
विराम चिह्न
Punctuation Mark in Hindi
विराम चिह्न | Viram Chinh | Panctuation Mark | पंक्चुएशन मार्क
अल्प विराम
(Comma)
(,)
अर्द्ध विराम
(Semicolon)
( ; )
पूर्ण विराम
(Full-Stop)
( । )
उप विराम
(Colon)
( : )
विस्मयादिबोधक चिह्न
(Sign of Interjection)
( ! )
प्रश्नवाचक चिह्न
(Question mark)
( ? )
कोष्ठक
(Bracket)
( ( ) )
योजक चिह्न
(Hyphen)
( – )
अवतरण चिह्न या उद्धरणचिह्न
(Inverted Comma)
(”… ”)
लाघव चिह्न
(Abbreviation sign)
( o )
आदेश चिह्न
(Sign of following)
(:-)
रेखांकन चिह्न
(Underline)
(_)
लोप चिह्न
(Mark of Omission)
(…)
विराम चिह्न की परिभाषा
अलग-अलग तरह के भावों और विचारों को बारीकी से स्पष्ट करने के लिए जिन चिह्नों का प्रयोग वाक्य के प्रारंभ में, बीच में या अंत में किया जाता है, उन्हें ‘विराम चिह्न’ कहते है।
अथवा
विराम का अर्थ है – ‘रुकना’ या ‘ठहरना’ । वाक्य को लिखते अथवा बोलते समय बीच में कहीं थोड़ा-बहुत रुकना पड़ता है जिससे भाषा स्पष्ट, अर्थवान एवं भावपूर्ण हो जाती है। लिखित भाषा में इस ठहराव को दिखाने के लिए कुछ विशेष प्रकार के चिह्नों का प्रयोग करते हैं। इन्हें ही विराम-चिह्न कहा जाता है।
अथवा
अपने भावों का अर्थ स्पष्ट करने के लिए या एक विचार और उसके प्रसंगों को प्रकट करने के लिए हम रुकते हैं। इसी को विराम कहते है। इन्हीं विरामों को प्रकट करने के लिए हम जिन चिह्नों का प्रयोग करते है, उन्हें ‘विराम चिह्न’ कहते है।
यदि विराम-चिह्न का प्रयोग न किया जाए तो वाक्य का अर्थ स्पष्ट नहीं हो पाता है . यह बात निम्न उदाहरण से स्पष्ट हो जाती है -
जैसे-
- रोको मत जाने दो।
अर्थ स्पष्ट नहीं है
- रोको, मत जाने दो।
अर्थ स्पष्ट है ‘रोको’ के बाद अल्पविराम लगाने से रोकने के लिए कहा गया है
- रोको मत, जाने दो।
अर्थ स्पष्ट है ‘रोको मत’ के बाद अल्पविराम लगाने से किसी को न रोक कर जाने के लिए कहा गया हैं।
उपर्युक्त उदाहरणों में पहले वाक्य में अर्थ स्पष्ट नहीं होता, जबकि दूसरे और तीसरे वाक्य में अर्थ तो स्पष्ट हो जाता है लेकिन एक-दूसरे का उल्टा अर्थ मिलता है जबकि तीनो वाक्यों में समान शब्द प्रयोग किए गए हैं।इस प्रकार विराम-चिह्न अर्थ स्पष्टीकरण को सुविधाजनक बनाते हैं .
भाषा के उद्येश्य को सफल बनाने के लिए विराम-चिह्नों के विषय में पूर्ण जानकारी होना आवश्यक है।
विराम चिह्न की आवश्यकता
‘विराम’ का शाब्दिक अर्थ होता है, ठहराव। जीवन की दौड़ में मनुष्य को कहीं-न-कहीं रुकना या ठहरना भी पड़ता है। विराम की आवश्यकता हर व्यक्ति को होती है। जब हम कोई कार्य करते-करते थक जाते है, तब मन आराम करना चाहता है। यह आराम विराम का ही दूसरा नाम है। पहले विराम होता है, फिर आराम। स्पष्ट है कि साधारण जीवन में भी विराम की आवश्यकता है।
लेखन मनुष्य के जीवन की एक विशेष मानसिक अवस्था है। लिखते समय लेखक यों ही नहीं दौड़ता, बल्कि कहीं थोड़ी देर के लिए रुकता है, ठहरता है और पूरा (पूर्ण) विराम लेता है। ऐसा इसलिए होता है कि हमारी मानसिक दशा की गति सदा एक-जैसी नहीं होती। यही कारण है कि लेखनकार्य में भी विरामचिह्नों का प्रयोग करना पड़ता है।
यदि इन चिन्हों का उपयोग न किया जाय, तो भाव अथवा विचार की स्पष्टता में बाधा पड़ेगी और वाक्य एक-दूसरे से उलझ जायेंगे और तब पाठक को व्यर्थ ही माथापच्ची करनी पड़ेगी।
पाठक के भाव-बोध को सरल और सुबोध बनाने के लिए विरामचिन्हों का प्रयोग होता है। सारांश यह कि वाक्य के सुन्दर गठन और भावाभिव्यक्ति की स्पष्टता के लिए इन विरामचिह्नों की आवश्यकता और उपयोगिता मानी गयी है।
हिन्दी में प्रयुक्त विराम चिह्न- हिन्दी में निम्नलिखित विरामचिह्नों का प्रयोग अधिक होता है-
हिंदी में प्रचलित प्रमुख विराम चिह्न निम्नलिखित हैं -
अल्प विराम चिह्न (Comma) ( , )
alp viram chinh in hindi
अल्प विराम
(Comma)
(,)
वाक्य में जहाँ थोड़ा रुकना हो या अधिक वस्तुओं, व्यक्तियों आदि को अलग करना हो वहाँ अल्प विराम ( , ) चिह्न का प्रयोग किया जाता है।
अल्प का अर्थ होता है- थोड़ा। अल्पविराम का अर्थ हुआ- थोड़ा विश्राम अथवा थोड़ा रुकना।
a. बातचीत करते समय अथवा लिखते समय जब हम बहुत-सी वस्तुओं का वर्णन एक साथ करते हैं, तो उनके बीच-बीच में अल्पविराम का प्रयोग करते है;
जैसे- भारत में गेहूँ, चना, बाजरा, मक्का आदि बहुत-सी फसलें उगाई जाती हैं।
b. जब हम संवाद-लेखन करते हैं तब भी अल्पविराम-चिह्न का प्रयोग किया जाता है;
जैसे- नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने कहा, ”तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा।”
(c) संवाद के दौरान ‘हाँ’ अथवा ‘नहीं’ के पश्चात भी इस चिह्न का प्रयोग होता है; जैसे-
आरव : मोहन , क्या तुम कल जा रहे हो ?
मोहन : नहीं, मैं परसों जा रहा हूँ।हिंदी में इस विरामचिह्न का प्रयोग सबसे अधिक होता है। इसके प्रयोग की अनेक स्थितियाँ हैं।
इसके कुछ मुख्य नियम इस प्रकार हैं-
(i) वाक्य में जब दो से अधिक समान पदों और वाक्यों में संयोजक अव्यय ‘और’ आये, वहाँ अल्पविराम का प्रयोग होता है। जैसे-
पदों में- राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न राजमहल में पधारे।
वाक्यों में- वह जो रोज आता है, काम करता है और चला जाता है।
(ii) जहाँ शब्दों को दो या तीन बार दुहराया जाय, वहाँ अल्पविराम का प्रयोग होता है।
जैसे- वह दूर से, बहुत दूर से आ रहा है।
सुनो, सुनो, वह क्या कह रही है।
नहीं, नहीं, ऐसा कभी नहीं हो सकता।
(iii) जहाँ किसी व्यक्ति को संबोधित किया जाय, वहाँ अल्पविराम का चिह्न लगता है।
जैसे- भाइयो, समय आ गया है, सावधान हो जाएँ ।
प्रिय राजकुमार , मैं आपका आभारी हूँ।
आशीष , कल तुम कहाँ गये थे ?
बच्चियो, आप हमारे देश की आशाएँ है।
(iv)जिस वाक्य में ‘वह’, ‘तो’, ‘या’, ‘अब’, इत्यादि लुप्त हों, वहाँ अल्पविराम का प्रयोग होता है।
जैसे- मैं जो कहता हूँ, कान लगाकर सुनो। (‘वह’ लुप्त है।)
वह कब लौटेगा, कह नहीं सकता। (‘यह’ लुप्त है। )
वह जहाँ जाता है, बैठ जाता है। (‘वहाँ’ लुप्त है। )
कहना था सो कह दिया, तुम जानो। (‘अब’ लुप्त है।)
(v) यदि वाक्य में प्रयुक्त किसी व्यक्ति या वस्तु की विशिष्टता किसी सम्बन्धवाचक सर्वनाम के माध्यम से बतानी हो, तो वहाँ अल्पविराम का प्रयोग निम्रलिखित रीति से किया जा सकता है-
मेरा भाई, जो एक इंजीनियर है, नीदरलैंड गया है.
दो यात्री, जो रेल-दुर्घटना में घायल हुए थे, अब अच्छे है।
यह कहानी, जो किसी किसान के जीवन से सम्बद्ध है, बड़ी मार्मिक है।
(vi) अँगरेजी में दो समान वैकल्पिक वस्तुओं तथा स्थानों की ‘अथवा’, ‘या’ आदि से सम्बद्ध करने पर उनके पहले अल्पविराम लगाया जाता है।
जैसे- Constantinople, or Istanbul, was the former capital of Turkey.
Nitre, or saltpeter,is dug from the earth.
(vii) इसके ठीक विपरीत, दो भित्र वैकल्पिक वस्तुओं तथा स्थानों को ‘अथवा’, ‘या’ आदि से जोड़ने की स्थिति में ‘अथवा’, ‘या’ आदि के पहले अल्पविराम नहीं लगाया जाता है।
जैसे- I should like to live in Devon or Cornwall.
He came from Bhopal or Jabalpur.
(viii) हिन्दी में उक्त नियमों का पालन, खेद है, कड़ाई से नहीं होता। हिन्दी भाषा में सामान्यतः ‘अथवा’, ‘या’ आदि के पहले अल्पविराम का चिह्न नहीं लगता।
जैसे – पाटलिपुत्र या कुसुमपुर भारत की पुरानी राजधानी था।
कल मोहन अथवा हरि कलकत्ता जायेगा।
(ix) किसी व्यक्ति की उक्ति के पहले अल्पविराम का प्रयोग होता है।
जैसे- प्रकाश ने कहा, ”मैं कल पटना जाऊँगा। ”
इस वाक्य को इस प्रकार भी लिखा जा सकता है- ‘प्रकाश ने कहा कि मैं कल पटना जाऊँगा।’ कुछ लोग ‘कि’ के बाद अल्पविराम लगाते है, लेकिन ऐसा करना ठीक नहीं है। यथा-
प्रकाश ने कहा कि, मैं कल पटना जाऊँगा। ❌
ऐसा लिखना ठीक नहीं है। ‘कि’ स्वयं अल्पविराम है; अतः इसके बाद एक और अल्पविराम लगाना कोई अर्थ नहीं रखता। इसलिए उचित तो यह होगा कि चाहे तो हम लिखें-
‘प्रकाश ने कहा, ‘मैं कल पटना जाऊँगा’, ✅
अथवा लिखें-
‘प्रकाश ने कहा कि मैं कल पटना जाऊँगा’ । ✅
दोनों शुद्ध होंगे।
(x) बस, हाँ, नहीं, सचमुच, अतः, वस्तुतः, अच्छा-जैसे शब्दों से आरम्भ होनेवाले वाक्यों में इन शब्दों के बाद अल्पविराम लगता है।
जैसे- बस, हो गया, रहने दीजिए।
हाँ, तुम ऐसा कह सकते हो।
नहीं, ऐसा नहीं हो सकता।
सचमुच, तुम बड़े नादान हो।
अतः, तुम्हे ऐसा नहीं कहना चाहिए।
वस्तुतः, वह पागल है।
अच्छा, तो लीजिए, चलिए।
(xi) शब्द युग्मों में अलगाव दिखाने के लिए; जैसे- पाप और पुण्य, सच और झूठ, कल और आज। पत्र में संबोधन के बाद;
जैसे- पूज्य पिताजी, मान्यवर, महोदय आदि। ध्यान रहे कि पत्र के अंत में भवदीय, आज्ञाकारी आदि के बाद अल्पविराम नहीं लगता।
(xii) क्रियाविशेषण वाक्यांशों के बाद भी अल्पविराम आता है। जैसे- महात्मा बुद्ध ने, मायावी जगत के दुःख को देख कर, तप प्रारंभ किया।
(xiii) किन्तु, परन्तु, क्योंकि, इसलिए आदि समुच्च्यबोधक शब्दों से पूर्व भी अल्पविराम लगाया जाता है;
जैसे- आज मैं बहुत थका हूँ, इसलिए विश्राम करना चाहता हूँ।
मैंने बहुत परिश्रम किया, परंतु फल कुछ नहीं मिला।
(xiv) तारीख के साथ महीने का नाम लिखने के बाद तथा सन्, संवत् के पहले अल्पविराम का प्रयोग किया जाता है।
जैसे- 2 अक्टूबर, सन् 1869 ई० को गाँधीजी का जन्म हुआ।
(xv) उद्धरण से पूर्व ‘कि’ के बदले में अल्पविराम का प्रयोग किया जाता है। जैसे- नेता जी ने कहा, ”दिल्ली चलो”। (‘कि’ लगने पर- नेताजी ने कहा कि ”दिल्ली चलो” ।)
(xvi) अंको को लिखते समय भी अल्पविराम का प्रयोग किया जाता है। जैसे- 5, 6, 7, 8, 9, 10, 15, 20, 60, 70, 100 आदि।
अर्द्ध विराम चिह्न (Semi colon) ( ; )
ardh viram chinh in hindi
अर्द्ध विराम
(Semicolon)
( ; )
जहाँ अल्प विराम से कुछ अधिक ठहरते है तथा पूर्ण विराम से कम ठहरते है, वहाँ अर्द्ध विराम का चिह्न ( ; ) लगाया जाता है।
यदि एक वाक्य या वाक्यांश के साथ दूसरे वाक्य या वाक्यांश का संबंध बताना हो तो वहाँ अर्द्धविराम का प्रयोग होता है। इस प्रकार के वाक्यों में वाक्यांश दूसरे से अलग होते हुए भी दोनों का कुछ-न कुछ संबंध रहता है।
कुछ उदाहरण इस प्रकार है-
(a)आम तौर पर अर्द्धविराम दो उपवाक्यों को जोड़ता है जो थोड़े से असंबद्ध होते है एवं जिन्हें ‘और’ से नहीं जोड़ा जा सकता है। जैसे-
फलों में आम को सर्वश्रेष्ठ फल मन गया है; किन्तु श्रीनगर में और ही किस्म के फल विशेष रूप से पैदा होते है।
(b) दो या दो से अधिक उपाधियों के बीच अर्द्धविराम का प्रयोग होता है; जैसे- एम. ए.; बी, एड. । एम. ए.; पी. एच. डी. । एम. एस-सी.; डी. एस-सी. ।
वह एक धूर्त आदमी है; ऐसा उसके मित्र भी मानते हैं।
यह घड़ी ज्यादा दिनों तक नहीं चलेगी; यह बहुत सस्ती है।
हमारी चिट्ठी उड़ा ले गये; बोले तक नहीं।
काम बंद है; कारोबार ठप है; बेकारी फैली है; चारों ओर हाहाकार है।
कल रविवार है; छुट्टी का दिन है; आराम मिलेगा।
purna viram chinh in hindi
पूर्ण विराम
(Full-Stop)
( । )
जहाँ एक बात पूरी हो जाये या वाक्य समाप्त हो जाये वहाँ पूर्ण विराम ( । ) चिह्न लगाया जाता है।
जैसे- पढ़ रहा हूँ।
हिन्दी में पूर्ण विराम चिह्न का प्रयोग सबसे अधिक होता है। यह चिह्न हिन्दी का प्राचीनतम विराम चिह्न है।
(i)पूर्णविराम का अर्थ है, पूरी तरह रुकना या ठहरना। सामान्यतः जहाँ वाक्य की गतिअन्तिम रूप ले ले, विचार के तार एकदम टूट जायें, वहाँ पूर्णविराम का प्रयोग होता है।
जैसे-
यह हाथी है। वह लड़का है। मैं आदमी हूँ। तुम जा रहे हो।
इन वाक्यों में सभी एक-दूसरे से स्वतंत्र हैं। सबके विचार अपने में पूर्ण है। ऐसी स्थिति में प्रत्येक वाक्य के अंत में पूर्णविराम लगना चाहिए। संक्षेप में, प्रत्येक वाक्य की समाप्ति पर पूर्णविराम का प्रयोग होता है।
(ii) कभी कभी किसी व्यक्ति या वस्तु का सजीव वर्णन करते समय वाक्यांशों के अन्त में पूर्णविराम का प्रयोग होता है।
जैसे- साँवला रंग।
(a) गालों पर कश्मीरी सेब की झलक। नाक की सीध में ऊपर के अोठ पर मक्खी की तरह कुछ काले बाल। सिर के बाल न अधिक बड़े, न अधिक छोटे।
(b) कानों के पास बालों में कुछ सफेदी। पानीदार बड़ी-बड़ी आँखें। चौड़ा माथा। बाहर बन्द गले का लम्बा कोट।
यहाँ व्यक्ति की मुखमुद्रा का बड़ा ही सजीव चित्र कुछ चुने हुए शब्दों तथा वाक्यांशों में खींचा गया है। प्रत्येक वाक्यांश अपने में पूर्ण और स्वतंत्र है। ऐसी स्थिति में पूर्णविराम का प्रयोग उचित ही है।
(iii) इस चिह्न का प्रयोग प्रश्नवाचक और विस्मयादिबोधक वाक्यों को छोड़कर अन्य सभी प्रकार के वाक्यों के अंत में किया जाता है।
जैसे- राम स्कूल से आ रहा है। वह उसकी सौंदर्यता पर मुग्ध हो गया। वह छत से गिर गया।
(iv) दोहा, श्लोक, चौपाई आदि की पहली पंक्ति के अंत में एक पूर्ण विराम (।) तथा दूसरी पंक्ति के अंत में दो पूर्ण विराम (।।) लगाने की प्रथा है।
जैसे- रहिमन पानी राखिये बिन पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरे मोती, मानुस, चून।।
पूर्णविराम का दुष्प्रयोग- पूर्णविराम के प्रयोग में सावधानी न रखने के कारण निम्रलिखित उदाहरण में अल्पविराम लगाया गया है-
आप मुझे नहीं जानते, महीने में दो ही दिन व्यस्त रहा हूँ।
यहाँ ‘जानते’ के बाद अल्पविराम के स्थान पर पूर्णविराम का चिह्न लगाना चाहिए, क्योंकि यहाँ वाक्य पूरा हो गया है। दूसरा वाक्य पहले से बिलकुल स्वतंत्र है।
up viram chinh in hindi
उप विराम
(Colon)
( : )
जहाँ वाक्य पूरा नहीं होता, बल्कि किसी वस्तु अथवा विषय के बारे में बताया जाता है, वहाँ अपूर्णविराम-चिह्न का प्रयोग किया जाता है।
जैसे- कृष्ण के अनेक नाम है : मोहन, गोपाल, गिरिधर आदि।
vismayadibodhak Chinh in Hindi
विस्मयादिबोधक चिह्न
(Sign of Interjection)
( ! )
इसका प्रयोग हर्ष, विवाद, विस्मय, घृणा, आश्रर्य, करुणा, भय इत्यादि का बोध कराने के लिए इस चिह्न का प्रयोग किया जाता है।
जैसे- वाह ! आप यहाँ कैसे पधारे ?
हाय ! बेचारा व्यर्थ में मारा गया।
(i) आह्रादसूचक शब्दों, पदों और वाक्यों के अन्त में इसका प्रयोग होता है। जैसे- वाह! तुम्हारे क्या कहने!
(ii)अपने से बड़े को सादर सम्बोधित करने में इस चिह्न का प्रयोग होता है। जैसे- हे राम! तुम मेरा दुःख दूर करो। हे ईश्र्वर ! सबका कल्याण हो।
(iii) जहाँ अपने से छोटों के प्रति शुभकामनाएँ और सदभावनाएँ प्रकट की जाये। जैसे- भगवान तुम्हारा भला करे ! यशस्वी होअो !उसका पुत्र चिरंजीवी हो ! प्रिय किशोर, स्त्रेहाशीर्वाद !
(iv) जहाँ मन की हँसी-खुशी व्यक्त की जाय।
जैसे- कैसा निखरा रूप है ! तुम्हारी जीत होकर रही, शाबाश ! वाह ! वाह ! कितना अच्छा गीत गाया तुमने !
(विस्मयादिबोधक चिह्न में प्रश्रकर्ता उत्तर की अपेक्षा नहीं करता।
(v) संबोधनसूचक शब्द के बाद; जैसे-
मित्रो ! अभी मैं जो कहने जा रहा हूँ।
साथियो ! आज देश के लिए कुछ करने का समय आ गया है।(vi) अतिशयता को प्रकट करने के लिए कभी-कभी दो-तीन विस्मयादिबोधक चिह्नों का प्रयोग किया जाता है। जैसे-
अरे, वह मर गया ! शोक !! महाशोक !!!
prashnavachak chinh in hindi
प्रश्नवाचक चिह्न
(Question mark)
( ? )
बातचीत के दौरान जब किसी से कोई बात पूछी जाती है अथवा कोई प्रश्न पूछा जाता है, तब वाक्य के अंत में प्रश्नसूचक-चिह्न का प्रयोग किया जाता है।
जैसे- तुम कहाँ जा रहे हो ?
वहाँ क्या रखा है ?
इतनी सुबह-सुबह तुम कहाँ चल दिए ?
(i) जहाँ प्रश्र करने या पूछे जाने का बोध हो।
जैसे- क्या आप गया से आ रहे है ?
(ii) जहाँ स्थिति निश्रित न हो।
जैसे- आप शायद पटना के रहनेवाले है ?
(iii) जहाँ व्यंग्य किया जाय।
जैसे- भ्रष्टाचार इस युग का सबसे बड़ा शिष्टाचार है, है न ?
जहाँ घूसखोरी का बाजार गर्म है, वहाँ ईमानदारी कैसे टिक सकती है ?(iv) इस चिह्न का प्रयोग संदेह प्रकट करने के लिए भी उपयोग किया जाता है; जैसे- क्या कहा, वह निष्ठावान (?) है।
कोष्ठक चिह्न (Bracket) ( () )
koshthak chinh in hindi
कोष्ठक
(Bracket)
( ( ) )
वाक्य के बीच में आए शब्दों अथवा पदों का अर्थ स्पष्ट करने के लिए कोष्ठक का प्रयोग किया जाता है।
जैसे- उच्चारण (बोलना) जीभ एवं कण्ठ से होता है।
लता मंगेशकर भारत की कोकिला (मीठा गाने वाली) हैं।
सब कुछ जानते हुए भी तुम मूक (मौन/चुप) क्यों हो?
योजक चिह्न (Hyphen) ( – )
yojak chinh in hindi
योजक चिह्न
(Hyphen)
( – )
हिंदी में अल्पविराम के बाद योजक चिह्न का प्रयोग अधिक होता है। दो शब्दों में परस्पर संबंध स्पष्ट करने के लिए तथा उन्हें जोड़कर लिखने के लिए योजक-चिह्न का प्रयोग किया जाता है। इसे ‘विभाजक-चिह्न’ भी कहते है।
जैसे- जीवन में सुख-दुःख तो चलता ही रहता है।
रात-दिन परिश्रम करने पर ही सफलता मिलती है।
भाषाविज्ञान की दृष्टि से हिन्दी भाषा की प्रकृति विश्लेषणात्मक है, संस्कृत की तरह संश्लेषणात्मक नहीं। संस्कृत में योजक चिह्न का प्रयोग नहीं होता।
एक उदाहरण इस प्रकार है-
गायन्ति रमनामानि सततं ये जना भुवि।
नमस्तेभ्यो नमस्तेभ्यो नमस्तेभ्योपुनः पुनः।।
हिन्दी में इसका अनुवाद इस प्रकार होगा- पृथ्वी पर जो सदा राम-नाम गाते है, मै उन्हें बार-बार प्रणाम करता हूँ।
यहाँ संस्कृत में ‘रमनामानि’ लिखा गया और हिन्दी में ‘राम-नाम’, संस्कृत में ‘पुनः पुनः’ लिखा गया और हिन्दी में ‘बार-बार’ । अतः, संस्कृत और हिन्दी का अन्तर स्पष्ट है।
योजक चिह्न की आवश्यकता:
अब प्रश्र आता है कि योजक चिह्न लगाने की आवश्यकता क्यों होता है-
योजक चिह्न लगाने की आवश्यकता इसलिए होता है क्योंकि वाक्य में प्रयुक्त शब्द और उनके अर्थ को योजक चिह्न चमका देता है। यह किसी शब्द के उच्चारण अथवा वर्तनी को भी स्पष्ट करता है।
श्रीयुत रामचन्द्र वर्मा का ठीक ही कहना है कि यदि योजक चिह्न का ठीक-ठीक ध्यान न रखा जाय, तो अर्थ और उच्चारण से सम्बद्ध अनेक प्रकार के भ्रम हो सकते हैं।
इस सम्बन्ध में वर्माजी ने ‘भ्रम’ के कुछ उदाहरण इस प्रकार दिये हैं-
(क) ‘उपमाता’ का अर्थ ‘उपमा देनेवाला’ भी है और ‘सौतेली माँ’ भी। यदि लेखक को दूसरा अर्थ अभीष्ट है, तो ‘उप’ और ‘माता’ के बीच योजक चिह्न लगाना आवश्यक है, नहीं तो अर्थ स्पष्ट नहीं होगा और पाठक को व्यर्थ ही मुसीबत मोल लेनी होगी।
(ख) ‘भू-तत्व’ का अर्थ होगा- भूमि या पृथ्वी से सम्बद्ध तत्व ; पर यदि ‘भूतत्तव’ लिखा जाय, तो ‘भूत’ शब्द का भाववाचक संज्ञारूप ही माना और समझा जायेगा।
(ग) इसी तरह, ‘कुशासन’ का अर्थ ‘बुरा शासन’ भी होगा और ‘कुश से बना हुआ आसन’ भी। यदि पहला अर्थ अभीष्ट है, तो ‘कु’ के बाद योजक चिह्न लगाना आवश्यक है।
उक्त उदाहरणों से स्पष्ट है कि योजक चिह्न की अपनी उपयोगिता है और शब्दों के निर्माण में इसका बड़ा महत्त्व है। किन्तु, हिन्दी में इसके प्रयोग के नियम निर्धारित नहीं है, इसलिए हिन्दी के लेखक इस ओर पूरे स्वच्छन्द हैं।
योजक चिह्न का प्रयोग निम्नलिखित अवस्था में होता है-
(i) योजक चिह्न प्रायः दो शब्दों को जोड़ता है और दोनों को मिलाकर एक समस्त पद बनाता है, किंतु दोनों का स्वतंत्र रूप बना रहता है। इस संबंध में नियम यह है कि जिन शब्दों या पदों के दोनों खंड प्रधान हों और जिनमें और अनुक़्त या लुप्त हो, वहाँ योजक चिह्न का प्रयोग होता है।
जैसे- दाल-रोटी, दही-बड़ा, सीता-राम, फल-फूल ।
(ii) दो विपरीत अर्थवाले शब्दों के बीच योजक चिह्न लगता है।
जैसे- ऊपर-नीचे, राजा-रानी, रात-दिन, पाप-पुण्य, आकाश-पाताल, स्त्री-पुरुष, माता-पिता, स्वर्ग-नरक।
(iii) एक अर्थवाले सहचर शब्दों के बीच भी योजक चिह्न का व्यवहार होता है।
जैसे- दीन-दुःखी, हाट-बाजार, रुपया-पैसा, मान-मर्यादा, कपड़ा-लत्ता, हिसाब-किताब, भूत-प्रेत।
(iv) जब दो विशेषणों का प्रयोग संज्ञा के अर्थ में हो, वहाँ भी योजक चिह्न का व्यवहार होता है।
जैसे- अंधा-बहरा, भूखा-प्यासा, लूला-लँगड़ा।
(v) जब दो शब्दों में एक सार्थक और दूसरा निरर्थक हो तो वहाँ भी योजक चिह्न लगता है।
जैसे- परमात्मा-वरमात्मा, उलटा -पुलटा, अनाप-शनाप, खाना-वाना, पानी-वानी ।
(vi) जब एक ही संज्ञा दो बार लिखी जाय तो दोनों संज्ञाओं के बीच योजक चिह्न लगता है।
जैसे- नगर-नगर, गली-गली, घर-घर, चम्पा-चम्पा, वन-वन, बच्चा-बच्चा, रोम-रोम ।
(vii) निश्रित संख्यावाचक विशेषण के दो पद जब एक साथ प्रयोग में आयें तो दोनों के बीच योजक चिह्न लगेगा।
जैसे- एक-दो, दस-बारह, नहला-दहला, छह-पाँच, नौ-दो, दो-दो, चार-चार।
(viii) जब दो शुद्ध संयुक्त क्रियाएँ एक साथ प्रयुक्त हों,तब दोनों के बीच योजक चिह्न लगता है।
जैसे- पढ़ना-लिखना, उठना-बैठना, मिलना-जुलना, मारना-पीटना, खाना-पीना, आना-जाना, करना-धरना, दौड़ना-धूपना, मरना-जीना, कहना-सुनना, समझना-बुझना, उठना-गिरना, रहना-सहना, सोना-जगना।
(ix) क्रिया की मूलधातु के साथ आयी प्रेरणार्थक क्रियाओं के बीच भी योजक चिह्न का प्रयोग होता है।
जैसे- उड़ना-उड़ाना, चलना-चलाना, गिरना-गिराना, फैलना-फैलाना, पीना-पिलाना, ओढ़ना-उढ़ाना, सोना-सुलाना, सीखना-सिखाना, लेटना-लिटाना।
(x) दो प्रेरणार्थक क्रियाओं के बीच भी योजक चिह्न लगाया जाता है।
जैसे- डराना-डरवाना, भिंगाना-भिंगवाना, जिताना-जितवाना, चलाना-चलवाना, कटाना-कटवाना, कराना-करवाना।
(xi) परिमाणवाचक और रीतिवाचक क्रियाविशेषण में प्रयुक्त दो अव्ययों तथा ‘ही’, ‘से’, ‘का’, ‘न’, आदि के बीच योजक चिह्न का व्यवहार होता है।
जैसे- बहुत-बहुत, थोड़ा-थोड़ा, थोड़ा-बहुत, कम-कम, कम-बेश, धीरे-धीरे, जैसे-तैसे, आप-ही आप, बाहर-भीतर, आगे-पीछे, यहाँ-वहाँ, अभी-अभी, जहाँ-तहाँ, आप-से-आप, ज्यों-का-त्यों, कुछ-न-कुछ, ऐंसा-वैसा, जब-तब, तब-तब, किसी-न-किसी, साथ-साथ।
(xii ) गुणवाचक विशेषण में भी ‘सा’ जोड़कर योजक चिह्न लगाया जाता है।
जैसे- बड़ा-सा पेड़, बड़े-से-बड़े लोग, ठिंगना-सा आदमी।
(xiii ) जब किसी पद का विशेषण नहीं बनता, तब उस पद के साथ ‘सम्बन्धी’ पद जोड़कर दोनों के बीच योजक चिह्न लगाया जाता है।
जैसे- भाषा-सम्बन्धी चर्चा, पृथ्वी-सम्बन्धी तत्व, विद्यालय-सम्बन्धी बातें, सीता-सम्बन्धी वार्त्ता।
यहाँ ध्यान देने की बात है कि जिन शब्दों के विशेषणपद बन चुके हैं या बन सकते है, वैसे शब्दों के साथ ‘सम्बन्धी’ जोड़ना उचित नहीं। यहाँ ‘भाषा-सम्बन्धी’ के स्थान पर ‘भाषागत’ या ‘भाषिक’ या ‘भाषाई’ विशेषण लिखा जाना चाहिए।
इसी तरह, ‘पृथ्वी-सम्बन्धी’ के लिए ‘पार्थिव’ विशेषण लिखा जाना चाहिए। हाँ, ‘विद्यालय’ और ‘सीता’ के साथ ‘सम्बन्धी’ का प्रयोग किया जा सकता है, क्योंकि इन दो शब्दों के विशेषणरूप प्रचलित नहीं हैं। आशय यह कि सभी प्रकार के शब्दों के साथ ‘सम्बन्धी’ जोड़ना ठीक नहीं।
(xiv ) जब दो शब्दों के बीच सम्बन्धकारक के चिह्न- का, के और की- लुप्त या अनुक्त हों, तब दोनों के बीच योजक चिह्न लगाया जाता है। ऐसे शब्दों को हम सन्धि या समास के नियमों से अनुशासित नहीं कर सकते। इनके दोनों पद स्वतंत्र होते हैं।
जैसे-शब्द-सागर, लेखन-कला, शब्द-भेद, सन्त-मत, मानव-जीवन, मानव-शरीर, लीला-भूमि, कृष्ण-लीला, विचार-श्रृंखला, रावण-वध, राम-नाम, प्रकाश-स्तम्भ।
(xv ) लिखते समय यदि कोई शब्द पंक्ति के अन्त में पूरा न लिखा जा सके, तो उसके पहले आधे खण्ड को पंक्ति के अन्त में रखकर उसके बाद योजक चिह्न लगाया जाता है। ऐसी हालत में शब्द को ‘शब्दखण्ड’ या ‘सिलेबुल’ या पूरे ‘पद’ पर तोड़ना चाहिए। जिन शब्दों के योग में योजक चिह्न आवश्यक है, उन शब्दों को पंक्ति में तोड़ना हो तो शब्द के प्रथम अंश के बाद योजक चिह्न देकर दूसरी पंक्ति दूसरे अंश के पहले योजक देकर जारी करनी चाहिए।
(xvi)अनिश्रित संख्यावाचकविशेषण में जब ‘सा’, ‘से’ आदि जोड़े जायें, तब दोनों के बीच योजक चिह्न लगाया जाता है।
जैसे- बहुत-सी बातें, कम-से-कम, बहुत-से लोग, बहुत-सा रुपया, अधिक-से-अधिक, थोड़ा-सा काम।
( ”… ” )
avtaran chinh in hindi
अवतरण चिह्न या उद्धरणचिह्न
(Inverted Comma)
(”… ”)
किसी की कही हुई बात को उसी तरह प्रकट करने के लिए अवतरण चिह्न ( ”… ” ) का प्रयोग होता है।
जैसे- राम ने कहा, ”सत्य बोलना सबसे बड़ा धर्म है।”
उद्धरणचिह्न के दो रूप है- इकहरा ( ‘ ‘ ) और दुहरा ( ” ” )।
(i) जहाँ किसी पुस्तक से कोई वाक्य या अवतरण ज्यों-का-त्यों उद्धृत किया जाए, वहाँ दुहरे उद्धरण चिह्न का प्रयोग होता है और जहाँ कोई विशेष शब्द, पद, वाक्य-खण्ड इत्यादि उद्धृत किये जायें वहाँ इकहरे उद्धरण लगते हैं। जैसे-”जीवन विश्र्व की सम्पत्ति है। ”- जयशंकर प्रसाद
”कामायनी’ की कथा संक्षेप में लिखिए।
(ii) पुस्तक, समाचारपत्र, लेखक का उपनाम, लेख का शीर्षक इत्यादि उद्धृतकरते समय इकहरे उद्धरणचिह्न का प्रयोग होता है।
जैसे- ‘निराला’ पागल नहीं थे।
‘किशोर-भारती’ का प्रकाशन हर महीने होता है।
‘जुही की कली’ का सारांश अपनी भाषा में लिखो।
सिद्धराज ‘पागल’ एक अच्छे कवि हैं।
‘प्रदीप’ एक हिन्दी दैनिक पत्र है।
(iii) महत्त्वपूर्ण कथन, कहावत, सन्धि आदि को उद्धत करने में दुहरे उद्धरणचिह्न का प्रयोग होता है।
जैसे- भारतेन्दु ने कहा था- ”देश को राष्ट्रीय साहित्य चाहिए।”
laghav chinh in hindi
लाघव चिह्न
(Abbreviation sign)
( o )
किसी बड़े तथा प्रसिद्ध शब्द को संक्षेप में लिखने के लिए उस शब्द का पहला अक्षर लिखकर उसके आगे शून्य (०) लगा देते हैं। यह शून्य ही लाघव-चिह्न कहलाता है।
जैसे- पंडित का लाघव-चिह्न पंo,
डॉंक़्टर का लाघव-चिह् डॉंo
प्रोफेसर का लाघव-चिह्न प्रो०
aadesh chinh in hindi
आदेश चिह्न
(Sign of following)
(:-)
किसी विषय को क्रम से लिखना हो तो विषय-क्रम व्यक्त करने से पूर्व आदेश चिह्न ( :- ) का प्रयोग किया जाता है।
जैसे- वचन के दो भेद है :- 1. एकवचन, 2. बहुवचन।
rekhankan chinh in hindi
रेखांकन चिह्न
(Underline)
( _ )
वाक्य में महत्त्वपूर्ण शब्द, पद, वाक्य रेखांकित कर दिया जाता है।
जैसे- गोदान उपन्यास, प्रेमचंद द्वारा लिखित सर्वश्रेष्ठ कृति है।
lop chinh in hindi
लोप चिह्न
(Mark of Omission)
(…)
जब वाक्य या अनुच्छेद में कुछ अंश छोड़ कर लिखना हो तो लोप चिह्न का प्रयोग किया जाता है।
जैसे- गाँधीजी ने कहा, ”परीक्षा की घड़ी आ गई है …. हम करेंगे या मरेंगे” ।
जय हिन्द : जय हिंदी
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