Lakh Ki Chudiyan | लाख की चूड़ियाँ | laakh ki chudiyaan

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पाठ -2

लाख की चूड़ियाँ 

लेखक- कामतानाथ

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lakh ki chudiyan pdf


lakh ki chudiyan class 8

ध्वनि प्रस्तुति 


 


 

Lakh Ki Chudiyan
शब्दार्थ



lakh ki chudiyan shabdarth

  • लाख- लाल रंग का एक पदार्थ जो गर्म करने पर पिघलता है
  • चाव- शौक
  • ढेर- बहुत सारा
  • मन मोह लेना- आकर्षित करना
  • ऊँचे पर - जमीन से ऊंचाई पर
  • सहन- आँगन
  • भट्ठी - अंगीठी( सिगड़ी)
  • दहकना-जलना
  • चौखट- दरवाजे का फ्रेम
  • मुलायम- नरम
  • सलाख- लोहे की छड़ी
  • विभिन्न- तरह-तरह की
  • मुंगेरिया- लकड़ी का गोल गुटका या टुकड़ा
  • चूड़ी- कलाई में पहनने वाला आभूषण( गहना)
  • पश्चात- बाद में
  • मचिया- बैठने की चौकी
  • नव-वधू -नई दुल्हन
  • मनिहार- चूड़ी बनाने वाला
  • पैतृक - पूर्वजों का
  • पेशा- व्यापार, कारोबार, धंधा
  • खपत- खर्च, समाप्त
  • वस्तु विनिमय- वस्तुओं का आदान प्रदान
  • स्वभाव- आदत, प्रवृत्ति
  • जिद पकड़ना- किसी बात पर अड़ जाना
  • मुफ्त- बिना किसी पैसे का
  • सुहाग का जोड़ा- शादी के समय का आभूषण
  • बिगड़ना- नाराज होना
  • लोहे लगना- बड़ी कठिनाई से
  • पगड़ी- सिर पर पहनने का वस्त्र
  • संसार-विश्व
  • चिढ़-खीजना
  • कुढ़- जलना ,इर्ष्या करना
  • मरद - आदमी
  • नाजुक- कमजोर
  • मोच- (हाथ )मुड़ जाना ,अंदरूनी चोट ,
  • खातिर-आवभगत

  • अतिरिक्त- फालतू, जरूरत से ज्यादा
  • लगभग- तकरीबन, आकलन
  • बहुधा- बहुत बार
  • अवधि- समय
  • रुचि- शौक, चाव
  • विरले- किसी-किसी के( बहुत कम)
  • सहसा- अचानक
  • ध्यान हो आया- याद आ गया
  • आँगन-दालान
  • अतीत- बीता हुआ समय
  • चित्र उतारना- तस्वीर खींचना
  • एकदम- अचानक
  • शांति- चुपचाप
  • दृष्टि- नजर
  • प्रचार- फैलाना, फैलाव
  • मशीनी युग- मशीनों का समय, मशीनीकरण
  • अवस्था- आयु
  • ढल चुका- क्षीण होना
  • नसें उभरना - शरीर की नाड़ियाँ दिखाई देना
  • शंका - शक
  • भाँप लेना - पहचान लेना, पता लगा लेना
  • व्यथा- दुख, परेशानी
  • हाथ काट देना- पंगु बना देना, मजबूर कर देना
  • लहक कर -खुश होकर, प्रसन्न होकर
  • मुखातिब- संबोधन, सामने की ओर
  • डलिया -टोकरी
  • उमर- आयु
  • बखत- समय
  • सिंदूरी- लाल, आम की एक किस्म
  • अँजुली -हथेली
  • ठिठक गई - ठहर गई
  • फब -खिल,जम ( कोई चीज अच्छी लगना)
  • हार कर भी हार न मानना- अपनी बात पर अड़े रहना.



Lakh Ki Chudiyan
पाठ का सार

lakh ki chudiyan saransh

लेखक को गाँव में बदलू सबसे भला इंसान लगता था क्योंकि बदलू उसे लाख की सुंदर-सुंदर गोलियाँ बनाकर देता था . बदलू लेखक के मामा के गाँव का था अतः लेखक को उसे बदलू मामा संबोधन करना था लेकिन गाँव के सभी बच्चे बदलू को प्यार से बदलू ‘काका’ कहते थे इसलिए लेखक भी बदलू काका ही कहता था .

                                  बदलू का घर जमीन से कुछ ऊँचाई पर बना था वहाँ एक पुराना नीम का पेड़ था जिसके नीचे बैठकर बदलू लाख की चूड़ियाँ बनाता था . वहीँ भट्ठी चला करती थी, एक चौखट पड़ी थी ,वह मचिया पर बैठकर बेलननुमा मुंगेरी से लाख की सुन्दर -सुन्दर चूड़ियाँ बनाता और मचिया पर बैठकर बीच-बीच में हुक्का भी पीता रहता था.

                                                      लेखक का दोपहर का अधिकतर समय बदलू के पास ही बीतता बदलू लेखक को 'लला' कहकर पुकारता था . लेखक बदलू को लाख की चूड़ियाँ बनाते हुए बड़े शौक से देखता था.बदलू रोज लगभग 4 से 6 जोड़ी लाख की चूड़ियाँ बनाता था.

                                                                                                 बदलू मनिहार था.लाख की चूड़ियाँ बनाना उसका पैतृक पेशा था. उसकी बनाई चूड़ियाँ गांव की सभी स्त्रियाँ पसंद करती थीं लेकिन वह चूड़ियों को कभी पैसों में नहीं बेचता था .वह वस्तु विनिमय ( किसी वस्तु के बदले वस्तु का लेन-देन ) का तरीका अपनाता था लोग उससे अनाज के बदले चूड़ियाँ ले जाते थे. बदलू स्वभाव से बहुत सीधा-साधा था.

          शादी विवाह के अवसर पर बदलू अपनी चूड़ियों की पूरी कीमत वसूलता था. उसे विवाह अवसर के समय वस्त्र ,अनाज ,पगड़ी और रुपए भी मिलते. बदलू काँच की चूड़ियों से चिढ़ा करता था. किसी स्त्री के हाथों में काँ  की चूड़ियाँ देखकर वह कुढ़ जाता और दो-चार बातें सुना देता था .जब कभी लेखक उससे कहता कि शहर में सभी कांच की चूड़ियाँ ही पहनते हैं तो वह उत्तर देता कि शहर की बात और है, वहाँ तो सब कुछ होता है ,वहाँ औरतें अपने मरद का हाथ पकड़ कर घूमती हैं .वैसे भी औरतों की कलाई नाजुक होती है लाख की चूड़ियाँ पहनने से उन्हें मोच भी आ सकती है.

                                                                                                                       बदलू के घर लेखक की अच्छी मेहमान नवाजी होती .लेखक को दूध मिलता ,खाने के लिए मलाई मिलती और अच्छी  किस्म के आम मिला करते थे . लेखक लाख की एक-दो गोली रोज ही अपने साथ ले जाता था.

                                                                                                                          लेखक गर्मियों की छुट्टी में मामा के यहाँ जाता और वहाँ कुछ समय रह कर वापस आ जाता लेकिन एक बार पिता जी की एक दूर शहर में बदली हो गई . लेखक लंबे समय तक अपने मामा के गाँव नहीं जा सका और 8 से 10 वर्ष बीतने के बाद लेखक जब बड़ा हो गया तो उसकी रूचि लाख की गोलियों में नहीं रही. एक बार जब वह गाँव गया तो उसे बदलू का ध्यान ही न आया .उसने अपने गाँव में सभी स्त्रियों के हाथों में काँच की चूड़ियाँ देखीं .

                           एक बार मामा की छोटी लड़की आंगन में फिसल कर गिर पड़ी .उसकी कलाइयों में काँच की चूड़ी से चोट लग गई थी . मरहम पट्टी लेखक ने ही करवाई. इसी दौरान लेखक को बदलू की याद आई और वह बदलू से मिलने चला गया . बदलू वहीँ चबूतरे पर एक खाट पर लेटा हुआ था लेखक को देखकर बदलू उसे पहचान नहीं सका . तब लेखक ने कहा मैं हूँ 'जनार्दन' . बदलू ने दिमाग पर जोर डालकर लेखक को पहचान ही लिया और बोला आओ बैठो 'लला'  बहुत दिन बाद गाँव में आना हुआ.

          लेखक ने अपने चारों ओर नजर दौड़ाई तो उसे चूड़ियाँ बनाने का सामान नजर नहीं आया तब उसने पूछा क्या आजकल काम नहीं करते हो ? तो बदलू ने कहा हाँ कई साल हो गए मैंने काम बंद कर दिया है . अब मेरे द्वारा बनाई गई चूड़ी कोई नहीं पूछता. गाँव-गाँव में काँच की चूड़ी का चलन हो गया. मशीनी युग आ गया है सब काम मशीन से होता है और फिर सुंदरता ( चमक) भी काँच की चूड़ियों में अधिक होती है जो लाख की चूड़ियों में संभव नहीं. लेकिन काँच बहुत खतरनाक होता है जल्दी टूट जाता है.

                     बातों ही बातों में बदलू को खाँसी आ गई .लेखक को लगा कि बदलू को दमा हो गया लेकिन बदलू ने कहा कि यह मौसमी खाँसी है कुछ ही दिन में ठीक हो जाएगी .लेखक चुप रहा लेकिन वह भाँप गया कि बदलू अंदर ही अंदर कोई दुख भरी कहानी छुपा रहा है और लेखक देर तक सोचता रहा कि शायद इस मशीनी युग ने कई लोगों के हाथ काट दिए हैं (बेरोजगार कर दिया है) और बदलू भी उनमें से एक है.

                     बदलू ने अपनी बेटी रज्जो को बुलाया और लेखक को आम देने के लिए कहा .जब रज्जो लेखक को आम दे रही थी तो लेखक ने रज्जो के हाथों में लाख की चूड़ियों को देखा . वह कुछ बोल पाता कि बदलू ने कहा - यह आखिरी जोड़ा है जो जमींदार साहब की बेटी के विवाह पर बनाया था .उचित पैसे नहीं दे रहे थे इसलिए मैंने उनको नहीं दिया. फिर लेखक अपने साथ कुछ आम लेकर चला गया और लेखक को यह जानकर अच्छा लगा कि  बदलू ने हार कर भी हार नहीं मानी है उसका व्यक्तित्व अभी भी काँच की चूड़ियों के जैसा नहीं हुआ था जो आसानी से टूट जाता.


                                                                                                                मशीनी युग के कारण समय में परिवर्तन आया लेकिन बदलू अपने परंपरागत पेशा व कला को छोड़ना नहीं चाहता था . वह उससे आत्मीय रूप से जुड़ा हुआ था. काँच की चूड़ियों का प्रचार-प्रसार होने के बावजूद भी उसने लाख की चूड़ियाँ बनाना नहीं छोड़ा . वह चाहता तो कांच की चूड़ियाँ भी बना सकता था लेकिन उसने काम बंद कर दिया क्योंकि वह अपने जीवन-मूल्यों के साथ समझौता करना नहीं चाहता था .इससे बदलू के व्यव्हार के बारे में पता चलता है कि बदलू पेशे के प्रति ईमानदार था .वह कलात्मक कुशलता के समाप्त होने पर दुखी था .वह समझौतावादी नहीं था .उसने अपनी बेटी को लाख की चूड़ियाँ पहनाई . इससे पता चलता है कि उसने अपने संस्कार आने वाली पीढ़ियों को भी दिए. वह दृढ़ इच्छाशक्ति वाला व्यक्ति था आसानी से हार मानने वाला व्यक्ति नहीं था.

अतः यह कहा जा सकता है कि यह कहानी शहरीकरण और औधोगिक विकास से ग्रामोद्योगों के उजड़ने की पीड़ा को चित्रित करती है .यह कहानी नाते-नेह में रचे-बसे गाँवों के सहज संबंधों में बिखराव और सांस्कृतिक ह्रास के आर्थिक कारणों को स्पष्ट करती है .



Lakh Ki Chudiyan

Q&A



lakh ki chudiyan question answer

प्रश्न- बचपन में लेखक अपने मामा के गाँव चाव से क्यों जाता था और बदलू को ‘बदलू मामा’ न कहकर ‘बदलू काका’ क्यों कहता था?

उत्तर- लेखक के मामा के गाँव में लाख की चूड़ियाँ बनाने वाला कारीगर बदलू रहा करता था। वो लाख की बहुत सुन्दर चूड़ियाँ बनाता था परन्तु लेखक को वह लाख की रंग-बिरंगी सुन्दर गोलियाँ बनाकर दिया करता। ये गोलियाँ इतनी सुन्दर होतीं कि कोई भी बच्चा इनकी ओर आकर्षित हुए बिना नहीं रह सकता था . इसी कारण लेखक सदैव बदलू के पास जाता और यही कारण है कि लेखक को उसके मामा का गाँव भाता था।
बदलू को गाँव के सभी बच्चे बदलू 'काका' कहकर बुलाया करता था इसलिए लेखक ने भी उनको 'काका' कहना ही उचित समझा।


प्रश्न- वस्तु-विनिमय क्या है? विनिमय की प्रचलित पद्धति क्या है?

उतर-वस्तु विनिमय से तात्पर्य लेन-देन के लिए रूपए-पैसों के स्थान पर एक वस्तु का दूसरी वस्तु से क्रय-विक्रय (खरीद-बेच ) करना है। जिस तरह से बदलू लाख की चूड़ियों के स्थान पर अनाज व कपड़े लिया करता था उसी तरह से इस पद्धति में अधिक मात्रा वाली वस्तु देकर जरुरत का सामान ले लिया जाता है . विनिमय की पद्धति गावों में प्रचलित है। यहाँ लोग अन्न के बदले अन्य किसी भी (खाने पीने व कपड़े) वस्तु से आदान-प्रदान कर लेते हैं। इस समय इस पद्धति का स्थान रूपए-पैसों ने ले लिया है। भारत की प्रचलित मुद्रा 'रुपया' है .जिसे भारतीय मुद्रा के रूप में हर जगह अपनाया जाता है .


प्रश्न- ‘मशीनी युग ने कितने हाथ काट दिए हैं।’- इस पंक्ति में लेखक ने किस व्यथा की ओर संकेत किया है?

उत्तर- लेखक ने उन कारीगरों की तरफ़ संकेत किया है जो हाथ से बनी वस्तुओं से अपना जीवनयापन करते हैं। आज के मशीनी युग ने उन कारीगरों के हाथ काटकर मानों उनकी रोजी-रोटी ही छीन ली है। उन कारीगरों का रोजगार इन पैतृक काम धन्धों से ही चलता था। वे पीढ़ी दर पीढ़ी अपनी इस कला को बढ़ाते चले आ रहे हैं और साथ में अपना भरण-पोषण भी कर रहे हैं। परन्तु मशीनी युग ने जहाँ उनके पेट पर वार किया है, वही दूसरी ओर इन बेशकीमती कलाओं का अंत भी किया है। ऐसी अनगिनत कलाएँ हैं जो लुप्त अवस्था में हैं और इनको करने वाले कारीगर इस मशीनी युग में खो रहे हैं। यही वो व्यथा है जो लेखक व्यक्त करना चाहता है। ऐसे कारीगर कला होने पर भी बेकार हो गए हैं .


प्रश्न- बदलू के मन में ऐसी कौन-सी व्यथा थी जो लेखक से छिपी न रह सकी।

उत्तर- लेखक के अनुसार बदलू उसके मामा के गाँव में लाख की चूड़ियों का श्रेष्ठ कारीगर था। उसके गाँव के अलावा बाहर गाँव में भी उसकी लाख की चूड़ियाँ खासी प्रचलित थी, विवाह में भी उसकी चूड़ियों की अच्छी खासी माँग होती थी । परन्तु जैसे-जैसे काँच की चूड़ियों का प्रचलन बढ़ने लगा। उसकी लाख की चूड़ियों का मूल्य घटना आरम्भ हो गया। नतीजन एक दिन इन लाख की चूड़ियों का स्थान काँच की चूड़ियों ने ले लिया और बदलू की लाख की चूड़ियों के व्यवसाय का अन्त हो गया। अब कोई भी उसकी चूड़ियाँ नहीं पहनता था। सबको काँच की चूड़ियाँ भाने लगी थी। उसके व्यवसाय की यह दुर्दशा बदलू को अन्दर ही अन्दर कचोटती थी परन्तु अपनी इस वेदना को वह किसी से प्रकट नहीं करता था। लेखक उसके हृदय की इस वेदना को भली-भांति समझता था क्योंकि लेखक ने अपने बचपन का एक लम्बा वक्त बदलू के साथ व्यतीत किया था। इस कारण उसके लिए बदलू के मन की दशा को समझना ज़्यादा आसान हो गया था .


प्रश्न- मशीनी युग से बदलू के जीवन में क्या बदलाव आया?

उत्तर- मशीनी युग के कारण बदलू का व्यवसाय ख़त्म होने लगा . जिसके कारण वह बेरोज़गार हो गया। अब वह उदास व बीमार रहने लगा . उसकी बेबसी लेखक को उसके चेहरे पर दिखाई देने लगी थी। पैतृक पेशे की खस्ता हालत ने उसे एक बूढ़ा व बीमार व्यक्ति बना दिया था।


प्रश्न - know about LAKH ( lah)?
... Answer is -
लाख (लाह)

लाख, या लाह संस्कृत के ' लाक्षा ' शब्द से व्युत्पन्न समझा जाता है। संभवत: लाखों कीड़ों से उत्पन्न होने के कारण इसका नाम लाक्षा पड़ा था। लाख एक प्राकृतिक राल है बाकी सब राल कृत्रिम हैं। इसी कारण इसे 'प्रकृति का वरदान' कहते हैं। लाख के कीट अत्यन्त सूक्ष्म होते हैं तथा अपने शरीर से लाख उत्पन्न करके हमें आर्थिक सहायता प्रदान करते हैं। वैज्ञानिक भाषा में लाख को 'लेसिफर लाखा' कहा जाता है।

महाभारत में लाक्षागृह का उल्लेख है, जिसको कौरवों ने पांडवों के आवास के लिए बनवाया था। कौरवें का इरादा लाक्षागृह में आग लगाकर पांडवों को जलाकर मार डालने का था।

उपयोग

लाख के वे ही उपयोग हैं जो चपड़े के हैं। लाख के शोधन से और एक विशेष रीति से चपड़ा तैयार होता है। चपड़ा बनाने से पहले लाख से लाख रंजक निकाल लिए जाते हैं। लाख ग्रामोफोन रेकार्ड बनाने में, विद्युत् यंत्रों में, पृथक्कारी के रूप में, वार्निश और पॉलिश बनाने में, विशेष प्रकार की सीमेंट और स्याही के बनाने में, शानचक्रों में चूर्ण के बाँधने के काम में, ठप्पा देने की लाख बनाने इत्यादि, अनेक कामों में प्रयुक्त होता है। भारत सरकार ने राँची के निकट नामकुम में लैक रिसर्च इंस्टिट्यूट की स्थापना की है, जिसमें लाख से संबंधित अनेक विषयों पर अनुसंधान कार्य हो रहे हैं। इस संस्था का उद्देश्य है उन्नत लाख उत्पन्न करना, लाख की पैदावर को बढ़ाना और लाख की खपत अधिक हो और निर्यात के लिए विदेशों की माँग पर निर्भर रहना न पड़े।

आज भी लाख का उपयोग ठप्पा देने का चपड़ा बनाने, चूड़ियों और पालिशों के निर्माण, काठ के खिलौनों के रँगने और सोने चाँदी के आभूषणों में रिक्त स्थानों को भरने में होता है। लाख की उपयोगिता का कारण उसका ऐल्कोहॉल में घुलना, गरम करने पर सरलता से पिघलना, सतहों पर दृढ़ता से चिपकना, ठंडा होने पर कड़ा हो जाना और विद्युत् की अचालकता है। अधिकांश कार्बनिक विलयकों का यह प्रतिरोधक होता है और अमोनिया तथा सुहागा सदृश दुर्बल क्षारों के विलयन में इसमें बंधन गुण आ जाता है।

उत्पादन

लाख, कीटों से उत्पन्न होता है। लाख कीट कुछ पेड़ों पर पनपता है, जो भारत, म्यांमार , इंडोनेशिया तथा थाइलैंड में उपजते हैं।
भारत में जिन पेड़ों पर लाख उगाया जाता है, ये हैं-


  1. कुसुम (Schleichera trijuga),
  2. खैर (Acacia catechu),
  3. बेर (Ziziphus jujuba),
  4. पलाश (Butea frondosa),
  5. घोंट (Zizphus xylopyra) 
  6. अरहर (Cajanus indicus) के पौधे,
  7. शीशम (Dalbergia latifolia),
  8. पंजमन (Ougeinia dalbergioides),
  9. सिसि (Albizzia stipulata),
  10. पाकड़ (Ficus infectoria),
  11. गूलर (Ficus glomerata),
  12. पीपल (Ficus religiosa),
  13. बबूल (Acacia arabica),
  14. पोर हो और
  15. शरीफा इत्यादि.







Lakh Ki Chudiyan
भाषा की बात 


प्रश्न- 'बदलू को किसी बात से चिढ़ थी तो काँच की चूड़ियों से’ और बदलू स्वयं कहता है – "जो सुंदरता काँच की चूड़ियों में होती है लाख में कहाँ संभव है?” ये पंक्तियाँ बदलू की दो प्रकार की मनोदशाओं को सामने लाती हैं। दूसरी पंक्ति में उसके मन की पीड़ा है। उसमें व्यंग्य भी है। हारे हुए मन से, या दुखी मन से अथवा व्यंग्य में बोले गए वाक्यों के अर्थ सामान्य नहीं होते। कुछ व्यंग्य वाक्यों को ध्यानपूर्वक समझकर एकत्र कीजिए और उनके भीतरी अर्थ की व्याख्या करके लिखिए।

उत्तर- 
  • बदलू ने मेरी दृष्टि देख ली और बोल पड़ा, यही आखिरी जोड़ा बनाया था ज़मींदार साहब की बेटी के विवाह पर, दस आने पैसे मुझको दे रहे थे। मैंने जोड़ा नहीं दिया। कहा, शहर से ले आओ।

इस कथन में उसके ज़मींदार पर व्यंग्य करना है। जिस बदलू की चूड़ियों की धूम सारे गाँव में नहीं अपितु आस पास के गाँवों में भी थी, लोग शादी-विवाह पर उसको मुहँ माँगें मूल्य दिया करते थे, ज़मींदार उसे दस आने देकर सन्तुष्ट करना चाहते थे। दूसरा व्यंग्य उसने शहर पर किया है । ज़मींदार के द्वारा उसको सिर्फ़ दस आने देने पर उसने जमींदार को चूड़ियाँ शहर से लाने के लिए कह दिया क्योंकि शहर की चूड़ियों का मूल्य उसकी चूड़ियों से कई  गुना महँगा था।

  • आजकल सब काम मशीन से होता है खेत भी मशीन से जोते जाते हैं और फिर जो सुंदरता काँच की चूड़ियों में होती है, लाख में कहाँ संभव है?
यहाँ पर प्रथम व्यंग्य बदलू ने मशीनों पर किया है, दूसरा व्यंग्य काँच की चूड़ियों पर। उसके अनुसार अब तो खेतों का सारा काम मशीनों से हो जाता है। आदमियों की ज़रूरत क्या है और दूसरा काँच की चूड़ियों पर कि काँच की चूड़ियाँ दिखने में इतनी सुन्दर होती है कि लाख की चूड़ियाँ भी इनके आगे फीकी लगती हैं। अर्थात्‌ सुन्दरता के आगे दूसरी वस्तु की गुणवत्ता का कोई मूल्य नहीं है।


प्रश्न-  ‘बदलू‘ कहानी में दृष्टि से पात्र है और भाषा की बात (व्याकरण) की दृष्टि से संज्ञा है। किसी भी व्यक्ति, स्थान, वस्तु, विचार अथवा भाव को संज्ञा कहते हैं। 

संज्ञा को तीन भेदों में बाँटा गया है -
  • व्यक्तिवाचक संज्ञा, जैसे-शहर, गाँव, पतली-मोटी, गोल, चिकना इत्यादि
  • जातिवाचक संज्ञा, जैसे-चरित्र, स्वभाव, वजन, आकार आदि द्वारा जानी जाने वाली संज्ञा।
  • भाववाचक संज्ञा, जैसे-सुंदरता, नाजुक, प्रसन्नता इत्यादि जिसमें कोई व्यक्ति नहीं है और न आकार, वजन। परंतु उसका अनुभव होता है।
पाठ से तीनों प्रकार की संज्ञाएँ चुनकर लिखिए।

उत्तर-
  • व्यक्तिवाचक संज्ञा- जमींदार, मामा, बदलू।
  • जातिवाचक संज्ञा- स्त्रियाँ, चारपाई, बेटी, बच्चे, चूड़ियाँ।
  • भाववाचक संज्ञा- बीमार, बेरोजगार, प्रसन्नता, व्यक्तित्व, शांति, पढ़ाई।

प्रश्न- गाँव की बोली में कई शब्दों के उच्चारण बदल जाते हैं। कहानी में बदलू वक्त (समय) को बखत, उम्र (वय/आयु) को उमर कहता है। इस तरह के अन्य शब्दों को खोजिए जिनके रूप में परिवर्तन हुआ हो, अर्थ में नहीं।

उत्तर-
  • उम्र– उमर
  • मर्द – मरद
  • भैया – भइया
  • ग्राम – गाँव
  • अंबा – अम्मा
  • दुर्बल – दुबला



अर्थ स्पष्ट करो 

1. लाख की चूड़ियाँ पहने, तो मोच आ जाए।
अर्थ − लाख की चूड़ियाँ काँच की चूड़ियों से भारी होती है। शायद अब औरतें लाख की चूड़ियों का भार न सह सके।

2. मशीनी युग है न, लला! आजकल सब काम मशीन से होता है।
अर्थ − अब मशीन का युग है। हर काम मशीन से होता है। इससे किसके जीवन पर क्या असर पड़ता है इसकी किसी को कोई चिंता नहीं है।

3. गाय कहाँ है लला! दो साल हुए बेच दी। कहाँ से खिलाता?
अर्थ − अब काँच को चूड़िया बनने के बाद कोई भी लाख की चूड़िया खरीदना पंसद नहीं करता था क्योंकि वे काँच से महँगी थी। इससे बदलू की आर्थिक स्थिति खराब हो गई उसे खुद के खाने के लिए नहीं था गाय को कैसे खिलाता।




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