Bas ki Yatra class 8 | बस की यात्रा |

Bas ki Yatra class 8

 पाठ-3 

 बस की यात्रा 


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 ध्वनि प्रस्तुति 




Bas Ki Yatra 

 पाठ के बारे में 



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सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई जी ने 'बस की यात्रा' नामक पाठ में यातायात की दुर्व्यवस्थाओं (ख़राब हालत ) पर व्यंगय किया है. लेखक चर्चा करता है कि किस प्रकार पुरानी और खराब हालत की बसें सड़कों पर चलती हैं .उनके मालिक केवल धन कमाना चाहते हैं.  लोगों के जानमाल के बारे में उन्हें कोई चिंता नहीं होती है. 
                              यह कहानी आपको गुदगुदाती (हँसाती ) है और सोचने पर भी मजबूर करती है कि आखिर क्यों यातायात की व्यवस्थाएं इतनी खराब बनी हुई हैं और कहीं न कहीं हम पाठ में दी गई बस की यात्रा को अपने अनुभवों से भी जोड़ते चलते हैं. पाठ में दिए गए स्थल सतना,पन्ना, जबलपुर आदि मध्यप्रदेश राज्य में स्थित हैं .


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पाठ का सार 

एक बार लेखक व उसके मित्र कंपनी के काम से पन्ना (म.प्र. का एक जिला ) गए . लौटते समय पन्ना से सतना उन्हें बस से जाना था . सतना एक रेलवे स्टेशन था .जहाँ से उन्हें  जबलपुर के लिए ट्रेन मिल जाती जो सुबह उन्हें घर पहुंचा देती . उन्होंने पन्ना से सतना कंपनी की बस से जाना चाहा क्योंकि सतना से जबलपुर के लिए ट्रेन यही बस दिला सकती थी और किसी बस का समय न था.


इस बस की दशा अत्यधिक जर्जर थी .यह बिल्कुल एक बुजुर्ग की भांति थी .उसे देखकर ही ऐसा आभास होता था कि यह चलेगी भी कि नहीं .ऐसा लगता था कि यदि इस बस में बैठेंगे तो इसे कष्ट होगा. यह तो केवल पूजा के योग्य थी. इसमें कैसे बैठा जा सकता है?


जो लोग इन पाँचों  मित्रों को बस पर चढ़ाने आए थे उनका मत था कि जो समझदार लोग होते हैं वह इस बस में सफर नहीं करते क्योंकि इस पर भरोसा नहीं किया जा सकता . वे सभी मित्रों को इस प्रकार देख रहे थे जैसे अंतिम विदाई दे रहे थे .उन्हें लग रहा था कि इस धरती पर जो आया है उसे तो जाना ही है .अर्थात एक न एक दिन मृत्यु को वरण करना ही है चाहे वह राजा हो. भिखारी हो या साधु.  आदमी को स्वर्ग प्रस्थान करने के लिए कोई कारण तो चाहिए.


लेखक के डॉक्टर मित्र ने सभी डरे हुए मित्रों को सांत्वना देते हुए कहा कि डरो मत यह तो अनुभवी बस है .नई बसों पर तो विश्वास करना भी कठिन है .यह तो हमें अपने बेटों की भांति प्यार से अपनी गोद में ले कर जाएगी /इसी बस में बस कंपनी का एक हिस्सेदार भी सफर कर रहा था .उसका मानना था कि यह बस अच्छी तरह चलेगी.


जब लेखक और उसके मित्र बस में बैठे तो जाना कि बस की अंदरूनी हालत तो बाहरी दशा से भी अधिक खराब थी .खिड़कियां और खिड़कियों के कांच तो थे ही नहीं और जो थे उनसे बचकर बैठने का प्रयास करना पड़ा .सीटें पूरी तरह से खस्ता हालत में थीं .जैसे ही बस स्टार्ट हुई उसके इंजन ने सारी बस को हिला दिया .ऐसा प्रतीत होने लगा कि जैसे सारी बस ही इंजन हो.


जैसे ही बस चली तो लेखक को गांधीजी के असहयोग ,सविनय अवज्ञा आंदोलन की याद आ गई क्योंकि शुरू में तो बस का कोई भी हिस्सा किसी भी दूसरे हिस्से से मिलकर काम नहीं कर रहा था ठीक गांधीजी के असहयोग आंदोलन की भांति जिसमें लोगों ने अंग्रेजों का प्रत्येक कार्य में साथ देना छोड़ दिया था.


आठ-दस मील ( 1 मील=1.96 km ) चलने के बाद बस थोड़ी सहज हो गई जैसे उसके सारे हिस्सों के पूर्वजों के भेदभाव समाप्त हो गए और बस तालमेल से चलने लगी . लेखक को ऐसा लगा कि जैसे यह बस गांधीजी के सविनय अवज्ञा आंदोलन की भांति कार्य कर रही हो जिसमें गांधीजी ने अंग्रेजो द्वारा नमक पर टैक्स लगाने के कारण विरोध किया है. उस समय भारतीय 'वर्ग या जाति' भेद में जकड़े थे अलग-अलग धार्मिक संप्रदाय गुटों आदि के कारण देश विखंडित था  लेकिन गांधीजी ने कुशल ड्राइवर की भांति सभी को एक करने का प्रयास करके दांडी यात्रा कर समुद्र तट पर नमक बनाकर अंग्रेजों को सबक सिखाया.


चलते-चलते अचानक ही बस रास्ते में रुक गई .खोजबीन पता चला कि पेट्रोल की टंकी में छेद हो गया है. ड्राइवर ने पेट्रोल निकाला और नली से इंजन में डालने लगा . यहां लेखक को बस की दशा बिल्कुल ऐसी लग रही थी कि वह चलने के काबिल नहीं है .अब उसे चलाना या उस पर यात्रियों को ढोना उस पर अत्याचार करना है .तभी तो उनके मन में यह भाव आया कि अब बस कंपनी का हिस्सेदार बस के इंजन को गोद में रखकर नली से पेट्रोल पिलाएगा जैसे माँ  बच्चे को बोतल में दूध पिलाती है. बस में अब चलने का दम नहीं था उसका इंजन एक दम कमजोर हो चुका था . बड़ी मुश्किल से बस चली वह भी 15-20 मील प्रति घंटा की रफ्तार से लेकिन रह रह कर लेखक को अपने अंदर ही अंदर से यह डर था कि बस का  ब्रेक कभी भी फेल हो सकता  है या स्टीयरिंग टूट सकता है. सफर करते समय प्रकृति के नजारे बहुत ही मनभावन लगते हैं लेकिन लेखक को तो हर पेड़  दुश्मन लगता था क्योंकि जब भी कोई पेड़ दिखाई देता तो उसे ऐसा प्रतीत होता कि कहीं बस इसी से न टकरा जाए . यदि कहीं भी  झील दिखाई दे जाती तो उसे ऐसा लगता कि बस इसमें ही गिर जाएगी इस प्रकार उसका सफर डर- डर कर बीतने लगा.

थोड़ी दूर और चलने के बाद अचानक ही बस फिर रुक गई .ड्राइवर ने बड़ी कोशिश की लेकिन बस थी कि चलने का नाम न लेती थी .ऐसे में बस कंपनी का हिस्सेदार फिर से कहने लगा कि बस है तो बहुत अच्छी लेकिन न जाने कैसा संयोग हुआ है कि यह बंद हो गई है. उस समय लेखक को वह कंपनी का हिस्सेदार बिल्कुल अंग्रेज शासनकर्ता की तरह लगा जिन्हें केवल अपना ही ध्यान था. भारतीयों की जरा भी परवाह न थी . ऐसे ही इसे भी बस में सवार यात्रियों की परवाह नहीं थी .


हल्की  छिटकी चांदनी में लेखक को वृक्षों की छाया में खड़ी बस बड़ी ही लाचार हालत में लग रही थी. ऐसा प्रतीत हो रहा था कि कोई बुढ़िया थककर बैठ गई हो और आगे बढ़ने का उसमें सहस न हो . हमें अपने आप में शर्म महसूस हुई कि कैसे हम उन पर अपना बोझ डालकर आए हैं यदि अभी इसके  प्राण निकल जाएँ तो इस सुनसान जंगल में ही इसका अंतिम संस्कार करना पड़ेगा अर्थात बस बिल्कुल भी आगे चलने की दशा में न थी.


हिस्सेदार साहब ने कुछ प्रयास से उसे चलने लायक बना तो दिया लेकिन लेखक को अभी भी बस एक बुढ़िया की भांति ही लग रही थी. बस बहुत धीमी गति से चल रही थी जान पड़ता था कि बुढ़ापे के कारण उसकी आंखों की रोशनी कम हो गई और वह सड़क पर धीरे-धीरे रेंग (घिसटना ) रही हो . वह सभी वाहनों को संकेत देती हुई यही कहती प्रतीत होती की बेटी तुम निकल जाओ मेरी उम्र अब तुम से मुकाबला करने की नहीं है.


बस एक पुलिया को पार कर रही थी कि अचानक से उसका टायर बैठ गया . बस  जोर से हिलकर  रुक गई यदि बस थोड़ी भी स्पीड से चल रही होती तो वह चलकर नाले में गिर जाती . लेखक ने पहली बार कंपनी के हिस्सेदार को आदर भाव से देखा और यह एहसास दिलाने का प्रयत्न किया कि टायरों की इतनी खराब हालत के बावजूद भी यात्रियों की जान पर खेलकर उन्हें बस में सफर करवा रहे हैं.

लेखक को बस कंपनी का हिस्सेदार महान व्यक्तित्व का लग रहा था .लेखक ने सोचा कि इसे तो किसी क्रांतिकारी आंदोलन का नेता होना चाहिए जो केवल अपनी विचारधारा से लोगों को अपने पीछे चलाता है . उसे दूसरे की भावनाओं से कुछ लेना देना नहीं था. लेखक सोचने लगा कि यदि बस नाली में गिर जाती तो हम सब मारे जाते. ऐसे में देवता भी शायद इस व्यक्ति का स्वागत करते और कहते कि यह वह महान आदमी है जिसने बस के टायर न बदले लेकिन अपने प्राण दे दिए.


दूसरा घिसा टायर बस में लगाया गया और बस फिर से चल दी अब लेखक व उसके मित्र आराम से बैठ गए. उनकी जल्दी पहुंचने की चाहत सब समाप्त हो गई. उन्होंने तो कहीं पहुंचने की उम्मीद ही छोड़ दी. अब उन्होंने सब कुछ भाग्य पर छोड़ कर सोच लिया कि उन्हें तो इसी बस में सारा जीवन गुजारना है. उन्हें ऐसा एहसास होने लगा कि धरती पर कहीं जाने का उनका कोई लक्ष्य ही नहीं है .उन्हें तो बस इसी बस में ही स्वर्ग की तरफ जाना है . उनकी बेचैनी समाप्त हो गई थी .बस चल रही थी और लोग बस हँसी-मजाक कर रहे थे.


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 शब्दार्थ 



  • हाजिर- मौजूद, उपस्थित
  • डाकिन- डाका डालने वाली
  • श्रद्धा- आदर भाव
  • वयोवृद्ध- बहुत बूढ़ी
  • सदियों - युगों
  • निशान- चिन्ह
  • वृद्धावस्था - बुढ़ापा
  • कष्ट- दुख
  • योग्य- लायक
  • हिस्सेदार- भागीदार, साझेदार
  • गजब- अजीब बात
  • अनुभवी- योग्यता प्राप्त,संचित ज्ञान
  • नवेली- नई
  • विश्वसनीय- विश्वास करने योग्य
  • अंतिम- आखिरी
  • विदा- छोड़ कर जाना
  • रंक - भिखारी
  • फकीर- साधु
  • कूच करना- आगे बढ़ना, चलना
  • निमित्त- कारण, उद्देश्य
  • दूर सरकना- थोड़ी दूरी पर हो जाना
  • असहयोग- साथ न देना
  • सविनय - प्रार्थना सहित
  • सविनय अवज्ञा- प्रार्थना सहित बात को न मानना
  • अवज्ञा- न मानना
  • वक्त- समय
  • ट्रेनिंग- प्रशिक्षण
  • दौर- समय
  • बॉडी- ढाँचा
  • भेदभाव- अंतर करना या फर्क करना
  • पेट्रोल- एक ज्वलनशील व ऊर्जा वाला तरल पदार्थ
  • बगल- बाजू, पास में
  • नली- पाइप
  • उम्मीद- आशा ,कुछ होने की सम्भावना
  • सीसी (शीशी) - बोतल
  • भरोसा- विश्वास
  • लुभावना- मनभावन, ललचाऊ, आकर्षक
  • दुश्मन- शत्रु, रिपु,
  • गोता- डुबकी (पानी में)
  • तरकीबें- योजनाएं , तरीके
  • फर्स्ट क्लास- एकदम बढ़िया, उत्तम
  • इत्तेफाक- संयोग
  • क्षीण - कमजोर, जर्जर, मद्धम
  • दयनीय- दया दिखाने योग्य,
  • वृद्धा- बुढ़िया
  • ग्लानि - अपने आप पर शर्म महसूस होना
  • प्राणांत -मृत्यु
  • बियाबान -सुनसान, जंगल
  • अंत्येष्टि- अंतिम क्रिया कर्म
  • पुलिया- नदी या नाले के ऊपर बना आने-जाने का रास्ता
  • श्रद्धा भाव- आदर भाव
  • उत्सर्ग- त्याग ,किसी वस्तु को छोड़ देना
  • दुर्लभ- कठिन, मुश्किल से प्राप्त
  • साहस- हिम्मत
  • उपयोग- काम में लाना, प्रयोग
  • बाहें पसारे- स्वागत करने को तैयार
  • प्रयाण- जाना, प्रस्थान
  • बेताबी- व्याकुल
  • तनाव- मानसिक दबाव
  • इत्मिनान - निश्चिंत,चिंता रहित


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 प्रश्नोत्त्तर 


प्रश्न 1- "मैंने उस कंपनी के हिस्सेदार की तरफ़ पहली बार श्रद्धाभाव से देखा" लेखक के मन में हिस्सेदार साहब के लिए श्रद्धा क्यों जग गई?


उत्तर - बस की हालत बहुत ही खस्ता थी। लेखक के अनुसार उस बस के अंदर बैठना अपने प्राणों का बलिदान देने जैसा था और उसका हिस्सेदार-साहब तो पूरे रास्ते उस बस की तारीफ़ों के पुल बाँधते रहे थे। उसकी बातें सुनकर तो उनको ये लग रहा था कि ये नई बस हो। जब गिरते-पड़ते वह बस चल रही थी, तो नाले के ऊपर पूलिया पर उसके खराब हो जाने पर सबके प्राण संकट में पड़ सकते थे। लेखक के अनुसार अगर बस स्पीड पर होती तो पूरी बस नाले पर जा गिरती, पर बस का मालिक था कि वो बस की खस्ता हालत में भी उसे चला रहा था पर उससे ये न हो सका कि वो बस के टायर ही नए लगवा लेता। लेखक को लगा हम सबसे महान तो ये है जो इसकी ऐसी हालत देखकर भी इस बस से यात्रा करने में तनिक भी घबराया नहीं। वाकई में ये काबिले-तारीफ़ है कि प्राणों की परवाह न कर इस पर बैठा है। तो उसकी उस पर विशेष श्रद्धा जाग गई।

प्रश्न 2- ”लोगों ने सलाह दी कि समझदार आदमी इस शाम वाली बस से सफ़र नहीं करते।” लोगों ने यह सलाह क्यों दी?

उत्तर - उस बस की हालत ऐसी थी कि वो किसी भूतहा महल के भूत पात्र सा प्रतीत हो रहा था। उसका सारा ढाँचा बुरी हालत में था, अधिकतर शीशें टूटे पड़े थे। इंजन और बस की बॉडी का तो कोई तालमेल नहीं था। उसको देखकर स्वयं ही अंदाज़ा लग जाता था कि वो अंधेरे में कहीं साथ न छोड़ दे या कोई दुर्घटना न हो जाए। कई लोग पहले भी उस बस से सफ़र कर चुके थे। वो अपने अनुभवों के आधार पर ही लेखक व उसके मित्र को बस में न बैठने की सलाह दे रहे थे। उनकी जर्जर दशा से पता नहीं वह कब खराब हो जाए या दुर्घटना कर बैठे।

प्रश्न 3-  ”ऐसा जैसे सारी बस ही इंजन है और हम इंजन के भीतर बैठे हैं।” लेखक को ऐसा क्यों लगा?

उत्तर - लेखक के अनुसार बस बहुत ही पुरानी थी।बस की हालत ऐसी थी कि कोई वृद्ध अपनी उम्र के चरम में था।उस को देखकर लेखक के मन में श्रद्धा जागृत हो रही थी।उस बस के इंजन के तो क्या कहने।लेखक कहता है बस के स्टार्ट होते हुए वो इतना शोर कर रहा था मानो कि उन्हें ऐसा लगा जैसे इंजन आगे नहीं अपितु पूरी बस में लगा हो,क्योंकि उस का इंजन दयनीय स्थिति में था।इससे पूरी बस हिल रही थी , इसलिए उन्हें लगा कि सारी बस ही इंजन है और हम इंजन के भीतर बैठे हैं।

प्रश्न 4-  ”गज़ब हो गया। ऐसी बस अपने आप चलती है।”  लेखक को यह सुनकर हैरानी क्यों हुई?

उत्तर - लेखक को जब उस बस में बैठते हुए मन ही मन बस के चलने पर आशंका हुई तो उसकी आशंका को मिटाने के लिए बस के हिस्सेदार ने बस की प्रशंसा बढ़ा-चढ़ाकर की। लेखक को संदेह था इसलिए उसने इस संदेह के निर्वाण हेतु बस के हिस्सेदार से पूछ ही लिया क्या ये बस चलेगी? और बस हिस्सेदार ने उतने ही अभिमान से कहा – अपने आप चलेगी, क्यों नहीं चलेगी, अभी चलेगी। पर लेखक को उसके कथन में सत्यता नहीं दिखाई दे रही थी। अपने आप कैसे चलेगी? उसके लिए तो हैरानी की बात थी कि एक तो ऐसी खस्ता हालत बस की थी फिर भी वो कह रहा था चलेगी और अपने आप चलेगी। ये हैरान कर देने वाली बात थी।

प्रश्न 5-  ”मैं हर पेड़ को अपना दुश्मन समझ रहा था।” लेखक पेड़ों को दुश्मन क्यों समझ रहा था?

उत्तर - बस की हालत ऐसी थी जिसे देखकर कोई भी व्यक्ति को संदेह होता परन्तु लेखक ने फिर भी उसमें बैठने की गलती की। लेकिन उसे अपनी गलती का अहसास तब हुआ जब बस स्टार्ट हो गई और उसमें बैठकर यात्रा करते हुए उसे इस बात को पूरा यकीन हो गया कि ये बस कभी भी धोखा दे सकती है। मार्ग में चलते हुए उसे हर वो चीज़ अपनी दुश्मन सी लग रही थी जो मार्ग में आ रही थी। फिर चाहे वो पेड़ हो या कोई झील। उसे पूरा यकीन था कि बस कब किसी पेड़ से टकरा जाए और उनके जीवन का अंत हो जाए। इसी विश्वास ने लेखक को पूरी तरह भयभीत किया हुआ था कि अब कोई दुर्घटना घटी और हमारे प्राण संकट में पड़ गए।



class 8 hindi chapter 3

 भाषा की बात 


प्रश्न 1- बस, वश, बस तीन शब्द हैं-इनमें बस सवारी के अर्थ में, वश अधीनता के अर्थ में, और बस पर्याप्त (काफी) के अर्थ में प्रयुक्त होता है, जैसे-बस से चलना होगा। मेरे वश में नहीं है। अब बस करो।
उपर्युक्त वाक्य के समान तीनों शब्दों से युक्त आप भी दो-दो वाक्य बनाइए।

उत्तर - 

(1) बस – वाहन
  • हमारे विद्यालय की बस हमेशा सही वक्त पर आती है।
  • 4  नंबर बस मंडीदीप  गाँव जाती है।

(2) वश – अधीन
  • मेरे क्रोध पर मेरा वश नहीं चलता।
  • सपेरा अपनी बीन से साँप को वश में रखता है।

(3) बस – पर्याप्त (काफी)
  • बस, बहुत हो चुका।
  • बस करो अब मत खाओ ।

प्रश्न 2-  ”हम पाँच मित्रों ने तय किया कि शाम चार बजे की बस से चलें। पन्ना से इसी कंपनी की बस सतना के लिए घंटे भर बाद मिलती है।”
ने, की, से आदि शब्द वाक्य के दो शब्दों के बीच संबंध स्थापित कर रहे हैं। ऐसे शब्दों को कारक कहते हैं। इसी तरह जब दो वाक्यों को एक साथ जोड़ना होता है ‘कि’ का प्रयोग होता है। कहानी में से दोनों प्रकार के चार वाक्यों को चुनिए।

उत्तर - 

  • बस कंपनी के एक हिस्सेदार भी उसी बस से जा रहे थे।
  • बस सचमुच चल पड़ी और हमें लगा कि यह गाँधी जी के असहयोग और सविनय अवज्ञा आंदोलनों के वक्त अवश्य चलती होगी।
  •  यह समझ में नहीं आता था कि सीट पर हम बैठे हैं।
  • ड्राइवर ने तरह-तरह की तरकीबें की पर वह नहीं चली।


प्रश्न 3-  ”हम फ़ौरन खिड़की से दूर सरक गए। चाँदनी में रास्ता टटोलकर वह रेंग रही थी।”
‘सरकना’ और ‘रेंगना’ जैसी क्रिया दो प्रकार की गति बताती है। ऐसी कुछ और क्रियाएँ एकत्र कीजिए जो गति के लिए प्रयुक्त होती हैं, जैस-घूमना इत्यादि। उन्हें वाक्यों में प्रयोग कीजिए।

उत्तर - 

  • रफ्तार – बस की रफ्तार बहुत ही तेज़ थी।
  • चलना – बस का चलना ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो हवा से बातें कर रही हो।
  • गुज़रना – वह उस रास्ते से गुज़र रहा है।
  • गोता खाना – वह झील के पानी में  गोता खा गया।


प्रश्न 4-  ”काँच बहुत कम बचे थे। जो बचे थे, उनसे हमें बचना था।”
इस वाक्य में ‘बच’ शब्द को दो तरह से प्रयोग किया गया है। एक ‘शेष’ के अर्थ में और दूसरा ‘सुरक्षा’ के अर्थ में।
नीचे दिए गए शब्दों को वाक्यों में प्रयोग करके देखिए। ध्यान रहे, एक ही शब्द वाक्य में दो बार आना चाहिए और शब्दों के अर्थ में कुछ बदलाव होना चाहिए।
(क) जल (ख) फल (ग) हार

उत्तर - 

  • जल– जल जाने पर जल डालकर, मेरे हाथ की जलन कम हो गई।
  • फल – फल पाने के लिए मुझे व्रत में फल का फलाहार करना पड़ा।
  • हार –  जीतने वाले को गले में हार पहनाया गया . जो हार गया उन्होंनेबजा भी  तालियाँ बटोरीं .


प्रश्न 5-  भाषा की दृष्टि से देखें तो हमारी बोलचाल में प्रचलित अंग्रेजी शब्द फर्स्ट क्लास में दो शब्द हैं-फर्स्ट और क्लास। यहाँ क्लास का विशेषण है फर्स्ट। चूँकि फर्स्ट संख्या है, फर्स्ट क्लास संख्यावाचक विशेषण का उदाहरण है।
महान आदमी में किसी आदमी की विशेषता है महान। यह गुणवाचक विशेषण है। संख्यावाचक विशेषण और गुणवाचक विशेषण के उदाहरण खोजकर लिखिए।

उत्तर - 
  • गुणवाचक विशेषण –
सूखी घास 
ईमानदार आदमी 
  • संख्यावाचक विशेषण –
चार आम 
दूसरा बन्दर 



कार्य पत्रक 





जय हिन्द : जय हिंदी 
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