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नागार्जुन
फसल


एक के नहीं,
दो के नहीं,
ढ़ेर सारी नदियों के पानी का जादू;
एक के नहीं,
दो के नहीं,
लाख-लाख कोटि-कोटि हाथों के स्पर्श की गरिमा;
एक की नहीं,
दो की नहीं,
हजार-हजार खेतों की मिट्टी का गुण धर्म;
फसल क्या है?

भावार्थ - हममें से अधिकतर लोग अपना खाना खाते हुए शायद ही कभी इस बात पर गौर करते हैं जिस फसल के कारण हमें भोजन मिलता है वह फसल कैसे उपजती है। इस कविता में कवि ने फसल में छिपे हुए गुणों और छिपी हुई ऊर्जा के बारे में बताया है।

कवि कहता है कि फसल में एक दो नहीं बल्कि ढ़ेर सारी नदियों के पानी का जादू समाया हुआ होता है। फसल में लाखों करोड़ों हाथों के स्पर्श की गरिमा भरी हुई होती है; क्योंकि फसल को तैयार करते समय असंख्य मजदूरों के हाथ लगते हैं। फसल में हजारों खेतों की मिट्टी का गुण धर्म भरा हुआ होता है।


और तो कुछ नहीं है वह
नदियों के पानी का जादू है वह
हाथों के स्पर्श की महिमा है
भूरी-काली-संदली मिट्टी का गुण धर्म है
रूपांतर है सूरज की किरणों का
सिमटा हुआ संकोच है हवा की थिरकन का!


भावार्थ -  जिस फसल को हम किसी अनाज या सब्जी या फल के रूप में देखते हैं, वह और कुछ नहीं बल्कि नदियों के पानी का जादू है। वह हाथों के स्पर्श की महिमा है। वह कई प्रकार की मिट्टी का गुण धर्म अपने में संजोए हुए है। वह सूरज की किरणों का रूपांतर है। आपने जीव विज्ञान के पाठ में पढ़ा होगा कि किस तरह सूरज की किरणों की ऊर्जा अपना रूप बदलकर पादपों में भोजन के रूप में जमा होती है। कवि को यह भी लगता है कि फसल में हवा की थिरकन का सिमटा हुआ संकोच भी भरा हुआ है।

फसल के तैयार होने में कई शक्तियों और अवयवों का योगदान होता है। फसल के तैयार होने में मिट्टी से जरूरी पोषक मिलते हैं। फिर पानी, धूप और हवा उसके तैयार होने में अपना योगदान देती है। लेकिन उसपर से हजारों किसानों की मेहनत ही फसल को समुचित रूप से तैयार कर पाती है।


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प्रश्न-1  कवि के अनुसार फसल क्या है?

उत्तर: कवि के अनुसार फसल नदियों के पानी का जादू है, हाथों के स्पर्श की महिमा है, मिट्टी का गुण धर्म है सूर्य की किरणों का तेज है और हवा की थिरकन है।

प्रश्न-2  कविता में फसल उपजाने के लिए आवश्यक तत्वों की बात कही गई है। वे आवश्यक तत्व कौन-कौन से हैं?

उत्तर: मिट्टी में उपस्थित पोषक, सूर्य की किरणें, पानी और हवा; ये सभी फसल उपजाने के लिए आवश्यक तत्व हैं। इनके साथ ही किसानों की मेहनत भी उतनी ही जरूरी है।

प्रश्न-3  फसल को ‘हाथों के स्पर्श की गरिमा’ और ‘महिमा’ कहकर कवि क्या व्यक्त करना चाहता है?

उत्तर: इन शब्दों द्वारा कवि किसानों की महत्ता को उजागर करना चाहता है। कोई भी देश या समाज फसल के बिना नहीं रह सकता है और बिना किसान के फसल नहीं उगते हैं। इसलिए किसानों के हाथों का जादू हम सबके जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

प्रश्न-4  भाव स्पष्ट कीजिए:

रूपांतर है सूरज की किरणों का
सिमटा हुआ संकोच है हवा की थिरकन का!

उत्तर: कवि कहता है कि फसल सूरज की किरणों का रूपांतर है। आपने जीव विज्ञान के पाठ में पढ़ा होगा कि किस तरह सूरज की किरणों की ऊर्जा अपना रूप बदलकर पादपों में भोजन के रूप में जमा होती है। कवि को यह भी लगता है कि फसल में हवा की थिरकन का सिमटा हुआ संकोच भी भरा हुआ है।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न-1. कवि ने फ़सल को हजार - हजार खेतों की मिट्टी का गुण - धर्म कहा है -

(क) मिट्टी के गुण - धर्म को आप किस तरह परिभाषित करेंगे ?

उत्तर : मिट्टी के गुण - धर्म का अर्थ है उसमे मिलने वाले अनेकों पोषक तत्त्व, खनिज पदार्थ जो मिट्टी के रंग - रूप को परिभाषित करते है। मिट्टी में यदि यह अनेक तत्त्व ठीक मात्रा में होते है तो उससे फसल की पैदावार भी अच्छी होती है। 

(ख) वर्तमान जीवन शैली मिट्टी के गुण - धर्म को किस - किस तरह प्रभावित करती है ?

उत्तर : वर्तमान जीवन शैली के कारण मिट्टी अपनी क्षमता खोती जा रही है क्योंकि वह प्रदूषित होती जा रही है। आज की ज़िंदगी में आमतौर पर प्रयोग में आती चीजें जैसे - कीटनाशक, प्लास्टिक, रासायनिक तत्त्व, आदि मिट्टी को काफी नुकसान पहुँचाते है जिसका बुरा प्रभाव फसल पर भी पड़ता है। 

(ग) मिट्टी द्वारा अपना गुण - धर्म छोड़ने की स्थिति में क्या किसी भी प्रकार के जीवन की कल्पना की जा सकती है ?

उत्तर : मिट्टी द्वारा अपना गुण - धर्म छोड़ने पर धरती पर जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। बिना मिट्टी की गुणवत्ता के हरियाली, भोजन व हवा कुछ नहीं होगा और इन सबके बिना जीवन की कोई कल्पना ही नहीं हो सकती। 

(घ) मिट्टी के गुण - धर्म को पोषित करने में हमारी क्या भूमिका हो सकती है ?

उत्तर : हम मिट्टी के गुण - धर्म को पेड़ लगाकर, प्लास्टिक का  उपयोग न करके व कारखानों को सीमित करके पोषित कर सकते है। 


नागार्जुन का जीवन परिचय
Nagarjun Ka Jeevan Parichay


नागार्जुन का जन्म 1911 ई० की ज्येष्ठ पूर्णिमा को बिहार के सतलखा में हुआ था। इनके पिता का नाम गोकुल मिश्र और माता का नाम उमा देवी था। बाद में नामकरण के बाद इनका नाम वैद्यनाथ मिश्र रखा गया। छह वर्ष की आयु में ही इनकी माता का देहांत हो गया। इनके पिता इन्हे कंधे पर बैठाकर अपने संबंधियों के यहाँ, एक गाँव से दूसरे गाँव आया-जाया करते थे। इस प्रकार बचपन में ही इन्हें पिता की लाचारी के कारण घूमने की आदत पड़ गयी और बड़े होकर यह घूमना उनके जीवन का स्वाभाविक अंग बन गया।

इन्होंने अपनी विधिवत संस्कृत की पढ़ाई बनारस जाकर शुरू की। वहीं इन पर आर्य समाज का प्रभाव पड़ा और फिर बौद्ध दर्शन की ओर झुकाव हुआ। उन दिनों राजनीति में सुभाष चंद्र बोस इन्हें प्रिय थे। इन्होंने बनारस से निकल कर कोलकाता और फिर दक्षिण भारत घूमते हुए, लंका के विख्यात ‘विद्यालंकार परिवेण’ में जाकर बौद्ध धर्म की दीक्षा ली। साहित्यिक रचनाओं के साथ-साथ नागार्जुन राजनीतिक आंदोलनों में भी प्रत्यक्षतः भाग लेते रहे। स्वामी सहजानंद से प्रभावित होकर इन्होंने बिहार के किसान आंदोलन में भाग लिया और मार खाने के अतिरिक्त जेल की सजा भी भुगती। चंपारण के किसान आंदोलन में भी इन्होंने भाग लिया। वस्तुतः वे रचनात्मक के साथ-साथ सक्रिय प्रतिरोध में विश्वास रखते थे।

कविता, उपन्यास, कहानी, संस्मरण, यात्रा-वृत्तांत, निबन्ध, बाल-साहित्य सभी क्षेत्र में इन्होंने अपनी कलम चलाई। नागार्जुन सही अर्थों में भारतीय मिट्टी से बने आधुनिक कवि हैं। इन्हें कई सारे पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जैसे – भारत भारती सम्मान, मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, राजेन्द्र शिखर सम्मान एवं साहित्य अकादमी पुरस्कार।


जय हिन्द : जय हिंदी 
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