Diwano Ki Hasti Class 8 | दीवानों की हस्ती |

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पाठ-4

 दीवानों की हस्ती 





ध्वनि प्रस्तुति






दीवानों की हस्ती  पाठ प्रवेश


दीवानों की हस्ती कविता में कवि भगवती चरण वर्मा नें अपने प्रेम से भरे हृदय के भावों को दर्शाया है क्योंकि कवि स्वाभाविक रूप से संसार के व्यक्तियों से प्रेम करता है. कवि अपने जीवन को अपने तरीके से जीते हैं, वे मस्त-मौला है . वे इन पँक्तियों में चारों ओर प्रेम बाँटने का सन्देश देते हैं। वे , जहाँ भी जाते हैं खुशियाँ बिखेरते हैं और जीवन में असफल हो जाने पर भी किसी को दोष नहीं देते । उनके अनुसार हमें अपनी सफलता और असफलता का श्रेय स्वयं को ही देना चाहिए क्योंकि अगर हम असफल होते है तो उसमें भी कहीं न कहीं दोष हमारा ही होता है और सफल होने पर वे श्रेय भी स्वयं को ही देते हैं । वे अपने जीवन में मिली हार या असफलता की जिम्मेदारी किसी दूसरे पर नहीं डालते ।



कविता :दीवानों की हस्ती


हम दीवानों की क्या हस्ती,
हैं आज यहाँ, कल वहाँ चले,
मस्ती का आलम साथ चला,
हम धूल उड़ाते जहाँ चले।


आए बन कर उल्लास अभी,
आँसू बन कर बह चले अभी,
सब कहते ही रह गए, अरे,
तुम कैसे आए, कहाँ चले?


किस ओर चले? यह मत पूछो,
चलना है, बस इसलिए चले,
जग से उसका कुछ लिए चले,
जग को अपना कुछ दिए चले,


दो बात कही, दो बात सुनी।
कुछ हँसे और फिर कुछ रोए।
छककर सुख-दुख के घूँटों को
हम एक भाव से पिए चले।


हम भिखमंगों की दुनिया में,
स्वच्छंद लुटाकर प्यार चले,
हम एक निसानी – सी उर पर,
ले असफलता का भार चले।


अब अपना और पराया क्या?
आबाद रहें रुकने वाले!
हम स्वयं बँधे थे और स्वयं
हम अपने बँधन तोड़ चले।




शब्दार्थ 



दीवानों- अपनी मस्ती में रहने वाले
हस्ती- अस्तित्व
मस्ती- मौज
आलम- दुनिया
उल्लास- ख़ुशी
जग- संसार
छककर- तृप्त होकर
भाव- एहसास
भिखमंगों- भिखारियों
स्वच्छंद- आजाद
निसानी- चिह्न 
उर- ह्रदय
असफलता- जो सफल न हो
भार- बोझ
आबाद- बसना
स्वयं- खुद


 Q&A 


प्रश्न :1 कवि ने अपने आने को ‘उल्लास’ और जाने को ‘आँसू बनकर बह जाना’ क्यों कहा है?

उत्तर : कवि अपने आने को ‘उल्लास’ कहता है क्योंकि किसी भी नई जगह पर आने से उसे खुशी मिलती है तथा उस स्थान को छोड़कर जाते समय दुख होता है और इसीलिए आँखों से आँसू निकल जाते हैं। वह अन्य लोगों को खुशियाँ बाँटता है जिससे वे अपना दुख भूल जाते हैं। जब वह जाता है तो वह यह दुख लेकर जाता है कि ये खुशियाँ हमेशा के लिए नहीं हैं।


प्रश्न 2: भिखमंगों की दुनिया में बेरोक प्यार लुटानेवाला कवि ऐसा क्यों कहता है कि वह अपने हृदय पर असफलता का एक निशान भार की तरह लेकर जा रहा है? क्या वह निराश है या प्रसन्न है?

उत्तर : यहाँ भिखमंगों की दुनिया से कवि का आशय है कि यह दुनिया केवल लेना जानती है देना नहीं। कवि ने भी इस दुनिया को प्यार दिया पर इसके बदले में उसे वह प्यार नहीं मिला जिसकी वह आशा करता है। कवि के लिए यह उसकी असफलता है। इसलिए वह अपने हृदय पर असफलता का एक निशान भार की तरह लेकर जा रहा है। अत: कवि निराश है, वह समझता है कि प्यार और खुशियाँ लोगों के जीवन में भरने में असफल रहा।तरह लेकर जा रहा है? क्या वह निराश है या प्रसन्न है?


प्रश्न 3: कविता में ऐसी कौन-सी बात है जो आपको सबसे अच्छी लगी?

उत्तर : कविता में सबसे अच्छी बात कवि का जीवन को जीने का दृष्टिकोण है। वह हर परिस्थिति में खुश रहना चाहता है और सबको प्यार देकर खुश रखना चाहता है। ऐसा व्यक्ति विषम परिस्थितियों में भी खुश रहना जानता है।


प्रश्न1: जीवन में मस्ती होनी चाहिए, लेकिन कब मस्ती हानिकारक हो सकती है? सहपाठियों के बीच चर्चा कीजिए।

उत्तर : इस प्रश्न पर अपने सहपाठियों के साथ चर्चा करें। जैसे − अगर मस्ती से हमको और दूसरों को कुछ भी थोड़ा बहुत फ़ायदा हो रहा है, कुछ अच्छा मिल रहा है तो मस्ती होनी चाहिए। परन्तु जब मस्ती से केवल नुकसान है तो मस्ती हानिकारक है अपने लिए भी और दूसरों के लिए भी।


Diwanon Ki Hasti Class 8

भाषा की बात


प्रश्न1: संतुष्टि के लिए कवि ने ‘छककर’ ‘जी भरकर’ और ‘खुलकर’ जैसे शब्दों का प्रयोग किया है। इसी भाव को व्यक्त करनेवाले कुछ और शब्द सोचकर लिखिए, जैसे -हँसकर, गाकर।

उत्तर :

  • प्यार लुटाकर
  • मुस्कराकर
  • देकर
  • मस्त होकर
  • सराबोर होकर
  • खींचकर



प्रश्न 1: एक पंक्ति में कवि ने यह कहकर अपने अस्तित्व को नकारा है कि 
हम दीवानों की क्या हस्ती, 
हैं आज यहाँ, कल वहाँ चले। 


दूसरी पंक्ति में उसने यह कहकर अपने अस्तित्व को महत्त्व दिया है कि

 
मस्ती का आलम साथ चला, 
हम धूल उड़ाते जहाँ चले।

यह फाकामस्ती का उदाहरण है। अभाव में भी खुश रहना फाकामस्ती कही जाती है। कविता में इस प्रकार की अन्य पंक्तियाँ भी हैं उन्हें ध्यानपूर्वक पढ़िए और अनुमान लगाइए कि कविता में परस्पर विरोधी बातें क्यों की गई हैं?


उत्तर : विरोधाभास वाली काव्य-पंक्तियाँ -


(i) 
आए बनकर उल्लास अभी,
आँसू बनकर बह चले अभी।
(यहाँ उल्लास भी है और आँसू भी है) कवि सुख- दुख को समान भाव से लेता है।


(ii) 
हम भिखमंगों की दुनिया में,
स्वच्छंद लुटाकर प्यार चले।

(यहाँ भिखमंगों का उल्लेख है और लुटाना भी है) कवि दूसरों को प्यार व खुशियाँ देकर खुद बिना कुछ लिए चला जाता है।


(iii) 
हम स्वयं बँधे थे और स्वयं,
हम अपने बंधन तोड़ चले।

(यहाँ स्वयं बंधकर फिर स्वयं अपने बंधनो को तोड़ने की बात की गई है।)




कार्य पत्रक 





जय हिन्द 
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