाते समय वह सीच रहा था कि लड़के उसकी खिल्ली उड़ते हैं, छोती खींचते है, गमछा खींचते हैं, ऐसे में वह केसे महँगा? इससे अच्छा है कि वह पाठशाला न जाए और खेत में ही काम करता रहे। सबेरे उठते ही वह फिर पाठशाला चला गया। औरे–धीरे उसका आत्मविश्वास और सहपाठियों रने परिचय बढ़ गया।
प्रश्न 9: ‘जूझ‘ के कथानायक का मन पाठशाला जाने के लिए क्यों तड़पता था? उसे खेती का काम अच्छा क्यों नहीं लगता था ? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।
उत्तर : “जूझ " के कथानायक का मन पाठशाला जाने के लिए इसलिए तड़पता था क्योंकि उसे शिक्षा से अत्यंत गहरा लगाव था। उसे पता था कि शिक्षा मनुष्य का सर्वागीण विकास करती है। शिक्षा रने ही व्यक्ति अपनी उन्नति के बारे में सीच सकता है तथा वह समाज में सम्मानजनक स्थान प्राप्त कर सकता है। संक्षेप में कहा जा सकता है कि शिक्षा व्यक्ति की उन्नति का दूवार खेलती है। उसे खेती का काम इसलिए अच्छा नहीं लगता था क्योकि उसे यह विश्वास था कि जन्म–भर खेत में काम करते रहने पर भी हाथ कुछ नहीं लगेगा। जो बाबा के समय था, वह दादा के समय नहीं रहा। यह खेती हमें गडूढे में धकेल रही है। पद जाऊँगा तो नौकरी लग जाएगी, चार पैसे हाथ में रहेंगे, विठोबा आपणा को तरह कुछ धंधा–कारोबार किया जा सकेगा ।
प्रश्न 10: ‘जूझ‘ कहानी आधुनिक किशोर-किशोरियों को किन जीवन मूल्यों की प्रेरणा दे सकती है? सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : ‘जूझ‘ कहानी आज के किशोर–किशोरियों को कई जीवन–मूल्यों की प्रेरणा है सकती हैँ। उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं -
संघर्षशीलता – किसी कार्य में सफलता माने के लिए संघर्षशील बहुत आवश्यक है। आज के किशोर– किशोरियों शॉर्टकट रास्ते पर चलकर सफलता पना चाहते हैं ताकि उन्हें कम–री–कम परिश्रम और संघर्ष करना पहुँ जबकि ‘जूझ‘ कहानी के नायक को जगह–जगह संघर्ष करना पडा।
दूरदर्शिता -' जूझ' कहानी का नायक आनंदा दूरदशी है। वह अपनी दूरदर्शिता के बल पर अपने पिता को राव साहब के पास भेजने में सफल हो जाता है और अपने पिता के क्रोध रने बचते हुए उन्हें अपनी पकाई के लिए राजी कर लेता है। आधुनिक किशोर–किशोरियों को भी दूरदर्शी बनना चाहिए।
परिश्रमशीलता – आधुनिक किशोर–किशोरियों को आनंदा के समान परिश्रमी बनना चाहिए। आनंदा पकाई के साथ खेल में कठोर परिश्रम करता है और सफलता अर्जित करता है।
लगन शीलता – परिश्रम के अलावा किसी काम में सफलता पाने के लिए लगन होना भी आवश्यक है। आख्या डेढ़ साल बाद विद्यालय जाता है और अपनी लगन से कक्षा के होशियार बच्चों में गिना जाने लगता है। आधुनिक किशोर-किशोरियों को भी लगनशील बनना चाहिए।
प्रश्न 11: जूझ कहानी का नायक किन परिस्थितियाँ में अपनी पढाई जारी रख पाता हैं? अगर उसर्का जगह आप हांर्त तो उन विषम परिस्थितियों में किस प्रकार अपने सपने कां जीवित रख पाते?
उत्तर : ‘जूझ कहानी का नायक आनंदा अर्थात लेखक की छात्रावस्था में परिस्थितियों अत्यंत विपरीत थीं। उसके पिता के लिए खेती ही सब कुछ थी। पदा–लिखाई के प्रति उसकी सोच अच्छी न थी। वे लेखक से खेती का काम करवाने के अलावा पशु चराने का काम भी करवाना चाहते थे, इसीलिए उन्होंने आनंदा की पढाई छुडवा दी थी। आनंदा उनसे पकाई की बात कहते हुए भी डरता था। उसे डर था कि वे पढाई का नाम सुनते ही हद्धूडी–पसली एक कर देगे। दस्ता जी राव सरकार के समझाने पर उन्होंने आनंदा को स्कूल भेजने की स्वीकृति तो है बी, पर यह भी शर्त रख दी कि प्रतिदिन शाम को खेत पर काम करने जरूर आएगा। “हाँ यहि नहीं आया किसी दिन तो देख, गाँव मेंजहाँ मिलेगा यहीं कुचलता हूँ कि नहीं, तुझे। तेरे उपर पढ़ने का भूत सवार हुआ है। मुझे मालूम है, बालिस्टर नहीं होने वाला है तू?” इसके अलावा लेखक का दाखिल पाँचवीं कक्षा में हुआ, जहाँ दो लड़कों को छोड़कर बाकी सारे लड़के नए थे। उनमें शरारती लड़के उसका मजाक उडाते थे और उसका गमछा छीनकर अध्यापक की मेज़ यर रख देते के मध्यातर की छुटूटी में बच्चों ने उसकी धोती खेलकर उसे तंग करने का प्रयास किया, फिर भी लेखक अत्यंत परिश्रम से अपनी पढाई के पति समर्पित रहा। यदि लेखक को जगह मैं होता तो इन परेशानियों और विपरीत परिस्थितियों के बांच मैं भी लेखक की तरह अडिग रहता और अपनी पढाई के प्रति कठिन मेहनत करते हुए अपने सपनों को जीवित रखने का हरसंभव प्रयास करता और सफलता प्राप्त करना।
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