apathit kavyansh in hindi
अपठित पद्यांश
apathit padyansh with answers
अपठित भाग को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए .
उस दिन
वह मैंने थी देखी
कॉलेज के निकट ,कच्ची सड़क के पास
गंदी नाली पर पड़ी
जहाँ से गुज़र नहीं सकता
कोई भी बिना नाक पर डाले कपड़ा –
गंदे काले चिथड़ो औ “फटी -पुरानी गुदड़ी में लिपटी ,
देखकर आती जिसको घिन ,
पौष के तीव्र शीत में करती क्रंदन –
“हाय मार गया ,पकड़ो ,पकड़ो ,
धत्त तेरे की !
क्या लिया तुम्हारा मैंने मूज़ी?
क्यों मुझ को व्यर्थ सताता ?
भागो -भागो,हाय मार गया वह मुझको “
सताए कूकर सी कटु कर्कश वाणी में चिल्लाती
वह कुबड़ी काली सी पगली नारी.
सोचा मैंने ,
पर मै समझ न पाया –
क्या वह है दैव की मारी ?
या समाज की ,जो है अत्याचारी
दोनो ,दलितों ,असहायों पर ?
या सम्बन्धियों की निज
छीन लेते हैं जो दलित बंधुओं से
सूखी रोटी का टुकड़ा भी ?
(1) कवि द्वारा प्रयुक्त ‘बिना नाक पर कपड़ा डाले’ से क्या तात्पर्य है -
i) नाक ढकना
ii) मुंह छिपाकर जाना
iii) दुर्गन्ध से बचना
iv) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर- iii) दुर्गन्ध से बचना
(2) प्रयुक्त शब्द ‘मूज़ी’ का तात्पर्य है-
I) अत्याचारी
II) ज़ालिम
III) सताने वाला
IV) दुर्जन
उत्तर - I) किस्मत की मारी
(3) कवि ने पगली के आवाज़ की तुलना किससे की है-
(i) पक्षी से
II) जानवर से
III) कूकर से
IV)कोई नहीं
उत्तर - III) कूकर से
(4) कवि का स्वर कैसा है?
I) व्यंगात्मक
II) ओजपूर्ण
III) दुखी करने वाला
IV) इनमे से कोई नहीं
उत्तर - III) दुखी करने वाला
(5) क्रंदन शब्द का विलोम है -
I) रोना
II) विलाप करना
III) प्रसन्न होना
IV)इनमे से कोई नहीं
उत्तर - I) प्रसन्न होना
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अपठित भाग को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए .
जिस-जिससे पथ पर स्नेह मिला,
उस उस राही को धन्यवाद ,
जीवन अस्थिर अनजाने ही,
हो जाता पथ पर मेल कहीं ,
सीमित पग-डग,लम्बी मंजिल
तय कर लेना कुछ खेल नहीं,
दाएँ- बाएँ सुख-दुःख चलते,
सम्मुख चलता पथ का प्रसाद -
जिस-जिससे पथ पर स्नेह मिला,
उस उस राही को धन्यवाद .
साँसों पर अवलंबित काया,
जब चलते – चलते चूर हुई ,
दो स्नेह शब्द मिल गए,
मिली नव स्फूर्ति ,थकावट दूर हुई,
पथ के पहचाने छूट गए,
पर साथ – साथ चल रही याद -
जिस-जिससे पथ पर स्नेह मिला,
उस उस राही को धन्यवाद.
जो साथ न मेरा दे पाए
उनसे कब सूनी हुई डगर
मै भी न चलूँ यदि तो क्या,
राही मर , लेकिन राह अमर ,
इस पथ पर वे ही चलते हैं
जो चलने का पा गए स्वाद-
जिस-जिससे पथ पर स्नेह मिला
उस उस राही को धन्यवाद .
कैसे चल पाता यदि न मिला होता
मुझको आकुल अंतर ?
कैसे चल पता यदि मिलते ,
चिर- तृप्ति अमरता -पूर्ण प्रहर ,
आभारी हूँ मै उन सबका,
दे गए व्यथा का जो प्रसाद -
जिस-जिससे पथ पर स्नेह मिला,
उस उस राही को धन्यवाद .
निम्नलिखित में से निर्देशानुसार विकल्प का चयन कीजिए –
(1) कवि के अनुसार जीवन कैसा है?
I) दुख पूर्ण है
II) अस्थिर है
III) संघर्ष युक्त है
IV) इनमे से कोई नहीं
उत्तर –(II) अस्थिर है
(2) जीवन रूपी यात्रा में कैसे-कैसे अनुभव आते हैं?
I)सुख – दुःख और प्रमाद के अवसर आते रहते हैं
II) दुःख ही दुख आता है
III) कटु अनुभव आते हैं
IV) सभी
उत्तर – i ) सुख – दुःख और प्रमाद के अवसर आते रहते हैं
(3) “जिस -जिस ” में कौन सा अलंकार है -
i)यमक
ii) अनुप्रास
iii) पुनरोक्ति प्रकाश
iv) कोई नहीं
उत्तर - iii) पुनरोक्ति प्रकाश
(4) राह को अमर क्यों कहा गया है -
i) क्योंकि यह लम्बी है
ii) क्योंकि जीवन रुपी राह अनंत है
iii) दोनो
iv) कोई नहीं
उत्तर - ii) क्योंकि जीवन रुपी राह अनंत है
5)सुख – दुःख में कौन सा समास है?
i) कर्मधारय समास
ii)द्विगु समास
iii) द्वन्द समास
iv )कोई नहीं
उत्तर - iii) द्वन्द समास
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अपठित भाग को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए .
पूर्व चलने के बटोही ,
बाट की पहचान कर ले.
पुस्तकों में है नहीं छापी गयी इसकी कहानी ,
हाल इसका ज्ञात होता है न औरों की ज़बानी
अनगिनत राही गए इस राह से ,
उनका पता क्या
पर गए कुछ लोग इस पर छोड़ पैरों की निशानी ,
यह निशानी मूक होकर भी ,बहुत कुछ बोलती है
खोल इसका अर्थ पंथी ,पंथ का अनुमान कर ले
पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले.
है अनिश्चित किस जगह पर सरित ,गिरि ,गह्वर मिलेंगे ,
है अनिश्चित किस जगह पर बाग़ वन सुन्दर मिलेंगे ,
किस जगह यात्रा ख़त्म हो जाएगी ,यह भी अनिश्चित
है अनिश्चित कब सुमन ,कब कंटकों के शर मिलेंगें
कौन सहसा छूट जायेंगे , मिलेंगे कौन सहसा
पूर्व चलने के बटोही , बाट की पहचान कर ले.
रास्ते का एक काँटा ,पाँव का दिल चीर देता
रक्त की दो बूँद गिरती ,एक दुनिया डूब जाती
आँख में हो स्वर्ग लेकिन ,पाँव पृथ्वी पर टिके हों
कंटकों की इस अनोखी सीख का सम्मान कर ले
पूर्व चलने के बटोही , बाट की पहचान कर ले.
निम्नलिखित में से निर्देशानुसार विकल्प का चयन कीजिए –
(1) “खोल इसका अर्थ,पंथी,पंथ का अनुमान कर ले” का क्या आशय है?
i)चलते समय रास्ते को समझना
ii) प्रेरणा ग्रहण कर लक्ष्य का निश्चय करना
(iii)उपर्युक्त दोनों
iv) कोई नहीं
उत्तर – ii) प्रेरणा ग्रहण कर लक्ष्य का निश्चय करना
(2) 'मूक' शब्द का विलोम है-
i) बहरा
ii) वाचाल
iii)मौन
iv) कोई नहीं
उत्तर – ii) वाचाल
(3) – “खोल इसका अर्थ पंथी ,पंथ का अनुमान कर ले
पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले .”
पंक्ति में कौन सा अलंकार है ?
i) यमक अलंकार
ii) रूपक अलंकार
iii) अनुप्रास अलंकार
iv) कोई नहीं
उत्तर – अनुप्रास अलंकार
(4) गह्वर शब्द का पर्यायवाची नहीं है -
i) कन्दरा
ii) गुफा
iii) सराय
iv) दुर्भेद्य
उत्तर – iii) सराय
(5) 'शर' शब्द का अर्थ है?
i) सुई
ii) बाण
iii) सिंह
iv) शैय्या
उत्तर -ii) बाण
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अपठित भाग को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए .
बाधाएँ आती हैं आएँ
घिरें प्रलय की घोर घटाएँ,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ,
निज हाथों में हँसते-हँसते,
आग लगाकर जलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।
हास्य-रूदन में, तूफ़ानों में,
अगर असंख्यक बलिदानों में,
उद्यानों में, वीरानों में,
अपमानों में, सम्मानों में,
उन्नत मस्तक, उभरा सीना,
पीड़ाओं में पलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।
उजियारे में, अंधकार में,
कल कहार में, बीच धार में,
घोर घृणा में, पूत प्यार में,
क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,
जीवन के शत-शत आकर्षक,
अरमानों को ढलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।
प्रश्न 1. कवि विपदाओं में मनुष्य से क्या आग्रह करता है?
(i) अरमानों को ढलना होगा।
(ii) ज्वाला में जलना होगा।
(iii) कदम मिलाकर चलना होगा।
(iv) बीच धार में पड़ना होगा।
प्रश्न 2. सिर पर ज्वालाओं के जलने पर क्या करना होगा?
(i) घावों को भरना होगा।
(ii) पीड़ाओं में पलना होगा।
(iii) आग जलाकर चलना होगा।
(iv) तम को शोभित करना होगा।
प्रश्न 3. हास्य-रुदन का अर्थ क्या होगा?
(i) नाचना और गाना
(ii) हँसना और रूठना
(iii) हँसना और रोना
(iv) हँसी और खुशी
प्रश्न 4. कवि ने काव्यांश में किस प्रकार की पराजय और विजय का वर्णन किया है?
(i) वीरों की जीत और कायरों की हार का।
(ii) छोटी जीत और बड़ी हार का।
(iii) घृणा से हार और प्रेम से जीत का।
(iv) आत्मसम्मान की जीत का।
प्रश्न 5. उपर्युक्त कविता में निहित सन्देश है:-
(i) हमें हमेशा जोश में काम करना चाहिए।
(ii) उजाले और रोशनी में खुश रहना चाहिए।
(iii) एक दूसरे से सहयोग करना चाहिए।
(iv) बाग-बगीचों में सन्देश देने चाहिए।
उत्तरमाला
प्रश्न 1. (iii) कदम मिलाकर चलना होगा
प्रश्न 2. (iii) आग जलाकर जलना होगा
प्रश्न 3. (iii) हँसना और रोना
प्रश्न 4. (ii) छोटी जीत और बड़ी हार का
प्रश्न 5. (iii) एक दूसरे का सहयोग करना चाहिए
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अपठित भाग को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए .
कुछ भी बन, बस कायर मत बन
ठोकर मार, पटक मत माथा
तेरी राह रोकते पाहन
कुछ भी बन, बस कायर मत बन
युद्ध देही कहे जब पामर,
दे न दुहाई पीठ फेर कर
या तो जीत प्रीति के बल पर
या तेरा पथ चूमे तस्कर
प्रति हिंसा भी दुर्बलता है
पर कायरता अधिक अपावन
कुछ भी बन, बस कायर मत बन
ले-देकर जीना, क्या जीना?
कब तक गम के आँसू पीना?
मानवता ने तुझको सींचा
बहा युगों तक खून-पसीना।
कुछ न करेगा? किया करेगा
रे मनुष्य! बस कातर क्रंदन?
कुछ भी बन, बस कायर मत बन
तेरी रक्षा का ना मोल है
पर तेरा मानव अमोल है
यह मिटता है वह बनता है
यही सत्य की सही मोल है।
अर्पण कर सर्वस्व मनुज को,
कर न दुष्ट को आत्म-समर्पण
कुछ भी बन, बस कायर मत बन।
प्रश्न 1. कवि क्या सन्देश देना चाहता है?
(i) आत्म समर्पण का
(ii) कायर न बनने का
(iii) हिंसक बनने का
(iv) पथ प्रदर्शक बनने का
प्रश्न 2. कवि अपना सबकुछ किसे अर्पण करने को कहता है?
(i) भगवान को
(ii) धरती को
(iii) मानव को
(iv) अम्बर को
प्रश्न 3. पाहन शब्द के पर्यायवाची क्या होंगे?
(i) बादल, मेघ
(ii) पत्थर, पाषाण
(iii) मेहमान, अतिथि
(iv) नीर, पुष्प
प्रश्न 4. कवि काव्यांश में युद्ध में दुष्ट जब चुनौती दे तब क्या नहीं करने का आह्वान
करता है?
(i) पीठ ना दिखाने का
(ii) मैदान छोड़ने का
(iii) स्वालम्बी बनने का
(iv) महिमागान का
प्रश्न 5. 'कातर क्रंदन' का क्या अर्थ है?
(i) कर्ण-अर्जुन बनना
(ii) प्रतापी बनना
(iii) ज़ोर-ज़ोर से रोना या विलाप करना।
(iv) खूब ख़ुशी मनाना
उत्तरमाला
प्रश्न 1. (ii) कायर न बनने का
प्रश्न 2. (iii) मानव को
प्रश्न 3. (ii) पत्थर, पाषाण
प्रश्न 4. (i) पीठ ना दिखाने का
प्रश्न 5. (iii) जोर-जोर से रोना या विलाप करना
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अपठित भाग को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए .
गरमी की दोपहरी में
तपे हुए नभ के नीचे।
काली सड़कें तारकोल की
अंगारे-सी जली पड़ी थीं।
छाँह जली थी पेड़ों की भी
पत्ते झुलस गए थे।
नंगे-नंगे दीर्घकाय, कंकालों-से वृक्ष खड़े थे
हों अकाल के ज्यों अवतार।
एक अकेला ताँगा था दूरी पर
कोचवान की काली-सी चाबुक के बल पर
वो बढ़ता था।
घूम-घूम जो बलखाती थी सर्प सरीखी।
बेदर्दी से पड़ती थी दुबले घोड़े की गर्म
पीठ पर।
भाग रहा वह तारकोल की जली
अँगीठी के ऊपर से।
कभी एक ग्रामीण धरे कन्धे पर लाठी
सुख-दुख की मोटी-सी गठरी
लिये पीठ पर
भारी जूते फटे हुए
जिन में से थी झाँक रही गाँवों की आत्मा
ज़िन्दा रहने के कठिन जतन में
पाँव बढ़ाये आगे जाता।
प्रश्न 1. काव्यांश में वृक्षों का किस तरह चित्रण किया गया है?
(क) पेड़ छोटे-छोटे और जले हुए हैं
(ख) पेड़ उम्रदराज और जले हुए हैं
(ग) लम्बे-लम्बे और मग्न से हैं
(घ) पेड़ हरे-भरे और सुंदर हैं
प्रश्न 2. अपने कन्धे पर सुख-दुःख की गठरी कौन लिए जा रहा है?
(क) खेत का किसान
(ख) सेना का जवान
(ग) गाँव का व्यक्ति
(ङ) गाड़ी चालक
प्रश्न 3. काव्यांश में 'कोचवान' शब्द से क्या अभिप्राय है?
(क) खेल का कोच
(ख) रेल का कोच
(ग) ग्रामीण व्यक्ति
(घ) तांगा चालक
प्रश्न 4. 'जिन्दा रहने के कठिन जतन में' पंक्ति में 'जतन' का क्या आशय है?
(क) कठिन रास्ता
(ख) कठिन प्रयास
(ग) कठिन प्रश्न
(घ) कठिन योग
प्रश्न 5. बेदर्दी शब्द में प्रयुक्त उपसर्ग 'बे' किस प्रकार का उपसर्ग है?
(क) तत्सम
(ख) तद्भव
(ग) आगत
(घ) देशज
उत्तरमाला
प्रश्न 1. (ख) पेड़ उम्रदराज और जले हुए हैं।
प्रश्न 2. (ग) गाँव का व्यक्ति
प्रश्न 3. (घ) तांगा चालक
प्रश्न 4. (ख) कठिन प्रयास
प्रश्न 5. (ग) आगत
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अपठित भाग को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए .
कुछ पता नहीं, हम कौन बीज बोते हैं,
है कौन स्वप्न, हम जिसे यहाँ ढोते हैं।
पर, हाँ, वसुधा दानी है, नहीं कृपण है,
देता मनुष्य जब भी उसको जल-कण है।
यह दान वृथा वह कभी नहीं लेती है,
बदले में कोई दूब हमें देती है।
पर, हमने तो सींचा है उसे लहू से,
चढ़ती उमंग की कलियों की खुशबू से।
क्या यह अपूर्व बलिदान पचा वह लेगी ?
उद्दाम राष्ट्र क्या हमें नहीं वह देगी ?
ना, यह अकाण्ड दुष्काण्ड नहीं होने का,
यह जगा देश अब और नहीं सोने का।
जब तक भीतर की गाँस नहीं कढ़ती है,
श्री नहीं पुन भारत-मुख पर चढ़ती है,
कैसे स्वदेश की रूह चैन पायेगी ?
किस नर-नारी को भला नींद आयेगी ?
कुछ सोच रहा है समय राह में थम कर,
है ठहर गया सहसा इतिहास सहम कर।
सदियों में शिव का अचल ध्यान डोला है,
तोपों के भीतर से भविष्य बोला है ।
प्रश्न 1. धरती हमें क्या देती है?
(i) धरती हमें पोषक तत्व प्रदान करती है
(ii) धरती हमें मोती-सोना देती है
(iii) धरती हमें हवा देती है।
(iv) धरती हमें बल देती है
प्रश्न 2. 'हम कौन बीज बोते हैं' पंक्ति का क्या आशय है?
(i) आराम करना
(ii) फसल उगाना
(iii) पाप कमाना
(iv) कर्म करना
प्रश्न 3. वसुधा शब्द के सही पर्यायवाची शब्द पहचानो-
(i) अम्बर, धरा
(ii) धरती, क्षोभ
(iii) उर्वी, अचला
(iv) भू, नभ
प्रश्न 4. हमने धरती को कैसे सींचा है?
(i) खून से
(ii) निर्मल जल से
(iii) प्रेम से
(iv) वर्षा से
प्रश्न 5. भारत की जय कब तक नहीं हो सकती?
(i) जब तक हम प्राण न्योछावर नहीं करते
(ii) जब तक द्वेष भावना खत्म नहीं होती
(iii) जब तक हम स्वमहिमा का गान नहीं करते
(iv) जब तक हम विद्रोही नहीं हो जाते
उत्तरमाला
प्रश्न 1. (i) धरती हमें पोषक तत्व प्रदान करती है।
प्रश्न 2. (iv) कर्म करना
प्रश्न 3. (iii) उर्वी, अचला
प्रश्न 4. (i) खून से
प्रश्न 5. (ii) जब तक द्वेष भावना खत्म नहीं होती।
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अपठित भाग को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए .
मैंने गढ़े
ताकत और उत्साह से
भरे-भरे
कुछ शब्द
जिन्हें छीन लिया मठाधीशों ने
दे दिया उन्हें धर्म का झंडा
उन्मादी हो गए
मेरे शब्द
तलवार लेकर
बोऊँगी उन्हें मिटाने लगे
अपना ही वजूद
फिर रचे मैंने
इंसानियत से लबरेज
ढेर सारे शब्द
नहीं छीन पाएगा उन्हें
छीनने की कोशिश में भी
गिर ही जाएँगे कुछ दाने
और समय आने पर
वे फिर उगेंगे
अबकी उन्हें अगवा कर लिया
सफ़ेदपोश लुटेरों ने
और दबा दिया उन्हें
कुर्सी के पाये तले
असहनीय दर्द से चीख रहे हैं
मेरे शब्द और वे
कर रहे हैं अट्टहास
अब मैं गर्दैगी
निराई गुड़ाई और
खाद-पानी से
लहलहा उठेगी फ़सल
तब कोई मठाधीश
कोई लुटेरा
एक बार
दो बार
बार-बार लगातार उगेंगे
मेरे शब्द।।
(क) ‘मठाधीशों’ ने उत्साह भरे शब्दों को क्यों छीना होगा?
(i) ताकि उन्हें धर्म का झंडा दे सकें।
(ii) ताकि उन्हें पूजा के लिए प्रेरित कर सकें।
(iii) ताकि उन्हें उन्मादी बना सकें।
(iv) ताकि उन्हें उत्साहित कर सकें।
(ख) 'कुर्सी के पाये तले दर्द से चीख रहे हैं' आशय है -
(i) सत्ता ने इंसानियत के शब्दों को कैद कर लिया, वे मुक्ति चाहते हैं।
(ii) सत्ता उन्हें अपने हितों के लिए इस्तेमाल करती है।
(iii) सत्ता ने उनका पैर कुचल दिया है।
(iv) सत्ता ने अपने नीचे उन्हें दबा दिया इसलिए कराह रहे हैं।
(ग) कवयित्री किसके शब्दों को बो रही है?
(i) इन्सानियत और उम्मीद के
(ii) धर्म और धोखे के
(iii) आपसी सौहार्द्र के
(iv) लोभ और लालच के
(घ) ‘और वे कर रहे हैं अट्टहास’ में ‘वे’ शब्द किनके लिए प्रयुक्त हुआ है?
(i) सत्ता पर काबिज लोगों के लिए
(ii) सफ़ेदपोश लुटेरों के लिए
(iii) मठाधीशों के लिए
(iv) गरीब और पीड़ित लोगों के लिए
(ङ) ‘सफेदपोश’ शब्द किसके लिए प्रयोग किया गया है?
(i)शिक्षक
(ii) पुलिस
(iii) नेता
(iv) नर्स
उत्तर माला
क- I ताकि उन्हें धर्म का झंडा दे सकें
ख- iv सत्ता ने अपने नीचे उन्हें दबा दिया इसलिए कराह रहे हैं
ग- I इन्सानियत और उम्मीद के
घ- II सफ़ेदपोश लुटेरों के लिए
ङ - iii मठाधीशों के लिए
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अपठित भाग को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए .
पावस ऋतु थी पर्वत प्रदेश,पल पल परिवर्तित प्रकृति वेश।मेखलाकार पर्वत अपारअपने सहस्र दृग सुमन फाड़,अवलोक रही है बार बारनीचे जल में निज महाकार,जिसके चरणों में पड़ा तालदर्पण सा फैला है विशालगिरि के गौरव गाकर झर-झरेमद में नस-नस उत्तेजित करमोती की लड़ियों से सुंदरझरते हैं झाग भरे निर्झर।
प्रश्न:
(क) प्रस्तुत काव्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) पर्वत का आकार कैसा है? वह अपने सहस्र नेत्रों से क्या देख रहा है?
(ग) पर्वत के चरणों में क्या पड़ा है? किसके समान लग रहा है?
(घ) रेखांकित पंक्तियों की भावार्थ लिखिए।
उत्तर:
(क) काव्यांश का उचित शीर्षक-‘पर्वत-प्रदेश में वर्षा ऋतु ।
(ख) पर्वत का आकार मेखलाकार है। वह अपने हजार नेत्रों से नीचे फैले जल की परछाईं में अपने महान् आकार को देख रहा है।
(ग) पर्वत के चरणों में विशाल तालाब जल से भरा हुआ लहरा रहा है, जो पर्वत से बहने वाले झरनों से ही बना है।
(घ) भावार्थ-कवि पहाड़ से बहने वाले निर्झरों का वर्णन करते हुए कहता है कि झरने अपने झागों से भरे जल के साथ पहाड़ से नीचे झरते हैं तो ऐसा लगता है मानो वे मोतियों की लड़ियों से बनी सुंदर मालाएँ हों ।
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अपठित भाग को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए .
और करता शब्दगुण अम्बर वहन सन्देश।
प्रकृति पर सर्वत्र है विजयी पुरुष आसीन।
नव्य नर की मुष्टि में विकराल,
हैं बँधे नर के करों में वारि, विद्युत, भाप,
हैं सिमटते जा रहे दिक्काल।
हुक्म पर चढ़ता उतरता है पवन का ताप
यह प्रगति निस्सीम ! नर का यह अपूर्व विकास।
है नहीं बाकी कहीं व्यवधान,
चरण तल भूगोल ! मुट्ठी में निखिल आकाश।
लाँघ सकता नर सरित्, गिरि, सिन्धु एक समान।
किन्तु है बढ़ता गया मस्तिष्क ही नि:शेष,
शीश पर आदेश कर अवधार्य
छूटकर पीछे गया है रह हृदय का देश;
प्रकृति के सब तत्व करते हैं मनुज के कार्य,
नर मनाता नित्य नूतन बुद्धि का त्यौहार,
मानते हैं हुक्म मानव का महा वरुणेश,
प्राण में करते दु:खी हो देवता चीत्कार।
(क) प्रस्तुत काव्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) कवि ने आज की दुनिया को विचित्र व नवीन क्यों कहा है?
(ग) छूट कर पीछे गया है रह हृदय को देश’-को भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
(घ) ‘हृदय का देश’ में कौन-सा अलंकार है? नाम तथा लक्षण लिखिए।
उत्तर:
(क) काव्यांश का उचित शीर्षक
-विज्ञान और मनुष्य।
(ख) क्योंकि आज मनुष्य प्रकृति पर विजय प्राप्त कर चुका है। जल, बिजली और भाप की शक्ति पर उसका अधिकार हो चुका है। वह अपनी इच्छा से (बिजली के यंत्रों द्वारा) हवा को गरम या ठंडा कर सकता है।
(ग) विज्ञान के कारण मनुष्य ने बुद्धि के क्षेत्र में असीम प्रगति की है। इस बौद्धिक दौड़ में हृदय या मन का संसार कहीं पीछे छूट गया है अर्थात् मनुष्य के प्रति मनुष्य की सहानुभूति, सद्भाव तथा प्रेम आज उपेक्षित हो गए हैं।
(घ) ‘हृदय का देश’ में रूपक अलंकार है। लक्षण-जहाँ कवि उपमेय में उपमान का भेद रहित आरोप करता है, वहाँ रूपक अलंकार होता है। यहाँ कवि ने हृदय को दूर पीछे छूटा हुआ देश मान लिया है। अत: रूपक अलंकार है।
जय हिन्द:जय हिंदी
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