कुँवर नारायण
(कविता के बहाने / बात सीधी थी पर)
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कविता के बहाने
- कविता का अर्थ एवं विशेषताएँ समझाने का प्रयास किया गया है ।
- कविता की तुलना एक चिड़िया से की गयी है ।
- फूलों एवं बच्चों से की है ।
- कविता का विस्तृत रूप बताते हुए उसे बच्चे की तरह पवित्र, असीमित एवं बिना भेद- भाव के बताया गया है।
काव्यांश के प्रश्न
कविता एक खिलना है फूलों के बहानेकविता का खिलना भला फूल क्या जाने !बाहर भीतरइस घर, उस घरबिना मुरझाए महकने के मानेफूल क्या जाने ?
1. कविता की तुलना फूलों से क्यों की गई है?
उत्तर : क्योंकि फूल भी सुंदर होता है और कविता भी| फूल अपनी सुन्दरता से सबको आकर्षित करता है और कविता भी अपनी रस, अलंकार और शिल्प संबंधी सुंदरता के कारण सबको अच्छी लगती है.
2. कविता का खिलना फूल क्यों नहीं जान सकता ?
उत्तर : क्योंकि फूल एक-दो दिन अर्थात् थोड़े समय के लिए ही खिलता है परंतु कविता एक बार खिलकर सदियों तक सभी को अपनी ओर आकर्षित करती रहती है| फूल का खिलना एक सीमित स्थान पर ही होता है परन्तु कविता देश और काल की सीमाओं से परे होती है.
3. कवि और कविता का नाम लिखें.
उत्तर : कवि – कुँवर नारायण, कविता – कविता के बहाने .
काव्यगत सौन्दर्य-बोध प्रश्न
कविता की उड़ान भला चिड़िया क्या जानेबाहर भीतरइस घर उस घरकविता के पंख लगा उड़ने के मानेचिड़िया क्या जाने
1.भाषा सम्बन्धी विशेषताएं बताइए.
उत्तर : मानक हिंदी भाषा, मुहावरों का प्रयोग – सब घर एक कर देना प्रतीक-चिड़िया
2.कविता की उड़ान का क्या अर्थ है ?
उत्तर : कविता में कल्पना का महत्त्व बताया गया है| कल्पना की कोई समय अथवा स्थान की सीमा नहीं होती | इसलिए कविता की भी कोई सीमा नहीं होती|
3.कविता के पंख किसके प्रतीक हैं ?
उत्तर : कविता के पंख कवि की कल्पना शक्ति के प्रतीक हैं| कविता की असीमित उड़ान के प्रतीक हैं|
महत्त्वपूर्ण प्रश्न
1. चिड़िया की उड़ान एवं कविता की उड़ान में क्या समानता है?
उत्तर : उपकरणों की समानता :- चिड़िया एक घोंसले का सृजन तिनके एकत्र करके करती है| कवि भी उसी प्रकार अनेक भावों एवं विचारों का संग्रह करके काव्य रचना करता है।क्षमता की समानता :- चिड़िया की उड़ान और कवि की कल्पना की उड़ान दोनों दूर तक जाती हैं|
2. सबघर एक कर देने के माने क्या है ?
उत्तर :' सब घर एक कर देने के माने ' यह है कि कविता जातिभेद, वर्ण–भेद, देश-परदेश को नहीं देखती | जिस प्रकार एक बच्चा अपने पराए का भेद किए बिना उन घरों में भी खेलते-खेलते चला जाता जिनसे उसके परिवार वालों की दुश्मनी है वैसे ही कविता पर भी सीमाओं का बंधन नहीं होता वह दो दुश्मन देशों के बीच एक ही भाव से पढ़ी भी जाती है | कविता भी दो देशों के लोगों के दिलों को जोड़ती है | इस प्रकार कविता और बच्चे के बीच कवि समानता देखता है |
3. चिड़िया की उड़ान और कविता की उड़ान में क्या अंतर है ?
उत्तर : चिड़िया की उड़ान और कविता की उड़ान में यह अंतर है कि चिड़िया की उड़ान की एक सीमा है जबकि कविता की उडान असीम एवं अनंत है |
4. “कविता की उड़ान “ को चिड़िया क्यों नहीं जान सकती है ?
उत्तर : चिड़िया की उड़ान सीमित होती है जबकि कवि की कल्पनाएँ असीमित अनंत होती है , इसलिए कविता चिड़िया की उड़ान को नहीं समझ सकती है |
5. चिड़िया और कविता के सन्दर्भ में इस घर, उस घर से कवि का क्या आशय है ?
उत्तर : ‘इस घर’ से कवि का आशय लौकिक जगत से है एवं ‘उस घर’ से कवि का आशय अलौकिक जगत से है | चूँकि चिड़िया की उड़ान सीमित है, लौकिक जगत तक ही सीमित है किन्तु कविता की उड़ान असीमित व अलौकिक जगत तक है |
6. फूलों के खिलने और कविता में क्या समानता है ?
उत्तर : फूल रंग बिरंगे व् सुंदर होते हैं, प्रकृति में अपनी छटा बिखेरते हैं | फूलों को देखकर ह्रदय प्रस्फुटित होता है, ठीक उसी प्रकार कवि के ह्रदय में विभिन्न भावों का आगमन होता है, जिन्हें वह कविता के माध्यम से व्यक्त करता है | कविता को पढ़कर पाठक को आनंद की प्राप्ति होती है |
7. ‘कविता का खिलना फूल क्या जाने’ -कवि ने ऐसा क्यों कहा है ?
उत्तर : फूल सीमित समय के लिए खिलते हैं,जबकि कविता दीर्घ जीवी होती है | उसमें वर्णित भाव सदैव आनंद प्रदान करते हैं | इसलिए कविता का खिलना फूल नहीं जान सकता है |
8. बच्चों व कविता के सन्दर्भ में यह घर, वह घर का क्या अर्थ है ?
उत्तर : कवि का आशय है कि बच्चे खेल-खेल में अपने-पराये घरों की सीमाएँ भूल जाते हैं | ओर खेलते हुए सभी घरों को एक कर देते हैं | कवि भी यही कार्य करता है , वह समाज को बाँधता है |
पाठ–3 कविता के बहाने (कुँवर नारायण)
पद्यांश -1 बहुविकल्पीय प्रश्न
कविता एक उड़ान है चिड़िया के बहानेकविता की उडा़न भला चिड़िया क्या जानेबाहर - भीतरइस घर, उस घरकविता के पंख लगा उड़ने के मानेचिड़िया क्या जाने?
प्रश्न -1 कविता का शीर्षक है ?
कविता के बहाने
खेल के बहाने
घर जाने के बहाने
इनमे से कोई नही
उत्तर – (क) कविता के बहाने
प्रश्न -2 कविता के पंख लगा कर उड़ने के माने कौन नही जानता ?
कवि
लेखक
चिड़िया
इनमे से कोई नही
उत्तर - (ग) चिड़िया
प्रश्न -3 कविता की उड़ान कहाँ कहाँ होती है?
बाहर-भीतर
इस घर
उस घर
उपर्युक्त सभी
उत्तर – (घ) उपर्युक्त सभी
प्रश्न-4 कविता कि तुलना किससे की गई है ?
चिड़िया से
कबूतर से
घर से
पंख से
उत्तर – (क) चिड़िया से
प्रश्न -5 चिड़िया क्या नही जानती ?
कविता की उड़ान
कविता का पंख
इस घर उस घर को
इनमे से कोई नही
उत्तर – (क) कविता की उड़ान
पद्यांश – 2 बहुविकल्पीय प्रश्न
कविता एक खेल है बच्चों के बहानेबाहर भीतरयह घर वह घरसब घर एक कर देने के मानेबच्चा ही जाने।
प्रश्न -1 प्रस्तुत कविता का रचनाकार कौन है ?
आलोक धन्वा
कुंवर नारायण
रघुवीर सहाय
शमशेर बहादुर सिंह
उत्तर – (ख़) कुंवर नारायण
प्रश्न -2 बच्चो के बहाने कविता क्या है ?
घर
खेल
फूल
इनमे से कोई नही
उत्तर – (ख) खेल
प्रश्न-3 कविता के सब घर एक कर देने के माने कौन जानता है ?
कवि
बच्चे
फूल
इनमे से कोई नही
उत्तर – (ख) बच्चे
प्रश्न -4 बाहर- भीतर यह घर वह घर एक कौन कर देता है ?
कविता
बच्चे
उपर्युक्त दोनों
इनमे से कोई नही
उत्तर – (ग) उपर्युक्त दोनों
प्रश्न 5 – प्रस्तुत कविता किस पाठ से उद्धृत है ?
आत्म परिचय
कविता के बहाने
बात सीधी थी पर
इनमे से कोई नही
उत्तर – (ख) कविता के बहाने
लघुत्तरीय प्रश्न -
प्रश्न 1- कविता कहाँ-कहाँ उड़ सकती हैं?
उत्तर - कविता पंख लगाकर मानव मन में उड़ान भरती है। वह एक घर से दूसरे घर तक उड़ सकती है।
प्रश्न 2- कविता की उडान व चिडिया की उडान में क्या अंतर हैं?
उत्तर - चिड़िया की उड़ान एक सीमा तक होती है, परंतु कविता की उड़ान व्यापक होती है। चिड़िया कब्रिता की उड़ान को नहीं जान सकती।
प्रश्न 3 - बिना मुरझाए कौन कहाँ महकता हैं?
उत्तर - बिना मुरझाए कविता हर जगह महका करती है। यह अनंतकाल तक सुगंध फैलाती है।
प्रश्न 4 - कविता को क्या सज्ञा दी गई हैं?
उत्तर - कविता को खेल की संज्ञा दी गई है .
प्रश्न 5 - कविता और बच्चों के खेल में क्या समानता हैं?
उत्तर - बच्चे कहीं भी, कभी भी खेल खेलने लगते हैं। इस तरह कविता कहीं भी प्रकट हो सकती है।
बात सीधी थी पर
'बात सीधी थी पर' के महत्त्वपूर्ण बिंदु
- भाषा के महत्त्व को दिखाया गया है ।
- भाषा की तुलना एक शरारती बच्चे से की गई है।
- पेंच कसना, चूड़ी मरना आदि प्रतीकों का वर्णन किया है।
- आडंबरपूर्ण भाषा का प्रयोग करने से भाषा को समझना कठिन हो जाता है ।
बात सीधी थी पर काव्यांश के प्रश्न
बात सीधी थी पर एक बारभाषा के चक्कर मेंथोड़ी टेढ़ी फंस गईउसे पाने के चक्कर मेंभाषा को उलटा- पलटातोडा, मरोड़ाघुमाया फिरायाकि बात या तो बनेया फिर भाषा के चक्कर से बाहर आएलेकिन इससे भाषा के साथ-साथबात और भी पेचीदा होती चली गई
1.बात किस के चक्कर में फँस गई ?
उत्तर :- बात भाषा के चक्कर में फँस गई| भाषा को चमकदार बनाने के चक्कर में बात का अर्थ उलझ गया.
2.कवि किसको पाने की कोशिश करता है ?
उत्तर :- कवि टेढ़ी फँसी बात को वापस पाने की कोशिश करता है | वह उलझी हुई बात को सुलझाने की कोशिश करता है|
3.बात बाहर निकलने की अपेक्षा कैसे हो गई ?
उत्तर :- भाषा के चक्कर से बाहर निकलने की अपेक्षा बात और ज्यादा उलझ गई | उसका अर्थ और क्लिष्ट हो गया.
'बात सीधी थी पर' काव्यगत सौंदर्य-बोध
आखिरकार वही हुआ जिसका मुझे डर थाज़ोर ज़बरदस्ती सेबात की चूड़ी मर गईऔर वह भाषा में बेकार घूमने लगी ।हारकर मैंने उसे कील की तरहउसी जगह ठोंक दियाऊपर से ठीकठाकपर अंदर सेन तो उसमे कसाव थान ताकत।
1 . कविता के भाव-सौंदर्य पर टिप्पणी कीजिए.
उत्तर :
- कविता में सुंदरता के स्थान पर अर्थ को महत्त्व दिया गया है.
- भाषा को अधिक सुंदर बनाने के चक्कर में कविता के अर्थ को नहीं भूलना चाहिए.
- कविता वही प्रभावशाली होती है जिसका अर्थ लोगों को प्रभावित करे.
2. कविता के शिल्प-सौंदर्य पर टिप्पणी कीजिए.
उत्तर :
- मानक हिंदी भाषा का प्रयोग है|
- ‘ज़ोर-ज़बरदस्ती’ जैसे उर्दू शब्दों का प्रयोग है|
- ‘बात की चूड़ी मर जाना’ जैसे अभिनव प्रयोग किए गए हैं|
महत्त्वपूर्ण प्रश्न
1. भाषा को सहूलियत से बरतने का क्या अभिप्राय है?
उत्तर :- भाषा को सहूलियत से बरतने का अभिप्राय है -अपनी बात को सरल , सुग्राह्यता, और बिना अलंकारिकता के प्रयोग करना | इससे बात का भाव आसानी से समझ में आ जाता है | यही भाषा का उद्देश्य भी है.
2. ‘भाषा के चक्कर में, जरा टेढ़ी फँस गई’ का आशय स्पष्ट करो.
उत्तर :- ‘भाषा के चक्कर में , जरा टेढ़ी फँस गई’ का आशय यह है कि सीधी सरल बात को जबरदस्ती अलंकृत करके उसे उलझा दिया गया |
3. ‘उसे पाने की कोशिश में’ यहाँ उसे शब्द का प्रयोग किसके लिए हुआ है और क्यों?
उत्तर :- ‘उसे पाने की कोशिश में’ का अर्थ है बात को भाषा के चक्कर से बाहर निकालना और उसका सही अर्थ समझाना| बिना अर्थ के भाषा का कोई लाभ नहीं| केवल चमत्कारपूर्ण भाषा यदि कोई अर्थ स्पष्ट न करे तो वह बेकार है.
4. कवि बात के बारे में क्या बताता है ?
उत्तर :- कवि कहता है की बात साधारण थी पर परंतु वह भाषा के चक्कर में जटिल हो गई |
5. कवि ने बात को पाने क चक्कर में क्या क्या किया ?
उत्तर :- कवि ने बात का अर्थ समझने के लिए भाषा को घुमाया-फिराया ,उलटा-पलटा, तोड़ा- मरोड़ा | परिणाम स्वरूप बात और पेचीदा हो गई.
6. ‘पेंच खोलने की बजाय कसना’- पंक्ति का अर्थ स्पष्ट करो.
उत्तर :- पंक्ति का अर्थ है कि बात को स्पष्ट करने के बजाय उसे और उलझा दिया गया| पेंच खोलने का अर्थ है बात को सुलझाना| पेंच कसने का अर्थ है, उसे बिना सोचे-समझे और उलझाना.
7. कवि ने करतब किसे कहा है ?
उत्तर : कवि ने बात को बिना सोचे समझे उलझाने व कठिन बनाने को करतब कहा है | इससे कविता अलंकृत करने के चक्कर में बात कठिन हो गई |
8. ‘बात की चूड़ी मर जाना’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर :- ‘बात की चूड़ी मर जाना’ से क्या तात्पर्य है – बात मे कसावट नहीं होना | सरल बात शब्दों के जाल में ऐसी उलझी की उसकी कसावट ही समाप्त हो गई |
9 . कवि के करतब का क्या परिणाम हुआ ?
उत्तर :- कवि ने भाषा को जितना ही बनावटी ढंग और शब्दों के जाल में उलझाकर लाग लपेट करने वाले शब्दों में कहा , सुनने वालों द्वारा उसे उतनी ही शाबाशी मिली.
कवि परिचय
कुंवर नारायण
जीवन परिचय-कुंवर नारायण आधुनिक हिंदी कविता के सशक्त हस्ताक्षर हैं। इनका जन्म 19 सितंबर, सन 1927 को फैजाबाद (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हुई थी। विश्वविद्यालय स्तर की शिक्षा इन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से पूरी की। इन्होंने अनेक देशों की यात्रा की है। कुंवर नारायण ने सन 1950 के आस-पास काव्य-लेखन की शुरुआत की। इन्होंने चिंतनपरक लेख, कहानियाँ सिनेमा और अन्य कलाओं पर समीक्षाएँ भी लिखी हैं। इन्हें अनेक पुरस्कारों से नवाजा गया है; जैसे-कबीर सम्मान, व्यास सम्मान, लोहिया सम्मान, साहित्य अकादमी पुरस्कार, ज्ञानपीठ पुरस्कार तथा केरल का कुमारन आशान पुरस्कार आदि।
रचनाएँ
ये ‘तीसरे सप्तक’ के प्रमुख कवि हैं। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
काव्य-संग्रह-चक्रव्यूह (1956), परिवेश : हम तुम, अपने सामने, कोई दूसरा नहीं, इन दिनों।
प्रबंध-काव्य-आत्मजयी।
कहानी-संग्रह-आकारों के आस-पास।
समीक्षा-आज और आज से पहले।
सामान्य-मेरे साक्षात्कार।
काव्यगत विशेषताएँ
कवि ने कविता को अपने सृजन कर्म में हमेशा प्राथमिकता दी। आलोचकों का मानना है कि “उनकी कविता में व्यर्थ का उलझाव, अखबारी सतहीपन और वैचारिक धुंध की बजाय संयम, परिष्कार और साफ-सुथरापन है।” कुंवर जी नारायण नगरीय संवेदना के कवि हैं। इनके यहाँ विवरण बहुत कम हैं, परंतु वैयक्तिक तथा सामाजिक ऊहापोह का तनाव पूरी व्यंजकता में सामने आता है। इनकी तटस्थ दृष्टि नोच-खसोट, हिंसा-प्रतिहिंसा से सहमे हुए एक संवेदनशील मन के उतार-चढ़ाव के रूप में पढ़ी जा सकती है।
भाषा-शैली
भाषा और विषय की विविधता इनकी कविताओं के विशेष गुण माने जाते हैं। इनमें यथार्थ का खुरदरापन भी मिलता है और उसका सहज सौंदर्य भी। सीधी घोषणाएँ और फैसले इनकी कविताओं में नहीं मिलते क्योंकि जीवन को मुकम्मल तौर पर समझने वाला एक खुलापन इनके कवि-स्वभाव की मूल विशेषता है।
जय हिन्द : जय हिंदी
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