Bas Ki Yatra
ncert solutions for class 8 hindi chapter 3
यह कहानी आपको गुदगुदाती (हँसाती ) है और सोचने पर भी मजबूर करती है कि आखिर क्यों यातायात की व्यवस्थाएं इतनी खराब बनी हुई हैं और कहीं न कहीं हम पाठ में दी गई बस की यात्रा को अपने अनुभवों से भी जोड़ते चलते हैं. पाठ में दिए गए स्थल सतना,पन्ना, जबलपुर आदि मध्यप्रदेश राज्य में स्थित हैं .
ncert solutions for class 8 Hindi chapter 3
एक बार लेखक व उसके मित्र कंपनी के काम से पन्ना (म.प्र. का एक जिला ) गए . लौटते समय पन्ना से सतना उन्हें बस से जाना था . सतना एक रेलवे स्टेशन था .जहाँ से उन्हें जबलपुर के लिए ट्रेन मिल जाती जो सुबह उन्हें घर पहुंचा देती . उन्होंने पन्ना से सतना कंपनी की बस से जाना चाहा क्योंकि सतना से जबलपुर के लिए ट्रेन यही बस दिला सकती थी और किसी बस का समय न था.
इस बस की दशा अत्यधिक जर्जर थी .यह बिल्कुल एक बुजुर्ग की भांति थी .उसे देखकर ही ऐसा आभास होता था कि यह चलेगी भी कि नहीं .ऐसा लगता था कि यदि इस बस में बैठेंगे तो इसे कष्ट होगा. यह तो केवल पूजा के योग्य थी. इसमें कैसे बैठा जा सकता है?
जो लोग इन पाँचों मित्रों को बस पर चढ़ाने आए थे उनका मत था कि जो समझदार लोग होते हैं वह इस बस में सफर नहीं करते क्योंकि इस पर भरोसा नहीं किया जा सकता . वे सभी मित्रों को इस प्रकार देख रहे थे जैसे अंतिम विदाई दे रहे थे .उन्हें लग रहा था कि इस धरती पर जो आया है उसे तो जाना ही है .अर्थात एक न एक दिन मृत्यु को वरण करना ही है चाहे वह राजा हो. भिखारी हो या साधु. आदमी को स्वर्ग प्रस्थान करने के लिए कोई कारण तो चाहिए.
लेखक के डॉक्टर मित्र ने सभी डरे हुए मित्रों को सांत्वना देते हुए कहा कि डरो मत यह तो अनुभवी बस है .नई बसों पर तो विश्वास करना भी कठिन है .यह तो हमें अपने बेटों की भांति प्यार से अपनी गोद में ले कर जाएगी /इसी बस में बस कंपनी का एक हिस्सेदार भी सफर कर रहा था .उसका मानना था कि यह बस अच्छी तरह चलेगी.
जब लेखक और उसके मित्र बस में बैठे तो जाना कि बस की अंदरूनी हालत तो बाहरी दशा से भी अधिक खराब थी .खिड़कियां और खिड़कियों के कांच तो थे ही नहीं और जो थे उनसे बचकर बैठने का प्रयास करना पड़ा .सीटें पूरी तरह से खस्ता हालत में थीं .जैसे ही बस स्टार्ट हुई उसके इंजन ने सारी बस को हिला दिया .ऐसा प्रतीत होने लगा कि जैसे सारी बस ही इंजन हो.
जैसे ही बस चली तो लेखक को गांधीजी के असहयोग ,सविनय अवज्ञा आंदोलन की याद आ गई क्योंकि शुरू में तो बस का कोई भी हिस्सा किसी भी दूसरे हिस्से से मिलकर काम नहीं कर रहा था ठीक गांधीजी के असहयोग आंदोलन की भांति जिसमें लोगों ने अंग्रेजों का प्रत्येक कार्य में साथ देना छोड़ दिया था.
आठ-दस मील ( 1 मील=1.96 km ) चलने के बाद बस थोड़ी सहज हो गई जैसे उसके सारे हिस्सों के पूर्वजों के भेदभाव समाप्त हो गए और बस तालमेल से चलने लगी . लेखक को ऐसा लगा कि जैसे यह बस गांधीजी के सविनय अवज्ञा आंदोलन की भांति कार्य कर रही हो जिसमें गांधीजी ने अंग्रेजो द्वारा नमक पर टैक्स लगाने के कारण विरोध किया है. उस समय भारतीय 'वर्ग या जाति' भेद में जकड़े थे अलग-अलग धार्मिक संप्रदाय गुटों आदि के कारण देश विखंडित था लेकिन गांधीजी ने कुशल ड्राइवर की भांति सभी को एक करने का प्रयास करके दांडी यात्रा कर समुद्र तट पर नमक बनाकर अंग्रेजों को सबक सिखाया.
चलते-चलते अचानक ही बस रास्ते में रुक गई .खोजबीन पता चला कि पेट्रोल की टंकी में छेद हो गया है. ड्राइवर ने पेट्रोल निकाला और नली से इंजन में डालने लगा . यहां लेखक को बस की दशा बिल्कुल ऐसी लग रही थी कि वह चलने के काबिल नहीं है .अब उसे चलाना या उस पर यात्रियों को ढोना उस पर अत्याचार करना है .तभी तो उनके मन में यह भाव आया कि अब बस कंपनी का हिस्सेदार बस के इंजन को गोद में रखकर नली से पेट्रोल पिलाएगा जैसे माँ बच्चे को बोतल में दूध पिलाती है. बस में अब चलने का दम नहीं था उसका इंजन एक दम कमजोर हो चुका था . बड़ी मुश्किल से बस चली वह भी 15-20 मील प्रति घंटा की रफ्तार से लेकिन रह रह कर लेखक को अपने अंदर ही अंदर से यह डर था कि बस का ब्रेक कभी भी फेल हो सकता है या स्टीयरिंग टूट सकता है. सफर करते समय प्रकृति के नजारे बहुत ही मनभावन लगते हैं लेकिन लेखक को तो हर पेड़ दुश्मन लगता था क्योंकि जब भी कोई पेड़ दिखाई देता तो उसे ऐसा प्रतीत होता कि कहीं बस इसी से न टकरा जाए . यदि कहीं भी झील दिखाई दे जाती तो उसे ऐसा लगता कि बस इसमें ही गिर जाएगी इस प्रकार उसका सफर डर- डर कर बीतने लगा.
थोड़ी दूर और चलने के बाद अचानक ही बस फिर रुक गई .ड्राइवर ने बड़ी कोशिश की लेकिन बस थी कि चलने का नाम न लेती थी .ऐसे में बस कंपनी का हिस्सेदार फिर से कहने लगा कि बस है तो बहुत अच्छी लेकिन न जाने कैसा संयोग हुआ है कि यह बंद हो गई है. उस समय लेखक को वह कंपनी का हिस्सेदार बिल्कुल अंग्रेज शासनकर्ता की तरह लगा जिन्हें केवल अपना ही ध्यान था. भारतीयों की जरा भी परवाह न थी . ऐसे ही इसे भी बस में सवार यात्रियों की परवाह नहीं थी .
हल्की छिटकी चांदनी में लेखक को वृक्षों की छाया में खड़ी बस बड़ी ही लाचार हालत में लग रही थी. ऐसा प्रतीत हो रहा था कि कोई बुढ़िया थककर बैठ गई हो और आगे बढ़ने का उसमें सहस न हो . हमें अपने आप में शर्म महसूस हुई कि कैसे हम उन पर अपना बोझ डालकर आए हैं यदि अभी इसके प्राण निकल जाएँ तो इस सुनसान जंगल में ही इसका अंतिम संस्कार करना पड़ेगा अर्थात बस बिल्कुल भी आगे चलने की दशा में न थी.
हिस्सेदार साहब ने कुछ प्रयास से उसे चलने लायक बना तो दिया लेकिन लेखक को अभी भी बस एक बुढ़िया की भांति ही लग रही थी. बस बहुत धीमी गति से चल रही थी जान पड़ता था कि बुढ़ापे के कारण उसकी आंखों की रोशनी कम हो गई और वह सड़क पर धीरे-धीरे रेंग (घिसटना ) रही हो . वह सभी वाहनों को संकेत देती हुई यही कहती प्रतीत होती की बेटी तुम निकल जाओ मेरी उम्र अब तुम से मुकाबला करने की नहीं है.
बस एक पुलिया को पार कर रही थी कि अचानक से उसका टायर बैठ गया . बस जोर से हिलकर रुक गई यदि बस थोड़ी भी स्पीड से चल रही होती तो वह चलकर नाले में गिर जाती . लेखक ने पहली बार कंपनी के हिस्सेदार को आदर भाव से देखा और यह एहसास दिलाने का प्रयत्न किया कि टायरों की इतनी खराब हालत के बावजूद भी यात्रियों की जान पर खेलकर उन्हें बस में सफर करवा रहे हैं.
लेखक को बस कंपनी का हिस्सेदार महान व्यक्तित्व का लग रहा था .लेखक ने सोचा कि इसे तो किसी क्रांतिकारी आंदोलन का नेता होना चाहिए जो केवल अपनी विचारधारा से लोगों को अपने पीछे चलाता है . उसे दूसरे की भावनाओं से कुछ लेना देना नहीं था. लेखक सोचने लगा कि यदि बस नाली में गिर जाती तो हम सब मारे जाते. ऐसे में देवता भी शायद इस व्यक्ति का स्वागत करते और कहते कि यह वह महान आदमी है जिसने बस के टायर न बदले लेकिन अपने प्राण दे दिए.
दूसरा घिसा टायर बस में लगाया गया और बस फिर से चल दी अब लेखक व उसके मित्र आराम से बैठ गए. उनकी जल्दी पहुंचने की चाहत सब समाप्त हो गई. उन्होंने तो कहीं पहुंचने की उम्मीद ही छोड़ दी. अब उन्होंने सब कुछ भाग्य पर छोड़ कर सोच लिया कि उन्हें तो इसी बस में सारा जीवन गुजारना है. उन्हें ऐसा एहसास होने लगा कि धरती पर कहीं जाने का उनका कोई लक्ष्य ही नहीं है .उन्हें तो बस इसी बस में ही स्वर्ग की तरफ जाना है . उनकी बेचैनी समाप्त हो गई थी .बस चल रही थी और लोग बस हँसी-मजाक कर रहे थे.
ncert solutions for class 8 Hindi
- हाजिर- मौजूद, उपस्थित
- डाकिन- डाका डालने वाली
- श्रद्धा- आदर भाव
- वयोवृद्ध- बहुत बूढ़ी
- सदियों - युगों
- निशान- चिन्ह
- वृद्धावस्था - बुढ़ापा
- कष्ट- दुख
- योग्य- लायक
- हिस्सेदार- भागीदार, साझेदार
- गजब- अजीब बात
- अनुभवी- योग्यता प्राप्त,संचित ज्ञान
- नवेली- नई
- विश्वसनीय- विश्वास करने योग्य
- अंतिम- आखिरी
- विदा- छोड़ कर जाना
- रंक - भिखारी
- फकीर- साधु
- कूच करना- आगे बढ़ना, चलना
- निमित्त- कारण, उद्देश्य
- दूर सरकना- थोड़ी दूरी पर हो जाना
- असहयोग- साथ न देना
- सविनय - प्रार्थना सहित
- सविनय अवज्ञा- प्रार्थना सहित बात को न मानना
- अवज्ञा- न मानना
- वक्त- समय
- ट्रेनिंग- प्रशिक्षण
- दौर- समय
- बॉडी- ढाँचा
- भेदभाव- अंतर करना या फर्क करना
- पेट्रोल- एक ज्वलनशील व ऊर्जा वाला तरल पदार्थ
- बगल- बाजू, पास में
- नली- पाइप
- उम्मीद- आशा ,कुछ होने की सम्भावना
- सीसी (शीशी) - बोतल
- भरोसा- विश्वास
- लुभावना- मनभावन, ललचाऊ, आकर्षक
- दुश्मन- शत्रु, रिपु,
- गोता- डुबकी (पानी में)
- तरकीबें- योजनाएं , तरीके
- फर्स्ट क्लास- एकदम बढ़िया, उत्तम
- इत्तेफाक- संयोग
- क्षीण - कमजोर, जर्जर, मद्धम
- दयनीय- दया दिखाने योग्य,
- वृद्धा- बुढ़िया
- ग्लानि - अपने आप पर शर्म महसूस होना
- प्राणांत -मृत्यु
- बियाबान -सुनसान, जंगल
- अंत्येष्टि- अंतिम क्रिया कर्म
- पुलिया- नदी या नाले के ऊपर बना आने-जाने का रास्ता
- श्रद्धा भाव- आदर भाव
- उत्सर्ग- त्याग ,किसी वस्तु को छोड़ देना
- दुर्लभ- कठिन, मुश्किल से प्राप्त
- साहस- हिम्मत
- उपयोग- काम में लाना, प्रयोग
- बाहें पसारे- स्वागत करने को तैयार
- प्रयाण- जाना, प्रस्थान
- बेताबी- व्याकुल
- तनाव- मानसिक दबाव
- इत्मिनान - निश्चिंत,चिंता रहित
ncert class 8 Hindi chapter 3 question answer
class 8 hindi chapter 3
- हमारे विद्यालय की बस हमेशा सही वक्त पर आती है।
- 4 नंबर बस मंडीदीप गाँव जाती है।
- मेरे क्रोध पर मेरा वश नहीं चलता।
- सपेरा अपनी बीन से साँप को वश में रखता है।
- बस, बहुत हो चुका।
- बस करो अब मत खाओ ।
- बस कंपनी के एक हिस्सेदार भी उसी बस से जा रहे थे।
- बस सचमुच चल पड़ी और हमें लगा कि यह गाँधी जी के असहयोग और सविनय अवज्ञा आंदोलनों के वक्त अवश्य चलती होगी।
- यह समझ में नहीं आता था कि सीट पर हम बैठे हैं।
- ड्राइवर ने तरह-तरह की तरकीबें की पर वह नहीं चली।
- रफ्तार – बस की रफ्तार बहुत ही तेज़ थी।
- चलना – बस का चलना ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो हवा से बातें कर रही हो।
- गुज़रना – वह उस रास्ते से गुज़र रहा है।
- गोता खाना – वह झील के पानी में गोता खा गया।
- जल– जल जाने पर जल डालकर, मेरे हाथ की जलन कम हो गई।
- फल – फल पाने के लिए मुझे व्रत में फल का फलाहार करना पड़ा।
- हार – जीतने वाले को गले में हार पहनाया गया . जो हार गया उन्होंनेबजा भी तालियाँ बटोरीं .
- गुणवाचक विशेषण –
- संख्यावाचक विशेषण –
0 Comments