premchand ke phate joote class 9 | प्रेमचंद के फटे जूते

premchand ke phate joote class 9 | प्रेमचंद के फटे जूते


पाठ-6 
प्रेमचंद के फटे जूते



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ध्वनि प्रस्तुति 




Premchand ke Phate Jute katha saar
प्रेमचंद के फटे जूते
कथा-सार


परसाई जी के सामने प्रेमचंद तथा उनकी पत्नी का एक चित्र है। इसमें प्रेमचंद धोती-कुर्ता पहने हैं तथा उनके सिर पर टोपी है। वे बहुत दुबले हैं, चेहरा बैठा हुआ तथा हड्डियाँ उभरी हुई हैं। चित्र को देखने से ही पता चल रहा है कि वे निर्धनता में जी रहे हैं। वे कैनवस के जूते पहने हैं जो बिल्कुल फट चुके हैं, जिसके कारण ढंग से बँध नहीं पा रहे हैं और बाएँ पैर की उँगलियाँ दिख रही हैं। उनकी ऐसी हालत देखकर लेखक को चिंता हो रही हैं कि यदि उनकी (प्रेमचंद) फ़ोटो खिंचाते समय ऐसी हालत है तो वास्तविक जीवन में उनकी क्या हालत रही होगी। फिर उन्होंने सोचा कि प्रेमचंद कहीं दो तरह का जीवन जीने वाले व्यक्ति तो नहीं थे। किंतु उन्हें दिखावा पसंद नहीं था, अतः उनकी घर की तथा बाहर की जिंदगी एक-सी ही रही होगी। फ़ोटो में दिख रही तथा वास्तविक स्थिति में कोई अंतर नहीं रहा होगा। तभी तो निश्चितता तथा लापरवाही से फ़ोटो में बैठे हैं। वे ‘सादा जीवन उच्च विचार’ रखने में विश्वास रखते थे। अतः गरीबी से दुखी नहीं थे।

प्रेमचंद जी के चेहरे पर एक व्यंग्य भरी मुस्कान देखकर लेखक परेशान हैं। वह सोचते हैं कि प्रेमचंद ने फटे जूतों में फ़ोटो खिंचवाने से मना क्यों नहीं किया। फिर लेखक को लगा कि शायद उनकी पत्नी ने जोर दिया होगा, इसलिए उन्होंने फटे जूते में ही फ़ोटो खिंचा लिया होगा। लेखक प्रेमचंद की इस दुर्दशा पर रोना चाहते हैं किंतु उनकी आँखों के दर्द भरे व्यंग्य ने उन्हें रोने से रोक दिया।

लेखक सोचते हैं कि लोग फोटो खिंचवाने के लिए तो जूते, कपड़े, यहाँ तक कि बीवी भी माँग लेते हैं, फिर प्रेमचंद ने किसी के जूते क्यों नहीं माँगे । लेखक कहते हैं कि लोग तो इत्र लगाकर फोटो खिचाते है जिससे फोटो में खुशबू आ जाए।

लेखक कहते हैं कि मेरा भी तो जूता फट गया है किंतु वह ऊपर से तो ठीक है। मैं पर्दे का पूरी तरह से ध्यान रखता हूँ। मैं अपनी उँगली को बाहर नहीं निकलने देता। मैं इस तरह फटा जूता पहनकर फ़ोटो तो कभी नहीं खिंचवा सकता।

लेखक प्रेमचंद की व्यंग्य भरी मुस्कान देखकर आश्चर्यचकित हैं। वे सोच रहे हैं कि इस व्यंग्य भरी मुस्कान का आखिर क्या मतलब हो सकता है। क्या उनके साथ कोई हादसा हो गया या होरी का गोदान हो गया? या हल्कू किसान के खेत को नीलगायों ने चर लिया है या माधो ने अपनी पत्नी के कफ़न को बेचकर शराब पी ली है? या महाजन के तगादे से बचने के लिए प्रेमचंद को लंबा चक्कर काटकर घर जाना पड़ा है जिससे उनका जूता घिस गया है? लेखक को याद आता है कि ईश्वर-भक्त संत कवि कुंभनदास का जूता भी फतेहपुर सीकरी आने-जाने से घिस गया था।

अचानक लेखक को समझ आया कि प्रेमचंद का जूता लंबा चक्कर काटने से नहीं फटा होगा बल्कि वे सारे जीवन किसी कठोर वस्तु को ठोकर मारते रहे होंगे। रास्ते में पड़ने वाले टीले से बचकर निकलने के बजाए वे उसे ठोकरे मारते रहे होंगे। उन्हें समझौता करना पसंद नहीं है। जिस प्रकार होरी अपना नेम-धरम नहीं छोड़ पाए, या फिर नेम-धरम उनके लिए मुक्ति का साधन था।

लेखक मानते हैं कि प्रेमचंद की उँगली किसी घृणित वस्तु की ओर संकेत कर रही है, जिसे उन्होंने ठोकरें मार-मारकर अपने जूते फाड़ लिए हैं। वे उन लोगों पर मुस्करा रहे हैं जो अपनी उँगली को ढकने के लिए अपने तलवे घिसते रहते हैं।



 प्रश्नोत्तर 

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प्रेमचंद के फटे जूते प्रश्नोत्तर 



प्रश्न 1:हरिशंकर परसाई ने प्रेमचंद का जो शब्दचित्र हमारे सामने प्रस्तुत किया है उससे प्रेमचंद के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी विशेषताएँ उभरकर आती हैं?


उत्तर :लेखक ने प्रेमचंद का जो शब्द चित्र हमारे सामने प्रस्तुत किया है उससे उनके व्यक्तित्व की निम्नलिखित विशेषताएँ सामने आती हैं –

सादा जीवन
प्रेमचंद आडंबर तथा दिखावापूर्ण जीवन से दूर रहते थे। वे गाँधी जी की तरह सादा जीवन जीते थे।

उच्च विचार
प्रेमचंद के विचार बहुत ही उच्च थे। वे सामाजिक बुराइयों से दूर रहे। वे इन बुराइयों से समझौता नकर सके।

स्वाभिमानी
प्रेमचंद जी दूसरों की वस्तुओं को माँगना उचित नहीं समझते थे। वे अपनी दीन-हीन दशा में संतुष्ट थे।
सामाजिक कुरीतियों के प्रति जागरूकता उत्पन्न करने वाले– प्रेमचंद ने समाज में फैली हुई कुरीतियों के प्रति लोगों को सावधान किया। वे एक स्वस्थ समाज चाहते थे तथा स्वयं भी बुराइयों से कोसों दूर रहने वाले थे।

अपनी स्थिति से संतुष्ट
प्रेमचंद का जीवन हमेशा अभावों में बीता। उन्होंने अपनी स्थिति दूसरों से छिपाकर रखी।वे जैसे भी थे उसी में खुश रहने वाले व्यक्ति थे।

संघर्षशील
प्रेमचंद जी अपने जीवन में आने वाली मुसीबतों से कभी भी दूर नहीं भागते थे बल्कि वे उनका डटकर सामना करते थे और उसपर विजय पाकर आगे बढ़ते थे। 

प्रेमचंद के व्यक्तित्व की विशेषताएँ -

(1) प्रेमचंद का व्यक्तित्व बहुत ही सीधा-सादा था, उनके व्यक्तित्व में दिखावा नहीं था।
(2) प्रेमचंद एक स्वाभिमानी व्यक्ति थे। किसी और की वस्तु माँगना उनके व्यक्तित्व के खिलाफ़ था।
(3) इन्हें समझौता करना मंजूर नहीं था।
(4) ये परिस्थितियों के गुलाम नहीं थे। किसी भी परिस्थितियों का डटकर मुकाबला करना इनके व्यक्तित्व की विशेषता थी।

प्रश्न  2:सही कथन के सामने(✓) का निशान लगाइए -


(क) बाएँ पाँव का जूता ठीक है मगर दाहिने जूते में बड़ा छेद हो गया है जिसमें से अँगुली बाहर निकल आई है।
(ख) लोग तो इत्र चुपड़कर फोटो खिंचाते हैं जिससे फोटो में खुशबू आ जाए।
(ग) तुम्हारी यह व्यंग्य मुसकान मेरे हौसले बढ़ाती है।
(घ) जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ़ अँगूठे से इशारा करते हो?


उत्तर :
(ख) लोग तो इत्र चुपड़कर फोटो खिंचाते हैं जिससे फोटो में खुशबू आ जाए। (✓)

प्रश्न 3 :नीचे दी गई पंक्तियों में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए -

(क) जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है। अब तो जूते की कीमत और बढ़ गई है और एक जूते पर पचीसों टोपियाँ न्योछावर होती हैं।

उत्तर : यहाँ पर जूते का आशय समृद्धि से है तथा टोपी मान, मर्यादा तथा इज्जत का प्रतीक है। वैसे तो इज़्जत का महत्व सम्पत्ति से अधिक है। परन्तु आज की परिस्थिति में इज़्जत को समाज के समृद्ध एवं प्रतिष्ठित लोगों के सामने झुकना पड़ता है।

(ख) तुम परदे का महत्व ही नहीं जानते, हम परदे पर कुर्बान हो रहे हैं।

उत्तर : यहाँ परदे का सम्बन्ध इज़्जत से है। जहाँ कुछ लोग इज़्ज़त को अपना सर्वस्व मानते हैं तथा उस पर अपना सब कुछ न्योछावर करने को तैयार रहते हैं, वहीं दूसरी ओर समाज में कुछ ऐसे लोग भी हैं जिनके लिए इज़्ज़त महत्वहीन है।

(ग) जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ़ हाथ की नहीं, पाँव की अँगुली से इशारा करते हो?

उत्तर :प्रेमचंद गलत वस्तु या व्यक्ति को इस लायक नहीं समझते थे कि उनके लिए अपने हाथ का प्रयोग करके हाथ के महत्व को कम करें बल्कि ऐसे गलत व्यक्ति या वस्तु को पैर से सम्बोधित करना ही उसके महत्व के अनुसार उचित है।

प्रश्न  4 :पाठ में एक जगह पर लेखक सोचता है कि 'फोटो खिंचाने की अगर यह पोशाक है तो पहनने की कैसी होगी?' लेकिन अगले ही पल वह विचार बदलता है कि 'नहीं, इस आदमी की अलग-अलग पोशाकें नहीं होंगी।' आपके अनुसार इस संदर्भ में प्रेमचंद के बारे में लेखक के विचार बदलने की क्या वजहें हो सकती हैं?

उत्तर :पहले लेखक प्रेमचंद के साधारण व्यक्तित्व को परिभाषित करना चाहते हैं कि ख़ास समय में ये इतने साधारण हैं तो साधारण मौकों पर ये इससे भी अधिक साधारण होते होंगे। परन्तु फिर बाद में लेखक को ऐसा लगता है कि प्रेमचंद का व्यक्तित्व दिखावे की दुनिया से बिल्कुल अलग है क्योंकि वे जैसे भीतर हैं वैसे ही बाहर भी हैं।

प्रश्न  5 :आपने यह व्यंग्य पढ़ा। इसे पढ़कर आपको लेखक की कौन सी बातें आकर्षित करती हैं?

उत्तर :लेखक एक स्पष्ट वक्ता है। यहाँ बात को व्यंग के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है। प्रेमचंद के व्यक्तित्व की विशेषताओं को व्यक्त करने के लिए जिन उदाहरणों का प्रयोग किया गया है, वे व्यंग को ओर भी आकर्षक बनाते हैं। कड़वी से कड़वी बातों को अत्यंत सरलता से व्यक्त किया है। यहाँ अप्रत्यक्ष रुप से समाज के दोषों पर व्यंग किया गया है।

प्रश्न 6 :पाठ में 'टीले' शब्द का प्रयोग किन संदर्भों को इंगित करने के लिए किया गया होगा?

उत्तर :पाठ में 'टीले' शब्द का प्रयोग मार्ग की बाधा के रुप में किया गया है। प्रेमचंद ने अपनी लेखनी के द्वारा समाज की बुराईयों को प्रस्तुत करने का प्रयास किया। ऐसा करने के लिए उन्हें बहुत सारी कठिनाईयों का सामना करना पड़ा।



 रचना और अभिव्यक्ति 



प्रश्न 7: प्रेमचंद के फटे जूते को आधार बनाकर परसाई जी ने यह व्यंग्य लिखा है। आप भी किसी व्यक्ति की पोशाक को आधार बनाकर एक व्यंग्य लिखिए।

उत्तर : महावीर प्रसाद द्विवेदी एक प्रसिद्ध रचनाकार हैं। जीवन भर इन्होंने सरस्वती की उपासना की। इसी कारण लक्ष्मी इनसे रुठी रही। अरे भाई! अगर थोड़ी सी पूजा लक्ष्मी जी की भी कर देते तो क्या सरस्वती रुष्ट हो जाती। आपके अन्य मित्रों ने तो सफलता की सीढ़ी पार कर ली परन्तु इस दौर में आप थोड़े पीछे रह गए। अगर थोड़ा मन लगाकर चलते तो अकेले नहीं रह जाते।

प्रश्न  8: आपकी दृष्टि में वेश-भूषा के प्रति लोगों की सोच में आज क्या परिवर्तन आया है?

उत्तर : पहले वेश-भूषा का प्रयोग शरीर ढ़कने के उद्देश्य से किया जाता था। परिवर्तन समाज का नियम है। इसलिए समय के बदलते रूप ने वेश-भूषा की परिभाषा को बदल दिया है। आज की स्थिति ऐसी हो गई है कि लोग फैशन के लिए इसका प्रयोग कर रहे हैं और समय के परिवर्तन के साथ अगर कोई स्वयं को न बदले तो समाज में उसकी प्रतिष्ठा नहीं बनती। स्वयं को समाज में प्रतिष्ठित करने के लिए लोग अपनी आर्थिक क्षमता से बाहर जाकर वेश-भूषा का चुनाव करते हैं। आज वेश-भूषा केवल व्यक्ति की ज़रुरत न होकर उसके व्यक्तित्व का एक अभिन्न अंग बन चुका है।


 भाषा-अध्ययन 


प्रश्न  9:पाठ में आए मुहावरे छाँटिए और उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए।


उत्तर :
(1) अँगुली का इशारा - 
(कुछ बताने की कोशिश) 
मैं तुम्हारी अँगुली का इशारा खूब समझता हूँ।


(2) व्यंग्य-मुसकान - 
(मज़ाक उड़ाना) 
तुम अपनी व्यंग भरी मुस्कान से मेरी तरफ़ मत देखो।


(3) बाजू से निकलना - 
(कठिनाईयों का सामना न करना)
 इस कठिन परिस्थिति में तुमने मेरा साथ छोड़कर बाजू से निकलना सही समझा।


(4) रास्ते पर खड़ा होना - 
(बाधा पड़ना)
तुम मेरी सफलता के रास्ते पर खड़े हो।


प्रश्न 10:प्रेमचंद के व्यक्तित्व को उभारने के लिए लेखक ने जिन विशेषणों का उपयोग किया है उनकी सूची बनाइए।


उत्तर :लेखक ने प्रेमचंद की विशेषताओं को प्रस्तुत करने के लिए कुछ शब्दों का प्रयोग किया है। वे इस प्रकार हैं -

(1) महान कथाकार
(2) उपन्यास-सम्राट
(3) युग-प्रवर्तक



अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर 

प्रश्न 1. प्रेमचंद फोटो में कैसे नजर आ रहे थे?

उत्तर : फोटो में प्रेमचंद अत्यंत साधारण-सी वेषभूषा में नजर आ रहे थे। उनके साथ में उनकी पत्नी थी। वे कुर्ता-धोती पहने, सिर पर टोपी लगाए थे। पाँवों में कैनवस के बेतरतीब बंद वाले जूते थे, जिनकी लोहे की पतरी गायब थी। उन्हें किसी तरह बाँध लिया गया था। बाएँ पैर के फटे जूते से उनके पैर की उँगली दिख रही थी।

प्रश्न 2. ‘गंदे-से-गंदे आदमी की फोटो भी खुशबू देती है’ के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है?

उत्तर : इस वाक्य के द्वारा लेखक ने समाज में व्याप्त दिखावे और फैशन पर व्यंग्य किया है। लोग अपनी फोटो खिचाते समय दूसरों से कपड़े, टाई, जूते आदि उधार लेते हैं। बाल सेट कराते हैं ताकि उनकी फोटो सुंदर आए। वे अपनी फोटो खिचाते समय अपने बैठने का ढंग, मुख, मुद्रा आदि का विशेष ध्यान रखते हैं, जिससे उनकी फोटो अच्छी आए।


प्रश्न 3. प्रेमचंद ने फटे जूते में भी अपनी फोटो खिंचा ली, पर लेखक ऐसा कभी न करता, क्यों?

उत्तर : प्रेमचंद स्वभाव से सहज तथा सरल थे। वे अपनी गरीबी की स्थिति में खुशी-खुशी जीना सीख गए थे। वे अपनी स्थिति को छिपाना नहीं जानते थे। वे यथार्थ को स्वीकार करने वाले थे, इसलिए जैसे थे, वैसे ही दिखते थे। उन्होंने फटे जूतों के साथ फोटो खिचा ली पर लेखक को उस स्थिति में हीनता और कमी नजर आती है। वह इसे छिपाना चाहता है, इसलिए इस दशा में फोटो न खिंचा पाता। 

प्रश्न 4. रास्ते में पड़ने वाले टीले के विषय में प्रेमचंद और लेखक के दृष्टिकोण किस प्रकार भिन्न हैं?

उत्तर : रास्ते में पड़ने वाले टीले के विषय में प्रेमचंद और लेखक के दृष्टिकोण में मुख्य अंतर यह था कि प्रेमचंद उस टीले को हटाने के लिए उस पर ठोकर मारते रहे। भले ही ऐसा करते हुए उनका जूता फट गया पर लेखक उस टीले से बचकर निकल जाने वालों में था। अर्थात् प्रेमचंद सामाजिक कुरीतियों से लड़ने वालों में थे जबकि लेखक उनसे समझौता करने वालों में था।

प्रश्न 5. ‘प्रेमचंद के फटे जूते (Premchand ke fate Joote) पाठ में प्रेमचंद और होरी’ की किस कमजोरी की ओर संकेत किया गया है?

उत्तर : इस पाठ में प्रेमचंद और होरी दोनों की एक ही कमजोरी की ओर संकेत किया गया है। वह कमजोरी है नेम-धरम का पक्का होना। दोनों ने कभी भी धर्म के नियमों का उल्लंघन नहीं किया। वे अपने मूल्यों से कभी नहीं भटके। अपनी-अपनी मर्यादाओं की रक्षा के लिए वे दोनों आजीवन मुसीबतें झेलते रहे।

प्रश्न 6.प्रेमचंद के जीवन से आज के युवाओं को क्या सीख लेना चाहिए? ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ (Premchand ke Phate Joote) पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।

उत्तर : प्रेमचंद अत्यंत सादा जीवन जीने में विश्वास रखते थे। वे बनाव शृंगार और आडंबर से कोसों दूर रहते थे। उन्होंने फोटो खिंचवाने जैसे विशिष्ट मौके पर भी बनावटी वेशभूषा धारण करने का प्रयास नहीं किया। इससे आज के युवा जो फैशनपरस्ती और बनावटी जीवन जीने के लिए निकृष्ट कार्य करने से भी परहेज नहीं करते हैं, को आडंबरहीन एवं साधारण जीवन जीने की सीख लेनी चाहिए।

प्रश्न 7. ‘नेम-धरम की कमजोरी होरी के लिए बंधन बन गए।‘ स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : होरी ने आजीवन नेम-धरम का पालन किया। वह नेम-धरम का पक्का था। उसने कभी मर्यादा एवं नैतिकता का साथ नहीं छोड़ा। इन्हीं नियमों और धर्म की आड़ में समाज ने उस पर अत्याचार किए, वहिष्कृत किया, पर वह नेम-धरम के कारण मानवीय मूल्य न त्याग सका और आजीवन गरीबी की मार झेलता रहा। इस प्रकार नेम-धरम उसके लिए बंधन बन गए थे। 


लघु उत्तरीय प्रश्न

 
प्रश्न 1 : लेखक प्रेमचंद के जूते देखकर क्यों रो पड़ना चाहता है?

उत्तर : लेखक प्रेमचंद की वेषभूषा और जूते देखकर इसलिए रो पड़ना चाहता है क्योंकि इतना महान लेखक होने के बाद भी प्रेमचंद बदहाली की स्थिति से गुजर रहे थे। उसके पास विशेष अवसर पर भी पहनने के लिए अच्छे कपड़े और जूते न थे। लेखक उनकी स्थिति से उत्पन्न दुख को अपने भीतर तक महसूस कर रो देना चाहता है।

प्रश्न 2 : लेखक की नजर प्रेमचंद के जूतों पर क्यों अटक गई?

उत्तर : लेखक की नजर प्रेमचंद के जूतों पर इसलिए अटक गई क्योंकि महान कथाकार, युग प्रवर्तक आदि नामों से जाना जाने वाले लेखक के पास ढंग के जूते भी नहीं हैं। जूतों के फीते बेतरतीब बँधे हैं। उनकी पतरियाँ निकल चुकी हैं। वे जैसे-तैसे बँधे हैं। बाएँ पैर का जूता फटने से उँगली बाहर निकल आई है। ये जूते लेखक की बदहाली बयाँ कर रहे हैं। 

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 

प्रश्न 1 : “प्रेमचंद के फटे जूते’ (Premchand ke fate Joote) पाठ में लेखक द्वारा प्रेमचंद के जूते फटने के क्या कारण बताए गए हैं?

उत्तर : ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ पाठ में लेखक द्वारा उनके जूते फटने का निम्नलिखित कारण बताए गए हैं- 

प्रेमचंद के जूते फटने के कारण बनिया द्वारा दिया गया उधार के सामान का वह पैसा है, जिसके तकादे से बचनेके लिए प्रेमचंद दूर का चक्कर लगाकर घर जाते थे।
उन्होंने किसी ऐसी चीज जो परत-दर-परत सदियों से जम गई थी, उस पर ठोकर मारकर अपना जूता फाड़ लिया था।
शायद प्रेमचंद ने अपने रास्ते में पड़ने वाले किसी टीले पर अपना जूता आजमाया हो, जिसकी ठोकर से उनका जूताफट गया हो। 


प्रश्न 2 : लेखक ने प्रेमचंद को साहित्यिक पुरखा कहा है, स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : लेखक ने प्रेमचंद को साहित्यिक पुरखा इसलिए कहा है क्योंकि प्रेमचंद अपने समय के लेखकों में ही नहीं बल्कि संपूर्ण हिंदी साहित्य में सर्वोच्च स्थान रखते थे। वे यथार्थवादी लेखक थे। उन्होंने अपने आसपास, देश, काल तथा समाज की स्थिति का सच्चा तथा वास्तविक चित्रण अपने लेखन में किया है। उनका लेखन इतनी उच्चकोटि का होता था कि बहुत अच्छा लिखने वाले की तुलना उनसे की जाती थी। उन्होंने जिन विषयों पर लेखनी चलाई उनकी प्रासंगिकता आज भी उतनी ही है। वे दूरद्वष्टा भी थे, जिन्हें तत्कालीन राजनैतिक, सामाजिक तथा आर्थिक परिस्थितियों का अच्छा ज्ञान था। 

प्रश्न 3 : लेखक और प्रेमचंद के जूतों में क्या अंतर था ? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : प्रेमचंद के दाहिने पैर का जूता ठीक है पर बाएँ पैर के जूते में ऊपर छेद हो गया है, जिससे उँगुली बाहर निकल आई है। उनके फीते बेतरतीब बँधे हैं। उनकी पतरी निकल चुकी है। इसके विपरीत लेखक का जूता ऊपर से तो ठीक है पर अंगूठे के नीचे का तला घिस गया है, जिससे उनका अँगूठा घिसकर लहूलुहान हो जाता है। इस तरह पूरा तला घिस जाएगा और उनका पूरा पंजा छिल जाएगा तथा वह चलने में असमर्थ हो जाएगा। इसके अलावा प्रेमचंद का पंजा सुरक्षित है पर लेखक का नहीं।

प्रश्न 4 : ‘तुम भी जूते और टोपी के आनुपातिक मूल्य के मारे हुए थे’ के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है?

उत्तर : इस पंक्ति के माध्यम से लेखक ने साहित्यकार प्रेमचंद की गरीबी एवं खराब स्थिति पर व्यंग्य किया है। प्रेमचंद उच्चकोटि के साहित्यकार थे, जिन्हें टोपी की तरह सिर पर धारण किया जाना था अर्थात् उनका भरपूर सम्मान किया जाना था, पर समाज में टोपी के बजाए जूते की कीमत अधिक आँकी जाती थी। जो सम्मान के पात्र नहीं है उन्हें मानसम्मान दिया जाता है। यहाँ तो स्थिति यह है कि टोपी को जूते के सामने झुकना पड़ता है। प्रेमचंद उच्चकोटि के साहित्यकार होने के बाद भी अपनी मूलभूत आवश्यकताएँ पूरी करने में विवश थे। वे गरीबी में जीवन-यापन कर रहे थे। 



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