anuchchhed lekhan in hindi | anuchchhed lekhan Class 10 | अनुच्छेद लेखन class 9

anuchchhed lekhan in hindi | anuchchhed lekhan Class 10 | अनुच्छेद लेखन


अनुच्छेद-लेखन की परिभाषा
Paragraph Writing


किसी एक भाव या विचार को व्यक्त करने के लिए लिखे गये सम्बद्ध और लघु वाक्य-समूह को अनुच्छेद कहते हैं।अनुच्छेद लिखने की कला अनुच्छेद -लेखन है.

या

किसी घटना, दृश्य अथवा विषय को संक्षिप्त किन्तु सारगर्भित ढंग से जिस लेखन-शैली में प्रस्तुत किया जाता है, उसे अनुच्छेद-लेखन कहते हैं।

या 

किसी भी विषय को संक्षिप्त एवं प्रभावपूर्ण ढंग से प्रस्तुत करने की कला को अनुच्छेद लेखन कहा जाता है।

'अनुच्छेद' शब्द अंग्रेजी भाषा के 'Paragraph' शब्द का हिंदी पर्याय है। अनुच्छेद 'निबंध' का संक्षिप्त रूप होता है। इसमें किसी विषय के किसी एक पक्ष पर 80 से 150  शब्दों में अपने विचार व्यक्त किए जाते हैं।

अनुच्छेद में हर वाक्य मूल विषय से जुड़ा रहता है। अनावश्यक विस्तार के लिए उसमें कोई स्थान नहीं होता। अनुच्छेद में घटना अथवा विषय से सम्बद्ध वर्णन संतुलित तथा अपने आप में पूर्ण होना चाहिए। अनुच्छेद की भाषा-शैली सजीव एवं प्रभावशाली होनी चाहिए। शब्दों के सही चयन के साथ लोकोक्तियों एवं मुहावरों के समुचित प्रयोग से ही भाषा-शैली में उपर्युक्त गुण आ सकते हैं। इसका मुख्य कार्य किसी एक विचार को इस तरह लिखना होता है, जिसके सभी वाक्य एक-दूसरे से बंधे होते हैं। एक भी वाक्य अनावश्यक और बेकार नहीं होना चाहिए।

अनुच्छेद लेखन को लघु निबंध भी कहा जा सकता है। इसमें सीमित सुगठित एवं समग्र दृष्टिकोण से किया जाता है। शब्द संख्या सीमित होने के कारण लिखते समय थोड़ी सावधानी बरतनी चाहिए।

निबंध और अनुच्छेद लेखन में मुख्य अंतर यह है कि जहाँ निबंध में प्रत्येक बिंदु को अलग-अलग अनुच्छेद में लिखा जाता है, वहीं अनुच्छेद लेखन में एक ही परिच्छेद (पैराग्राफ) में प्रस्तुत विषय को सीमित शब्दों में प्रस्तुत किया जाता है। इसके अतिरिक्त, निबंध की तरह भूमिका, मध्य भाग एवं उपसंहार जैसा विभाजन अनुच्छेद में करने की आवश्यकता नहीं होती।

कार्य- अनुच्छेद अपने-आप में स्वतन्त्र और पूर्ण होते हैं। अनुच्छेद का मुख्य विचार या भाव की कुंजी या तो आरम्भ में रहती है या अन्त में। उच्च कोटि के अनुच्छेद-लेखन में मुख्य विचार अन्त में दिया जाता है।

अनुच्छेद लिखते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए :

(1) अनुच्छेद लिखने से पहले रूपरेखा, संकेत-बिंदु आदि बनानी चाहिए।
(2) अनुच्छेद में विषय के किसी एक ही पक्ष का वर्णन करें।
(3) भाषा सरल, स्पष्ट और प्रभावशाली होनी चाहिए।
(4) एक ही बात को बार-बार न दोहराएँ।
(5) अनावश्यक विस्तार से बचें, लेकिन विषय से न हटें।
(6) शब्द-सीमा को ध्यान में रखकर ही अनुच्छेद लिखें।
(7) पूरे अनुच्छेद में एकरूपता होनी चाहिए।
(8) विषय से संबंधित सूक्ति अथवा कविता की पंक्तियों का प्रयोग भी कर सकते हैं।

अनुच्छेद की प्रमुख विशेषताएँ
अनुच्छेद लेखन की प्रमुख विशेषताएँ

अनुच्छेद की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित है-
(1) अनुच्छेद किसी एक भाव या विचार या तथ्य को एक बार, एक ही स्थान पर व्यक्त करता है। इसमें अन्य विचार नहीं रहते।
(2) अनुच्छेद के वाक्य-समूह में उद्देश्य की एकता रहती है। अप्रासंगिक बातों को हटा दिया जाता है।
(3) अनुच्छेद के सभी वाक्य एक-दूसरे से गठित और सम्बद्ध होते है।
(4) अनुच्छेद एक स्वतन्त्र और पूर्ण रचना है, जिसका कोई भी वाक्य अनावश्यक नहीं होता।
(5) उच्च कोटि के अनुच्छेद-लेखन में विचारों को इस क्रम में रखा जाता है कि उनका आरम्भ, मध्य और अन्त आसानी से व्यक्त हो जाय।
(6) अनुच्छेद सामान्यतः छोटा होता है, किन्तु इसकी लघुता या विस्तार विषयवस्तु पर निर्भर करता है।
(7) अनुच्छेद की भाषा सरल और स्पष्ट होनी चाहिए।

anuchchhed lekhan in hindi


कुछ महत्वपूर्ण अनुच्छेद 

(1) 'समय किसी के लिए नहीं रुकता' पर 80-100 शब्दों में अनुच्छेद लिखिए।

 'समय किसी के लिए नहीं रुकता' 


'समय' निरंतर बीतता रहता है, कभी किसी के लिए नहीं ठहरता। जो व्यक्ति समय के मोल को पहचानता है, वह अपने जीवन में उन्नति प्राप्त करता है। समय बीत जाने पर कार्य करने से भी फल की प्राप्ति नहीं होती और पश्चात्ताप के अतिरिक्त कुछ हाथ नहीं आता। जो विद्यार्थी सुबह समय पर उठता है, अपने दैनिक कार्य समय पर करता है तथा समय पर सोता है, वही आगे चलकर सफलता व उन्नति प्राप्त करता है। जो व्यक्ति आलस में आकर समय गँवा देता है, उसका भविष्य अंधकारमय हो जाता है। संतकवि कबीरदास जी ने भी कहा है :

''काल करै सो आज कर, आज करै सो अब।
पल में परलै होइगी, बहुरि करेगा कब।।''

समय का एक-एक पल बहुत मूल्यवान है और बीता हुआ पल वापस लौटकर नहीं आता। इसलिए समय का महत्व पहचानकर प्रत्येक विद्यार्थी को नियमित रूप से अध्ययन करना चाहिए और अपने लक्ष्य की प्राप्ति करनी चाहिए। जो समय बीत गया उस पर वर्तमान समय बरबाद न करके आगे की सुध लेना ही बुद्धिमानी है।

(2) 'अभ्यास का महत्त्व' पर 80-100 शब्दों में अनुच्छेद लिखिए।

 'अभ्यास का महत्त्व' 


यदि निरंतर अभ्यास किया जाए, तो असाध्य को भी साधा जा सकता है। ईश्वर ने सभी मनुष्यों को बुद्धि दी है। उस बुद्धि का इस्तेमाल तथा अभ्यास करके मनुष्य कुछ भी सीख सकता है। अर्जुन तथा एकलव्य ने निरंतर अभ्यास करके धनुर्विद्या में निपुणता प्राप्त की। उसी प्रकार वरदराज ने, जो कि एक मंदबुद्धि बालक था, निरंतर अभ्यास द्वारा विद्या प्राप्त की और ग्रंथों की रचना की। उन्हीं पर एक प्रसिद्ध कहावत बनी :

''करत-करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान।
रसरि आवत जात तें, सिल पर परत निसान।।''

यानी जिस प्रकार रस्सी की रगड़ से कठोर पत्थर पर भी निशान बन जाते हैं, उसी प्रकार निरंतर अभ्यास से मूर्ख व्यक्ति भी विद्वान बन सकता है। यदि विद्यार्थी प्रत्येक विषय का निरंतर अभ्यास करें, तो उन्हें कोई भी विषय कठिन नहीं लगेगा और वे सरलता से उस विषय में कुशलता प्राप्त कर सकेंगे।

(3) 'विद्यालय की प्रार्थना-सभा' पर 80-100 शब्दों में अनुच्छेद लिखिए।

'विद्यालय की प्रार्थना-सभा'


प्रत्येक विद्यार्थी के लिए प्रार्थना-सभा बहुत महत्त्वपूर्ण होती है। प्रत्येक विद्यालय में सबसे पहले प्रार्थना-सभा का आयोजन किया जाता है। इस सभा में सभी विद्यार्थी व अध्यापक-अध्यापिकाओं का सम्मिलित होना अत्यावश्यक होता है। प्रार्थना-सभा केवल ईश्वर का ध्यान करने के लिए ही नहीं होती, बल्कि यह हमें अनुशासन भी सिखाती है।

हमारे विद्यालय की प्रार्थना-सभा में ईश्वर की आराधना के बाद किसी एक कक्षा के विद्यार्थियों द्वारा किसी विषय पर कविता, दोहे, विचार, भाषण, लघु-नाटिका आदि प्रस्तुत किए जाते हैं व सामान्य ज्ञान पर आधारित जानकारी भी दी जाती है, जिससे सभी विद्यार्थी लाभान्वित होते हैं।

जब कोई त्योहार आता है, तब विशेष प्रार्थना-सभा का आयोजन किया जाता है। प्रधानाचार्या महोदया भी विद्यार्थियों को सभा में संबोधित करती हैं तथा विद्यालय से संबंधित महत्त्वपूर्ण घोषणाएँ भी करती हैं। प्रत्येक विद्यार्थी को प्रार्थना-सभा में पूर्ण अनुशासनबद्ध होकर विचारों को ध्यानपूर्वक सुनना चाहिए। प्रार्थना-सभा का अंत राष्ट्र-गान से होता है। सभी विद्यार्थियों को प्रार्थना-सभा का पूर्ण लाभ उठाना चाहिए व सच्चे, पवित्र मन से इसमें सम्मिलित होना चाहिए।

(4) 'मीठी बोली का महत्त्व' पर 80-100 शब्दों में अनुच्छेद लिखिए।

'मीठी बोली का महत्त्व' 


'वाणी' ही मनुष्य को अप्रिय व प्रिय बनाती है। यदि मनुष्य मीठी वाणी बोले, तो वह सबका प्यारा बन जाता है और उसमें अनेक गुण होते हुए भी यदि उसकी बोली मीठी नहीं है, तो उसे कोई पसंद नहीं करता। इस तथ्य को कोयल और कौए के उदाहरण द्वारा सबसे भली प्रकार से समझा जा सकता है। दोनों देखने में समान होते हैं, परंतु कौए की कर्कश आवाज और कोयल की मधुर बोली दोनों की अलग-अलग पहचान बनाती है, इसलिए कौआ सबको अप्रिय और कोयल सबको प्रिय लगती है।
''कौए की कर्कश आवाज और कोयल की मधुर वाणी सुन।
सभी जान जाते हैं, दोनों के गुण।।''

मनुष्य अपनी मधुर वाणी से शत्रु को भी अपना बना सकता है। ऐसा व्यक्ति समाज में बहुत आदर पाता है। विद्वानों व कवियों ने भी मधुर वचन को औषधि के समान कहा है। मधुर बोली सुनने वाले व बोलने वाले दोनों के मन को शांति मिलती है। इससे समाज में प्रेम व भाईचारे का वातावरण बनता है। अतः सभी को मीठी बोली बोलनी चाहिए तथा अहंकार व क्रोध का त्याग करना चाहिए।

(5) 'रेलवे प्लेटफार्म पर आधा घण्टा' पर 80-100 शब्दों में अनुच्छेद लिखिए।

 'रेलवे प्लेटफार्म पर आधा घण्टा' 


रेलवे स्टेशन एक अद्भुत स्थान है। यहाँ दूर-दूर से यात्रियों को लेकर गाड़ियाँ आती है और अन्य यात्रियों को लेकर चली जाती है। एक प्रकार से रेलवे स्टेशन यात्रियों का मिलन-स्थल है। अभी कुछ दिन पूर्व मैं अपने मित्र की अगवानी करने स्टेशन पर गया। प्लेटफार्म टिकट लेकर मैं स्टेशन के अंदर चला गया।

प्लेटफार्म नं. 3 पर गाड़ी को आकर रुकना था। मैं लगभग आधा घण्टा पहले पहुँच गया था, अतः वहाँ प्रतीक्षा करने के अतिरिक्त कोई चारा न था। मैंने देखा कि प्लेटफार्म पर काफी भीड़ थी। लोग बड़ी तेजी से आ-जा रहे थे। कुली यात्रियों के साथ चलते हुए सामान को इधर-उधर पहुँचा रहे थे। पुस्तकों और पत्रिकाओं में रुचि रखने वाले कुछ लोग बुक-स्टाल पर खड़े थे, पर अधिकांश लोग टहल रहे थे। कुछ लोग राजनीतिक विषयों पर गरमागरम बहस में लीन थे। चाय वाला 'चाय-चाय' की आवाज लगाता हुआ घूम रहा था। कुछ लोग उससे चाय लेकर पी रहे थे। पूरी-सब्जी की रेढ़ी के इर्द-गिर्द भी लोग जमा थे। महिलाएँ प्रायः अपने सामान के पास ही बैठी थीं। बीच-बीच में उद्घोषक की आवाज सुनाई दे जाती थी। तभी उद्घोषणा हुई कि प्लेटफार्म न. 3 पर गाड़ी पहुँचने वाली है।

चढ़ने वाले यात्री अपना-अपना सामान सँभाल कर तैयार हो गए। कुछ ही क्षणों में गाड़ी वहाँ आ पहुँची। सारे प्लेटफार्म पर हलचल-सी मच गई। गाड़ी से जाने वाले लोग लपककर चढ़ने की कोशिश करने लगे। उतरने वाले यात्रियों को इससे कठिनाई हुई। कुछ समय बाद यह धक्कामुक्की समाप्त हो गई। मेरा मित्र तब तक गाड़ी से उतर आया था। उसे लेकर मैं घर की ओर चल दिया।


(6) प्रदूषण की चुनौतियां एवं निपटने के उपाय ।

प्रदूषण 

प्रस्तावना : विज्ञान के इस युग में मानव को जहां कुछ वरदान मिले है, वहां कुछ अभिशाप भी मिले हैं। प्रदूषण एक ऐसा अभिशाप हैं जो विज्ञान की कोख में से जन्मा हैं और जिसे सहने के लिए अधिकांश जनता मजबूर हैं। 

प्रदूषण का अर्थ : प्रदूषण का अर्थ है -प्राकृतिक संतुलन में दोष पैदा होना। न शुद्ध वायु मिलना, न शुद्ध जल मिलना, न शुद्ध खाद्य मिलना, न शांत वातावरण मिलना। 
 
प्रदूषण कई प्रकार का होता है! प्रमुख प्रदूषण हैं - वायु-प्रदूषण, जल-प्रदूषण और ध्वनि-प्रदूषण ।  
 
वायु-प्रदूषण : महानगरों में यह प्रदूषण अधिक फैला है। वहां चौबीसों घंटे कल-कारखानों का धुआं, मोटर-वाहनों का काला धुआं इस तरह फैल गया है कि स्वस्थ वायु में सांस लेना दूभर हो गया है। मुंबई की महिलाएं धोए हुए वस्त्र छत से उतारने जाती है तो उन पर काले-काले कण जमे हुए पाती है। ये कण सांस के साथ मनुष्य के फेफड़ों में चले जाते हैं और असाध्य रोगों को जन्म देते हैं! यह समस्या वहां अधिक होती हैं जहां सघन आबादी होती है, वृक्षों का अभाव होता है और वातावरण तंग होता है। 
 
जल-प्रदूषण : कल-कारखानों का दूषित जल नदी-नालों में मिलकर भयंकर जल-प्रदूषण पैदा करता है। बाढ़ के समय तो कारखानों का दुर्गंधित जल सब नाली-नालों में घुल मिल जाता है। इससे अनेक बीमारियां पैदा होती है। 
 
ध्वनि-प्रदूषण : मनुष्य को रहने के लिए शांत वातावरण चाहिए। परन्तु आजकल कल-कारखानों का शोर, यातायात का शोर, मोटर-गाड़ियों की चिल्ल-पों, लाउड स्पीकरों की कर्णभेदक ध्वनि ने बहरेपन और तनाव को जन्म दिया है।
 
प्रदूषणों के दुष्परिणाम: उपर्युक्त प्रदूषणों के कारण मानव के स्वस्थ जीवन को खतरा पैदा हो गया है। खुली हवा में लम्बी सांस लेने तक को तरस गया है आदमी। गंदे जल के कारण कई बीमारियां फसलों में चली जाती हैं जो मनुष्य के शरीर में पहुंचकर घातक बीमारियां पैदा करती हैं। भोपाल गैस कारखाने से रिसी गैस के कारण हजारों लोग मर गए, कितने ही अपंग हो गए। पर्यावरण-प्रदूषण के कारण न समय पर वर्षा आती है, न सर्दी-गर्मी का चक्र ठीक चलता है। सुखा, बाढ़, ओला आदि प्राकृतिक प्रकोपों का कारण भी प्रदूषण है। 
 
प्रदूषण के कारण : प्रदूषण को बढ़ाने में कल-कारखाने, वैज्ञानिक साधनों का अधिक उपयोग, फ्रिज, कूलर, वातानुकूलन, ऊर्जा संयंत्र आदि दोषी हैं। प्राकृतिक संतुलन का बिगड़ना भी मुख्य कारण है। वृक्षों को अंधा-धुंध काटने से मौसम का चक्र बिगड़ा है। घनी आबादी वाले क्षेत्रों में हरियाली न होने से भी प्रदूषण बढ़ा है। 
 
सुधार के उपाय : विभिन्न प्रकार के प्रदूषण से बचने के लिए चाहिए कि अधिक से अधिक पेड़ लगाए जाएं, हरियाली की मात्रा अधिक हो। सड़कों के किनारे घने वृक्ष हों। आबादी वाले क्षेत्र खुले हों, हवादार हों, हरियाली से ओतप्रोत हों। कल-कारखानों को आबादी से दूर रखना चाहिए और उनसे निकले प्रदूषित मल को नष्ट करने के उपाय सोचना चाहिए।


(7) 'जीवन संघर्ष है, स्वप्न नहीं' पर 80-100 शब्दों में अनुच्छेद लिखिए।

'जीवन संघर्ष है, स्वप्न नहीं'



संकेत बिंदु

  • जीवन संघर्ष का ही दूसरा नाम हैं।
  • जीवन गतिशील एवं बाधाओं से पूर्ण हैं।
  • स्वप्न असत्य, जबकि जीवन सत्य


मनुष्य का जीवन वास्तव में सुख-दुःख, आशा-निराशा, ख़ुशी-दर्द आदि का मिश्रण है। यह न तो केवल फूलों की सेज है और न ही काँटों का ताज। वस्तुतः जीवन एक अनवरत संघर्ष का नाम है।

जीवन की तुलना एक प्रवाहमान नदी से की जा सकती है। जिस प्रकार एक सरिता अविरल बहती रहती है, समुद्र में लहरे सदा गतिशील रहती हैं, वायु एक क्षण के लिए भी नहीं रुकती, सूर्य, चन्द्रमा, तारे सभी अपने-अपने नियत समय पर उदित एवं अस्त होते हैं, ठीक उसी प्रकार जीवन की गति भी अविरल है। समय के साथ-साथ आगे बढ़ते रहने की प्रबल मानवीय लालसा ही जीवन है।

इस अविरल गति से प्रवाहमान जीवन में अनेक ऊँचे-नीचे रास्ते आते हैं, अनेक बाधाएँ आती हैं। इन्हीं बाधाओं से संघर्ष करते हुए जीवन आगे बढ़ता रहता है। यही कर्म है, यही सत्य है। जीवन में आने वाली बाधाओं से घबराकर रुक जाने वाला या पीछे हट जाने वाला व्यक्ति भी सफलता प्राप्त नहीं कर सकता। जीवन सत्य हैं, जबकि स्वप्न असत्य। स्वप्न काल्पनिक है, अयथार्थ है। स्वप्न का महत्त्व केवल वहीं तक है, जहाँ तक वह मनुष्य के जीवन को आगे बढ़ाने में प्रेरक है। मनुष्य स्वप्न के माध्यम से ही ऐसी कल्पनाएँ करता है, जो अयथार्थ होती हैं, लेकिन उस काल्पनिक लोक को वह अपने परिश्रम, उमंग एवं दृढ़ इच्छाशक्ति से यथार्थ में, वास्तविकता में परिवर्तित कर देता है। वास्तविक जीवन एक कर्तव्य पथ है, जिसके मार्ग में अनेक शूल बिखरे पड़े हैं, लेकिन मनुष्य की इच्छाशक्ति या दृढ़ संकल्प उन बाधाओं और काँटों की परवाह नहीं करता और उन्हें रौंदकर आगे निकल जाता हैं।

जीवन संघर्ष की लंबी साधना है। यह संघर्ष तब तक बना रहता है, जब तक मनुष्य के शरीर में साँस चलती रहती है, संघर्ष से बचा नहीं जा सकता।



(8) 'कंप्यूटर:आज की जरूरत' पर 80-100 शब्दों में अनुच्छेद लिखिए।

'कंप्यूटर:आज की जरूरत' 


संकेत बिंदु

  • कंप्यूटर का परिचय
  • कंप्यूटर से होने वाली हानियाँ
  • कंप्यूटर की उपयोगिता


कंप्यूटर वास्तव में, विज्ञान द्वारा विकसित एक ऐसा यंत्र है, जो कुछ ही क्षणों में लाखों-करोड़ों गणनाएँ कर सकता है। कंप्यूटर ने मानव जीवन को बहुत सरल बना दिया है। कंप्यूटर द्वारा रेलवे टिकटों की बुकिंग बहुत आसान और समय बचाने वाली हो गई है। आज किसी भी बीमारी की जाँच करने, स्वास्थ्य का पूरा परीक्षण करने, रक्त-चाप एवं ह्रदय गति आदि मापने में इसका भरपूर प्रयोग किया जा रहा है। रक्षा क्षेत्र में प्रयुक्त उपकरणों में कंप्यूटर का बेहतर प्रयोग उन्हें और भी उपयोगी बना रहा है। आज हवाई यात्रा में सुरक्षा का मामला हो या यान उड़ाने की प्रक्रिया, कंप्यूटर के कारण सभी जटिल कार्य सरल एवं सुगम हो गए हैं। संगीत हो या फ़िल्म, कंप्यूटर की मदद से इनकी गुणवत्ता को सुधारने में बहुत मदद मिली है। कंप्यूटर से कुछ हानियाँ भी हैं। कंप्यूटर पर आश्रित होकर मनुष्य आलसी प्रवृत्ति का बनता जा रहा है। कंप्यूटर के कारण बच्चे आजकल घर के बाहर खेलों में रुचि नहीं लेते और इस पर गेम खेलते रहते हैं। इस कारण उनका शारीरिक विकास ठीक से नहीं हो पाता। कंप्यूटर आज जीवन की आवश्यकता बन गया है। अतः इसका सही ढंग से प्रयोग कर हम अपने जीवन में प्रगति कर सकते हैं।


(9) 'ग्लोबल वार्मिंग' पर 80-100 शब्दों में अनुच्छेद लिखिए।


 'ग्लोबल वार्मिंग' 


संकेत बिंदु

  • ग्लोबल वार्मिंग क्या है तथा कैसे होती हैं ?
  • दुष्परिणाम
  • बचाव तथा उपसंहार


वैश्विक तापमान यानी ग्लोबल वार्मिंग आज विश्व की सबसे बड़ी समस्या बन चुकी है। इससे न केवल मनुष्य, बल्कि पृथ्वी पर रहने वाला प्रत्येक प्राणी त्रस्त है। 'ग्लोबल वार्मिंग' शब्द का अर्थ है' संपूर्ण पृथ्वी के तापमान में वृद्धि होना।' हमारी पृथ्वी पर वायुमंडल की एक परत है, जो विभिन्न गैसों से मिलकर बनी है, जिसे ओजोन परत कहते हैं। ये ओजोन परत सूर्य से आने वाली पराबैंगनी तथा अन्य हानिकारक किरणों को पृथ्वी पर आने से रोकती है। मानवीय क्रियाओं द्वारा ओजोन परत में छिद्र हो जाने के कारण सूर्य की हानिकारक किरणें पृथ्वी के वातावरण में प्रवेश कर रही हैं।

परिणामस्वरूप पृथ्वी के तापमान में लगातार वृद्धि हो रही है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण कई समुद्री तथा पृथ्वी पर रहने वाले जीव-जंतुओं की प्रजातियों के अस्तित्व पर खतरा छाया हुआ है, साथ ही मनुष्यों को भी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। यदि समय रहते ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के उपाय नहीं किए, तो हमारी पृथ्वी जीवन के योग्य नहीं रह जाएगी। इसे रोकने के लिए हमें प्रदूषण को कम करना होगा। साथ ही कार्बन डाइ-ऑक्साइड सहित अन्य गैसों के उत्सर्जन में कमी तथा वृक्षारोपण को बढ़ावा देना होगा, जिससे प्रकृति में पर्यावरण संबंधी संतुलन बना रहे।



(10) 'विज्ञापन की बढ़ती हुई लोकप्रियता' पर 80-100 शब्दों में अनुच्छेद लिखिए।

 'विज्ञापन की बढ़ती हुई लोकप्रियता' 


संकेत बिंदु

  • विज्ञापन की आवश्यकता
  • विज्ञापनों से होने वाले लाभ
  • विज्ञापनों से होने वाली हानियाँ


आज के युग को विज्ञापनों का युग कहा जा सकता है। आज सभी जगह विज्ञापन-ही-विज्ञापन नजर आते हैं। बड़ी-बड़ी कंपनियाँ एवं उत्पादक अपने उत्पाद एवं सेवा से संबंधित लुभावने विज्ञापन देकर उसे लोकप्रियता बनाने का हर संभव प्रयास करते हैं। किसी नए उत्पाद के विषय में जानकारी देने, उसकी विशेषता एवं प्राप्ति स्थान आदि बताने के लिए विज्ञापन की आवश्यकता पड़ती है। विज्ञापनों के द्वारा किसी भी सूचना तथा उत्पाद की जानकारी, पूर्व में प्रचलित किसी उत्पाद में आने वाले बदलाव आदि की जानकारी सामान्य जनता को दी जा सकती है।

विज्ञापन का उद्देश्य जनता को किसी भी उत्पाद एवं सेवा की सही सूचना देना है, लेकिन आज विज्ञापनों में अपने उत्पाद को सर्वोत्तम तथा दूसरों के उत्पादों को निकृष्ट कोटि का बताया जाता है। आजकल के विज्ञापन भ्रामक होते हैं तथा मनुष्य को अनावश्यक खरीदारी करने के लिए प्रेरित करते हैं। अतः विज्ञापनों का यह दायित्व बनता है कि वे ग्राहकों को लुभावने दृश्य दिखाकर गुमराह नहीं करें, बल्कि अपने उत्पाद के सही गुणों से परिचित कराएँ। तभी उचित सामान ग्राहकों तक पहुँचेगा और विज्ञापन अपने लक्ष्य में सफल होगा।




(11) 'वन और पर्यावरण का सम्बन्ध' पर 80-100 शब्दों में अनुच्छेद लिखिए।

वन और पर्यावरण का सम्बन्ध




संकेत-बिंदु –

  • वन प्रदुषण-निवारण में सहायक,
  • वनों की उपयोगिता,
  • वन संरक्षण की आवश्यकता,
  • वन संरक्षण के उपाय।


वन और पर्यावरण का बहुत गहरा सम्बन्ध है। प्रकृति के संतुलन को बनाये रखने के लिए पृथ्वी के 33% भाग को अवश्य हरा-भरा होना चाहिए। वन जीवनदायक हैं। ये वर्षा कराने में सहायक होते हैं। धरती की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाते हैं। वनों से भूमि का कटाव रोका जा सकता है। वनों से रेगिस्तान का फैलाव रुकता है, सूखा कम पड़ता है। इससे ध्वनि प्रदुषण की भयंकर समस्या से भी काफी हद तक नियंत्रण पाया जा सकता है। वन ही नदियों, झरनों और अन्य प्राकृतिक जल स्रोतों के भण्डार हैं। वनों से हमें लकड़ी, फल, फूल, खाद्य पदार्थ, गोंद तथा अन्य सामान प्राप्त होते हैं। आज भारत में दुर्भाग्य से केवल 23 % वन बचे हैं। जैसे-जैसे उद्योगों को संख्या बढ़ रही है, शहरीकरण हो रहा है, वाहनों की संख्या बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे वनों की आवश्यकता और बढ़ती जा रही है। वन संरक्षण एक कठिन एवं महत्वपूर्ण काम है। इसमें हर व्यक्ति को अपनी जिम्मेदारी समझनी पड़ेगी और अपना योगदान देना होगा। अपने घर-मोहल्ले, नगर में अत्यधिक संख्या में वृक्षारोपण को बढाकर इसको एक आंदोलन के रूप में आगे बढ़ाना होगा। तभी हम अपने पर्यावरण को स्वच्छ रख पाएँगे।



anuchchhed lekhan in hindi 
अन्य उदाहरण 




 कम्प्यूटर एक जादुई पिटारा


आज का युग विज्ञान का युग है। वर्तमान समय में विज्ञान ने हमें कम्प्यूटर के रूप में एक अनमोल उपहार दिया है। आज जीवन के हर क्षेत्र में कम्प्यूटर का उपयोग हो रहा है। जो काम मनुष्य द्वारा पहले बड़ी कठिनाई के साथ किया जाता था, आज वही काम कम्प्यूटर द्वारा बड़े ही आराम से किये जा रहे हैं। कंप्यूटर का उपयोग दिनो-दिन बढ़ता जा रहा है। कम्प्यूटर ने दुनिया को बहुत छोटा कर दिया है। इंटरनेट द्वारा गूगल, याहू एवं बिंग आदि वेबसाइट पर दुनियाभर की जानकारी घर बैठे ही प्राप्त की जा सकती है। इंटरनेट पर ई-मेल के द्वारा विश्व में किसी भी जगह बैठे व्यक्ति से संपर्क किया जा सकता है। इसके लिए केवल ई-मेल अकाउंट और पासवर्ड का होना आवश्यक होता है। कम्प्यूटर मनोरंजन का भी महत्वपूर्ण साधन है। इस पर अनेक खेल भी खेले जा सकते हैं। कुल मिलकर कहें तो कम्प्यूटर ने मानव जीवन को बहुत सरल बना दिया है। कम्प्यूटर सचमुच एक जादुई पिटारा है।



ग्लोबल वार्मिंग


ग्लोबल वार्मिंग शब्द पृथ्वी के तापमान में होने वाली वृद्धि को दर्शाता है। यह एक ऐसी समस्या है जिस पर अगर काबू नहीं किया गया तो यह पूरी पृथ्वी को ही नष्ट कर देगा। सीएफसी-11 और सीएफसी-12 जैसी ग्रीन हाउस गैसों ने सूरज के थर्मल विकिरण को अवशोषित करके पृथ्वी के वातावरण को गर्म बना दिया। ये गैसें सूर्य की किरणों को वायुमंडल में प्रवेश तो करने देती हैं, लेकिन उससे होने वाले विकिरण को वायुमंडल से बाहर नहीं जाने देती हैं। इसी को ग्रीनहाउस प्रभाव कहा जाता है, जो पूरे विश्व में तापमान में वृद्धि के लिए जिम्मेदार है। तापमान में वृद्धि से वर्षा चक्र, पारिस्थितिक संतुलन, मौसम का चक्र आदि प्रभावित होते हैं। यह वनस्पति और कृषि को भी प्रभावित करता है। जिसके कारण हमें दुनिया भर में लगातार बाढ़ और सूखे जैसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। तापमान में वृद्धि और ग्लेशियरों के पिघलने के कारण बर्फ़बारी जैसी घटनाओं में भी कमी आयी है। तापमान में वृद्धि से आद्रता में भी वृद्धि हुई है क्योंकि तापमान में वृद्धि से वाष्पीकरण की दर में वृद्धि हुई है। स्थानीय सरकारों को चाहिए की वह लोगों के बीच जागरूकता पैदा करे तथा ऐसे उपकरणों और वाहनों की बिक्री को प्रोत्साहित करे जो पर्यावरण के अनुकूल हो। पेपर, प्लास्टिक और अन्य सामग्रियों की रीसाइक्लिंग को प्रोत्साहित करना चाहिए। ऐसे प्रयासों को लोगों द्वारा जमीनी स्तर पर करना अत्यंत आवश्यक है, तभी हम एक प्रभावी तरीके से इस भयानक समस्या का मुकाबला कर सकते हैं.



मिट्टी तेरे रूप अनेक


  • सामान्य धारणा
  • मानव शरीर की रचना के लिए आवश्यक
  • जीवन का आधार
  • कल्याणकारी रूप
  • बच्चों के लिए मिट्टी।

प्रायः जब किसी वस्तु को अत्यंत तुच्छ बताना होता है तो लोग कह उठते हैं कि यह तो मिट्टी के भाव मिल जाएगी। लोगों की धारणा मिट्टी के प्रति भले ही ऐसी हो परंतु तनिक-सी गहराई से विचार करने पर यह धारणा गलत साबित हो जाती है। समस्त जीवधारियों यहाँ तक पेड़-पौधों को भी यही मिट्टी शरण देती है। आध्यात्मवादियों का तो यहाँ तक मानना है कि मानव शरीर निर्माण के लिए जिन तत्वों का प्रयोग हुआ है उनमें मिट्टी भी एक है।

जब तक शरीर जिंदा रहता है तब तक मिट्टी उसे शांति और चैन देती है और फिर मृत शरीर को अपनी गोद में समाहित कर लेती है।पृथ्वी पर जीवन का आधार यही मिट्टी है, जिसमें नाना प्रकार के फल, फ़सल और अन्य खाद्य वस्तुएँ पैदा होती हैं, जिसे खाकर मनुष्य एवं अन्य प्राणी जीवित एवं हृष्ट-पुष्ट रहते हैं। यह मिट्टी कीड़े-मकोड़े और छोटे जीवों का घर भी है। यह मिट्टी विविध रूपों में मनुष्य और अन्य जीवों का कल्याण करती है।

विभिन्न देवालयों को नवजीवन से भरकर कल्याणकारी रूप दिखाती है। मिट्टी का बच्चों से तो अटूट संबंध है। इसी मिट्टी में लोटकर, खेल-कूदकर वे बड़े होते हैं और बलिष्ठ बनते हैं। मिट्टी के खिलौनों से खेलकर वे अपना मनोरंजन करते हैं। वास्तव में मिट्टी हमारे लिए विविध रूपों में नाना ढंग से उपयोगी है।



आज की आवश्यकता-संयुक्त परिवार



  • एकल परिवार का बढ़ता चलन
  • एकल परिवार और वर्तमान समाज
  • संयुक्त परिवार की आवश्यकता
  • बुजुर्गों की देखभाल
  • एकाकीपन को जगह नहीं।

समय सतत परिवर्तनशील है। इसका उदाहरण है-प्राचीनकाल से चली आ रही संयुक्त परिवार की परिपाटी का टूटना और एकल परिवार का चलन बढ़ते जाना। शहरीकरण, बढ़ती महँगाई, नौकरी की चाहत, उच्च शिक्षा, विदेशों में बसने की प्रवृत्ति के कारण एकल परिवारों की संख्या बढ़ती जा रही है। इसके अलावा बढ़ती स्वार्थ वृत्ति भी बराबर की ज़िम्मेदार है। इन एकल परिवारों के कारण आज बच्चों की शिक्षा-दीक्षा, पालन-पोषण, माता-पिता के लिए दुष्कर होता जाता है।

जिस एकल परिवार में पति-पत्नी दोनों ही नौकरी करते हों, वहाँ यह और भी दुष्कर बन जाता है। आज समाज में बढ़ते क्रेच और उनमें पलते बच्चे इसका जीता जागता उदाहरण हैं। प्राचीनकाल में यह काम संयुक्त परिवार में दादा-दादी, चाचा-चाची, ताई-बुआ इतनी सरलता से कर देती थी कि बच्चे कब बड़े हो गए पता ही नहीं चल पाता था। संयुक्त परिवार हर काल में समाज की ज़रूरत थे और रहेंगे।

भारतीय संस्कृति में संयुक्त परिवार और भी महत्त्वपूर्ण हैं। बच्चों और युवा पीढ़ी को रिश्तों का ज्ञान संयुक्त परिवार में ही हो पाता है। यही सामूहिकता की भावना, मिल-जुलकर काम करने की भावना पनपती और फलती-फूलती है। एक-दूसरे के सुख-दुख में काम आने की भावना संयुक्त परिवार में ही पनपती है। संयुक्त परिवार बुजुर्गं सदस्यों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है।

परिवार के अन्य सदस्य उनकी आवश्यकताओं का ध्यान रखते हैं जिससे उन्हें बुढ़ापा कष्टकारी नहीं लगता है। संयुक्त परिवार व्यक्ति को अकेलेपन का शिकार नहीं होने देते हैं। आपसी सुख-दुख बाँटने, हँसी-मजाक करने के साथी संयुक्त परिवार स्वतः उपलब्ध कराते हैं। इससे लोग स्वस्थ, प्रसन्न और हँसमुख रहते हैं।




ग्लोबल वार्मिंग-मनुष्यता के लिए खतरा


  • ग्लोबल वार्मिंग क्या है ?
  • ग्लोबल वार्मिंग के कारण
  • ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव
  • समस्या का समाधान।

गत एक दशक में जिस समस्या ने मनुष्य का ध्यान अपनी ओर खींचा है, वह है-ग्लोबल वार्मिंग। ग्लोबल वार्मिंग का सीधा-सा अर्थ है है-धरती के तापमान में निरंतर वृद्धि। यद्यपि यह समस्या विकसित देशों के कारण बढ़ी है परंतु इसका नुकसान सारी धरती को भुगतना पड़ रहा है। ग्लोबल वार्मिंग के कारणों के मूल हैं-मनुष्य की बढ़ती आवश्यकताएँ और उसकी स्वार्थवृत्ति। मनुष्य प्रगति की अंधाधुंध दौड़ में शामिल होकर पर्यावरण को अंधाधुंध क्षति पहुँचा रहा है। कल-कारखानों की स्थापना, नई बस्तियों को बसाने, सड़कों को चौड़ा करने के लिए वनों की अंधाधुंध कटाई की गई है।

इससे पर्यावरण को दोतरफा नुकसान हुआ है तो इन गैसों को अपनाने वाले पेड़-पौधों की कमी से आक्सीजन, वर्षा की मात्रा और हरियाली में कमी आई है। इस कारण वैश्विक तापमान बढ़ता जा रहा है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण एक ओर धरती की सुरक्षा कवच ओजोन में छेद हुआ है तो दूसरी ओर पर्यावरण असंतुलित हुआ है। असमय वर्षा, अतिवृष्टि, अनावृष्टि, सरदी-गरमी की ऋतुओं में भारी बदलाव आना ग्लोबल वार्मिंग का ही प्रभाव है।

इससे ध्रुवों पर जमी बरफ़ पिघलने का खतरा उत्पन्न हो गया है जिससे एक दिन प्राणियों के विनाश का खतरा होगा, अधिकाधिक पौधे लगाकर उनकी देख-भाल करनी चाहिए तथा प्रकृति से छेड़छाड़ बंद कर देना चाहिए। इसके अलावा जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण करना होगा। आइए इसे आज से शुरू कर देते हैं, क्योंकि कल तक तो बड़ी देर हो जाएगी।




नर हो न निराश करो मन को


  • आत्मविश्वास और सफलता
  • आशा से संघर्ष में विजय
  • कुछ भी असंभव नहीं
  • महापुरुषों की सफलता का आधार।

मानव जीवन को संग्राम की संज्ञा से विभूषित किया है। इस जीवन संग्राम में उसे कभी सुख मिलता है तो कभी दुख। सुख मन में आशा एवं प्रसन्नता का संचार करते हैं तो दुख उसे निराशा एवं शोक के सागर में डुबो देते हैं। इसी समय व्यक्ति के आत्मविश्वास की परीक्षा होती है। जो व्यक्ति इन प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अपना विश्वास नहीं खोता है और आशावादी बनकर संघर्ष करता है वही सफलता प्राप्त करता है।

आत्मविश्वास के बिना सफलता की कामना करना दिवास्वप्न देखने के समान है। मनुष्य के मन में यदि आशावादिता नहीं है और वह निराश मन से संघर्ष करता भी है तो उसकी सफलता में संदेह बना रहता है। कहा भी गया है कि मन के हारे हार है मन के जीते जीत। मन में जीत के प्रति हमेशा आशावादी बने रहना जीत का आधार बन जाता है। यदि मन में आशा संघर्ष करने की इच्छा और कर्मठता हो तो मनुष्य के लिए कुछ भी असंभव नहीं है।

वह विपरीत परिस्थितियों में भी उसी प्रकार विजय प्राप्त करता है जैसा नेपोलियन बोनापार्ट ने। इसी प्रकार निराशा, काम में हमें मन नहीं लगाने देती है और आधे-अधूरे मन से किया गया कार्य कभी सफल नहीं होता है। संसार के महापुरुषों ने आत्मविश्वास, दृढनिश्चय, संघर्षशीलता के बल पर आशावादी बनकर सफलता प्राप्त की। अब्राहम लिंकन हों या एडिसन, महात्मा गांधी हों या सरदार पटेल सभी ने प्रतिकूल परिस्थितियों में भी आशावान रहे और अपना-अपना लक्ष्य पाने में सफल रहे।

सैनिकों के मन में यदि एक पल के लिए भी निराशा का भाव आ जाए तो देश को गुलाम बनने में देर न लगेगी। मनुष्य को सफलता पाने के लिए सदैव आशावादी बने रहना चाहिए।




सबको भाए मधुर वाणी



  • मधुर वाणी सबको प्रिय
  • मधुर वाणी एक औषधि
  • मधुरवाणी का प्रभाव
  • मधुर वाणी की प्रासंगिकता।

मधुर वाणी की महत्ता प्रकट करने वाला एक दोहा है-

कोयल काको दुख हरे, कागा काको देय।
मीठे वचन सुनाए के, जग अपनो करि लेय।

यूँ तो कोयल और कौआ दोनों ही देखने में एक-से होते हैं परंतु वाणी के कारण दोनों में ज़मीन आसमान का अंतर हो जाता है। दोनों पक्षी किसी को न कुछ देते हैं और न कुछ लेते हैं परंतु कोयल मधुर वाणी से जग को अपना बना लेती है और कौआ अपनी कर्कश वाणी के कारण भगाया जाता है। कोयल की मधुर वाणी कर्ण प्रिय लगती है और उसे सब सुनने को इच्छुक रहते हैं। यही स्थिति समाज की है।

समाज में वे लोग सभी के प्रिय बन जाते हैं जो मधुर बोलते हैं जबकि कटु बोलने वालों से सभी बचकर रहना चाहते हैं। मधुर वाणी औषधि के समान होती है जो सुनने वालों के तन और मन को शीतलकर देती है। इससे लोगों को सुखानुभूति होती है। इसके विपरीत कटुवाणी उस तीखे तीर की भाँति होती है जो कानों के माध्यम से हमारे शरीर में प्रवेश करती है और पूरे शरीर को कष्ट पहुँचाती है।

कड़वी बोली जहाँ लोगों को ज़ख्म देती है वहीं मधुर वाणी वर्षों से हुए मन के घाव को भर देती है। मधुर वाणी किसी वरदान के समान होती है जो सुनने वाले को मित्र बना देती है। मधुर वाणी सुनकर शत्रु भी अपनी शत्रुता खो बैठते हैं। इसके अलावा जो मधुर वाणी बोलते हैं उन्हें खुद को संतुष्टि और सुख की अनुभूति होती है। इससे व्यक्ति का व्यक्तित्व प्रभावी एवं आकर्षक बन जाता है। इससे व्यक्ति के बिगड़े काम तक बन जाते हैं।

कोई भी काल रहा हो मधुर वाणी का अपना विशेष महत्त्व रहा है। इस भागमभाग की जिंदगी में जब व्यक्ति कार्य के बोझ, दिखावा और भौतिक सुखों को एकत्रकर पाने की होड़ में तनावग्रस्त होता जा रहा है तब मधुर वाणी का महत्त्व और भी बढ़ जाता है। हमें सदैव मधुर वाणी का प्रयोग करना चाहिए।




बच्चों की शिक्षा में माता-पिता की भूमिका



  • शिक्षा और माता-पिता
  • शिक्षा की महत्ता
  • उत्तरदायित्व
  • शिक्षाविहीन नर पशु समान।

संस्कृत में एक श्लोक है-

माता शत्रु पिता वैरी, येन न बालो पाठिता।
न शोभते सभा मध्ये हंस मध्ये वको यथा।।


अर्थात वे माता-पिता बच्चे के लिए शत्र के समान होते हैं जो अपने बच्चों को शिक्षा नहीं देते। ये बच्चे शिक्षितों की सभा में उसी तरह होते हैं जैसे हंसों के बीच बगुला। एक बच्चे के लिए परिवार प्रथम पाठशाला होती है और माता-पिता उसके प्रथम शिक्षक। माता-पिता यहाँ अभी अपनी भूमिका का उचित निर्वाह तो करते हैं पर जब बच्चा विद्यालय जाने लायक होता है तब कुछ माता पिता उनके शिक्षा-दीक्षा पर ध्यान नहीं देते हैं और अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजते हैं। ऐसे में बालक जीवन भर के लिए निरक्षर की विशेष महत्ता एवं उपयोगिता है।

शिक्षा के बिना जीवन अंधकारमय हो जाता है। कभी वह साहकारों के चंगल में फँसता है तो कभी लोभी दकानदारों के। उसके लिए काला अक्षर भैंस बराबर होता है। वह समाचार पत्र. पत्रिकाओं, पुस्तकों आदि का लाभ नहीं उठा पाता है। उसे कदम-कदम पर कठिनाइयों का सामना करना पडता है ऐसे में माता-पिता का उत्तरदायित्व है कि वे अपने बच्चों के पालन-पोषण के साथ ही उनकी शिक्षा की भली प्रकार व्यवस्था करें। कहा गया है कि विद्याविहीन नर की स्थिति पशुओं जैसी होती है, बस वह घास नहीं खाता है। शिक्षा से ही मानव सभ्य इनसान बनता है। हमें भूलकर भी शिक्षा से मुंह नहीं मोड़ना चाहिए।


जीवन में सरसता लाते त्योहार


  • त्योहारों का देश भारत
  • नीरसता भगाते त्योहार
  • त्योहारों के लाभ
  • त्योहारों पर महँगाई का असर।

भारतवासी त्योहार प्रिय होते हैं। यहाँ त्योहार ऋतुओं और भारतीय महीनों के आधार पर मनाए जाते हैं। साल के बारह महीनों में शायद ही कोई ऐसा महीना हो जब त्योहार न मनाया जाता हो। चैत महीने में राम नवमी मनाने से त्योहारों का जो सिलसिला शुरू होता है, वह बैसाखी, गंगा दशहरा मनाने के क्रम में नाग पंचमी, तीज, रक्षाबंधन, कृष्ण जन्माष्टमी, दशहरा, दीपावली, क्रिसमस, लोहिड़ी से आगे बढ़कर वसंत पंचमी तथा होली पर ही आकर रुकती है। इसी बीच पोंगल, ईद जैसे त्योहार भी अपने स हैं।

त्योहार थके हारे मनुष्य के मन में उत्साह का संचार करते हैं और खुशी एवं उल्लास से भर देते हैं। वे लोगों को बँधी-बँधाई जिंदगी को अलग ही ढर्रे पर ले जाते हैं। इससे जीवन की ऊब एवं नीरसता गायब हो जाती है। त्योहार मनुष्य को मेल-मिलाप का अवसर देते हैं। इससे लोगों के बीच की कटुता दूर होती है। त्योहार लोगों में सहयोग और मिल-जुलकर कर रहने की प्रेरणा देते हैं। एकता बढ़ाने में त्योहारों का विशेष महत्त्व है।

वर्तमान समय में त्योहार अपना स्वरूप खोते जा रहे हैं। इनको महँगाई ने बुरी तरह से प्रभावित किया है। इसके अलावा त्योहारों पर बाज़ार का असर पड़ा है। अब प्रायः बाज़ार में बिकने वाले सामानों की मदद से त्योहारों को जैसे-तैसे मना लिया जाता है। इसका कारण लोगों की व्यस्तता और समय की कमी है। त्योहार हमारी संस्कृति के अंग हैं। हमें त्योहारों को मिल-जुलकर हर्षोल्लास से मनाना चाहिए।



जीना मुश्किल करती महँगाई
अथवा
दिनोंदिन बढ़ती महँगाई


  • महँगाई और आम आदमी पर प्रभाव
  • कारण
  • महँगाई रोकने के उपाय
  • सरकार के कर्तव्य।

महँगाई उस समस्या का नाम है, जो कभी थमने का नाम नहीं लेती है। मध्यम और निम्न मध्यम वर्ग के साथ ही गरीब वर्ग को जिस समस्या ने सबसे ज्यादा त्रस्त किया है वह महँगाई ही है। समय बीतने के साथ ही वस्तुओं का मूल्य निरंतर बढ़ते जाना महँगाई कहलाता है। इसके कारण वस्तुएँ आम आदमी की क्रयशक्ति से बाहर होती जाती हैं और ऐसा व्यक्ति अपनी मूलभूत आवश्यकताएँ तक पूरा नहीं कर पाता है।

ऐसी स्थिति में कई बार व्यक्ति को भूखे पेट सोना पड़ता है।महँगाई के कारणों को ध्यान से देखने पर पता चलता है कि इसे बढ़ाने में मानवीय और प्राकृतिक दोनों ही कारण जिम्मेदार हैं। मानवीय कारणों में लोगों की स्वार्थवृत्ति, लालच अधिकाधिक लाभ कमाने की प्रवृत्ति, जमाखोरी और असंतोष की भावना है। इसके अलावा त्याग जैसे मानवीय मूल्यों की कमी भी इसे बढ़ाने में आग में घी का काम करती है।

सूखा, बाढ़ असमय वर्षा, आँधी, तूफ़ान, ओलावृष्टि के कारण जब फ़सलें खराब होती हैं तो उसका असर उत्पादन पर पड़ता है। इससे एक अनार सौ बीमार वाली स्थिति पैदा होती है और महँगाई बढ़ती है।महँगाई रोकने के लिए लोगों में मानवीय मूल्यों का उदय होना आवश्यक है ताकि वे अपनी आवश्यकतानुसार ही वस्तुएँ खरीदें। इसे रोकने के लिए जनसंख्या वृद्धि पर लगाम लगाना आवश्यक है।

महँगाई रोकने के लिए सरकारी प्रयास भी अत्यावश्यक है। सरकार को चाहिए कि वह आयात-निर्यात नीति की समीक्षा करे तथा जमाखोरों पर कड़ी कार्यवाही करें और आवश्यक वस्तुओं का वितरण रियायती मूल्य पर सरकारी दुकानों के माध्यम से करें।




समाचार-पत्र एक : लाभ अनेक
अथवा
समाचार-पत्र : ज्ञान और मनोरंजन का साधन



  • जिज्ञासा पूर्ति का सस्ता एवं सुलभ साधन
  • रोज़गार का साधन
  • समाचार पत्रों के प्रकार
  • जानकारी के साधन ।

मनुष्य सामाजिक प्राणी है। वह अपने समाज और आसपास के अलावा देश-दुनिया की जानकारी के लिए जिज्ञासु रहता है। उसकी इस जिज्ञासा की पूर्ति का सर्वोत्तम साधन है-समाचार-पत्र, जिसमें देश-विदेश तक के समाचार आवश्यक चित्रों के साथ छपे होते हैं। सुबह हुई नहीं कि शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में समाचार पत्र विक्रेता घर-घर तक इनको पहुँचाने में जुट जाते हैं। कुछ लोग तो सोए होते हैं और समाचार-पत्र दरवाजे पर आ चुका होता है।

अब समाचार पत्र अत्यंत सस्ता और सर्वसुलभ बन गया है। समाचार पत्रों के कारण लाखों लोगों को रोजगार मिला है। इनकी छपाई, ढुलाई, लादने-उतारने में लाखों लगे रहते हैं तो एजेंट, हॉकर और दुकानदार भी इनसे अपनी जीविका चला रहे हैं। इतना ही नहीं पुराने समाचार पत्रों से लिफ़ाफ़े बनाकर एक वर्ग अपनी आजीविका चलाता है। छपने की अवधि पर समाचार पत्र कई प्रकार के होते हैं।

प्रतिदिन छपने वाले समाचार पत्रों को दैनिक, सप्ताह में एक बार छपने वाले समाचार पत्रों को साप्ताहिक, पंद्रह दिन में छपने वाले समाचार पत्र को पाक्षिक तथा माह में एक बार छपने वाले को मासिक समाचार पत्र कहते हैं। अब तो कुछ शहरों में शाम को भी समाचार पत्र छापे जाने लगे हैं। समाचार पत्र हमें देश-दुनिया के समाचारों, खेल की जानकारी मौसम तथा बाज़ार संबंधी जानकारियों के अलावा इसमें छपे विज्ञापन भी भाँति-भाँति की जानकारी देते हैं।




सबसे प्यारा देश हमारा
अथवा
विश्व की शान-भारत


  • भौगोलिक स्थिति
  • प्राकृतिक सौंदर्य
  • विविधता में एकता की भावना
  • अत्यंत प्राचीन संस्कृति।

सौभाग्य से दुनिया के जिस भू-भाग पर मुझे जन्म लेने का अवसर मिला दुनिया उसे भारत के नाम से जानती है। हमारा देश एशिया महाद्वीप के दक्षिणी छोर पर स्थित है। यह देश तीन ओर समुद्र से घिरा है। इसके उत्तर में पर्वतराज हिमालय हैं, जिसके चरण सागर पखारता है। इसके पश्चिम में अरब सागर और पूर्व में बंगाल की खाड़ी है। चीन, भूटान, नेपाल, पाकिस्तान, श्रीलंका आदि इसके पड़ोसी देश हैं।

हमारे देश का प्राकृतिक सौंदर्य अनुपम है। हिमालय की बरफ़ से ढंकी सफ़ेद चोटियाँ भारत के सिर पर रखे मुकुट में जड़े हीरे-सी प्रतीत होती हैं।यहाँ बहने वाली गंगा-यमुना, घाघरा, ब्रह्मपुत्र आदि नदियाँ इसके सीने पर धवल हार जैसी लगती हैं। चारों ओर लहराती हरी-भरी फ़सलें और वृक्ष इसका परिधान प्रतीत होते हैं। यहाँ के जंगलों में हरियाली का साम्राज्य है। भारत में नाना प्रकार की विविधता दृष्टिगोचर होती है।

यहाँ विभिन्न जाति-धर्म के अनेक भाषा-भाषी रहते है। यहाँ के परिधान, त्योहार मनाने अनुच्छेद लेखन के ढंग और खान-पान व रहन-सहन में खूब विविधता मिलती है।यहाँ की जलवायु में भी विविधता का बोलबाला है, फिर भी इस विविधता के मूल में एकता छिपी है। देश पर कोई संकट आते ही सभी भारतीय एकजुट हो जाते हैं। हमारे देश की संस्कृति अत्यंत प्राचीन और समृद्धिशाली है।

परस्पर एकता, प्रेम, सहयोग और सहभाव से रहना भारतीयों की विशेषता रही है। ‘अतिथि देवो भवः’ और ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना भारतीय संस्कृति का आधार है। हमारा देश भारत विश्व की शान है जो अपनी अलग पहचान रखता है। हमें अपने देश पर गर्व है।




सुरक्षा का आवरण : ओजोन
अथवा
पृथ्वी का रक्षक : अदृश्य ओजोन


  • ओजोन परत क्या है?
  • मनुष्य की प्रगति और ओजोन परत
  • ओजोन नष्ट होने का कारण
  • ओजोन बचाएँ जीवन बचाएँ।

मनुष्य और प्रकृति का अनादिकाल से रिश्ता है। प्रकृति ने मनुष्य की सुरक्षा के लिए अनेक साधन प्रदान किए हैं। इनमें से एक है-ओजोन की परत। पृथ्वी पर जीवन के लिए जो भी अनुकूल परिस्थितियाँ हैं, उन्हें बनाए और बचाएँ रखने में ओजोन अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। पृथ्वी पर चारों ओर वायुमंडल का उसी तरह रक्षा करता है जिस तरह बरसात से हमें छाते बचाते हैं। इसे पृथ्वी का रक्षा कवच भी कहा जाता है।

मनुष्य ज्यों-ज्यों सभ्य होता गया त्यों-त्यों उसकी आवश्यकताएँ बढ़ती गईं। बढ़ती जनसंख्या की भोजन और आवास संबंधी आवश्यकता के लिए उसने वनों की अंधाधुंध कटाई की जिससे धरती पर कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा बढ़ी। कुछ और विषाक्त गैसों से मिलकर कार्बन डाईऑक्साइड ने इस परत में छेद कर दिया जिससे सूर्य की पराबैगनी किरणें धरती पर आने लगीं और त्वचा के कैंसर के साथ अन्य बीमारियों का खतरा बढ़ गया।

इन पराबैगनी किरणों को धरती पर आने से ओजोन की परत रोकती है। ओजोन की परत नष्ट करने में विभिन्न प्रशीतक यंत्रों में प्रयोग की जाने वाली क्लोरो प्लोरो कार्बन का भी हाथ है। यदि पृथ्वी पर जीवन बनाए रखना है तो हमें ओजोन परत को बचाना होगा। इसके लिए धरती पर अधिकाधिक पेड़ लगाना होगा तथा कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन कम करना होगा।




भ्रष्टाचार का दानव
अथवा
भ्रष्टाचार से देश को मुक्त बनाएँ


  • भ्रष्टाचार क्या है?
  • देश के लिए घातक
  • भ्रष्टाचार का दुष्प्रभाव
  • लोगों की भूमिका।

भ्रष्टाचार दो शब्दों ‘भ्रष्ट’ और ‘आचार’ के मेल से बना है, जिसका अर्थ है-नैतिक एवं मर्यादापूर्ण आचारण से हटकर आचरण करना। इस तरह का आचरण जब सत्ता में बैठे लोगों या कार्यालयों के अधिकारियों द्वारा किया जाता है तब जन साधारण के लिए समस्या उत्पन्न हो जाती है। पक्षपात करना, भाई-भतीजावाद को प्रश्रय देना, रिश्वत माँगना, समय पर काम न करना, काम करने के बदले अनुचित माँग रख देना, भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते हैं।

भ्रष्टाचार समाज और देश के लिए घातक है। दुर्भाग्य से आज हमारे समाज में इसकी जड़ें इतनी गहराई से जम चुकी हैं कि इसे उखाड़ फेंकना आसान नहीं रह गया है। भ्रष्टाचार के कारण देश की मान मर्यादा कलंकित होती है। इसे किसी देश के लिए अच्छा नहीं माना जाता है। भ्रष्टाचार के कारण ही आज रिश्वतखोरी, मुनाफाखोरी, चोरबाज़ारी, मिलावट, भाई-भतीजावाद, कमीशनखोरी आदि अपने चरम पर हैं।

इससे समाज में विषमता बढ़ रही है। लोगों में आक्रोश बढ़ रहा है और विकास का मार्ग अवरुद्ध होता जा रहा है। इसके कारण सरकारी व्यवस्था एवं प्रशासन पंगु बन कर रह गए हैं। भ्रष्टाचार मिटाने के लिए लोगों में मानवीय मूल्यों को प्रगाढ़ करना चाहिए। इसके लिए नैतिक शिक्षा की विशेष आवश्यकता है। लोगों को अपने आप में त्याग एवं संतोष की भावना मज़बूत करनी होगी। यद्यपि सरकारी प्रयास भी इसे रोकने में कारगर सिद्ध होते हैं पर लोगों द्वारा अपनी आदतों में सुधार और लालच पर नियंत्रण करने से यह समस्या स्वतः कम हो जाएगी।



भारतीय नारी की दोहरी भूमिका
अथवा
कामकाजी स्त्रियों की चुनौतियाँ



  • प्राचीनकाल में नारी की स्थिति
  • वर्तमान में नौकरी की आवश्यकता
  • दोहरी भूमिका और चुनौतियाँ
  • सुरक्षा और सोच में बदलाव की आवश्यकता।

परिवर्तन प्रकृति का नियम है। यह परिवर्तन समय के साथ स्वतः होता रहता है। मनुष्य भी इस बदलाव से अछूता नहीं है। प्राचीन काल में मनुष्य ने न इतना विकास किया था और न वह इतना सभ्य हो पाया था। तब उसकी आवश्यकताएँ सीमित थीं। ऐसे में पुरुष की कमाई से घर चल जाता था और नारी की भूमिका घर तक सीमित थी। उसे बाहर जाकर काम करने की आवश्यकता न थी।

वर्तमान समय में मनुष्य की आवश्यकता इतनी बढ़ी हुई है कि इसे पूरा करने के लिए पुरुष की कमाई अपर्याप्त सिद्ध हो रही है और नारी को नौकरी के लिए घर से बाहर कदम बढ़ाना पड़ा।आज की नारी पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लगभग हर क्षेत्र में काम करती दिखाई देती हैं। आज की नारी दोहरी भूमिका का निर्वाह कर रही है।

घर में उसे खाना पकाने, घर की सफ़ाई, बच्चों की देखभाल और उनकी शिक्षा का दायित्व है तो वह कार्यालयों के अलावा खेल, राजनीति साहित्य और कला आदि क्षेत्रों में उतनी ही कुशलता और तत्परता से कार्य कर रही है। वह दोनों जगह की ज़िम्मेदारियों की चुनौतियों को सहर्ष स्वीकारती हुई आगे बढ़ रही है और दोहरी भूमिका का निर्वहन कर रही है।

वर्तमान में नारी द्वारा घर से बाहर आकर काम करने पर सुरक्षा की आवश्यकता महसूस होने लगी है। कुछ लोगों की सोच ऐसी बन गई है कि वे ऐसी स्त्रियों को संदेह की दृष्टि से देखते हैं। ऐसी स्त्रियों को प्रायः कार्यालय में पुरुष सहकर्मियों तथा आते-जाते कुछ लोगों की कुदृष्टि का सामना करना पड़ता है। इसके लिए समाज को अपनी सोच में बदलाव लाने की आवश्यकता है।




बढ़ती जनसंख्या : प्रगति में बाधक
अथवा
समस्याओं की जड़ : बढ़ती जनसंख्या



  • जनसंख्या वृद्धि बनी समस्या
  • संसाधनों पर असर
  • वृद्धि के कारण
  • जनसंख्या रोकने के उपाय।

किसी राष्ट्र की प्रगति के लिए जनसंख्या एक महत्त्वपूर्ण संसाधन होती है, पर जब यह एक सीमा से अधिक हो जाती है तब यह समस्या का रूप ले लेती है। जनसंख्या वृद्धि एक ओर स्वयं समस्या है तो दूसरी ओर यह अनेक समस्याओं की जननी भी है। यह परिवार, समाज और राष्ट्र की प्रगति पर बुरा असर डालती है।

जनसंख्या वृद्धि के साथ देश के विकास की स्थिति ‘ढाक के तीन पात वाली’ बनकर रह जाती है। प्रकृति ने लोगों के लिए भूमि वन आदि जो संसाधन प्रदान किए हैं, जनाधिक्य के कारण वे कम पड़ने लगते हैं तब मनुष्य प्रकृति के साथ खिलवाड़ शुरू कर देता है। वह अपनी बढ़ी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वनों का विनाश करता है।

इससे प्राकृतिक असंतुलन का खतरा पैदा होता है जिससे नाना प्रकार की समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। जनसंख्या वृद्धि के लिए हम भारतीयों की सोच काफ़ी हद तक जिम्मेदार है। यहाँ की पुरुष प्रधान सोच के कारण घर में पुत्र जन्म आवश्यक माना जाता है। भले ही एक पुत्र की चाहत में छह, सात लड़कियाँ क्यों न पैदा हो जाएँ पर पुत्र के बिना न तो लोग अपना जन्म सार्थक मानते हैं और न उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होती दिखती है।

इसके अलावा अशिक्षा. गरीबी और मनोरंजन के साधनों का अभाव भी जनसंख्या वृद्धि में योगदान देता है। जनसंख्या वृद्धि रोकने के लिए लोगों का इसके दुष्परिणामों से अवगत कराकर जन जागरूकता फैलाई जानी चाहिए। सरकार द्वारा परिवार नियोजन के साधनों का मुफ़्त वितरण किया जाना चाहिए तथा ‘जनसंख्या वृद्धि’ को पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहिए।




मोबाइल फ़ोन : सुखद व दुखद भी
अथवा
विज्ञान की अद्भुत खोज : मोबाइल फ़ोन



  • विज्ञान की अद्भुत खोज
  • फ़ोनों की बदलती दुनिया में
  • संचार क्षेत्र में क्रांति
  • सस्ता और सुलभ साधन
  • लाभ और हानियाँ।

विज्ञान ने मानव जीवन को विविध रूपों में प्रभावित किया है। शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र हो जहाँ विज्ञान ने हस्तक्षेप न किया हो। समय-समय पर हुए आश्चर्यजनक आविष्कारों ने मानव जीवन को बदलकर रख दिया है। विज्ञान की इन्हीं अद्भुत खोजों में एक है मोबाइल फ़ोन जिससे मनुष्य इतना प्रभावित हुआ कि आप हर किशोर ही नहीं हर आयु वर्ग के लोग इसका प्रयोग करते देखे जा सकते हैं।

वास्तव में मोबाइल फ़ोन इतना उपयोगी और सुविधापूर्ण साधन है कि हर व्यक्ति इसे अपने पास रखना चाहता है और इसका विभिन्न रूपों में प्रयोग भी कर रहा है। संचार की दुनिया में फ़ोन का आविष्कार एक क्रांति थी। तारों के माध्यम से जुड़े फ़ोन पर अपने प्रियजनों से बातें करना एक रोमांचक अनभव था। शरू में फ़ोन महँगे और कई उपकर लाना-ले-जाना संभव न था।

हमें बातें करने के लिए इनके पास जाना पड़ता था पर मोबाइल फ़ोन जेब में रखकर कहीं भी लाया-ले जाया जा सकता है। अब यह सर्वसुलभ भी बन गया है। वास्तव में मोबाइल फ़ोन का आविष्कार संचार के क्षेत्र में क्रांति से कम नहीं है। आज मोबाइल फ़ोन पर बातें करने के अलावा फ़ोटो खींचना, गणनाएँ करना, फाइलें सुरक्षित रखना जैसे बहुत से काम किए जा रहे हैं क्योंकि यह जेब का कंप्यूटर बन गया है।

कुछ लोग इसका दुरुपयोग करने से नहीं चूकते हैं। असमय फ़ोन करके दूसरों को परेशान करना, अवांछित फ़ोटो खींचना जैसे कार्य करके इसका दुरुपयोग करते हैं। इसके कारण छात्रों की पढ़ाई पर बुरा असर पड़ा है। इसका आवश्यकतानुरूप ही प्रयोग करना चाहिए।




सादा जीवन उच्च विचार
अथवा
मर्यादित जीवन का आधार : सादा जीवन उच्च विचार


  • भारतीय संस्कृति और सादा जीवन उच्च विचार
  • महत्ता
  • महापुरुषों ने अपना सादा जीवन उच्च विचार
  • वर्तमान स्थिति।

भारतीय संस्कृति को समृद्धशाली और लोकप्रिय बनाने में जिन तत्त्वों का योगदान है उनमें एक है-सादा जीवन उच्च विचार। सादा जीवन उच्च विचार रहन-सहन की एक शैली है जिससे भारतीय ही नहीं विदेशी तक प्रभावित हुए हैं। प्राचीनकाल में हमारे देश के ऋषि मुनि भी इसी जीवन शैली को अपनाते थे। भारतीयों को प्राचीनकाल से ही सरल और सादगीपूर्ण जीवन पसंद रहा है।

इनके आचरण में त्याग, दया, सहानुभूति, करुणा, स्नेह उदारता, परोपकार की भावना आदि गुण विद्यमान हैं। मनुष्य के सादगीपूर्ण जीवन के लिए इन गुणों की प्रगाढ़ता आवश्यक है। भारतीयों का जीवन किसी तप से कम नहीं रहा है क्योंकि उनके विचारों में महानता और जीवन में सादगी रही है। प्राचीनकाल से ही यह नियम बना दिया गया था कि जीवन के आरंभिक 25 वर्ष को ब्रहमचर्य जीवन के रूप में बिताया जाय।

इस काल में बालक गुरुकुलों में रहकर सादगी और नियम का पाठ सीख जाता था। इनका जीवन ऐशो-आराम और विलासिता से कोसों दूर हुआ करता था। यही बाद में भारतीयों के जीवन का आधार बन जाता था। महात्मा गांधी, सरदार पटेल आदि का जीवन सादगी का दूसरा नाम था। वे एक धोती में जिस सादगी से रहते थे वह दूसरों के लिए आदर्श बन गया। वे दूसरों के लिए अनुकरणीय बन गए।

अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन भी सादगीपूर्ण जीवन बिताते थे। दुर्भाग्य से आज लोगों की सोच में बदलाव आ गया है। अब सादा जीवन जीने वालों को गरीबी और पिछड़ेपन का प्रतीक माना जाने लगा है। अब लोगों की पहचान उनके कपड़ों । लोग उपभोग को ही सुख मान बैठे हैं। सुख एकत्र करने की चाहत में अब जीवन तनावपूर्ण बनता जा रहा है।




सांप्रदायिकता का फैलता जहर
अथवा
मानवता के लिए घातक : सांप्रदायिकता का जहर



  • सांप्रदायिकता-अर्थ एवं कारण
  • सांप्रदायिकता का जहर
  • सांप्रदायिकता की रोकथाम
  • हमारी भूमिका।

धर्म के बिगड़े एवं कट्टर रूप को सांप्रदायिकता की संज्ञा दी जा सकती है। ‘धारयति इति धर्मः’ अर्थात् जिसे धारण किया जाए वही धर्म है। मनुष्य अपने आचरण और जीवन को मर्यादित रखने के लिए धर्म का सहारा लिया करता था। बाद में धर्म ने एक जीवन पद्धति का रूप ले लिया। धर्म का यह रूप मनुष्य और समाज के लिए कल्याणकारी माना जाता था।

धीरे-धीरे लोगों की सोच में बदलाव आया और धर्म का उपयोग अपने स्वार्थ के लिए करना शुरू कर दिया। यहीं से धर्म में विकृति आई। लोगों में अपने धर्म के प्रति कट्टरता आने लगी और सांप्रदायिकता अपना रंग दिखाने लगी। सांप्रदायिकता के वशीभूत होकर मनुष्य वाणी और कर्म से दूसरे धर्मावलंबियों की भावनाएँ भड़काता है जो व्यक्ति समाज और राष्ट्र सभी के लिए हानिकारक होती है।

दुर्भाग्य से यह कार्य आज समाज के तथा कथित ठेकेदार और समाज सुधारक कहलाने वाले नेता खुले आम कर रहे हैं जिससे लोगों का आपसी विश्वास घट रहा है। इसके अलावा धार्मिक सद्भाव, सहिष्णुता, भाई-चारा, आपसी सौहार्द्र नष्ट हो रहा है तथा घृणा की भावना प्रगाढ़ हो रही है। सांप्रदायिकता की रोक थाम के लिए धार्मिक भावनाओं को भड़काना बंद किया जाना चाहिए।

ऐसा करने वालों को कठोर दंड देना चाहिए। हमारे नेताओं को चाहिए कि वे वोट की राजनीति बंद करें और लोगों को जाति-धर्म के आधार पर न बाँटें। इस स्थिति में हमारा कर्तव्य यह होना चाहिए कि हम किसी के बहकावे में न आएँ और सद्भाव बनाए रखते हुए दूसरों की भावनाएँ और उनके धर्मों का भी आदर करें।




सुविधाओं का भंडार : कंप्यूटर
अथवा
कंप्यूटर : आज की आवश्यकता



  • विज्ञान की अद्भुत खोज
  • बढ़ता प्रयोग
  • ज्ञान एवं मनोरंजन का भंडार
  • अधिक प्रयोग हानिकारक।

विज्ञान ने मनुष्य को जो अद्भुत उपकरण प्रदान किए हैं उनमें प्रमुख है-कंप्यूटर। कंप्यूटर ऐसा चमत्कारी उपकरण है जो हमारी कल्पना को साकार रूप दे रहा है। जिन बातों की कल्पना कभी मनुष्य किया करता था, उन्हें कंप्यूटर पूरा कर रहा है। यह बहूपयोगी उपकरण है जिससे मनुष्य की अनेकानेक समस्याएँ हल हुई हैं। कंप्यूटर में लगा उच्च तकनीकि वाला मस्तिष्क मनुष्य की सोच से भी अधिक तेजी से कार्य करता है जिससे मनुष्य का समय और भ्रम दोनों ही बचने लगा है।

आज कंप्यूटर का प्रयोग हर छोटे-बड़े सरकारी और गैर सरकारी कार्यालयों में किया जाने लगा है। इसका प्रयोग इतनी जगह पर किया जा रहा है कि इसे शब्दों में बाँधना कठिन है। पुस्तक प्रकाशन, बैंकों में खाते का रख-रखाव, फाइलों की सुरक्षा, रेल और वायुयान के टिकटों का आरक्षण, रोगियों के आपरेशन, बीमारियों की खोज, विभिन्न परियोजनाओं के निर्माण आदि में इसका प्रयोग अत्यावश्यक हो गया है।

अब तो छात्र अपनी पढ़ाई और लोग अपने व्यक्तिगत प्रयोग के लिए इसका प्रयोग आवश्यक मानने लगे हैं। कंप्यूटर पर अब पीडीएफ (PDF) फ़ॉर्म में पुस्तकें अपलोड कर दी जाती हैं। अब छात्रों को बस एक बटन दबाने की ज़रूरत है। ज्ञान का संसार कंप्यूटर की स्क्रीन पर प्रकट हो जाता है। अब उन्हें न भारी भरकम बस्ता उठाने की ज़रूरत है और न मोटी-मोटी पुस्तकें।

इसके अलावा कंप्यूटर पर गीत सुनने, फ़िल्में देखने और गेम खेलने की सुविधा भी उपलब्ध रहती है। कंप्यूटर का अत्यधिक प्रयोग हमें आलसी और मोटापे का शिकार बनाता है। इंटरनेट के जुड़ जाने से कुछ लोग इसका दुरुपयोग करते हैं। कंप्यूटर का अधिक प्रयोग हमारी आँखों के लिए हानिकारक है। हमें कंप्यूटर का प्रयोग सोच समझकर करना चाहिए।




मनोरंजन के साधनों की बढ़ती दुनिया
अथवा
मनोरंजन का बदलता स्वरूप



  • मनोरंजन की आवश्यकता
  • मनोरंजन के प्राचीन साधन
  • मनोरंजन के साधनों में बदलाव
  • आधुनिक साधनों के लाभ-हानियाँ।

मनुष्य श्रमशील प्राणी है। वह आदिकाल से श्रम करता रहा है। इस श्रम के उपरांत थकान उत्पन्न होना स्वाभाविक है। पहले वह भोजन की तलाश एवं जंगली जानवरों से बचने के लिए श्रम करता था। बाद में उसकी आवश्यकता बढ़ीं अब वह मानसिक और शारीरिक श्रम करने लगा। श्रम की थकान उतारने एवं ऊर्जा प्राप्त करने के लिए मनोरंजन की आवश्यकता महसूस हुई।

इसके लिए उसने विभिन्न साधन अपनाए। प्राचीन काल में मनुष्य पशु-पक्षियों के माध्यम से अपना मनोरंजन करता था। वह पक्षी और जानवर पालता था। उनकी बोलियों और उनकी लड़ाई से वह मनोरंजन करता था। इसके अलावा शिकार करना भी उसके मनोरंजन का साधन था। इसके बाद ज्यों-ज्यों समय में बदलाव आया, उसके मनोरंजन के साधन भी बढ़ते गए।

मध्यकाल तक मनुष्य ने नृत्य और गीत का सहारा लेना शुरू किया। नाटक, गायन, वादन, नौटंकी, प्रहसन काव्य पाठ आदि के माध्यम से वह आनंदित होने लगा। खेल तो हर काल में मनोरंजन का साधन रहे हैं। आज मनोरंजन के साधनों में भरपूर वृद्धि हुई है। अब तो मोबाइल फ़ोन पर गाने सुनना, फ़िल्म देखना, सिनेमा जाना, देशाटन करना, कंप्यूटर का उपयोग करना, चित्रकारी करना, सरकस देखना, पर्यटन स्थलों का भ्रमण करना उसके मनोरंजन में शामिल हो गया है।

मनोरंजन के आधुनिक साधन घर बैठे बिठाए व्यक्ति का मनोरंजन तो करते हैं पर व्यक्ति में मोटापा, रक्तचाप की समस्या, आलस्य, एकांतप्रियता और समाज से अलग-थलग रहने की प्रवृत्ति उत्पन्न कर रहे हैं।




दहेज का दानव
अथवा
दहेज प्रथा : एक सामाजिक समस्या



  • दहेज क्या है?
  • दहेज का बदलता स्वरूप
  • दहेज प्रथा कितनी घातक
  • दहेज प्रथा की रोकथाम।

भारतीय संस्कृति के मूल में छिपी है-कल्याण की भावना। इसी भावना के वशीभूत होकर प्राचीनकाल में कन्या का पिता अपनी बेटी की सुख-सुविधा हेतु कुछ वस्त्र-आभूषण और धन उसकी विदाई के समय स्वेच्छा से दिया करता था। कालांतर में यही रीति विकृत हो गई। इसी विकृति को दहेज नाम दिया गया। धीरे-धीरे लोगों ने इसे अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा से जोड़ लिया।

सभ्यता और भौतिकवाद के कारण लोगों में धन लोलुपता बढ़ी है जिसने इस प्रथा को विकृत करने में वही काम किया जो आग में घी करता है। वर पक्ष के लोग कन्या पक्ष से खुलकर दहेज माँगने लगे और समाज की नज़र बचाकर बलपूर्वक दहेज लेने लगे जिससे इस प्रथा ने दानवी रूप ले लिया। आज स्थिति यह है कि समाज में लड़कियों को बोझ समझा जाने लगा है।

लोग घर में कन्या का जन्म किसी अपशकुन से कम नहीं समझते हैं। इससे समाज की सोच में विकृति आई है। दहेज प्रथा हमारे समाज के लिए अत्यंत घातक है। इस प्रथा के कारण ही जन्मी-अजन्मी लड़कियों को मारने का चलन शुरू हो गया। आज का समय तो जन्मपूर्व ही कन्या भ्रूण की हत्या करा देता है। इसमें असफल रहने के बाद वह जन्म के बाद कन्याओं के पालन-पोषण में दोहरा मापदंड अपनाता है।

वह लड़कियों की शिक्षा-दीक्षा, खान-पान और अन्य सुविधाओं के साथ ही उनके साथ व्यवहार में हीनता दिखाता है। दहेज प्रथा के कारण ही असमय नव विवाहिताओं को अपनी जान गवानी पड़ती है। मनुष्यता के लिए इससे ज़्यादा कलंक की बात क्या होगी कि अनेक लड़कियाँ बिन ब्याही रह जाती हैं या उन्हें बेमेल विवाह के लिए बाध्य होना पड़ता है।

दहेज प्रथा रोकने के लिए केवल सरकारी प्रयास ही काफ़ी नहीं हैं। इसके लिए युवा वर्ग को आगे आना होगा और दहेज रहित-विवाह प्रथा की शुरूआत करके समाज के सामने अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करना होगा।




त्योहारों का बदलता स्वरूप
अथवा
त्योहारों पर हावी भौतिकवाद



  • मानव जीवन और त्योहार
  • भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग
  • त्योहार में आते बदलाव
  • हमारा दायित्व,
  • वर्तमान स्वरूप।

मनुष्य और त्योहारों का अटूट संबंध है। मनुष्य अपने थके हारे मन को उत्साहित एवं आनंदित करने के साथ ही ऊर्जान्वित करने के लिए त्योहार मनाने का कोई न कोई बहाना खोज ही लेता है। कभी महीना बदलने पर, कभी नई ऋतु आने पर और कभी फ़सल पकने की आड़ में मनुष्य प्राचीन समय से त्योहार मनाता आया है।

ये त्योहार, मानव के सुख-दुख, हँसी-खुशी, उल्लास आदि व्यक्त करने का साधन भी होते हैं। त्योहार हमारे संस्कृति के अभिन्न अंग बन गए हैं। इनके माध्यम से हमारी संस्कृति की झलक मिलती है। त्योहारों के अवसर पर प्रयुक्त परिधान, रहन-सहन का ढंग, नृत्य-गायन की कलात्मकता आदि में संस्कृति के दर्शन होते हैं। ये त्योहार हमारी एकता को मजबूत बनाते हैं। वर्तमान में भौतिकवाद के कारण बदलाव आया है।

लोगों की भागम भरी जिंदगी की व्यस्तता और काम से बचने की प्रवृत्ति के कारण अब त्योहार उस हँसी-खुशी उल्लास से नहीं मनाए जाते हैं, जैसे पहले मनाए जाते थे। आज लोगों के मन में धर्म-जाति भाषा क्षेत्रीयता और संप्रदाय की कट्टरता के कारण दूरियाँ बढ़ी हैं। अब तो त्योहारों के अवसर पर दंगे भड़कने का भय स्पष्ट रूप से लोगों को आतंकित किए रहता है।

इस कारण लोग इन त्योहारों को जैसे-तैसे मनाकर इतिश्री कर लेते हैं। त्योहारों को हँसी-खुशी मनाने के लिए धार्मिक कट्टरता त्यागनी चाहिए तथा प्रकृति से निकटता बनाने का प्रयास करना चाहिए। हमें इस तरह त्योहार मनाने का प्रयास करना चाहिए जिससे सभी को खुशी मिल सके।




मानव जीवन पर विज्ञापनों का असर
अथवा
विज्ञापनों की दुनिया कितनी लुभावनी



  • विज्ञापन का अर्थ एवं प्रचार-प्रसार
  • विज्ञापनों की लुभावनी भाषा
  • विज्ञापन का प्रभाव
  • विज्ञापन के लाभ-हानि।

‘ज्ञापन’ में ‘वि’ उपसर्ग लगाने से विज्ञापन शब्द बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ है-सूचना या जानकारी देना। दुर्भाग्य से आज विज्ञापन का अर्थ सिमट कर वस्तुओं की बिक्री बढ़ाकर लाभ कमाने तक ही सीमित रह गया है। वर्तमान समय में विज्ञापन का प्रचार-प्रसार इतना बढ़ गया है कि अब तो कहीं भी विज्ञापन देखे जा सकते हैं। इस कारण से वर्तमान समय को विज्ञापनों का युग कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है।

विज्ञापनों की भाषा अत्यंत लुभावनी और आकर्षक होती है। इनके माध्यम से कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक अभिव्यक्ति का प्रयास किया जाता है। विज्ञापन की भाषा सरल एवं सटीक होती है, जिसे विशेष रूप से तैयार करके प्रभावपूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया है। दूरदर्शन और अन्य चलचित्रों के माध्यम से दिखाए जाने वाले विज्ञापनों की भाषा और भी प्रभावी बन जाती है।

विज्ञापन मानव मन पर गहरा असर डालते हैं। बच्चे और किशोर इन विज्ञापनों के प्रभाव में आसानी से आ जाते हैं। विज्ञापनों का प्रस्तुतीकरण, उनमें प्रयुक्त नारी देह का दर्शन, उनके हाव-भाव और अभिनय मानवमन पर जादू-सा असर कर सम्मोहित कर लेते हैं। यह विज्ञापनों का असर है कि हम विज्ञापित वस्तुएँ खरीदने का लाभ संवरण नहीं कर पाते हैं।

विज्ञापन उत्पादक और उपभोक ता दोनों के लिए लाभदायी हैं। इसके माध्यम से हमारे सामने चुनाव का विकल्प, सलभ तो विक्रेताओं को भी भरपूर लाभ होता है। विज्ञापन के कारण वस्तुओं का मूल्य बढ़ जाता है। इनमें वस्तु के गुणों को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया जाता है। अतः हमें विज्ञापनों से सावधान रहना चाहिए।




मनुष्यता का दूसरा नाम : परोपकार
अथवा
परहित सरसि धर्म नहिं भाई



  • परोपकार का अर्थ और प्रकृति
  • परोपकार मनुष्य का उत्तम गुण
  • जीवन की सार्थकता
  • परोपकार सच्चे आनंद का स्रोत।

उपकार का अर्थ है-भलाई करना। इसी उपकार में ‘पर’ उपसर्ग लगाने से परोपकार बना है। इसका अर्थ है-दूसरों की भलाई करना। जब मनुष्य निस्स्वार्थ भाव से दूसरों की भलाई मन, वाणी और कर्म से करता है, तब उसे परोपकार कहा जाता है। परोपकार का सर्वोत्तम उदाहरण हमें प्रकृति के कार्यों से मिलता है।

वृक्ष अपने फल स्वयं नहीं खाते हैं, नदियाँ अपना पानी स्वयं नहीं पीती हैं। इसी प्रकार फूल दूसरों के लिए खिलते हैं और बादल जीवों के कल्याण के लिए अपना अस्तित्व तक नष्ट कर देते हैं। परोपकार मनुष्य का सर्वोत्तम गुण है। हमारे ऋषि-मुनि तो अपना जीवन परोपकार में अर्पित कर देते थे। उनके कार्य हमें परोपकार की प्रेरणा देते हैं। कहा भी गया है कि ‘वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।’

परोपकार से व्यक्ति को सुख-शांति की अनुभूति होती है तथा जिसकी भलाई की जाती है उसे अपनी दीन-हीन स्थिति से मुक्ति मिल जाती है। परोपकार व्यक्ति को आदर्श जीवन की राह दिखाते हैं। इससे व्यक्ति को मनुष्य बनने की पूर्णता प्राप्त होती है। वास्तव में परोपकार में ही जीवन की सार्थकता है। परोपकार से व्यक्ति को सच्चा आनंद प्राप्त होता है।

इसी आनंद के वशीभूत होकर व्यक्ति अपना तन-मन और धन देकर भी परोपकार करता है। महर्षि दधीचि ने अपनी हड्डियाँ देकर मानवता का कल्याण किया तो शिवि ने अपने शरीर का मांस देकर कबूतर की जान बचाई। हमें भी परोपकार का अवसर हाथ से नहीं जाने देना चाहिए।




विपति कसौटी जे कसे तेई साँचे मीत
अथवा
विपत्ति का साथी : मित्र



  • मित्र की आवश्यकता
  • मित्र का स्वभाव
  • सन्मार्ग पर ले जाते मित्र
  • मित्र के चयन में सावधानियाँ।

मानव जीवन को संग्राम की सभा से विभूषित किया गया है, जिसमें दुख और सुख क्रमशः आते-जाते रहते हैं। सुख का समय जल्दी और सरलता से कब बीत जाता है पता ही नहीं चलता पर दुख के समय में उसे ऐसे व्यक्ति की ज़रूरत होती है जो उसके काम आए। अब उसे मित्र की आवश्यकता होती है जो होती है जो उसे दख सहने का साहस प्रदान करे। मित्र का स्वभाव उदार. परोपकारी होने के साथ ही विपत्ति में साथ न छोड़ने वाला होना चाहिए।

उसे जल की भाँति नहीं होना चाहिए जो जाल पड़ने पर जाल में फँसी मछलियों का साथ छोड़कर दूर हो जाता है और मछलियों को मरने के लिए छोड़ जाता है। वास्तव में मित्र का स्वभाव श्रीराम और सुग्रीव के स्वभाव की भाँति होना चाहिए जिन्होंने एक-दूसरे की मदद करके अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया। एक सच्चा मित्र को बुराइयों से हटाकर सन्मार्ग की ओर ले जाता है।

एक सच्चा मित्र अपने मित्र को व्यसन से बचाकर सत्कार्य के लिए प्रेरित करता है और उसके लिए घावों पर लगी उस औषधि के समान साबित होता है जो उसकी पीड़ा हरकर शीतलता पहुँचाती है। व्यक्ति के पास धन देखकर बहुत से लोग नाना प्रकार से मित्र बनने की चेष्टा करते हैं। हमें इन अवसरवादी लोगों से सावधान रहना चाहिए। हमारी जी हुजूरी और चापलूसी करने वाले को भी सच्चा मित्र नहीं कहा जा सकता है।

हमारी गलत बातों का विरोधकर उचित मार्गदर्शन कराने वाला ही सच्चा मित्र होता है। हमें मित्र के चयन में सावधान रहना चाहिए ताकि मित्रता चिरकाल तक बनी रहे।




जीवन में व्यायाम का महत्त्व
अथवा
स्वास्थ्य के लिए हितकारी : व्यायाम



  • स्वास्थ्य सबसे बड़ा धन
  • उत्तम स्वास्थ्य की औषधि-व्यायाम
  • व्यायाम का सर्वोत्तम समय
  • व्यायाम एक-लाभ अनेक।

स्वास्थ्य और मानवजीवन का घनिष्ठ संबंध है। यूँ तो स्वास्थ्य की महत्ता हर प्राणी के लिए होती है पर मनुष्य इसके प्रति कुछ अधिक ही सजग रहता है और स्वस्थ रहने के नाना उपाय करता है। मनुष्य जानता है कि धन को तुरंत दुबारा कमाया जा सकता है परंतु स्वास्थ्य इतनी सरलता से नहीं पाया जा सकता है। एक स्वस्थ व्यक्ति ही सांसारिक सुखों का लाभ उठा सकता है।

यदि शरीर स्वस्थ नहीं है तो दुनिया का कोई सुख व्यक्ति को रुचिकर नहीं लगता है, तभी स्वास्थ्य को सबसे बड़ा धन कहा गया है। स्वास्थ्य पाने का एक साधन सात्विक भोजन, स्वस्थ आदतें, उचित दिनचर्या और दवाईयाँ हैं, पर ये सभी स्वस्थ रहने के साधन मात्र हैं। स्वास्थ्य का अर्थ केवल शारीरिक नहीं बल्कि इस परिधि में मानसिक स्वास्थ्य भी आता है।

इसे पाने की मुफ्त की औषधि है-व्यायाम, जिसे पाने के लिए धन खर्च करने की आवश्यकता नहीं होती है। व्यायाम करने का सर्वोत्तम समय भोर की बेला है जब वातावरण में शांति, हवा में शीतलता और सुगंध होती है। ऐसे वातावरण में मन व्यायाम में लगता है। व्यायाम से हमारे शरीर का रक्त प्रवाह तेज़ होता है, हड्डियाँ मज़बूत और मांसपेशियाँ लचीली बनती हैं। इससे तन-मन दोनों स्वस्थ होता है। हमें भी समय निकालकर व्यायाम अवश्य करना चाहिए।




विद्यार्थी और अनुशासन
अथवा
अनुशासन का महत्त्व



  • अनुशासन का अर्थ
  • अनुशासन की आवश्यकता
  • प्रकृति में अनुशासन
  • अनुशासन सफलता की कुंजी।

‘शासन’ शब्द में ‘अनु’ उपसर्ग जोड़ने से अनुशासन शब्द बना है, जिसका अर्थ है शासन के पीछे चलना अर्थात् समाज द्वारा बनाए नियमों का पालन करते हुए मर्यादित जीवन जीना। जीवन के हर क्षेत्र और हर काल में अनुशासन की महत्ता होती है पर विद्यार्थी काल जीवन की नींव के समान होता है। इस काल में अनुशासन की आवश्यकता और महत्ता और भी बढ़ जाती है।

इस काल में विद्यार्थी जो कुछ सीखता है वही उसके जीवन में काम आता है। इस काल में एक बार अनुशासनबद्ध जीवन की आदत पड़ जाने पर आजीवन यही आदत बनी रहती है। मानव मन अत्यंत चंचल होता है। वह स्वच्छंद आचरण करना चाहता है। इसके लिए अनुशासन बहुत आवश्यक है। प्रकृति अपने कार्य व्यवहार से मनुष्य तथा अन्य प्राणियों को अनुशासन का पाठ पढ़ाती है।

सूर्य समय पर निकलता है। चाँद और तारे रात होने पर चमकना नहीं भूलते हैं। ऋतु आने पर फूल खिलना नहीं भूलते हैं। वर्षा ऋतु में बादल बरसना और समयानुसार वृक्ष फल नहीं भूलते हैं। ऋतुएँ समय पर आती जाती हैं और मुर्गा समय पर बाँग देता है। ये हमें अनुशासन का पाठ पढ़ाते हैं।

जीवन में जितने भी लोगों ने सफलता प्राप्त की है उसके मूल में अनुशासन रहा है। गांधी जी, नेहरू जी, टैगोर, तिलक, विवेकानंद आदि की सफलता का मूल मंत्र अनुशासन रहा है। विद्यार्थियों को कदम-कदम पर अनुशासन का पालन करना चाहिए और सफलता के सोपान चढ़ना चाहिए।




समय का महत्त्व
अथवा
समय चूकि वा पुनि पछताने



  • समय की पहचान
  • समय पर काम न करने पर पछताना व्यर्थ
  • समय का सदुपयोग-सफलता का सोपान
  • आलस्य का त्याग।

एक सूक्ति है–’समय और सूक्ति किसी की प्रतीक्षा नहीं करते हैं।’ ये आते और जाते रहते हैं, चाहे कोई इनका लाभ उठाए या नहीं पर गुणवान लोग समय की महत्ता समझकर समय का लाभ उठाते हैं। एक चतुर मछुआरा अपने जाल और नाव के साथ ज्वार की प्रतीक्षा करता है और उसका लाभ उठाता है। जो लोग समय पर काम नहीं करते हैं उनके हाथ पछताने के सिवा कुछ भी नहीं लगता है।

समय बीतने पर काम करने से उसकी सफलता का आनंद सूख जाता है। ऐसे ही लोगों के लिए गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है-‘समय चूकि वा पुनि पछताने।’ का बरखा जब कृषि सुखाने। अर्थात् समय पर काम करने से चक कर पछताना उसी तरह है जैसा कि फ़सल सखने के बाद वर्षा होने से वह हरी नहीं हो पाती है। जो व्यकि सदुपयोग करते हैं वे हर काम में सफल होते हैं।

शत्रु आक्रमण का जो देश मुकाबला नहीं करता वह गुलाम होकर रह जाता है, समय पर बीज न बोने वाले किसान की फ़सल अच्छी नहीं होती है और समय पर वर्षा न होने से भयानक अकाल पड़ जाता है। इस तरह निस्संदेह समय का उपयोग सफलता का सोपान है। समय पर काम करने के लिए आवश्यक है-आलस्य का त्याग करना। आलस्य भाव बनाए रखकर समय पर काम पूरा करना कठिन है। अतः हमें आलस्य भाव त्यागकर समय का सदुपयोग करना चाहिए।




देशाटन
अथवा
मनोरंजन का साधन : पर्यटन



  • देशाटन क्या है?
  • देशाटन का महत्त्व
  • देशाटन के लाभ
  • देश की प्रगति में सहायक।

‘देशाटन’ शब्द दो शब्दों ‘देश’ और ‘अटन’ के मेल से बना है जिसका अर्थ है देश का भ्रमण करना अर्थात् ज्ञान और मनोरंजन के उद्देश्य से किया जाने वाला भ्रमण देशाटन कहलाता है। देशाटन करना मनुष्य की स्वाभाविक विशेषता है। वह प्राचीनकाल से ही शिकार और आश्रय के उद्देश्य से भटकता रहा है। मनुष्य आज भी भ्रमण करता है पर उसके भ्रमण की महत्ता आज अधिक है।

आज वह ज्ञानार्जन और धनार्जन के लिए भ्रमण करता है जो उसे सामाजिक और आर्थिक रूप से उन्नत बनाता है। इस प्रकार मनुष्य के जीवन में देशाटन का बहुत महत्त्व है। देशाटन का सबसे बड़ा लाभ यह है कि मनुष्य विभिन्न वस्तुओं को साक्षात् रूप से देखता है और भिन्न-भिन्न लोगों से मिलता है। वह उस स्थान विशेष की कला, संस्कृति और सभ्यता से परिचित होता है। उसका स्वभाव मिलनसार बनता है।

वह भिन्न-भिन्न लोगों की भाषाओं से परिचित होता है। इससे राष्ट्रीय एकता मज़बूत होती है। देशाटन से देश के विकास में सहायता होती है। पर्यटन उद्योग फलता-फूलता है और विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि होती है। लोगों को रोजगार मिलता है। इस प्रकार व्यक्ति और राष्ट्र दोनों की आय बढ़ती है। हमें अवसर मिलते ही देशाटन अवश्य करना चाहिए।




मेरी अविस्मरणीय यात्रा
अथवा
पर्वतीय स्थल की यात्रा का रोमांच



  • यात्रा की तैयारी
  • रास्ते का सौंदर्य
  • पर्वतीय सौंदर्य
  • यादगार पल।

मनुष्य के मन में यात्रा करने का विचार ज़ोर मारता रहता है। उसे बस मौके की तलाश रहती है। मुझे भी यात्रा करना बहुत अच्छा लगता है। आखिर मुझे अक्टूबर के महीने में यह मौका मिल ही गया जब पिता जी ने बताया कि हम सभी वैष्णो देवी जाएँगे। वैष्णो देवी का नाम सुनते ही मन बल्लियों उछलने लगा और मैं तैयारी में जुट गया। उधर माँ भी आवश्यक तैयारियाँ करने के क्रम में कपड़े, चादर और खाने के लिए नमकीन बिस्कुट आदि पैक करने लगी।

आखिर नियत समय पर हम प्रात: तीन बजे नई दिल्ली स्टेशन पर पहुँचे और स्वराज एक्सप्रेस से जम्मू के लिए चल पड़े। लगभग आधे घंटे बाद हम दिल्ली की सीमा पार करते हुए सोनीपत पहुँचे। अब तक सवेरा हो चुका था। दोनों ओर दूर तक हरे-भरे खेत दिखाई देने लगे। इसी बीच पूरब से भगवान भास्कर का उदय हुआ। उनका यह रूप मैं दिल्ली में नहीं देख सका था।

दस बजे तक तो मैं जागता रहा पर उसके बाद चक्की बैंक पहुँचने पर मेरी नींद खुली। उससे आगे जाने पर हमें एक ओर पहाड़ नज़र आ रहे थे। वहाँ से कटरा जाकर हमने पैदल चढ़ाई की। पर्वतों को इतने निकट से देखने का यह मेरा पहला अवसर था। इनकी ऊँचाई और महानता देखकर अपनी लघुता का अहसास हो रहा था।

अब मुझे समझ में आया कि ‘अब आया ऊँट पहाड़ के नीचे’ मुहावरा क्यों कहा गया होगा। वैष्णो देवी पहुँचकर वहाँ का पर्वतीय सौंदर्य हमारे दिलो-दिमाग पर अंकित हो गया। वहाँ से भैरव मंदिर पहुँचकर जिस सौंदर्य के दर्शन हुए वह आजीवन भुलाए नहीं भूलेगा।




परीक्षा का डर
अथवा
परीक्षा से पहले मेरी मनोदशा



  • परीक्षा नाम से भय
  • पर्याप्त तैयारी
  • घबराहट और दिल की धड़कनें हुई तेज़
  • प्रश्न-पत्र देखकर भय हुआ दूर।

परीक्षा वह शब्द है जिसे सुनते ही अच्छे अच्छों के माथे पर पसीना आ जाता है। परीक्षा का नाम सुनते ही मेरा भी भयभीत होना स्वाभाविक है। ज्यों-ज्यों परीक्षा की घड़ी निकट आती जा रही थी त्यों-त्यों यह घबराहट और भी बढ़ती जा रही थी। जितना भी पढ़ता था घबराहट में सब भूला-सा महसूस हो रहा था। खाने-पीने में भी अरुचि-सी हो रही थी।

इस घबराहट में न जाने कब ‘जय हनुमान ज्ञान गुण सागर’-उच्चरित होने लगता था पता नहीं। यद्यपि मैं अपनी तरफ से परीक्षा का भय भूलने और सभी प्रश्नों के उत्तर दोहराने की तैयारी कर रहा था और जिन प्रश्नों पर तनिक भी आशंका होती तो उस पर निशान लगाकर पिता जी से शाम को हल करवा लेता था पर मन में कहीं न कहीं भय तो था ही। परीक्षा का दिन आखिर आ ही गया।

सारी तैयारियों को समेटे मैं परीक्षा भवन में चला गया पर प्रश्न-पत्र हाथ में आने तक मन में तरह-तरह की आशंकाएँ आती जाती रही। मैंने अपनी सीट पर बैठकर आँखें बंद किए प्रश्न-पत्र मिलने का इंतज़ार करने पर घबराहट के साथ-साथ दिल की धड़कने तेज़ हो गई थी। इसी बीच घंटी बजी। कक्ष निरीक्षक ने पहले हमें उत्तर पुस्तिकाएँ दी फिर दस मिनट बाद प्रश्न-पत्र दिया।

काँपते हाथों से मैंने प्रश्न पत्र लिया और पढ़ना शुरू किया। शुरू के पेज के चारों प्रश्नों को पढ़कर मेरी घबराहट आधी हो गई क्योंकि उनमें से चारों के जवाब मुझे आते थे। पूरा प्रश्न पत्र पढ़ा। अब मैं प्रसन्न था क्योंकि एक का उत्तर छोड़कर सभी के उत्तर लिख सकता था। मेरी घबराहट छू मंतर हो चुकी थी। अब मैं लिखने में व्यस्त हो गया।




देश-प्रेम
अथवा
प्राणों से प्यारा : देश हमारा



  • देश से लगाव स्वाभाविक गुण
  • देश के लिए सर्वस्व न्योछावर
  • मातृभूमि ‘माँ’ के समान
  • राष्ट्रीय एकता प्रगाढ़ करने में सहायक।

मनुष्य की स्वाभाविक विशेषता है कि वह जिस व्यक्ति, वस्तु या स्थान के साथ कुछ समय बिता लेता है उससे उसका लगाव हो जाता है। ऐसे में जिस देश में उसने जन्म पाया है, जहाँ का अन्न-जल और वायु ग्रहण कर बड़ा हुआ है, उस स्थान से लगाव होना लाजिमी है। इसी लगाव का नाम है देश-प्रेम। अर्थात् देश के कण-कण से प्रेम होना उसकी सजीव-निर्जीव वस्तुओं के अलावा पेड़-पौधे, जीव-जंतुओं और मनुष्यों से प्यार करना देश-प्रेम कहलाता है।

यह वह पवित्र भावना है जो देश की रक्षा करते हुए अपना तन-मन-धन अर्थात् सर्वस्व न्योछावर करने के लिए प्रेरित करती है। ऐसा व्यक्ति ही सच्चादेश प्रेमी कहलाता है। कहा गया है-‘जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’ अर्थात् जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर हैं। आखिर हो भी क्यों न व्यक्ति को स्वर्ग जाने के योग्य जननी और जन्मभूमि ही बनाते हैं। माँ संतान को जन्म देती है पर जन्मभूमि की रज में लोटकर बच्चा बढ़ता है और यहीं का अन्न जलग्रहण कर बड़ा होता है।

वास्तव में जन्मभूमि के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। हमारे देश के वीरों और देशभक्तों ने जन्मभूमि की रक्षा के लिए सुख-चैन त्याग दिया, जेल की दर्दनाक यातनाएँ भोगी, हँसते-हँसते लाठियाँ और कोड़े खाए और हँसते-हँसते फाँसी के फंदे को चूम गए। देश प्रेम की पवित्र भावना जाति, धर्म, भाषा, वर्ण, वर्ग, प्रांत और दल से ऊपर होती है। यह इन संकीर्णताओं का बंधन नहीं स्वीकारती है। इससे राष्ट्रीय एकता मजबूत होती है। हमें अपने देश पर गर्व है। मैं इससे असीम प्यार करता हूँ।




हमारे देश के राष्ट्रीय पर्व
अथवा
देश की अखंडता में सहायक राष्ट्रीय पर्व



  • राष्ट्रीय पर्व का अर्थ एवं उनकी महत्ता
  • हमारे राष्ट्रीय पर्व और मनाने का ढंग
  • देश की एकता अखंडता बनाने में सहायक
  • राष्ट्रीय पर्यों का संदेश।

पर्व मानव जीवन को मनोरंजन और ऊर्जा से भरकर मनुष्य की नीरसता दूर करते हैं। इन पर्यों को सांस्कृतिक, सामाजिक और राष्ट्रीय पर्यों के रूप में बाँटा जा सकता है। राष्ट्रीय पर्व वे पर्व हैं जिन्हें राष्ट्र के सारे लोग बिना किसी भेदभाव के एकजुट होकर मनाते हैं। इनका सीधा संबंध देश की एकता और अखंडता से होता है।

राष्ट्रीय पर्व व्यक्तिगत न होकर राष्ट्रीय होते हैं, इसलिए देशवासियों के अलावा विभिन्न प्रशासनिक और सरकारी कार्यालय, विभिन्न संस्थाएँ मिल-जुलकर मनाती हैं। इस दिन देश में सरकारी अवकाश रहता है। यहाँ तक कि दुकानें और फैक्ट्रियाँ भी बंद रहती हैं ताकि देशवासी इन्हें मनाने में अपना योगदान दें। हमारे राष्ट्रीय पर्व हैं-स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त), गणतंत्र दिवस (26 जनवरी) और गांधी जयंती (02 अक्टूबर)।

स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के अवसर पर प्रातःकाल सरकारी कार्यालयों एवं भवनों पर झंडा फहराया जाता है और रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया जाता है। इस दिन देशभक्तों और शहीदों के योगदान को याद करते हुए स्वतंत्रता बनाए रखने की प्रतिबद्धता दोहराई जाती है। गांधी जयंती के अवसर पर कृतज्ञ देशवासी गांधी जी के योगदान को याद करते हैं और उनके बताए रास्ते पर चलने की प्रतिज्ञा करते हैं।

देश की एकता अखंडता बनाए रखने में राष्ट्रीय त्योहार महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री देशवासियों से एकता बनाए रखने का आह्वान करते हैं। ये पर्व हमें एकजुट रहकर देश की स्वतंत्रता की रक्षा करने तथा देश के लिए तन-मन और धन न्योछावर करने का संदेश देते हैं। हमें इस संदेश को सदा याद रखना चाहिए।




गाँवों का देश भारत
अथवा
गाँवों की दयनीय दशा



  • देश की 70 प्रतिशत जनता गाँवों में
  • प्रदूषण रहित वातावरण
  • गाँवों में अभाव ग्रस्तता
  • गाँवों की दशा में कुछ बदलाव।

हमारे गाँवों में। अगर हमें अपने देश की सच्ची तसवीर देखनी है तो हमें गाँवों की ओर रुख करना पड़ेगा। हमारे देश की आत्मा इन्हीं गाँवों में निवास करती है। देश की जनसंख्या का 70 प्रतिशत से अधिक भाग इन्हीं गाँवों में बसता है। इनमें से अधिकांश लोगों की आजीविका का साधन कृषि है। यहाँ रहने वाले चाहे खुद भूखे सो जाएँ पर देशवासियों को पेट भरने का दायित्व यही गाँव निभाते हैं।

यहाँ के किसानों का श्रम और कार्य देखकर श्री लाल बहादुर शास्त्री ने ‘जय जवान जय किसान’ का नारा दिया था। गाँवों में चारों ओर हरियाली का साम्राज्य होता है। ये पेड़-पौधे ग्रामवासियों को शुद्ध वायु उपलब्ध कराते हैं। यहाँ कारखाने और औद्योगिक इकाइयों का अभाव है। यहाँ मोटर गाड़ियों का न धुआँ है और न शोर। यहाँ का वातावरण शुद्ध और स्वास्थ्यवर्धक है।

गाँवों की धूलभरी गलियाँ, कच्चे घर, घास-फूस की झोपड़ियाँ, नालियों में बहता गंदा पानी, मैले-कुचैले कपड़े पहने बच्चे और अधनंगे बदन वाले किसान की दयनीय दशा देखकर गाँवों की अभाव ग्रस्तता का पता चल जाता है। यहाँ रहने वालों की कृषि मानसून पर आधारित है। मानसून की कमी होने पर फ़सल अच्छी नहीं होती है जिससे उन्हें साहूकारों से कर्ज लेने पर विवश होना पड़ता है और वे ऋण ग्रस्तता के जाल में फँस जाते हैं।

ग्रामवासी आज भी अंधविश्वास और अशिक्षा के शिकार हैं। गाँवों तक पक्की सड़कें बन जाने और बिजली पहुँच जाने के कारण गाँवों की दशा में कुछ सुधार होता है। सरकार द्वारा शिक्षा की व्यवस्था करने तथा ग्रामवासियों के कल्याण हेतु अनेक योजनाएँ चलाने के कारण अब गाँवों के दिन फिरने लगे हैं।




रंग-बिरंगी ऋतुएँ
अथवा
भारत की छह ऋतुएँ



  • ऋतुएँ-प्रकृति का अनुपम उपहार
  • छह ऋतुएँ और उनकी विशेषताएँ,
  • ऋतुराज वसंत,
  • ऋतुओं का प्रभाव।

प्रकृति ने भारत को अनेक उपहार प्रदान किए हैं। इन उपहारों में एक है-छह ऋतुओं का उपहार । ये ऋतुएँ एक के बाद एक बारी बारी से आती हैं और मुक्त हाथों से सौंदर्य बिखरा जाती हैं। ऋतुओं के जैसा मनभावन मौसम का समन्वय भारत में बना रहता है वैसा अन्यत्र दुर्लभ है। हमारे देश में छह ऋतुएँ पाई जाती हैं। ये छह ऋतुएँ हैं ग्रीष्म, वर्षा, शरद, शिशिर, हेमंत और वसंत।

भारतीय महीनों के अनुसार बैसाख और जेठ ग्रीष्म ऋतु के महीने होते हैं। इस समय छोटी-छोटी वनस्पतियाँ सूख जाती हैं। धरती तवे-सी जलने लगती है। आम, कटहल, फालसा, जामुन आदि फल इस समय प्रचुरता से मिलते हैं। इसके बाद अगले दो महीने वर्षा ऋतु के होते हैं। इस समय वर्षा होती है जो मुरझाई धरती और प्राणियों को नवजीवन देती हैं।

अधिक वर्षा बाढ़ के रूप में प्रलय लाती है। वर्षा ऋतु के उपरांत शरद ऋतु का आगमन होता है। यह ऋतु दो महीने तक रहती है। दशहरा और दीपावली इस ऋतु के प्रमुख त्योहार हैं। इस समय सरदी और गरमी बराबर होती है, जिससे मौसम सुहाना रहता है। शिशिर और हेमंत ऋतुओं में कड़ाके की सरदी पड़ती है। हेमंत पतझड़ की ऋतु मानी है। इस समय पेड़-पौधे अपनी पत्तियाँ गिरा देते हैं।

इसके बाद ऋतुराज वसंत का आगमन होता है। इस से मौसम सुहावना होता है। चारों ओर खिले फूल और सुगंधित हवा इस समय को सुहावना बना देते हैं। स्वास्थ्य की दृष्टि से यह सर्वोत्तम ऋतु है। विभिन्न ऋतुओं का अपना अलग-अलग प्रभाव होता है। इस कारण हमारा खान-पान और रहन-सहन प्रभावित होता है। तरह-तरह की फ़सलों के उत्पादन में ऋतुएँ महत्त्वपूर्ण योगदान देती हैं। सचमुच ये ऋतुएँ किसी वरदान से कम नहीं हैं।




भारतीय समाज में नारी की स्थिति
अथवा
भारतीय समाज में नारी की बदलती स्थिति



  • प्राचीन भारत में नारी की स्थिति
  • मध्यकाल में नारी की स्थिति
  • आधुनिक काल में नारी
  • भारतीय नारी त्याग एवं ममता की मूर्ति।

स्त्री और पुरुष जीवन रूपी गाड़ी के दो पहिए हैं। इनमें स्त्रियों की स्थिति में देश काल और परिस्थिति के अनुसार समय-समय पर बदलाव आता रहा है। प्राचीनकाल में हमारे देश में स्त्रियों को सम्मानजनक स्थान प्राप्त था। वह यज्ञ कार्यों, वेद-पुराण और ऋचाओं की रचना में सहभागी रहती थी। वह पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर चलती थी।

उस समय कहा जाता था कि ‘यत्र नार्यास्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता’ अर्थात जहाँ नारियों की पूजा होती है वहीं देवता निवास करते हैं। इससे नारी की उच्च स्थिति का अनुमान स्वयं लगाया जा सकता है। मध्यकाल तक नारियों की स्थिति में बहुत गिरावट आ चुकी थी। पुरुष प्रधान समाज ने नारियों को परदे की वस्तु बनाकर घर की चारदीवारी तक सीमित कर दिया।

उसे निर्णय लेने के अधिकार से वंचित कर दिया गया।मुसलमानों के आक्रमण के कारण वे घरों में रहने को विवश थी। इस कारण उनकी शिक्षा में गिरावट आई और वे निरक्षरता का शिकार हो गई। आधुनिक काल में स्त्रियों की दशा में खूब सुधार हुआ है। स्वतंत्रता के बाद उनकी स्थिति में सुधार लाने के लिए शिक्षा का प्रचार-प्रसार किया गया। इस कारण वह प्रगति की दौड़ में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं।

चिकित्सा, शिक्षा, पुलिस सेवा, प्रशासन आदि में वह अपनी योग्यता से पुरुषों से आगे निकलती जा रही है। ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’, ‘लाडली योजना’ जैसी योजनाओं के कारण उनकी स्थिति में सुधार हो रहा है। नारी त्याग, ममता, सहानुभूति, स्नेह की मूर्ति है। हमें नारियों का सम्मान करना चाहिए।




वन रहेंगे-हम रहेंगे
अथवा
वनों की महत्ता



  • वन प्रकृति के अनुपम उपहार
  • वनों के लाभ
  • मनुष्य का स्वार्थपूर्ण व्यवहार
  • वन बचाएँ जीवन बचाएँ।

प्रकृति ने मनुष्य को जो नाना प्रकार के उपहार दिए हैं, वन उनमें सबसे अधिक उपयोगी और महत्त्वपूर्ण हैं। मनुष्य और प्रकृति का साथ अनादिकाल से रहा है। पृथ्वी पर जीवन योग्य जो परिस्थितियाँ हैं उन्हें बनाए रखने में वनों का विशेष योगदान है। मनुष्य अन्य जीव-जंतुओं के साथ इन्हीं वनों में पैदा हुआ, पला, बढ़ा और सभ्य होना सीखा।

वनों ने मनुष्य की हर जरूरत को पूरा किया है। वन हमें लकड़ी, छाया, फल-फूल, कोयला, गोंद, कागज, नाना प्रकार की औषधियाँ देते हैं। वे पशुओं तथा पशु-पक्षियों के लिए आश्रय-स्थल उपलब्ध करते हैं। इससे जैव विविधता और प्राकृतिक संतुलन बना रहता है। वन वर्षा लाने में सहायक हैं जिससे प्राणी नवजीवन पाते हैं। वन बाढ़ रोकते हैं और भूक्षरण कम करते हैं तथा धरती का उपजाऊपन बनाए रखते हैं।

वास्तव में वन मानवजीवन का संरक्षण करते हैं। वन परोपकारी शिव के समान हैं जो विषाक्त वायु का स्वयं सेवन करते हैं और बदले में प्राणदायी शुद्ध ऑक सीजन देते हैं। दुर्भाग्य से मनुष्य की जब ज़रूरतें बढ़ने लगी तो उसने वनों की अंधाधुंध कटाई शुरू कर दी। नई बस्तियाँ बनाने, कृषि योग्य भूमि पाने, सड़कें बनाने आदि के लिए पेड़ों की कटाई की गई, जिससे पर्यावरण असंतुलन बढ़ा और वैश्विक ऊष्मीकरण में वृद्धि हुई।

इससे असमय वर्षा, बाढ़, सूखा आदि का खतरा उत्पन्न हो गया। धरती पर जीवन बचाने के लिए पेड़ों को बचाना आवश्यक है। आओ हम जीवन बचाने के लिए अधिकाधिक पेड़ लगाने और बचाने की प्रतिज्ञा करते हैं।



प्रदूषण की समस्या
अथवा
जीवन खतरे में डालता प्रदूषण



  • प्रदूषण का अर्थ
  • प्रदूषण के कारण
  • प्रदूषण के प्रभाव
  • प्रदूषण से बचाव के उपाय।

स्वस्थ जीवन के लिए आवश्यक है कि हम जिन वस्तुओं का सेवन करें, जिस वातावरण में रहें वह साफ़-सुथरा हो। जब हमारे पर्यावरण और वायुमंडल में ऐसे तत्व मिल जाते हैं जो उसे दूषित करते हैं तथा इनका स्तर इतना बढ़ जाता है कि स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो जाते हैं तब यह स्थिति प्रदूषण कहलाती है। आज सभ्यता और विकास की इस दौड़ में मनुष्य के कार्य व्यवहार ने प्रदूषण को खूब बढ़ाया है।

बढ़ती आवश्यकता के कारण एक ओर वनों को काटकर नई बस्तियाँ बसाई गईं तो दूसरी ओर अंधाधुंध कल-कारखानों की स्थापना की गई। इन बस्तियों तक पहुँचने के लिए सड़कें बनाई गईं। इसके लिए भी वनों की कटाई की गई। सभ्यता की ऊँचाई छूने के लिए मनुष्य ने नित नए आविष्कार किए।

मोटर-गाड़ियाँ वातानुकूलित उपकरणों से सजी गाड़ियाँ और मकानों के कार्य आदि के कारण पर्यावरण इतना प्रदूषित हआ कि आदमी को साँस लेने के लिए शदध हवा मिलना कठिन हो गया है। प्रदूषण के दुष्प्रभाव के कारण प्राकृतिक असंतुलन उत्पन्न हो गया है। वायुमंडल में कार्बनडाई ऑक्साइड, सल्फर डाई आक्साइड की मात्रा बढ़ गई है। इससे अम्लीय वर्षा का खतरा पैदा हो गया है।

मोटर-गाड़ियों और फैक्ट्रियों के शोर के कारण स्वास्थ्य बुरी तरह प्रभावित हुआ है। अति वृष्टि, अनावृष्टि और असमय वर्षा प्रदूषण का ही दुष्परिणाम है। इस प्रदूषण से बचने का सर्वोत्तम उपाय है अधिकाधिक वन लगाना। पेड़ लगाकर प्रकृति में संतुलन लाया जा सकता है। इसके अलावा हमें सादा जीवन उच्च विचार वाली जीवन शैली अपनाते हुए प्रकृति के करीब लौटना चाहिए।




बाल मज़दूरी
अथवा
बाल मजदूरी : समाज के लिए अभिशाप



  • बाल मजदूर कौन
  • बाल मजदूरी क्यों
  • बाल मजदूरी के क्षेत्र
  • समस्या का समाधान।

समाज शास्त्रियों ने मानवजीवन को आयु के विभिन्न वर्गों में बाँटा है। इसके अनुसार सामान्यतया 5 से 11 साल के बच्चे को बालक कहा जाता है। इसी उम्र में बालक विद्यालय जाकर पढ़ना-लिखना सीखता है और शिक्षित जीवन की नींव रखता है परंतु परिस्थितियाँ प्रतिकूल होने के कारण जब बच्चे को पढ़ने-लिखने का मौका नहीं मिलता है और उसे अपना पेट पालने के लिए न चाहते हुए काम करना पड़ता है तो उसे बाल मजदूरी कहते हैं।

मजदूर की भाँति काम करने वाले इन बालकों को बाल मज़दूर कहते हैं। बाल मजदूरी के मूल में है-गरीबी। गरीब माता-पिता जब बच्चे को विद्यालय भेजने की स्थिति में नहीं होते हैं और वे परिवार की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर पाते हैं तो वे अपने बच्चों को भी काम पर भेजना शुरू कर देते हैं। इसका एक कारण समाज के कुछ लोगों की शोषण की प्रवृत्ति भी है।

वे अपने लाभ के लिए कम मजदूरी देकर इन बच्चों से काम करवाते हैं। बाल मजदूरी के कुछ विशेष क्षेत्र हैं जहाँ बच्चों से काम कराया जाता है। दियासलाई उद्योग, पटाखा उद्योग, अगरबत्तियों के कारखाने, कालीन बुनाई, चूड़ी उद्योग, बीड़ी, गुटखा फैक्ट्रियों में बच्चों से काम लिया जाता है।

बाल मजदूरी रोकने के लिए सरकार को कड़े कदम उठाने की ज़रूरत है। बाल मजदूरों को मज़बूरी से मुक्त कराकर उन्हें शिक्षित और प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। इसके अलावा स्वार्थी लोगों को अपनी स्वार्थवृत्ति त्यागकर इन बच्चों पर दया करना चाहिए और इनसे काम नहीं करवाना चाहिए।




महानगरों की यातायात को सुखद बनाती-मैट्रो रेल
अथवा
यात्रा सुखद बनाती-मैट्रो रेल



  • महानगरों का भीड़भाड़ युक्त जीवन
  • मैट्रो रेल की आवश्यकता
  • मैट्रो रेल के लाभ
  • सुखद यात्रा का साधन।

महानगर सुख-सुविधा के केंद्र माने जाते हैं। इसी सुख-सुविधा का आकर्षण लोगों को अपनी ओर खींचता है जिससे लोग महानगरों की ओर पलायन करते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि महानगर भीड़भाड़ का केंद्र बनते जा रहे हैं। यहाँ भीड़ के कारण यातायात कठिन हो गया है। यहाँ काम-काज के सिलसिले में लोगों को लंबी यात्राएँ करनी पड़ती हैं जो भीड़ के कारण दुष्कर हो जाती हैं। थोड़ी दूर की यात्रा भी पहाड़ पार करने जैसा हो जाती है।

ऐसे में आवागमन को सरल, सुगम और सुखद बनाने के लिए ऐसे साधन की आवश्यकता महसूस होने लगी जो इनका समाधान कर सके। महानगरों में आवागमन की समस्या को हल किया है मैट्रो रेल ने। आज मैट्रो रेल दिल्ली के अलावा अन्य महानगरों जैसे-मुंबई, जयपुर, लखनऊ, चेन्नई आदि में संचालित करने की योजना है जिन पर जोर-शोर से काम हो रहा है। मैट्रो रेल का संचालन खंभों पर पटरियाँ बिछाकर ज़मीन से काफ़ी ऊँचाई पर किया जाता है।

इस कारण जाम की समस्या से मुक्ति तो मिली है तीव्र गति से यात्रा भी संभव हो गई है। इसके अलावा वातानुकूलित मैट्रो रेल की यात्रा लोगों को थकान, चिड़चिड़ेपन और रक्तचाप बढ़ने से बचाती है। इस यात्रा के बाद भी थकान की अनुभूति नहीं होती है। मैट्रो में लोगों की बढ़ती भीड़ इसका स्वयं में प्रमाण है। हमें मैट्रो रेल के नियमों का पालन करते हुए स्टेशन और रेल को साफ़-सुथरा बनाना चाहिए ताकि यह सुखद यात्रा सदा वरदान जैसी बनी रहे।




जल ही जीवन है
अथवा
जल संरक्षण-आज की आवश्यकता



  • जीवनदायी जल
  • जल प्रदूषण के कारण
  • जल संरक्षण कितना ज़रूरी
  • जल संरक्षण के उपाय।

पृथ्वी पर प्राणियों के जीवन के लिए हवा के बाद सबसे आवश्यक वस्तु है-जल। यद्यपि भोजन भी आवश्यक है पर इस भोजन को तरल रूप में लाने और सुपाच्य बनाने के लिए जल की आवश्यकता होती है। मानव शरीर में लगभग 70 प्रतिशत जल होता है। कहा भी गया है-क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा। पंच तत्व से बना शरीरा। वनस्पतियों में तो 80 प्रतिशत से ज़्यादा जल पाया जाता है। इस जल के बिना जीवन की कल्पना करना कठिन है।

पृथ्वी पर यूँ तो तीन चौथाई भाग जल ही है पर इसमें पीने योग्य जल की मात्रा बहुत कम है। यह पीने योग्य जल कुओं, तालाबों, नदियों और झीलों में पाया जाता है जो मनुष्य की स्वार्थपूर्ण गतिविधियों के कारण दूषित होता जा रहा है। मनुष्य नदी, तालाबों में खुद नहाता है और जानवरों को नहलाता है।

इतना ही नहीं वह फैक्ट्रियों और नालियों का दषित पानी इसमें मिलने देता है जिससे जल प्रदषित होता है। पेयजल की मात्रा में आती कमी और गिरते भ-जल स्तर के कारण जल संरक्षण अत्यावश्यक हो गया। पृथ्वी पर जीवन बनाए और बचाए रखने के लिए जल बचाना ज़रूरी है।

जल संरक्षण का पहला उपाय है-उपलब्ध जल का दुरुपयोग न किया जाए और हर स्तर पर होने वाली बरबादी को रोका जाए। टपकते नलों की मरम्मत की जाए और अपनी आदतों में सुधार लाया जाए। इसे बचाने का दूसरा उपाय है-वर्षा जल का संरक्षण करना और इसे व्यर्थ बहने से बचाना। ऐसा करके हम आने वाली पीढ़ी को जल का उपहार स्वतः दे जाएँगे।



 'मित्र के जन्म दिन का उत्सव'

मेरे मित्र रोहित का जन्म-दिन था। उसने अन्य लोगों के साथ मुझे भी बुलाया। रोहित के कुछ रिश्तेदार भी आए हुए थे, किन्तु अधिकतर मित्र ही उपस्थित थे। घर के आँगन में ही समारोह का आयोजन किया गया था। उस स्थान को सुरुचिपूर्ण ढंग से सजाया गया था। झण्डियाँ और गुब्बारे टाँगे गए थे। आँगन में लगे एक पेड़ पर रंग-बिरंगे बल्ब जगमग कर रहे थे। जब मैं पहुँचा तो मेहमान आने शुरू ही हुए थे। मेहमान रोहित के लिए कोई-न-कोई उपहार लेकर आते; उसके निकट जाकर बधाई देते; रोहित उनका धन्यवाद करता। क्रमशः लोग छोटी-छोटी टोलियों में बैठकर गपशप करने लगे। संगीत की मधुर ध्वनियाँ गूँज रही थीं। एक-दो मित्र उठकर नृत्य की मुद्रा में थिरकने लगे। कुछ मित्र उस लय में अपनी तालियों का योगदान देने लगे। चारों ओर उल्लास का वातावरण था।

सात बजे के लगभग केक काटा गया। सब मित्रों ने तालियाँ बजाई और मिलकर बधाई का गीत गाया। माँ ने रोहित को केक खिलाया। अन्य लोगों ने भी केक खाया। फिर सभी खाना खाने लगे। खाने में अनेक प्रकार की मिठाइयाँ और नमकीन थे। चुटकुले कहते-सुनते और बातें करते काफी देर हो गई। तब हमने रोहित को एक बार फिर बधाई दी, उसकी दीर्घायु की कामना की और अपने-अपने घर को चल दिए। वह कार्यक्रम इतना अच्छा था कि अब भी स्मरण हो आता है।



जय हिन्द : जय हिंदी 
---------------------------

Post a Comment

0 Comments