पाठ -20
विप्लव-गायन
viplav gayan class 7 pdf
ध्वनि प्रस्तुति
viplav gayan class 7 audio
विप्लव गायन कविता का अर्थViplav Gayan Class 7 bhavarth
कवि, कुछ ऐसी तान सुनाओ,जिससे उथल-पुथल मच जाए,एक हिलोर इधर से आए,एक हिलोर उधर से आए।सावधान! मेरी वीणा में,चिनगारियाँ आन बैठी हैं,टूटी हैं मिजराबें, अंगुलियाँदोनों मेरी ऐंठी हैं।
विप्लव गायन कविता का भावार्थ
विप्लव गायन कविता की इन पंक्तियों में कवि एक ऐसा गीत गाने की इच्छा व्यक्त कर रहे हैं, जो समाज में क्रांति पैदा करे और जिससे परिवर्तन की शुरुआत हो।
अगली पंक्तियों में कवि लोगों को सावधान करते हुए कहते हैं कि मेरा यह गीत समाज में क्रांति की चिंगारियाँ पैदा कर सकता है, आपकी शांति भंग हो सकती है और इस क्रांति से आने वाले बदलाव आपको कष्ट दे सकते हैं। वो कहते हैं कि उनके इस गीत से समाज में कई बदलाव आएंगे और वर्तमान व्यवस्था उलट-पुलट सकती है।
कंठ रुका है महानाश कामारक गीत रुद्ध होता है,आग लगेगी क्षण में, हृत्तलमें अब क्षुब्ध युद्ध होता है।झाड़ और झंखाड़ दग्ध हैं –इस ज्वलंत गायन के स्वर सेरुद्ध गीत की क्रुद्ध तान हैनिकली मेरे अंतरतर से।
विप्लव गायन कविता का भावार्थ
कवि ने विप्लव गायन कविता की इन पंक्तियों में कहा है कि मेरे गीत से पैदा हुए हालातों की वजह से महाविनाश का गला रुंध गया है और उसने मृत्यु का गीत गाना रोक दिया है। असल में, इन पंक्तियों में कवि कहना चाह रहे हैं कि जब भी समाज में बदलाव के लिए आवाज़ उठाई जाती है, तो उसे दबाने की लाखों कोशिशें की जाती हैं। मगर, क्रांति की आवाज़ ज्यादा समय तक दबाई नहीं जा सकती।
कवि के दिल में सामाजिक बुराइयों और वर्तमान व्यवस्था के प्रति को रोष है, उसकी ज्वाला से हर अवरोध जल कर राख हो जाएगा। फिर बदलाव के गीतों की तान दोबारा दोगुने ज़ोर से शुरू हो जाती है और उसके वेग से सभी सामाजिक कुरीतियां और ढोंग-पाखंड पल भर में समाप्त हो जाते हैं।
कण-कण में है व्याप्त वही स्वररोम-रोम गाता है वह ध्वनि,वही तान गाती रहती है,कालकूट फणि की चिंतामणि।आज देख आया हूँ – जीवनके सब राज़ समझ आया हूँ,भ्रू-विलास में महानाश केपोषक सूत्र परख आया हूँ।
विप्लव गायन कविता का भावार्थ
विप्लव गायन कविता की इन पंक्तियों में कवि कहते हैं कि संसार के हर एक कण में क्रांति का गीत समा गया है, हर दिशा से उसी की प्रतिध्वनि आ रही है। जिस तरह शेषनाग अपनी मणि की चिंता में डूबे रहते हैं, उसी प्रकार यह सारा संसार भी नवनिर्माण के चिंतन में लीन हो गया है।
विप्लव गायन कविता की अगली पंक्तियों में कवि कहते हैं कि मैं तो यह जानता हूँ कि बदलाव के बाद समाज में कैसी परिस्थितियां पैदा होंगी। इसीलिए वो कहते हैं कि समाज के विचारों और नज़रिए में बदलाव आने के साथ ही बुराइयों से भरे दूषित समाज का विनाश होने लगेगा और इसके बाद ही एक नए राष्ट्र और समाज का निर्माण प्रारम्भ होगा।
Q&A
viplav gayan class 7 question answer
viplav gayan class 7 prashnottar
प्रश्न 1: ‘कण-कण में है व्याप्त वही स्वर……………कालकूट फणि की चिंतामणि’
(क) ‘वही स्वर’,’वह ध्वनि’ एवं ‘वही तान’ आदि वाक्यांश किसके लिए/ किस भाव के लिए प्रयुक्त हुए हैं?
उत्तर : कवि ने वह स्वर, वह ध्वनि, और वही तान क्रांति को जगाने की भावना से प्रयुक्त किया है।
कवि का आशय है कि उसके क्रांतिकारी गीत में इतनी उत्तेजना है कि इस संसार के कण-कण में व्याप्त क्रांति का ये स्वर मुखरित हुआ है। शरीर का रोम-रोम भी इसी क्रांति की ध्वनि को गा रहा है और वही क्रांति की तान भी दे रहा है। कवि आगे कहता है कि ये संसार नहीं अपितु शेषनाग के फन में विद्यमान मणि भी इस क्रांतिकारी के गीत का गायन कर रही है अर्थात् मेरे गीत में इतनी उत्तेजना है कि संसार का हर प्राणी इसमें प्रवाहित हो गया है।
(ख) वही स्वर, वह ध्वनि एवं वही तान से संबंधित भाव का ‘रूद्ध-गीत की क्रुद्ध तान है/ निकली मेरी अंतरतर से’ – पंक्तियों से क्या कोई संबंध बनता है?
उत्तर : हाँ इन दोनों पंक्तियों में आपसी सम्बन्ध बनता है क्योंकि यह गीत कवि के क्रांतिकारी हृदय की गहराइयों से होता हुआ उनके स्वर के रूप में निकला है, उनकी ध्वनि उसे उत्तेजना प्रदान कर रही है। तान उसका सहायक बन उस गीत को सारे संसार में प्रवाहित कर रहा है। दोनों ही पंक्तियों में परिवर्तन की लहर लाने की बात है।
प्रश्न 2: नीचे दी गई पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए-
‘सावधान! मेरी वीणा में……दोनों मेरी ऐंठी हैं।’
उत्तर : इस पंक्ति में कवि सभी कवियों को सम्बोधित करते हुए ऐसे गीत को सुनाने के लिए कहते हैं जिससे इस संसार के प्रत्येक मनुष्य के हृदय में हाहाकार मच जाए अर्थात् चारों तरफ़ क्रांति की लहर उत्पन्न हो जाए, समस्त प्राणी उस हिलोर में सराबोर हो जाए। आगे कवि, उन व्यक्तियों को सम्बोधित करते हैं जो अपने दमन चक्र से हाहाकार मचाए हुए है। वो सब सावधान हो जाएँ क्योंकि अब मैंने समस्त संसार को झकझोर देने वाले गीत को आरम्भ कर दिया है। अब तो मेरी वीणा का स्वर भी मधुरता की अपेक्षा क्रांति की आग ही उगलेगा। भाव यह है कि अभी तक मैं केवल मधुरता लिए हुए गीतों की रंचना करता था व गाता था। अब मेरे गीत केवल राष्ट्रहित के लिए ही होगें। वो रसिको के मन को बहलाने के लिए नहीं अपितु जनता को गुलामी के बन्धन से जागृत करने के लिए होंगे। वह कहता है आज चाहे मिज़राब टूटे या मेरी अंगुलियाँ ऐंठ जाए पर मैं शान्त नहीं होऊँगा ना ही किसी को होने दूँगा अर्थात् इस गीत को गाते हुए मैं अपनी किसी परेशानी की तरफ़ तनिक ध्यान नहीं दूँगा फिर चाहे कष्ट किसी भी रूप में सामने आए।
प्रश्न 3: कविता में दो शब्दों के मध्य (−) का प्रयोग किया गया है, जैसे− ‘जिससे उथल-पुथल मच जाए’ एवं ‘कण-कण में है व्याप्त वही स्वर’। इन पंक्तियों को पढ़िए और अनुमान लगाइए कि कवि ऐसा प्रयोग क्यों करते हैं ?
उत्तर : दो शब्दों के मध्य (−) का प्रयोग कवि कविता में, शब्दों में ओज व चमत्कार उत्पन्न करने के लिए करते हैं। इसके कारण कविता ओजपूर्ण लगती है, जैसे कवि ने लिखा है –
कण-कण में है व्याप्त वही स्वर
रोम-रोम गाता है वह ध्वनि
दूसरे शब्दों में समानता लाकर कविता की लय को बनाए रखने में सहायता मिलती है, जैसे –
कवि, कुछ ऐसी तान सुनाओ-
जिससे उथल-पुथल मच जाए,
प्रश्न 4: कविता में (, − । आदि) जैसे विराम चिह्नों का उपयोग रुकने, आगे-बढ़ने अथवा किसी खास भाव को अभिव्यक्त करने के लिए किया जाता है। कविता पढ़ने में इन विराम चिह्नों का प्रभावी प्रयोग करते हुए काव्य पाठ कीजिए। गद्य में आमतौर पर है शब्द का प्रयोग वाक्य के अंत में किया जाता है, जैसे – देशराज जाता है। अब कविता की निम्न पंक्तियों को देखिए-
‘कण-कण में है व्याप्त……वही तान गाती रहती है,’
इन पंक्तियों में 'है' शब्द का प्रयोग अलग-अलग जगहों पर किया गया है। कविता में अगर आपको ऐसे अन्य प्रयोग मिलें तो उन्हें छाँटकर लिखिए।
उत्तर :
'है' का उदाहरण इस प्रकार है –
कंठ रूका है महानाश का
कारक गीत रूद्ध होता है
आग लगेगी क्षण में, हृत्तल में
अब क्षुब्ध-युद्ध होता है।
जय हिन्द : जय हिंदी
-----------------------------
0 Comments