
Silver Wedding Class 12 PDF
ध्वनि प्रस्तुति
सारांश
यह लंबी कहानी लेखक की अन्य रचनाओं से कुछ अलग दिखाई देती है। आधुनिकता की ओर बढ़ता हमारा समाज एक ओर कई नई उपलब्धियों को समेटे हुए है तो दूसरी ओर मनुष्य को मनुष्य बनाए रखने वाले मूल्य कहीं घिसते चले गए हैं।
'जो हुआ होगा'
और
'समहाउ इंप्रापर'
ये दो जुमले इस कहानी के बीज वाक्य हैं।
'जो हुआ होगा' में यथास्थितिवाद यानी ज्यों-का-त्यों स्वीकार लेने का भाव है तो 'समहाउ इंप्रापर' में एक अनिर्णय की स्थिति भी है। ये दोनों ही भाव इस कहानी के मुख्य चरित्र यशोधर बाबू के भीतर के द्वंद्व हैं। वे इन स्थितियों का जिम्मेदार भी किसी व्यक्ति को नहीं ठहराते। वे अनिर्णय की स्थिति में हैं।
दफ़्तर में सेक्शन अफ़सर यशोधर पंत ने जब आखिरी फ़ाइल का काम पूरा किया तो दफ़्तर की घड़ी में पाँच बजकर पच्चीस मिनट हुए थे। वे अपनी घड़ी सुबह-शाम रेडियो समाचारों से मिलाते हैं, इसलिए वे दफ़्तर की घड़ी को सुस्त बताते हैं। इनके कारण अधीनस्थ को भी पाँच बजे के बाद भी रुकना पड़ता है। वापसी के समय वे किशन दा की उस परंपरा का निर्वाह करते हैं जिसमें जूनियरों से हल्का मजाक किया जाता है।
दफ़्तर में नए असिस्टेंट चड्ढा की चौड़ी मोहरी वाली पतलून और ऊँची एड़ी वाले जूते पंत जी को ‘समहाउ इंप्रापर’ मालूम होते हैं। उसने थोड़ी बदतमीजीपूर्ण व्यवहार करते हुए पंत जी की चूनेदानी का हाल पूछा। पंत जी ने उसे जवाब दिया। फिर चड्ढा ने पंत जी की कलाई थाम ली और कहा कि यह पुरानी है। अब तो डिजिटल जापानी घड़ी ले लो। सस्ती मिल जाती है। पंत जी उसे बताते हैं कि यह घड़ी उन्हें शादी में मिली है। यह घड़ी भी उनकी तरह ही पुरानी हो गई है। अभी तक यह सही समय बता रही है।
इस तरह जवाब देने के बाद एक हाथ बढ़ाने की परंपरा पंत जी ने अल्मोड़ा के रेम्जे स्कूल में सीखी थी। ऐसी परंपरा किशन दा के क्वार्टर में भी थी जहाँ यशोधर को शरण मिली थी। किशन दा कुंआरे थे और पहाड़ी लड़कों को आश्रय देते थे। पंत जी जब दिल्ली आए थे तो उनकी उम्र सरकारी नौकरी के लिए कम थी। तब किशन दा ने उन्हें मैस का रसोइया बनाकर रख लिया। उन्होंने यशोधर को कपड़े बनवाने व घर पैसा भेजने के लिए पचास रुपये दिए। इस तरह वे स्मृतियों में खो गए। तभी चड्ढा की आवाज से वे जाग्रत हुए और मेनन द्वारा शादी के संबंध में पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए कहने लगे’नाव लेट मी सी, आई वॉज़ मैरिड ऑन सिक्स्थ फरवरी नाइंटीन फ़ोर्टी सेवन।’
मेनन ने उन्हें ‘सिल्वर वैडिंग की बधाई दी। यशोधर खुश होते हुए झेपे और झंपते हुए खुश हुए। फिर भी वे इन सब बातों को अंग्रेजों के चोंचले बताते हैं, किंतु चड्ढा उनसे चाय-मट्ठी व लड्डू की माँग करता है। यशोधर जी दस रुपये का नोट चाय के लिए देते हैं, परंतु उन्हें यह ‘समहाउ इंप्रॉपर फाइंड’ लगता है। अत: सारे सेक्शन के आग्रह पर भी वे चाय पार्टी में शरीक नहीं होते है। चडढ़ा के जोर देने पर वे बीस रुपये और दे देते हैं, किंतु आयोजन में सम्मिलित नहीं होते। उनके साथ बैठकर चाय-पानी और गप्प-गप्पाष्टक में वक्त बरबाद करना उनकी परंपरा के विरुद्ध है।
यशोधर बाबू ने इधर रोज बिड़ला मंदिर जाने और उसके उद्यान में बैठकर प्रवचन सुनने या स्वयं ही प्रभु का ध्यान लगाने की नयी रीति अपनाई है। यह बात उनकी पत्नी व बच्चों को अखरती थी क्योंकि वे बुजुर्ग नहीं थे। बिड़ला मंदिर से उठकर वे पहाड़गंज जाते और घर के लिए साग-सब्जी लाते। इसी समय वे मिलने वालों से मिलते थे। घर पर वे आठ बजे से पहले नहीं पहुँचते थे।
आज यशोधर जब बिड़ला मंदिर जा रहे थे तो उनकी नजर किशन दा के तीन बेडरूम वाले क्वार्टर पर पड़ी। अब वहाँ छह-मंजिला मकान बन रहा है। उन्हें बहुमंजिली इमारतें अच्छी नहीं लग रही थीं। यही कारण है कि उन्हें उनके पद के अनुकूल एंड्रयूजगंज, लक्ष्मीबाई नगर पर डी-2 टाइप अच्छे क्वार्टर मिलने का ऑफ़र भी स्वीकार्य नहीं है और वे यहीं बसे रहना चाहते हैं। जब उनका क्वार्टर टूटने लगा तब उन्होंने शेष क्वार्टर में से एक अपने नाम अलाट करवा लिया। वे किशन दा की स्मृति के लिए यहीं रहना चाहते थे।
पिछले कई वर्षों से यशोधर बाबू का अपनी पत्नी व बच्चों से हर छोटी-बड़ी बात पर मतभेद होने लगा है। इसी वजह से उन्हें घर जल्दी लौटना अच्छा नहीं लगता था। उनका बड़ा लड़का एक प्रमुख विज्ञापन संस्था में नौकरी पर लग गया था। यशोधर बाबू को यह भी ‘समहाउ’ लगता था क्योंकि यह कंपनी शुरू में ही डेढ़ हजार रुपये प्रतिमाह वेतन देती थी। उन्हें कुछ गड़बड़ लगती थी। उनका दूसरा बेटा आई.ए.एस. की तैयारी कर रहा था। उसका एलाइड सर्विसेज में न जाना भी उनको अच्छा नहीं लगता। उनका तीसरा बेटा स्कॉलरशिप लेकर अमेरिका चला गया। उनकी एकमात्र बेटी शादी से इनकार करती है। साथ ही वह डॉक्टरी की उच्चतम शिक्षा के लिए अमेरिका जाने की धमकी भी देती है। वे अपने बच्चों की तरक्की से खुश हैं, परंतु उनके साथ सामंजस्य नहीं बैठा पाते।
यशोधर की पत्नी संस्कारों से आधुनिक नहीं है, परंतु बच्चों के दबाव से वह मॉडर्न बन गई है। शादी के समय भी उसे संयुक्त परिवार का दबाव झेलना पड़ा था। यशोधर ने उसे आचार-व्यवहार के बंधनों में रखा। अब वह बच्चों का पक्ष लेती है तथा खुद भी अपनी सहूलियत के हिसाब से यशोधर की बातें मानने की बात कहती है। यशोधर उसे ‘शालयल बुढ़िया’, ‘चटाई का लहँगा’ या ‘बूढ़ी मुँह मुँहासे, लोग करें तमासे’ कहकर उसके विद्रोह का मजाक उड़ाते हैं, परंतु वे खुद ही तमाशा बनकर रह गए। किशन दा के क्वार्टर के सामने खड़े होकर वे सोचते हैं कि वे शादी न करके पूरा जीवन समाज को समर्पित कर देते तो अच्छा होता।
यशोधर ने सोचा कि किशन दा का बुढ़ापा कभी सुखी नहीं रहा। उनके तमाम साथियों ने मकान ले लिए। रिटायरमेंट के बाद किसी ने भी उन्हें अपने पास रहने की पेशकश नहीं की। स्वयं यशोधर भी यह पेशकश नहीं कर पाए क्योंकि वे शादीशुदा थे। किशन दा कुछ समय किराये के मकान में रहे और फिर अपने गाँव लौट गए। सालभर बाद उनकी मृत्यु हो गई। उन्हें कोई बीमारी भी नहीं हुई थी। यशोधर को इसका कारण भी पता नहीं। वे किशन दा की यह बात याद रखते थे कि जिम्मेदारी पड़ने पर हर व्यक्ति समझदार हो जाता है।
वे मन-ही-मन यह स्वीकार करते थे कि दुनियादारी में उनके बीवी-बच्चे अधिक सुलझे हुए हैं, परंतु वे अपने सिद्धांत नहीं छोड़ सकते। वे मकान भी नहीं लेंगे। किशन दा कहते थे कि मूरख लोग मकान बनाते हैं, सयाने उनमें रहते हैं। रिटायरमेंट होने पर गाँव के पुश्तैनी घर चले जाओ। वे इस बात को आज भी सही मानते हैं। उन्हें पता है कि गाँव का पुश्तैनी घर टूट-फूट चुका है तथा उस पर अनेक लोगों का हक है। उन्हें लगता है कि रिटायरमेंट से पहले कोई लड़का सरकारी नौकरी में आ जाएगा और क्वार्टर उनके पास रहेगा। ऐसा न होने पर क्या होगा, इसका जवाब उनके पास नहीं होता।
बिड़ला मंदिर के प्रवचनों में उनका मन नहीं लगा। उम्र ढलने के साथ किशन दा की तरह रोज मंदिर जाने, संध्या-पूजा करने और गीता-प्रेस गोरखपुर की किताबें पढ़ने का यत्न करने लगे। मन के विरोध को भी वे अपने तकों से खत्म कर देते हैं। गीता के पाठ में ‘जनार्दन’ शब्द सुनने से उन्हें अपने जीजा जनार्दन जोशी की याद आई। उनकी चिट्ठी से पता चला कि वे बीमार है। यशोधर बाबू अहमदाबाद जाना चाहते हैं, परंतु पत्नी व बच्चे उनका विरोध करते हैं। यशोधर खुशी-गम के हर मौके पर रिश्तेदारों के यहाँ जाना जरूरी समझते हैं तथा बच्चों को भी वैसा बनाने की इच्छा रखते हैं। किंतु उस दिन हद हो गई जिस दिन कमाऊ बेटे ने यह कह दिया कि “आपको बुआ को भेजने के लिए पैसे मैं तो नहीं दूँगा।”
यशोधर की पत्नी का कहना है कि उन्होंने बचपन में कुछ नहीं देखा। माँ के मरने के बाद विधवा बुआ ने यशोधर का पालन-पोषण किया। मैट्रिक पास करके दिल्ली में किशन दा के पास रहे। वे भी कुंवारे थे तथा उन्हें भी कुछ नहीं पता था। अत: वे नए परिवर्तनों से वाकिफ़ नहीं थे। उन्हें धार्मिक प्रवचन सुनते हुए भी पारिवारिक चिंतन में डूबा रहना अच्छा नहीं लगा। ध्यान लगाने का कार्य रिटायरमेंट के बाद ठीक रहता है। इस तरह की तमाम बातें यशोधर बाबू पैदाइशी बुजुर्गवार है, क्यों में औरउ के हीलबे में कहा कते हैं तथा कहाक्रउ की ही तह ही सी लगनतीस हँसी हँस देते हैं।
जब तक किशन दा दिल्ली में रहे, तब तक यशोधर बाबू ने उनके पट्टशिष्य और उत्साही कार्यकर्ता की भूमिका पूरी निष्ठा से निभाई। उनके जाने के बाद घर में होली गवाना, रामलीला के लिए क्वार्टर का एक कमरा देना, ‘जन्यो पुन्यू’ के दिन सब कुमाऊँनियों को जनेऊ बदलने के लिए घर बुलाना आदि कार्य वे पत्नी व बच्चों के विरोध के बावजूद करते हैं। वे यह भी चाहते हैं कि बच्चे उनसे सलाह लें, परंतु बच्चे उन्हें सदैव उपेक्षित करते हैं। प्रवचन सुनने के बाद यशोधर बाबू सब्जी मंडी गए। वे चाहते थे कि उनके लड़के घर का सामान खुद लाएँ, परंतु उनकी आपस की लड़ाई से उन्होंने इस विषय को उठाना ही बंद कर दिया। बच्चे चाहते थे कि वे इन कामों के लिए नौकर रख लें। यशोधर को यही ‘समहाउ इंप्रॉपर’ मालूम होता है कि उनका बेटा अपना वेतन उन्हें दे। क्या वह ज्वाइंट एकाउंट नहीं खोल सकता था? उनके ऊपर, वह हर काम अपने पैसे से करने की धौंस देता है। घर में वह तमाम परिवर्तन अपने पैसों से कर रहा है। वह हर चीज पर अपना हक समझता है।
सब्जी लेकर वे अपने क्वार्टर पहुँचे। वहाँ एक तख्ती पर लिखा था-वाई०डी० पंत। उन्हें पहले गलत जगह आने का धोखा हुआ। घर के बाहर एक कार थी। कुछ स्कूटर, मोटर-साइकिलें थीं तथा लोग विदा ले-दे रहे थे। बाहर बरामदे में रंगीन कागजों की झालरें व गुब्बारे लटक रहे थे। उन्होंने अपने बेटे को कार में बैठे किसी साहब से हाथ मिलाते देखा। उनकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था। उन्होंने अपनी पत्नी व बेटी को बरामदे में खड़ा देखा जो कुछ मेमसाबों को विदा कर रही थीं। लड़की जींस व बगैर बाँह का टॉप पहने हुए थी। पत्नी ने होंठों पर लाली व बालों में खिजाब लगाया हुआ था। यशोधर को यह सब ‘समहाउ इंप्रापर’ लगता था।
यशोधर चुपचाप घर पहुँचे तो बड़े बेटे ने देर से आने का उलाहना दिया। यशोधर ने शर्मीली-सी हँसी हँसते हुए पूछा कि हम लोगों के यहाँ सिल्वर वैडिंग कब से होने लगी है? यशोधर के दूर के भांजे ने कहा, “जबसे तुम्हारा बेटा डेढ़ हजार महीने कमाने लगा है, तब से।” यशोधर को अपनी सिल्वर बैडिंग की यह पार्टी भी अच्छी नहीं लगी। उन्हें यह मलाल था कि सुबह ऑफ़िस जाते समय तक किसी ने उनसे इस आयोजन की चर्चा नहीं की थी। उनके पुत्र भूषण ने जब अपने मित्रों-सहयोगियों से यशोधर बाबू का परिचय करवाया तो उस समय उन्होंने प्रयास किया कि भले ही वे संस्कारी कुमाऊँनी हैं तथापि विलायती रीति-रिवाज भी अच्छी तरह परिचित होने का एहसास कराएँ।
बच्चों के आग्रह पर यशोधर बाबू अपनी शादी की सालगिरह पर केक काटने के स्थान पर जाकर खड़े हो गए। फिर बेटी के कहने पर उन्होंने केक भी काटा, जबकि उन्होंने कहा-‘समहाउ आई डोंट लाइक आल दिस।” परंतु उन्होंने केक नहीं खाया क्योंकि इसमें अंडा होता है। अधिक आग्रह पर उन्होंने संध्या न करने का बहाना किया तथा पूजा में चले गए। आज उन्होंने पूजा में देर लगाई ताकि अधिकतर मेहमान चले जाएँ। यहाँ भी उन्हें किशन दा दिखाई दिए। उन्होंने पूछा कि ‘जो हुआ होगा’ से आप कैसे मर गए? किशन दा कह रहे थे कि भाऊ सभी जन इसी ‘जो हुआ होगा’ से मरते हैं चाहे वह गृहस्थ हो या ब्रहमचारी, अमीर हो या गरीब। शुरू और आखिर में सब अकेले ही होते हैं।
यशोधर बाबू को लगता है कि किशन दा आज भी उनका मार्गदर्शन करने में सक्षम हैं और यह बताने में भी कि मेरे बीवी-बच्चे जो कुछ भी कर रहे हैं, उनके विषय में मेरा रवैया क्या होना चाहिए? किशन दा अकेलेपन का राग अलाप रहे थे। उनका मानना था कि यह सब माया है। जो भूषण आज इतना उछल रहा है, वह भी किसी दिन इतना ही अकेला और असहाय अनुभव करेगा, जितना कि आज तू कर रहा है।
इस बीच यशोधर की पत्नी ने वहाँ आकर झिड़कते हुए पूछा कि आज पूजा में ही बैठे रहोगे। मेहमानों के जाने की बात सुनकर वे लाल गमछे में ही बैठक में चले गए। बच्चे इस परंपरा के सख्त खिलाफ़ थे। उनकी बेटी इस बात पर बहुत झल्लाई। टेबल पर रखे प्रेजेंट खोलने की बात कही। भूषण उनको खोलता है कि यह ऊनी ड्रेसिंग गाउन है। सुबह दूध लाने के समय आप फटा हुआ पुलोवर पहनकर चले जाते हैं, वह बुरा लगता है। बेटी पिता का पाजामा-कुर्ता उठा लाई कि इसे पहनकर गाउन पहनें। बच्चों के आग्रह पर वे गाउन पहन लेते हैं। उनकी आँखों की कोर में जरा-सी नमी चमक गई। यह कहना कठिन है कि उनको भूषण की यह बात चुभ गई कि आप इसे पहनकर दूध लेने जाया करें। वह स्वयं दूध लाने की बात नहीं कर रहा।
शब्दार्थ
- सिल्वर वैडिंग – शादी की रजत जयंती जो विवाह के पच्चीस वर्ष बाद मनाई जाती है।
- मातहत – अधीन।
- जूनियर – कनिष्ठ, अधीनस्थ।
- निराकरण – समाधान।
- परंपरा – प्रथा।
- बदतमीजी – अशिष्ट व्यवहार।
- चूनेदानी – पान खाने वालों का चूना रखने का बरतन।
- धृष्टता – अशिष्टता।
- बाबा आदम का जमाना – पुराना समय।
- नहले पर दहला – जैसे को तैसा।
- दाद-प्रशंसा।
- ठठाकर – जोर से हँसकर।
- ठीक-ठिकाना – उचित व्यवस्था।
- चोंचले – आडंबरपूर्ण व्यवहार।
- माया-धन – दौलत, सांसारिक मोह।
- इनसिष्ट – आग्रह।
- चुग्गे भर – पेट भरने लायक।
- जुगाड़ – व्यवस्था।
- नगण्य – जो गिनने लायक न हो।
- सेक्रेट्रिएट – सचिवालय।
- नागवार – अनुचित।
- निहायत-एकदम।
- अफोड – सहन करना,
- क्रय –शक्ति के अंदर।
- इसरार – आग्रह।
- गय-गयाष्टक – इधर-उधर की बेकार की बातचीत।
- विरुदध – विपरीत।
- प्रवचन – धार्मिक व्याख्यान।
- निहायत – अत्यंत।
- फिकरा – वाक्यांश।
- पेंच – कारण।
- स्कालरशिप – छात्रवृत्ति।
- उपेक्षा – तिरस्कार का भाव।
- तरफ़दारी – पक्ष लेना।
- मातृसुलभ – माताओं की स्वाभाविक मनोदशा।
- मॉडर्न – आधुनिक।
- जिठानी – पति के बड़े भाई की पत्नी।
- तार्द्ध – पिता के बड़े भाई की पत्नी।
- ढोंग – ढकोसला, आडंबरपूर्ण आचरण।
- आचरण – व्यवहार।
- अनदेखा करना – ध्यान न देना।
- नि:श्वास – लंबी साँस।
- डेडीकेट – समर्पित।
- रिटायर – सेवा-निवृत्त।
- उपकृत – जिन पर उपकार किया गया है।
- पेशकश – प्रस्तुत।
- बिरादर – जाति-भाई।
- खुराफात – शरारती कार्य।
- विरासत – उत्तराधिकार।
- मौज –आनंद।
- पुश्तैनी – पैतृक, खानदानी।
- लोक – संसार।
- बाध्य – मजबूर।
- मर्यादा पुरुष – परंपराओं एवं आस्थाओं को मानने वाला।
- बाट – पगडंडी।
- जनार्दन – ईश्वर।
- सर्वथा – पूरी तरह से।
- बुजुर्गियत – बड़प्पन। बुढ़याकाल – वृद्धावस्था।
- एनीवे – किसी भी तरह।
- प्रवचन – भाषण।
- लहजा – ढंग।
- भाऊ – बच्चा।
- पट्टशिष्य – प्रिय छात्र।
- निष्ठा – आस्था।
- जन्यो पुन्यू – जनेऊ बदलने वाली पूर्णिमा।
- कुमाऊँनियों – कुमाऊँ क्षेत्र के निवासी।
- दुराग्रह – अनुचित हठ।
- एक्सपीरिअन्स – अनुभव।
- सबस्टीट्यूट – विकल्प।
- कुहराम – शोर-शराबा।
- वक्तव्य – कथन। नुक्ताचीनी – छोटी-छोटी कमी निकालना।
- कारपेट – फ़र्श का कालीन।
- मर्तबा-बार।
- इमप्रॉपर – अनुचित।
- तरफदारी करना – पक्ष लेना।
- खिजाब – बालों को काला करने का पदार्थ।
- माहवार – महीना।
- मिसाल – उदाहरण।
- भव्य – सुंदर।
- सपन्न – मालदार।
- हरचद – बहुत अधिक।
- अनमनी – उदासी-भरी।
- माँसाहारी – मांस खाने वाला।
- संध्या करना – सूर्यास्त के समय पूजा करना।
- रवैया – व्यवहार।
- आमादा – तत्पर होना।
- खिलाफ – विरुद्ध।
- लिमिट – सीमा।
- ग्रेजेंट – उपहार।
- ना-नुकुर करना – आनाकानी करना।
प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1:यशोधर बाबू की पत्नी समय के साथ ढल सकने में सफल होती है लेकिन यशोधर बाबू असफल रहते हैं। ऐसा क्यों?
अथवा
‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी के आधार पर बताइए कि यशोधर बाबू समय के अनुसार क्यों नहीं ढल सके?
उत्तर: यशोधर बाबू की पत्नी समय को अच्छी तरह पहचानती है। वह जानती है कि बच्चों की सहानुभूति तभी प्राप्त की जा सकेगी जब बच्चों की सोच के अनुसार चला जाए। व्यवहार भी यही कहता है। दूसरे उसके व्यक्तित्व के विकास पर किसी व्यक्तिविशेष या वाद का प्रभाव नहीं है। तीसरे, संयुक्त परिवार के साथ उसका अनुभव सुखद नहीं रहा। उसकी इच्छाएँ अतृप्त रहीं। उसके अनुसार, “मुझे आचार-व्यवहार के ऐसे बंधनों में रखा गया मानो मैं जवान औरत नहीं, बुढ़िया थी।” अब वह बेटी के कहने के हिसाब से कपड़े पहनती है। वह बेटों के मामले में भी दखल नहीं देती।
दूसरी तरफ, यशोधर बाबू स्वयं को बदल नहीं पाते। वे सदैव किसी-न-किसी उलझन के शिकार हैं। वे सिद्धांतवादी हैं। इस कारण वे परिवार के सदस्यों से तालमेल नहीं बिठा पाते। उन पर किशनदा का प्रभाव है जो परंपरा को ढोते हुए अंत में फटेहाल मरे। वे संयुक्त परिवार, भारतीय परंपराओं को बनाए रखना चाहते हैं, परंतु परिवार उन्हें निरर्थक मानता है। यशोधर बाबू पार्टीबाजी, फैशन, अच्छे मकान में रहना आदि को पसंद नहीं करते। वे आधुनिक भौतिक वस्तुओं को बंधन मानते हैं। फलतः वे अलग-थलग हो जाते हैं। अंत में, उन्हें परिस्थितियों से समझौता करना पड़ता है।
प्रश्न 2: पाठ में 'जो हुआ होगा' वाक्य की आप कितनी अर्थ छवियाँ खोज सकते/सकती हैं?
अथवा
‘जो हुआ होगा ‘ की दो अर्थ छवियाँ लिखिए।
उत्तर : पाठ में ‘जो हुआ होगा’ वाक्य पहली बार तब आता है जब यशोधर किशन दा के किसी जाति-भाई से उनकी मौत का कारण पूछते हैं तो उत्तर मिलता है-जो हुआ होगा अर्थात पता नहीं, क्या हुआ। इसका अर्थ यह है कि किशन दा की मृत्यु का कारण जानने की इच्छा भी किसी में नहीं थी। इससे उनकी हीन दशा का पता चलता है।
दूसरा अर्थ किशन दा ही उपयोग करते हैं। वे इसे अपनों से मिली उपेक्षा के लिए करते हैं। वे कहते हैं-“भाऊ सभी जन इसी ‘जो हुआ होगा’ से मरते हैं-गृहस्थ हों, ब्रह्मचारी हों, अमीर हों, गरीब हों, मरते ‘जो हुआ होगा’ से ही हैं। हाँ-हाँ, शुरू में और आखिर में, सब अकेले ही होते हैं। अपना कोई नहीं ठहरा दुनिया में, बस अपना नियम अपना हुआ।”
प्रश्न 3: ‘समहाउ इप्रॉपर’ वाक्यांश का प्रयोग यशोधर बाबू लगभग हर वाक्य के प्रारंभ में तकिया कलाम की तरह करते हैं। इस वाक्यांश का उनके व्यक्तित्व और कहानी के कथ्य से क्या सबध बनता है?
उत्तर :समहाउ इंप्रापर का अर्थ है – कुछ-न-कुछ गलत जरूर है। यशोधर बाबू द्वारा इस वाक्यांश का प्रयोग करना वास्तव में आज की स्थिति का सच्चा वर्णन करना है। आज परिवार, समाज और राष्ट्र में कहीं न कहीं कुछ-न-कुछ गलत ज़रूर हो रहा है। फिर यशोधर बाबू जैसे सिद्धांतवादी लोगों के लिए ऐसी स्थिति को स्वीकारना सहज नहीं है। उनका तकियाकलाम निम्न संदर्भो में प्रयुक्त हुआ है-
- साधारण पुत्र को असाधारण वेतन मिलना
- दफ्तर में सिल्वर वैडिंग
- स्कूटर की सवारी पर
- अपनों से परायेपन का व्यवहार मिलने पर
- डीडीए फ्लैट का पैसा न भरने पर
- छोटे साले के ओछेपन पर
- शादी के संबंध में बेटी द्वारा स्वयं निर्णय लेने पर
- खुशहाली में रिश्तेदारों की उपेक्षा करने पर
- केक काटने की विदेशी परंपरा पर आदि।
इन संदर्भो से स्पष्ट होता है कि यशोधर बाबू समय के हिसाब से अप्रासंगिक हो गए हैं, इस कारण वे अपेक्षित रह गए।
प्रश्न 4: यशोधर बाबू की कहानी को दिशा देने में किशन दा की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। आपके जीवन को दिशा देने में किसका महत्वपूर्ण योगदान रहा और कैसे?
उत्तर :यशोधर बाबू की कहानी को दिशा देने में किशन दा की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। मेरे जीवन पर मेरे चाचा का प्रभाव है। वे बड़े शिक्षाविद हैं। उन्होंने हर परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की थी। उन्हें कई विषयों का गहन ज्ञान है। परिवार वाले उन्हें प्रोफ़ेसर बनाना चाहते थे, परंतु उन्होंने साफ़ मना कर दिया तथा प्राथमिक शिक्षक बनना स्वीकार किया। आज वे सरकारी विद्यालय में मुख्य शिक्षक हैं। उनके विचार व कार्यशैली ने मुझे प्रभावित किया। मैंने निर्णय किया कि मुझे भी उनकी तरह मेहनत करके आगे बढ़ना है। मैंने पढ़ाई में मेहनत की तथा अच्छे अंक प्राप्त किए। मैंने स्कूल की सांस्कृतिक गतिविधियों में भी भाग लेना शुरू कर दिया। कई प्रतियोगिताओं में मुझे इनाम भी मिले। मेरे अध्यापक प्रसन्न हैं। मैं चाचा की सरलता, व सादगी से बहुत प्रभावित हूँ।
प्रश्न 5:वर्तमान समय में परिवार की सरंचना, स्वरूप से जुड़े आपके अनुभव इस कहानी से कहाँ तक सामजस्य बैठा पाते है?
उत्तर :यह कहानी आज के समय की पारिवारिक संरचना और उसके स्वरूप का सही अंकन करती है। आज की परिस्थितियाँ इस कहानी की मूल्य संवेदना को प्रस्तुत करती हैं। आज के परिवारों में सिद्धांत और व्यवहार का अंतर दिखाई देता है। आज के परिवारों में भी यशोधर बाबू जैसे लोग मिल जाते हैं जो चाहकर भी स्वयं को बदल नहीं सकते। दूसरे को बदलता देख कर वे क्रोधित हो जाते हैं। उनका क्रोध स्वाभाविक है क्योंकि समय और समाज का बदलना जरूरी है। समय परिवर्तनशील है और व्यक्ति को उसके अनुसार ढल जाना चाहिए। यह कहानी वर्तमान समय की पारिवारिक संरचना और स्वरूप को अच्छे ढंग से प्रस्तुत करती है।
प्रश्न 6:निम्नलिखित में से किसे आप कहानी की मूल संवेदना कहेंगे और क्यों?
हाशिए पर धकेले जाते मानवीय मूल्य
पीढ़ी का अतराल
पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव
उत्तर : इस कहानी में, मानवीय मूल्यों-भाईचारा, प्रेम, रिश्तेदारी, बुजुर्गों का सम्मान आदि को हाशिए पर दिखाया गया है। यशोधर पुरानी परंपरा के व्यक्ति हैं, जबकि उनके बच्चे पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित हैं। वे ‘सिल्वर वैडिंग’ जैसी पाश्चात्य परंपरा का निर्वाह करते हैं। इन सबके बावजूद यह कहानी पीढ़ी के अंतराल को स्पष्ट करती है। यशोधर बाबू स्वयं पीढ़ी के अंतराल को स्वीकार हैं। वे मानते हैं कि दुनियादारी के मामले में उनकी संतान व पत्नी उससे आगे हैं। वह पुराने आदशों व मूल्यों जुडे हुए हैं। ऑफ़िस में भी वे कर्मचारियों के साथ ऐसे ही संबंध बनाए हुए हैं। चड्ढा की चौड़ी मोहरी वाली उन्हें ‘समहाउ इंप्रॉपर’ लगती है। उन्हें अपनी बीवी व बच्चों का रहन-सहन भी अनुपयुक्त जान पड़ता है। वे जिन सामाजिक मूल्यों को बचाना चाहते हैं, नयी पीढ़ी उनका पुरजोर विरोध करती है। नयी पीढ़ी पुरानी सादगी को फटीचरी सिल्वर वैडिंग के मानती है। वह रिश्तेदारी निभाने को घाटे का सौदा बताती है। इन्हीं सब मूल्यों से प्रभावित होकर यशोधर बाबू के लिए नया गाउन लाते हैं ताकि फटे पुलोवर से उन्हें शर्मिदा न होना पड़ा। उन्हें अपने मान-सम्मान की फ़िक्र है । अत: यह कहानी पीढ़ी के अतराल की कहानी है और पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित लोगों द्वारा हाशिए पर धकेले जाते मानवीय मूल्य मूल संवेदना है।
प्रश्न 7: अपने घर और विद्यालय के आस-पास हो रह उन बदलावों के बारे में लिख जो सुविधाजनक और आधुनिक होते हुए भी बुजुगों को अच्छे नहीं लगते। अच्छा न लगने के क्या कारण होंगे?
उत्तर : परिवर्तन प्रकृति का नियम है। बदलना ही समय की पहचान है। आज घर का परिवेश बिलकुल बदल चुका है। एकल परिवार प्रणाली प्रचलन में आ चुकी है यद्यपि यह सुविधाजनक है किंतु इसके बुरे परिणाम भी सामने आ रहे हैं। लोगों में असुरक्षा की भावना बढ़ी है। विद्यालय आज आधुनिक रूप धारण कर चुके हैं लेकिन यह रूप बुजुर्गों को बिलकुल भी पसंद नहीं आ रहा। कारण स्पष्ट है कि आधुनिकता के नाम पर इन विद्यालयों में पाश्चात्य संस्कृति का खुलकर समर्थन किया जा रहा है। शिक्षा और परिवार में परिवर्तन के नाम पर संस्कृति का परित्याग होता जा रहा है।
प्रश्न 8: यशोधर बाबू के बारे में आपकी क्या धारणा बनती है? दिए गए तीन कथनों में से आप जिसके समर्थन में हैं, अपने अनुभवों और सोच के आधार पर उसके लिए तर्क दीजिए.
- यशोधर बाबू के विचार पूरी तरह से पुराने हैं और वे सहानुभूति के पात्र नहीं हैं।
- यशोधर बाबू में एक तरह का द्ववद्व है जिसके कारण नया उन्हें कभी-कभी खींचता तो है पर पुराना छोड़ता नहीं। इसलिए उन्हें सहानुभूति के साथ देखने की जरूरत हैं।
- यशोधर बाबू एक आदर्श व्यक्तित्व हैं और नयी पीढ़ी द्वारा उनके विचारों का अपनाना ही उचित हैं।
उत्तर : प्रस्तुत कथा में यशोधर बाबू में एक तरह का द्वंद्व है जिसके कारण नया उन्हें कभी-कभी खींचता तो है, पर पुराना छोड़ता नहीं। इसलिए उन्हें सहानुभूति के साथ देखने की जरूरत है। ये बातें कहानी पढ़ने के बाद यशोधर बाबू पर पूर्णत: लागू होती हैं। वे पुरानी सोच के व्यक्ति हैं। समाज को वे अपने मूल्यों के हिसाब से चलाना चाहते हैं। वे अपने बच्चों की तरक्की से खुश हैं। उन्हें किशन दा की मौत का कारण समझ में आता है। वह स्वयं को छोड़ नहीं पाते। वे स्वयं को उपेक्षित मानने लगते हैं। ऐसे व्यक्तियों के साथ सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार जरूरी है।
स्वयं करें
- आप यशोधर बाबू की जगह होते तो क्या करते और क्यों ?
- ‘सिल्वर वैडिंग‘ कहानी की मूल संवेदना स्पष्ट कीजिए।
- 'सिल्वर वैडिंग' कहानी का कथ्य क्या है?
- ‘सिल्वर वेडिंग‘ कहानी के आधार पर पीढ़ियों के अंतराल के कारणों पर प्रकाश डालिए। क्या इस अंतराल को कुछ पाटा ( भरा ) जा सकता है? केसे? स्पष्ट कीजिए।
- 'सिल्वर वैडिंग' के कथानायक यशोधर बाबू एक आदर्श व्यक्तित्व के स्वामी हैं और नयी पीढ़ी के द्वारा उनके विचारों को अपनाना ही उचित है। – इस कथन के पक्ष या विपक्ष में अपना तर्क प्रस्तुत करो.
जय हिन्द : जय हिंदी
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