nana saheb ki putri class 9 | नाना साहब की पुत्री ....

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पाठ-5


नाना साहब की पुत्री ....




 ध्वनि-प्रस्तुति 




नाना साहब की पुत्री 
देवी मैना को भस्म कर दिया गया 
Nana Sahab ki Putri 
Devi Maina ko Bhasm Kar Diya Gaya

nana saheb ki putri class 9 summary

 सारांश 


सन् 1857 के विद्रोही नेता धुंधूपंत नाना साहब जब क्रांतिकारी लड़ाई में असफल होकर भागे तो वे अपनी बेटी मैना को अपने साथ नहीं ले जा सके। मैना कानपुर के पास बिठूर में ही पिता के महल में रहती थी। उसी समय अंग्रेज़ों के एक दल ने बिठूर पहुँचकर नाना साहब के महल को लूट लिया। अंग्रेज़ सेनापति बोला, ‘तोपों के गोलों से महल भी नष्ट कर दिया जाए।’ तभी एक सुंदर बालिका बरामदे में आकर खड़ी हो गई तथा महल न तोड़ने के लिए अंग्रेज़ सेनापति से निवेदन करने लगी।


उस छोटी उम्र की लड़की के दुखी चेहरे को देखकर सेनापति को उस पर दया आ गई। उसने बालिका मैना से पूछा कि वह महल को क्यों बचाना चाहती है? तो बालिका ने सेनापति से प्रतिप्रश्न किया कि वे उस महल को क्यों तोड़ना चाहते हैं?


सेनापति ने उत्तर दिया कि यह महल विद्रोहियों के नेता नाना साहब का है, अत: इसे नष्ट करने का आदेश मिला है। बालिका ने कहा कि दोषी तो शस्त्र उठाने वाले हैं। मकान तो जड़ पदार्थ है। इसने तो कोई अपराध नहीं किया। इसे नष्ट न करिए। यह स्थान मुझे बहुत प्रिय है। इसकी रक्षा कीजिए।

बालिका ने उस सेनापति को बताया कि आपकी पुत्री मेरी बहुत अच्छी दोस्त थी। जब वह थी तो आप भी मेरे घर आते थे तथा मुझे अपनी पुत्री जैसा प्यार करते थे। उसकी मृत्यु पर मैं बहुत दुखी हुई थी। उसकी एक चिट्ठी अब तक मेरे पास है।


सेनापति ने मैना को पहचान लिया। वह बोला, मैं महल बचाने का प्रयत्न करूँगा। इसी समय अंग्रेजों का प्रधान सेनापति अउटरम वहाँ आया और सेनापति ‘हे’ से बोला कि नाना का महल अभी तक उड़ाया क्यों नहीं? ‘हे’ ने कहा कि क्या किसी तरह नाना का यह महल बच सकता है? प्रधान सेनापति ने कहा, ‘गवर्नर जनरल की आज्ञा मिलने पर ही बच सकता है, अंग्रेज़ नाना से बहुत नाराज़ हैं, नाना के वंश तथा महल पर दया दिखाना असंभव है।’ सेनापति ‘हे’ ने कहा, फिर लॉर्ड केनिंग (गवर्नर जनरल) को इस विषय का तार दे देते हैं। अउटरम ने कहा कि आप ऐसा क्यों चाहते हैं? हम इस महल को बिना नष्ट किए तथा नाना की लड़की को गिरफ्तार किए बिना नहीं छोड़ सकते।

सेनापति ‘हे’ दुखी होकर चला गया। उसके बाद अउटरम ने नाना के महल को घेर लिया। अंग्रेज़ सिपाही फाटक तोड़कर महल के अंदर घुस गए। उन्होंने मैना को बहुत ढूँढा किंतु वह न मिली।


उसी दिन लॉर्ड केनिंग का तार आया जिसका आशय इस प्रकार था-“लंडन के मंत्रिमंडल का मत है कि नाना के स्मृति चिह्न तक को मिटा दिया जाए इसलिए वहाँ की आज्ञा के विरुद्ध कुछ नहीं हो सकता।” उसी समय क्रूर जनरल अउटरम की आज्ञा से नाना साहब के सुविशाल राजमहल पर गोलाबारी होने लगी। घंटे भर में ही उसे मिट्टी में मिला दिया गया।

उस समय लंडन के प्रमुख पत्र टाइम्स में छपा-“बड़े दुख का विषय है कि भारत सरकार आज तक उस दुर्दान्त नाना साहब को नहीं पकड़ सकी। जिस पर सभी अंग्रेज जाति का भीषण क्रोध है। सर टामस ‘हे’ की नाना की बेटी पर दया करने की बात से हँसी आती है। शायद वे बुढ़ापे में उस महाराष्ट्री कन्या के सौंदर्य पर मोहित होकर अपना कर्तव्य भूल गए हैं। नाना की लड़की को सेनापति ‘हे’ के सामने फाँसी पर लटका देना चाहिए।


उसी वर्ष सितंबर की आधी रात के समय मैना महल के खंडहरों में बैठी रो रही थी। पास में ठहरी अउटरम की सेना ने उसे पकड़ कर गिरफ्तार कर लिया। मैना ने अउटरम से जी भरकर रोने की अनुमति माँगी किंतु क्रूर अउटरम को उस पर दया न आई। उसने मैना को गिरफ्तार कर लिया और कानपुर के किले में बंद कर दिया। फिर उसे धधकती आग में फेंक दिया गया। मैना जलकर भस्म हो गई।

nana saheb ki putri class 9 question answer

 Q&A 


प्रश्न 1 : बालिका मैना ने सेनापति ‘हे’ को कौन-कौन से तर्क देकर महल की रक्षा के लिए प्रेरित किया?

उत्तर : बालिका मैना ने सेनापति ‘हे’ को निम्नलिखित तर्क देकर महल की रक्षा के लिए प्रेरित किया-

  • बालिका ने कहा कि अंग्रेजों के विरुद्ध शस्त्र उठाने वाले दोषी हो सकते हैं, परंतु महल तो जड़ पदार्थ है। अंग्रेज़ों के दोषी नाना साहब हैं। मकान का इसमें क्या दोष है?
  • यह राजमहल मुझे (मैना को) बहुत प्रिय है। मेरा बचपन इसी में बीता है .
  • बालिका सेनापति ‘हे’ को कहती है कि आपकी पुत्री (मेरी) मेरी सहेली थी और ‘मेरी’ की चिट्ठी अभी भी मेरे पास है।




प्रश्न 2 : मैना जड़ पदार्थ मकान को बचाना चाहती थी पर अंग्रेज़ उसे नष्ट करना चाहते थे। क्यों?

उत्तर : मैना जड़ पदार्थ मकान को बचाना चाहती थी क्योंकि मैना का बचपन उसी मकान में बीता था। इस मकान से उसका बहुत लगाव था, यह उसकी पैत्रिक धरोहर थी। अंग्रेज उस महल को तोड़ना चाहते थे क्योंकि वह महल उनके विद्रोही नाना साहब का था। अंग्रेज उनके महल को तोड़ देना चाहते थे ताकि कोई अंग्रेजों के खिलाफ विरोध न कर सके।अंग्रेजों को डर था कि यह मकान नानाजी जैसे और भी क्रांतिकारियों का ठिकाना हो सकता था।


 प्रश्न 3  : सर टामस ‘हे’ के मैना पर दया-भाव के क्या कारण थे?
उत्तर : सर टामस ‘हे’ के मैना पर दया-भाव के विभिन्न कारण थे-

  • सर टामस ‘हे’ स्वभाव से ही दयालु रहे होंगे, तभी तो वे उस सुन्दर बालिका को देखते ही रुक गए और उसके जीवन में रुचि लेने लगे।
  • सर टामस ‘हे’ मैना को पहचान गए। मैना उनकी मृत बेटी ‘मेरी’ की बचपन की सहेली थी। तब ‘हे’ उनके घर भी आया करते थे। इन बातों ने ‘हे’ के दिल में मैना के प्रति ममता जगा दी।
  • मैना ने स्वयं अपनी करुणापूर्ण बातों से ‘हे’ के मन में दया-भाव उत्पन्न किए। मैना का करुणामयी मुख और उसकी अल्पायु देखकर सेनापति ‘हे’ को उस पर दया आई।


प्रश्न 4 : मैना की अंतिम इच्छा थी कि वह उस प्रासाद के ढेर पर बैठकर जी भरकर रो ले लेकिन पाषाण हृदय वाले जनरल ने किस भय से उसकी इच्छा पूर्ण न होने दी?

उत्तर : जनरल आउटरम ने प्रासाद पर जी भर रो लेने संबंधी मैना की इच्छा इसलिए पूरी नहीं होने दी क्योंकि वह अंग्रेज़ सरकार का जनरल था। वह अंग्रेज सरकार के प्रति कुछ ज्यादा ही वफादारी दिखा रहा था। नाना साहब अंग्रेज़ी सरकार के दोषी थे और उनके किसी भी साथी या रिश्तेदार को छोड़ना भविष्य के लिए खतरनाक सिद्ध हो सकता था। अंग्रेज़ों को भविष्य के इस खतरे से भय था। मैना के प्रति सहानुभूति दिखाने पर जनरल को अंग्रेज़ सरकार द्वारा दंडित भी किया जा सकता था। मैना को छोड़ देने पर कुछ लोग पुनः विद्रोह कर सकते थे। उपरोक्त सभ कारणों ने पाषाण ह्रदय जनरल को भयभीत कर दिया था .


प्रश्न 5 : बालिका मैना के चरित्र की कौन-कौन सी विशेषताएँ आप अपनाना चाहेंगे और क्यों ?

उत्तर : बालिका मैना के निडर भाव और अपनी पैतृक धरोहर के प्रति प्रेम को मैं अपनाना चाहूँगा। जब सेनापति ‘हे’ अपने सैनिकों के साथ उसके राजमहल को तोड़ने आया तो उसने निडर होकर उनका सामना किया। उसे अपने पकड़े जाने का डर था, फिर भी वह ‘हे’ के सामने आई। उसे राजमहल न तोड़ने की प्रार्थना की, तर्क दिए और उसके मन में करुणा जगाई। इस पाठ में मैना की निम्नलिखित चारित्रिक विशेषताएँ निकल कर सामने आईं हैं -

  • मैना एक वाक् चतुर बालिका थी।
  • उसके मन में अपनी पैतृक धरोहर के प्रति सम्मान की भावना थी।
  • उसके मन में किसी भी प्रकार का कोई भय नहीं था। वह साहसी थी।
  • उसमें आत्मबलिदान की भावना प्रबल थी।
  • मैना बहुत भावुक थी तभी मकान के जल जाने पर उसका मन दु:खी हो जाता है।

मैना की ये सारी विशेषताएँ  अपनाने योग्य हैं । उसकी ये विशेषताएँ उसे औरों से अलग बनाती हैं । इन गुणों से युक्त मनुष्य जीवन पथ पर कभी असफल नहीं होता है। उसे किसी भी प्रकार की शक्ति अपने मार्ग से विचलित नहीं कर सकती है। अतः उसके इन गुणों को आत्मसात करके देश तथा समाज  की उन्नति में  योगदान दिया जा सकता है .



प्रश्न 6  : ‘टाइम्स’ पत्र ने 6 सितंबर को लिखा था-‘बड़े दुख का विषय है कि भारत सरकार आज तक उस दुर्तान्त नाना साहब को नहीं पकड़ सकी’। इस वाक्य में ‘भारत सरकार’ से क्या आशय है?

उत्तर : इस वाक्य में 'भारत सरकार' से आशय तत्कालीन अंग्रेजी सरकार से है जो पराधीन भारत में ब्रिटिश शासन के निर्देश पर चलने वाली वह सरकार है जिसे अंग्रेज़ अधिकारी चलाते थे और भारतीयों पर अत्याचारपूर्ण व्यवहार करते थे।




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रचना और अभिव्यक्ति


प्रश्न 7. स्वाधीनता आंदोलन को आगे बढ़ाने में इस प्रकार के लेखन की क्या भूमिका रही होगी?

उत्तर : लेख भावनात्मक आवेश को आंदोलित करने के हमेशा से सशक्त साधन रहे हैं .स्वाधीनता आंदोलन को आगे बढ़ाने में इस प्रकार के लेखन की भूमिका निश्चित रूप से अहम रही होगी क्योंकि इस प्रकार के लेखों को पढ़कर भारतीय लोग अंग्रेजों के प्रति गुस्से से भर जाते होंगे और आंदोलन में भारी संख्या में शामिल होकर उसे उग्र और भयंकर बना देते होंगे। साथ ही अंग्रेज़ों को भारत से निकालने के लिए पूरे प्रयत्न करते रहे होंगे।

समाज के लोगों तक संदेश पहुँचाने में लेखन कला का बहुत महत्वपूर्ण स्थान रहा है। लोगों को मैना के बलिदान से देशभक्ति की प्रेरणा मिली होगी। लोगों के मन में अंग्रेज़ी सरकार के प्रति आक्रोश कि भावना जागृत हुई होगी .

प्रश्न 8. कल्पना कीजिए कि मैना के बलिदान की यह खबर आपको रेडियो पर प्रस्तुत करनी है। इन सूचनाओं के आधार पर आप एक रेडियो समाचार तैयार करें और कक्षा में भावपूर्ण शैली में पढ़ें।

उत्तर – कल आधी रात को खंडहर पर रोती हुई नाना साहब की पुत्री मैना को अंग्रेज़ सेनापति अउटरम ने गिरफ्तार कर लिया था। उसने क्रूर अउटरम से जी भर के रोने की अनुमति मांगी थी, किंतु उसका दिल नहीं पसीजा। समाचार है कि उसे पूरी तैयारी के साथ  भयंकर आग में झोंक दिया गया। दुष्ट सेनापति अउटरम ने इस कुकृत्य को ब्रिटिश सरकार का आदेश बताया। कानपुर की जनता ने मैना को देवी समझकर प्रणाम किया। अउटरम द्वारा किए गए इस कृत्य को भारतवासी कभी भुला नहीं पाएंगे।

छात्र अपनी कल्पना से अपने शब्दों में इस उत्तर को लिख सकते हैं .


प्रश्न 9. इस पाठ में रिपोर्ताज के प्रारंभिक रूप की झलक मिलती है लेकिन आज अखबारों में अधिकांश खबरें रिपोर्ताज़ की शैली में लिखी जाती हैं। 

  • आप कोई दो खबरें किसी अखबार से काटकर अपनी कॉपी में चिपकाइए तथा कक्षा में पढ़कर सुनाइए।
  • आप अपने आसपास की किसी घटना का वर्णन रिपोर्ताज़ शैली में कीजिए।


उत्तर : इन प्रश्नों का उत्तर विद्यार्थी स्वयं दें।


प्रश्न - रिपोर्ताज किसे कहते हैं ?
... Answer is -
रिपोर्ट के कलात्मक तथा साहित्यिक रूप को रिपोर्ताज कहते हैं। रिपोर्ताज में तथ्यों मेके साथ साथ भावमयता भी शामिल होती है. रिपोर्ताज गद्य-लेखन की एक विधा है। रिपोर्ताज फ्रांसीसी भाषा का शब्द है। रिपोर्ट अंग्रेजी भाषा का शब्द है। रिपोर्ट किसी घटना के यथातथ्य वर्णन को कहते हैं। रिपोर्ट सामान्य रूप से समाचारपत्र के लिए लिखी जाती है और उसमें साहित्यिकता नहीं होती है। वास्तव में रेखाचित्र की शैली में प्रभावोत्पादक ढंग से लिखे जाने में ही रिपोर्ताज की सार्थकता है। आँखों देखी और कानों सुनी घटनाओं पर भी रिपोर्ताज लिखा जा सकता है। कल्पना के आधार पर रिपोर्ताज नहीं लिखा जा सकता है। घटना प्रधान होने के साथ ही रिपोर्ताज को कथातत्त्व से भी युक्त होना चाहिये। रिपोर्ताज लेखक को पत्रकार तथा कलाकार दोनों की भूमिका निभानी पडती है। रिपोर्ताज लेखक के लिये यह भी आवश्यक है कि वह जनसाधारण के जीवन की सच्ची और सही जानकारी रखे। तभी रिपोर्ताज लेखक प्रभावोत्पादक ढंग से जनजीवन का इतिहास लिख सकता है।



प्रश्न 10. आप किसी ऐसे बालक/बालिका के बारे में एक अनुच्छेद लिखिए जिसने कोई बहादुरी का काम किया हो।

उत्तर : विद्यार्थी स्वयं अनुच्छेद लिखें . 
संकेत के लिए देखें -

लव-कुश कथा
... Answer is -
श्रीराम तथा सीता पुत्र लव-कुश ने अपने साहस का परिचय बाल्यकाल में ही दे दिया था। लव-कुश ने हनुमान जी जैसे बलशाली वानर को भी परास्त किया। उन्होंने राम द्वारा आयोजित अश्वमेध यज्ञ को भी रोककर राम की पूरी सेना के साथ युद्ध कर, उन्हें परास्त करके अपने पराक्रम तथा बल का परिचय दिया। युग-युग तक यह अमरगाथा अविस्मरणीय रहेगी।




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 भाषा-अध्ययन 



प्रश्न 11. भाषा और वर्तनी का स्वरूप बदलता रहता है। इस पाठ में हिंदी गद्य का प्रारंभिक रूप व्यक्त हुआ है जो लगभग 75-80 वर्ष पहले था। इस पाठ के किसी पसंदीदा अनुच्छेद को वर्तमान मानक हिंदी रूप में लिखिए।

उत्तर :

पाठ का एक अनुच्छेद- 

“कानपुर में भीषण हत्याकांड करने के बाद अंग्रेज़ों का सैनिक दल बिठूर की ओर गया। बिठूर में नाना साहब का राजमहल लूट लिया गया पर उसमें बहुत थोड़ी सम्पत्ति अंग्रेज़ों के हाथ लगी। इसके बाद अंग्रेज़ों ने तोप के गोलों से नाना साहब का महल भस्म कर देने का निश्चय किया। सैनिक दल ने जब वहाँ तोपें लगाई, उस समय महल के बरामदे में एक अत्यंत सुंदर बालिका आकर खड़ी हो गई। उसे देखकर अंग्रेज़ सेनापति को बड़ा आश्चर्य हुआ क्योंकि महल लूटने के समय वह बालिका वहाँ कहीं दिखाई न दी थी।” 


अनुच्छेद का वर्तमान मानक हिंदी रुप-

कानपुर में घटित हत्याकांड के बाद अंग्रेज़ी सैनिक दल बिठूर की ओर गया। बिठूर में स्थित नाना साहब का राजमहल अंग्रेज़ों द्वारा लूट लिया गया। लेकिन अंग्रेज़ अधिक नुकसान नहीं कर पाए। इसके बाद अंग्रेज़ों ने तोप द्वारा नाना साहब के महल को उड़ा देना चाहा, तभी महल के बरामदे में एक सुंदर बालिका आकर खड़ी हो गई। यह देखकर अंग्रेज़ी सेना को हैरानी हुई क्योंकि महल को लूटते समय यह बालिका वहाँ दिखाई नहीं दी।


 Work-Sheet 




नाना साहब की पुत्री 
देवी मैना को भस्म कर दिया गया 
Nana Sahab ki Putri 
Devi Maina ko Bhasm Kar Diya Gaya

चपला देवी 


सन् 1857 ई. के विद्रोही नेता धुंधूपंत नाना साहब कानपुर में असफल होने पर जब भागने लगे, तो वे जल्दी में अपनी पुत्री मैना को साथ न ले जा सके। देवी मैना बिठूर में पिता के महल में रहती थी; पर विद्रोह दमन करने के बाद अंगरेज़ों ने बड़ी ही क्रूरता से उस निरीह और निरपराध देवी को अग्नि में भस्म कर दिया। उसका रोमांचकारी वर्णन पाषाण हृदय को भी एक बार द्रवीभूत कर देता है।


कानपुर में भीषण हत्याकांड करने के बाद अंगरेजों का सैनिक दल बिठूर की ओर गया। बिठूर में नाना साहब का राजमहल लूट लिया गया; पर उसमें बहुत थोड़ी सम्पत्ति अंगरेज़ों के हाथ लगी। इसके बाद अंगरेजों ने तोप के गोलों से नाना साहब का महल भस्म कर देने का निश्चय किया। सैनिक दल ने जब वहाँ तोपें लगायीं, उस समय महल के बरामदे में एक अत्यन्त सुन्दर बालिका आकर खड़ी हो गयी। उसे देख कर अंगरेज़ सेनापति को बड़ा आश्चर्य हुआः क्योंकि महल लूटने के समय वह बालिका वहाँ कहीं दिखाई न दी थी।


उस बालिका ने बरामदे में खड़ी होकर अंगरेज़ सेनापति को गोले बरसाने से मना किया। उसका करुणापूर्ण मुख और अल्पवयस देखकर सेनापति को भी उस पर कुछ दया आयी। सेनापति ने उससे पूछा, कि “क्या चाहती है?”

बालिका ने शुद्ध अंगरेज़ी भाषा में उत्तर दिया “

क्या आप कृपा कर इस महल की रक्षा करेंगे?”

सेनापति -“क्यों, तुम्हारा इसमें क्या उद्देश्य है?”

बालिका – “आप ही बताइये, कि यह मकान गिराने में आपका क्या उद्देश्य है?”


सेनापति – “यह मकान विद्रोहियों के नेता नाना साहब का वासस्थान था। सरकार ने इसे विध्वंस कर देने की आज्ञा दी है।”

बालिका – आपके विरुद्ध जिन्होंने शस्त्र उठाये थे, वे दोषी हैं; पर इस जड़ पदार्थ मकान ने आपका क्या अपराध किया है? मेरा उद्देश्य इतना ही है, कि यह स्थान मुझे बहुत प्रिय है, इसी से मैं प्रार्थना करती हूँ, कि इस मकान की रक्षा कीजिये।

सेनापति ने दु:ख प्रकट करते हुए कहा, कि कर्तव्य के अनुरोध से मुझे यह मकान गिराना ही होगा। इस पर उस बालिका ने अपना परिचय बताते हुए कहा कि “मैं जानती हूँ, कि आप जनरल ‘हे’ हैं। आपकी प्यारी कन्या मेरी में और मुझ में बहुत प्रेम-सम्बन्ध था। कई वर्ष पूर्व मेरी मेरे पास बराबर आती थी और मुझे हृदय से चाहती थी। उस समय आप भी हमारे यहाँ आते थे और मुझे अपनी पुत्री के ही समान प्यार करते थे। मालूम होता है, कि आप वे सब बातें भूल गये हैं। मेरी की मृत्यु से मैं बहुत दु:खी हुई थी; उसकी एक चिट्ठी मेरे पास अब तक है।”

यह सुनकर सेनापति के होश उड़ गये। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ, और फिर उसने उस बालिका को भी पहिचाना, और कहा-“अरे यह तो नाना साहब की कन्या मैना है!”

सेनापति ‘हे’ कुछ क्षण ठहरकर बोले-“हाँ, मैंने तुम्हें पहिचाना, कि तुम मेरी पुत्री मेरी की सहचरी हो! किन्तु मैं जिस सरकार का नौकर हूँ, उसकी आज्ञा नहीं टाल सकता। तो भी मैं तुम्हारी रक्षा का प्रयत्न करूँगा।”

इसी समय प्रधान सेनापति जनरल अउटरम वहाँ आ पहुँचे, और उन्होंने बिगड़ कर सेनापति ‘हे’ से कहा-“नाना का महल अभी तक तोप से क्यों नहीं उड़ाया गया?”

सेनापति ‘हे’ ने विनयपूर्वक कहा-“मैं इसी फ़िक्र में हूँ; किन्तु आपसे एक निवेदन है। क्या किसी तरह नाना का महल बच सकता है?”

अउटरम-गवर्नर जनरल की आज्ञा के बिना यह सम्भव नहीं। नाना साहब पर अंगरेजों का क्रोध बहुत अधिक है। नाना के वंश या महल पर दया दिखाना असम्भव है।”

सेनापति ‘हे’ “तो लार्ड केनिंग (गवर्नर जनरल) को इस विषय का एक तार देना चाहिये।” अउटरम- “आखिर आप ऐसा क्यों चाहते हैं? हम यह महल विध्वंस किये बिना, और नाना की लड़की को गिरफ्तार किये बिना नहीं छोड़ सकते।” सेनापति ‘हे’ मन में दु:खी होकर वहाँ से चला गया। इसके बाद जनरल अउटरम ने नाना का महल फिर घेर लिया। महल का फाटक तोड़कर अंगरेज़ सिपाही भीतर घुस गये, और मैना को खोजने लगे, किन्तु आश्चर्य है, कि सारे महल का कोना-कोना खोज डाला; पर मैना का पता नहीं लगा।

उसी दिन सन्ध्या समय लार्ड केनिंग का एक तार आया, जिसका आशय इस प्रकार था —

“लण्डन के मन्त्रिमण्डल का यह मत है, कि नाना का स्मृति-चिह्न तक मिटा दिया जाये। इसलिये वहाँ की आज्ञा के विरुद्ध कुछ नहीं हो सकता।”

उसी क्षण क्रूर जनरल अउटरम की आज्ञा से नाना साहब के सुविशाल राज मंदिर पर तोप के गोले बरसने लगे। घण्टे भर में वह महल मिट्टी में मिला दिया गया।

उस समय लण्डन के सुप्रसिद्ध “टाइम्स” पत्र में छठी सितम्बर को यह एक लेख में लिखा गया-“बड़े दु:ख का विषय है, कि भारत-सरकार आज तक उस दुर्दान्त नाना साहब को नहीं पकड़ सकी, जिस पर समस्त अंगरेज़ जाति का भीषण क्रोध है। जब तक हम लोगों के शरीर में रक्त रहेगा, तब तक कानपुर में अंगरेज़ों के हत्याकाण्ड का बदला लेना हम लोग न भूलेंगे। उस दिन पार्लमेण्ट की ‘हाउस आफ़ लार्ड्स’ सभा में सर टामस ‘हे’ की एक रिपोर्ट पर बड़ी हँसी हुई, जिसमें सर ‘हे’ ने नाना की कन्या पर दया दिखाने की बात लिखी थी। ‘हे’ के लिये निश्चय ही यह कलंक की बात है-जिस नाना ने अंगरेज़ नर-नारियों का संहार किया, उसकी कन्या के लिये क्षमा! अपना सारा जीवन युद्ध में बिता कर अन्त में वृद्धावस्था में सर टामस ‘हे’ एक मामूली महाराष्ट्र बालिका के सौन्दर्य पर मोहित होकर अपना कर्त्तव्य ही भूल गये! हमारे मत से नाना के पुत्र, कन्या, तथा अन्य कोई भी सम्बन्धी जहाँ कहीं मिले, मार डाला जाये। नाना की जिस कन्या से ‘हे’ का प्रेमालाप हुआ है, उसको उन्हीं के सामने फाँसी पर लटका देना चाहिये।” ।

सन् 1857 के सितम्बर मास में अर्द्ध रात्रि के समय चाँदनी में एक बालिका स्वच्छ उज्ज्वल वस्त्र पहने हुए नानासाहब के भग्नावशिष्ट प्रासाद के ढेर पर बैठी रो रही थी। पास ही जनरल अउटरम की सेना भी ठहरी थी। कुछ सैनिक रात्रि के समय रोने की आवाज़ सुनकर वहाँ गये। बालिका केवल रो रही थी। सैनिकों के प्रश्न का कोई उत्तर नहीं देती थी।


इसके बाद कराल रूपधारी जनरल अउटरम भी वहाँ पहुँच गया। वह उसे तुरन्त पहिचानकर बोला- “ओह! यह नाना की लड़की मैना है!” पर वह बालिका किसी ओर न देखती थी और न अपने चारों ओर सैनिकों को देखकर ज़रा भी डरी। जनरल अउटरम ने आगे बढ़कर कहा-“अंगरेज़ सरकार की आज्ञा से मैंने तुम्हें गिरफ्तार किया।”

मैना उसके मुँह की ओर देखकर आर्त स्वर में बोली, “मुझे कुछ समय दीजिये, जिसमें आज मैं यहाँ जी भरकर रो लूँ।”

पर पाषाण-हृदय वाले जनरल ने उसकी अन्तिम इच्छा भी पूरी होने न दी। उसी समय मैना के हाथ में हथकड़ी पड़ी और वह कानपुर के किले में लाकर कैद कर दी गयी।

उस समय महाराष्ट्रीय इतिहासवेत्ता महादेव चिटनवीस के “बाखर” पत्र में छपा था —

“कल कानपुर के किले में एक भीषण हत्याकाण्ड हो गया । नाना साहब की एकमात्र कन्या मैना धधकती हुई आग में जलाकर भस्म कर दी गयी । भीषण अग्नि में शान्त और सरल मूर्ति उस अनुपमा बालिका को जलती देख, सब ने उसे देवी समझ कर प्रणाम किया।”





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जय हिन्द 
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