- अपठित गद्यांश का बार-बार मौन वाचन करके उसे समझने का प्रयास करें.
- इसके पश्चात प्रश्नों को पढ़ें और गद्यांश में संभावित उत्तरों को रेखांकित करें.
- जिन प्रश्नों के उत्तर स्पष्ट न हों, उनके उत्तर जानने हेतु गद्यांश को पुन: ध्यान से पढ़ें.
- प्रश्नों के उत्तर अपनी भाषा में दें.
- उत्तर संक्षिप्त रखने का प्रयास करें .
- भाषा सरल और प्रभावशाली होनी चाहिए.
- प्रश्नों के उत्तर अपठित भाग पर ही आधारित होने चाहिए .
- यदि कोई प्रश्न शीर्षक देने के संबंध में हो तो ध्यान रखें कि शीर्षक मूल कथ्य से संबंधित होना चाहिए.
- शीर्षक छोटा, सटीक और सारगर्भित होना चाहिए .
- शीर्षक गद्यांश में दी गई सारी अभिव्यक्तियों का प्रतिनिधित्व करने वाला होना चाहिए.
- अंत में अपने उत्तरों को पुन: पढ़कर उनकी त्रुटियों ( गलतियों ) को अवश्य दूर करें.
पाठ बोधन किसे कहते है?
पाठ-बोधन की परिभाषा:
किसी दिए गए पाठ को पढ़कर अध्येता द्वारा प्रतिपाद्य विषय तथा गद्यांश में निहित मूल अर्थ को हृदयंगम करना ही पाठ-बोधन कहलाता है।
इस प्रकार का अभ्यास परीक्षार्थी की योग्यता को जाँचने का सर्वाधिक मापदण्ड होता है। इससे परीक्षार्थी की सही सूझ-बूझ तथा ग्रहण करने की सही क्षमता की परख की जा सकती हैं।
पाठ-बोधन संबंधी सामान्य बातें
(1) दिए गए पाठ का स्तर, विचार, भाषा, शैली आदि प्रत्येक दृष्टि से परीक्षा के स्तर के अनुरूप होता है।
(2) पाठ का स्वरूप साहित्यिक (अधिकांशतः), वैज्ञानिक, विवरणात्मक आदि होता है।
(3) दिया गया पाठ अपठित (अर्थात जो पढ़ा न गया हो) होता है।
(4) अपठित पाठ प्रायः गद्यांश होते हैं, किसी-किसी परीक्षा में पद्यांश भी।
(5) पाठ से ही संबंधित कुछ वस्तुनिष्ठ प्रश्न नीचे दिए गए होते है तथा प्रत्येक के चार/पाँच वैकल्पिक उत्तर सुझाए गए होते हैं। परीक्षार्थी को इनमें से सही उत्तर चुनकर उसे निर्देशानुसार चिन्हित करना होता है। यदि सही उत्तर चुनने में असमंजस है तो ऐसे विकल्प को चुनना होता है जो सही उत्तर के सबसे करीब लगता है .
(6) अपठित भाग की प्रकृति वस्तुनिष्ठ होती है अतः इसे शीघ्रता से हल करके समय बचाना चाहिए और अन्य HOTS ( Higher Order Thinking Skill ) प्रश्न को हल करने में समय लगाना चाहिए .
पाठ-बोधन पर आधारित प्रश्नों को हल करने की विधि:
(1) प्रथम चरण में पाठ को शीघ्रता से किन्तु ध्यानपूर्वक पढ़कर विषय-वस्तु तथा केन्द्रीय भाव को जानने का प्रयास करें।
(2) दूसरे चरण में पाठ को धीरे-धीरे एवं पूरे मनोयोग से नीचे दिए गए प्रश्नों को ध्यान में रखते हुए पढ़ें। संभावित उत्तरों को साथ-साथ रेखांकित करें।
(3) तीसरे चरण में प्रश्नों के सही उत्तरों को सावधानीपूर्वक चिह्नांकित करें।
नोट :
(i) उत्तर पाठ पर ही आधारित होने चाहिए। कल्पना पर आधारित उत्तर से बचना चाहिए।
(ii) उत्तर प्रसंगानुकूल एवं सीधा होना चाहिए।
(iii) प्रत्येक विकल्प पर विचार करके देखें कि उनमें से किसके अर्थ की संगति संबंधित वाक्य के साथ सही बैठती है।
पाठ-बोधन पर आधारित प्रश्न
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अपठित भाग को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए .
वैज्ञानिक प्रयोग की सफलता ने मनुष्य की बुद्धि का अपूर्व विकास कर दिया है। द्वितीय महायुद्ध में एटम बम की शक्ति ने कुछ क्षणों में ही जापान की अजेय शक्ति को पराजित कर दिया।
इस शक्ति की युद्धकालीन सफलता ने अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रान्स आदि सभी देशों को ऐसे शस्त्रास्त्रों के निर्माण की प्रेरणा दी की सभी भयंकर और सर्वविनाशकारी शस्त्र बनाने लगे। अब सेना को पराजित करने तथा शत्रु-देश पर पैदल सेना द्वारा आक्रमण करने के लिए शस्त्र-निर्माण के स्थान पर देश के विनाश करने की दिशा में शस्त्रास्त्र बनने लगे है। इन हथियारों का प्रयोग होने पर शत्रु-देशों की अधिकांश जनता और संपत्ति थोड़े समय में ही नष्ट की जा सकेगी।
चूँकि ऐसे शस्त्रास्त्र प्रायः सभी स्वतन्त्र देशों के संग्रहालयों में कुछ न कुछ आ गये है, अतः युद्ध की स्थिति में उनका प्रयोग भी अनिवार्य हो जायेगा।
अतः दुनिया का सर्वनाश या अधिकांश नाश तो अवश्य ही हो जायेगा। इसलिए निः शस्त्रीकरण की योजनाएँ बन रही हैं। शस्त्रास्त्रों के निर्माण में जो दिशा अपनाई गई, उसी के अनुसार आज इतने उत्रत शस्त्रास्त्र बन गये हैं, जिनके प्रयोग से व्यापक विनाश आसन्न दिखाई पड़ता है। अब भी परीक्षणों की रोकथाम तथा बने शस्त्रों के प्रयोग के रोकने के मार्ग खोजे जा रहे हैं। इन प्रयासों के मूल में एक भयंकर आतंक और विश्व विनाश का भय कार्य कर रहा है।
(1) इस गद्यांश का मूल कथ्य क्या है ?
(a) आतंक और सर्वनाश का भय
(b) विश्व में शस्त्रास्त्रों की होड़
(c) द्वितीय विश्वयुद्ध की विभीषिका
(d) निःशस्त्रीकरण और विश्व शान्ति
उत्तर- (d)
(2) भयंकर विनाशकारी आधुनिक शस्त्रास्त्रों के बनाने की प्रेरणा किसने दी ?
(a) अमेरिका ने
(b) अमेरिका की विजय ने
(c) जापान के विनाश ने
(d) बड़े देशों की पारस्परिक प्रतिस्पर्धा ने
उत्तर- (c)
(3) एटम बम की अपार शक्ति का प्रथम अनुभव कैसे हुआ ?
(a) जापान में हुई भयंकर विनाशलीला से
(b) जापान की अजेय शक्ति की पराजय से
(c) अमेरिका, रूस, ब्रिटेन और फ्रांस की प्रतिस्पर्धा से
(d) अमेरिका की विजय से
उत्तर- (b)
(4) बड़े-बड़े देश आधुनिक विनाशकारी शस्त्रास्त्र क्यों बना रहे हैं ?
(a) अपनी-अपनी सेनाओं में कमी करने के उद्देश्य से
(b) अपने संसाधनों का प्रयोग करने के उद्देश्य से
(c) अपना-अपना सामरिक व्यापार बढ़ाने के उद्देश्य से
(d) पारस्परिक भय के कारण
उत्तर- (c)
(5) आधुनिक युद्ध भयंकर व विनाशकारी होते हैं क्योंकि-
(a) दोनों देशों के शस्त्रास्त्र इन युद्धों में समाप्त हो जाते हैं।
(b) अधिकांश जनता और उसकी सम्पत्ति नष्ट हो जाती है।
(c) दोनों देशों में महामारी और भुखमरी फैल जाती है।
(d) दोनों देशों की सेनाएँ इन युद्धों में मारी जाती हैं।
उत्तर- (b)
(6) इस गद्यांश का सर्वाधिक उपर्युक्त शीर्षक है-
(a) निःशस्त्रीकरण
(b) आधुनिक शस्त्रास्त्रों का विनाशकारी प्रभाव
(c) एटम बम की शक्ति
(d) आतंक और विश्व-विनाश का भय
उत्तर- (a)
(7) ‘व्यापक विनाश आसन्न दिखाई पड़ता है।’ इस वाक्य में ‘आसन्न’ का अर्थ क्या है ?
(a) अवश्य घटित होने वाला
(b) कुछ समय बाद घटित होने वाला
(c) किसी क्षेत्र विशेष में घटित होने वाला
(d) कभी घटित नहीं होने वाला
उत्तर- (a)
(8) ‘निःशस्त्रीकरण’ से क्या तात्पर्य है ?
(a) आधुनिक शस्त्रास्त्रों का मुक्त व्यापार
(b) आधुनिक शस्त्रास्त्रों के परीक्षण, प्रयोग एवं भंडारण पर प्रतिबंध
(c) एटम की शक्ति का रचनात्मक कार्यों में प्रयोग
(d) एटम बम का जनता पर प्रयोग न करने का संकल्प
उत्तर- (b)
(9) निःशस्त्रीकरण की योजनाएँ क्यों बनाई जा रही हैं ?
(a) क्योंकि आतंक और विश्व के सर्वनाश का भय बढ़ता जा रहा है।
(b) क्योंकि बड़े देशों के संसाधन समाप्त होते जा रहे हैं।
(c) क्योंकि तृतीय विश्व युद्ध की अभी कोई सम्भावना नहीं है।
(d) क्योंकि ये योजनाएँ संयुक्त राष्ट्र संघ ने बनाई हैं।
उत्तर- (a)
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अपठित भाग को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए .
आज हम इस असमंजस में पड़े हैं और यह निश्चय नहीं कर पाए हैं कि हम किस ओर चलेंगे और हमारा ध्येय क्या है? स्वभावत: ऐसी अवस्था में हमारे पैर लड़खड़ाते हैं। हमारे विचार में भारत के लिए और सारे संसार के लिए सुख और शांति का एक ही रास्ता है और वह है-अहिंसा और आत्मवाद का। अपनी दुर्बलता के कारण हम उसे ग्रहण न कर सके, पर उसके सिद्धांतों को तो हमें स्वीकार कर ही लेना चाहिए और उसके प्रवर्तन का इंतजार करना चाहिए। यदि हम सिद्धांत ही न मानेंगे तो उसके प्रवर्तन की आशा कैसे की जा सकती है। जहाँ तक मैंने महात्मा गांधी के सिद्धांत को समझा है, वह इसी आत्मवाद और अहिंसा के, जिसे वे सत्य भी कहा करते थे, मानने वाले और प्रवर्तक थे। उसे ही कुछ लोग आज गांधीवाद का नाम भी दे रहे हैं।
यद्यपि महात्मा गांधी ने बार-बार यह कहा था-“वे किसी नए सिद्धांत या वाद के प्रवर्तक नहीं हैं और उन्होंने अपने जीवन में प्राचीन सिद्धांतों को अमल कर दिखाने का यत्न किया।” विचार कर देखा जाए, तो जितने सिद्धांत अन्य देशों, अन्य-अन्य कालों और स्थितियों में भिन्न-भिन्न नामों और धर्मों से प्रचलित हुए हैं,सभी अंतिम और मार्मिक अन्वेषण के बाद इसी तत्व अथवा सिद्धांत में समाविष्ट पाए जाते हैं। केवल भौतिकवाद इनसे अलग है।
हमें असमंजस की स्थिति से बाहर निकलकर निश्चय कर लेना है कि हम अहिंसावाद, आत्मवाद और गांधीवाद के अनुयायी और समर्थक हैं, न कि भौतिकवाद के। प्रेय और श्रेय में से हमें श्रेय को चुनना है। श्रेय ही हितकर है, भले ही वह कठिन और श्रमसाध्य हो। इसके विपरीत, प्रेय आरंभ में भले ही आकर्षक दिखाई दे, उसका अंतिम परिणाम अहितकर होता है।
प्रश्न –
(क) उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
(ख) आज का मनुष्य असमंजस में क्यों पड़ा है?
(ग) लेखक के अनुसार, विश्व में सुख-समृद्ध और शांति कैसे स्थापित हो सकती है?
(घ) अहिंसा के बारे में लेखक का विचार स्पष्ट कीजिए।
(ड.) आज गांधीवाद की संज्ञा किसे दी जा रही है?
(च) भौतिकवाद को छोड़कर अन्य सिद्धांतों और धर्मों में समानता है, कैसे? स्पष्ट कीजिए।
(छ) भौतिकवाद से क्या अभिप्राय है? मनुष्य को किसका समर्थक बनना चाहिए?
(ज) निर्देशानुसार उत्तर दीजिए—
उपसर्ग, मूल शब्द और प्रत्यय अलग-अलग कीजिए-
दुर्बलता।
विशेषण बनाइए-
सिद्धांत, निश्चय।
उत्तर –
(क) उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
उत्तर : शीर्षक-श्रेय या प्रेय।
(ख) आज का मनुष्य असमंजस में क्यों पड़ा है?
उत्तर :आज का मनुष्य असमंजस में इसलिए पड़ा हुआ है, क्योंकि वह दिग्भ्रमित है और यह निश्चय नहीं कर पा रहा है कि उसका जीवन-लक्ष्य क्या है और वह किस ओर चले। ऐसी स्थिति में मनुष्य के कदम उसका साथ नहीं दे पाते और वह कोई फैसला नहीं कर पाता।
(ग) लेखक के अनुसार, विश्व में सुख-समृद्ध और शांति कैसे स्थापित हो सकती है?
उत्तर : लेखक के अनुसार विश्व में सुख-शांति और समृद्ध के लिए आवश्यक है कि लोग हिंसा का रास्ता त्याग दें और मन-वचन तथा कर्म से अहिंसा का पालन करें और आत्मवाद का मार्ग अपनाकर औरों की सुख-शांति के लिए सोचें।
(घ) अहिंसा के बारे में लेखक का विचार स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : अहिंसा के बारे में लेखक का विचार है कि अपनी कमजोरी के कारण हम भारतीय अहिंसा को न अपना सके, पर हमें अहिंसा के सिद्धांतों को स्वीकार कर लेना चाहिए और उसके प्रवर्तन का इंतजार करना चाहिए। इसके लिए आवश्यक है कि हम उसके सिद्धांत को मानें।
(ड.) आज गांधीवाद की संज्ञा किसे दी जा रही है?
उत्तर : गांधी जी आत्मवाद और अहिंसा का पालन करते थे। इसी अहिंसा और आत्मवाद को वे मानते थे और उसका प्रवर्तन किया तथा इसे ही सत्य का नाम देते थे। उसी को आज गांधीवाद की संज्ञा दी जा रही है।
(च) भौतिकवाद को छोड़कर अन्य सिद्धांतों और धर्मों में समानता है, कैसे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : भौतिकवाद को छोड़कर अन्य सिद्धांतों और धर्मों में समानता है, क्योंकि वे दूसरे देशों में अलग-अलग समय और परिस्थितियों में भले ही अलग-अलग नामों और धर्मों से प्रचलित हुए हैं, उन सभी में अंतिम और मार्मिक खोज के बाद सत्य और अहिंसा समाविष्ट पाए गए हैं।
(छ) भौतिकवाद से क्या अभिप्राय है? मनुष्य को किसका समर्थक बनना चाहिए?
उत्तर : भौतिकवाद से अभिप्राय उस सिद्धांत से है, जिसमें सांसारिक सुख-साधनों की प्रधानता रहती है। इन्हीं सुख-साधनों का अधिकाधिक प्रयोग ही जीवन का लक्ष्य मान लिया जाता है। मनुष्य को अहिंसावाद, आत्मवाद और सत्य का समर्थक बनना चाहिए, भौतिकवाद का बिलकुल भी नहीं।
(ज) निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-
उत्तर :
शब्द -दुर्बलता
उपसर्ग -दुर्
मूल शब्द -बल
प्रत्यय -ता
शब्द विशेषण
सिद्धांत सैद्धांतिक
निश्चय निश्चित
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साहित्य की शाश्वतता का प्रश्न एक महत्वपूर्ण प्रश्न है। क्या साहित्य शाश्वत होता है? यदि हाँ तो किस मायने में? क्या कोई साहित्य अपने रचनाकाल के सौ वर्ष बीत जाने पर भी उतना ही प्रासंगिक रहता है, जितना वह अपनी रचना के समय था? अपने समय या युग का निर्माता साहित्यकार क्या सौ वर्ष बाद की परिस्थितियों का भी युग निर्माता हो सकता है? समय बदलता रहता है, परिस्थितियाँ और भावबोध बदलते रहते हैं. साहित्य बदलता है और इसी के समानान्तर पाठक की मानसिकता और अभिरुचि भी बदलती है। अतः कोई भी कविता अपने सामयिक परिवेश के बदल जाने पर ठीक वही उत्तेजना पैदा नहीं कर सकती जो उसने अपने रचनाकाल के दौरान की होगी। कहने का तात्पर्य यह है कि एक विशेष प्रकार के साहित्य के श्रेष्ठ अस्तित्व मात्र से वह साहित्य हर युग के लिए उतना ही विशेष आकर्षण रखे, यह आवश्यक नहीं है।
साहित्य की श्रेष्ठता मात्र ही उसके नित्य आकर्षण का आधार नहीं है। उसकी श्रेष्ठता का युग युगीन आधार हैं वे जीवन मूल्य तया उनकी अत्यंत कलात्मक अभिव्यक्ति जो मनुष्य की स्वतंत्रता तथा उच्चतर मानव विकास के लिए पथ-प्रदर्शक का काम करती है। पुराने साहित्य का केवल वही श्री-सौंदर्य हमारे लिए ग्राह्य होगा जो नवीन जीवन-मूल्यों के विकास में सहयोग दे अथवा स्थिति रक्षा में सहायक हो। कुछ लोग साहित्य की सामाजिक प्रतिबद्धता को अस्वीकार करते हैं। वे मानते हैं कि साहित्यकार निरपेक्ष होता है और उस पर कोई भी दबाव आरोपित नहीं होना चाहिए, किन्तु वे भूल जाते हैं कि साहित्य के निर्माण की मूल प्रेरणा मानव जीवन में ही विद्यमान रहती है। जीवन के लिए ही उसकी सृष्टि होती है। तुलसीदास जब स्वांत सुखाय काव्य रचना करते हैं तब अभिप्राय यह नहीं रहता कि मानव समाज के लिए इस रचना का कोई उपयोग नहीं है, बल्कि उनके अंतःकरण में संपूर्ण संसार की सुख-भावना एवं हित-कामना सन्निहित रहती है। जो साहित्यकार अपने संपूर्ण व्यक्तित्व को व्यापक लोक-जीवन में सन्निविष्ट कर देता है, उसी के हाथों स्थायी एवं प्रेरणाप्रद साहित्य का सृजन हो सकता है। संस्कृत के महाकवि कालिदास एवं मसि कागद ज्यों नहीं कलम गही नहि हाथ के उदघोषक भक्तिकालीन संत कबीर का साहित्य इसी कोटि में गणनीय है।
निम्नलिखित में से निर्देशानुसार सही विकल्प का चयन कीजिए :
(i) उपरोक्त गद्यांश किस विषयवस्तु पर आधारित है?
I.साहित्य में अंतर्विरोध
॥. साहित्य की उपादेयता
Ill तुलसी साहित्य
IV. वर्तमान साहित्य
उ: ॥. साहित्य की उपादेयता
(ii) युग परिवर्तन के साथ युगीन साहित्य की प्रासंगिकता कम क्यों हो जाती है?
I. भाषायी परिवर्तन के कारण
II. अन्य लेखकों के प्रभाव के कारण
Ill.भावबोध परिवर्तन के कारण
IV. उपर्युक्त में से कोई नहीं
उ: Ill.भावबोध परिवर्तन के कारण
(iii) पुराने साहित्य के प्रति अरुचि का कारण क्या है?
I. अभिरुचि परिवर्तन
II. परिस्थितियों में परिवर्तन
III. भावबोध परिवर्तन के कारण
IV. उपर्युक्त सभी
उ: IV. उपर्युक्त सभी
(iv) कोई भी साहित्य हमेशा एक-सी उत्तेजना क्यों नहीं पैदा कर सकता?
1. श्रेष्ठ अस्तित्व के कारण
॥ सामयिक परिवेश के बदल जाने से
III.प्राधीन होने के कारण
IV. उपर्युक्त सभी
उ: ॥ सामयिक परिवेश के बदल जाने से
(v) जीवन के विकास में पुराने साहित्य का कौन-सा अंश स्वीकार्य है?
1. जो सुगमतापूर्वक पठनीय हो।
॥. जो जीवन के विकास में पथ प्रदर्शक का काम करता हो।
III. जो प्राचीनता की ओर आकृष्ट करता हो।
IV. जिसमे आकर्षण हो।
उ: ॥. जो जीवन के विकास में पथ प्रदर्शक का काम करता हो।
(vi) तुलसीदास जैसे महान कवि की रचना 'स्वांत:सुखाय' होकर भी जन उपयोगी क्यों है?
I. अंतःकरण में सुख-भावना निहित होने से
II. मनोरंजक होने के कारण
III.धार्मिक होने के कारण
IV. अवधी भाषा में लिखी होने के कारण
उ: I. अंतःकरण में सुख-भावना निहित होने से
(vii) साहित्य सृजन का मुख्य उद्देश्य क्या होना चाहिए?
I. संसार की सुख-भावना
II. धन प्राप्ति की भावना
III.स्वांतः सुखाय
IV. मनोरंजन करना
उ: I. संसार की सुख-भावना
(VIII) कैसा साहित्यकार स्थायी प्रेरणास्पद साहित्य का निर्माणकर सकता है?
I. जो समयानुरूप लिखता हो।
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अपठित भाग को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए .
"समझ लो, हड़ताल टूट गई । लाला जी हमें आप से दुश्मनी तो नहीं है । प्रेस हमें भी उतना ही प्यारा है, जितना कि आपको है, बल्कि आप से भी ज्यादा है । हाँ, आपसे भी ज्यादा, क्योंकि आपका तो केवल पैसा लगा है, हमारा खून-पसीना लगा है। लालाजी ! प्रेस तो हमारा अन्नदाता है । वह हमारा पालक है । कोई भी समझदार आदमी अपने पालक से गद्दारी नहीं करेगा । आपकी कंजूसी का असर हमारे शरीर पर तो पड़ ही रहा था, काम पर भी पड़ रहा था । सुविधाओं की कमी के कारण मजबूर होकर हमें हड़ताल का सहारा लेना पड़ा । पर, 'देर आए दुरुस्त आए', हम काम पर जरूर आएंगे ।" प्रतिनिधि ने विनय पूर्वक कहा ।
लालाजी ने संतोष की साँस ली । हड़ताल से उन्हें काफ़ी नुकसान हो रहा था । पर, नुकसान उठाकर भी हड़ताल से उन्हें फायदा हुआ । पराई पीड़ा को समझ लेना उनकी नज़र में ऐसा फ़ायदा था, जिसकी तुलना में कुबेर का कोष भी तुच्छ था ।
1. कारीगरों ने हड़ताल क्यों की होगी ?
(क) लाला जी द्वारा सुविधाएँ न दिए जाने के कारण
(ख) अधिक वेतन के कारण
(ग) लाला जी से झगड़ा होने पर
(घ) प्रेस को आमदनी कम होने पर
2. हड़ताल क्यों टूट गई ?
(क) लाला जी से दुश्मनी समाप्त हो जाने पर
(ख) लाला जी द्वारा सुविधाएँ दे दिए जाने पर
(ग) अपने मालिक से गद्दारी न करने की भावना के कारण
(घ) लाला जी के धमकाने पर
3. हड़ताल से लाला जी का क्या फ़ायदा हुआ ?
(क) मान - सम्मान बढ़ गया
(ख) कारीगरों से दुश्मनी समाप्त हो गई
(ग) पराई पीड़ा को समझना सीखा
(घ) कुबेर का कोष मिला
4. 'देर आए दुरुस्त आए' का प्रयोग कब किया जाता है ?
(क) जब कोई देर से पर ठीक - ठाक आ जाए
(ख) न देर से आए, न दुरुस्त हो
(ग) देर से ही सही, पर उचित समझे और करे
(घ) दुरुस्त होकर देर से आए
5. कुबेर कौन हैं?
(क) लाला जी के मित्र हैं
(ख) देवताओं के कोषाध्यक्ष हैं
(ग) बैंक का नाम है
(घ) कोई व्यक्ति है
उत्तरमाला
1. (क) लाला जी द्वारा सुविधाएँ न दिए जाने के कारण
2. (ग) अपने मालिक से गद्दारी न करने की भावना के कारण
3.(ग) पराई पीड़ा को समझना सीखा
4.(ग) देर से ही सही, पर उचित समझे और करे
5.(ख) देवताओं के कोषाध्यक्ष हैं
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अपठित भाग को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए .
महात्मा गांधी ने कोई 12 साल पहले कहा था कि, "मैं बुराई करने वालों को सजा देने का उपाय ढूँढने लगूँ तो मेरा काम होगा उनसे प्यार करना और धैर्य, नम्रता के साथ उन्हें समझाकर सही रास्ते पर ले आना।" इसलिए असहयोग या सत्याग्रह घृणा का गीत नहीं है। असहयोग का मतलब बुराई करने वालों से नहीं, बल्कि बुराई से असहयोग करना है।
आपके असहयोग का उद्देश्य बुराई को बढ़ावा देना नहीं है। अगर दुनिया बुराई को बढ़ावा देना बंद कर दे तो बुराई अपने लिए आवश्यक पोषण के अभाव में अपने आप मर जाए। अगर हम यह देखने की कोशिश करें कि आज समाज में जो बुराई है, उसके लिए खुद हम कितने जिम्मेदार हैं तो हम देखेंगे कि समाज से बुराई कितनी जल्दी दूर हो जाती है। लेकिन हम प्रेम की एक झूठी भावना में पड़कर इसे सहन करते हैं। मैं उस प्रेम की बात नहीं करता, जिसे पिता अपने गलत रास्ते पर चल रहे पुत्र पर मोहांध होकर बरसाता चला जाता है, उसकी पीठ थपथपाता है; और न ही मैं उस पुत्र की बात कर रहा हूं जो झूठी पित्र- भक्ति के कारण अपने पिता के दोषों को सहन करता है। मैं उस प्रेम की चर्चा नहीं कर रहा हूँ। मैं तो उस प्रेम की बात कर रहा हूँ, जो विवेकयुक्त है बुद्धियुक्त है और जो एक भी गलती की ओर आंख बंद नहीं करता। यह सुधारने वाला प्रेम है ।
(क) गांधीजी किसे सुधारना चाहते हैं ?
(i) बुराई करने वालों को
(ii) अच्छाई करने वालों को
(iii) काम करने वालों को
(iv) आराम करने वालों को
(ख) बुराई को कैसे समाप्त किया जा सकता है ?
(i) उसे बढ़ावा देकर
(ii) उसे बढ़ावा न देकर
(iii) अच्छाई दिखाकर
(iv) अच्छाई को खोकर
(ग) गांधीजी कैसे प्रेम में विश्वास रखते थे ?
(i) विवेकयुक्त और बुद्धियुक्त
(ii) अच्छे
(iii) बुरे
(iv) घृणायुक्त
(घ) 'असहयोग' में मूल शब्द है-
(i) अस
(ii) सह
(iii) सहयोग
(iv) असह
(ड़) उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक है-
(i) असहयोग
(ii) गांधीजी
(iii) प्रेम की परिभाषा
(iv) प्रेम
उत्तरमाला
(क) (i) बुराई करने वालों को
(ख) (ii) उसे बढ़ावा न देकर
(ग) (i) विवेकयुक्त और बुद्धियुक्त
(घ) (iii) सहयोग
(ड़) (iii) प्रेम की परिभाषा
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समस्याएं वस्तुत: जीवन का पर्याय हैं। यदि समस्याएं न हों तो आदमी प्राय: अपने को निष्क्रिय समझने लगेगा। ये समस्याएं वस्तुत: जीवन की प्रगति का मार्ग प्रशस्त करती है। समस्या को सुलझाते समय,उनका समाधान करते समय व्यक्ति का श्रेष्ठ्तम तत्व उभरकर आता है। धर्म, दर्शन, ज्ञान-मनोविज्ञान इन्हीं प्रयत्नों की देन है। पुराणों में अनेक कथाएं यह शिक्षा देती हैं कि मनुष्य जीवन की हर स्थिति में जीना सीखे व समस्या उत्पन्न होने पर उसके समाधान के उपाय सोचे। जो व्यक्ति जितना उत्तरदायित्वपूर्ण कार्य करेगा, उतना ही उसके समक्ष समस्याएँ आएँगी और उनके परिप्रेक्ष्य में ही उसकी महानता का निर्धारण किया जाएगा।
दो महत्वपूर्ण तथ्य स्मरणीय हैं-प्रत्येक समस्या अपने साथ संघर्ष लेकर आती है। प्रत्येक संघर्ष के गर्भ में विजय निहित रहती है। समस्त ग्रंथों और महापुरुषों के अनुभवों का निष्कर्ष यह है कि संघर्ष से डरना अथवा उससे विमुख होना लौकिक व पारलौकिक सभी दृष्टियों से अहितकर है, मानव धर्म के प्रतिकूल है और अपने विकास को अनावश्यक रूप से बाधित करना है। आप जागिए उठिए, दृढ़ संकल्प और उत्साह एवं साहस के साथ संघर्ष रूपी विजयरथ पर चढ़िए और अपने जीवन की विकास की बाधाओं रूपी शत्रुओं पर विजय प्राप्त कीजिए।
1. इस अनुच्छेद का उचित शीर्षक दीजिए-
(क)जीवन एक समस्या
(ख)महानता के उपाय
(ग) संघर्ष : सफलता का आधार
(घ) जीवन में संघर्ष
2. धर्म, ज्ञान दर्शन आदि किस प्रेरणा से पैदा हुए हैं ?
(क)शांति की चाह से
(ख)आनंद की प्रेरणा से
(ग) संघर्ष की प्रेरणा से
(घ) समस्या-समाधान की प्रेरणा से
3. ‘समस्याएँ वास्तव में जीवन का पर्याय हैं’ वाक्य से लेखक का क्या तात्पर्य है?
(क)जीवन स्वयं में एक समस्या है।
(ख)जीवन समस्या नहीं, एक संघर्ष है
(ग) जीवन में समस्याएँ तो होती हैं उन्हें स्वीकार करना चाहिए
(घ) जीवन और समस्याएं दोनों त्याज्य हैं।
4. इस अनुच्छेद का मूल स्वर है-
(क)निराशाजनक
(ख)प्रेरणापरक
(ग) चिंतनपरक
(घ) विश्लेषणात्मक
5. लेखक ने पाठकों को क्या प्रेरणा दी है ?
(क)दायित्वपूर्वक काम करने की।
(ख)जीवन को जीने की।
(ग) संघर्ष पथ पर विजय पाने की।
(घ) समस्याओं से बचने की।
उत्तरमाला
1. (ग) संघर्ष : सफलता का आधार
2. (घ) समस्या समाधान की प्रेरणा से
3. (ग) जीवन में समस्याएँ तो होती हैं उन्हें स्वीकार करना चाहिए
4. (ख) प्रेरणापरक
5. (घ) दायित्वपूर्वक काम करने की |
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‘देहदान’ शब्द सुनते या पढ़ते ही सबसे पहला विचार जो दिमाग में आता है,वह है-‘मृत्यु’ अवश्यंभावी है। आज नहीं तो कल, कोई पहले तो कोई बाद में मृत्यु को प्राप्त करता है। मृत्यु के नाम से ही मन में भय का संचार होने लगता है। मानव शरीर धारी भगवान राम और कृष्ण को भी समय आने पर यह शरीर त्यागना पड़ा था। जो जन्म के साथ ही निर्धारित है, उससे भय कैसा! इससे बचने का कोई उपाय नहीं है, चाहे कोई कितना ही बलवान, धनवान या तपस्वी हो, इससे बच नहीं पाया। सारे संसार के पुराण-इतिहास इस बात के गवाह हैं। प्राचीन या वर्तमान विज्ञान कितना ही उन्न्त हो गया हो, लेकिन मृत्यु पर विजय हासिल करना एक सपना ही है। फ़िर इस क्षणभंगुर और अंत में राख के ढेर में बदलने वाले शरीर या उसके अंगों को किसी जरूरतमंद के लिए समर्पित कर देने में क्या हर्ज है! और फ़िर इसे पाने के लिए आपने स्वंय कोई प्रयास नहीं किया है या धन भी खर्च नहीं किया।
1) ‘देहदान’ शब्द सुनते ही सबसे पहला विचार दिमाग में क्या आता है?
(क) मृत्यु अवश्यंभावी है।
(ख) मृत्यु सत्य है।
(ग) मृत्य नहीं होगी।
(घ) जीवन सुरक्षित नहीं है
2) मृत्यु के नाम से भय क्यों लगता है ?
(क) भय स्वाभाविक है
(ख) भय नहीं होना चाहिए
(ग) यह जन्म के साथ जुड़ा है
(घ) मृत्यु से डरना अस्वाभाविक है
3) पुराण और इतिहास किस बात के गवाह हैं ?
(क) मृत्यु से कोई बच नहीं पाया।
(ख) मृत्यु पर विजय प्राप्त की जा सकती है।
(ग) मृत्यु को कुछ समय तक टाला जा सकता है।
(घ) मृत्यु किसी के वश में नहीं।
4) ‘क्षणभंगुर’ शब्द का अर्थ है-
(क) क्षण में भंग होने वाली
(ख) कभी समाप्त न होने वाली
(ग) सदा अमर रहने वाली
(घ) समाप्त होने वाली
5) ‘देहदान’ से क्या अभिप्राय है ?
(क) जरूरतमंद को देहदान करना
(ख) देह को दान न करना
(ग) बिना जरूरत के देहदान करना
(घ) अंगदान कर देना
उत्तरमाला
1. (क) मृत्यु अवश्यंभावी है
2. (क) भय स्वाभाविक है
3. (क) मृत्यु से कोई बच नहीं पाया
4. (क) क्षण में भंग होने वाली
5. (घ) अंगदान कर देना
apathit gadyansh with answers
अपठित भाग को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए .
हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता जनसंख्या वृद्धि को रोकना है | इस क्षेत्र में हमारे सभी प्रयत्न निष्फल रहे हैं | ऐसा क्यों है? यह इसलिए भी हो सकता है की समस्या को देखना का हर एक का एक अलग नज़रिया है | जनसंख्या शास्त्रियों के लिए यह आंकड़ों का अम्बार है | अफसरशाही के लिए यह टार्गेट तय करने की कवायद है | राजनीतिज्ञ इसे वोट बैंक की दृष्टि से देखता है | ये सब अपने अपने ढंग से समस्या को सुलझाने में लगे हैं | अतः अलग-अलग किसी के हाथ सफलता हाथ नहीं लगी | पर यह स्पष्ट है कि परिवार के आकार पर आर्थिक विकास और शिक्षा का बहुत प्रभाव पड़ता है | यहाँ आर्थिक विकास का मतलब पाश्चात्य मतानुसार भौतिकवाद नहीं जहां बच्चों को बोझ माना जाता है | हमारे लिए तो यह सम्मानपूर्वक जीने के स्तर से संबंधित है | यह मौजूदा संपत्ति के समतामूलक विवरण पर ही निर्भर नहीं है वरन ऐसी शैली अपनाने से संबंधित है जिससे अस्सी करोड़ लोगों की ऊर्जा का बेहतर इस्तेमाल हो सके | इसी प्रकार स्त्री शिक्षा भी है | यह समाज में एक नए प्रकार का चिंतन पैदा करेगी | जिससे सामाजिक और आर्थिक विकास के नए आयाम खुलेंगे और साथ ही बच्चों के विकास नया रास्ता भी खुलेगा | अतः जनसंख्या की समस्या सामाजिक है | यह अकेले सरकार नहीं सुलझा सकेगी | केन्द्रीकरण से हटाकर इसे ग्राम-ग्राम, व्यक्ति-व्यक्ति तक पहुंचाना होगा | जब तक यह जन-आन्दोलन नहीं बन जाता तब तक सफलता मिलना संदिग्ध है|
1. हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता क्या है?
(क) जनसंख्या में वृद्धि
(ख) जनसंख्या वृद्धि को रोकना
(ग)जनसंख्या सम्बन्धी तथ्य जुटाना
(घ) जनसंख्या पर बैठकें करना
2. जनसंख्या नियन्त्रण के प्रयासों की असफलता का कारण है-
(क) प्रयास हुए ही नहीं
(ख) प्रयास स्तरीय नहीं हैं
(ग) सब अपने-अपने ढंग से प्रयास कर रहे हैं
(घ) जनसंख्या नियन्त्रण कर पाना कठिन है
3. स्त्री-शिक्षा का लाभ कहाँ उठाया जा सकता है?
(क) सामाजिक सोच के परिवर्तन में
(ख) स्त्रियों को आत्मनिर्भर करने में
(ग) योजनाओं को बनाने में
(घ) आर्थिक दशा में सुधार करने में
4. जनसंख्या समस्या के प्रति हमारे दृष्टिकोण में किस बदलाव की जरूरत है?
(क) यह जटिल समस्या है
(ख) यह बेकाबू है
(ग) इसका समाधान असंभव है
(घ) यह सरकारी समस्या है
5. निष्फल’ का विलोम शब्द है-
(क) विफल
(ख) सफल
(ग) फलदार
(घ) पराजित
उत्तरमाला
१. (ख) जनसंख्या वृद्धि को रोकना
2. (ग) सब अपने-अपने ढंग से प्रयास कर रहे हैं
3. (घ) आर्थिक दशा में सुधार करने में
4. (घ) यह सरकारी समस्या है
5. (ग) फलदार
अपठित गद्यांश क्या है ?
अपठित गद्यांश को कैसे हल करें?
वह गद्यांश, जिसका अध्ययन विद्यार्थियों ने पहले कभी न किया हो, उसे अपठित गद्यांश कहते हैं। अपठित गद्यांश देकर उस पर भाव-बोध और भाषा बोध संबंधी प्रश्न पूछे जाते हैं ताकि विद्यार्थियों की भावग्रहण-क्षमता एवं भाषा ज्ञान का मूल्यांकन हो सके।
अपठित का शाब्दिक अर्थ है- जो कभी पढ़ा नहीं गया । जो पाठ्यक्रम से जुड़ा नहीं है और जो अचानक ही हमें पढ़ने के लिए दिया गया हो। अपठित गद्यांश में गद्यांश से संबंधित विभिन्न प्रश्नों के उत्तर देने के लिए कहा जाता है। इस प्रकार इस विषय में यह अपेक्षा की जाती है कि पाठक दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर उससे सम्बद्ध प्रश्नों के उत्तर उसी अनुच्छेद के आधार पर प्रस्तुत करें।
अपठित गद्यांश के द्वारा पाठक ( पढ़ने वाला ) की व्यक्तिगत योग्यता तथा अभिव्यक्ति क्षमता का पता लगाया जाता है। अपठित का कोई विशेष क्षेत्र नहीं होता। कला, विज्ञान, राजनीति, साहित्य या अर्थशास्त्र किसी भी विषय पर गद्यांश हो सकता है। ऐसे विषयों के निरंतर अभ्यास और प्रश्नों के उत्तर देने से हमारा मानसिक स्तर उन्नत होता है और हमारी अभिव्यक्ति क्षमता में प्रौढ़ता आती है।
अपठित गद्यांश हल करते समय ध्यान देने योग्य बातें -
अपठित गद्यांश का बार-बार मौन वाचन करके उसे समझने का प्रयास करें ।
इसके पश्चात प्रश्नों को पढ़ें और गद्यांश में संभावित उत्तरों की रेखांकित करें ।
जिन प्रश्नों के उत्तर स्पष्ट न हों, उनके उत्तर जानने हेतु गद्यांश को पुन: ध्यान से पढ़ें ।
यदि कोई प्रश्न शीर्षक देने के सम्बन्ध में हो तो ध्यान रखें कि शीर्षक मूल कथ्य से संबंधित होना चाहिए।
शीर्षक गद्यांश में दी गई सारी अभिव्यक्तियों का प्रतिनिधित्व करने वाला होना चाहिए ।
अन्त में अपने उत्तरों को पुन: पढ़कर उनकी त्रुटियों को अवश्य दूर करें ।
बहु विकल्पीय प्रश्नों के उत्तर सभी दिए गए विकल्पों को ध्यानपूर्वक पढ़ने के बाद ही निर्धारित करें । उत्तर देने में किसी भी प्रकार की जल्दबाजी नहीं करें।
भाषा तत्त्वों से संबंधित प्रश्नों यथा – संधि,समास ,उपसर्ग ,प्रत्यय आदि से संबंधित प्रश्नों के उत्तर वैयाकरणिक नियमों के अनुसार ही दें ।
अपठित गद्यांश से संबंधित प्रश्न आंतरिक विकल्प सहित होता है । यदि दो गद्यांश दिए गए हैं और किसी एक को करना है तो प्रश्न को हल करने से पूर्व दोनों गद्यांश को पढ़कर देखें और उन में से जो आसान और अंकदायी लगे उसी के प्रश्नों को हल करें ।
अपठित गद्यांश कक्षा 12 with answer mcq
हमारे यहाँ सारे देश में भारतीयता की भावना एक राष्ट्रव्यापी स्तर पर सदैव विद्यमान रही है । यह भावना किसी धर्म, राजनीति या भूगोल से सम्बद्ध न होकर मूलत: संस्कृति से सम्बद्ध थी । यदि भारतीयता के मूल स्रोत की बात की जाए तो हम कहेंगे कि यहाँ सदा आदर्श के प्रति निष्ठा रही है । यहाँ समय-समय पर कुछ महापुरूष हुए हैं, जिन्होंने देश के सामने कुछ आदर्श रखे । उन्होंने उन आदर्शों को अपने जीवन में अपनाया और वे सबके आदर्श बन गए ।
एक साझे आदर्श की इस भावना ने सारे राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोए रखा है। अब हम चाहें इसे भारतीयता कहें या राष्ट्रीयता । भारतीय आदर्शों ने सदा से यही शिक्षा दी है कि शक्ति का उपयोग दूसरों पर अत्याचार करने में नहीं, बल्कि पीड़ितों की रक्षा करने में करना चाहिए । हमारी निष्ठा मानव मूल्यों के प्रति रही है । गौतम के दर्शन ने भोग पर त्याग की विजय पर बल दिया । नानक, तुलसी, कबीर ने इन्हीं आदर्शों का सम्मान किया । रामकृष्ण, विवेकानन्द एवं गाँधी भी इन्हीं आदर्शों के प्रचारक थे । यह कहना भ्रामक होगा कि हमारी संस्कृति हमें कमज़ोर बनना सिखाती है । वह तो कहती है कि शक्तिशाली बनो, पर शक्ति का दुरूपयोग न करो । उसका उपयोग न्याय की रक्षा के लिए करो । देश-विदेश में गाँधी जी को जितना नाम मिला, उसका कारण यही था कि उन्हें भारतीय मूल्यों और आदर्शों का प्रतीक माना जाता था । उन्होंने देश में इन्हीं मानव-मूल्यों को जगाया और आत्मविश्वास की भावना का संचार किया । आदर्श के प्रति निष्ठा या प्रतिबद्धता ही किसी देश को एक सूत्र में पिरोती है । आज की समस्याओं का समाधान हमारे आदर्श मानवीय मूल्यों में ही निहित है । देश में इस समय जो विघटनकारी प्रवृत्तियाँ उभरती दिखाई दे रही हैं, उनका कारण भारतीय आदर्शों एवं मूल्यों की जानकारी का अभाव ही नहीं है, बल्कि अब हम में उदारता नहीं रही है, हमारा दृष्टिकोण संकुचित हो गया है, इस संकुचित मनोवृत्ति के कारण हम कमज़ोर होने लगे हैं । हम भूल गए हैं कि समाज की आधारशिला जितनी व्यापक होगी,उसके ऊपर उठने वाली इमारत भी उतनी ही ऊँची होगी।
(I) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक है –
क. हमारी कमियाँ
ख .भारतीय संस्कृति और आदर्श
ग. हमारा दृष्टिकोण
घ. सब गलत है
(II) भारतीयता के मूल स्रोत में कौन सी भावना है ?
क. शक्ति प्रदर्शन
ख. अधिकार करना
ग .आदर्श के प्रति निष्ठा
घ. सभी सही है
(III) गौतम, नानक, कबीर, तुलसी,विवेकानंद इत्यादि का आदर्श क्या था ?
क. भोग पर त्याग की विजय
ख. धार्मिक प्रचार
ग. धन का संग्रह करना
घ. शत्रु का विनाश करना
(IV) इनमें से क्या भारतीय आदर्श नहीं हो सकता ?
क. पीड़ितों की रक्षा करना
ख. मानव मूल्यों के प्रति निष्ठा
ग. शक्ति से सबको अपने वश में करना
घ. न्याय की रक्षा करना
(V) आपके अनुसार राष्ट्रीयता क्या है ?
क. राष्ट्र पर शासन करना
ख. राष्ट्र की संपत्ति पर अधिकार करना
ग. राष्ट्र के प्रति सम्मान और निष्ठा
घ. इनमें से कोई नहीं
(VI) निम्नलिखित में से कौन सा कथन भ्रामक है ?
क. हमारे आदर्श मानवीय मूल्यों में ही निहित है।
ख. हमारी निष्ठा मानव मूल्यों के प्रति रही है ।
ग. हमारी संस्कृति हमें कमज़ोर बनना सिखाती है।
घ. गांधीजी भारतीय मूल्यों व आदर्शों के प्रतीक हैं।
(VII) किसी देश को एक सूत्र में बांधने के लिए इनमें से क्या आवश्यक नहीं है ?
क. सांझे आदर्श की भावना
ख. मानवीय मूल्यों की रक्षा
ग. आदर्श के प्रति निष्ठा
घ. अपने धर्म का प्रचार
(VIII) ‘संकुचित’ का विपरीत शब्द होगा-
क. अंकुचित
ख. व्यापक
ग. प्रसारित
घ. कुंचित
(IX) निम्नलिखित शब्दों में से किस में ‘सम्’ उपसर्ग का प्रयोग नहीं किया गया है ?
क. सम्मान
ख. संयोजन
ग. समस्या
घ. संचार
(X) इस अवतरण में निहित शिक्षा क्या है ?
क. राष्ट्रीयता का पालन
ख. आत्मविश्वासी बनना
ग. शक्ति का सदुपयोग करना
घ. सभी सही है
उत्तर:
I. ख, II-ग, III-क, IV-ग, V-ग
VI-ग, VII-घ, VIII-ख, IX-ग, X-घ
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