patra lekhan in hindi | पत्र लेखन |

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patra lekhan in hindi
पत्र-लेखन

अपने रिश्तेदारों,साथियों,सबन्धियों अथवा मित्रों की कुशलता जानने के लिए तथा अपनी कुशलता का समाचार देने के लिए पत्र एक साधन है। इसके अतिरिक्त्त अन्य कार्यों के लिए भी पत्र लिखे जाते हैं ।
आजकल हमारे पास बातचीत करने, हाल-चाल जानने के अनेक आधुनिक साधन उपलब्ध हैं ; जैसे- टेलीफोन, मोबाइल फोन, ई-मेल, फैक्स आदि। प्रश्न यह उठता है कि फिर भी पत्र-लेखन सीखना क्यों आवश्यक है ? पत्र लिखना महत्त्वपूर्ण ही नहीं, अपितु अत्यंत आवश्यक है, कैसे? जब आप विद्यालय नहीं जा पाते, तब अवकाश के लिए प्रार्थना-पत्र लिखना पड़ता है। सरकारी व निजी संस्थाओं के अधिकारियों को अपनी समस्याओं आदि की जानकारी देने के लिए पत्र लिखना पड़ता है। फोन आदि पर बातचीत अस्थायी होती है। इसके विपरीत लिखित दस्तावेज स्थायी रूप ले लेता है।

महत्व
जिस प्रकार कुंजियाँ बक्सा .खोलती हैं, उसी प्रकार पत्र ह्रदय के विभित्र पटलों को खोलते हैं। मनुष्य की भावनाओं की स्वाभाविक अभिव्यक्ति पत्राचार से भी होती हैं। निश्छल भावों और विचारों का आदान-प्रदान पत्रों द्वारा ही सम्भव है।
पत्रलेखन दो व्यक्तियों के बीच होता है। इसके द्वारा दो हृदयों का सम्बन्ध दृढ़ होता है। अतः पत्राचार ही एक ऐसा साधन है, जो दूरस्थ व्यक्तियों को भावना की एक संगम भूमि पर ला खड़ा करता है और दोनों में आत्मीय सम्बन्ध स्थापित करता है। पति-पत्नी, भाई-बहन, पिता-पुत्र आदि  इस प्रकार के हजारों सम्बन्धों की नींव यह सुदृढ़ करता है। व्यावहारिक जीवन में यह वह सेतु है, जिससे मानवीय सम्बन्धों की परस्परता सिद्ध होती है। अतएव पत्राचार का बहुत महत्व है।

पत्रलेखन कला 
आधुनिक युग में पत्रलेखन को 'कला' की संज्ञा दी गयी है। पत्रों में आज कलात्मक अभिव्यक्तियाँ हो रही है। साहित्य में भी इनका उपयोग होने लगा है। जिस पत्र में जितनी स्वाभाविकता होगी, वह उतना ही प्रभावकारी होगा। एक अच्छे पत्र के लिए कलात्मक सौन्दर्यबोध और अन्तरंग भावनाओं का अभिव्यंजन आवश्यक है।
एक पत्र में उसके लेखक की भावनाएँ ही व्यक्त नहीं होती, बल्कि उसका व्यक्तित्व भी उभरता है। इससे लेखक के चरित्र, दृष्टिकोण, संस्कार, मानसिक स्थिति, आचरण इत्यादि सभी एक साथ झलकते हैं। अतः पत्रलेखन एक प्रकार की कलात्मक अभिव्यक्ति है। लेकिन, इस प्रकार की अभिव्यक्ति व्यवसायिक पत्रों की अपेक्षा सामाजिक तथा साहित्यिक पत्रों में अधिक होती है।

पत्र लिखने हेतु जरुरी जानकारी 

  • जिसके लिए पत्र लिखा जाये, उसके लिए पद के अनुसार शिष्टाचारपूर्ण शब्दों का प्रयोग करना चाहिए।
  • पत्र में हृदय के भाव स्पष्ट रूप से व्यक्त होने चाहिए।
  • पत्र की भाषा सरल एवं शिष्ट होनी चाहिए।
  • पत्र में बेकार की बातें नहीं लिखनी चाहिए। उसमें केवल मुख्य विषय के बारे में ही लिखना चाहिए।
  • पत्र में आशय व्यक्त करने के लिए छोटे वाक्यों का प्रयोग करना चाहिए।
  • पत्र लिखने के पश्चात उसे एक बार अवश्य पढ़ना चाहिए।
  • पत्र प्राप्तकर्ता की आयु, संबंध, योग्यता आदि को ध्यान में रखते हुए भाषा का प्रयोग करना चाहिए।
  • अनावश्यक विस्तार से बचना चाहिए।
  • पत्र में लिखी वर्तनी-शुद्ध व लेख-स्वच्छ होने चाहिए।
  • पत्र प्रेषक (भेजने वाला) तथा प्रापक (प्राप्त करने वाला) के नाम, पता आदि स्पष्ट रूप से लिखे होने चाहिए।
  • पत्र के विषय से नहीं भटकना चाहिए यानी व्यर्थ की बातों का उल्लेख नहीं करना चाहिए।

उत्तम पत्र की विशेषताएँ
एक अच्छे पत्र की पाँच विशेषताएँ है-

  • सरल भाषाशैली
  • विचारों की सुस्पष्ठता
  • संक्षेप और सम्पूर्णता
  • प्रभावान्विति
  • बाहरी सजावट

(1)  सरल भाषाशैली:- पत्र की भाषा साधारणतः सरल और बोलचाल की होनी चाहिए। शब्दों के प्रयोग में सावधानी रखनी चाहिए। ये उपयुक्त, सटीक, सरल और मधुर हों। सारी बात सीधे-सादे ढंग से स्पष्ट और प्रत्यक्ष लिखनी चाहिए। बातों को घुमा-फिराकर लिखना उचित नहीं।
(2) विचारों की सुस्पष्टता  :-- पत्र में लेखक के विचार सुस्पष्ट और सुलझे होने चाहिए। कहीं भी पाण्डित्य-प्रदर्शन की चेष्टा नहीं होनी चाहिए। बनावटीपन नहीं होना चाहिए। दिमाग पर बल देनेवाली बातें नहीं लिखी जानी चाहिए।
(3) संक्षेप और सम्पूर्णता:-- पत्र अधिक लम्बा नहीं होना चाहिए। वह अपने में सम्पूर्ण और संक्षिप्त हो। उसमें अतिशयोक्ति, वाग्जाल और विस्तृत विवरण के लिए स्थान नहीं है। इसके अतिरिक्त, पत्र में एक ही बात को बार-बार दुहराना एक दोष है। पत्र में मुख्य बातें आरम्भ में लिखी जानी चाहिए। सारी बातें एक क्रम में लिखनी चाहिए। इसमें कोई भी आवश्यक तथ्य छूटने न पाय। पत्र अपने में सम्पूर्ण हो, अधूरा नहीं। पत्रलेखन का सारा आशय पाठक के दिमाग पर पूरी तरह बैठ जाना चाहिए। पाठक को किसी प्रकार की लझन में छोड़ना ठीक नहीं।
(4) प्रभावान्वित:-- पत्र का पूरा असर पढ़नेवाले पर पड़ना चाहिए। आरम्भ और अन्त में नम्रता और सौहार्द के भाव होने चाहिए।
(5) बाहरी सजावट:-- पत्र की बाहरी सजावट से हमारा तात्पर्य यह है कि
(क) उसका कागज सम्भवतः अच्छा-से-अच्छा होना चाहिए;
(ख) लिखावट सुन्दर, साफ और पुष्ट हो;
(ग) विरामादि चिह्नों का प्रयोग यथास्थान किया जाय;
(घ) शीर्षक, तिथि, अभिवादन, अनुच्छेद और अन्त अपने-अपने स्थान पर क्रमानुसार होने चाहिए;
(ङ) पत्र की पंक्तियाँ सटाकर न लिखी जायँ और
(च) विषय-वस्तु के अनुपात से पत्र का कागज लम्बा-चौड़ा होना चाहिए।



 पत्र के वर्ग 

  • औपचारिक-पत्र
  • अनौपचारिक-पत्र


 औपचारिक-पत्र 

औपचारिक-पत्रों के तीन वर्ग हैं -

  • प्रार्थना-पत्र (अवकाश, शिकायत, सुधार, आवेदन के लिए लिखे गए पत्र आदि)।
प्रार्थना-पत्र - जिन पत्रों में निवेदन अथवा प्रार्थना की जाती है, वे 'प्रार्थना-पत्र' कहलाते हैं। ये अवकाश, शिकायत, सुधार, आवेदन के लिए लिखे जाते हैं।
  • कार्यालयी-पत्र (किसी सरकारी अधिकारी, विभाग को लिखे गए पत्र आदि)।

कार्यालयी-पत्र - जो पत्र कार्यालयी काम-काज के लिए लिखे जाते हैं, वे 'कार्यालयी-पत्र' कहलाते हैं। ये सरकारी अफसरों या अधिकारियों, स्कूल और कॉलेज के प्रधानाध्यापकों और प्राचार्यों को लिखे जाते हैं।

  • व्यवसायिक-पत्र (दुकानदार, प्रकाशक, व्यापारी, कंपनी आदि को लिखे गए पत्र आदि)।
व्यवसायिक पत्र - व्यवसाय में सामान खरीदने व बेचने अथवा रुपयों के लेन-देन के लिए जो पत्र लिखे जाते हैं,  उन्हें ' व्यवसायिक पत्र' कहते हैं।

औपचारिक पत्र लेखन हिंदी
औपचारिक-पत्र लिखते समय ध्यान रखने योग्य बातें

  • औपचारिक-पत्र नियमों में बंधे हुए होते हैं।
  •  इस प्रकार के पत्रों में नपी-तुली भाषा का प्रयोग किया जाता है। इसमें अनावश्यक बातों (कुशलक्षेम आदि) का उल्लेख नहीं किया जाता।
  •  पत्र का आरंभ व अंत प्रभावशाली होना चाहिए।
  •  पत्र की भाषा-सरल, लेख-स्पष्ट व सुंदर होना चाहिए।
  • यदि आप कक्षा अथवा परीक्षा भवन से पत्र लिख रहे हैं, तो कक्षा अथवा परीक्षा भवन (अपने पता के स्थान पर) तथा क० ख० ग० (अपने नाम के स्थान पर) लिखना चाहिए।
  • पत्र पृष्ठ के बाई ओर से हाशिए के साथ मिलाकर लिखें।
  •  पत्र को एक पृष्ठ में ही लिखने का प्रयास करना चाहिए ताकि तारतम्यता बनी रहे।
  • प्रधानाचार्य को पत्र लिखते समय प्रेषक के स्थान पर अपना नाम, कक्षा व दिनांक लिखना चाहिए।


औपचारिक-पत्र के सात अंग


  • पत्र प्रापक का पदनाम तथा पता।
  • विषय- जिसके बारे में पत्र लिखा जा रहा है, उसे केवल एक ही वाक्य में शब्द-संकेतों में लिखें।
  • संबोधन- जिसे पत्र लिखा जा रहा है- महोदय, माननीय आदि।
  • विषय-वस्तु-इसे दो अनुच्छेदों में लिखें :
  • पहला अनुच्छेद - अपनी समस्या के बारे में लिखें।
  • दूसरा अनुच्छेद - आप उनसे क्या अपेक्षा रखते हैं, उसे लिखें तथा धन्यवाद के साथ समाप्त करें।
  • हस्ताक्षर व नाम- भवदीय/भवदीया के नीचे अपने हस्ताक्षर करें तथा उसके नीचे अपना नाम लिखें।
  • प्रेषक का पता- शहर का मुहल्ला/इलाका, शहर, पिनकोड।
  • दिनांक।

   
     patra lekhan in hindi format
 औपचारिक-पत्र का प्रारूप


प्रधानाचार्य को प्रार्थना-पत्र

प्रधानाचार्य,
विद्यालय का नाम व पता.............
विषय : (पत्र लिखने के कारण)।
माननीय महोदय,


पहला अनुच्छेद ......................
दूसरा अनुच्छेद ......................


आपका आज्ञाकारी शिष्य,
क० ख० ग०
कक्षा......................
दिनांक ......................

व्यवसायिक-पत्र

प्रेषक का पता......................
दिनांक ......................
पत्र प्रापक का पदनाम,
पता......................
विषय : (पत्र लिखने का कारण)।
महोदय,


पहला अनुच्छेद ......................
दूसरा अनुच्छेद ......................


भवदीय,
अपना नाम
     

औपचारिक-पत्र की प्रशस्ति, अभिवादन व समाप्ति
प्रशस्ति - श्रीमान, श्रीयुत, मान्यवर, महोदय आदि।
अभिवादन - औपचारिक-पत्रों में अभिवादन नहीं लिखा जाता।
समाप्ति - आपका आज्ञाकारी शिष्य/आज्ञाकारिणी शिष्या, भवदीय/भवदीया, निवेदक/निवेदिका, शुभचिंतक, प्रार्थी आदि।

औपचारिक पत्रों के उदाहरण

(1) पुस्तक मँगाने के लिए प्रकाशक को लिखा गया पत्र-


सेवा में,
प्रकाशक,
क ख ग ,


महोदय,
मुझे मालूम हुआ है कि आपके यहाँ से 'काव्य पंथिका ' नामक पुस्तक का प्रकाशन हुआ है, जो विद्यार्थियों के लिए उपयोगी है। मुझे इसकी एक प्रति चाहिए। बड़ी कृपा होगी यदि इस पुस्तक की एक प्रति वी० पी० पी० से मेरे नाम भेज देने का कष्ट करें। आपको विश्र्वास दिलाता हूँ कि मैं वी० पी० पी० अवश्य छुड़ा लूँगा। धन्यवाद।


आपका विश्वासी,
रोहित


मेरा पता-
रोहित ,
स्थान-क ख ग
रेलवे-स्टेशन-अ ब स द

(2) स्कूल फीस माफ कराने के लिए प्रधानाध्यापक को लिखा गया पत्र-


श्रीमान् प्रधानाध्यापक जी,
विद्यालय का नाम , स्थान ।


मान्य महोदय,
सविनय निवेदन है कि मैं आपके स्कूल में सातवें वर्ग का एक बहुत ही निर्धन छात्र हूँ। मेरे पिताजी की मासिक आमदनी इतनी भी नहीं कि घर का सारा खर्च चल सकें ; स्कूल फीस देना तो दूर की बात है। मेरे पिताजी एक सामान्य नौकरी करते हैं। मेरे अलावा घर में पाँच भाई-बहन भी है, जिनकी पढ़ाई का सारा भार मेरे पिताजी पर ही है।


ऐसी हालत में उनके लिए मेरी पढ़ाई का बोझ उठाना कठिन है।लॉक डाउन से निर्मित परिस्थिति के कारण हम और भी ज्यादा परेशान हैं अतः सादर प्रार्थना है कि आप मेरी, मेरे पिताजी की और परिवार की वर्तमान स्थिति को ध्यान में रखकर मेरी स्कूल फीस माफ कर दें ताकि मैं निश्रित होकर पढ़ाई जारी रख सकूँ। इस कृपा के लिए मैं आपका सदा आभारी रहूँगा।


आपका आज्ञाकारी छात्र,
सोहित


(3) विवाह पर अवकाश के लिए प्रार्थना-पत्र


सेवा में,
श्रीमान प्रधानाचार्य महोदय,
विद्यालय का नाम
स्थान


मान्यवर महोदय,
सविनय निवेदन यह है कि मेरी बड़ी बहिन का विवाह। ........ को होना निश्चित हुआ है। घर के काम करने और मेहमानों की देखभाल के प्रबंध के लिए मेरा रहना आवश्यक है। इसलिए मुझे दिनांक......... से......... तक का तीन दिन का अवकाश प्रदान करने की कृपा करें।


सधन्यवाद।
आपका आज्ञाकारी शिष्य
अनुभव
कक्षा-सप्तम
दिनांक: .......





hindi patra lekhan में 
पत्र आरंभ करने का तरीका 
अनौपचारिक पत्र/औपचारिक पत्र

सामान्यतः पत्र का प्रारम्भ निम्नांकित वाक्यों से किया जाता है-

  • आपका पत्र/कृपापत्र मिला/प्राप्त हुआ
  • बहुत दिन से आपका कोई समाचार नहीं मिला
  • कितने दिन हो गये, आपने खैर-खबर नहीं दी/भेजी
  • आपका कृपा-पत्र पाकर धन्य हुआ
  • मेरा सौभाग्य है कि आपने मुझे पत्र लिखा
  • यह जानकर/पढ़कर हार्दिक प्रसन्नता हुई
  • अत्यन्त शोक के साथ लिखना/सूचित करना पड़ रहा है कि-
  • देर से उत्तर देने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ
  • आपको यह जानकर प्रसन्नता होगी कि-
  • आपका पत्र पाकर आश्चर्य हुआ कि-
  • सर्वप्रथम मैं आपको अपना परिचय दे दूं ताकि-
  • मैं आपके पत्र की आशा छोड़ चुका था/चुकी थी
  • आपको एक कष्ट देने के लिए पत्र लिख रहा हूँ/रही हूँ
  • आपसे मेरी एक प्रार्थना है कि-
  • सविनय निवेदन है कि-


पत्र लेखन हिंदीमें 
पत्र समापन का तरीका 
पत्र पूरा होने के बाद अन्त में सामान्यतः निम्नांकित वाक्यों का प्रयोग किया जाता है-

  • पत्रोत्तर की प्रतीक्षा में
  • पत्रोत्तर की प्रतीक्षा रहेगी
  • लौटती डाक से उत्तर अपेक्षित है
  • आशा है आप सपरिवार स्वस्थ एवं सानन्द होंगे।
  • यथाशीघ्र उत्तर देने की कृपा करें।
  • शेष मिलने पर।
  • मेष अगले पत्र में।
  • शेष फिर कभी।
  • शेष कुशल है।
  • यदा-कदा पत्र लिखकर समाचार देते रहें।
  • आशा है आपको यह सब स्मरण रहेगा।
  • मैं सदा/आजीवन आभारी रहूँगा/रहूँगी।
  • सधन्यवाद।
  • त्रुटियों के लिए क्षमा।
  • अब और क्या लिखूं ?
  • कष्ट के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ

अनौपचारिक पत्र के उदहारण
informal letter example in hindi


1. अपने मित्र अथवा अपनी सखी को अपने जन्म-दिवस पर बधाई-पत्र लिखिए।
2. आपके मित्र को छात्रवृत्ति प्राप्त हुई है। उसे बधाई-पत्र लिखिए।
3. "समय का महत्व' बताते हुए छोटी बहन को पत्र लिखिए
4. खानपान संबंधी अच्छी आदतों हेतु छोटे भाई को पत्र लिखिए।
5. घर में होने वाले किसी समारोह का वर्णन करते हुए अपने मित्र को पत्र लिखिए।
6. जन्मदिन के अवसर पर सुंदर उपहार प्राप्त करने पर चाचाजी को धन्यवाद पत्र लिखिए।
7. पिताजी से रुपए मँगवाने हेतु पत्र लिखिए।


1. अपने मित्र अथवा अपनी सखी को अपने जन्म-दिवस पर बधाई-पत्र लिखिए।

56-एल, मॉडल टाउन
कोच्ची
31 मार्च, 20XX

प्रिय सखी उत्तमा 

सस्नेह नमस्कार!
आज ही तुम्हारा पत्र प्राप्त हुआ है। यह जानकर अत्यंत प्रसन्नता हुई कि तुम 4 अप्रैल को अपना 17वाँ जन्म-दिवस मना रही हो। इस अवसर पर तुमने मुझे भी आमंत्रित किया है इसके लिए अतीव धन्यवाद। प्रिय सखी, मैं इस शुभावसर पर अवश्य पहुँचती, लेकिन कुछ कारणों से उपस्थित होना संभव नहीं। मैं अपनी शुभकामनाएँ भेज रही हूँ। ईश्वर से प्रार्थना है कि वे तुम्हें चिरायु प्रदान करें। तुम्हारा भावी जीवन स्वर्णिम आभा से मंडित हो। अगले वर्ष अवश्य आऊँगी। मैं अपनी ओर से एक छोटी-सी भेंट भेज रही हूँ, आशा है कि तुम्हें पसंद आएगी इस शुभावसर पर अपने माता-पिता को मेरी ओर से हार्दिक बधाई अवश्य देना।

तुम्हारी प्रिय सखी
अक्षरा 

2. आपके मित्र को छात्रवृत्ति प्राप्त हुई है। उसे बधाई-पत्र लिखिए।

512, चौक घंटाघर
भुवनेश्वर
19 जून, 20XX

प्रिय मित्र आकाश 

सस्नेह नमस्कार!
दिल्ली बोर्ड की दशम कक्षा की परिणाम सूची में तुम्हारा नाम छात्रवृत्ति प्राप्त छात्रों की सूची में देखकर मुझे अतीव प्रसन्नता हुई। प्रिय मित्र, मुझे तुमसे यही आशा थी। तुमने परिश्रम भी तो बहुत किया था। तुमने सिद्ध कर दिया कि परिश्रम की बड़ी महिमा है। 85 प्रतिशत अंक प्राप्त करना कोई खाला जी का घर नहीं। अपनी इस शानदार सफलता पर मेरी ओर से हार्दिक बधाई स्वीकार करें। अपने माता-पिता को भी मेरी ओर से बधाई देना। ग्रीष्मावकाश में तुम्हारे पास आऊँगा। मिठाई तैयार रखना।

आपका अपना
विपिन पाण्डेय 

3. "समय का महत्व' एवं उत्तम संगति के लाभ  बताते हुए छोटी बहन को पत्र लिखिए |

मकान न० 462 
ताराचंद अपार्टमेंट
कानपूर 

दिनांक- 05 दिसंबर, 2017

प्रिय अनुजा

सप्रेम,
मैं यहाँ कुशल हूँ आशा करता हूँ कि तुम भी सकुशल होगी। कल ही माता जी का पत्र मिला. पढ़कर यह जाना कि तुम आजकल मन लगाकर पढ़ नहीं रही हो, सारा दिन खेलती-घूमती रहती हो या टी.वी. और लैपटॉप पर अधिक समय व्यतीत करती हो। मैं तुम्हें यह बताना चाहता हूँ कि समय कभी लौटकर नहीं आता और यदि हम सही समय पर सही कार्य नहीं करते तो हमें पछताना पड़ता है। चाहकर भी हम बीता हुआ समय वापस नहीं पा सकते। इसलिए मैं तुम्हें यह सलाह देना चाहता हूँ कि एक समय-तालिका बनाओ उसके अनुसार खेल के समय खेल और पढ़ाई के समय पढ़ाई किया करो। तुम उन्हीं को अपना मित्र बनाओ जो स्वयं किसी बड़े लक्ष्य के साथ आचरण युक्त जीवन का पालन करते हों | हमेशा संस्कार और शिक्षा बड़ा नाम कमाते हैं | तुम्हें आने वाले समय में डॉक्टर बनकर माता-पिता के सपने को साकार करना है। अतः अच्छी संगति एवं समय के महत्त्व को पहचानो | मेरी शुभकामनाएँ सदा तुम्हारे साथ हैं। आशा करता हूँ कि अब तुम समय का सदुपयोग करोगी।

माता जी को मेरी ओर से प्रणाम कहना।

तुम्हारा अग्रज
रोहन 

4. खानपान संबंधी अच्छी आदतों हेतु छोटे भाई को पत्र लिखिए।

मकान न० 462
ताराचंद अपार्टमेंट
देहरादून

दिनंक- 05/07/2021

प्रिय अनुज

सप्रेम!
यहाँ पर सब कुशल-मंगल हैं। आशा करता हूँ कि तुम भी कुशलता से होंगे। मुझे यह मालूम हुआ है कि तुम आजकल ढंग से खाना नहीं खाते हो। जंक फूड (मैदे से बने पदार्थ) की ओर तुम्हारा रुझान बढ़ता जा रहा है। तुम्हें यह ज्ञात होना चाहिए कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है। शरीर को स्वस्थ बनाने हेतु भरपूर मात्रा में प्रोटीन, वसा, विटामिन आदि की आवश्यकता होती है जो सही रूप से फल, सब्तियों व दालों आदि के सेवन से प्राप्त होते हैं। तुम्हें समयानुसार भोजन करना चाहिए। आवश्यकतानुसार दूध व फलों का सेवन करना चाहिए। बाजार की बनी वस्तुएँ व जंक फूड के आदी बनकर अपना स्वास्थ्य खराब मत करो। माताजी का कहना माना करो। वे तुम्हारी बहुत चिता करती है। अपनी पसंदानुसार एक आहार तालिका बनाओ और उस पर पूरी तरह से अमल करो। कुछ दिन में ही खानपान की आदतें सुधर जाएँगी। किसी भी बदलाव हेतु मनुष्य को आत्मकेंद्रण व दृढनिश्चय की आवश्यकता होती है। मुझे आशा है कि तुम अपनी खानपान की आदतों में सुधार अवश्य लाओगे। माता-पिता को मेरी ओर से प्रणाम व गुड्डू को प्यार।

तुम्हारा अग्रज
अन्नू 

5. घर में होने वाले किसी समारोह का वर्णन करते हुए अपने मित्र को पत्र लिखिए।

मकान नं.-511
वाराणसी कैंट

दिनांक-25 अप्रैल, 2017

प्रिय सात्त्विक,
सस्नेह!

मैं यहाँ पर कुशल हूँ। आशा करता हूँ तुम भी सकुशल होंगे। पिछले सप्ताह हमारे नए घर का 'गृहप्रवेश समारोह' था। मैंने तुम्हें निमंत्रण-पत्र भेजा था लेकिन तुम अपनी परीक्षाओं के कारण इस समारोह में शामिल नहीं हो सके। यह सचमुच एक यादगार समारोह था। पहले पंडित जी द्वारा विधि-विधान द्वारा पूजा हुई। फिर हवन का कार्यक्रम था। हवन के बाद प्रीतिमोज पर काफी लोग आमंत्रित थे। हमारे घर मुख्यमंत्री जी भी पधारे थे क्योंकि वे मेरे पिताजी के घनिष्ठ मित्र हैं। प्रीतिभोज के साथ-साथ संगीत का भी प्रबंध था। सभी बच्चे नाचने-गाने में मस्त थे। सभी को बहुत मजा आया। यदि तुम भी आते तो मुझे बहुत अच्छा लगता। परीक्षाएं समाप्त होने पर हमारा नया घर देखने जरूर आना।

अपने माता-पिता को मेरी तरफ से प्रणाम कहना व छोटी बहन को प्यार देना ।

तुम्हारा मित्र
अनय 


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पत्र लेखन 




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हिंदी व्याकरण को आसान तरीके से समझने के लिए अध्ययन सामग्री को निर्मित किया गया है . व्याकरण किसी भी भाषा का अभिन्न अंग होता है . भाषा की समझ व्याकरण से ही बढ़ती है . विद्यार्थियों को रुचिकर और उत्सुकता बढ़ाने वाले ढंग से मार्गदर्शन देना जरुरी है . सरल भाषा में विभिन्न विषयों के साथ संयोजन करते हुए पढ़ाई करना आज की आवश्यकता है . प्रतिस्पर्धात्मक परीक्षाओं की तैयारी के लिए आधार बनाना भी जरुरी है . बच्चों के लिए हिंदी सीखें और बच्चे भी हिंदी सीखें.


जय हिन्द 
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