Hum Panchhi Unmukt Gagan ke Class 7 | हम पंछी उन्मुक्त गगन के


openclasses



पाठ-1

हम पंछी उन्मुक्त गगन के 




ध्वनि प्रस्तुति 






Hum Panchhi Unmukt Gagan ke
कविता  : हम पंछी उन्मुक्त गगन के 

हम पंछी उन्‍मुक्‍त गगन के
पिंजरबद्ध न गा पाएँगे,
कनक-तीलियों से टकराकर
पुलकित पंख टूट जाऍंगे।



हम बहता जल पीनेवाले
मर जाएँगे भूखे-प्‍यासे,
कहीं भली है कटुक निबोरी
कनक-कटोरी की मैदा से,


स्‍वर्ण-श्रृंखला के बंधन में
अपनी गति, उड़ान सब भूले,
बस सपनों में देख रहे हैं
तरू की फुनगी पर के झूले।


ऐसे थे अरमान कि उड़ते
नील गगन की सीमा पाने,
लाल किरण-सी चोंचखोल
चुगते तारक-अनार के दाने।


होती सीमाहीन क्षितिज से
इन पंखों की होड़ा-होड़ी,
या तो क्षितिज मिलन बन जाता
या तनती साँसों की डोरी।


नीड़ न दो, चाहे टहनी का
आश्रय छिन्‍न-भिन्‍न कर डालो,
लेकिन पंख दिए हैं, तो
आकुल उड़ान में विघ्‍न न डालो।



Hum Panchhi Unmukt Gagan ke
शब्दार्थ 

पंछी - पक्षी 
उन्मुक्त - आजाद 
गगन - आसमान 
पिंजर बद्ध - पिंजरे में बंद 
कनक - स्वर्ण (सोने) की 
तीलियां- सलाखें 
पुलकित - प्रसन्न चित्त, कोमल
बहता जल- नदी झरनों का जल 
भूखे प्यासे - बिना कुछ खाए पिए 


कटुक - कड़वी 
निबोरी - नीम के वृक्ष का कड़वा फल 
कटोरी - एक छोटा बर्तन 
स्वर्ण श्रंखला - सोने की सलाखों से निर्मित पिंजरा, 
सुख सुविधाएं 
बंधन - गुलामी, परतंत्रता 
तरु - पेड़ 
फुनगी- पेड़ की सबसे ऊंची टहनी का सिरा 


अरमान- इच्छा, अभिलाषा 
आकाश - आसमान 
सीमा- हद 
तारक- अनार - तारे रूपी अनार के दाने 
सीमाहीन - जिसकी सीमा न हो, असीम 
क्षितिज - जहाँ धरती और आकाश मिलते हुए दिखाई देते हैं. 


होड़ा-होड़ी - एक दूसरे से आगे बढ़ने की चाह
नीड़-घोंसला 
आश्रय - सहारा 
छिन्न-भिन्न - नष्ट भ्रष्ट 
आकुल उड़ान- उड़ने की व्याकुलता या अधीरता 
विघ्न- बाधा या मुसीबत



Hum Panchhi Unmukt Gagan ke
कविता का सार


                  कवि शिवमंगल सिंह सुमन ने अपनी कविता 'हम पंछी उन्मुक्त गगन के' में आजादी और स्वतंत्रता के महत्व के बारे में बताया है इस कविता को पिंजरे में बंद पक्षी के माध्यम से दर्शाया गया है. कवि ने पिंजरे में बंद पक्षी की भावनाओं को स्वर प्रदान किया है.


पक्षी अपनी दुख भरी कहानी (व्यथा) प्रकट करते हुए कहता है कि हम खुले आकाश (आसमान) में विचरण करने वाले पक्षी हैं. पिंजरे में बंद होकर हम खुश नहीं रह सकते और न ही मीठे स्वर में गाना गा सकते हैं. पिंजरा सोने का भी हो जाए तो भी उसकी तीलियों से टकराकर हमारे नाजुक कोमल पंख टूट जाएंगे. हम तो रोज नदी झरनों के बहते हुए जल को पीने वाले हैं. पिंजरे में हम भूखे प्यासे मर जाएंगे क्योंकि गुलामी में मिलने वाले अच्छे-अच्छे व्यंजन भी हमें आकर्षित नहीं करते या ललचा नहीं सकते.


सोने की कटोरी में रखे मैदा से तो नीम की कड़वी निबोरी खाना अधिक अच्छा है. परतंत्रता या गुलामी में जीवन जीते-जीते हम सोने के पिंजरे में रहकर अपनी सारी उड़ाने भूल गए हैं.


पेड़ की सबसे ऊंची टहनी के छोर की कोमल-कोमल पंक्तियों के पास बैठकर झूला झूलने की बात तो अब केवल ख्वाब (सपना) बनकर रह गई है. आकाश की ऊंचाइयों में उड़ते-उड़ते और भी अधिक ऊंचाइयों को छूने की इच्छा सब बेकार हो गई है. अपनी लाल चोंच से तारों को अनार के दानों की भांति चुगने का अरमान तो हमारे मन में ही रह गया है.
पक्षी अपनी इच्छा व्यक्त करता है और कहता है कि यदि हम स्वतंत्र होते तो अपने इन नन्हे-नन्हे, छोटे - छोटे कोमल पंखों से उड़ते-उड़ते या तो क्षितिज( जहां धरती और आसमान मिलते हुए प्रतीत होते हैं) तक पहुंच जाते या हमारे प्राण ही निकल जाते.
अंत में पक्षी अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हुए कहता है कि भले ही रहने के लिए घोंसला मत दो, हमें टहनी का सहारा भी मत दो लेकिन ईश्वर ने यदि हमें पंख दिए हैं तो हमारी उड़ान में बाधा मत डालो, विघ्न मत डालो, हमें स्वतंत्रता पूर्वक आसमान की ऊंचाइयों में उड़ने दो .


Hum Panchhi Unmukt Gagan ke
भावार्थ 

1.
हम पंछी उन्‍मुक्‍त गगन के
पिंजरबद्ध न गा पाएँगे,
कनक-तीलियों से टकराकर
पुलकित पंख टूट जाऍंगे।




व्याख्या- पिंजरे में बंद पक्षियों का कहना है कि हम खुले आसमान में विचरण करने वाले पक्षी हैं. हम पिंजरे में बंद होकर नहीं रह सकते. सोने के पिंजरे की सलाखों से टकरा-टकरा कर हमारे नाजुक पंख टूट जाएंगे. वास्तव में कवि ने पक्षियों के माध्यम से स्वतंत्रता के महत्व को दर्शाना चाहा है पक्षियों की भाँति मनुष्य भी गुलामी का जीवन नहीं जी सकता.

विशेष-  स्वतंत्रता के महत्व को व्यक्त किया गया है. 
पक्षियों के मन की बात को बड़ी बारीकी से बताया गया है. 



 
2.
बहता जल पीनेवाले
मर जाएँगे भूखे-प्‍यासे,
कहीं भली है कटुक निबोरी
कनक-कटोरी की मैदा से,


व्याख्या- पक्षियों का कहना है कि हम तो नदी, झरनों का बहता जल पीने वाले हैं. हम पिंजरे में बंद रहकर भूखे-प्यासे मर जाएंगे. इस सोने के पिंजरे में सोने की कटोरी में रखी मैदा की अपेक्षा नीम के पेड़ की कड़वी निबोरी खाना हमें अधिक अच्छा लगता है. पक्षी खुले वातावरण में घूम-घूम कर बहता जल पीकर और नीम की निबोरी खाकर ही खुश रहते हैं इसीलिए उनकी इच्छा है कि उन्हें वैसा ही वातावरण प्रदान किया जाए उन्हें गुलामी का जीवन पसंद नहीं है. 

विशेष- प्राकृतिक वातावरण के महत्व को दर्शाया गया है. 
अपनी इच्छा से मिलने वाले खाद्य पदार्थ अधिक रुचिकर होते हैं. 


 
3.
स्‍वर्ण-श्रृंखला के बंधन में
अपनी गति, उड़ान सब भूले,
बस सपनों में देख रहे हैं
तरू की फुनगी पर के झूले।


व्याख्या- पक्षियों के माध्यम से कवि कहना चाहते हैं कि सोने की सलाखों से निर्मित पिंजरे में रहकर तो हम अपनी उड़ान व गति सब भूल गए हैं. अब तो केवल सपनों में ही यह सोचते हैं कि पेड़ की सबसे ऊंची चोटी पर झूला झूल रहे हैं. 
      पहले तो बस सबसे ऊंची चोटी पर बैठकर हवा के साथ झूला झूलते थे और यह सब बातें  अब केवल स्मृति में शेष हैं क्योंकि पक्षी सोने के जंजीरों में बंद होकर अपनी उड़ने की आदत और गति सब भूल गए हैं.


विशेष- पक्षी की भावनाएं स्मृति पर आधारित हैं. 
पक्षी अपने पुराने जीवन को पुनः महसूस करना चाहते हैं.


 
4.
ऐसे थे अरमान कि उड़ते
नील गगन की सीमा पाने,
लाल किरण-सी चोंचखोल
चुगते तारक-अनार के दाने।


व्याख्या- पिंजरे में बंद पक्षी अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हुए कहते हैं कि हमारी ऐसी इच्छा थी कि उड़ते उड़ते नीले आकाश की सीमा को छू लें और अपनी चोंच से आसमान के तारों को चुग लें. पक्षियों की चोंच लाल किरणों के समान थी और आसमान के तारे अनार के दानों के समान बिछे हुए थे. अब यह पक्षी की स्मृति में शेष है. 
           जब पक्षी आजाद थे तब नीले आसमान में उड़ते जाते थे और उन्हें ऐसा लगता था कि जब तक आसमान के छोर को नहीं छू लेंगे तब तक वापस नहीं लौटेंगे. पिंजरे में बंद पक्षी के इस प्रकार के अरमान  अब धूमिल हो गए हैं. 

विशेष- उन्मुक्त और उत्साहजनक  स्वभाव की झलक प्राप्त होती है. 
भाषा सरल, सहज व बोधगम्य है. 



 
5.
होती सीमाहीन क्षितिज से
इन पंखों की होड़ा-होड़ी,
या तो क्षितिज मिलन बन जाता
या तनती साँसों की डोरी।



व्याख्या- इन पंक्तियों में पक्षी कहते हैं कि आसमान की ऊंचाइयों को छूते हुए उनके पंखों में इस प्रकार प्रतिस्पर्धा (होड़) लग जाती थी की उड़ते-उड़ते या  तो  वे क्षितिज को पा जाते थे या अपने प्राण गवां बैठते थे. जब पक्षी उन्मुक्त रूप से आसमान में उड़ते थे तब एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा करते हुए आसमान में उड़ते जाते थे और उन्हें ऐसा लगता था कि जहां धरती और आसमान एक दूसरे से मिल रहे हैं वे उस बिंदु तक जाकर वापस लौटेंगे या फिर इसी कोशिश में अपने प्राण गवां देंगे लेकिन अब पिंजरे में बंद पक्षी यह केवल सोच- सोच कर दुखी हो रहे हैं. 



 
6.
नीड़ न दो, चाहे टहनी का
आश्रय छिन्‍न-भिन्‍न कर डालो,
लेकिन पंख दिए हैं, तो
आकुल उड़ान में विघ्‍न न डालो।

व्याख्या- पक्षियों की इच्छा है कि उन्हें रहने के लिए घोंसला न दो, टहनी का आश्रय भी न दो लेकिन ईश्वर ने उन्हें पंख दिए हैं तो उनकी उड़ान में कोई बाधा न डालो. उन्हें स्वतंत्र रूप से उड़ने दो .

                                   अर्थात पक्षी कहते हैं कि न घोंसला चाहिए, न टहनी चाहिए और न कुछ और चाहिए लेकिन मुझे जो ईश्वर ने पंख दिए हैं तो उन पंखों की सहायता से उड़ने में किसी प्रकार की बाधा कोई न डाले. स्वतंत्रता पूर्वक हमें उड़ने दिया जाए. 

विशेष- स्वतंत्रता की भावना मुखर हुई है. 
मन की स्थिति को सरल शब्दों में व्यक्त किया गया है. 




Hum Panchhi Unmukt Gagan ke
कविता से 

प्रश्न - हर तरह की सुख सुविधाएं पाकर भी पक्षी पिंजरे में बंद क्यों नहीं रहना चाहते? 

उत्तर- हर तरह की सुख सुविधाएं पाकर भी पक्षी पिंजरे में बंद नहीं रहना चाहते क्योंकि उन्हें बंधन पसंद नहीं हैं. वे तो खुले आकाश में ऊंची उड़ान भरना, 
नदी-झरनों का बहता जल पीना, 
कड़वी निबोरियां खाना , 
पेड़  की सबसे ऊंची डाली पर झूला झूलना, 
अनार के दानों रूपी तारों को चुगना  
और उड़ान भरना ही पसंद करते हैं. 
पक्षी अपना नैसर्गिक जीवन छोड़कर पिंजरे में सुख-सुविधाएं पाकर भी मनपसंद जीवन नहीं जी सकते, उन्हें तो खुला आकाश और बंधन रहित जीवन पसंद है.


 प्रश्न- पक्षी उन्मुक्त रहकर अपनी कौन-कौन सी इच्छा पूरी करना चाहते हैं?

 उत्तर - पक्षी उन्मुक्त रहकर अपनी निम्न इच्छा पूरी करना चाहते हैं-
 पक्षी खुले आकाश में उड़ना चाहते हैं
 नदी-झरनों का बहता जल पीना चाहते हैं
 नीम के वृक्ष की  कड़वी निबोरियां खाना चाहते हैं
 पेड़ की सबसे ऊंची टहनी पर झूलना चाहते हैं 
आकाश में ऊंची उड़ान भरकर अनार के दानों रूपी तारों को चुगना  चाहते हैं
अपने पंखों को फैलाकर अपने मन के मुताबिक उड़ान भरकर क्षितिज  को छूना चाहते हैं.

 उपरोक्त सभी कार्य पक्षी अपने मन के अनुसार आजादी पूर्वक करना चाहते हैं इसीलिए वे अपने प्राकृतिक जीवन को जी कर इन सभी इच्छाओं को पूरी करना चाहते हैं. पिंजरे में बंद रहकर इस प्रकार की इच्छाएं पूरी करना उनके लिए संभव नहीं है.

 प्रश्न- भाव स्पष्ट कीजिए-

“ या तो  क्षितिज मिलन बन जाता
  या तनती सांसों की डोरी”.

 उत्तर- इस पंक्ति में कवि पक्षी के माध्यम से कहना चाहते हैं कि यदि वे  स्वतंत्र होते तो अपने कोमल व सुंदर पंखों को फैला कर इस तरह उड़ान भरते कि धरती और आसमान के मिलन स्थल( क्षितिज) को छूकर ही आते या फिर इस प्रयास में उनकी सांसें भर जातीं . पक्षी उन्मुक्त रूप से उड़कर क्षितिज  से प्रतिस्पर्धा करते और इस प्रयास में यदि  उनके प्राण भी निकल जाते तो उन्हें किसी प्रकार का दुख नहीं होता .




Hum Panchhi Unmukt Gagan ke
 कविता से आगे


 प्रश्न- बहुत से लोग पक्षी पालते हैं-

1-  पक्षियों को पालना उचित है अथवा नहीं? अपने विचार लिखिए.

 उत्तर- मेरे अनुसार पक्षियों को पालना बिल्कुल भी उचित नहीं है क्योंकि भगवान ने उन्हें उड़ने के लिए पंखे दिए हैं तो उन्हें ऊंची उड़ान भरने दिया जाए. वे हरदम उन्मुक्त और स्वछन्द प्रकृति में विचरण करना चाहते हैं .पेड़ों पर घोंसला बनाकर, नदी -झरनों का पानी पीकर, अपने मन के अनुसार कलरव करके अपना जीवन जीना चाहते हैं .
            उन्हें बंधन में रह कर अच्छे से अच्छा खाना और सुख-सुविधाएँ  भी  दी जाएँ  लेकिन आजादी के बिना उनका जीवन बेकार है .अतः पक्षियों को स्वतंत्र रूप से जीवन जीने के लिए छोड़ दिया जाना चाहिए .


2- क्या आपकी जानकारी में किसी ने कभी कोई  पक्षी  पाला  है?  उसकी देखरेख किस प्रकार की जाती होगी, लिखिए.

 उत्तर- एक बार मेरे मित्र ने तोता पाला था. उसके पिताजी उसे मेले से खरीद कर लाए थे .तोते का नाम जिमी रखा था. वह जिमी की परवरिश एक छोटे बच्चे की भांति करते थे. मेरे दोस्त की मां सुबह-सुबह उसे पिंजरे समेत घर के बाहर बगीचे में लेकर जाती .वह तोता बाहर का वातावरण  देखकर प्रसन्न हो जाता और जोर-जोर से पंख फड़फड़ाता .
                  वे अपने तोते को नहलाते भी थे .खाने में बाजरा व कटोरी में पानी पीने के लिए देते थे. अमरुद, ,अंगूर और हरी मिर्च भी उसे खाने के लिए दी जाती थी. ठंड के मौसम में उसको  धूप में और गर्मी के समय उसे घर के अंदर ही रखते थे .जिमी को दूसरे जानवरों जैसे कुत्ते बिल्ली से बचाकर रखना पड़ता था .जिमी  पिंजरे में ही सो जाता और इस प्रकार उस की दिनचर्या चलती.
            लेकिन मेरे मित्र का कहना था कि उड़ता हुआ पक्षी जितना खुश और संतुष्ट दिखाई देता है पिंजरे में बंद पक्षी नहीं .  पिंजरे में पक्षी से प्राकृतिक जीवन छिन जाता है और अपने मन के मुताबिक कार्य नहीं कर पाता है .जिमी भी ऊंची उड़ान भरना चाहता है लेकिन पिंजरे में बंद रहने के कारण मजबूर है. अतः पक्षियों को खुश करने के लिए उनकी देखभाल करने से बेहतर है कि उन्हें उनके उन्मुक्त  वातावरण में आजाद कर दिया जाए.


प्रश्न- पक्षियों को पिंजरे में बंद करने से केवल उनकी आजादी का हनन ही नहीं होता अपितु पर्यावरण भी प्रभावित होता है. इस विषय पर 10 पंक्तियों में अपने विचार लिखिए.

 उत्तर- पक्षियों को पिंजरे में बंद करने से उनका स्वतंत्र जीवन तो छिन ही जाता है  साथ में हमारी प्रकृति या पर्यावरण भी प्रभावित होता है क्योंकि पक्षी जैव विविधता का महत्वपूर्ण भाग होते हैं .खाद्य श्रृंखला को आगे बढ़ाने का काम करते हैं .प्रकृति को उपजाऊ बनाने का काम करते हैं .प्रकृति  की सुंदरता को बनाते हैं.
                                                                                                                            हर प्राणी की इस प्रकृति में अपनी भूमिका होती है यदि हम पक्षियों को उनकी भूमिका से वंचित रखेंगे तो कहीं ना कहीं प्रकृति  भी नकारात्मक रूप से प्रभावित होगी. यदि पक्षियों की संख्या कम हो जाएगी तो पर्यावरण में छोटे-छोटे कीट पतंगों की संख्या इतनी अधिक बढ़ जाएगी कि वह मानव जीवन को कष्टकारी बना देंगे. पक्षियों की संतुलित संख्या प्रकृति में आवश्यक है ताकि जीवन-चक्र संतुलित रूप से चल सके. पर्यावरण संतुलन व जैव विविधता को बनाए रखने के लिए हर प्राणी को उनके नैसर्गिक परिवेश में जीवन यापन करने का अधिकार है.




Hum Panchhi Unmukt Gagan ke
 अनुमान और कल्पना

प्रश्न- क्या आपको लगता है कि मानव की वर्तमान जीवन शैली और शहरीकरण से जुड़ी योजनाएं पक्षियों के लिए घातक हैं ? पक्षियों से रहित वातावरण में अनेक समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं इन समस्याओं से बचने के लिए हमें क्या करना चाहिए? 
उक्त विषय पर एक वाद विवाद प्रतियोगिता का आयोजन कीजिए.

 उत्तर- मानव की वर्तमान जीवन शैली के कारण आसपास का वातावरण बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है. आधुनिक जीवन शैली के कारण शहरीकरण बढ़ रहा है . जंगलों को लगातार काटा जा रहा है. शहरीकरण बढ़ने से औद्योगिकीकरण भी  बढ़ रहा है जिस कारण से जहरीली गैसें वायुमंडल में घुल रही हैं, नदियों का पानी रसायनों से प्रदूषित हो रहा है. यंत्रों की आवाज से ध्वनि प्रदूषण फैल रहा है. वायुमंडल में रसायनों के छोटे-छोटे कण घुलने से सांस लेने में परेशानी हो रही है.

                                                                             पक्की संरचनाएं , जैसे- बड़े-बड़े भवन, पक्की सड़कें, पक्के बाजार,बड़े-बड़े कल कारखाने आदि बनने से प्राकृतिक और नैसर्गिक जीवन शैली प्रभावित हुई है. प्रदूषण बढ़ने से प्रकृति का लगातार ह्रास हो रहा है . हरियाली कम होती जा रही है. खाद्य पदार्थों के  पौष्टिक गुण नष्ट होते जा रहे हैं. जनसंख्या लगातार बढ़ने से प्रकृति पर दबाव आ गया है. आधारभूत सुख सुविधाएं व भरण पोषण से आम जनजीवन वंचित हो गया है.

                                                                                       ऐसे वातावरण में पक्षी भी बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं. घने व छायादार वृक्षों की छांव से पक्षी वंचित होते जा रहे हैं. निर्जन, सुनसान, ध्वनि रहित नैसर्गिक वातावरण अब उन्हें प्राप्त नहीं होता है. पीने के लिए शुद्ध जल प्राप्त नहीं हो पाता है. उनके शिकार होने का खतरा उन पर बना रहता है. धूल, धुएँ और जहरीले रसायनों के पानी और  हवा में घुलने  के कारण पक्षी भी इससे बीमार हुए हैं और  मौत के शिकार हुए हैं.

                                                                 पक्षियों व वन्य प्राणियों पर आए संकट को बचाने के लिए कई प्रयास किए गए हैं. पक्षियों को प्राकृतिक वातावरण प्रदान करने के लिए अधिक से अधिक पेड़ लगाए जाने चाहिए. कल कारखानों व यंत्रों को इस तरह से स्थापित किया जाना चाहिए  कि उनके कारण  पक्षियों को नुकसान न हो. कचरा प्रबंधन, रसायन प्रबंधन , अपशिष्ट प्रबंधन  होने से पक्षियों के नुकसान को कम किया जा सकता है.


प्रश्न- यदि आपके घर के किसी स्थान पर किसी पक्षी ने अपना आवास (घर) बनाया है और किसी कारणवश आपको अपना घर बदलना पड़ रहा है तो आप उस पक्षी के लिए किस तरह की मदद करना आवश्यक समझेंगे ?  लिखिए.


  उत्तर-  हमारे घर के किसी स्थान पर  किसी पक्षी ने अपना घोंसला बनाया है और हमें घर खाली करके जाना पड़ रहा है तो हम यह प्रयास करेंगे कि घोंसले  को यथा स्थान रहने दिया जाए और पक्षी को आने जाने के लिए जगह छोड़ी जाए. घर को बंद करके जाना पड़ रहा है तो  घोंसले  को किसी ऐसे ऊंचे स्थान पर रख दिया जाए जहां पक्षी आ-जा सकता है और किसी जानवर या बड़े पक्षी की नजर भी उस पर न पड़े.




Hum Panchhi Unmukt Gagan ke
 भाषा की बात


प्रश्न- स्वर्ण श्रंखला और लाल किरण सी
में रेखांकित शब्द गुणवाचक विशेषण है.
कविता से खोज कर इस प्रकार के तीन और उदाहरण लिखिए.

उत्तर-
  • कनक तीलियाँ
  • कटुक निबोरी
  • तारक अनार

 प्रश्न- भूखे-प्यासे में द्वद्व  समास है.
 इन शब्दों के बीच लगे चिह्न  को सामासिक  चिन्ह कहते हैं .इस चिह्न से ‘और’ का संकेत मिलता है .
जैसे = भूखे -प्यासे =भूखे और प्यासे.

इस प्रकार के अन्य उदाहरण लिखिए

  •  पाप- पुण्य =पाप और पुण्य
  •  खट्टा -मीठा=खट्टा और मीठा
  •  सुबह- शाम=सुबह और शाम
  •  दाल- रोटी =दाल और रोटी

  •  सुख -दुख =सुख और दुख
  •  बुरा- अच्छा =अच्छा और बुरा
  •  अपना -पराया =अपना और पराया
  •  माता- माता =माता और पिता
  •  भाई- बहन =भाई और बहन



Hum Panchhi Unmukt Gagan ke
अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न 


 प्रश्न- बंद पिंजरे में पक्षियों को कौन-कौन सी सुविधाएं प्राप्त होती हैं? 
क्या वे  इन सुविधाओं से खुश होते हैं? अपने अनुभव के आधार पर लिखिए.

 प्रश्न- पक्षी उड़ने के लिए क्या-क्या त्याग करने को तैयार हैं?

प्रश्न- पक्षी पिंजरे से बाहर निकलकर अपनी कौन-कौन सी इच्छाएं पूरी करना चाहते हैं?

 प्रश्न-  पक्षियों को स्वतंत्र जीवन क्यों पसंद है?

 प्रश्न- ‘हम पंछी उन्मुक्त गगन के’ कविता हमें किस बात के लिए प्रेरित करती हैं?

 प्रश्न- इस कविता से हमें क्या संदेश मिलता है? क्या  हम दूसरों को भी इस कविता से प्रेरित कर सकते हैं?

 प्रश्न- क्या आप इस कविता का कोई अन्य  शीर्षक दे सकते हैं?

 प्रश्न- आखिर गुलामी का जीवन जीना क्यों कठिन होता है? कविता के आधार पर उत्तर दीजिए.

 प्रश्न- किसी को बंधनों में जकड़े देख कर आपको कैसा महसूस होता है? आप उसकी स्वतंत्रता के लिए क्या उपाय कर सकते हैं?



कविता पर आधारित बहुविकल्पीय प्रश्न







कविता पर आधारित बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर








Hum Panchhi Unmukt Gagan ke
सम्पूर्ण पाठ 




जय हिन्द 
--------------

Post a Comment

0 Comments