apathit padyansh | अपठित पद्यांश


apathit padyansh | अपठित पद्यांश

apathit padyansh


 1.निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर उसके नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए |



पंचवटी की छाया में है,
सुन्दर पर्ण-कुटीर बना।
उसके सम्मुख स्वच्छ शिला पर,
धीर, वीर, निर्भीक मना ।।

जाग रहा वह कौन धनुर्धर,
जबकि भुवन भर सोता है?
भोगी कुसुमायुध योगी-सा
बना दृष्टिगत होता है।

किस व्रत में है व्रती वीर यह,
निद्रा का यों त्याग किए।
राजभोग के योग्य विपिन में,
बैठा आज विराग लिए ।

बना हुआ है प्रहरी जिसका,
उस कुटीर में क्या धन है।
जिसकी रक्षा में रत इसका
तन है, मन है, जीवन है॥

मर्त्यलोक मालिन्य मेटने,
स्वामी संग जो आई है।
तीन लोक की लक्ष्मी ने यह,
कुटी आज अपनाई है।

वीर वंश की लाज यही है,
फिर क्यों वीर न हो प्रहरी।
विजन देश है निशा शेष है,
निशाचरी माया ठहरी ॥


प्रश्न -1  उपर्युक्त काव्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
उत्तर: उपर्युक्त काव्यांश को उचित शीर्षक-‘पंचवटी’।

प्रश्न -2  लक्ष्मण को किसकी उपमा दी गई है? वह प्रहरी बनकर किस प्रकार रक्षा कर रहा है?
उत्तर: लक्ष्मण को उपर्युक्त काव्यांश में योगी की उपमा दी गई है। कवि का कहना है कि पंचवटी के सामने कामदेव के समान सुंदर राजभोग के योग्य पुरुष योगी के समान दिखाई देता है।

प्रश्न -3 ‘तीन लोक की लक्ष्मी’ किसे कहा है? वह वन में क्यों आई है?
उत्तर: “तीन लोक की लक्ष्मी’ यहाँ सीताजी के लिए कहा गया है। यह तीन लोक की लक्ष्मी पृथ्वी के दु:खों को दूर कराने के लिए सीताजी अपने पति भगवान श्रीराम के साथ यहाँ आई है।

प्रश्न -4  वनवास में क्या-क्या संकट हो सकते हैं?
उत्तर: वनवास में अनेकों कष्ट सहने होते हैं। हिंसक पशुओं का डेरे, रात्रि का अंधकार, राक्षसों (दुष्ट पुरुषों) का भय तथा प्राकृतिक आपदारूपी अनेक संकट वनों में रहते हैं।


2 .निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर उसके नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए |

मैं तूफानों में चलने का आदी हूँ
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो!

हैं फूल रोकते, काँटे मुझे चलाते,
मरुस्थल, पहाड़ चलने की चाह बढ़ाते,
सच कहता हूँ मुश्किलें न जब होती हैं,
मेरे पग तब चलने में भी शरमाते,
मेरे संग चलने लगें हवाएँ जिससे,
तुम पथ के कण-कण को तूफान करो।

मैं तूफानों में चलने की आदी हूँ ।
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो।

फूलों से मग आसान नहीं होता है,
रुकने से पग गतिवान नहीं होता है,
अवरोध नहीं तो सम्भव नहीं प्रगति भी,
है नाश जहाँ निर्माण वहीं होता है,

मैं बसा सकूँ नव-स्वर्ग धरा पर जिससे,
तुम मेरी हर बस्ती वीरान करो।
मैं तूफानों में चलने का आदी हूँ
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो!



प्रश्न 1.पद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
उत्तर: पद्यांश का उचित शीर्षक–‘बाधाओं से संघर्ष करो।’

प्रश्न  2.‘मग’ के दो पर्यायवाची शब्द लिखिए।
उत्तर: पर्यायवाची शब्द-मग-पथ, मार्ग।

प्रश्न  3.विनाश या निर्माण का परस्पर क्या सम्बन्ध है?
उत्तर: विनाश होने पर ही निर्माण होता है। विनाश के बाद ही निर्माण सम्भव है।

प्रश्न  4.इस कविता की प्रेरणा क्या है?
उत्तर: इस कविता की प्रेरणा है कि हमें जीवन में आने वाली बाधाओं से घबराना नहीं चाहिए, उनका दृढ़तापूर्वक मुकाबला करना चाहिए।



3 .निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर उसके नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए |



सच हम नहीं सच तुम नहीं
सच है महज संघर्ष ही।

संघर्ष से हटकर जिए तो
क्या जिए हम या कि तुम।
जो नत हुआ वह मृत हुआ
ज्यों वृंत से झर के कुसुम ।

जो लक्ष्य भूल रुका नहीं।
जो हार देख झुका नहीं।
जिसने प्रणय पाथेय माना
जीत उसकी ही रही।
सच हम नहीं सच तुम नहीं।

ऐसा करो जिससे न
प्राणों में कहीं जड़ता रहे।
जो है जहाँ चुपचाप
अपने-आप से लड़ता रहे।

जो भी परिस्थितियाँ मिलें।
काँटे चुनें, कलियाँ खिलें।
हारे नहीं इंसान, है
संदेश जीवन का यही।
सच हम नहीं सच तुम नहीं।

स्वयं करो 

प्रश्न (क) प्रस्तुत काव्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
उत्तर : 


प्रश्न (ख) कवि के अनुसार सच क्या है?
उत्तर : 


प्रश्न (ग) “जो नत हुआ सो मृत हुआ’-पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : 


प्रश्न (घ) ‘पाथेय’ शब्द का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : 


4  .निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर उसके नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए |


कुछ भी बन, बस कायर मत बन !
ठोकर मार, पटक मत माथा,
तेरी राह रोकते पाहन!
कुछ भी बन, बस कायर मत बन !

ले-दे कर जीना, क्या जीना ?
कब तक गम के आँसू पीना ?
मानवता ने सींचा तुझको
बही युगों तक खून-पसीना !
कुछ न करेगा? किया करेगा 
रे मनुष्य-बस कातर कूदन ?
कुछ भी बन, बस कायर मत बन !

‘युद्धं देहि’ कहे जब पामर,
दे न दुहाई पीठ फेर कर !
या तो जीत प्रीति के बल पर,
या तेरा पथ चूमे तस्कर !
प्रतिहिंसा भी दुर्बलता है,
पर कायरता अधिक अपावन !
कुछ भी बन, बस कायर मत बन!


प्रश्न-1  प्रस्तुत काव्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
उत्तर:काव्यांश का उचित शीर्षक-‘कायर मत बन।’

प्रश्न-2  इस काव्यांश में कवि ने क्या प्रेरणा दी है ?
उत्तर : इस पद्यांश में कवि ने जीवन में आने वाली कठिनाइयों से संघर्ष करने की प्रेरणा दी है। कवि का कहना है कि मनुष्य को कठिनाइयों से घबड़ाकर भागना नहीं चाहिए। शत्रु का बहादुरी से सामना करना चाहिए। मनुष्य को कायरता का जीवन नहीं बिताना चाहिए।

प्रश्न-3  ‘युद्धं देहि’ कहे जब पामर, दे न दुहाई पीठ फेर कर’-में व्यक्त भाव को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर : जब भावी शत्रु आपके ऊपर आक्रमण करने की नीयत से चढ़ आया हो, तो आपको पीठ दिखाकर भागना तथा उससे गिड़गिड़ाकर अपने जीवन की सुरक्षा माँगना शोभा नहीं देता। ऐसी दशा में शत्रु पर प्रहार करना ही उचित है।
प्रश्न-4 कवि के अनुसार प्रतिपक्ष को जीतने के लिए क्या करना चाहिए ?
उत्तर : प्रतिपक्ष अथवा विरोधी को पीठ दिखाना वीरोचित आचरण नहीं है। उसे अपने प्रेम से जीतना चाहिए। यदि यह संभव नहीं तो उसको अपने पराक्रम से आतंकित करना चाहिए कि वह आपके आगे घुटने टेक दे। प्रतिहिंसा और कायरता प्रकट करना अनुचित है।


5  .निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर उसके नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए |


जिसमें स्वदेश का मान भरा
आजादी का अभिमान भरा
जो निर्भय पथ पर बढ़ आए
जो महाप्रलय में मुस्काए
जो अंतिम दम तक रहे डटे
दे दिए प्राण, पर नहीं हटे
जो देश-राष्ट्र की वेदी पर
देकर मस्तक हो गए अमर
ये रक्त-तिलक-भारत-ललाट
उनको मेरा पहला प्रणाम।

फिर वे जो आँधी बन भीषण
कर रहे आज दुश्मन से रण
वाणों के पवि संधान बने
जो ज्वालामुखी-हिमवान बने
हैं टूट रहे रिपु के गढ़ पर
बाधाओं के पर्वत चढ़कर
जो न्याय-नीति को अर्पित हैं
भारत के लिए समर्पित हैं
कीर्तित जिससे यह धरा धाम
उन वीरों को मेरा प्रणाम !



प्रश्न-1  प्रस्तुत काव्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
उत्तर:काव्यांश का उचित शीर्षक-‘वीरों को प्रणाम।’

प्रश्न-2  कवि सर्वप्रथम किनको प्रणाम कर रहा है?
उत्तर: जिन्होंने भारत के माथे पर अपने रक्त से तिलक किया है, कवि उन बलिदानियों को सर्वप्रथम प्रणाम कर रहा है।

प्रश्न-3 “जो न्याय नीति …….. धरा धाम’ में कवि ने भारतीय वीरों के बारे में क्या कहा है?
उत्तर: ‘जो न्याय-नीति……धरा धाम’-काव्य-पंक्ति में कवि ने न्याय तथा नीति के मार्ग पर चलने वाले, भारत को अपना सर्वस्व भेंट करने वाले वीर बलिदानियों की प्रशंसा की है तथा उनको सम्मानपूर्वक प्रणाम किया है।
प्रश्न-4 ‘बाधाओं के पर्वत’ में अलंकार निर्देश कीजिए।
उत्तर: “बाधाओं के पर्वत’ में रूपक अलंकार है। कवि ने यहाँ देशप्रेमियों के मार्ग में आने वाली बाधाओं को पर्वत माना है। उपमेय में उपमान का भेद रहित आरोप होने से यहाँ रूपक अलंकार है।



जय हिन्द : जय हिंदी 
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