Dhwani Class 8 | ध्वनि |


पाठ-1

ध्वनि


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ध्वनि प्रस्तुति





ध्वनि

कवि- सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'





अभी न होगा मेरा अन्त

अभी-अभी ही तो आया है
मेरे वन में मृदुल वसन्त-
अभी न होगा मेरा अन्त

हरे-हरे ये पात,
डालियाँ, कलियाँ कोमल गात!

मैं ही अपना स्वप्न-मृदुल-कर
फेरूँगा निद्रित कलियों पर
जगा एक प्रत्यूष मनोहर

पुष्प-पुष्प से तन्द्रालस लालसा खींच लूँगा मैं,
अपने नवजीवन का अमृत सहर्ष सींच दूँगा मैं,

द्वार दिखा दूँगा फिर उनको
हैं मेरे वे जहाँ अनन्त-
अभी न होगा मेरा अन्त।




Dhwani

शब्दार्थ



  • मेरा अंत- जीवन की समाप्ति
  • वन- जंगल( जीवन रूपी वन)
  • मृदुल- कोमल
  • वसंत- एक सुहानी ऋतु
  • पात-पत्ते
  • कोमल- नाजुक, सुकुमार
  • गात- शरीर, काया
  • स्वप्न - सपने, ख्वाब
  • कर- हाथ
  • निद्रित - नींद में, सोया हुआ
  • प्रत्यूष- आशा
  • मनोहर- सुंदर
  • पुष्प- फूल
  • तंद्रालस - नींद से बोझिल
  • लालसा- इच्छा
  • अमृत -सुधा
  • सहर्ष -खुशी से
  • द्वार -दरवाजा
  • अनंत -जिसका अंत न हो



कविता का सार

Dhwani class 8
'ध्वनि' कविता में कवि की अंतर मन की आवाज को दर्शाया गया है. कवि का मानना है कि अभी मेरा अंत नहीं हो सकता. अभी-अभी तो मेरे वन रूपी जीवन में सुकुमार शिशु के समान वसंत का आगमन हुआ है. जिस प्रकार प्रकृति में वसंत के आते ही कोमलता, सुंदरता और मृदुलता का रूप बढ़ जाता है वैसे ही मेरे जीवन में भी परिवर्तन आया है. मैं भी नई आशा से जीवन में यश प्राप्ति हेतु आगे बढ़ना चाहता हूँ .


             मैं सोई हुई सुंदर कलियों को अपने हाथों के स्पर्श से प्रभात (सुबह) के आने का संदेश देकर जगाना चाहता हूँ अर्थात जीवन में नवीन कार्यों की ओर अग्रसर होना चाहता हूँ . फूलों की नींद से भरी आंखों से आलस्य हटाकर उन्हें चुस्त व जागरूक करना चाहता हूँ . अर्थात अपने आप को प्रत्येक कार्य हेतु सक्रिय बनाना चाहता हूँ. अपने जीवन में भी नव प्राणों का संचार कर निराशाओं, बाधाओं, आलस्य और प्रमाद को दूर भगाना चाहता हूँ.

                                                कवि का मानना है कि मेरा अंत अभी बहुत दूर है कवि अपने अदृश्य व अनंत से सप्रेम भेंट करना चाहता है. कवि अपने अंत से पूर्व जीवन की आभा, सुषमा व कर्तव्य भावना को यशस्वी बनाकर वसंत की हरियाली के समान चारों ओर बिखेरना चाहता है.



1-
अभी न होगा मेरा अन्त
अभी-अभी ही तो आया है
मेरे वन में मृदुल वसन्त-
अभी न होगा मेरा अन्त


हरे-हरे ये पात,
डालियाँ, कलियाँ कोमल गात!


मैं ही अपना स्वप्न-मृदुल-कर
फेरूँगा निद्रित कलियों पर
जगा एक प्रत्यूष मनोहर




व्याख्या- कवि का मानना है कि अभी उसके जीवन का अंत नहीं होगा. अभी-अभी तो उसके जीवन में सुकुमार शिशु रूपी वसंत का आगमन हुआ है. जिस प्रकार प्रकृति में वसंत के आते ही चारों और हरियाली छा जाती है उसी प्रकार कवि के जीवन में भी चारों और उत्साह और उल्लास छाया हुआ है .

नाजुक डालियाँ व कलियाँ सुंदर रूप में खिल जाती हैं. चारों और प्रकृति में कोमलता, मृदुलता व सुंदरता दिखाई देती है वैसे ही मैं भी अपने जीवन में अपने कार्यों द्वारा चारों और यश फैलाना चाहता हूँ. कवि अपने सपने भरे कोमल हाथों को अलसाई कलियों पर फेरकर उन्हें प्रभात( सबेरा ) के आने का संदेश देना चाहते हैं अर्थात अपने जीवन का आलस्य, निराशा, बाधा और प्रमाद को दूर भगाना चाहते हैं ताकि नए कार्यों की ओर अग्रसर हो सकें .




प्रश्न- कवि को ऐसा विश्वास क्यों है कि उसका अंत कभी नहीं होगा?

उत्तर- कवि को ऐसा विश्वास है कि वह अपने जीवन के उद्देश्यों को पूरा किए बिना अपने जीवन का अंत नहीं होने देगा वह तो वसंत की भांति अपनी काया (कर्म) की खुशबू फैलाकर यश प्राप्त करना चाहता है.

प्रश्न- " वन में मृदुल वसंत" इस पंक्ति से आप क्या समझते हैं?

उत्तर- "वन में मृदुल वसंत" पंक्ति का आशय है कि कवि जीवन में सुख, शांति, आनंद और आशा का संचार करके अधिक से अधिक जीवन जीना चाहता है.

प्रश्न- कवि अलसाई कलियों को क्यों और कैसे जगाना चाहता है?

उत्तर- कवि प्रकृति के सारे अवसाद को समाप्त करके कलियों को खिलने के लिए विवश करता है ताकि वे पुष्प बनकर अपनी आभा, सुषमा, सौंदर्य और सुवास को वातावरण में बिखेर दें इसीलिए अपने (स्वप्न से भरे) कोमल हाथों के स्पर्श से उन्हें जगाना चाहता है.




2-

पुष्प-पुष्प से तन्द्रालस लालसा खींच लूँगा मैं,
अपने नवजीवन का अमृत सहर्ष सींच दूँगा मैं,


द्वार दिखा दूँगा फिर उनको
हैं मेरे वे जहाँ अनन्त-
अभी न होगा मेरा अन्त।


व्याख्या- इस पद्यांश में कवि फूलों की नींद भरी आंखों से आलस्य हटाकर उन्हें जागरूक व ऊर्जावान बनाना चाहते हैं. वे अपने जीवन के अमृत से उन्हें सींचकर हरा भरा करना चाहते हैं अर्थात कवि अपने जीवन में नव प्राणों का संचार करके नई शक्ति के साथ नवीन कार्यों को आगे बढ़ा कर सफलता प्राप्त करना चाहते हैं.

                   उनका मानना है कि उनका अंत अभी बहुत दूर है. कवि इस जीवन में बहुत कार्य करना चाहते हैं कवि प्रत्येक फूल से उसका आलस और प्रमाद छीन कर उन्हें चिरकाल तक खिलते हुए देखना चाहते हैं ताकि वे अनंत काल तक खिलकर अपनी आभा बिखेरते रहें .


                                                                                                        वास्तव में कवि अपने जीवन के सौंदर्य को वसंत की हरियाली की भांति चारों ओर फैलाना चाहते हैं वह अपने अदृश्य व अनंत से भेंट करना चाहते हैं वह अपना अंत नहीं चाहते हैं उनके मन में जीवन जीने की अनंत इच्छाएं विद्यमान हैं. वे अपने वातावरण को भी जिजीविषा (जीवन जीने की प्रबल इच्छा) से भर देना चाहते हैं.


प्रश्न- कवि पुष्पों को किस रूप में देखता है और उन में क्या परिवर्तन चाहता है?

उत्तर-कवि को पुष्प आलसी( सुबह सुबह की नींद का आलस), निद्रा में उदासी भरे दिखाई देते हैं जिस कारण वह उन्हें अपने स्पर्श से ऊर्जावान सुंदर और जागरूक बनाना चाहते हैं.


प्रश्न- कवि प्रकृति को अपनी ओर से क्या देना चाहता है?

उत्तर- कवि प्रकृति को हरा-भरा, सुंदर, प्राणवान और आशावान देखना चाहते हैं. जिस प्रकार कभी जीवन पथ पर आगे बढ़ रहे हैं उसी प्रकार प्रकृति को भी पल्लवित-पुष्पित देखना चाहते हैं.

प्रश्न- अंतिम पंक्ति "द्वार दिखा दूंगा………." से कवि क्या भाव प्रकट करते हैं?

उत्तर- इस पंक्ति के माध्यम से कवि कहना चाहते हैं कि वह प्रकृति को जीवन रूप में अपने जीवन के समान यशस्वी, तेजस्वी और कीर्तिमय बनाकर उस अनंत से मिलाना चाहते हैं जो अदृश्य व निराकार है.



ncert class 8 hindi chapter 1 question answer

कविता से




प्रश्न- कवि को ऐसा विश्वास क्यों है कि उसका अंत अभी नहीं होगा?

उत्तर- कवि को स्वयं पर दृढ़ विश्वास है कि वह अपनी कर्तव्य परायणता तथा सक्रियता से विमुख होकर अपने जीवन का अंत नहीं होने देगा. वह तो अपने यशस्वी कार्यों की आभा को बसंत की तरह सुगंधित रूप में सब और फैलाना चाहता है.


प्रश्न- फूलों को अनंत तक विकसित करने के लिए कवि कौन- कौन सा प्रयास करता है?

उत्तर- कवि चाहते हैं कि वसंत के सुगंधित व आकर्षक फूल अनंत काल तक खिलते रहें इस हेतु वह उनका आलस्य और प्रमाद छीनकर उन्हें चिरकाल तक खिले रहने के लिए प्रेरित करता है. कवि चाहते हैं कि वे फूल सदैव अपनी आभा, सौंदर्य व सुषमा की छटा बिखेरते रहें. उनकी इच्छा है कि यह पुष्प अनंत व अदृश्य से सप्राण भेंट करके सुगंधित रहें और चिरकाल तक खिलते रहें.


प्रश्न- कवि पुष्पों की तंद्रा और आलस्य दूर हटाने के लिए क्या करना चाहता है?

उत्तर- कवि अपने हाथ के सुधा स्पर्श से पुष्प की नींद व आलस मिटा कर उन्हें ऊर्जावान, प्राणवान,आभामय और पुष्पित करना चाहते हैं. ऐसा करने का उनका उद्देश्य है कि धरती पर जरा भी आलस्य, प्रमाद, निराशा व मायूसी का निशान तक ना रहे. वह चारों तरफ़ बसंत की भांति हरियाली, सौंदर्य, सुख और आनंद की अनुभूति चाहते हैं.



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कविता से आगे



प्रश्न- वसंत को ऋतुराज क्यों कहा जाता है?

उत्तर- ऋतु में वर्षा, शरद तथा पतझड़ भी वातावरण को प्रभावित करते हैं लेकिन वसंत ऋतु के आते ही पसीना, ठिठुरना और कीचड़ आदि नकारात्मक तत्व नहीं होते हैं. पुष्प स्वयं खिलते हैं . प्रकृति की नई सुषमा चारों और वातावरण में छा जाती है. आलस और निराशा दूर भाग जाते हैं.

                                                                                                                       स्वास्थ्य सौंदर्य और स्फूर्ति का वातावरण होता है. पक्षियों का कलरव चारों ओर सुनाई देता है. बच्चे, बूढ़े सभी के चेहरों पर नया उत्साह और चमक झलकने लगती है. प्रकृति के इसी परिवर्तन के कारण वसंत को ऋतुराज या ऋतुओं की रानी कहा जाता है.

                                    सूर्योदय व सूर्यास्त के दृश्य सुहावने हो जाते हैं. नए-नए फूलों के खिलने से उनका स्पर्श पाकर सुगंधित व सुहावनी हवा चलने लगती है. नई-नई पत्तियों के आने से पेड़ पौधे उत्साहित व ऊर्जावान लगते हैं और ऐसा प्रतीत होता है कि प्रकृति सिंगार करके विराजमान हो. अपनी जीवनशैली से थके हुए मनुष्यों को शक्ति के ऐसे वातावरण में जीवन जीने की नई ऊर्जा प्राप्त होती है.


प्रश्न- वसंत ऋतु में आने वाले त्योहारों के विषय में जानकारी दीजिए व किसी एक त्योहार का वर्णन कीजिए.


उत्तर- वसंत ऋतु में आने वाले महत्वपूर्ण त्योहार हैं- वसंत पंचमी, सरस्वती पूजा, महाशिवरात्रि, होली आदि


होली


हमारे देश में होली का उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. इस त्यौहार को मनाने में प्रत्येक भारतीय अपना गौरव समझता है. एक ओर तो आनंद और हर्ष की वर्षा होती है दूसरी ओर प्रेम व स्नेह की सरिता उमड़ पड़ती है. यह शुभ पर्व प्रति वर्ष फाल्गुन मास की पूर्णिमा के सुंदर अवसर की शोभा बढ़ाने आता है. होली का त्यौहार वसंत ऋतु का संदेशवाहक बनकर आता है.
मानव मात्र के साथ-साथ प्रकृति भी अपने रंग-ढंग दिखाने में कोई कमी नहीं रखती चारों और प्रकृति के रूप में सुंदरता के दृश्य दृष्टिगोचर होते हैं. पुष्प वाटिका में पपीहे की तान सुनने से मन-मयूर नृत्य कर उठता है आम के झुरमुट से कोयल की कुहू-कुहू सुन कर हृदय भी झंकृत होता है. ऋतुराज बसंत का स्वागत बड़ी शान से संपन्न होता है सब लोग घरों से बाहर जाकर रंग-गुलाल खेलते हैं और आनंद मनाते हैं.

          होलिकोत्सव धार्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है. इस उत्सव का आधार हिरण्यकश्यप नामक दानव राजा और उसके ईश्वर-भक्त पुत्र प्रहलाद की कथा है. कहते हैं कि राक्षस राजा बड़ा अत्याचारी था और स्वयं को भगवान मानकर प्रजा से अपनी पूजा करवाता था किंतु उसी का पुत्र प्रहलाद ईश्वर का अनन्य भक्त था. हिरण्यकश्यप चाहता था कि मेरा पुत्र भी मेरा नाम जपे किंतु उसका पुत्र उसके विपरीत ईश्वर का नाम ही जप ता उसने अपने पुत्र को मारना चाहा लेकिन वह सफल ना हो सका.

                                                                                                                    एक बार हिरण्यकश्यप की बहन होलिका ने इस षड्यंत्र में अपने भाई का साथ देने का प्रयास किया उसे किसी देवता से वरदान प्राप्त था कि वह आग में नहीं जलेगी और इसी कारण से वह प्रहलाद को गोद में लेकर आग में बैठ गई लेकिन ईश्वर की कृपा से प्रहलाद बच गया और होलिका जल गई. बुराई करने वाले को उसका फल मिल गया था इसी शिक्षा को दोहराने के लिए उत्सव मनाया जाता है.

                                                                                                         इस दिन खूब रंग खेला जाता है आपस में नर-नारी, युवा-वृद्ध गुलाल से एक दूसरे के मुख को लाल कर के हंसी ठट्ठा करते हैं. ग्रामीण लोग नाच-नाच कर इस उल्लास भरे त्यौहार को मनाते हैं. कृष्ण गोपियों की रासलीला भी होती है. रँग के बाद संध्या समय नए-नए कपड़े पहन कर लोगअपने मित्र गणों से मिलते हैं एक दूसरे को मिठाई खिलाते हैं और अपने संबंधों को पुनर्जीवित करते हैं.

                                                                               कुछ लोग इस शुभ पर्व को भी अपने हल्के कामों से गंदा बना देते हैं. कुछ लोग इस दिन रंग के साथ गंदी वस्तुओं को भी एक दूसरे को लगाते हैं तथा पक्के रंगों या तारकोल से एक-दूसरे को पोत देते हैं. इससे झगड़े होते हैं इसके अतिरिक्त कुछ लोग इस दिन मदिरा आदि नशीले वस्तुओं का भी प्रयोग करते हैं इसके परिणाम स्वरूप अच्छे माहौल में तनाव का वातावरण आ जाता है.

                                                ऐसे पवित्र त्यौहार पर इन सभी अपवित्र व असामाजिक कार्यों से बचना चाहिए. होलिकोत्सव तो हर प्राणी को मित्रता का पाठ सिखाता है इस दिन शत्रु भी अपनी शत्रुता भुलाकर मित्र बन जाते हैं. इस कारण होलिका उत्सव को यदि त्योहारों की रानी कहा जाए तो अति युक्ति न होगी.


वसंत ऋतु

भारत को प्राकृतिक सौदर्य से पूर्ण करने में ऋतुओं का विशेष योगदान है। यहाँ की ऋतुओं में वसंत ऋतु सबसे प्रमुख है। यह फाल्गुन व चैत में शुरू होती है, चारों और उल्लास और आनंद का वातावरण होता है। उत्तर भारत व बंगाल में देवी सरस्वती की पूजा की जाती है, पीले वस्त्र पहनते है, पीला पकवान फी बनाया जाता है। क्योंकि सरसों की पीली फसल लहलहा उठते हैं। मानो धरती ने पीली चादर ओढ़ ली है। यह एक सामाजिक त्योहार भी है क्योंकि इस पर लगे मेलों में मित्रों सगे सम्बन्धियों में मेलजोल बढ़ता है। कुछ लोग आज से ही अपने बच्चों की पढ़ाई शुरू करते हैं। रंग बिरंगे फूल खिलते हैं फूलों पर भँवरे, तितलियाँ मँडराती प्रकृति के सौदंर्य में चार चाँद लगाती है। प्रात: कालीन भ्रमण तो अनूठा आनंद देता है। वसंत ऋतु को मधु ऋतु भी कहते हैं। लोक गीतों की मधुरता और प्राकृतिक सौदंर्य भाव शून्य कर देता है।
आया ऋतुराज वसंत, शीत का हुआ अंत,
बागों में हरियाली छाई, प्रकृति मन मोहने आई,
झूम रहे हैं दिग् दिगंत, छा रहा है आनंद अनंत।



प्रश्न- ऋतु परिवर्तन का जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है. इस कथन की पुष्टि आप किन-किन बातों से कर सकते हैं ?लिखिए

उत्तर- यह सत्य है कि लोगों के जीवन पर प्रत्येक ऋतु का गहरा प्रभाव पड़ता है जिसे हम इस प्रकार स्पष्ट कर सकते हैं.

ग्रीष्म- इस ऋतु में झुलसा देने वाली गर्मी पड़ती है जिससे प्राणी व्याकुल हो जाते हैं और प्रकृति भी मुरझा जाती है. जल की मांग बढ़ जाती है और कई जगह जल संकट भी गहरा जाता है. सभी प्राणी अपने आप को शीतल रखने के लिए वृक्ष की छाया और जल का आश्रय लेते हैं

शीत- शीत ऋतु में बर्फीली हवाओं के कारण लोगों को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. तापमान कम होने से जाड़ा बढ़ जाता है और प्राणी अपने आप को गर्म रखने के लिए विभिन्न प्रकार के वस्त्रों को धारण करते हैं और ऐसे स्थान का चयन करते हैं जहां शीतल हवा से बचा जा सके. गर्म खाद्य पदार्थों का सेवन करते हैं और अपनी दिनचर्या मौसम के अनुसार परिवर्तित करते हैं.

वर्षा- वर्षा ऋतु में पानी अधिक मात्रा में बरसता है इस कारण अधिकांश जगह जलभराव व कीचड़ की समस्या हो जाती है. दिनचर्या बिगड़ जाती है. सभी लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है. सभी प्राणी ऐसे स्थानों पर जाते हैं जो जल की पहुंच से दूर होते हैं जैसे पहाड़ या अपने घरों के भीतर. जलभराव से कई प्रकार की बीमारियां पनपने के कारण सभी प्राणियों को कष्टों का सामना करना पड़ता है. जलभराव के कारण कई लोगों के आश्रय उजड़ जाते हैं उन्हें पलायन की समस्या का सामना करना पड़ता है.

वसंत- वसंत ऋतु में इसके विपरीत चारों ओर सुंदर माहौल हो जाता है सभी प्राणी अपने आपको ऊर्जावान वा उत्साहित महसूस करते हैं. अस्वस्थ व्यक्ति भी स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करते हैं. प्रकृति निर्मल आंचल ओढ़कर अपना हर्ष प्रकट करती है. चारों ओर हरियाली और सुगंधित फूलों से वातावरण आनंदमय हो जाता है. मानव जाति के साथ-साथ पशु-पक्षी भी प्रसन्नचित्त हो जाते हैं.





Dhwani class 8

अनुमान और कल्पना



कविता की निम्नलिखित पंक्तियां पढ़कर बताइए कि इसमें किस ऋतु का वर्णन है


फूटे हैं आमों में बौर
भौंर वन-वन टूटे हैं
होली मची ठौर-ठौर
सभी बंधन छूटे हैं


इन पंक्तियों में वसंत की आभा का वर्णन किया गया है


प्रश्न- जिस प्रकार कवि अपने कोमल हाथों के स्पर्श से फूलों को जागृत करना चाहते हैं उसी प्रकार आप फूलों व पौधों के लिए क्या-क्या करना चाहेंगे?


उत्तर- फूलों और पौधों की हम इस तरह देखभाल करेंगे कि वे जल्दी से मुरझा न जाएँ समय अनुसार उनके पानी, खाद आदि का ध्यान रखेंगे उन्हें मौसम के अनुसार सुरक्षा प्रदान करेंगे. बिना वजह फूलों और पत्तियों को तोड़ेगे नहीं और डालियों तथा पत्तियों की सुंदरता का हमेशा ध्यान रखेंगे.



Dhwani class 8 grammar

भाषा की बात



प्रश्न- हरे- हरे, पुष्प- पुष्प, में एक शब्द की एक ही अर्थ में पुनरावृत्ति हुई है. कविता के' हरे हरे ये पात' वाक्यांश में हरे- हरे शब्द युग्म पत्तों के लिए विशेषण के रूप में प्रयुक्त हुए हैं यहां 'पात' शब्द बहुवचन में प्रयुक्त है. ऐसा प्रयोग भी होता है जब कर्ता या विशेष्य एक वचन में हो और कर्म या क्रिया या विशेषण बहुवचन में जैसे- वह लंबी चौड़ी बातें करने लगा.


कविता में एक ही शब्द का एक से अधिक अर्थों में भी प्रयोग होता है जैसे- तीन बेर खाती थी वे तीन बेर खाती है  -
जो तीन बार खाती थी वह तीन बेर खाने लगी है.

  • बार-समय 
  • बेर-फल 

एक शब्द बेर का दो अर्थों में प्रयोग करने से वाक्य में चमत्कार आ गया इसे यमक अलंकार कहा जाता है.
कभी-कभी उच्चारण की समानता से शब्दों की पुनरावृत्ति का आभास होता है जबकि दोनों दो प्रकार के शब्द होते हैं जैसे- 
  • मन का 
  • मनका
ऐसे वाक्यों को एकत्र कीजिए जिनमें एक ही शब्द की पुनरावृति हो ऐसे प्रयोगों को ध्यान से देखें और निम्नलिखित पुनरावृति शब्दों का वाक्य में प्रयोग कीजिए-



बातों बातों में
रह रह कर
लाल लाल
सुबह-सुबह
रातों-रात
घड़ी- घड़ी


उत्तर- एक शब्द का दो अर्थ लिखकर वाक्य में चमत्कार उत्पन्न करने का उदाहरण इस दोहे में देखिए


"नैनन काजल औ काजल मिली
हो गई श्याम श्याम की पाती"

इसमें काजल शब्द का प्रयोग दो बार हुआ है एक नैनन काजल का अर्थ है - आंसू और दूसरे काजल का अर्थ- आंखों में डालने वाला काजल अर्थात सुरमा.

श्याम शब्द भी दो बार है एक श्याम का अर्थ है - काली व दूसरे श्याम का अर्थ है - कृष्ण(कान्हा)


उद्धव जब कृष्ण का पत्र लेकर गोपियों के पास जाते हैं तो गोपियों की आंखों से आंसू निकलने लगते हैं जिनके साथ उनका काजल भी पत्र पर गिरने लगता है तो कृष्ण के भेजे पत्र के शब्द धुलने लगते हैं और पत्र काला हो जाता है


  • बातों बातों में- बातों बातों में रमेश ने मुझे सुना ही दिया कि उसने मुझे ₹1000 उधार दिए थे.
  • रह-रह कर- आज मुझे रह-रह कर सड़क पर भीख मांगने वाले बच्चे की याद आ रही है.
  • लाल लाल- लाल-लाल सूर्योदय देखकर मेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा.
  •  सुबह-सुबह- सुबह सुबह की सैर दिनभर ऊर्जावान रखती है
  • रातों रात- भूकंप आने की खबर रातों रात फैल गई.
  • घड़ी घड़ी- एक बच्चा घड़ी घड़ी खिलौने की दुकान की तरफ देख रहा था.


प्रश्न- 
  • कोमल गात,
  • मृदुल वसंत,
  • हरे हरे ये पात.

विशेषण जिस संज्ञा( या सर्वनाम) की विशेषता बताता है उसे विशेष्य कहते हैं.

ऊपर दिए गए वाक्यों में गात, वसंत और पात शब्द विशेष्य हैं क्योंकि इनकी विशेषता क्रमशः कोमल, मृदुल और हरे-हरे शब्द बता रहे हैं.




हिंदी विशेषण के सामान्यतया चार प्रकार माने गए हैं- 
  • 1.गुणवाचक विशेषण- अच्छा बच्चा , सुन्दर फूल 
  • 2.परिमाणवाचक विशेषण- तीन किलो अनाज 
  • 3.संख्या वाचक विशेषण- चार फल 
  • 4.सार्वनामिक विशेषण- वह पेड़ लम्बा है 


Dhwani poem 

कुछ करने को



बसंत पर अनेक सुंदर कविताएं हैं कुछ कविताओं का संकलन तैयार कीजिए.


जब वसंत आकर मुस्काया,
पीलापन व्यवहार हुआ.
खेतों में फसल चहकी है,
यह बसंत त्योहार हुआ.


पंचायत मेरे गांव की,
मौन तोड़ती है अपना.
और यही चर्चा चौपाल पर,
ये फसल हैं धन अपना.


आज नया दरबार लगा है,
सब मौलिक अधिकार हुआ.
जब वसंत आकर मुस्काया
पीलापन व्यवहार हुआ.




Dhwani

अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

प्रश्न- कविता का शीर्षक 'ध्वनि' इस शब्द से आप क्या समझते हैं?


प्रश्न- कवि ने अपने जीवन की तुलना बसंत से क्यों की है?


प्रश्न- 'अनंत से मिलन' शब्दों से आप क्या समझते हैं?


प्रश्न- कवि ने प्रकृति के साथ किस प्रकार अपने जीवन का तादात्म्य जोड़ा है?


प्रश्न- कविता का शीर्षक ‘ध्वनि ‘कितना सार्थक है ?


प्रश्न- इस कविता को पढ़कर आपके मन में कैसे विचार उठते हैं?


प्रश्न- इस कविता से हमें क्या संदेश मिलता है?


प्रश्न- वसंत ऋतु की महत्वपूर्ण विशेषताओं को अपने शब्दों में लिखिए. क्या आपने भी वसंत के मौसम में इन सभी बातों को अनुभव किया है?





Dhwani

सम्पूर्ण कविता


अभी न होगा मेरा अन्त
अभी-अभी ही तो आया है
मेरे वन में मृदुल वसन्त-
अभी न होगा मेरा अन्त


हरे-हरे ये पात,
डालियाँ, कलियाँ कोमल गात!


मैं ही अपना स्वप्न-मृदुल-कर
फेरूँगा निद्रित कलियों पर
जगा एक प्रत्यूष मनोहर


पुष्प-पुष्प से तन्द्रालस लालसा खींच लूँगा मैं,
अपने नवजीवन का अमृत सहर्ष सींच दूँगा मैं,
द्वार दिखा दूँगा फिर उनको
है मेरे वे जहाँ अनन्त-
अभी न होगा मेरा अन्त।


मेरे जीवन का यह है जब प्रथम चरण,
इसमें कहाँ मृत्यु?
है जीवन ही जीवन
अभी पड़ा है आगे सारा यौवन
स्वर्ण-किरण कल्लोलों पर बहता रे, बालक-मन,


मेरे ही अविकसित राग से
विकसित होगा बन्धु, दिगन्त;
अभी न होगा मेरा अन्त।






कार्य पत्रक 






जय हिन्द
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